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क्लासिकल थिअरी और रोजगार विचार

May 7, 2025

क्लासिकल थिअरी ऑफ इंकम एंड इंप्लॉयमेंट

परिचय

  • वीडियो दो भागों में है। यह पहला भाग है।
  • क्लासिकल इकोनॉमिक्स को इंकम और इंप्लॉयमेंट की थ्योरी का श्रेय जाता है।
  • क्लासिकल इकोनॉमिक्स में मार्केट की फ्रीडम और फ्लेक्सिबिलिटी पर जोर दिया जाता है।

प्रमुख विचार

  • क्लासिकल थेओरी के अनुसार मार्केट स्वयं को समायोजित करेगा और फुल इंप्लॉयमेंट की स्थिति बनी रहेगी।
  • अनइंप्लॉयमेंट के कुछ स्तर अस्थायी होते हैं और स्वतः ही खत्म हो जाते हैं।
  • यदि फ्री मार्केट में इंटरफेयर किया गया (जैसे मिनिमम वेज द्वारा), तो अनइंप्लॉयमेंट बढ़ सकता है।
  • वॉलेंट्री अनइंप्लॉयमेंट हो सकता है, लेकिन मार्केट में काम उपलब्ध है।

क्लासिकल इकोनॉमिक्स की धारणा

  • फुल इंप्लॉयमेंट की स्थिति बिना इन्फ्लेशन के संभव है।
  • मार्केट में परफेक्ट कॉम्पिटिशन होगा।
  • इंटरनेशनल ट्रेड नहीं होगा, और गवर्नमेंट की इंटरफेरेंस नहीं होगी।
  • मनी का उपयोग केवल एक्सचेंज के लिए होगा।

मार्केट इक्विलिब्रियम

  • सप्लाई अपनी डिमांड क्रिएट करती है।
  • लेबर मार्केट इक्विलिब्रियम खोजने के लिए मार्जिनल प्रोडक्ट ऑफ लेबर और रियल वेज के बीच संबंध देखें।
  • रियल वेज का स्तर मार्जिनल प्रोडक्ट ऑफ लेबर के बराबर होता है।

फुल इंप्लॉयमेंट की स्थिति

  • क्लासिकल थ्योरी के अनुसार, प्राइस और वेज फ्लेक्सिबल होनी चाहिए।
  • वेज कटौती से प्रोडक्शन कॉस्ट कम होगी, जिससे प्राइस कम होंगे और डिमांड बढ़ेगी।
  • बढ़ती डिमांड से प्रोडक्शन बढ़ेगा और अधिक लेबर की आवश्यकता होगी, जिससे अनइंप्लॉयमेंट कम होगा।

निष्कर्ष

  • क्लासिकल इकोनॉमिक्स के अनुसार, मार्केट की फ्लेक्सिबिलिटी इम्प्लॉयमेंट को फुल लेवल पर रख सकती है।
  • प्राइस और वेज फ्लेक्सिबिलिटी से मार्केट इक्विलिब्रियम बनाए रखा जा सकता है।