भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act)
परिचय
- भारतीय संविदा अधिनियम का महत्व और आवेदन क्षेत्र
- यह अधिनियम पुरे भारत में लागू होता है
- संविदा के प्रकार और विधियों पर ध्यान केंद्रित
संविदा के तत्व
- ऑफर (प्रस्ताव): प्रपोजल जो एक व्यक्ति दूसरे को अपनी इच्छाओं के सूचित करता है
- एक्सेप्टेंस (स्वीकृति): ऑफर की स्वीकार्यता जिससे प्रॉमिस का निर्माण होता है
- कंसीडरेशन (प्रतिफल): संधि में दोनों पक्षों को कुछ पाने की प्रक्रिया
- लीगल इन्फोर्सेबिलिटी (कानूनी बाध्यता): जब एग्रीमेंट को कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है
संविदा के प्रकार
- वैलिड कॉन्ट्रेक्ट (मान्य संविदा): सभी आवश्यक तत्व मौजूद
- वॉइड कॉन्ट्रेक्ट (शून्य संविदा): संविदा आरंभ में वैलिड थी लेकिन कालांतर में अवैध हो गई
- वॉयडेबल कॉन्ट्रेक्ट (रद्द योग्य संविदा): जब सहमति स्वतंत्र नहीं है
संविदा की समाप्ति के तरीके
- नोवेशन (नवीनकरण), अल्टरेशन (परिवर्तन)
- रिसेशन (रद्द करना)
- परफॉर्मेंस (प्रदर्शन) द्वारा समाप्ति
संविदा में असंगतियाँ
- फ्री कंसेंट का अभाव (कोर्जन, फ्रॉड, मिस्टेक)
- कोर्जन (विवशता): दबाव या धमकी के अंतर्गत
- फ्रॉड (कपट): जानबूझकर गलत जानकारी देना
- मिस्टेक (भूल): तथ्य की या विधि की भूल
विशेष अनुबंध
संविदा का उल्लंघन और रेमेडीज
- डैमेजेस (हर्जाना): नुकसान की भरपाई
- इंजंक्शन: संविदा का उल्लंघन रोकने के आदेश
महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत
- क्वांटम मेरिट: जितनी सेवा दी गई उसके अनुपात में पा रिश्रमिक
- डॉक्ट्रिन ऑफ फ्रस्ट्रेशन: संविदा की निरस्तता जब प्रदर्शन असंभव हो जाए
अनुच्छेद एवं प्रावधान
- अनुच्छेद 2(h): संविदा की परिभाषा
- अनुच्छेद 10: संविदा के लिए आवश्यक तत्व
- अनुच्छेद 56: असंभव कार्यों के लिए संविदा की निरस्तता
- अनुच्छेद 73-75: हर्जाना और कंपनसेशन के प्रावधान
निष्कर्ष
- अनुबंधों की समझ और इसके कानूनी प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है
- अनुबंध अधिनियम हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
यह नोट्स भारतीय संविदा अधिनियम के मुख्य बिन्दुओं का सार प्रस्तुत करते हैं और अध्ययन के लिए उपयोगी हैं।