झाल लुट जय हो ओम नमः शिवाय यस ओम श्रुति स्मृति पुराणों माघ्यम करुणा लिए हम नमाज भगवत्पाद शंकर लोकेशन कर्म ओम श्री चिन्मय सद्गुर्वे नमः हरि ओम ओम कि हमारे चिंतन का विषय है प्रस्थान त्रई के अनुसार निदिध्यासन कि वेदांत का जो प्रस्थान तरह है वह ऊपर निशक्त श्रीमद भगवत गीता और ब्रह्म सूत्र कि ब्रह्म सूत्र में उपनिषद और गीता के एल विषयों का विवेचन किया गया है इसलिए हम ओपन शत और श्रीमद भगवत गीता के अनुसार इस निधासन विषय पर विचार करेंगे वृहदारण्यक उपनिषद का अर्थ यह प्रश्न दबा सकते हैं कि आप वाह रे का स्रोत व्यवहार मंतव्य हार निधियां सितव यह कि उसके पूर्व में ऐसा कहा हैं कि आत्मा मारे दृष्टव्य है आत्मा का दर्शन करना चाहिए के दर्शन आंखों से कुछ नहीं होने वाला है कि इस लिए मुंडक उपनिषद में ऐसा कहां तमिल विक्रम जान था आत्मानम दर्शन से तात्पर्य डालने से है है और इस आत्मदर्शन कहो या आप ज्ञान कहो इसके साधन क्या है तो कहार स्रोत व्याह मंतव्य यह निधना सितव यह कि आदित्य है है कि सबसे पहले आप के विषय में कि गुरु मुख से वेदांत का श्रवण करना चाहिए है इसका श्रवण करने से हमें आपको शुरू का कुछ ज्ञान होगा क्योंकि जो जीव जनवरी पर यहां पर है वो अपने आप को क्या शरीर मानते हैं या कर्मों के करता फल के भोक्ता मानते हैं लेकिन परिषद का कहना यह है कि यह जीव का व्यावहारिक रूप तो हो सकता है लेकिन पारमार्थिक शुरू नहीं है हैं तो इसलिए श्रावण के द्वारा पहले आप स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना है कि मैं अजन्मा अविनाशी सच्चिदानंद स्वरूप हूं इसलिए पहली बार हम सुनते हैं है तो मन में अनेक प्रश्न और संदेश उत्पन्न होते हैं है इसी लिए कहा गया मंतव्य यह तू माने युक्तिपूर्वक तर्क के द्वारा और तर्क भी जैसे ऊपर शोध में बताया गया है उनके अनुसार इस पर और विचार करना चाहिए जिससे कि मन में कोई संशय को और प्रेस द कुछ नहीं रह जाए तो कि श्रवण और मनन इतनी अच्छी तरह से किया है तो फिर आप मशरूम का बोध होता है लेकिन एक और समस्या है है वह यह है आप के गांव का अस्तित्व अनादिकाल से यहां पर घृत प्रकार की पूर्व पूर्व जो वासना यह संस्कार विपरीत जल्दी नहीं है हैं और बार-बार यही कह रही हूं विषय में शुभ होता है कि इस विपरीत धन को ज्ञान को हटाने के लिए है और फिर अपने वास्तविक स्वरूप में दृष्टि थी पाने के लिए दित्या सितव यह ऐसा घड़ियां कि श्रवण मनन शरीर ठीक से नहीं किया है तो निदिध्यासन नहीं हो सकता वैसे यह विधान परिषद जिला परिषदों में हैं व्यवहार में ज्यादा शब्द तो यहां यह ध्यान योग मेडिटेशन यह शब्द ज्यादा प्रचलित क्या होता है हुआ था ने कहा कि आदित्य हंसा अ है अभी यह तो इच्छा दिव्या सा ध्यान करने की जो इच्छा है है उसको दिव्या सा कहते हैं फोटो कॉपी नीकाश होता है निश्चय ही ना न केवल इच्छा होने से कुछ काम नहीं होता है को लिखित रुपर्ट तीव्र इच्छा को लेकर उसके जब प्रयत्न किया जाता है सावधान किया जाता है तो उसे निदिध्यासन कहते हैं है इसीलिए भगवान शंकराचार्य कहते हैं कि जिससे यह ध्यातव्य यह पहले अ में निर्णय करना होता है कि मुझे ध्यान करना है अपने आत्म-स्वरूप का यह निर्णय कनेक्ट बाद निश्चय करना पड़ता है शाम को बात करूंगा तो करना ही है मैं इसी को भगवान् श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि निश्चय वक्तव्य हां योग्य निर्णय तथा लिखो जो निश्चय बात कही वहां पर भगवान भी कहते हैं जो ध्यान योग का अभ्यास है और निश्चयपूर्वक करना है और कहा क्यों उत्साह पूर्वक करना है ऐसा नहीं कि आप यह उकता गए बोर हो रहे हैं ऐसे में उनके घर नहीं करना है कि अनिरुद्ध के तथा है को एक तो पहले में देखा है कि स्वर्ण मंदिर से ज्ञान जो हुआ उसी का हमको ध्यान करना है के प्रधान कोई दूसरा वन मंथ अलग चीज नहीं है यह अच्छी तरह समझ लेना है है और यह जो निघासन है इसका प्रयोजन भी समझ में है कि जो मन की विपरीत भावनाएं उनको दूर करना और अपने शुद्धता सच्चिदानंद स्वरूप में स्थित होना यह इसका प्रयोजन है के निघासन का प्रयोग चैनल अच्छा-अच्छा अब इतना जानने के बाद एक प्रश्न आता है है कि निघासन कैसे करें कि इस आसन को बता यार उसका स्वरूप क्या होगा अ में इसका विस्तार से वर्णन तो तू परिषदों में भी आया है और श्रीमद भगवत गीता के छठे अध्याय में भी विस्तार से वर्णन आया है है लेकिन का सिद्धांत मेरे समय है कि जो दूध साध रहा है वह क्या है तो उसके दो भाग हैं कि वह एक तो यह है कि जो हमने अपने आपको ऐसा मान लिया है कि शरीर में यूं कर्ता भोक्ता में हूं मैं अपने मंद बुद्धि लेकिन साफ मगर तादात में हो गया है है तो वहां से अपने मन को हटाना यह मैं नहीं हूं कि शरीर को हटाने की जरूरत नहीं है लेकिन यह शरीर में यह जो भावना हो गई दृढ़ की यही मैं उसको सिर्फ दूर करना है है और फिर और दूसरा पक्ष उसका है कि फिर मैं क्या हूं कि वह अपने स्वरूप का अनुसंधान करना है है तो जो मैं नहीं हूं कि उसका त्याग संयुक्त का निषेध और जो मैं हूं कि उसका अनुसंधान कि भगवान कि शंकराचार्य ने आप बहुत सुंदर लिखा सुबह-सुबह चयन करने के लिए कहा था को प्रात स्मरामि हृदि शमसुर आत्मतत्त्वम् सचिव सूक्ष्म परमहंस अगस्त इन टूरिज्म यह स्वप्न नजीर वक्त अमेज्ड तं तं ब्रह्माणं निष्क्रमण हम वृषभ का संग्रह है को प्रात स्वराजबीर कि सुबह-सुबह कि मैं बड़ा मिश्रण करता हूं ध्यान करता हूं याद करता हूं कि आप स्वर्ण उसी का कर तक देविका आपने पहले ज्ञान प्राप्त किया है है इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि श्रवण मनन बहुत महत्त्व का है है कि प्रात स्मरामि किस कष्ट करते वृद्धि संस्था सुरक्षात्मक कदम मेरे हृदय में कि शैक्षणिक रूप से जो प्रकाशमान है ऐसे इस आत्म दुकानों में स्वर्ण करता हूं कि रिलेशंस पर आप मदद दूं वह कैसा है सचित सुखम् का स्वरूप है नित्य है कोटा तभी कार्य चैतन्यस्वरूप आनंद स्वरूप वर्मा ओम शांति कि योग वैभव से ऊंचे उठ गए हैं ऐसे परम हम उस संन्यासी कि अ यह इंच का निरंतर सुधार करते रहे उनका स्वरूप है लक्षण दूर यंग कि उपर्युक्त चतुर्थ संबंधी कि हमें जागृत अवस्था स्वप्नावस्था सुव्यवस्था पता है हैं इनकी दृष्टि से इसको चौथा कहा जाता है लेकिन इससे अलग और दूर नहीं है तो यह कि यह स्वप्न उजागर उत्तम मोबाइल OTP लिखते हम को जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था में आती जाती रहती हैं लेकिन सबको यह प्रकाशित करने वाला तत्व नित्य हमेशा है और इस तत्व में नजारत है न स्वप्न है 10 सकती हैं ऐसा यह जो तत्व आत्म तत्व स्वतंत्र ब्रम्हनिष्ठ कलम हम आत्मतत्व अनंत स्वरूप ब्रह्म है वह मैं हूं क्या सोचते हैं कि शरीर है इसमें मन है और मन के अंदर कोई छोटी सी आत्मा चमक है ऐसा नहीं है है या आत्मतत्व अनंत स्वरूप ब्रह्म जीव वह ब्रह्म मैं हूं कि अयमात्मा ब्रह्म ऐसा मंडे को भेज कर कहा गया उसका ध्यान करना है अच्छा तब क्या कहा था आज तक ब्रह्मनिष्ठ कलम है उसमें कोई अंग वगैरह नहीं है निराकार ऐसा तत्व है वे नर्चर भूत संग्रह आप यह पंचमहाभूत का जो संघ द्वारा ए पर्सन फूल तो यह देश है वहीं पंचम भाव सूक्ष्म रूप में ही हमारे मन बुद्धि भी कहलाते वह सब मैं नहीं हूं मैं है तो निधासन के दो पक्षों गए लुट जो मैं नहीं हूं उसका निश्चित किया और जो मैं हूं कि उसके अधीरता से अनुसंधान करना है है इसका एक और विशालकाय आप मजाक प्योर निर्वाचक उसमें भगवान् भाष्यकार मिलते हैं ना मनोबुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे न च व्योम भूमि न तेजो न वायु दाब आनंदरूप शिवोहम शिवोहम को सीधा आनंदरूपा शिवोहम शिवोहम अब हक का मन बुद्धि चित्त अहंकार यह सब मेरा शुद्ध स्वरूप नहीं है कि यह मेरे उपाय दिया है इनके द्वारा में काम तो करता हूं जैसे हम अपनी कार के द्वारा कही जा सकते हैं को कार मैं हूं ऐसा तो अपने मानते नहीं हो यह मैं नहीं हूं इरा आनंद सच्चिदानंद स्वरूप वह मैं हूं इसको कहते निदिध्यासन उसमें निर्णय पहले फिर निश्चय ही और उत्कटता से उत्साह के साथ अपने स्वरूप का अनुसंधान करना है कि अब कि ऐसी साधना करने के लिए है जो उपयोगी बातें हैं और उनके बारे में भी थे उपनिषद तो फिर कहा और भगवत गीता में कहा ने क्या कहा कि कीवी जो प्रारंभ के साधक हैं को लिखित जूस को पूर्ण ज्ञान हो गया उसको तो किसी प्रकार के नियम की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती है कि कोई एक विशेष समय पर करना है इस जगह पर करना है ऐसा उसके कुछ नहीं होता है है लेकिन जो साधक हैं उनके लिए कहा कई व्ब्ल्यू परिषद पर कहां फिफ्त देश है जो सूखा आश्रयस्थान एकांत स्थान में जाइए है सुखासन में बैठो कि भगवत गीता मे कहा कि रहस्य स्थिति एकांत में है कि पिचर उद्देश्य प्रतिष्ठा पेट स्थिर रमा शर्मा आता है और ऐसे को शुद्ध स्वच्छ साफ पवित्र मन को आनंदित करने वाले ऐसे स्थान भी अपने आसन को रखना उस पर बैठना कि अवधी कि प्रकृति में ऐसा कोई स्थान हो तो बहुत अच्छा है या हम अपने घर में भी कि इसके लिए कमरा अच्छी तरह बना सकते हैं कि ऐसा वातावरण हापुर उत्तर निकल सकते हैं हैं और वहां पर बैठे है झालर फिर क्या कहा कि फिटकरी क्या है है तू क्योंकि इस फिफ्थ सन में में एक पक्ष ऐसा है कि अपने मन को बाहर यह सब चीजों से को हटा देना है वहां से ऊपर हम होना है इसलिए कहा कि एकांत स्थान में है और शांत समय मेरी मीटिंग यह मैं तो वैसे बाहर के व्यक्ति आप जो है वह होंगे नहीं होंगे तो भी बिल्कुल कम होंगे यहां पर दो है तो इससे आवागमन बाहर बाहर नहीं जाएगा कि एक बात हो गए इसलिए कहा जाता है ब्रह्म मुहूर्त आदमी जो बातें की जाती हैं तांत्रिक एकांत स्थान की बात आती है एक आसन में बैठने के लिए कहा था कि अब हमारा मन जो है और बहिर्मुखी देता है बाहर बढ़ाता है और दो कारणों से होता हैं है एक तो होता है क्योंकि चीज देखते हैं या कुछ सुनते हैं कि क्या कोई गंध का अनुभव होता है तो तुम अभी विचार आया था यह क्या चीज है इसलिए कहा कि आप 18 से बैठोगे तो वे अपने आंख बंद कर लेना है को तारों को भारतीय भी ढीली हुआ था और वहां पर किस भावना से बैठ फाल मैं तो केवल यह पोर्शन में तो कहा हत्या समस्था ऐसे बैठो कि मैं तो संन्यासी हंसी घर-गृहस्थी वाला आदमी नहीं हूं कि स्त्री-पुरुष नहीं हूं कि गीता जी में कहा नंबर चार यह भरते स्थित है यह मैं तो एक सत्य का साधु ऐसी वह आत्मा व मन में होनी चाहिए है क्योंकि हम अपनी गृहस्थी भावना को एक कोई ऑफिसर की भावनाओं को ऐसी कोई भावनाओं को लेकर बैठेंगे इस तो वहीं विचार सब आते रहेंगे है कि भावना का महत्व होता है कि मैं दोनों पार्ट्स हाथ में लेने का प्रयत्न कर रहा हूं कि वहां पर का संन्यासी बनकर बैठे हो हर ब्रह्मचारी में सत्य कि साधक के रूप में बैठे हो एक पठान तापमान विगत फिफडम अचार्य कहां है कि इस भावना से यहां पर ध्यान के लिए बैठा हूं है और एक भाप और कहीं कि जब ध्यान के लिए बैठते हैं अजय को अपने मन को बाहर यह से हटाना है कि इस भावना को लेकर बैठ जाएंगे है तो यह दूसरे विचार फिर वहां पर आएंगे नहीं और हमें क्या निश्चय करके बैठना है कि यदि मुझे कोई आवाज़ सुनाई देती है है तो भी उसके बारे में विचार नहीं करूंगा कोई महिला बैठे है वह मैं गुस्सा नहीं करूंगी आधे है क्योंकि हम बाहर की दुनिया को रोक तो नहीं सकते हैं कोई आवाज हो सकती को लेकर उनका चिंतन नहीं करना और कभी-कभी अपने आदत के अनुसार कोई न कोई विचार ही जाएगा घर के बारे में ऑफिस के बारे में पता नहीं है तो उसका चिंतन नहीं करना इस वक्त तय अवस्था इस समय मैं तो संन्यासी हूं तो मैं पूछता यादव हूं मुझे यहां से क्या लेना-देना वहां पर है कि इस भावना से वहां पर बैठना और फिर संयुक्त राष्ट्र विकास व गुरु प्रणाम में आओ वहां पर क्या कहा ने अपने गुरु को प्रणाम करना मन के मन में कि इस सिस्टम झाल मैं अपनी जो स्टफ भगवान है कोई शिवजी का ध्यान करता है कुछ राम श्री कृष्णा गणेश जी की व्यापार आधा करते उनका ध्यान करो को वाश करके थे मनोज संयम्य मन को संयमित कैसे करेंगे चले अपने इष्ट का ध्यान करो गुरु का स्मरण करो एक उनकी प्रार्थना घरों से कहो सेट ए गुरु है भगवान आप मुझे शक्ति दीजिए धोनी है भक्ति दीजिए जिससे कि मैं को सफलतापूर्वक आनंदपूर्वक ईंधन आसन का अभ्यास कर सकूंगी कि इस प्रकार अपने मन में ऐसी भावना हैं और बुद्धि से तो विचार प्राप्त किया है योग ज्ञान हमने प्राप्त किया है उसको लाना बार-बार बार-बार है कि अब यह 7:00 कहना तो एक के बाद बताया कि आप लेकिन जो कोई करने बैठता है तब उसको समझ में आता है कि कहां मिलना आसान तो नहीं होता आ हां इसके लिए एक बात कही गई है कि यह अभ्यास करने के लिए हम श्रधा भक्ति तो चाहिए लेकिन धीरे-धीरे की आवश्यकता व धीरज पेशंस कि हमारे पूज्य गुरुदेव स्वामी चिन्मयानंद महाराज कहते मेहेसूस लोधी जी मैं भी धीरे-धीरे डॉ कि भगवान श्रीकृष्ण कैसे कहते हैं चांदी डू पर अमित वो बुध याद रखिए ग्रसित है आम आत्म समस्त अमन अखरता लकीन सिद्ध पी चिंतयेत् कि धीरे-धीरे और बुद्धि के द्वारा मन विचार के द्वारा मैं अपने मन को बाहर के विशेष से हटाकर अपने आत्म-स्वरूप में लाने का प्रयत्न करना को बढ़ाता रहेगा कभी-कभी लेकिन फिर से बार-बार रामकिशोर व्यास है में एक अ व्याध कि जिस किसी कारण से वह जाए उसको फिर से कौन सा विचार बुद्धि विचार व्यक्त करें जो आपने श्रवण के द्वारा मन के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त किया है कि उस ज्ञान को लाकर कि उसके द्वारा या मन को संयमित करना है है और से पहले जो इंद्रिय है उनको मन के द्वारा संयोजित करना और मन को बुद्धि के द्वारा सीमित करना और आत्म संयम कृत्वा न किंचिदपि चिंता है और जो मन एक बार आप मुझसे रूप में स्थित हो जाए तो फिर कुछ देर विचार करने करना है कि ऐसा लिख राख्या आनंद हो रहा है क्या मजा आ रहा है किसी शांति यह जो उच्च विचार ले कर लॉर्ड तो फिर मंदिर जाया गांव है है तो यह है साधना पक्ष अब के निघासन और उसके साथ जहां और यह उपयोगी तत्व जो है वह बताएं कि एकांत स्थान आधी और अपने इष्ट तक भक्ति गुरु भक्ति उन्हें फूल से प्रार्थना करके और इसे करना है अपने स्वरूप में स्थित कर रहा है यह है निदिध्यासन की साधना तो अच्छा हुआ था हम यह विषय तो बहुत बड़ा है के प्रख्यात इसमें और में आसानी कैसे हो सकती है है उसको देख ली क्या आवश्यकता है कि वह भी रे हैं साधकों के लिए बहुत आवश्यक है है कि क्या चीज करने से कि हमारी साधना सफल हो सकती है कि वह महत्व की बात यह है कि के हम भले अपना नियम ऐसा बनाए कि मैं सुबह 15 मिनट बीच मिली है आधा घंटा में ध्यान-अभ्यास करूंगा है लेकिन वह ध्यान-अभ्यास करने के लिए पूरे मामले में दिनभर हम कैसे रहते हैं यह देखना भी बहुत जरूरी हैं और हमारा खाना पीना उठना जागना काम करना वह भी महत्व का है और दिन भर हम ऐसे एप्स बैठक की चीजों में अपने मन को लगाएंगे और फिर करीब शांतचित्त संविधान करूंगा तो ऐसा कभी भी नहीं हो सकता है हों तो प्रात काल वे जो हम ध्यान करते हैं वह मन की स्थिति दिन भर भी रखने का प्रयत्न करना और दिन भर में ऐसा रहना कि जिससे कि हम जो ध्यान के लिए बैठ लेंगे इसको अच्छे से बैठ सकते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति बोध आवश्यकता ज्यादा खाता है ज्यादा सोता है कि वह इंसान को ठीक से नहीं कर सकता था है लेकिन जिस व्यक्ति का जीवन नियमित है संयमित है कि युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुख का जो अपने आहार-विहार व्यवहार ओं थिस पेज विद प्रूफ देता है अब हम ऑपरेशन में रहता है तो वह ऐसा व्यक्ति उसके लिए यह जो योगाभ्यास है वह आसान होता है यह तो बड़ा कठिन हम देखते हैं कि आदमी वैसे जाता रहेगा लेकिन ध्यान करने को बैठे कम नींद आने लगती है आप बहुत जल्दी आती है नींद है और नींद नहीं तो फिर मन भटकते रहते हैं भटकते रहते हैं है इसीलिए कि पुन्हा पुन्हा यह कहा जाता है कि स्थापना श्रवण मनन अच्छा करो फोन हैं और अपने हृदय में केवल भक्ति भावना ढेढ़ रख हैं और यह विचार स्पष्ट रखना है के जीवन को संयमित रखना उसमें फिर आसानी होगी नहीं तो नहीं होगी अब यह हमने निदिध्यासन क्या होता है उसके पक्ष एक है वह उसकी शुद्ध कैसे करनी यह विचार किया है है अब हम लुट कर सकते हैं मन में कि कैसे निघासन अभ्यास करते-करते क्या हो जाएगा कौन सी स्थिति होगी कि मैं को आह आप पहुंच गया इस स्थिति में है तो इसका निर्णय कि कठोपनिषद अमीर कि ऐसा किया कि ज्यादा पंचायत सिस्टम दुनिया ना निमंत्रण ब्रिटिश चैनल विशिष्ट देता माधु परमगति धुंध है कि कठोपनिषद अत्यंत सुंदर ऑप्शन है कि हर मनुष्य यहां पर उपदेश कर रहे हैं नचिकेता को इस प्रकार के जो निदिध्यासन करते-करते व्यवस्था व स्थापित है उसको जब हम में लोकप्रिय शब्द है उत्तम क्षमा दीया वालों को में समाहित मृत्यु कैसे हुई कि ज्यादा पंक्चर वशिष्ठ अंते न्यायधानी मनोज साव अजय जब कि यह पंच ज्ञानेंद्रिय हां हां देख ना कांत जिम परिषदीय क कि यह अपने-अपने विषयों से निवृत्त हो गई हैं कि मनुष्य शहर मन के साथ को मारोगे उसका उस समय इसी मन की स्थिति है वहां पर किसी प्रकार का आर द श्रवण पूछी तो मन कुछ सिद्ध नहीं कर रहा बुद्धिस्ट अन्न विष्टा तेल और बुद्धिजीवी किसी प्रकार का ऐसा कोई विचार नहीं कर रही है देखो एक बार कि मैं इंद्रियां प्रत्यक्ष विशेष सामने होते ना उसका ग्रहण करती हैं मन क्या करते हैं जो बातें हो गई थी उसको करते रहता है और वह भविष्य में लगी रहती है तो कोशिश की गई मैं कुछ चीज का कोई कि भारत करा नहीं है ब्रह्मन् जो है वह कोई पूर्व पूर्व चीजों का समर्थन नहीं कर रहा है बुद्धि है वहीं भविष्य की चिंता चिंता नहीं कर रही है एकदम स्ट्रोंग पिताजी का आप कैसे अपने सच्चिदानंद स्वरूप में कुछ ठीक हो गया और स्थित हो गया है कि उसे कोई भी का विषय ग्रहण नहीं है कोई स्मारक नहीं है चिंता नहीं है बस मैं सच्चिदानंद स्वरूप इस गुनगुने अवस्था में मन है इसी को कहते हैं यह निदिध्यासन की चरम अवस्था हो गई तापमान ऊपर मामला तिम कि यह उसकी परम अवस्था यात्रा व्यवस्था है कि अवैध यह प्रकार की बात हो गई कि अ बैक रात है कि जिस किसी ने भी कि इस अवस्था को प्राप्त कर लिया है है और उसमें स्थिति भी हो गया कि ऐसे फिफ को को सिद्ध पुरुष कहते हैं ज्ञानी कहते हैं योगी कहते हैं स्थिति पर गए कहते हैं जीवन में कहते हैं तो फिर ऐसे व्यक्ति को और किसी प्रकार के नियम बंधन किसी प्रकार के लिए रहते हैं कि सुबह उठना है और यह वेट करना है ऐसा कुछ नहीं है हैं उसके बारे में तो ऐसा कहा कि देहात व्यवहार ने गली मे है विज्ञाते परमात्मनि या फिर ऐसे मनो याति तत्र तत्र समान है अरे जिसका यह के साथ अभिमान तादात्म्य ज्ञान उपलब्ध वह निकल गया है और मैं यह परमात्मस्वरूप हूं ऐसा ज्ञान जिसे हो गया है ऐसे ज्ञानपीठ पुरस्कार मन कहीं भी जाए है तो भी उसे सत्य का ही दर्शन करते कहीं अनुभव होता है या फिर और व्यक्ति जहां ही जाएंगे को एक जैसे यदि हम समुद्र किनारे खड़े हैं और हमें मालूम है कि यह समुद्र इतना लहराता हुआ इस केवल पानी है ए पप्पु सामने की लहरी देखोगे तो भी पानी का ज्ञान दूर रहें next होता है क्या जो दूर के कहर देखिए और दूसरे लहरा रही है पूरे लुट लेकिन फिर को पानी ही जहां दृष्टि जाएगी पानी ही होगा कि सोने के बने आभूषण आप चाहे जो देखो यह सोना है यह ज्ञान रहते हैं तो एक हुई सामना अवस्था है और सिद्ध उसका क्या होती है कि मैं तो अभी सब्सक्राइब नंदिश उसको अमरुद पोस्ट करना है वहां पर को मुक्त हो गया है कि इस वक्त सहजावस्था है कि इसका तो वर्णन कर ही नहीं सकते हां हां इसको समझने के लिए हमें अपने मन को शुद्ध करते रहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य से मुक्त करना श्रवण मनन करना और जब हम स्वयं विधि आसन का अभ्यास करेंगे यह तब भी यह बात समझ में आई भी तो ज्ञानी पुरुष कर रख योग कैसे हम समझेंगे हवा रमण महर्षि ने कहां कि तस्वीर स्थिति भाइयों चमक कहा ज्ञानी पूर्व एक तो मन की स्थिति है उसको समझ सकता है कोई दूसरा ज्ञानी हो वही समझेगा है कि हम इस समय हमारे भगवान् भाष्यकार भगवान शंकराचार्य जी उनको एक अत्यंत भक्तिपूर्वक बार-बार प्रणाम करते हैं क्यों एक उन्हें ज्ञान ऐसा हमारे सामने बिल्कुल प्रकट करके रख दिया उसे पर हस्तामलकवत् जैसे हाथ में कोई भावना रखता है तो कोई अंधा व्यक्ति भी है तो उसको भी समझे नहीं होता ऐसा यह ज्ञान हमारे सामने प्रकट कर दिया है भाग चलिए उपनिषद ऊपर भगवत गीता पर ब्रह्म सूत्र पर और यह सब विषय कि इतनी सुंदरता है बता दिया आप तो ऐसे ही जो परम सिद्ध कि भगवान शंकराचार्य हैं उन्हें बताया पैसे संक्षेप में यथाशक्ति यथामति मैंने बताने का प्रयत्न किया केयर विषय निघासन एक अत्यंत सुंदर विषय हैं कि यह साधना पक्ष और दूसरा है उसकी सिद्धावस्था और उसके बाद में कहा गया कि सिधवां अमृत है ना तो तस्यैव कुत्ते से योगिनां लकिन की पुष्टि करते हुए हम अस्तित्व तक तो मेरी इतिहास अमृत से तृप्त हो गया उसे फिर कुछ चीज पानी के लिए रह जाती है कोई चीज करने की बाकी नहीं रह जाती है है और कोई कह नहीं कुछ बाकी रह गया इसका पता भी को तत्वज्ञान पूरा नहीं हुआ है अब हम इसे एक ऑप्शन बैठा कहा इसको अमृत की प्राप्ति हो गई उसको दूध की खीर खाने से क्या प्रयोजन रह जाएगा कि हां रुपए रुपए से पायलट इंप्रूव जन्म अभी खाने का इच्छा मतलब कुछ ऐसी है अपनी सजा आनंद अवस्था है कि हम ध्यान में हमेशा रमने वाले भगवान शिवजी है और भगवान शंकराचार्य जी है और कि Star Plus गुरु-शिष्य की परंपरा कर सारे गुरुओं को हम नमस्कार करते हैं और उन्हें बात ना करते क्यों हम उनके आशीर्वाद हमारे ऊपर बनाए रखें और हम भी इस प्रकार यह निधि झा सनकी की पुख्ता व्यवस्था है उसको प्राप्त करके हमेशा आनंद में रहें जय हो ओम तत्सत ॐ पूर्णमद पूर्णमिदम पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ओम शांति शांति शांति हरि ॐ श्री गुरुभ्यो नमः ॐ