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श्रीमद् भगवत गीता - कर्म योग
Jul 3, 2024
श्रीमद् भगवत गीता - तृतीय अध्याय
कर्म योग
अर्जुन की शंका (श्लोक 1)
अर्जुन उवाच: जायसी चेत कर्मण स्ते, मार जनार्दन तकिम कर्मण घोरे मामयो जसी केशवा
अर्जुन का प्रश्न: यदि बुद्धि सकाम कर्म से श्रेष्ठ है, तो मुझे युद्ध के लिए क्यों प्रेरित कर रहे?
द्वितीय अध्याय: भगवत गीता की रूपरेखा, ओवरव्यू
अर्जुन का भ्रम: युद्ध क्यों, इतने लोग मारे जाएंगे?
कृष्ण का उत्तर और विचार (श्लोक 2-3)
युद्ध धर्म और अधर्म के बीच होता है, कृष्ण शांति दूत बनकर भी गए थे
गांधारी का क्रोध और श्राप
भगवान कृष्ण - श्राप से ऊपर, यदुकुल का नाश उनकी इच्छा से
अर्जुन का सवाल और कन्फ्यूजन - बुद्धि और युद्ध
भगवान कृष्ण का स्पष्टिकरण: कर्म योग
कर्म योग की महत्ता (श्लोक 47-50)
कर्मयोग
का महत्व: फल की इच्छा के बिना कर्म
क्रियाएं चाहिए जो भगवान की कृपा आकर्षित करें
ज्ञान और भक्ति के बीच संबंध
कर्म योग से शुद्धि, अंततः ज्ञान और भक्ति की ओर अग्रसर
अनेकानेक धारणा: ज्ञान योग vs भक्ति योग
ज्ञान योग
- सांख्य योग का हिस्सा
ज्ञान योग
और
भक्ति योग
का भेद: दो रास्ते नहीं, सीढ़ी
भक्तियोग: सरल, आकांक्षाओं को सीधे समर्पित करना
श्रीमद् भागवत से संदर्भ
श्री सुखदेव गोस्वामी और चार कुमारों का अनुभव
निराकार से साकार की ओर
भक्तों की कृपा
निष्पाप अर्जुन का प्रश्न
निष्पाप अर्जुन: ज्ञान प्राप्ति के लिए शुद्धता आवश्यक
ज्ञान योग और भक्ति योग में कितना अंतर?
इंद्रियों का नियंत्रण और कर्म (श्लोक 6-7)
इंद्रियों का सही प्रयोग श्री कृष्ण की सेवा में
मिथ्याचारी कौन? - जो इंद्रियों को वश में नहीं रखता
सही कर्म की व्याख्या
कपट त्यागकर कर्म करना ज़रूरी
घर में कर्म (श्लोक 7-9)
नियत कर्म का महत्व: शरीर निर्वाह के लिए अनिवार्य
कर्म का यज्ञरूप: देवताओं के लिए यज्ञ करने से प्रसन्नता
सहयोग और संपन्नता का महत्व
चौरी और समापन (श्लोक 12)
यज्ञ और इंद्रियों की संतुष्टि
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा
: देवताओं के प्रसन्न होने पर सब कुछ मिलता है
बिना अर्पण के भोगना = चोरी
सर्वस्व - भगवान की संपत्ति
निष्कर्ष
कर्म योग का महत्व: सही दिशा में कर्म, फल की इच्छा के बिना
ईश्वर अर्पण से कर्म करने का सही तरीका
भक्ति योग सबसे सरल और प्रभावी तरीका है
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