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The teachings of the Quran and its importance

अस्सलामु अलेकुम बरह्मतु लाविर। अब अब अब अब अब अब आज अल्लाह के फदलों कर्म से उसकी तौफीक से इन सिंसिले की एहली किलास के पहले सेशन में आप अजीज तलबां को ख� इल्म हासल करने के लिए आता तो आप कहा करते थे मरहबन बि तालिबिल इल्में इल्म के इस तालिबिल इल्म को हम खुश आमदीत कहते हैं बलके एक हदीस में आपकी सुन्नत और आपके इस कॉल पर अमल करते हुए हम आप सबको पुषामदीत कहते हैं अहलन वसहलन वमरहबा वालेकुम सलाओ वैसे तो हर सबजेक्ट ही बड़ा एहम होता है वो कुरान हो हदीस हो या फुनोन हो लेकिन इन तमाम उदोम की सबसे एहम और असल और अजीम किताब कुराने करीम है और आपका मेरे साथ इस साल जो इल्मी सेशन होगा वो किस मौजूबर है जी तर्जमात लिखा इसके लिए हमने दो सूर्थों का इंतिखात सूरा अलफातिहा और सूरा अलबाकारह दो सूरतें और ये दो सूरतें पुरानी गरीम की अजीम सूरतों में से इससे पहले एक तालिब प्रश्नियादी तौर पर छे चीजे हैं जब आप किसी किलास में बैठे हैं इल्म हासल करने के लिए यह छे आदाब हैं जो एक तालि� नियत आपकी नियत सही होनी चाहिए क्योंकि अजरो सवाप उसका दारो मदार इनहिसार है ही नियत फर्क नियत एक ऐसी अजीम चीज़ है इस पर हो जाता है हम सब की नियद क्या होनी चाहिए क्या नियद है आपकी नियद अगर यह है कि मैं इस इल्म को हासल करके अमली मेदान में जो मेरे अंदर जहालत है उसका खातमा करके अल्लाह रब्बिल इजद की रदा हासल करो यह है तो ठीक है परना कुछ ऐसे होते हैं जो कहते हैं के थोड़ा सा इल्म आसल करनो थोड़ी से डि� और उसके ऊपर रूस और जनाब सोशल मीडिया पर अपने फालोवर्स और व्यूज बढ़ाने के लिए और पैसे कमाने का बना दो और आजकल हर एक यही सिलसला जा रही है थोड़ा सा किसी को बोलना आ जाए थोड़ी सी बात करने आ जाए थोड़ा तर्जमा कर जाए तो बुफती बनकर जाता है लेकिन इतना अजीम है कि काइनात में सबसे बड़ी गवाही वो अल्लाह की तोहीद की गवाही है। जो सबसे पहले पता किसने दी है अल्लाह ने। शाहीद अल्लाह अन्नहू ला इलाह इल्ललाह। अल्लाह गवा है इस बात का कि उसके इनावा कोई माबुदे बरक नहीं और तीसरी इल्म वालों ने इमाम कुर्ट भी राही माउला फरमाते हैं जो अजीम मुफसिर हैं इल्म की और एहले इलम की फजीलत के लिए ये आयत ही काफी है अल्ला ने अजीम गवाही के लिए अपनी गवाही के साथ जिसे शामिल किया है वो कौन है ये नियत सही है तो ये मकाम है तो रसूल ला सुलम का फरमान है जिसने इल्म हासल किया ये वो इल्म है जिससे अल्ला की रदा मिलती है लेकिन इसने इल्म को हासल किया था दुनिया भी मकासित समेटने के लिए इस इल्प से भी दुनिया कमाने के लिए दुनिया के मकासित हासल करने के लिए जन्नत में जाना तो दूर की बात है आप सासलम का फर्मान यह है कि वो जन्नत की खुशबू भी नहीं पाएगा फुतूर नियत खराब हो गई ये नुकसान है तो पहला स्टेप आप यहां बैठे हैं दूर का सफर तैक करके आये हैं 15 मिनट का सफर। वो धेड़ गंटे में एक गंटे में होता है traffic के मसाहिल शदीद मसाहिल आजकल तो हर शक्स परिशानियों में उलजा हुआ है सियासी है, मजबी है, मौशका है खानदानी है, गरेलू है सब से निकल कर इल्म के हुसूल के लिए एक जगा आकर बैड जाना तो ये एक अजीन सफर है ये तो इस सफर में अगर आपके नियत अच्छी है तो फिर ये समझ लें कि तो पहला स्टेप क्या है नियत ठीक करना है नियत ठीक हो गई अब दूसरा स्टेप है जिसको आपने इख्तियार करना है वो है अलसिमा सिमा का मतलब है सुने अब य या उठकर कहीं बाहर बैठकर गपशप करने लग जाए, या खाने पीने में लग जाए, तो इसका मतलब यह है, आपने नियत तो ठीक की थी, लेकिन उस नियत के ब जिबरील अलिसलाम में अल्ला से और उसके बाद जिबरील अलिसलाम से किसने सुना है मुहम्मस सलम से मुहम्मस सलम से किसने सुना है सहाबा ने सहाबा से ताबीं तबाताबीं आईमा मुहदिसीन और सिंसला हम तक तो अस्पल इसलाम सिमा के साथ आके बढ़ा है यह खतों किताबत बात की बात है कुरान हिफ्स किया जाता था, हदीसे हिफ्स की जाती थी, ब्यान की जाती थी, सुनी जाती थी, तो असल जो है वो है सिमा, मिल लवजी शेख, अपने उस्ताद के अलफास को सुनना, अपने मुअल या मोबाइल से कोई किताब डाउनलोड की उसको पढ़ना शुरू कर दिये एक होती है असल किताब आपके सामने है किताब आपके सामने हैं दूसरा है कि आप उस्ताब के सामने बैठ कर सुन रहे हैं और एक है आप डाउनलोड करके इस किसी की तक्रीर को सुन रहे हैं बड़ा फरक है इसमें यह जो मजलिस की रुहानियत है ना यह कहीं और नहीं मिल सकती है आपको चैनल खोल कर सुनना शुरू कर दें उसके उसकी वो रुहानियत या वो कैफियत वो सुकून और वित्रान कभी मुयसर नहीं आ सकता जो इस इल्मी मजलिस में बैठ कर आता है और फिर एक तजरवा है तजरवा व और अगर आपने मुबाइल से डाउनलोड करके कोई तक्रीज सुनी को किताब पढ़ ली उसका आपके सीने में महफूद रहना थोड़ी सी उद्धत के लिए होता है। तो दूसरी चीज़ क्या है सिमा सिमा यानि अलफास को सुनना तीसरी चीज़ अलफहम यानि समझना इतने फहमे दीन समझना समझ कैसे आएगी कैसे समझ आएगी जब आप सुनेंगे घौर और फिकर के साथ और बात आपको समझ आती रहेगी नहीं आएगी तो आपकी तरफ से समाल जरूर आएगा एक उस्ताद थे इस और क्यों आती है सवाली नहीं करता है इसको इतना याद हो जाता है माशा एक दिन उससे कह दिया कि कभी सवाल कर लिया करो तुम भी क्योंकि जब आप सवाल करते हैं ना तो उस् इसके जहन में आया कि उस्ताजी ने कहा था कि सवाल करना चाहिए तो उसने कहा मैं एक सवाल करना चाहता हूँ जी हां कीजिए अलभामदलला आप भी सवाल कर रहे हैं तो बोलने से एक अंदाजा होता है कि हाँ वाक्यतन आप घौर फिकर कर रहे हैं, सुन रहे हैं, आप समझ भी रहे हैं, जो समझ में नहीं आरी बात आप उसको पूछ कर उसको हल भी कर रहे हैं चोथा स्टेप है, जब आपने समझ लिया, अब क्या अल हिवस उसको याद करें, चोथा स्टेप यह है कि उसको याद करें, इल्म स अगर मैं और आप यहां बैठ कर कुछ सीखना चाह रहे हैं तो नियत क्या है? इस पर अमल करना है मैंने. सबसे ज्यादा सूरत उल इखलास हमें क्यों याद है? कोई बता सकता है जब आपने इयत अच्छी करके सुना, समझा, याद किया, अमल किया, उसके बाद नमबर छे, ये जो कि किताबु सुन्नत का इल्म है, दीन का इल्म है, इसको अपने जात तक महतून नहीं रख सकते है एक आयत भी मुझसे आपको मिल गई है आपने समझ लिया है उस पर आपको फहम आसल हो गया है फिर उसे आगे पहुंचा है इस नियत के साथ इन आदाब के साथ हमने इस इल्म को सीखने के लि इसके बाद एक और एहम बात चुके ये हमारा मौजू जहाँ वो तरजमे का है तो हम तरजमे को आपके सामने इंशाला इसके आगास से पहल सबसे पहली बात कुरान करीम की तारीफ क्या है कुरान किसको कहते हैं कुरान किसे कहते हैं इसकी तारीफ कि अल्कुरआन कलाम उन्होंने अल्कुरआन कलाम उन्हों अल मुनज्जलू नजल से न नजल से अल मुनज्जलू अला मुहम्मदिन सल्लाहु वालि आपको लगा दें बिलिसान इन वाइट बोर्ड आता तो मैं इस प लिख लिया मुश्किल अलफाज हैं बाइट बोर्ड आ जा तो मैं लिखता हूँ जो लिखा इसका तरज़वा यह है कुछ और इसे नाजिल किया गया है मुहम्मद सल्लाहु अलेही वसल्लम पर अरबी जबान में आगे अलफाज हैं अल मुताबदू जैसे लिखते हैं ना इबादत अल मुताबद अलिफलाम उसके बाद मीन ता आईन बादाल अल्मुताब्बद पितिलावतिही अल्मुताब्बदु पितिलावतिही इसके मना है कि इसकी तिलावत से अल्ला की बंदगी होती है इबादत इसकी तिलावत से अल्ला की इबादत होती है और इसके अलफाज से चैलेंज किया गिया है अलफाज के दरी अल्ला ने कुफार को चैलेंज किया है कहा है ना कुरान में कि जिन और इन सारे मिलकर इस जैसी किताब लाओ फिर का दस सूरते लाओ फिर का एक सूरत लाओ फिर का एक आयत लाओ अगर तुम अपने आपको बड़े फसी समझते हो तो ये चैलेंज है जी, क्या लिखा आपने, और अलफास के दरिये, इसके अलफास के दरिये चैलेंज किया गया है, और आखरी जुमला है, अलमब्दूओ, बादा आसे, अलिफ बिसूरतिल फातिहति अलमबदूओ बिसूरतिल फातिहति वलमख्तूम रहीकुलमख्तूम किताब मख्तूम खिताम से खतम से इस जुमले का मतलब यह है इपतिदा सूरतुल फातिहा से होती है और इसका इखतिताम सूरतुल नास पर होता है जिसकी इप्तिदा सूरत लफातिहा से और इख्तिताम सूरत लनास उर्दू में भी आप याद कर लें, कुरान अल्ला का कलाम है, मखलूक नहीं, इसकी तिलावत से अल्ला की बंदगी होती है, इसकी अलफास के दर ये चैलेंज किया गया है, और ये मुहम्मद सासलन एक फितना खड़ा हुआ था खल्क के कुरान का जिसने ये दावा किया था कि कुरान अल्ला की मखलूग है किस इमाम के दौर में था ये इमाम अहमद बिन हंबल रहीम अहुल्ला और इस फितने का रद किया नोने एक और फितना है अल्ला के रसूल के दोर में मुश्रिकीने मक्का कुरान में मौजूद है युअल्लिमुहु बशर इस नबी को कोई इनसान कुरान सिखाता है और वो सीख कर आकर कहते हैं अल्ला की वही है अल्ला ने इसका रद यूं किया के मुश्रिकीन तुम इस कुरान के हवाले से ये जो एतरास कर रहे हो कि ये नबी किसी से सीकराता है जिसकी तरब इशारा किया है वो अजमी है कि नबी इससे कुरान सीखराते हैं जबके ये नभी कौन है अरबी ये कुरान किस में है अरबी में ऐसे कैस इस एतराज का रद का दिकर कुरान में मौजूद है तो यहां क्या कहा गया अल मुनजल आला मुहम्मद यह मुहम्मद साली सर पर नाजिल हुआ है अरबी जबान में यह किसी इं पड़े पुराने औराक मिले हैं वहाँ से पता चला कि ये कुरान तो बहुत पुराना है और उस कुरान को इस कुरान के साथ मैच किया गिया तो पता चला वो हिस्सा जो हमें औराक मिले हैं वो कुरान में है ही नहीं इस कदर ज्यादा मुन� जूट तो हमने इस तारीफ के अंदर क्या लिखवाया इसकी इतदा सूरत लुखातिया से और इखतिताम तो कुराम क्या है मुकमल है कुर कि तो क्या तारीफ कि उर्दुम बता दें ठीक है और इस पर बि अब दूसरी बात इस तफसीर से मुतालिक ठीक है, सही लिखा है आपने तो यह देख सकते हैं अगर आप किसी को नदर आ रहे हैं तो सही लिखी भी है तारीफ सामना कुराने के रिंदी कितनी सूर्थे हैं 114 114 सूर्थों में 86 मक्की हैं 86 बागी कितनी बच गए जी 114 में से 86 निकल की बाकी कितनी बच गई 28 देखने 14 और 14 कितनी होती 28 सूरत मदनी अधाई सूरते मदनी हैं रसूल उल्ला संदम का नभूवत का तोरामिया कितना था तेइस साल नभूवत का तोरामिया तेइस साल इजरत से कितने साल पहले थे नभूवत के 13 साल 13 साल नभूवत के मक्की है और 10 साल मदनी है तेरा साल में जो सूरते उतरी हैं वो है 86 तेरा साल और जो मदनी है उसमें है 28 मक्की और मदनी इसका मतलब क्या होता है मक्की का मतलब आपकी हिजरत से पहले का दोरानिया तेरा साला और मदनी का मतलब हिजरत के बाद जो सूर्टे उतरी हैं यानि दस साला मदनी दोर अगर हम फरक करें, के जो मक्की सूर्थे हैं, वो कैसी हैं, मदनी सूर्थे कैसी हैं, तो ये फरक तीन हैं, मक्की सूर्थों का और मदनी सूर्थों मक्की सूर्थों की आयाद छोटी हैं और मदनी सूर्थों की आयाद लंबी हैं बड़ी अत्ता के नजर आएगा आपको वो एक सफे क मक्की सूर्थें की आयात क्या हैं? छोटी और मदनी की बड़ी, दूसरा फरग, मक्की सूर्थों में अन्दाजे गुफ्तुगू सक्त हैं, मक्की सूर्थों में नमबर एक अलिफ यानि नमबर दो में अलिफ क्या है अन्दास सक्त बा यानि इसी का दूसरा पाट इसमें कस्में खाई गई हैं अल्ला की तरफ से और वहाँ कस्मे खाई गई हैं और यहाँ कस्मे नहीं हैं श्याजो ना दे रहे हैं और यहाँ दलाइल दिये गए और यहाँ दलाइल नहीं है यह दूसरा फरक था जिसके तीन पाट हमने की है क्या था दूसरा फरक मक्की सूर्थों में क्या अंदास सक्त है अच्छा अंदास सक्त बेटे को कहता हूँ पानी लेकर आओ वो पानी लेकर आएगा तो मुझे दांटने की दुरुवत है मुझे इसको बुरा बला कहने की दुरुवत है सक्त अंद��स कब इत्यार किया जाता है जब सामने वाला इंकार कर और सक्त अंदाज भी इक्तियार किया और मदीना में लोग क्या थे सक्त मुती फर्मा बरदार बस आहकाम बताये गये उनको साधा अंदाज से चुके मुती फर्मा बरदार थे इसके मतलब है जो उतीर फ़मवरदार हों तो उनके साथ बड़े नर्मी के साथ आपको चलना है और जो सक्त रविया यह मनज है जो कुराम ने दिया है तीसरी चीज जो फरक है मक्की सूर्थों में तीन मजबीन है तोहीद उलूहियत नमबर दो रिसालत गुरा नबी ले इसलाम की रिसालत की तस्थीक कि आप सचे रसूल हैं और नमबर तेहीन फिक्र आखरत बरने के बाद उठाया रिसालत फिक्र आखरत यह तीन मजामीन है मक्की सूर्थों में और इसकी वजह क्या थी जिनसे कलाम किया जा रहा है वो इन तीन चीजों का इंकार करते थे तोहीद उलुवियत को नहीं मानते थ जो मुखातब को जरूरी है एक बन्दा नमास पढ़ता है जकात का मुनकिर है तो हम उससे नमास की नहीं जकात की बात करेंगे अच्छा जो मदनी सूरते हैं उसमें अहकाम का दिकर है अकीदे का दिकर शाजो नादर मिलेगा आपको बहुत कम मिलेगा चुके अकीदा मक्की सूर्थों में मौजूद है और उसके बाद फिर अहकाम और मसाइल हैं इबादात का दिकर है अखल और मदनी दौर, मक्की दौर म और मदिनी दौर में 28 मदिनी सूरत किसको कहते हैं जो हिजरत के बाद हो और जो हिजरत से पहले मक्की सूरतों और मदिनी सूरतों में कितने फरक हैं तीन नमबर एक पहला फरक्या था मक्की सूर्तु में अन्दास सक्त है और मदनी सूर्तु में नरम है मक्की सूर्तु में नमबर दो पहला फरक्या था आयाद छोटी दूसरा फरक क्या था, अन्दासक, पहा नरम, यहां कस्मे हैं, यहां कस्मे नहीं, और यहां पर तलायल है, अकली नकली, और यहां देनी की दुरूवत नहीं, और तीसर तीसरी चीज जिसको जानना दरूरी है वो है कुरान करीम की तफसीर का अन्दाज कुरान की त वो बात ये है जिसने भी मदभप का लिबादा ओड़कर चूरन बेचना है वो किसको पकड़ता है कुरान करीम को और फिर कुरान के तरजमे के बाद अपनी जाती तफ जब आपको उसूले तफसीर मालूम होंगे उसूले तफसीर बरना कुरान में मौझूद है न यादी भी कतीरा वा युदिल्लु भी कतीरा राहिबी इस कुरान से आपने ये सुना है ना हस्बुना किताबुल्ला आप मुझे बतायें कि कुरान की कोई तफसीर मुम्किन ही नहीं है अगर कोई ये दावा करेगा और ऐसे सोचल मीडिया भरा हुआ है आप जो ना कुरान को डॉनलोड करके पढ़ते हैं तफसीद उसमें सरे फैरिस इस वक्त जो मुतहरिक है वो पता कौन सा मेरे एक साती थे, बहुत अच्छे साती नमास पढ़ते हैं, जुमा पढ़ते हैं, एक दिन उन्हें कहा कि मैंने अपने बेटे को तफसीर बेजनी हैं मैंने, तो आप मेरी लाइबरेरी का विज़ेट भी कर लें उन्होंने कहा कि उन्होंने मंगवाई है तो मैंने कहा आपका बेटा मुनकरीने हदीस हो गिया है वो हदीस का मुनकर है कहा कैसे हो सकता है मैंने कहा ये जो तफसीर लेकर जा रहे हैं इस तफसीर का जो मुसन्नी सब हदीस के मुंके रहा है बलके उस जगा तो ज्यादा इंकारी हदीस का फितना मौजूद है और फिर उन्होंने खुद कहा कहां से सुन कर इसलिए एक आम इंसान को कैसे पता चलेगा कि उसूल तफसीर मालूम होंगे और आपको ये मालूम होंगे कि ये मनहजी उलमा है तो फिर आप उस सही तफसीर तक पहुंच सकते हैं वरना इस तरह की तफसीर सोचल मीडिया पर मौझूद है तो उसूले तफसीर के लिए सबसे पहली चीज़ चीज पांच मराते बहन पुरान की तफसीर को करने के पांच मराते बहन पहला मरतबाब तफसीर ल्कुरान बिलकुरान क्यूं कुरान की तफसीर कुरान के दर्ये क्यूं के जिस कलाम की हम तफसीर करना चाते हैं अगर उसकी वजाहत खुद कुरान में मौझूद है तो अल्ला अपने कलाम को सबसे पातिहम है एहदिन अस्सुरात अलमुस्तकीन सुरात अललदीन आनम तालेहिं वैरिल मगदूब यालेहिं बलबद्वालेहिं कितने गिरों का दिकर हैं इसमें पूरी सूरत उल बाकरा पूरी सूरत उल बाकरा इसी चीज की वजहत में है क्योंकि बनी सराईल करद है फिर इस आयत की तफसीर मुनम आलेहिम कौन है सूरत निसा में मौजूद है एक आयत के अंदर तो कुरान में सूरत बाकर है कि शुरू में कहा हुदल लिल मुतकीन मुतकीन के लिए हिदायत हो नहीं होगा कोई घंट नहीं होगा अब वली कौन है हमारे हाँ वली तो कोई औरी चीज है जिसने कपड़े नहीं ना नमाद ना रोजा ना जकात ना हज ना तहारत कुछ भी नहीं ऐसे लोगों को जब हमने इसको मदीना में देखा हमने इसको देखा शुश जानते हैं ना कैसे इससे बढ़कर कोई भेवाकुफी हो सकती है इसको हमकी जहालत का अंदाजा लगा है हमारे इमान को हर कोई बरवात करने के लिए आ जाता है और हम सस्ते हैं पै मुआशर में जिने हम वली समझते हैं ना उनमें इमान होता है ना तक्वा होता है तो खुद कुरान में बाज आयात ऐसी हैं जिनकी तफसीर मौजूद है तो इसलिए हम अल्ला की मुराद को अल्ला के कलाम से समझने की कोशिश करें नमबर दो अल्ला की मुराद को अल्ला के बाद सबसे ज्यादा कौन जानता है मुहम्मद और रसूल इल्ला सलाह वो अल्ला के नुमाइंदे है अल्ला के भेजवे सफीर हैं जो अल्ला की मुराद को सबसे ज्यादा जानते हैं इसलिए कुरान को हम समझेंगे किस से हदीसे रसूल से और ये अल्ला के रसूल का वदीपा और जिन्मेदारी भी अल्ला ने कुरान में द आपने कुरान की विजाद कैसे किया दो चीज़ों से अपने अमल से और अपने कौल से अमल करके दिखाया और अपने अकवाल से बताया तो दूसरी चीज़ जिससे हम कुरान की तफसीर करेंगे वो है हदीसे रसूल तीसरी चीज अल्ला के रसूल के बाद कौन है जो सब से ज्यादा कुरान को समझने में और समझाने में उखलिस्ता, मुहब्बत करने वाला था और जात पाकती मकासित से पाक था सहाबा, सहाबा के अकवाल, क्योंकि अल्लाह के रिसु सलम ने इस कुरान को अमलन और कवलन किसको समझाया, अकवाले ताबीईन ताबीईन की अकवाल सहाबा में भी बड़े अजीम मुफसिरीन गुदरे हैं पुराम में कुछ इस्तिलाहाद ऐसी इस्तिमाल हुई है अब इसमें एक बात और वजहत वाली है अरभी लुगत की बात आई न हर चीज़ को अरभी लुगत से नहीं समझेंगे मसलन कुरार में आ गया है असलात असलाह नमास अर्बी लुगत में सला के बहुत सेरे मानी है तो ये सलात शरई माना देखेंगे तो ये लुगवी माना है दूआ करना या अपने आजा को हरकत देना तहरुक बिल अबदान इस लिए बाज लोग नमाज नहीं पढ़ते वो सिर्फ रक्स करते हैं क्योंकि कहते हैं सला का माना है हरकत करना तो उठक बैठक कर लो थोड़ा सा जूम लो लाइटे बंग करके मुराकवा कर लो और हु हा के थोड़ा से शोशा कर लो सलात कर लिया आप कुरान अर्बी लुगत की तौजी के लिए नहीं आया इसका असल मक्सूत शरीयत को ब्यान करना है बाज अलफाज वो अपने अंदर शरी माना रखते हैं तो सलात का शरी फिर उसकी जब वजहात खुद मौजूद हो कुरान में और हदीस में अब लोगत का सहारा लेकर एक और अमल सर अंजाम देने लग जाया तो ये गलत है पूरे कुरान का अरपी लुगत से नहीं समझेंगे जहां जिन अलफास का अरपी लुगत में माना देखने की दरूवत होगी तो वहां अगर शरी माना नहीं है तो फिर लुगवी माना अगर उसका है तो उसको देखेंगे जैसे मिसाल के तो अरबट अल्ली अलेहिम के अलफाज है सल्ली अलेहिम वैसे सलात का माना क्या है नमाज लेकिन जब सल्ली अलेहिम यानि अर्पी में यह है कि जब सल्ला युसल्ली के बाद आला आ जाए, आईनलाम, आला तो उसका माना रहमत की दुआ करना भी होता है अरभी लुगस से इसकी वजहत हो जाती है ठीक है थोड़ी सी ये वजहात है इंशाला आगे आसान है पहला दिम तो वैसे थोड़ा सा मुश्किल लगता है कि मैं कुशिश कर रहा हूँ कि मैं साधा से अंदास में तो चीज़ी आपके ब नहीं तो बन जाएगा आइस्ता यह चीजें वह शेयर कर देंगे अच्छा अपना जो ना यह तालीनी साल है इसके एक नहीं जब आता है तो बन्दा पहले दो दिन तो मुश्किल होती है जब भी आपको चीज सीख रहे होते हैं तो मुश्किल होती है लेकिन दो तीन चार दिन के बाद वो चीज रूटीन का हिस्सा बन जाती है इंशाला उसके बाद जब हम कुरान पढ़ना शुरू करेंगे तो आपके लिए बहुत आसान हो गया है नमास के बाद इंशाल्लाह कुछ बातें और मजीर करें सुभानका लुटे हम देख शादु अल्लाह इलाह इल्लाह इसका अस्तोख फिर उकवात हो दीजिए इसमें हमारा एक विरद होता हो लेकिन आज अ तो तर्पी वैसी बनी जिसके लिए ऐसे तो भी रखेचा करती है नहीं सकता है आज का दिन तो आज का भारी हो जाया था कि नमस्कारी न नंबर तीन, सहाबात या क्वार कि अब यह एक नस्ता जो सुबह बड़ा है तो मसला कुरान और हदीस वाले से आया कुरान तो अधिक अगर समझा जा सकता है यह इस बात में तो शक नहीं शरीयत के दो बुनियादी मस्थर और बाखस जहां शरीयत लेते हैं नमबर एक पुरान नमबर दो अधिक कि बात हम करते हैं कि क्या कुरान को हदीस के बगएर समझा जा सकता है या नहीं बड़े मुक्तसर दो तीन नामुम्किन को कुरान को पर अल्लाह परमाता है इसको हमने आपके दिन पर उदारा है इसका बयान किससे हुआ आपकी जबाने मुबारक से हमारे पास कुरान है सूरत पात्या कुर्टान की पहली सूरत है या आखिरी सूरत है कौन से जरूरत ऐसे ब्यान करें जाएं पुरान की पहली वही कौन सी है कैसे बेहन करेंगे इसको निकाल दें आप चाहिए तो बताएं कुरान की पहली वही कौन सी है अगर तो है सूरत पात्या, इसका संगूर दिताएंगे, सुरान से नहीं दिता सकते हैं। ऐसे दिखाएंगे अगर आप सूर्य आलख की पांच आयात कहते हैं तो इस विधि आप पर कहते हैं पर इस पर पुरान ने अत्ता परमाता है अज्ञान अश्वरु मादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुमादुम रमदान में गए हैं और आपने उम्रे की नियत गए हैं और हज की नियत भी अगर करेंगे तो नहीं होगा, उम्रे की तो हो जाएगा, हज की नियत से अगर दिकात से दुदरेंगे, तो बहुत जल्दी अगर करना लेकिन अगर रमजान पर जाएं तो उम्रा कर लें। आज की निवियत के लिए आपको बिकात पर जाना होगा। प्रश्न नहीं तीन चपाल जुलखद और जुलखद जब नहीं परमाता है कि ना इतना शुभूर इतनी ददार इतना आशा राज़कार है ना बारा में कुछ नाम है पर ताही फुरफट वाले महीने का जिदार चार फुरफट वाले महीने का उसे भदीस को नहीं मांगता नहीं बता सकता इसका मतलब यह आपके दिमाग में चार और आएंगे इशार पुराने कृपया परमाज वह नहीं तो खर्च का वजन जहां से भी आप अपने रूप पर जरूर करेंगे तो आप नमस्कार एक दो विशाले दिया वाला पूरा पुरान इसी वाल कर ज़ड़ा रच करता है ना ये इसके लिए नहीं समझा जा सकता जो ये कहते है ना अगर आप उसके इस्त्री मांत्रे में जोड़, तौट, गाल, पात जोड़ भी भूत है जो अब हमारे पास यह कब लिखा जाया अभी तो हमारे पास जो मौतित है ना मुस्तप यस्मानी से इतना मां प्रभी अल्लाह उत्ताराम के मुस्तप यस्मानी से नशीद है अगता उम्र रदी अल्लाह उस आला में है तो एक शक्र भी थी ठीक है और उसके बाद फिर यह शक्र ले मां के साथ बाती है अब यह एक सभी पर है सभी पर हम पाप नवप देख अबुहरेरा के शाकिल में अबुहरेरा से लिखा है अब यह सही पर मौजूद है तो सही पर यह किनी आदि स्नौडील है आप उसको पुखारी मुस्लिम अबुदाऊद नसाई तिर्मीली में मौजूद आहादीस के साथ अगर तकाबूल करेंगे तेरी तो सेम हो जाएगी आगे तो यह दूसरी तीसरी संगी में जाकर निकली करी ना यह तो सहाबा के दौर में यह लिखा गया सहीफा, सहीफा अमर बिनास मौचूद है, जिस सहीफा अमर बिनास रदी अलाहु तालान से लिखा गया, जकात के मसाहे अभू बक्कर सिधीक रदी अलाह तो उनके प अबुशाह रसुलिया सबके पास मौत जूत नहीं होना का अलग रसुल मौती के दिख्षर दे आदी से आपने खायद वजह से लिख कर दो जो आप दोड़े के लिए जूद है और यह प्रपुछनता है या फूल्ड रोगों का जो इस्तान असत शकल को बितावा जाते हैं पांच फिर्के हैं, पांच फिरू हैं, इतना उजीद है इसलाम विश्मनी पर योर इसलाम अस्तर शक्कल को बिजाना चाहते इसे वजना दगेगी नंबर एक पादीयानियत नंबर दो खवारिज प्रकृत नामों से आते हैं तक्पीरी सोच के लिए ये कापिर बारो इसको भटम दब पर प्रिंटारे हैं इसका पिकल पि तब युवांदी के नाम से आएगा, तब युवसर सजुद के नाम से आएगा, तब सप्तिणा नाम से आएगा, तब पत्मा के नाम से आएगा। नंपर चार, कसब गुफ। इसके खादमे के पीछे बहुत सारे अस्पादने से एक बड़ा सा बुख पर सब बुख था कि अपनी बहुज मस्ती हो नहीं पांच वह है आप सीधे आप सीधी कहां प्याद थी कि जो पुराण को नहीं मानते तब पुराण पर नहीं मानते कि तुरान नामकप्त है इस पास पांच चोटे वोटे फिर ने बहुत ज्यादा इसलाम के असल अक आप आए दो अधिबादात का जनाजा इन्होंने निकाला तो यहां धोकर पढ़ गया देखिए पीछे और कुछ बात आप पर यह बातें पर अच्छा आप पढ़ दोनों सूरतों का पड़ेगी इंशाल्लाह इस पूरे साल के दौरान में नहीं जाऊंगा आप नहीं जाना है इसमें अगर आप पर पड़े हैं और आप वेराजरिया ना की और अल्लाह नुझे भी तौपित दी तो आप सूरत विपाकरा गुरान में अखकाम और वसाइल सबसे जामे सूरत हैं बड़े अजीव मसाइल हैं इसमें आयेद के इबादाद के और पामलाद के तलाक के मसाइल विदा के मसाइल अलाल और अरा कु कि अजय को अच्छाई की तरफ इंसान पड़ता है ना तक लीजिए जाता तब या कि आपकी गाली पैंचर हो जाएगी तभी रोजन तब यह अपने आप आपको पीछे नहीं करता तो थोड़ा सा प्रेशन शेतान पर लिटाने जो मर नहीं करते तो जाना ही जाना है तो यह यह छोड़ेगा नहीं तो फिर आपका पिछला छोड़ देता है अपने सुखी हाफी है अब यह आप लें आपने कि आई थे इसके बाद आई रखा हूं तो आज सूरत उन फ अओधु बिल्लाहि मिन शेटानि रजीम इस्मिल्लाहि रख्मानि रखीम अल्हम्दु लिल्लाहि वब्बिल्रालमीन अर्ख्मानि रखीम मालिक योमि दीन इयाक नाअबुद वईयाक नस्तःीन इहदिन स्वात अल्मुस्तपीम शिवात अल्लदीन अनणम्त अलेहिम गईरिल मघजूबि अलेहिम वर द्वाली पर आप प्रिशान यह प्रशुरुद्ध है यह पूर्ण शूर्द पूराने के लिए सबसे अजीम सूरत पाति यह पूरा फुरा जो प्रयान कर रहा है उसका खुलासा सूरत पाति यह बात आदिस पर रोशिकी में पूरे पुराद की सूरत इस बुनियाद पर यह आधियादि सूखते हैं तब से पहले अदिस्त रसूल अल्लाह सलोह परमाते हैं जिब्रिल अली सलाह और सलाम आपके पास देख देखे अच्छा आपका आस्मान का दरवादा खुला जिब्रिल अली सलाम ने कहा आपने आवाज स नदी दो नूर आपको दिल जा रहे हैं फुश हो जाएगी दो नूर आपको फिल रहे हैं फुश हो जाएगी पहला नूर सूरत पाति हां और दूसरा दूर सूरत वकर क्या करीद वाया फिर कहा आप इन ने से जो भी अरफ पड़ेंगे अन्नारपुर्णिजत आपको वाता परमाएं यह तुम नूर समझेंगे न वह नूर चुकरेगा देखिए यह तो यसीन यानि आप सूरत नहीं यह सूरत क्या करती है अगला वाक्यास प्रमान इस जैसे सूरत कुरान में मौजूर है इस जैसे सूरत के सबसे वसीर और वन्नार बुलिजते प वह सही त्वष्ट्री कहते हैं और साइद रदी अल्लाह हुआ जो कहते हैं कि मैं मस्जित में दाखर हुआ शोरुल्दा सर ने प्रमाए कि तो तुम्हें कुरान की एक असीन सूर आज पढ़ने के बाद जान नहीं लगे, तो मैंने याद दिला है अल्लाह के विशुरू वो अजीम सूरत, आपने बतानी भी, आपको अपना बाया, सूरत उल्पातिया है, यस्सब उल्लथानी वल्प एक और है इस उसे इन पुर्वित रत्याता उन्होंने प्रमाण है एक सफर में देते उस सफर में हम एक जगह पड़ाव डालना रुके और एक बस्ती में हमने अपने साथ भी देजे कि हम प्रशाबिर हैं और मेहपान नवाजी तुक पर फर्ज है तो पुछ हमें दो उन्हें देने से इंक कि अल्लाह का करना ऐसा हुआ था उस फॉर्म के सरदार को इसी सहरी लिचनी में जस्ति गया उन्हें पड़ा इलाज किया लाइफ करेंगे जरूर अब हम प्लीज पक्करियां देते हैं आप जाओ और जाकर शुरुत पातिया बड़ी और सहर खबर बड़ी थी। अगर पुलफिक पात की ठाक हो गया तो उन्हें दूर दी दिया इनको और तीस बकरियां ले। और वो तबीले में जो बकरी आई तो उन्होंने कहा कि हम इसका इस्तेमाल ऐसे नहीं करें। पहले इसके हदाद या हराम होने का अल्लाह के रसूल से सदक से की जाजब नौमा दे। कि उनके पास है और काई किस वरा का वाक्या हुआ है तो आपने बर्कत है कि तुम्हें पता था कि ये दम है और दुसरे भी कहते हैं कि मैंने सूरकुल फादया पड़ी मुझे कुछ नहीं बता था बस मैंने किया और वो ठीक हो जया आपने भर्माया कि ये बरकत है ये खाओ और मुझे भी किच्छो इस राके में अदवास कुछ यूँ है एक शक्स को पागल पत गिरगील के दोरे इस तरह के दोरे पचिगुल की अपनी कैटियतारी अकल काम नहीं कर रही है कि इसी शक्स ने भेजा कि यहां पर कुछ लोग हैं वह मुहम्मद स्थान को मानने वाले हैं पता चला है कि वह कुछ नियुक्त करो तब लेने शेष को बेजा वह आए और उन्होंने उस जिस तरह के दौरे पड़ते थे उन्होंने भी अल्लाह के रिसुल से जाकर पूछा हलाल है या राम आपने कवित पूर्ण धोग तो तातिल तरीके से हराम खाते हैं ये तो हक तरीके से नियादिया है। पर नियुक्त पर नियुक् कि एक गुरान शिवाय रुहान एक इस बात यदि इस गुरान से दिल की स्पावी होती है और जिसकी बीमारिया भी नहीं होगा तब नहीं होगा तो यह नहीं होगा तो यह अपने तुरान को शिफा पत्त क्या है? किसलिए बनाया है? सिर्फ धुस्माती हत्वल है। और वह भी लटका कर ताविश की सूरत तरह में लटका हुआ है बाजों में लटका हुआ अच्छा तुराफ एक और चीज को शिफा का आगे वह क्या शहद कभी ल� तो कुरान को बढ़कर शिपा मिलें। लटकाने से नहीं बदलें। यह तरीका क्या है। तभी आपने पैनेडोल के लिए में लटकाई है, इसकी तासीर आपके अंदर आएगी, आप भी बहुत अधिक हैं। नहीं, आप तक आते हैं, तो कुरान वो भी इस्तेमाल करें, पढ़ें, अपने और अपने दंदे के दर्मियां तक्षीन कर दिया है सुरत पात्या सलाप को तक्षीन कर दो अपने और अपने दंदे के दर्मियां असलाह को तक्सी कर दिया इसे जब सलाह कहा दिया तो जो बन्ता नमाज में नमाज को नहीं पड़ेगा उसकी नमाज कहां से होगा बाम है, बुख्तदी है, सिर्णी है, जाहरी है नमाज की अपने प्रश्न परमाते हैं एक अल्लाह प्रमात है जब तक यह पड़ता है अल्लाह पर लाख रद्दिलाल ने जब आप देना चाहिए जो आप देना चाहिए जब अल्लाह कहता है बेरे बंदे ने बेरी हथ जो लोग कहते हैं ना अर्राह्माद ज़रागी बंदा कहता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है जवाब देता है बात ये है जो कुराने करीम की आये तो तरीत ना ला तकर अबुसलात अवंतुम सुकारा जब शराब हलाल थी तो दूसरा हुकम शराब के बारे में ये आया था कि जब आप नमाज में हो तो इस हाल में अब हम नमाज में होते हैं लेकिन शराब का नशा नहीं दुनिया का नशा मौजूद होता है पुष्ट में नहीं होते हैं टेंशन है इतनी पाली हुई हैं पाकिसान की टेंशन हम में से हर एक को है चासेदानों स नमाज में नहीं होते हैं तो नमाज में जागना है एहसान फिर इबादा क्या है इबादत के अंदर एहसान किसको कहते हैं अल्लाह ने फर्माया नहीं कि अल्लाह या का क्या माना है तेरी यह किसके लिए होता है सामने जो अल्लाह यहां तो नहीं अल्लाह पर है तस्वर यह करें कि अल्लाह मेरे सामने है मैं देख रहा हूं अल्लाह कि मुखातब का सीगा है यह अगर ये तसबुर पैदा हो गया तो आप नमाज में होंगे, आप तिलावत कर रहे हैं तो इस पर घौर फिकर कर रहे होंगे, आप अपनी आजा से कभी दाड़ी को, कभी नाग क कि बैठुल्ला में रश्वतम ही कि हमने कल भी नमास पड़ी ही नहीं है दिल से नमास तोड़ी पड़ते हैं हम सिर्फ हाजरी लगाते हैं यही बजाय है कि आप वल्ला ही आप देखेंगे नमास कतम होती है सलाम फिरता है और लोग भाग रहे होते हैं तो ये कैसे भाग रहे हैं कि वो इमाम की दो आयात ज्यादा पढ़ लेना इसलिए सलाम फिरते ही भागते हैं खुजूरे कल्बी के साथ अल्ला के सामने खड़े होकर क्या पढ़ रहे हैं, अल्ला के साथ क्या मुकालमा, ये अल्ला के साथ सरगोशी है, अल्ला के साथ सरगोशी करके देखे तो मज़ा कितना आता है, अब अन्दाजा नहीं कर सकते हैं, आपको पढ़ी ह बंदगी भी हो जाएगी और जाकर हिफाजत भी हो जाएगी दुश्मनों ने ताकुब किया हुआ था ये नमाज शुरू की एक साहब ये लेट गए और तेक लगा कर पहरा दे रहे हैं ये खड़े ह� कि यह मुनासिब नहीं समझा कि कुरान के तिलावत को मुनकते कर दो मैंने सूरत मुकम्मल की है नमास से निकला हम अल्लाह से सरगोशिया कर रहे हैं और अल्लाह जवाब दे रहा है तो अल्लाह कहते हैं या कन आबुदू या कन अस्ताईन तो अल्लाह कहते हैं ए बंदे इसमें से आदा तेरे लिए और आदा मेरे लिए या कन आबुदू या अल्लाह का हक है कि हम अल्लाह की बंदगी करे अल्ला ने सुन ली जिसने उसकी हम्द बियान की तो हम नमाज में अल्ला की हम्द ही बियान कर रहे होते हैं अल्ला सुन रहे हो तो यह सूरत उलफातिया का एक यह अजीन पहलू है कि इसे सलात कहा गिया है और सेई मुस्लम और सेई बुखारी के एक उरदीस में है कि उसकी नमाज ही नहीं होगी जिसने नमाज के अंदर सूरत उलफातिया नहीं बढ़ी। अच्छा इसमें किसी खास नमाज का दिकर नहीं है आप कहेंगे इसमें वो नमाज मगरी बिशा और फजर की नमाज है नहीं नमाज का है इसमें ये भी नहीं दिकर है कि आप इमाम है या मुक्तदी है इसमें य नमास के कितने अरकान है चार क्याम रुकू सजदा और आखरी तशाओत और उनमें जो क्याम है ना क्याम का एक और रुकन है कौन सा है सूरत फातिहा तो ये जिमनी एक बात थी जो आ गई तो इसकी फदीला और रहमियत थी ये अब हम आते हैं इस सूरत के नाम सूरत फातिहा के कुछ नाम है पहला नाम अलफातिहा, फातिहा किसको कहते हैं, मर गया मरदूद ना फातिहा ना धुरूद, अजीब किसम का मुहावर है, और वाक् फातिया सूरत उल फातिया है और उसको अपने नमाज में पढ़ना है, इसी की फौत की पर, हमने रखी भी इस सूरते हैं कि अब फलां को मारने के लिए, फलां को शिफा देने के लिए, कैंसर खतम करने के लिए यह वाल तो फादिया का मान यह किसको खोलती है कुरान को कुरान का आगाज हो रहा है और आपने अल्लाह की हम्द की इपतदा करनी है तो इसको खोलना है तो उसके लिए भी आपने अल्लाह से दूआ कर अल्ला की तारीब पर मुझ्चतमिल है तीसरा नाम अद्दूआ ये सूरत दूआ भी है और इसमें दूआ का तरीका भी है दुआ भी है दुआ का तरीका भी है आपको बताएगी अगर direct Allah से ना कहो Allah दे पहले Allah की तारीब करें Allah की मुहबत का इजहार करें और उसके बाद बंदकी का इधार करें उसके बाद अल्ला से कुछ माँगे जो अदव का तरीका है नमबर चार सूरत सुआल से है न मसाला यानि इसमें सुआल करने का तरीका बताया गिया है सुआल कैसे करना है अलमसाला जैसे हम सुआल करते हैं किसी से मांगना है तो अल्लाह से मांगना है तो उसका तरीका क्या है इसी तरह इसका एक नाम है शिफा सूरत अश कि इसको पढ़कर शिफा मिलती है और ये दम वाली सूरत है खुद अल्ला के रसूल की तरफ से साबित शुदा बात है ये रुकिया ये दम है अगर बिमारी वाली जगा पर हाथ रखकर इस सूरत को पढ़ा जाए यकीन कामिल के साथ तो शिफा मिलती है इसी तरह इसका एक नाम है सूरा अल्हम्दो लिल्लाह रब्बिलालमी ये पूरा एक अधिक नाम है एक अधिक में दिक्कर हुआ है अधिक में कुछ इस तरह के ना उम्म का मतलब क्या होता है असल तो इसको उम्मल कुरान इसलिए कहा जाता है कुरान के अंदर जितने मजामीन है असल वो सारे यहां मौजूद है पाकी पूरे कुरान में सूरत फातिया की तफसीर है यह य इसलिए इसका एक और नाम है अल-कुरानु लदीम सुरत फादिया का नाम क्या है अल-कुरानु लदीम इसी तरह सबओल मथानी सबओल मथानी सब का मतलब होता है साथ और मतानी का मतलब बार पड़ी जाने वाली साथ आयात बार पड़ी जाने वाली आप सबसे ज्यादा सुरत और फातिया को पढ़ते हैं असलन हम अंदाजा लगाते हैं कितनी दफ़ा पढ़ते हैं पाँच फर्स की कितनी रकात बनती हैं पांच नमाजों की, सत्रा, और बारा सुननते हैं, तो सत्रा और बारा, उन्नतीस, इसमें अगर आप तीन वितर एड़ कर लें, बद्दीस बार, ताजजुत की नमाज अगर आप आठ रकात एड कर लें तो 40, इशराक की दो कर लें तो 42, चाश्ट की कर लें तो 44, तहियतुल मस्जित कर लें तो 46, सबसे ज़ादे इसको और इसमें जो अमल की बाते हैं, अल्लाथ अलाथ हमें अमल की तौफीक दे, अपने इसला की तौफीक दे, जिस रास्ते पर हैं, अल्लाथ अलाथ इस रास्ते में हमें इस्तिकामत दे दे, जो मुश्किलात हैं, अल्लाथ तक वापस अपने घर नहीं पहुंच जाते हैं अब अल्ला के रास्ते में हैं तो इसके अजीम सफर समझें और यह जन्नत का रास्ता है और इसके जो आदाब हैं उसको एक है रुहानी शिफा ताने दिल में आने वाली बिमारियां अकाईद की की मामलात की और दूसरी जिस्मानी शिफा इसमें हम ऐसा रखेंगे आखरी पांच मिनट छोड़ दिया करेंगे किलास के आखर में जो पांच मिनट होंगे हमारे इससे यह होगा कि हमारा दोराने सवाल हमारे जो तर्तीब से चल रहें कि अलार्मा लिखम रखते लोगों को रखाते हैं तो आप खेले जाओंगे हम देर लाइक रब्बिलादमीन वर्णा अन्य रखिम मालिक यह मिद्दीन सुनाथ और सलाम आला शरफ अलम यह विल मुर्सलीन नभी ना मुहम्मद वह आला आली वह सब्सक्राइब करें तो आपको कर दो रिएंटेशन में आए होंगे मिली गया होगा अ वह वक्त के साथ होता रहेगा तो अर्बी पर थोड़ी सी बात कर लेते हैं यह सब्जेक्ट हम पढ़ रहे हैं इसके एहमियत है और यह क्यों हमारे लिए जरूरी होगा तो देखिए दरअसल हमारा जितना भी दीन है दिन इस्लाम इसके अगर कोई शख्स एक अच्छा मुसलमान बनना चाहता है उसके लिए जो सबसे जरूरी चीज कही जाएगी और भी कही जाएगी क्योंकि वैसे तो जरूरी है इल्म हासिल करना शरीयत का एक रप शरीयत भी अर्बी में है तो इसका इल्म किस तरह हासल हो सकता है अरबी जाने बगए तो यानि अरबी मकसूत नहीं है कि अरबी सीख लिया काफी हो गया अरबी वो आला है जिसके जरिये फिर आप दीन में आगे बढ़ सकते हैं दीन को सही तरह समझ सकते हैं लेकिन क्या नमाजे थी क्या नमाज़ी थी सहाबा की अजरत उसमान बिन अफान के बारे में आता है कि रमजान के अंदर वो एक रात के अंदर पूरी पूरा कुरान खतम कर दिया करते थे अल्लाह के नभी का मामूल सा क्याम कर रहे हैं यानि सुतून मजद के सुतून के साथ उन्होंने एक चादर या एक कपड़ा रसी तरह की बांद ली जिससे वो सहरा लेके खड़े होते थे रात का कयाम करते थे तक जाते थे इतना जादा कि खड़ा नहीं हुआ जाता था यानि क्या उनको लज़त मेशूस हो रही होती थी कुरान के अंदर, कुरान पढ़ने से, नमास पढ़ने से, अल्ला के आगे खड़े होने से, तो वो यकीनन वो हासल की जा सकती है, लेकिन हम लोगों के लिए, यानि पाकिस्तान में तो कहते थे बिलाल अजान दो और हमें राहत पहुंचाओ यानी अजान दो और फिर नमास काईम होगी हमारी और उससे हमें सब्सक्राइब करते हैं कि नमस्क्राइब करते हैं ना दूसरों के साथ मैसेज पर बात करते हैं गुरुप में बातें चलते हैं उनको मज़ा आदा था अल्लाह से बात करने में कि हम अल्लाह से बात करते हैं कुछ दिर और हमें मज़ा आएगा और हम रीफ्रेश फील करेंगे हमें अच्छा फील होगा हमारे उपर वो जो रुहानियत है अल्लाह की जो बरकात जो अल्लाह ता तो उसके लिए सबसे बड़ा बैरियर अरभी आ जाएगा हमेशा तर्जमें हम पढ़ लेते हैं और ठीक है अगर किसी को अरभी नहीं आती तो तर्जमें पढ़ने चाहिए कुरान के और कुरान की शरा भी उलमा से यह नहीं ज� यह कहा जाते है काफी आम और मालूम सी बात है कि आप किसी भी जबान को हुबा हुब दुसरी जबान में तरजमा नहीं कर सकते यहां तक कि अगर आप पढ़े ना जो शुरू के जब इसलाम शुरू में फैला और एलग-एलग मुमालेक एलग सकाफत जबानों के लोग दाखल होने लगे इसलाम में तो क्या कुरान का तरजमा किया जा सकते हैं उन जबानों में या नहीं क्योंकि कहीं ऐसा ना हो लोग तरजमे को ही कुरान समझ लें कि उन्हें कर दी कुरान का तर्जुमा कोई कैसे कर सकता है तर्जुमा तो कुरान का मुम्किन ही होता मुम्किन है तो यह नहीं कह रहा कि तर्जुमा गलत है कह रहा हूं कि जिस वक्त यह पहली दबाई मसला है ना उम्मत के कि कुरान का तर्जुमा किया जाए दुसरी जवानों के लोगों के लिए तो एक बड़ी चीज इस पर बड़ा सोचा गया बड़ा समझा गया उसको और बाद जुलमाने कहा कि नहीं ये चीज सही ही नहीं है कि कुरान कम तर्जुमा करते हैं क तर्जुमा पढ़ते हैं एक आयत का, वो तर्जुमा और जो हम अरबी पे पढ़ रहे हैं बहुत फरग है, अरबी में एक बन्दग जब कुरान समझता है उसके उपर एक अलग कैफियत होती है बजाए तर्जुमा पढ़ने के, अल्लाह तक शाहिरू मिन्हो जुलूदु लदीना यख्षाउना रब्बहूम। इसके जरिये जो लोग अपने रब्बे इमान लाते हैं, जो अपने रब्बे से लोग धरते हैं, उनके जो खाले हैं, उनके जो जिसम हैं, वो यह नहीं कहलें वो भी नरम होती है अल्लाह के दिखर की तरफ तो क्या कुरान की सिफ्तें किताब ऐसी है इसको पढ़ते हैं और जब लगाने पर इस कुरान के ऊपर तो एक अजीब उनके ऊपर कैफियत तारी होती है पहले उनको थोड़ा सा एक डर गया यह नहीं कैफियत एक अलग तरह की कैफियत आपके ऊपर तारी हो गई और फिर वो उनके दिल नरम हो जाते हैं क्या मुखातब कर रहा है अल्लाह ताला कुरान में फर्माते हैं कि इसाइयों और इनके बारे में साथ पर से पहले-पहले यह मौजूद चल रहा था कुरान के अंदर के लगा जिदन शदना सी अदावत अलेल लगी नामन यहुदा वल्लदीन आप पाएंगे कि मुसल्मानों से आदावत में जो सबसे जादा है वो कौन है यहूत और मुश्रिगीन और आप पाएंगे इन में से सबसे जादा जो मुहबत में इनके बनिस्बत जिन साब जिन गैर मसेबी लोगों का पाएंगे यानि गैर मुसलमानों को उन में से वो जिनको आप पाएंगे कि वो इसलाम के करीब है इसलाम से मुहबत रखते हैं आपकी साथ अच्छे ज़रते हैं वो जो कहते हैं हम नसारा हैं क्यूं क्योंकि इन में क्या सिफत है और ये बड़ी एहमित की हमल है ताला फर्माते है वईदा समिउ मा उन्जिरा इलर रसूल ये साथवा पारा हम तब मतलब बलके जो हिफ्स करते हैं तो नाम ही इसका ही होता है वईदा समिउ लेकिन इसका मतलब क्या है वईदा समीओ मा उन्जिला इलार रसूल कभी ये सुनते हैं कौन से रसूल वईदा समीओ मा उन्जिला इलार रसूल तरा आईूनहुम तफीदु मिनद्दम्यी आप इनकी आखों को देखेंगे मिम्मा आरफू मिनल हक क्योंकि जो इन्होंने हक कि यह नसरानी है यह नसारा जो क्रिस्टिंग्स है उनकी सिफ़त बैन की जा रही है कि जब वह उनके जो मुखलिस बंदे उनके अच्छे बंदे जब कुरान को सुनते हैं तो क्या उनकी आखे पर पड़ती हैं अगर बचान लेते हैं वो कहते हैं ए रब हमें मान ले आए हमें गवाहों में ठरा दें है जो जिनने इसलाम कुबूल कर लिया तो इस चीज की क्या सिफ़त बैन की जा रही है कि जब वह रसूल के पर जो कुरान नाजल है उसको सुनते हैं तो उनकी आखे भेने लग जाती हैं आसों से भेब पड़ती हैं आखे क्योंकि उन्हें ने हक को पचान लिया हम भी तरावी पढ़ते हैं पूरे पूरा रमजान प� अंदाज में तिलावत कर रहा है तो हमें वो अवाज अच्छी लगती है और उसकी वैसे हम पर एक असर होता है तो मुम्किन है बिल्कुल अल्ला ताला के कलाम जो है उसकी अल्ला ताला का कलाम है उसकी सिर्फ समात से भी असर हो सकता है शक्स यह दूसरी आयत है गालिबन इसमें अल्लाद आला फर्मात है इन्नम अल्मुमिनून अल्लजीन अदा धुकिर अल्लाहू वजिलत कुलूबुहु मुअमिन कौन होते हैं मुअमिनीन कौन हैं जब अल्ला का जिकर होता है उनके दिल काम रुटते हैं जब इन पे अल्ला की आयात तिलावत की जाती हैं इनका इमान जादा हो जाते हैं आवाज के सुर की वज़ा से नहीं हो रहा कि आवाज अच्छी थी इसलिए हुआ जो वो माना मफूम समझ पा रहे हैं उनके दिल पे उतर रहे हैं उसकी वज़ा से उनका इमान जादा हो रहे हैं ये बड़ी कैफित है न खाली दिमागे जाके वो सुनिये और हमारा इमान जो है न वो दुबारा ताजा हो जाना चाहिए एनि हम एक आदे घंटे का दर्श सुने एक बड़े कोई आप कहे लें के दुनिया का सबसे बेचरीन खतीप हम ले आए और उसका एक आदे घंटे का दर्स आपको उसके बाद जो हमारी कैफियत होगी पुरान से सहाबा की इससे बेहतर कैफियत हो जाती थी सुनने के बाद तो वो हमारा ना गोल होना चाहिए कमस्कम कोई हर किसी के अलग उम्मर है सब कोशिश करें सीखने की शहसी पहना पाएं मुश्किलात आ जाएं कोई वजुआत हो सकती है लेकिन कमस्कम हमारा गोल दीन का यह हो कि हमने अपने आपको एक ऐसा मुसलमान बनाना है जो वाकि कुरान से जो तालूक है ना, उसका मैं काबिल तो हूँ, उस काबिल तो बन जाएं, वो फिर एक अलग बात है, अल्ला कितनी तौफी का मैं अता करें, लेकिन अभी तो हमारे आगे एक सबसे बड़ा बैरियर है, अभी तो बैरियर है कि वो कल नमाज में सिज्दे में हम क्या पढ़ रहे हैं सुबहाना रब्बी अल आला सुबहाना पाक है और रब्बी मेरा रब अल आला जो बहुत बुलंद है हम वो महसूस ही नहीं कर पाते हैं तो कि वो हमारी जबान ही नहीं है जो उसके नाम बयान की गए उसमें सलाह या इस तरह के नाम भी बयान कर दी गए उसके जो एक हदीस आती है बुहरेरा रदी अलावन की कि मैंने नमास को कसम तो सलात अब आई नहीं और अब आई ना आब दी तो सलात से मुराद यहाँ पूरी नमास नहीं थी अल्ला की हम्द और तारीफ बैन की तमाम हम को अल्लाह ताला की तरफ निश्पत कर दिया अर्रह्मान रखीन रखमत और यह तरह की रखमत जो है उसकी अल्लाह दिन कामत की निस्बत अल्लाह की तरफ की अनि अल्लाह का मकाम अपने जहन में ठरा दिया फिर हमने क्या का अल्लाह से यह का नाम दूं वह यह का इस तरह अल्लाह देखें आप इस बात करते हैं आप इसे मांगते हैं इस रॉथर मुश्तकी हमें सीधा रास्ता दिखा दें उस पर चलने की तौफी कता कर दें तिखा भी दें वो क्या है दिखाने के बाद उस पर चलने की तौफीक भी अदा कर दें उन लोगों का रास्ता जिन पे आपने इनहाम किया ना उन लोगों का रास्ता जो भटक गए या जो गुमरा हो गए तो आप पढ़ेंगे इसकी तफीर निशाला लेकिन सोचे हम यह जो सूरत है हर नमाज में पड़ते हैं हर नमाज के अंदर हम यह तो पड़ते हैं और बल्कि अगर कोई जो भी नमाज पूरी पढ़ ले तो उसके अंदर चार फर्ज होंगे चार सुननते होंगे दो सुननते होंगी 12 तो योग अब यह नमस्त पर यह बगल नमाज होती है नहीं होती है जो मामला तो यह बस तक की मसला नहीं है कि सामने वाला गलत है हम सही है यह मसला है कि सुरे फातिया की एहमियत कितनी है उसके बगल नमाज ही नहीं होती और जिस चीज अगर नमास ही नहीं होती हो हमें समझ ही नहीं आती तो यह एक फरग होता है हमें तरजमें आते होंगे लेकिन तरजमें आपको उस तरह हेल्प नहीं कर सकते हैं तो इंशाला अर्बी जो है ना यह ठीक है और यह दिन के लिए ना हमारे बहुत जरूरी और इसमें पूरा एक मरहल है यह पूरी जिंदगी के साथ एक सलेगी और फिर उसके बाद कमस कम को भी समझ पाएंगे हम दीन को भी अभी क्या होता है कि आपको एक शख्स चाहिए जो पहले हदीस का तरजमा करके आपको बताएगा कि अल्ला के नबी ने क्या कहा था पफूम के लिए उसकी फहम के लिए हमें उलमा की जरूरत है तर्जमे के लिए तो नहीं होती अक्सर जगह अपने आधीस में तो हम उस पर भी डिपेंडेंट होते हैं तो यह कम स्कम independent हो थोड़े से अपने दीन में कि हमें तरजमें कमस कम खुदाने लगें आप देखें हमारे social media पे बहुत लोग आते हैं दीन की बाते करते हैं उनका सारा दीन किसी ने किसी दुसरे बंदे ने तर्जमा करके उन तक पहुंचाया तो वो तर्जमा करने वाले ने अपने हिसाब से तर्जमा किया तो वो उसके हिसाब से जो दीन है वो समझ रहे हैं मैं और दीन के असल क्या अलफास से क लालाकुम ताकिलून हमने कुरान को अरबी में बनाया है क्यूं? लालाकुम ताकिलून ताके तुम समझ सको किसली अरबी में है? ताके हम समझ सकें ठीक है तो यानी जबान में किसली हमारी हमने एक मुबारक किताब आपकी तरफ नाजिल किए क्यों लियतब्बरू आयातिही ताके ये घौर करें इसकी आयातों पे तदब्बर करें इसकी आयातों पे वलियतदक्कर उलुल अलबाब नसीयत हासल करें जो समझदार है समझदार बन्दा नसीयत हासल करें और उसकी आयात पे ये सब तदबुर करें लियत दब्बरू आयाती ताके वो घौरो फिकर करें फेले अमर है यहाँ पर एक होता है कि तुम ये काम करो एक होता है उसको चाहिए कि वो ये काम करें इस तरह से भी एक अमर दिया जाता है तो ये फेले अमर का सीखा है तो बाज आपको आज भी सोधे अरब में उलमा मिलेंगे जिनका ये मौकफ है अरबी के मुतालेक किफाया अगर एक जमाद सीख ले तो वह काफी हो जाती है बाकियों के यानि कुछ ना सीखें कुछ सीख लें जो नहीं सीख रहे हैं उनके लिए काफी है कि कुछ ने सीख लिया है यानि हर वक्त एक माश्यरे के अंदर कुछ एक आदाद होनी चाहिए अफराद की जिनको वह जबान आती हो तो यह फर्जिक केफाया का मतलब है कि फर्जिक केफाया वह एक माशरे के अंदर कम-कम कुछ लोगों ने वह अंजाम दिया वह तो सबसे फर्जियत खत्म हो जाती है व लेकिन सब्सक्राइब जरूर यह वाजब है और इसका मतलब क्या है कि अगर वह अर्बीय जबान सीखे बगएर अल्लाह के पास जाता है और वह यह नहीं था कि वह उसको टाइम यानी उसकी जिंदगी ऐसी गई कि उसके पास वक्त नहीं इदाबन अंजलना हो इलाई का मुबारक लियत दब्बरू आयातिही वलियत अदक्क तो वो जो हकीकी नसियत हासल करना है यह हकीकी तोर पर गौरू फिकर करना है वो तरजमे से थोड़ी होगा वो तो अरबी से ही होगा कुरान के उपर तदबुर करना है कुरान की ताबीर किसी और दवान में कि वो थे एक वक्त में बास सहाबा जो थे वो यहाँ पे थे पुरान सुना तो दिल पे ऐसा असर किया कि वो यहां से उपर सले गया अल्ला ने उनको बुलंद कर दिया मर बिन खताब रजिला उन फर्माते हैं कि अल्ला ने हमारे पास ये किताब नाजिल किये कुरान इसके जरी अल्ला ताला बास को उठा देता है और बास को घिरा देता है तो मुसल्मानों ने कुरान को कुबूल किया पांचवी हिजरी, छटी हिजरी कि बिलाल लगी अलावन पर जुब कर रहे हैं मुश्रीगीन अल्लाह के नभी के साथ अलग-अलग तरह के मामलाएं उंट की वो जो उसका जो गन बला हुआ अल्लाह की नभी के ऊपर जाके डाल दिया इसी सहाबा के यानि सहाबा अगर आएंग बचाने अल्लाह की नभी को उन पर जुल्मों सितम करने लगें उनको टॉर्चर करने लगें एक एनी मुसल्मान ओपरेशन में थे एनी मुसल्मान कमजोर थे और उनको दबा रहे थे मुश्रिगीन मक्का लेकिन फिर एक दिन आया इसी से कोई 15-17 साल बाद कि अल्लाह के नभी दुबारा आते हैं मक्का के अंदर आठ भी हिजरीक में पत्य मक्का के वक्त मक्का के अंदर आते और मुश्रिकीन सारे खड़े में भी क्या फर्माते हैं लाइक उन्हें आप रूला हुआ था कि आज कोई वह पकड़ नहीं है तुम्हारी अल्लाह कोई तुम्हारे पर जो भी तुम लोगों ने किया सब किया तो सब माफ़ा एलावा साथ लोगों के जिसकी तफसील आपको स्कृत की किसाबों में मिलेगी तो कहां से मुसल्मानों को ने क्या मकाम दिया और यही मुश्रिकीन जिनों ने उस कुरान का इंकार किया यह कहा थे यानि अरब के सबसे जो सबसे नोबल जो कुरैश थे यह सबसे नोबल जो अरब थे वो एक कुरैश होते थे तो कि इनके मका के वो खादिम उ जब उन्होंने कुरान का इंकार किया कुरान को छोड़ा क्या लादाला कुरान में फर्माता है वकोरे लदीना कफरू ला तस्माओ लिहादल कुरान कि कुफार कहते हैं ला तस्माओ लिहादल कुरान इस कुरान को ना सुनो वल घव फीही और इसमें न तब ये कुरान पढ़ा जाए तो इसमें शोर करो लाललकुम तगलिबून ताके तुम इस कुरान पर मक्का के शुरू के मराहिल में इनका ये मामला था और आखिर में कौन घालिब हुआ और कौन घालिब नहीं हुआ वो इस कुरान ने बताया कि जिसने इस कुरान को अपनाया उसको अल्लाइने क्या मकाम अता किया तो मामला क्या था सहाबा का ताके इसकी आयतों में ततबुर करें और समर्जदार शक्स जो है वो नसीयत हासिल करें तो जिन समर्जदार शक्सियात ने वो नसीयत हासिल की और कुरान पे गौरो फिकर किया अल्लाह ने उन्हें उठा दिया अल्लाह ने उन्हें बुलंद कर दिया और जिन्नों ने न लेकिन आयात में ना हुमूम है, आयात में ये नहीं कहा कि ये ऐसा करते हैं या ये, उनकी सिफत ब्यान की है, क्या सिफत एक जगह अल्ला ताला फर्माते हैं, यस्माओ आयाति लाही तुत्ला अलेही, ये सुनता है, अल्ला की आयातें इस सुनी नहीं पा रहा कुरान की आयात को इसको बशारत दें दर्द ना गजाब की क्या सिवित्ती सुनता है अल्ला की आयते तिलावत हो रही है फिर जब सुनने के बाद फिरता है अकब्बर करता है तो कुरान उसने सुना उसको ने सुना अल्ला ने कुरान के अंदर के साहित से किस चीज से मना किया सोचे एक फर्स करें बिल फर्स कि हम कुरान यहां कोई पढ़ते हैं हमारे बास और व जन से, बाकसरत जन से इर्सनाब करो, इन्न बाद जन नी इस्म, बाद जन जो हैं गुनाबी बन जाते हैं, वला तजस्ससू, तजसूस की ना करें दुसरे की, इन तजस्सूस में ना पड़ जाओ, वला यखदब बादुकुम बादा, और फिर हम जाकर घीबत कर देते हैं तो क्या हम इस आयत पर fit नहीं है किनी बार कहने का मकसद है कि जब हम अरभी नहीं समझ पा रहे हैं ना तो बहुत सारी आयाज जो कुरेश के मतालिक नाज़िल हुई थी ना उनके कुरान के अरास के मुतालिक वो चाहिए कुली सूरत में नहीं यह नहीं टोटल 100% नहीं 50% 60% वो जो आयत का जो उमूम है ना उमूमी तो उससे बचने के लिए दो चीज़ें और दूसरा यह काफी नहीं लगा यह तो अभी आला हैगा फिर अल्लाह के साथ मुख्लिस होना अल्लाह की कुरान पर कोशिश करना जित्त जहाद करना तक यह नहीं कोशिश करना कि अल्लाह ताला हमारा सीना खोल दे कुरान के हम पहुंच पाएं ना पहुंच पाएं कमस्कम गोल हो कि अल्ला अगर हमसे कल सवाल कर लें कि क्या किया बता सकें कि अल्लाग पोशिश कर रहे थे ठीक है अब वो हो नहीं सका लेकिन कुछ सामने कुछ दे तो सकें अल्लाह को तो शाला अल्लाह ताला से दूआ करते हैं कि अल्लाह ताला हमें सही मानों में दीन को समझने की और दीन को समझने के लिए जो कोई भी उसके लिए फ्रिकर्सर जो भी आलाद जाती है उनको समझने की तौफी का दाखरे और यह सब हम सफर में शुरू कर रहे हैं अरभी का वह दाला इसमें हमें इस आलगी भी समझाने की तौफी का दाखरे और इसको अगले सालों में भी पढ़ने की अल्लाह आलाह तो हमें कुरान समझ भी आए एक और बस आप बात कोँगा ये बात रह गई थी अलगाले का ऐत में फर्माते हैं तब कुरान पढ़ा जाए उसको सुनो यहां ना यहनी आया कि समिहा यस्माओ वते सुनना इस्माओ नहीं आया सुनो इस्तमियो यह जैर अर्बी का एक वह है इंशाला जैसे से अर्बी हम भरते रहेंगे इसमें तो हमें ज्यादा वाज़िर होगा कि इसमें क्या माना ज्यादा पैदा हुआ है लेकिन इस्तमियो का माना होता इस अमल की वज़ाज से तुम पे रहम कर दिया जाए और सफसील भी है कि शायद इसके बसबब तुम पे रहम कर दे रहे है कि जब तुम इस तरह सुनोगे तो कुरान तुमारे वपर असर करेगा और तुम पे अल्लाद आला क्यामत के दिन रहम कर देगा इसकी वज़ास है यह भी एक दलीर है जो और हम अपनी आम जिंदगी में देखें क्या ये यहाँ य कि सामने वाले ने मेरी बात सुन लिये या ये बताएं कि जब मैं आपसे कहता हूँ मेरी बात सुनें तो मेरी क्या मुराद होती है मेरी आवाज अपनी कानों में पढ़ने दें या मेरी बात समझें मेरी बात समझें तो सुनो नहीं और खामोश रहो तो क्या यहाँ सिर्फ कानों में आवास पढ़ने देना मुराद है यहाँ कुरान को समझना भी मुराद है दान को समझना भी मुराद है जब कहा जा रहा है न गौर से सुनो तो गौर से सुनो उसमें जो बात बयान की जा रही है उसको समझो उससे इबरत हासल करो इसकी आयात पर तदब्बर करो इसमें जो निशानिय है उससे नसियत हासल करो ये सारे मामलात यानि बात को घौर से समझे तो बोलते हैं घौर से कि मेरी बात सुनो कुरान सुनो जब पढ़ा जाए उसका क्या मकसद होगा कि सिर्फ आवाज आती रहे या उसको समझा जाए तो अब हर अले मामला हमारे यहाँ थोड़ा असान हो गया, ले लिया गया है, लेकिन यह संजीदा है मामला, मैं कोई साइट नहीं ले रहा कि कौन सा मौकप सही है, अरबी सबान वाजब है नहीं, लेकिन मैं उसका में बता रहा हूँ कि जो वा और अगर कोई शख्स अल्ला के पास जाता है और कभी जिन्दगी में कुरान समझ नहीं सका और उसने खुद भी कोशिश नहीं की समझने के लिए तो बहुत मुम्किन है उसके आँ उसकी अल्ला के आँ कोई पकड़ ना हो जाए इन आयात जरह समझाएं कि मैं एक कुरान पढ़ रहा हूँ और मुझे समझ नहीं आ रहा उसको समझ ही नहीं आएगा इसका मतलब क्या है कि ये एक नई चीज है उसके लिए बाकी बास लोग मैं जानता हूँ उन्होंने जो बताया अपने दोस्तों को कुरान की तिलावत भी मकसूद है, अकेले मकसूद नहीं है, बात तफ़ा शरीयत हमसे चाहती है कि हम कुरान की तिलावत करें, चाहे समझ आये ना आये, तिलावत होती रहे, ये भी एक शरीयत के मकासित में से है, लेकिन तो अल्लाह आलाह से दौग करते हैं कि अल्लाह आल्लाह में अरभी ज़वान सीखने की तौफी का दाव करें और उसके दीन को शरीयत को और अपने आमाल को बेहतर करने की तौफी कता फर्माए तो मिशालाद थोड़ा सा अर्बी के जो कलाम होता है जुमला कहते हैं, कलाम कह लें, मुरकप कह लें, दो तीन अलफास होते हैं, इसके लिए हम इस्तमाल करेंगे, यह जुमला होता है, इसका मकसद क्या होता है, सामने वाले तक अपनी बात बताना, ठीक है, मैं अपनी बात आ और उससे अपना कलाम बनाते हैं तो कलाम क्या होता है कलेमात का मजमूह कलेमात क्या हो सकते हैं कलेमात वह आवाज होती हैं जो हमारे मुझे निकलेंगे जिसका कोई माना होता है अब यह जो है जो कलेमा इसकी तक्सीम करना चाहे ना कि किस तरह के महानियां हम अपनी जबान से अदा करते हैं तो इसकी तीन अक्साम है तो बात कर रहे थे कि अलमात के मजबूह को से कलाम बनता है अब जब भी हम कुछ कलाम हम से अदा होगा तो इस कलाम में ना यह नहीं दो तरह से हम अपनी बात आपके न��युक्त या चलें इससे पहले कलेमात पर बात करते हैं, जो कलेमात हैं जिनकी मजमूह से कलाम बनता है, इसकी तीन अक्साम है, कलेमात की तीन अक्साम बनेंगी हमारे पास आम दौर पर, पहली किसम होती है इसम, दूसरी फेल वो इन तीन से बाहर नहीं होता इसम फेल या हरव इसम वो होते हैं वो कलेमात जिसका कोई माना होता है यानि ऐसा कलेमा जिसके अंदर अपना माना हो माना से मुराद क्या है उसकी दलालत हो किसी मफूम पे दलालत समझते हैं किसी कोई चीज मुराद हो उससे कोई ना कोई चीज मुराद हो उससे जो वो उसका खुद अपने तौर पर बताता हूँ इसमें कहते है न पंखा पंखा ये मैंने कुछ अलफास को जमा किया पा हा, नून, काफ और अलिफ इनको जोड़ के मैंने पंखा बोला या बागे बाद दून फिर काफ के साथ हाँ अलफास को जोड़ा मैंने एक कलेमा बनाया अपना और इस कलेमा ने एक माना दिया क्या मुराद है पंखे से जब मैंने पंखा बोला आपके जहिन में एक ये इस तरह का कोई पंखा आ गया वो जो भी लेकिन एक मफूम आपके जेन में एक माना या एक मुराद मेरी आपके जेन में आ गई जब मैंने बाद बोली तो बोलता हूँ दरवाजा एक मुराद आपके जेन में आ गई तफसीलाच आपको नहीं बता वो मैं लब्स बोलें, इनका अपना एक माना होता है, जिस पे दरालत करते हैं, ठीक है, तो इसम वो कलिमात होते हैं, जिनका अपना एक माना होगा, फेल आते हैं फिर हमारे पास इसके बाद, फेल के अंदर भी मा कि सोने का जो हमल होता है यह क्या होता है यह सोना जो है इसम है तो ना इसम है इससे मुराद क्या आपके जहन में है कि हम बिस्तर पर लेते हुए आखें बंद करके सो गए जो वह फेल हमने वह जो चीज हमारी लेकिन मैं यह आजान नमस्कार टाइम बताएगा आपको नौ बजे होगी जी अ कि जमाद तैयार है भी या नहीं है जिस प्रभान का लोगो