सोच के देखो कि रात का टाइम हो रहा है और सामने एक जंगल है उसमें से मोर और बाकी जो पक्षी होते हैं उनके चिल्लाने की आवाज आए मतलब उनकी आवाज ऐसी है कि आपको समझ में आ रहा है कि उनकी आवाज में दर्द है और आप अपने कमरे से या घर जो भी आपका है उससे आप बाहर आओ और आप देखो कि बहुत सारे बुलडोजर्स और जो पेड़ों को काटने के लिए जरूरी होता है सामान वो सब लेके लोग खड़े हुए हैं और पेड़ काट रहे हैं और आपको यह रियलाइजेशन हो कि पक्षी इस वजह से चिल्ला रहे थे क्योंकि उनका घर उनके पास से छीन रहा है कैसा फील होगा ऐसे टाइम पे आपको यह कोई मूवी का सीन नहीं है यही हुआ हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कांचा गच्ची बाउली फॉरेस्ट में जब तक सुबह हुई तो सोइयो पेड़ कट चुके थे और टीसीआईआईसी यानी कि तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन यह ऑर्गेनाइजेशन थी इसका आप याद रखना नाम क्योंकि ये आगे काम आएगा इस ऑर्गेनाइजेशन के लोग जो है वहां पे पेड़ काट चुके थे अब जैसे ही यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को यह पता चला नॉर्मली तो इंसान जो है इस टाइम पे सोता हुआ ही होता है लेकिन यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स कॉलेज स्टूडेंट्स उनका कोई टाइम नहीं होता सोने का और कोई टाइम नहीं होता सुकून में बैठने का तो घूम रहे होंगे कुछ यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और उन्होंने यह नोटिस कर लिया यहां से बात पहुंची स्टूडेंट यूनियन के लीडर्स के पास और फिर सुबह होते ही प्रोटेस्ट शुरू हो गए स्टूडेंट्स की तरफ से वो लैंड क्यों ऑक्शन किया जा रहा है स्ट्रेटेजिकली वो बुलडोजर लाके उन्होंने जंगल की सफाई शुरू कर दी है लेकिन सामने जो पेड़ काटने आए थे वो भी कोई छोटे-मोटे लोग तो थे नहीं गवर्नमेंट के लोग थे और पावरफुल लोग थे खैर स्टूडेंट्स एक्टिविस्ट इनका और अथॉरिटीज का लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया लड़ाई झगड़ा मतलब हाथ से नहीं नॉर्मली वो प्रोटेस्ट कर रहे थे स्टूडेंट्स वगैरह फिजिकली वो रोकने की कोशिश कर रहे थे जो मशीनंस वगैरह आई थी उनको और यह सारा सीन चल रहा था तारीख आ गई 2 अप्रैल और 2 कि.मी स्क्वायर का एरिया जो है फॉरेस्ट का वो साफ हो गया जो वहां पर आई विटनेस थे उनका कहना था कि जो लोग आए थे जंगल को साफ करने वह इतनी तैयारी के साथ आए थे इतने ग्रुप में आए थे कि बस कुछ ही दिनों में वो 400 एकड़ का जो फॉरेस्ट है उसको साफ कर देते जितनी न्यूज़ सोर्सेस के थ्रू पता चला हालांकि इसका ऑफिशियल कोई स्टेटमेंट नहीं है तो इस जगह पे बनने वाला था एक आईटी पार्क खैर नॉर्मल जो इंडिया के सिटीजंस हैं जो हैदराबाद से काफी दूर रहते हैं उनको लगेगा कि ये जो सारा सीन है ये वो एकदम से हो गया और स्टेट गवर्नमेंट ने एकदम से डिसाइड करा कि यहां पे आईटी पार्क बनाएंगे लेकिन ऐसा नहीं है इस फॉरेस्ट की थोड़ी सी हिस्ट्री है पुरानी दरअसल यह जो फॉरेस्ट है कांचा गच्ची बाउली इस फॉरेस्ट के ऊपर जो लीगल बैटल है वो काफी लंबे टाइम से चल रहा है यानी कि कोर्ट केस और कोर्ट केस चल रहा था दो पार्टीज के बीच में एक तो यूनिवर्सिटी ऑफ़ हैदराबाद तो थी साथ में तेलंगाना की स्टेट गवर्नमेंट सीन क्या है कि स्टेट गवर्नमेंट कहती है कि ये जो फॉरेस्ट है ये जो लैंड है यह हमारा है स्टेट गवर्नमेंट का है और यूनिवर्सिटी कहती है कि यह हमारी कैंपस की इकोलॉजी में आता है अब वैसे तो तेलंगाना में इस टाइम पे कांग्रेस की गवर्नमेंट है लेकिन ऐसे मत समझना कि बाकी जो गवर्नमेंट्स हैं उन्होंने एनवायरमेंट की बहुत फिक्र करी या फिर उन्होंने इस फॉरेस्ट को काटने की कोशिश नहीं करी या फिर काटना ही हुआ अगर इसको डेवलपमेंट के लिए भेज रहे हो तो डेवलपमेंट काटने के बाद ही होगा क्योंकि इसका जो प्लान है डेवलपमेंट का वो 2003 में आया था उस टाइम पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों अलग-अलग प्रदेश नहीं थे आंध्र प्रदेश अकेला प्रदेश था और चंद्रबाबू नायडू उस टाइम पर चीफ मिनिस्टर थे जो इस टाइम आंध्र प्रदेश के चीफ मिनिस्टर हैं और बीजेपी के अलायंस में है तो कहने का मतलब यह है कि यहां पे पॉलिटिकल पार्टीज की बात नहीं हो रही यहां पे इस मुद्दे को डिस्कस और समझने की कोशिश करेंगे हम तो जो फॉरेस्ट एरिया है उसका जो लीगल बैटल है वो लगभग 20 साल चला और अभी 2024 की ही बात है मई की इस लीगल बैटल में स्टेट गवर्नमेंट जीत गई तेलंगाना की स्टेट गवर्नमेंट और जो यह पूरा फ़ॉरेस्ट का एरिया है उसका जो हक़ है वह स्टेट गवर्नमेंट के पास चला गया और जितनी रिपोर्ट्स मिली है उस हिसाब से तेलंगाना स्टेट गवर्नमेंट का प्लान था कि इस पूरे एरिया को डेवलप करने के बाद ₹1,000 करोड़ तक में ऑक्शन करा जाएगा मई 2024 से मार्च तक अभी जो मार्च निकली है तब तक कुछ नहीं हुआ और अचानक से 30 मार्च 2025 को मशीनंस और बहुत सारे वर्कर्स लेके टीसीआईआईसी ईए ऑर्गेनाइजेशन पहुंच गई जंगल को साफ करने फिर वहां धीरे-धीरे स्टूडेंट्स आने लग गए और कुछ पेड़ कटने के बाद और स्टूडेंट्स का जो आपस में बातचीत हुई होगी एक दूसरे को इंफॉर्मेशन पता चली होगी उसके बाद वहां पे सोइयो स्टूडेंट्स आ गए प्रोटेस्ट करने के लिए स्टूडेंट्स ने फिजिकली रोकने की कोशिश करी कि भाई पेड़ नहीं कटने चाहिए अथॉरिटीज ने उनको समझाने की कोशिश करी कि भाई ये जो लैंड है वो तेलंगाना गवर्नमेंट के अंडर आती है आपकी यूनिवर्सिटी के अंदर नहीं आती और इस सबके बीच में थोड़ा मतभेद हो गया तो जो ऑर्गेनाइजेशन यहां पे पेड़ काटने आई थी वो अपनी पूरी तैयारी के साथ आई थी उनके साथ में पुलिस भी थी पुलिस गार्ड्स तो पुलिस ने स्टूडेंट्स को डिटेन करना स्टार्ट कर दिया एप्रोक्सिममेटली 50 स्टूडेंट्स को उन्होंने डिटेन किया हालांकि पुलिस ने बाद में सफाई दी के स्टूडेंट्स ने जो है वह डंडे और पत्थर चलाने शुरू कर दिए थे और हमने सिर्फ दो बंदों को अरेस्ट किया बट आई हाइली डाउट दैट क्योंकि जो वीडियोस और क्लिप्स और आर्टिकल्स और टेस्टिमोनी सामने आई उसमें लग रहा था कि पुलिस ने इससे तो कुछ ज्यादा ही किया होगा खैर जिनको पुलिस ने डिटेन किया था उनको पुलिस ने अगले दिन रिलीज भी कर दिया डिटेन और अरेस्ट में बहुत डिफरेंस होता है अरेस्ट होता है कि आप किसी को क्रिमिनल एक्टिविटी करने के बेसिस पे अरेस्ट करते हो डिटेन का मतलब होता है कि आप लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए किसी को डिटेन कर लो या फिर आप किसी को इन्वेस्टिगेट करने के लिए डिटेन कर सकते हो किसी क्रिमिनल एक्टिविटी की वजह से नहीं खैर धीरे-धीरे स्टूडेंट्स की जो गिनती थी वो बढ़ती चली गई और स्टूडेंट्स का प्रोटेस्ट जो है वो और भारी होता चला गया जब स्टूडेंट्स की अच्छी खासी पॉपुलेशन हो गई तो उन्होंने प्रॉपर्ली डिक्लेअ कर दिया कि भाई हमारी तो ये डिमांड्स है और हम यहां पे पेड़ कटने नहीं देंगे डिमांड सिंपल थी कि कैंपस में जो पुलिस है पहले तो वह निकलनी चाहिए पुलिस का कोई काम नहीं है कैंपस में दूसरा जो भी पेड़वेड़ काट रहे हो मशीनंस वगैरह हैं इनको भी वापस लेके जाओ और तीसरा यह कि जो भी वो लैंड है जो तेलंगाना स्टेट गवर्नमेंट के अंडर आ गई है अब उसको यूनिवर्सिटी को वापस करो अब यहां पे एक चीज नोटिस करने वाली थी कि जो स्टूडेंट्स का प्रोटेस्ट था वो सिर्फ स्टेट गवर्नमेंट के अगेंस्ट नहीं था या अथॉरिटीज के अगेंस्ट नहीं था वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एडमिनिस्ट्रेशन को भी डायरेक्टली टारगेट कर रहे थे उनका कहना यह था जैसे स्टूडेंट्स की एक जॉइंट स्टेटमेंट आई थी कि भाई यूनिवर्सिटी की जो एडमिनिस्ट्रेशन है उसने तेलंगाना स्टेट गवर्नमेंट के साथ मिलके उनको अपोज करने की बजाय कि भाई तुम फॉरेस्ट क्यों काट रहे हो उनको फैसिलिटीज प्रोवाइड करी है कि आओ और काट के ले जाओ कहने का मतलब कि स्टेट गवर्नमेंट के साथ उन्होंने कॉम्प्रोमाइज किया प्रोटेस्ट थोड़ा और पावरफुल होता चला गया स्टूडेंट्स ने क्लासेस टोटली बॉयकॉट कर दी कि 1 अप्रैल के बाद कोई क्लासेस नहीं जाएगा इन्हीं प्रोटेस्ट के बीच में एक फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट था 18 साल का वो हंगर स्ट्राइक पे बैठ गया भूख हड़ताल पे कि जब तक यह पेड़वेड़ कटना छोड़ोगे नहीं आप मैं भूख हड़ताल पे बैठ जाऊंगा वो कैंपस के मेन गेट पे बैठ गया इससे जो प्रोटेस्ट था वो और स्ट्रांग हो गया बातें सोशल मीडिया पे आने लग गई हैदराबाद यूनिवर्सिटी के जो एलुमिनाई थे और बाकी जो एनवायरमेंटल ऑर्गेनाइजेशंस होती हैं एक्टिविस्ट होते हैं वो भी साथ में मिल गए और प्रोटेस्ट अच्छा खासा स्ट्रांग हो गया इसके बाद फिर स्टेट गवर्नमेंट्स के भी स्टेटमेंट आने शुरू हुए उन्होंने बोला कि एक भी इंच जो है हैदराबाद यूनिवर्सिटी का हमने नहीं काटा है और ना ही हम काटेंगे हमने कुछ टाइम पहले प्रॉपर सर्वे किया था हैदराबाद यूनिवर्सिटी के लोगों के साथ ताकि जो हमारा लैंड है उसी को हम काटें हालांकि बाद में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एडमिनिस्ट्रेशन ने ऑफिशियली इस बात को डिनाई कर दिया कि हमने कोई सर्वे ववे नहीं किया हमने सिर्फ वॉक करके देखा था कि कौन सा एरिया कैसे है और कुछ भी नहीं हुआ था खैर तेलंगाना गवर्नमेंट ने स्टेट गवर्नमेंट ने एक और बात बोली कि ये जो लैंड है ये फॉरेस्ट लैंड है ही नहीं यह रेवेन्यू लैंड है और इस पे जो पेड़ हैं वह टाइम के साथ उग गए हैं जो कि थोड़ी अजीब बात है अजीब इसलिए है क्योंकि इंडिया में दो तरीके के एरियाज होते हैं पहले होते हैं फॉरेस्ट लैंड जिस पे किसी भी तरीके का कंस्ट्रक्शन डेवलपमेंट या पेड़ काटने का जो पूरा तरीका होता है वो कोई भी स्टेट गवर्नमेंट नहीं कर सकती वो सेंट्रल गवर्नमेंट की परमिशन के बाद ही किया जा सकता है और वो भी सेंट्रल गवर्नमेंट भी करेगी तो उसको भी काफी बैकलैश फेस करना पड़ जाता है दूसरा आता है रेवेन्यू लैंड रेवेन्यू लैंड वो होती है जिस पे गवर्नमेंट डेवलपमेंट कर सकती है इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर सकती है अब इंडिया में क्या हुआ था कि जो बड़े-बड़े एरियाज वाले फॉरेस्ट थे वो तो प्रॉपर्ली नोटिफाई कर दिए गए थे नोटिफाइड फॉरेस्ट बन गए थे नोटिफाइड फॉरेस्ट में अलग-अलग टाइप भी आते हैं जैसे रिजर्व फॉरेस्ट प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट विलेज फॉरेस्ट तो जिन फॉरेस्ट एरियाज को नोटिफाई कर दिया जाता है नोटिफाइड कर दिया जाता है वैसे भी यूजुअली उनको प्रोटेक्ट करने के लिए वहां पे फॉरेस्ट गार्ड्स होते हैं फॉरेस्ट फोर्सेस होती हैं लेकिन कुछ एरियाज ऐसे हैं जो एरिया में छोटे थे या ध्यान नहीं आया या फिर किसी तरीके से मिस हो गए लेकिन फिर भी अगर किसी भी एरिया में अच्छी खासी वेजिटेशन है प्लांट्स हैं और वहां पे एनिमल्स रहते हैं कई टाइप के या फिर बर्ड्स रहते हैं तो वो ऑटोमेटिकली डीम्ड फॉरेस्ट बन जाता है और डीम्ड फॉरेस्ट में फॉरेस्ट फोर्सेस वगैरह नहीं होती वह अपने हिसाब से ही चलता रहता है ग्रो करता रहता है और इसीलिए तेलंगाना गवर्नमेंट ने यह बोला कि भाई यह फॉरेस्ट लैंड नहीं है यह रिवन्यू लैंड है जबकि यह डीम्ड फॉरेस्ट था खैर प्रोटेस्ट और आगे बढ़ा तो पुलिस की जो प्रेसेंस है वो और ज्यादा बढ़ गई पुलिस जो है वो अपने प्रॉपर रायड गिय्स जो उनके पास होते हैं रायड हो जाए तो उनके पास जो इक्विपमेंट्स होते हैं वो सारे लेके खड़े हो गए बैरिकड्स लग गए पुलिस हैव पॉसिबबली टेकन अस अ वे एंड दिस इज नॉट अ डिटेंशन आल्सो लोग जबरदस्ती हमको उठा के लेके जा रहे हैं हम कैंपस में आए थे पूछने के लिए कि क्यों यहां बुलडोजर आया है खड़े हुए थे सवाल कर रहे थे कुछ नहीं किए थे और टाइम आ गया 2 अप्रैल का और इस टाइम दो पीआईएल फाइल करी गई तेलंगाना हाई कोर्ट में एक पीआईएल गई वाता फाउंडेशन से फाउंडेशन का कहना था कि भाई यह जो तुमने तेलंगाना गवर्नमेंट ने टीसीआईआईसी को यह प्रोजेक्ट दिया है यह पहली बात तो इललीगल है ऐसा इसलिए क्योंकि कोर्ट में भले ही आप केस जीत गए हो और हैदराबाद यूनिवर्सिटी की जमीन नहीं है जमीन आपकी है लेकिन फिर भी इस जमीन को आप टीसीआईआईसी को नहीं दे सकते क्योंकि टीसीआईआईसी का काम ही डेवलपमेंट और कंस्ट्रक्शन करने का है और यह लैंड तो फिर भी फॉरेस्ट है डीम्ड फॉरेस्ट है ऐसे लैंड पे कंस्ट्रक्शन हो ही नहीं सकता सेंट्रल गवर्नमेंट की परमिशन के बिना इसीलिए यह चीज जो है इललीगल है एक और पीआईएल फाइल करी गई एक रिटायर्ड साइंटिस्ट द्वारा डॉ बाबूराव कल्पला इन्होंने एक बहुत अच्छा पॉइंट मेंशन किया कि अगर इस जंगल को कोई काटता है भले ही चाहे इसे फॉरेस्ट मानो या ना मानो तो यह आर्टिकल 21 की वायलेशन है आर्टिकल 21 है राइट टू लाइफ एंड क्लीन एनवायरमेंट जब आप इस जंगल को काटोगे तो पहले तो टेंपरेचर राइज करेगा 1 2 डिग्री सेल्सियस 3 डिग्री सेल्सियस कुछ भी राइज़ कर सकता है दूसरा जो ग्राउंड वाटर है जमीन के नीचे का पानी है उसमें प्रॉब्लम आ सकती है एयर का जो पोल्यूशन है वह बढ़ सकता है और अगर ऐसा होगा तो फिर सिटीजंस को हार्म होगा और इस हिसाब से तुम आर्टिकल 21 का वलेशन कर रहे हो खैर अगर यह पीआईएल पहुंची तेलंगाना हाईकोर्ट तो तेलंगाना हाईकोर्ट ने यह सारा जो डिफॉरेस्टेशन चल रहा था इसको रुकवा दिया कि जब तक कोई डिसीजन नहीं आता इसको बंद करो और तेलंगाना हाई कोर्ट के डिसीजन आने के बाद अगले ही दिन 3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मामला अपने हाथ में ले लिया सुप्रीम कोर्ट ऐसा कर लेती है वह खुद स्वयं संज्ञान में ले लेती है चीजों को किसी के कोर्ट केस डालने की जरूरत नहीं है अगर देश में कोई बड़ा मुद्दा हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट को लग रहा है कि यहां पे इंटरफेयर करना जरूरी है तो वो कर लेती है सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को उठाते हुए काफी डांट लगाई तेलंगाना स्टेट गवर्नमेंट को उन्होंने शौक जाहिर किया कि भाई तुमने इतनी जल्दी क्या थी तुम्हें पेड़ काटने की और प्रॉपर एक सफाई दो कि तुमने किस प्रोसेस के थ्रू ये पेड़ काटने शुरू करे खैर जब यह सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन आया फाइनली तो जो स्टूडेंट थे प्रोटेस्ट कर रहे थे उनमें खुशी की लहर दौड़ गई वो एक दूसरे को गले लगाने लग गए कोई रोने भी लग गया और फिलहाल के लिए जो कांचा गच्ची बौली का डिफॉरेस्टेशन है वो रुक गया पर सवाल सिर्फ इस फॉरेस्ट का नहीं है सवाल थोड़ा बड़ा है सवाल यह है कि इंडिया जो है इस टाइम पे स्पेशली जहां कैपिटलिज्म डेवलपमेंट जीडीपी ये सारी चीजें बहुत ज्यादा मायने रखती हैं तो इंडिया डेवलपमेंट और एनवायरमेंट के बीच में अटक के रह गया है और इसका एग्जांपल सिर्फ यह फॉरेस्ट नहीं है इससे बहुत बड़े-बड़े एग्जांपल्स हैं इसका एक बहुत सटीक एग्जांपल है अरुणाचल प्रदेश शायद काफी लोगों को पता ना हो लेकिन हमारा नॉर्थ ईस्ट जो है ना वो बहुत ही ब्यूटीफुल एरिया है अरुणाचल प्रदेश तो मैं कभी नहीं गया लेकिन त्रिपुरा मेघालय यहां मैं बहुत टाइम मैंने स्पेंड करा है और बहुत ही ब्यूटीफुल है स्पेशली उनके लिए जो नेचर को बहुत प्यार करते हैं अब अरुणाचल में एक वैली है दिवांग वैली और यहां पे जो फॉरेस्ट एरिया है या वेजिटेशन वाला एरिया है इसे लोग इंडिया का अमेजॉन भी बोलते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा वास्ट है वर्जिन फॉरेस्ट है दुनिया के सबसे ज्यादा डायवर्स फॉरेस्ट में अगर नाम आता है फॉरेस्ट एरिया का तो इस एरिया का नाम जरूर आएगा यहां पे मतलब अलग-अलग टाइप के एनिमल्स अलग-अलग टाइप के प्लांट्स आपको देखने को मिल जाएंगे जैसे उड़ती हुई गिलहरी से लेके क्लाउडेड लेपर्ड और उड़ती हुई गिलहरी जब मैं कह रहा हूं तो ऐसा नहीं है कि गिलहरी उड़ती है लेकिन थोड़े इंटरेस्ट के लिए बताता हूं कि गिलहरी जो है उसके आगे जो हाथ की हथेली होती है उस हथेली से लेके पीछे लास्ट तक उसके पैरों तक एक मेंब्रेन होती है पतली सी जैसे पैराशूट होता है वह आपको गिरने नहीं देता नीचे इसी तरीके से यह मेंब्रेन होती है जब यह गिलहरी किसी पेड़ से छलांग मारती है कूदती है तो ऐसे लगता है कि यह हवा में उड़ रही है क्योंकि यह मेंब्रेन उसको हेल्प करती है ज्यादा देर तक हवा में रहने के लिए ऐसे ही क्लाउडेड लेपर्ड है फोटो अगर आपके सामने आ रही है तो क्लाउडेड लेपर्ड बड़ा ब्यूटीफुल दिखता है और थोड़ा डेंजरस भी दिखता है क्योंकि इसकी एक क्वालिटी है कि इसका जो स्किन कलर है स्किन का स्ट्रक्चर है वो ऐसा होता है कि फॉरेस्ट में आपको दिखेगा भी नहीं है आपको पता भी नहीं चलेगा और आपसे शायद कुछ ही मीटर दूर खड़ा हो खैर भावनाओं में बह गया मैं इस दिवांग वैली में बहुत ही ब्यूटीफुल ब्यूटीफुल रिवर्स हैं और कुछ टाइम पहले यहां इसी दिवांग वैली में कुछ डैम बनाने के प्रोजेक्ट्स जो हैं उनको प्लान करा गया था जैसे एक था इटालियन हाइड्रोइिक प्रोजेक्ट जो सबसे ज्यादा कंट्रोवरर्शियल प्रोजेक्ट था कंट्रोवरर्शियल ये इसलिए है क्योंकि ये जो डैम बनना था यह काफी ऊंची हाइट पे बनना था अरुणाचल काफी ऑल्टीट्यूड तक जाता है हाइट तक जाता है अगर आपको समझना हो कि यह प्रोजेक्ट कितनी हाइट पे बन रहा था तो अगर कोई मसूरी गया हो उत्तराखंड में तो 6500 फीट की ऊंचाई है उसकी उतनी ही ऊंचाई इसकी थी एप्रोक्समेटली अब हाइट से डैम बनाने का फायदा होता है यह बहुत ही नॉर्मल सी बात है साइंस के स्टूडेंट्स के लिए ऊपर से पानी आएगा पानी नीचे गिरेगा तो ज्यादा प्रेशर से गिरेगा ज्यादा प्रेशर से गिरेगा तो टरबाइन को तेज घुमाएगा और इलेक्ट्रिसिटी ज्यादा प्रोड्यूस होगी इस प्रोजेक्ट की कैपेसिटी थी कि यह 3100 मेगावाट तक इलेक्ट्रिसिटी बना सकता था जो अप्रोक्समेटली 2 करोड़ लोगों की इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई पूरी कर सकता है पर बात सेम है हर चीज की अपनी एक कॉस्ट होती है अब इस प्रोजेक्ट को अगर बनाओगे आप तो आपको अच्छा खासा डिफॉरेस्टेशन करना पड़ेगा 2.5 लाख के आसपास एप्रोक्सिममेटली पेड़ कटते ऊपर से ये जो प्रोजेक्ट है यह ज्यादा हाइट पे होता तो वहां की जो लोकल इकोलॉजी थी वो डिस्टर्ब हो सकती थी चीजें जो हाई ऑल्टीट्यूड पे होती हैं वो ज्यादा स्टेबल नहीं होती ऊपर से कई सारे जानवर ऐसे होते हैं जो हाई ऑल्टीट्यूड के ही फॉरेस्ट में रहना पसंद करते हैं इसीलिए दिवांग वैली में ऐसे ऐसे एनिमल्स और ऐसे ऐसे बर्ड्स वगैरह हैं जो दुनिया में कहीं नहीं पाए जाते तो इसका प्लान था 2019 का और जब यह न्यूज़ पब्लिक हुई तो काफी ठीक-ठाक मुद्दा बन गया कई सारे साइंटिस्ट थे जिन्होंने इंडियन गवर्नमेंट को डायरेक्टली लेटर लिखा कि यह सही नहीं है यह बहुत सारा डैमेज कर सकता है लोगों को ऊपर से वहां पे कुछ ट्राइब्स भी रहती थी जिनको डायरेक्टली डैमेज हो सकता है और वो फॉरेस्ट को बहुत ही सैक्र मान के वहां पे रहते हैं तो एक तरीके से पॉलिटिकल एंगल भी बन जाता है खैर फाइनली मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट्स फॉरेस्ट एडवाइज़री कमेटी ने इस पर्टिकुलर प्रोजेक्ट को जो है वो अप्रूवल नहीं दिया इसको क्लीयरेंस नहीं दी और यह सिर्फ पेपर्स में ही रह गया लेकिन दिवांग वैली में और प्रोजेक्ट्स हैं जो चल रहे हैं जो इतने हाइट पे नहीं है थोड़े कम हाइट पे हैं लेकिन चल रहे हैं जैसे एक है दिवांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट जो 2800 मेगावाट का प्रोजेक्ट है और इस प्रोजेक्ट को क्लीयरेंस मिल गई और क्लीयरेंस मिल गई तो ऑफ कोर्स वहां पे कुछ ना कुछ पेड़ भी कटेंगे या ऑलरेडी कट चुके होंगे अगर प्रोजेक्ट ऑलरेडी शुरू हो चुका है तो अब मेन बात यह है कि यह बात बिल्कुल सही है कि पेड़ नहीं कटने चाहिए और नेचर को जबरदस्ती डिस्टर्ब नहीं करनी चाहिए अपने फायदे के लिए लेकिन बात यहां पर इतनी सिंपल नहीं है हर चीज में हम गवर्नमेंट को डायरेक्टली ब्लेम नहीं कर सकते चाहे वो स्टेट गवर्नमेंट हो चाहे वो सेंट्रल गवर्नमेंट हो जैसे यहां पे अरुणाचल का सीन थोड़ा सा कॉम्प्लेक्स है अगर आप मैप में देखोगे तो आपको साफ दिखाई दे जाएगा कि अरुणाचल जो है वो चाइना बॉर्डर से डायरेक्टली लगा हुआ है तिब्बत का जो रीजन है वो डायरेक्टली अरुणाचल प्रदेश से लगता है और अगर मैं ज्योग्राफिकली आपको समझाऊं तो अरुणाचल एक ऑल्टीट्यूड पे है हाइट पे है और तिब्बत जो है वो उसके भी ऊपर है वो और ज्यादा हाइट पे है और तिब्बत से जो नदियां बहती हैं वो डायरेक्टली अरुणाचल प्रदेश में एंट्री लेती हैं यानी इंडिया में एंट्री लेती हैं तिब्बत की हाइट बहुत अच्छी खासी है उसको दुनिया की रूफ भी बोला जाता है दुनिया की छत चाइना की एक रिवर है यारलोंग तसांगपो तिब्बत में बहती है यह और यह वहां से बह के सीधे इंडिया आती है और इंडिया में यही रिवर ब्रह्मपुत्र बन जाती है अब चाइना ने पिछले साल ही 2024 दिसंबर में एक प्रोजेक्ट को अप्रूवल दिया है वहां यह लोग बना रहे हैं एक डैम महतो डैम और यहीं पे चाइना बना रहा है एक हाइड्रो पावर स्टेशन दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर स्टेशन इसकी कैपेसिटी होगी 60 मेगावाट इमेजिन करके देखो आप जो इंडिया बना रहा था वो सिर्फ 3000 के आसपास था खैर इंडिया को मेजर प्रॉब्लम इस बात से नहीं है कि चाइना कितना बड़ा डैम बना रहा है या कितनी कैपेसिटी का वहां पे हाइड्रो पावर स्टेशन बना रहा है वह इंडिया की आज के टाइम पे मेजर प्रॉब्लम नहीं है कर रहे हो भाई डेवलपमेंट करो अपनी जगह पे जैसा भी कर रहे हो प्रॉब्लम यह है कि अगर चाइना उस रिवर के पानी को कंट्रोल करता है तो वो हमारे यहां जब एंट्री लेगा तो फिर चाइना की मर्जी है जब मर्जी वो हमारे यहां बाढ़ ला सकता है अरुणाचल प्रदेश के एरिया में जब चाहे वह पानी का फ्लोर रोक के यहां पे सूखा पड़वा सकता है हालांकि यह चीजें ग्लोबली अलाउड नहीं है लेकिन जब पॉलिटिकल टेंशन बढ़ेगी या कभी लड़ाई झगड़ा होगा तो अफोर्ड्स चाइना कर सकता है अब ऐसी सिचुएशन में इंडिया हाथ पे हाथ रख के नहीं बैठ सकता इसीलिए इंडिया जो है वो अरुणाचल प्रदेश में इस टाइम पे कई सारे प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट कर रहा है और डैम बनाने की कोशिश कर रहा है जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी ताकि अगर कल को चाइना डिसाइड करे कि भाई पानी छोड़ना है तो कम से कम हमारे पास इतने डैम्स होने चाहिए ताकि हम उस पानी के कंट्रोल को रोक सकें सपोज करो हमारे पास सीरीज में डैम्स हो तो हम तीन-चार डैम्स के थ्रू पानी को रोक सकते हैं फिर चाहे वो काफी अच्छा पानी का फ्लो छोड़ेगा तब भी और दूसरी चीज यह है कि अगर अरुणाचल प्रदेश में हमारे अच्छे खासे डैम होंगे तो ग्लोबली हम यह मुद्दा भी उठा सकते हैं कि भाई जो पानी ऊपर से आ रहा है जो ब्रह्मपुत्र रिवर का पानी है वो सिर्फ चाइना का नहीं है वो हमारा भी है वाटर बॉडीज पे किसी एक का हक नहीं होता नेचुरल रिसोर्सेज पे फ्लो है फ्लो बहते रहना चाहिए तो ग्लोबली मुद्दा उठाने के लिए भी ये इंपॉर्टेंट है कि हमारे डैम हैं जिसको चाइना नुकसान पहुंचा रहा है और तीसरी चीज वो तो है ही कि चाइना आए दिन अरुणाचल प्रदेश के कुछ एरियाज के नाम रख देता है तो डैम बनाना वहां पे थोड़ा डेवलपमेंट करना ये इंडिया के फेवर में है ताकि हम दिखा सकें कि भाई हमारा एरिया है हमने डेवलपमेंट करी है और हमारे लोग वहां पे थोड़े और जाएंगे तो चीजें और ज्यादा अच्छी हो जाएंगी इंडिया के लिए खैर चाइना का जो प्रोजेक्ट है जो चाइना वहां पे डैम बना रहा है वो दुनिया का सबसे बड़ा डैम होगा लेकिन उसकी डेट अभी 2033 है और यह डैम इतना आसान नहीं होने वाला है बनाना क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा हाई ऑल्टीट्यूड पे बनेगा ऊपर से ऐसा तो है नहीं कि चाइना बिना पेड़ को काटे वहां पे डैम बना लेगा चाइना भी अच्छे खासे पेड़ों की अमाउंट को काटेगा लेकिन बात वही है कि चाइना को अपोज करे कौन चाइना के खिलाफ बोले कौन चाइना में तो कोई प्रोटेस्ट वगैरह करने वाला है ही नहीं खैर जंगलों के कटने का जो यह टॉपिक है उसमें एक और इंपॉर्टेंट टॉपिक है जो काफी पॉपुलर है हसदेव अरान्या फॉरेस्ट यह फॉरेस्ट इतना डेंस है और छत्तीसगढ़ के लिए इतना इंपॉर्टेंट रह चुका है कि इसको छत्तीसगढ़ के लंग्स भी बोला जाता है मतलब छत्तीसगढ़ के फेफड़े यहां भी बहुत सारी वैरायटीज ऑफ एनिमल्स और बर्ड्स रहते हैं एलीिफेंट्स लेपर्ड्स लेकिन इसकी जो कहानी है वो अरुणाचल जैसी नहीं है कि चाइना से प्रॉब्लम है एक्चुअली इस फॉरेस्ट के नीचे है काला सोना यानी कि कोल 2010 में यहां पे डिफॉरेस्टेशन स्टार्ट हुआ था माइनिंग के लिए माइनिंग स्टार्ट हुई थी 2022 तक यहां पे 94,000 पेड़ कट चुके थे और 2,70,000 के आसपास पेड़ और कटने थे जिनको डिसाइड कर लिया गया था हालांकि 2016 में लोकल पॉपुलेशन का यहां पे मैसिव प्रोटेस्ट शुरू हुआ और पूरे इंडिया में सोशल मीडिया के थ्रू या फिर पूरे दुनिया में ही इस पर्टिकुलर टॉपिक को लेके बातें शुरू हो गई और अडानी साहब यहां पे काम कर रहे थे तो उनको हिट मिलना तो बहुत ही ऑब्वियस सी चीज थी फिर 2022 में स्टेट गवर्नमेंट ने कमेटी बनाई और बोला कि चलो प्रोजेक्ट्स को रिव्यू करते हैं बाद में फिर सेंट्रल गवर्नमेंट ने इंटरफेयर किया और फिलहाल के लिए यहां पे जो भी डिफॉरेस्टेशन हो रहा था उसको होल्ड कर दिया गया है अब मुद्दा जो है वो कोर्ट केसेस में है मुद्दा जो है वो पॉलिटिकल हो गया है खैर तेलंगाना में जो हुआ उसका तो सीन ही बिल्कुल अलग था वहां ऐसा नहीं था कि भाई जमीन के नीचे काला सोना हो या फिर आपको चाइना को डायरेक्टली काउंटर करना है आईटी पार्क तो आप कहीं भी बना सकते हो कहीं और आप जमीन का अधिग्रह कर सकते हो उसके लिए 400 एकड़ का फॉरेस्ट काटना बहुत ही स्मार्ट स्टेप नहीं है और बाकी जो सिनेरियोस हैं वह थोड़े डिबेटेबल टॉपिक्स हैं और डिबेट होती रहनी चाहिए ताकि फाइनली एक सही रिजल्ट तक हम पहुंच सकें खैर कंक्लूसिवली एक बड़ी इंपॉर्टेंट बात मैं बोलना चाहूंगा कि अगर छोटे पैमाने से देखो ना तो आप कसूरवार ढूंढ लोगे कि भाई वह गवर्नमेंट है वो गवर्नमेंट है या फिर कॉर्पोरेट्स हैं या फिर हम खुद ही सिविलियंस हैं सिविलियंस भी अच्छा खासा पोलशन करते हैं और हम ही लोग हैं जैसे इलेक्ट्रिसिटी चाहिए तो फॉरेस्ट कट रहा है तो हमारे लिए ही कट रहा है लेकिन अगर आप बड़े पैमाने से देखोगे ना तो कसूरवार है कैपिटलिज्म कैपिटलिज्म के साइड इफेक्ट्स यह जो पूरा प्रोडक्शन और कंजमशन का एक सिस्टम बन चुका है इंडिया चाइना इतने सारे कंट्रीज हैं कोई पॉपुलेशन पे प्रॉपर्ली कंट्रोल लगाने की कोशिश नहीं करता क्योंकि सबको ये डर रहता है कि भाई पॉपुलेशन कंट्रोल करेंगे तो कहीं ऐसा ना हो कि हमारी इकॉनमी वीक हो जाए हमारी जीडीपी कमजोर हो जाए क्योंकि फाइनली तो ह्यूमन भी एक रिसोर्स ही है और इस चक्कर में कंजमशन बढ़ता जा रहा है बहुत ज्यादा उड़ीसा के किसी आयरन की खान से कोई सामान निकलेगा उसको स्टील बनाया जाएगा और फिर वो यूरोप में सप्लाई होगा म्यांमार में पाम ऑइल बनेगा और फिर वह वेस्टर्न सुपर मार्केट्स की स्टोर्स में बिकेगा कोल से बनी हुई इलेक्ट्रिसिटी हमको चाहिए ताकि हम एसी की हवा खा सकें लेकिन फिर उसी कोल को पाने के लिए हम जंगल काटने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो ऑलरेडी हमें एसी वाली हवा दे रहे थे एक बार तो यह सारी रिसर्च और स्टडीज वगैरह करते हुए मेरे को थोड़ा-थोड़ा डाउट होना शुरू हो जाता है कि इंसान का इवोल्यूशन हो रहा है या डिवोल्यूशन खैर डिवोल्यूशन कोई वर्ड भी होता है पता नहीं खैर आज की वीडियो इतनी थी मिलते हैं अगली वीडियो में