Transcript for:
पिता और बेटी के रिश्ते की कहानी

प्रश्न ये फिल्म एक ऐसे साहितिकार को समर्पित है, जिसने माता के प्रेम के साथ पिता के दाइतों को भी बहुत ही खुबसूर्थी के साथ में आपके सामने प्रस्तुत किया है। उसने ये बताने की कोशिश की है कि यदि माता आपके लिए जलमिलाता हुआ आस्मान है तो पिता आपको गंगोर छाया देने वाला एक वट प्रिक्ष है। मैजून का महीना था सारी रात मुझे नीन नहीं आई ये सोचकर कि सुभा होते ही मैं अपना घर छोड़ दूँगी क्योंकि मैं अपने आप से, अपनी जंदगी से, और सबसे ज्यादा अपने पिताजी से परिशान थी। जब इंजीनियरिंग की पढ़ाए करानी नहीं थी, तो क्यों कहते थे, मेरी बीती इंजीनियर बनेगी, इंजीनियर। साहब क्या बात है पुरिम प्रकाश साहब पानी क्या बात है बहुत खुश नज़र आ रहे हो और ये मिठाई किस खुशी में साहब वो बिट्टिया ने स्कूल में टाप किया है साहब अरे वाह ये तो बहुत खुशी की बात है हम अपनी बिट्टिया को इस बार इंजिनियर बनायेगे और कुछ भी तुम्हें आवश्यक्ता लगे बस साहब आप लोगों कृपा बनी रहे हैं अरे क्या खाक इंजीनियर बनेगी एक लैप्टॉप तो दिला नहीं सकते थे और चले थे इंजीनियर बनाने इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराना और उसके खर्चों को मिंटेन करना क्या कोई आसान बात थी घर में एक मा भी थी, जिसकी बात पिताजी कभी सुनते थे और कभी नहीं भी सुनते थे। वो बिन्नो की बिट्या की शादी में अगर कुछ अच्छा सा देखती तो... बास, तुम हमारे सामने अपनी रोजदुनेनी बाते ना रखा करो, हमने जितना कह दिया वही काफी है कोई वैल्यू नहीं थी उनकी, अब सुभा हो चुकी थी मैं पिताजी के घर से दफ़तर जाने का इंतजा काफी धेर इंतजार करने के बाद जब पिताजी घर से नहीं गए तो मैं ही बिना बताए घर से निकल गई और चल्दबाजी में अपनी चप्पल की बजाए पिताजी की चप्पल पहन ली थी और तो और आज मैंने वो काम भी किया था जिसके जिन्दगी में कभी कल्पना तक नहीं की थी पिताजी की टंगी होही पैंट से उनका पर्स निकाल लिया था मैंने ये देखने के लिए कि देखें ज़रा आखिर कितना बैंक बैलेंस अपनी लिए जमा करके रखा है हैराल मुझे ये सोचकर जो कहीं के नहीं रहते वो कहां जाते हैं अजय को अ ना न अभी मैं घर से स्टेशन के लिए कुछ तूर चली ही थी, कि अचानक से मेरी नजर घड़ी पर गई। उस वक्त आठ बचकर पैतालिस मिनट हुए थे, और इस वक्त दिल्ली के लिए तो कोई ट्रेन थी ही नहीं। यही सोचते हुए मैंने अपना रास्ता रेल्वे स्टेशन से बस स्टैंड की ओर बदला ही था कि अचानक से मेरे पाओं में कुछ गीला सा महसूस हुआ मैंने नीचे जुख कर देखा तो सड़क के किनारे का गंदा पानी मेरे चपल के अंदर से मेरे तलवों को भिगो गया था मैंने उसको नजर अंदास करते हुए अपने पिताजी का पर्स बैक से निकाला जब पर्स खोल कर देखा तो पर्स जिस अंदर से फटा हुआ था, जिसमें एक सौ रुपे का नोट और एक पचास रुपे के नोट के अलावा दो तीन सिक्के और कुछ मुड़ी हुई परचियां रखी थी, मैंने उसमें से पहली परची निकाली और पढ़ी उसमें लिखा था पागी के कंप्यूटर साइंस की किताबे पच्चीस हजार रुपए, घड़ी अठाईस सौ रुपए और जूते सूला सौ। अब बस स्टेंड। ज्यादा दूर नहीं था, मैं पहुँचने ही वाली थी कि अचानक से मेरे बाएं पाउं के अंगूठे में कुछ केल जैसा चुबा ए, दर्से भाग की आईए ये भी घर से भागी थी ये देख मेरे कपड़े मेरी गुडिया मैंने भी अपने पापा को दोका दे कैसे ही भागी थी मर गए मेरे पापा मर गए आज मैंने कई बार मा को पिताजी से उनकी शुगर चक करवाने के लिए कहते हुए सुना था जिसे हमेशा पिताजी कुछ भी बूल कर हस के डाल दिया करते थे शांती हम दत्तर जा रहे हैं अच्छा सुनो वो लोटते समय अपनी शुगर की जाज करा ले न शांती अगर हमने अपने शुगर की जाज करवा ली न तो सरकार जो है न हमारे अंदर चीड़ी मिल खोल देगी अब मेरे पाउं की तकलीफ और बढ़ती जा रही थी। मैंने सामने देखा, तो सड़क की किनारे एक तूटी हुई बेंच पड़ी थी। मैं उस पर जाकर बैठ गई। और सर उठाकर देखा, तो एक तूटा सा छप्पर पड़ा था। ये शायद किसी धोबी की दुकान थी। जब मैंने पाउं से चप्पल को निकाला, तो देखा मेरे बाई पाउं का अंगूठा खून से बुरी दरह से सना हुआ था। और मेरे अंगूठे का खून चप्पल में भी भरा हुआ था। अब मैंने अपनी दर्द की परवाह किये बिना पर्स से दूसरी पर्ची निकाली और पढ़ी जिस पर लिखा था अरे अब तो अपने लिए नए जुते ले लो कब तक वही फटे पुराने चप्पल पहन के घूंगे रहोगे अरे अब तो अपने लिए नए जूते ले लो कब तक वही फटे पुरानी चप्पल पहन के रहोगे ये परची माने पिताजी के लिए लिखी थी मेरे पाओं में बेतहाशा दर्ध हो रहा था मैंने अपने दर्ध की परवाह किये बिना बर्स से दीसरी बर्चे निकाली और बढ़ी पाखी के लेप्टॉप के लिए बैंक में पेशिगी की रखम जमा कराने के लिए स्कूटर छे हजार रुपा में बेचने की बात थे शुकरवार को पाखी को उसका नए लेप्टॉप मिल जाएगा जिसके लिए वो छे महिने से परिशान थे ये परची पढ़ते ही मेरे आखों से आशु बह रहे थे अब मैंने अपने पाउं के तकलीफ की परवा किये बिना मैं सीधा उस दुकान की ओर भागी जहां पिताजी अकसर अपना स्कूटर बनवाने जाया करते थे आज अरे अब तो अपने लिए नए जूते लेलो कब तक वही फटी परानी चपपल पहनते रहोगे हमारी ये चपपल तो अभी छे महने और चल जाएगी पाखी के जूते देखो कितने खराब हो गए कितने खराब हो गए चलते हैं जब भी मा पिताजी की तरफ दूद का ग्लास बढ़ाती, पिताजी ये बोल कर मना कर देते कि दूद मुझे अच्छा नहीं लगता, पाखे को दे दो। पिताजी को सामने खड़ा देख, मैं भाग कर उनके पास गई, और उनके हाथ को पकड़ कर बेतहाशा रोने लगी। पापा नहीं चाहिए मुझे लापटॉक, नहीं चाहिए मुझे गड़ी पापा, मुझे जूती भी नहीं चाहिए, पापा प्लीज, आप ये स्कूटर बखते चुब। उस दिन मैंने जिन्दगी में पहली पार उस पत्थर दिल इंसान को पिघलते हुए देखा था। पिताजी की आखों में आँसू भरे हुए थे। मैंने उनका हाथ पकड़ा, स्कूटर पर बिठाया और हम घर की ओर रवाना हो गए। उस दिन जिन्दगी में पहली बार मुझे इस बात का एहजास हुआ कि एक पिता क्या होता है और क्या होती है उसकी हैमियत उसके बाद मैंने अपने मन में ठान लिया था कि मैं अपनी मेहनत से अपनी जिन्दगी में पिताजी को कुछ ऐसा करके दिखाऊंगी गर्व से उंचा हो सके क्योंकि मुझे अपने पिता की सपनों को साकार करना था उन्हें एक बड़ा ओफिसर बनके दिखाना था अच्छा जा रहे हो जी पापा रुको ये लो धूद पीते जाओ चलो जाओ तुम्हें लेट हो रहा है पापा मैं जानती हूँ कभी-कभी जिम्मिदारियां आदत बन जाती हैं अब कुछ जिम्मिदारियां अपने इस बेटी को भी लेने दीजिए ये लो हाँ मैं तो भूली गया था कि हमारी बिट्या राणी बड़ी कप्तान बन गई है एक अनाद बच्चे को गोद लेकर तुमने उसकी जिन्दिगी बना दी भगवान हमेशा तुम्हारा साथ देगा बेटा और आज आपका जन्दिन है ये तो आप भूली गये होंगे अरे हाँ मैं भी भूल गई थी ये बागी बिट्या ये क्या है तुम भी ना, कुछ भी अरे, जूते, शान्ती, ये, देखो बेटा, ये तो बड़े किमती होंगे ना आपसे ज़्यादा नहीं बापा मेरा बच्चा अच्छा, लो, मैं, मैं पहनता हूँ शान्ती, ये, देखो अरे बेटा हैपी बार्थे माई हीरो