Transcript for:
Principles of Yoga and Mahavrat

जो हुआ सो हुआ था वीरवार को गांव एवं शांति भाई जी हां यह न प्रचोदयात् आइस ओम ओम ओम ओम जय हो ओम ओम जय हो ओम ओम ओम [संगीत] 159 कि प्रश्नोपनिषद् में तृतीय प्रश्न चल रहा है में प्राण अपान व्यान उदान समान इन पांचों प्राणों की चर्चा में के अंतिम प्रांत यहां पर उद्यान को ले करके चर्चा हो रही थी कल अचानक मेरा लैपटॉप कल बंद हो गया था इसलिए यह रह गई बात एक स्लॉट संख्या है साथ उससे पहले एक प्रश्न आया हुआ है मैं उसका समाधान कर देता हूं एक प्रश्न है कर दो में देश-काल समय से रहित किए जाने वाले अनुष्ठान से क्या अभिप्राय है कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न है आज भी देश ताल समय से रहित किए जाने वाले अनुष्ठान से क्या अभिप्राय है तो देखिए का योग में 25 व्रत बताएं कि उनको महाव्रत शब्द से बोला है है अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह कि इन पांच युवकों को महाव्रत कहां है इस व्रत का पालन करते ना आप लोग कि एकादशी व्रत कथा अमावस्या के दिन या पता ने सोमवार का व्रत इस तरह के जो व्रत करते हैं आप लोग अ कि कोई शिवरात्रि के दिन वास्तव में उनको व्रत कहते ही नहीं का व्रत शब्द का जो प्रयोग है वह बहुत महत्वपूर्ण है इस व्रत का उद्देश्य होता है लक्ष्य की पूर्ति भी है तो योग में अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांच को महान व्रत बताया है और इनका पालन जो है अनिवार्य रूप से संन्यासी हो मैं वन परस्ती हो गृहस्थी हो ब्रह्मचार्य कि चारों आश्रमों चारों वर्णों को पूर्ण रुप से करना इसमें कोई विकल्प नहीं दिया है मैं इसमें कोई विकल्प नहीं है याद रखना है कि इस विकल्प को रोकने के लिए महर्षि पतंजलि ने चार शब्दों का प्रयोग किया है आ जाती में पेश कान और समय यह प्रश्न करता है नहीं जाती शब्द को नहीं लिखा है है लेकिन महर्षि पतंजलि ने चार बातें लिखिए जाति देश काल और समय कि इन चारों में एक व्यक्ति में बंधे रहता है मैं अपने आप को बांध लेता है जाति के साथ बांध लेता है देश के साथ बांध लेता है अपने आपको काल के साथ और समय के साथ अपने आप को बांधता है आ जाती के साथ बांधने का यह है कि अपने विरादरी का कोई है तो उसके साथ वह के साथ देता है उसकी कितनी गलती हो जो पति हो या पत्नी हो चल बेटा हो या बेटी हो कि चाहे वह अपने समधी समधिनिया हो या कोई भी उसके निकट के रिश्तेदार हो अथवा अपनी बिरादरी का विरादरी समझते होंगे अच्छी तरह विरादरी के तो अच्छी तरह समझते हैं आप लोग अ थे मै अक्सर हंसी में बोल देता हूं नाम के अंत में एक पूछ लगाकर चलता है व्यक्ति उसको पूछ बोल देता हूं उसके चिप के साथ चिपका रहता है व्यक्ति किसी को बुरा लगे तो बुरा मत मानिए है और उसी के साथ व्यक्तिगत अपने आपको यह मानता है कि मैं यह जो भी नाम के अंदर में रखते ना जो भी आप लोग रखते हैं कि उसका बहुत बड़ा महत्व समझता है इसके अपने आप को हाउ टो उस विरादरी का कोई भी होता है उसके साथ देता है उसी का अपने जाति का मांगता है अपनी बिरादरी का मांगता है वह कितने गलत वह कितना गलत हो उसको साथ देता है इस प्रजाति का मतलब यह है और इसको व्यापक करूं तो पशु जाति पक्षी जाती ऐसे अलग-अलग मनुष्य योनि है जो है उनके साथ भी अपने आप को जोड़ सकते देखो जी मैं अपने बेटे को थोड़ा मारूंगा अपने परिवार वालों को नहीं मार सकता अपने संबंधियों को नहीं मार सकता अपने विरादरी वालों को नहीं मार सकते लेकिन कोई दूसरा कोई हो गए ना दूसरे विरादरी उसको तो मार डाल सकता मार सकता हूं मैं यह जाति से बंधा हुआ व्यक्ति अथवा देखो मैं किसी आदमी को नहीं मारूंगा आ लेकिन ना को मार दूंगा बकरी को भीड़ को या मुर्गा को मुर्गी को जुड़ी मछली को किसी को भी मार दूंगा लेकिन आदमी को नहीं मारूंगा यह जाति से संबंधित है मैं इंसाफ करूंगा लेकिन हर किसी के साथ नहीं है तो वह जाति से बंधा वर ऐसा व्यक्ति फोन पर कि शास्त्रीय कहता है महर्षि पतंजलि कहते हैं यह भी लक्ष्य को पूरा करना है लक्ष्य को प्राप्त करना है आप किसी भी जाति के साथ बंद करके नहीं चल सकते थे आप सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना है इसका नाम है जाती हैं इस देश का होता है स्थान इस स्थान का मतलब है देखो जी मैं मंदिर में खड़ा हूं यार झूठ नहीं बोलता मैं कि यहां कोई गलत हिंसा नहीं करूंगा यह मारपीट नहीं कर मारपीट है या नहीं करेंगे मंदिर में खड़ा हूं तो याद रखना बाबा ऐसे इस करता है अपने इस स्थान है मंदिर में बैठा है मंदिर में खड़ा है आप हाथ जोड़ता है आंख बंद करता है और जो भी करता है मंदिर में तो मंदिर मूर्ति वाला मंदिर हो यह विशाल मंदिर हो या कोई भी मंदिर है मंदिर में खड़ा है वह व्यक्ति वहां गलत काम नहीं करता यह द्विवेदी में बैठा है वही मंदिर है उसके लिए तो स्थान विशेष में अपने आपको बांधने गलत काम नहीं करना चाहता हूं है और उस स्थान से बाहर निकलेगा तो फिर कुछ भी कर सकता है वह मैं कुछ भी कर सकता है यह स्थान से बंद करके व्यक्ति जिला है इस प्रजाति देश और काल का अर्थ होता है हैं तीखी दिन भेजो कि आज एकादशी का व्रत है आज मैं गलत काम नहीं कर सकता था सोमवार का है मैं आज गलत नहीं करता आज गुरू पूर्णिमा यह मैं गलत नहीं कर सकता किसी ना किसी की तिथि दिन मैं उस दिन वह गलत काम नहीं करता के बाकी दिनों में गलत कर सकता है है इसको कहते हैं कॉल आ कि चौथा है समय है वैसे व्यवहार में काल और समय एक होता पर यह समय शब्द का अर्थ अलग है समय कहते हैं इस परिस्थिति नीचे अ एक व्यक्ति विशेष अ ये देखो बड़े लोग है ना बड़े लोगों के साथ मैं गलत नहीं कर सकता कि गुरु के साथ गलत नहीं कर सकता माता-पिता बड़े हैं उनके साथ गलत नहीं कर सकता कि जो बड़े-बड़े लोग होते हैं उनके साथ नहीं कर सकता मैं बाकी किसी के साथ कुछ भी कर सकता हूं कि यह परिस्थिति विशेष यानि व्यक्ति के समय का अर्थ है व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखते हुए वह गलत नहीं करता बाकी किसी के साथ गलत कर सकता है तो मेहंदी पतंजलि कहना चाहते हैं वह इंसान हो तो वह झूठ हो तो वह चोरी हो जो है वह विचार हो क्या वह संग्रह करना हो यह पांचों है न जाति के साथ आप बांध के चल सकते हैं न स्थान के साथ बांधकर चल सकते हैं ना दिनों को ध्यान में रखकर कुचल सकते हैं ना व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर के साथ के साथ पालन करना है किसी के साथ इंसाफ नहीं कर सकते हैं वो किसी भी जाती क्या जाति की हिंसा नहीं कर सकते किसी ही स्थान में आप इंसान नहीं कर सकते इस आपके साथ हैं आप सबके साथ का मतलब है कि वह इंसान हो तो वो झूठ हो चाहे वह विचार हो चाय चोरी हो रहे हो कहीं पर भी नहीं कर सकते के साथ गांव के साथ के साथ व्यक्ति विशेष के साथ मैं किसी से ना बंद करके सबके साथ एक जैसा व्यवहार करते हुए पीएम का पालन व्यक्ति करता है तो उसको महाव्रत कहा और सार्वभौमता महाव्रत का हिस्सा यानी यूनिवर्सल प्रकार से पूरी धरती पर कहीं भी जाओ इसमें कोई विकल्प नहीं है सबको अहिंसा का पालन करना वह 100% की शक्ति का पालन करना 100% ब्रह्मचर्य का पालन करना तो प्रतिशत एक हफ्ते का पालन 100% अपरिग्रह का पालन सो प्रदेश जब ऐसा कोई व्यक्ति करता है इस महाव्रत का पालन करता है वह मुक्ति को प्राप्त करता है यह योग कैसा है तो प्रश्नकर्ता का जो प्रश्न था है तो यही है में देश-काल समय से परे होकर के क्या है वह अनुष्ठान जिसको किया जाता है तो यह अनुष्ठान है जो अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांचों का अनुष्ठान इन चार चीजों से बंद करके नहीं किया जाता है इन से प्रयोग करके सबके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता है और जिस दिन हम ऐसा करेंगे उस दिन समझ लेना हमारा रास्ता बिल्कुल साफ हो जाएगा हमारा द्वार खुल जाएगा हमारा नया जो है पार हो जाएगा कि इसका अभिप्राय तो हम आगे बढ़ते हैं क्लास की ओर हांजी आ हां जी बिल्कुल आप थे पावर यह पुरुष और प्रख्यात से निकले हैं हां जी और बहुत कि तो देखते हैं लेकिन स्वामी जी और आकाश और कार हितों पर व्यवस्था मैंने तो रहता है तो इसे इतने क्यों नहीं कहते हैं मैं आकाश और में अवश्य और कॉल अक्षर ऐसा है आकाश शिकार होता है दो आकाश-2 प्रकार एक पंच महा भूतों में जो एक आकाश है पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश वह प्रकृति से बना हुआ आकाश है अच्छा ठीक है ना यह तन्मात्राओं में जो शब्द तन्मात्रा है उससे आकाश बनता है कि वह उसका रॉ मेटेरियल है है और दूसरा जो आकाश है वह कोई वस्तु नहीं है वह वस्तु का अभाव है कि वह अभाव अवकात है वह वस्तु नहीं है कि एक बात और काल जो है यह व्यवहारिक धर्म है ऐसा कोई वस्तु ऐसी कोई वस्तु नहीं है यह समझने के लिए है वह इसको कहते हैं व्यवहारिक इधर भी अ हैं जी इसलिए तीन पड़ा है और किस में इस समय या फिर की जिद तवा बिलकुल वस्तु नहीं जी वह वस्तु का अभाव वस्तुओं के अभाव को ही अवकाश कहते हैं मतलब खाली स्थान कि वह का निशान है तो हमारे सामने आप यह खाली स्थान वैसा खाली स्थान नहीं है यह हमें जगा देता है जैसे आप मैं मेरा आप देखेंगे आज ऐसा करूंगा तो हाथ को आगे बढ़ाने के लिए स्पेस देता है उसकी अबे हट जाते हैं सूख समझ जाते हैं मेरा हाथ आगे आगे जाता है तो यह भी एक आकाश है है कि वह तो पानी होता है उल्टा उसमें हम कुछ नहीं कर सकते हम कार्य प्रमाण में कुछ कर सकते उस अवकाश भत्ता व अश्लीलता व हमारे काम का नहीं है कि हमारा काम हमारे काम का हमारे सुख के लिए यह पंचमहाभूतों वाला आकाश है जो हमारे काम का है वह तो अवकाश है वह तो कुछ भी नहीं वस्तु नहीं है ना उसका एक्जिस्टेंस ही नहीं है जी जी जी हां जी अजय को अच्छा ठीक है आ तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं इस प्रसंग चल रहा है प्राण अपान व्यान उदान समान इन पांच प्रांतों में से चार प्राणों की चर्चा ने कल की है पांचवां प्राण यहां पर उद्यान को ले करके बोला जा रहा है अ थक गया उद्यान हक कि तुम यही ना उन हमलों कम नदी पार पीना पापम् शुभकामनाएं एवं मनुष्य का यह श्लोक 7 वा वा वो कहते हैं अ था अब चार प्रांतों के बाद में पांचवें प्राण को ले करके बोला जा रहा है एक नया एक नाड़ी से जो पीछे बताया था कि हृदय में सोना आइडिया जुड़ी हुई है पुरुषों के एक के साथ मैं क्या बोला था और फिर उसे एक के साथ सौंफ है फिर उस अ उस 100 में मैसेज भी फिर एक कि साथ 72 72000 नाड़ियां तो जो हृदय के साथ में जो सोनानिया जुड़ी हुई हैं उनमें से एक नाचेगी गया एक नाड़ी से उर्दू हम ऊपर की ओर पुराना उद्यान नामक प्रांत जाता है कि उद्यान नामक प्राणी जो है ना उर्दू का मतलब ऊपर की ओर कोई भी चीज है शहर के अंदर होती है उसको ऊपर की ओर लाना हो है तो यह उडान का गाना है तो आत्मा को भी जब आत्मा पूर्वक नमन करता है अर्थात मुक्ति की ओर जाता है अथवा स्वर्ग लोक में जाता है यानी बहुत अच्छे अश्लील धारण करने के लिए जाता है तो उद्योग मन करता है यानी ऊपर की ओर से निकलता है तो उसके लिए भी यह प्राण रहे उद्यान नामक प्राणी जो है वह काम आता है वहां पर जब उनके कामों की चर्चा करूंगा तब उस पर और विशिष्ट बता दूंगा तो यह लुधियाना यह ऊपर की ओर उठता है यहां पर करता क्या है आत्मा को ऊपर की ओर ले जाता है यदि है पुण्य कर्म करता है तो पुण्य हिना पुण्य लो कम नहीं थी यदि कोई आत्मा पुण्य कर्म करता है बहुत अच्छे कर्म करता है उत्कृष्ठ श्रेष्ठ कर्म करता है और तू कहां जाएगा तो कहा उद्धम वह ऊपर को आत्म ऊपर से बाहर निकलता है शरीर के किसी भी अंग से कहीं से भी निकलेगा ऊपर की ओर से निकलता है जिसका ब्रह्मरंध्र बोलते हैं तो खुर्द व क्योंकि यह उन्नति का द्योतक है कि अधोगति कहती नीचे की ओर जाना यह भी एक प्रतीक चिह्न का सिंबल है तो नीचे की ओर जब किसी चीज को लाते हैं उसको अधोगति गए थे और उद्धव गति गए थे तो ऊपर की ओर जाए तो उर्दू भगवती जो है यह उन्नति का प्रतीक है और अधोगति जो है अवनति का प्रतीक चिन्ह सिंबल ओं है तो यह कहा जा रहा है उद्यान नामक प्राणी जो है जब कोई व्यक्ति पुण्य कर्म करता है अच्छे श्रेष्ठ कर्म करता है तो पुण्य पुण्य कर्मों के कारण से पुन हम लोग हमने थी यह उदय नामक प्राणी जो है ना उसको पुण्य लोक में ले जाता है और फिर कहा पीना पापम् जी हां कोई बहुत ज्यादा पाप करता है निकृष्ट ऐसे पाप करता है बस जिन्होंने कर्म जिसको आप कहते हैं है जिसकी निंदा सभी लोग करते हैं और हां मेरी बात समझना और सभी लोग का मतलब है साफ करने वाले भी निंदा करते समय जंप कर रहे हैं लेकिन वह भी निंदा करेंगे क्योंकि उनसे अधिक पाते हो कि आप मेरी ओर देखेंगे आधुनिक इतना चालक होता है अब मेरी और देखेंगे थोड़ा आपको अ समझ में नहीं किसी को यह आदमी चुनाव घूस ले रहा है मैं तो इतना नहीं लेता मैं तो बहुत थोड़ा लेता हूं तो बहुत ज्यादा घूस लेता है यह तो अरबों रूपयों को घिस लिया इसमें करोड़ों के लिए इसमें है तो लाखों में ले रहा है मैं तो हजारों मिलेगा तो कि यह तो हजारों में ले रहा है तो सैकड़ों में लेता हूं कि गलत आदमी जो तुलना करते हैं जब अपनी अ है ऐसे आदमी से तुलना करता बस पूछिए मत कूड़े-कचरे के अ कि बेकार लोगों से अपनी फिर उसको तुलना करना भी नहीं आता आदमी को है तो मैं यहां पर कहा जा रहा है जब पाप व्यक्ति करता है इसे पाप करता है जो भी इन्होंने पास है है जिसकी उम्र 10 सभी लोग करते हैं भले वह बात करने वाले हैं है लेकिन वह बहुत अधिक पार्ट है एक से अधिक पाप करने वाला जो व्यक्ति पाप करता है तो ऐसे पापी आत्मा को युगधर्म नामक प्रांत कहां जाता है तो कहा पापा हम लोग कम नए यही वह कि पाप लोगों को नरक को ले जाता है यह बताना प्राण है अब आपकी बात करता हूं वह व्यायाम एवं मनुष्य लोकम है और दोनों प्रकार के कर्म करते ना कि दोनों प्रकार दोनों प्रकार के कर्म समझते हैं आप लोग आप मेरी और देखिए एक बार देखिए क्या करता आदमी अच्छा कर्म करता जाता है 13 से खाता है टिकते देखता है सब कम ठीक-ठाक करता है और जब कोई नहीं देख रहा होगा ना जब अवसर मिलता है अवसरवादी तब गलत करता है तू मेरी बात समझ रहे हैं आप लोग अ ये सब ठीक-ठाक चलता आदमी नॉर्मल आदमी का साधारण आदमी ठीक-ठाक चलता है उसको मां देख रही है पिता देख रहा है गुरु देख रहा है भाई देख रहा है पति देख रहा है यह पत्नी देख रही यह सब देख रहे हैं सब की आंखें लगी उसके प्रति बिल्कुल ठीक चलता रहता है एक अजनबी कोई नहीं देख रहा होता है ना जैसे अवसर आता है कि को नजरअंदाज जैसे हो जाए बस वही कर डालता है पापा आप तो अच्छे कर्म भी करता है और कभी-कभी बीच-बीच में पाप करता है इसलिए अब हम दोनों प्रकार के कारण जो लोग करते हैं पाप और पुण्य तो कहते हैं मनुष्य लोग हम मनुष्य लोक को प्राप्त करवाता है कौन योगदान नामक प्रांत मैं यहां इस स्लॉट में यह बात पूरी हो गई थी कि अब चलते हैं यह 500 प्राणों की चर्चा करते हैं कि प्राण अपान व्यान उदान समान का योग में कि महर्षि पतंजलि ने को एक-सूत्र बनाया उद्यान नामक प्राण को लेकर अ कि उद्यान नामक प्राणी को लेकर कि उन्होंने उदाहरण दिया उक्त जल पंख कंठ के अधीश्वर संयुक्त क्रांति स्टॉप ऐसे सूत्र बनाया है है तो है उसी उद्यान नामक प्राणी को लेकर के महर्षि कि हमें व्यास में उद्यान को समझाने के लिए बाकी प्राणों को भी समझा दिया है तो प्राण सबसे पहला है और प्रमुख है मुख्य है उसके लिए महर्षि वेदव्यास क्या कहते हैं प्राण को ले करके कहते हैं कि प्राणाह मुख नासिका मुख नासिका गति आर व्यक्ति कि यह जो प्रश्न होता है यह मुख में रहता है है कि जो हमारे मुंह है इस मुर्गी अंदर प्राण रहता है नासिका में भी रहता है विशेष रूप से नासिका में तो रह गई है और मुख और नासिका से लेकर के आवृत्ति एनरिषेद तक यह काम करता रहता है मुख नासिका से लेकर के निर्देशक काम करता है है और मुख्य मतलब पूरा मुख पूरा शरीर चेहरा धो लें का या तो कानों में आंखों में नाक में तो है यह है और जो जीव आधी है जो आप हमारे मुख जान से वाणी निकलती है तो पूरे अंदर मुख्य अंदर भी और बाहर भी मस्तिष्क में भी आंखों में भी कानों में भी सब जगह पूरे चेहरे पर आप समझ लीजिए प्राण प्रकार है इन सब जगह पर प्राण काम करता है है और विशेष रूप से नाक में तो चलिए रहा है उसका तो नाक से लेकर के आर ह्रदय वृद्धि देर तक जाम रहा ठे वांट तक इसका कार्य कि प्रियंका को हैं और पुराणों में यानी पांच प्रांतों में यह मुख्य प्राण अकेला आता है और तू कहां जा रहा है मुख्य नायिका कि गति था वृद्ध व्यक्ति मुख नासिका से लेकर के हृदय तक इसका कार्य रहता है कि क्या का रहता है देखिए एक आया मुझको भी ठीक रखना है मुखमंडल को भी ठीक रखना है चेहरे को अच्छा रखना है कानून को भी ठीक रखना है आंखों को भी ठीक रखना है मस्तिष्क ठीक रखना है कुछ ना कुछ भी ठीक रखना है और जो सांस हम लेते हैं उसको ले जाना है है ऐसे बहुत सारे काम है उसके हृदय को भी ठीक रखना है इन सब में इस मुख्य प्रबंधक असहयोग है मैं केवल यही प्रांत पिछले रखता है यह मैंने कहना चाह रहा हूं इन सबके ठीक रखने में प्राण का भी एक महत्तवपूर्ण संयोग है कि यह प्राण का कार्य ा श्री राम के बाद में कि सलमान की बात कहिए महर्षि वेदव्यास में तो उन्होंने कसम नए थी को समन नया नात संभावना है ए सनम नहीं तमाम को सम्मानित ले कहते हैं सब हमने जो भी हम मुख के अंदर कि खाद्य पदार्थ पेय पदार्थ जो भी अंदर डालते हैं उनको ठीक प्रकार से ले जाना है है और ठीक प्रकार से ले जा करके यह ना भी तक पहुंचा देता है के मुख से लेकर के नामी तक पहुंचाने का मतलब पेट तक पहुंचा देता है कि जहां-जहां कि यह अन्य कि पान जो भी हम अंदर ग्रहण करते हैं जिस फैक्ट्री में ले जाना है उसको है जिसे एक रीत है है लीवर है किडनी हैं जो पेंक्रियाज अजुन इसको ले जाना है और छोटी आंत बड़ी आंत सब में ले जाना सब जगह इनको इनका काम है हैं इनका जो तत्व बनेंगे रक्त राधे जो भी बनेंगे उन सबको समान रूप से समझा ले जाने का में सनम यह थी कि समाना समान रूप से वर्णित जूस को जहां-जहां ले जाना इस फैक्ट्री में ले जाना वहां ले जाने का काम इस सम्मान का काम है बहुत महत्वपूर्ण का में कि जब हम खाते पीते हैं उसको खींच प्रकार से ना ले जाए लीवर को जो देना है किडनी को जोड़ देना है पेंक्रियाज को जोड़ देना है छुट्टियां को को ठीक प्रकार से नहीं तो मुश्किल है कि यह सामान का कार्य ा और फिर कहा अपन है नाक अपरान्ह कि आप आदत वाला व्यक्ति अ मैं अपने नाम अपार अपार नामक तीसरा हे अपने ना कैमरे नीचे की ओर ले जाने का काम है उसका के नीचे का मतलब है नीचे आ कि हम केवल नीचे का मतलब नीचे ही नहीं होता है पूरे शरीर से बाहर निकालने का जो काम है ना वह आप अपन प्रकार है जिसे पसीने के रूप में बाहर निकलता है और मल के रूप में जहां-जहां से निकलता चाकुओं से कानून से नाक से मुंह से रोम-रोम से जो भी मन निकलता है कि इस निकालने काम जो है इस अपमान का है और विशेषकर जो अधोगति का मतलब है मल-मूत्र का जो क्या करना है यह भी अपन का काम है है इसलिए कहा अपने ना तपाना जो बाहर निकालता है अपने का मतलब है बाहर निकालना तो बाहर निकालने काम जो है यह अपन नामक वायु का काम है और फिर चौथा प्राण बताया कुनार कुदाना हा हा यह जो ऊपर की ओर ले जाने का काम करता भी हम उद्धार नामक प्राणी को लेकर इस विचार कर रहे थे तो उन्हें नागपुर दाना जो ऊपर की ओर ले जाने वाला है है जिसको आप ऊर्ध्वगमन गए थे जो आत्मा को ऊपर की ओर ले जाता हो अथवा आप मेरी और देखेगा है कई बार आदमी जो है को खाता है ना लोग से युक्त होकर के ज्यादा खा लिया मालिक को खींच लिया है तो कभी किया होगा आपने भी मैंने तो बहुत किया है को खींच लिया है ऐसा कुछ इलाकों में डूब गए अब देखिए मेरी और थोड़ा सा है पेट देना कभी नहीं फटा मेरा अ अच्छा ठीक है कई फटता ही नहीं है भगवान ने कैसा पेस्ट बना है देखो इसमें ठोकते जाओ ठोकते जाओ बिल्कुल फटकार नहीं है कि ही बढ़िया बैग ले जाइएगा आप कि सैमसंग नोट कर लिया यह पता नहीं अमेरिकन का कोई भी ऐसे बैग ले है उसमें ठोकते जाओ ठोकते जाओ तो कहीं ना कहीं फट सकता है एक अजब ज्यादा खा लिया है तो क्या होगा और मधु प्राण काम करेंगे या तो अपन नामक प्राणी काम करेगा यह उदाहरणात्मक प्राण करेगा अ और उदार नामक प्राणी जो करेंगे उल्टी हो जाएंगे कि गुर्जरों का ऐसा जाएगा को एकदम ऊपर की ओर आएगा ऊपर की ओर मतलब बाहर निकलेगा इधर पूर्व भावना यह भी दब ज्यादा खाएंगे तो आप पेट में नहीं रहा है समझ में आ नहीं रहा है अब कहां गए लेकिन तो जाना है ना उसको का अधिकार लिए व्यक्ति तो वह मन के माध्यम से बाहर निकालेगा या है अकाउंट वाले व्यक्ति के माध्यम से बाहर निकलेंगे है तो यह उद्यान की बात हो रही तो मैं उद्यान की बात करूंगा उन्नयन और पूरा आना यह ऊपर की ओर ले जाने का मैं जब खुलती है है और भी बहुत सारे काम है बताऊंगा मैं आपके आगे क्योंकि इनके जो भाई लोग है नहीं के साथ में हेल्पर जो है वह काम करते हैं साथ में तब और विस्तार से बता दूंगा तो यह ऊपर की ओर ले जाने का काम करने वाला उद्यान है यह चौथा प्राणों गया व्याख्यान आधी कि उक्त अभियान नामक जो प्राण है वह व्याख्या व्यक्ति का मतलब है सब जगह पूरे शरीर में काम करता है उसका काम पूरे में यह सब जगह काम हो रहा है उसका अ कि यह पांच प्राण बताएं हैं और अपनी सूजी नहीं कई बार प्रस्तुत किया और भी प्रश्न आज आज भी आया था कल भी शायद आया कि उपकरणों के बारे में भी बताइए कि सुक्रांत पाषाण कि व्यान उदान और समान-ये पांच प्राण ओ प्राण के नाम है नाग कर्म कृकर देवदत्त और धनंजय है ऐसे यह पांच उपरांत नाग कि कुर्म ए क्रिटिकल देवदत्तं धनंजय है है और यह जो नाम है ना यह रूडी ना है श्री रूढ़ी नाम का मतलब होता है शब्दों शब्दों का जो अर्थ है वह ऐसा नहीं है जैसे प्राण अपान व्यान उदान समान के जैसे शब्द है वैसे उनके अर्थ है वैसे किन शब्दों का अर्थ शब्दार्थ के रूप में वैसे नहीं है है तो प्राण अपान व्यान उदान समान जो मैक्रम बता रहा हूं ना इस क्रम को आप एक बार लिखेगा प्राण अपान व्यान उदान समान का जो क्रम मैंने बताया उसी क्रम से यह नाम है नाग कूर्म निकल देवदत्तं धनंजय है कि इंसान के साथ नाग यानि प्राण का उपप्रधान है नाग तो अपन का कुरान है कूर्म अ है और प्राण अपान व्यान का जो उपप्रधान है वह है कि कल ए क्राईम अपान व्यान उदान उद्यान का जो प्रावधान है वह देवदत्त है और व्यान का जो उपप्रधान हो धनंजय है कि यह उपप्रधान है नाग कर्म कृकर देवदत्त धनंजय व यह पांच उपरांत खिलाते है अब यह जो प्राण है गठन कि हाजी और सुनाओ [संगीत] कि जो मैं बता रहा हूं वह आप मेरी बात समझने का प्रयत्न करेगा आप जो बता रहे हैं को किसने बताया को हार्दिक किसने बताया 25 सलमान के सामने धनंजय लिखवाया कि मैंने लिखवाया था थे तभी पोषण आपने अच्छा-अच्छा बयान दो बार बोला है तो फिर बोल देता हूं में प्राण अपान में व्याख्यान क्यों नहीं प्राण अपान समान उदान और ज्ञान ऐसे पहले अ से पहले हवन व्यान उदान समान ऐसा बोला है क्या तो इसको मैं और एक अच्छा प्राण अपान व्यान उदान समान श्वेता बोला क्या इस इसको फिर दोबारा बदल देता हूं मैं तो धनंजय जो है यह ज्ञान के साथ जोड़ धनंजय को अ कि वर्तमान के साथ पिंपल में प्राण अपान कुछ सामान कि उदान व्यान ऐसा लिखिएगा मैं में प्राण अपान कुछ सामान उदाहरण और ब्यान ऐसा कर दीजिएगा ₹2000 नंबर लास्ट में आग ए हां आधी प्राण अपान समान उदान और ब्यान जी ओ में अभियुक्तगण विद हां तो प्राण का नाग है है और अपन का पूर्व में है है और सामान का निकल है उद्यान का देवदत्त है ज्ञान का धनंजय समृद्ध है अजय को जी हां आप लोग वह बना दीजिएगा न्यूड करके रखिएगा अ हुआ है हैं अब इनके कार्य समझने का प्रयत्न करेगा कि नाक का जो काम है विशेष रूप से कि चेतना का ग्रहण करना है आत्मा की जो चेतना है ना आत्मा की जो चेतना है उस चेतना को पकड़ने कामना करता है एक नागिन थी चेतन नियम संस्कृत में है यह कि नागौर इन्हीं चेतन निगम कर्मचारी व निवेश सनम कि अ जो कुएं में है वह को खो में रहता है उनको के गुल्लक को में रहता है है और त्रिकाल जो है यह भूख-प्यास के लिए काम करता है है और कि देवदत्त जो है कि जंभाई के काम करता है जंभाई लेने का है और उद्यान नमक जो प्राण हैं हम यह धनंजय जो है यह जब हम बोलते हैं बातचीत करते शब्दों का उच्चारण करते हैं शब्द के उच्चारण में काम आता और जब शरीर से बाहर निकलता है तब स्कूल तो बिल्कुल ना भूलें ऐसा काम धनंजय का तेल को रखना है ओम श्री को बिल्कुल खींचके रखने काम धनंजय का काम है अ है तो अब मैं थोड़ा सा और विस्तार से बताने का प्रयत्न करता हूं 9th मुझे ना का क्या नाम बताया है ना घटना का चेतनता चेतन चेतनता है और भी काम है ना कि लेकिन एक चेतनता भी है है तो इस समय जी छोटा साइज में कितना है हां हां जी बोलिए को सबसे आपने बताया है कि जो उड़न है उसका काम मृत शरीर को भी सुखी रखना है तो जब आत्मा निकल जाती है उसके साथ प्राणी से निकल जाते हैं तो फिर यह फंक्शन कैसे करेगा समिति मैंने यह आधा इंच के रखना मैंने कहा शरीर जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो शरीर फूल जाता है मैं क्यों फूलता है क्योंकि धनंजय नामक प्राण निकल गया और जब शरीर में धनंजय रहता है आत्मा के साथ में तब उसको फूलने नहीं देता उसको खींच के रखता है यह बोला था जीत दिला दी कि नाक नाक का फिर और काम समझ लीजिए नाक के चुनाव जो है के कंठ से ले मुख से लेकर कंधे तक यह इसके काम रहे थे मुख से लेकर घंटे तक अ है और डकार करना है है इसकी लेना है कि यह काम ए नाटक है हुआ है कि डकार लेना इसकी लेना है यह कामना करते हैं कि कुर्म जो है यह मुख्य रूप से नेत्रों में आंखों में इसका काम होता है जैसे गोलक को दाएं करना बातें करना ऊपर करना नीचे करना आंख बंद करना खोलना यह सारे काम जो है गर्म का है को स्विच ऑन करो यह देखिए अपन की बात नहीं हो रही है पहले प्राणों की चर्चा करते हुए दुष्कर्म की चर्चा कर रहा हूं पहले सुन लीजिए फिर बाद में पूछेगा कि मैं कहना था कूर्म जो है इसका मुख्य काम मुख्य काम हैं आंखों का इसलिए आंखों में रहकर के आंख के गोलों को दाएं करना बातें करना ऊपर करना नीचे करना गोल घुमाना आंखें बंद करना पलकों को बंद करना खोलना यह सब काम जो है यह कर्म के हैं है और क्रिस्टल का जो काम है कि भूख लगाना त्याग लगाना को भूख-प्यास ए क्रिटिकल के जो मुख्य काम है भूख लगे ना प्यास लगाना यह क्रिस्टल के मुख्य कारण हुआ है इस अवधि में व्यक्ति के जो काम है कि देव दत्त के मुख्य काम है आलसी लाना शरीर में तनाव उत्पन्न करना निद्रा उत्पन्न करना कि यह कि देव दत्त के मुख्य कारण है है और पांचवा धनंजय है धनंजय का जो मुख्य काम है अभी मैंने बताया था शरीर को खींच के रखना है कि शब्दों का उच्चारण कर आना है की मांसपेशियों को सुंदर बनाना है ऑन करो कि शरीर के अवयवों को खींच के रखना है तो बुलाई दिया मांसपेशियों को सुंदर बनाना चेहरे को खींच के रखना और जीवात्मा जब बाहर निकलता है तो सब प्राणों को साथ में ले करके बाहर निकल जाना यह सब काम धनंजय कहिन है तो नाग कर्म कृकर देवदत्त धनंजय पांच प्राणों के बारे में मैंने आपके सामने रख दिया है अब कोई पूछ रहे थे अपन के बारे में अब पूछिए क्या पूछना है कर दो के सांसद जगदीश शर्मा भरत शर्मा ब्राह्मण बन रहे हो प्रेयर धनंजय अभिशाप नहीं तो निकलता होगा ना सारे प्रांत साथ निकल जाएंगे सब निकल जाएंगे 1000 यह मतलब बैकुंठ कैसे बिना पूरे रखेगा मतलब यह तो प्रॉब्लम समझ में आ गया सर आप समझ ने क्योंकि आप अपना मन जो है ना फोन देखने में लगाते हो तभी बात करने में लगाते अपने आपको तुम सबको अपने फोन बंद करके रखो और फोन करना बंद करो और ध्यान से सुनिएगा तो आपको समझ में आएगा मैंने यह बोला था जब आत्मा शरीर में रहता है तो शरीर को खींच के रखता है बांध के रखता है फूलने नहीं देता है है और जब प्राण बाहर निकल जाता है आत्मा के साथ में इसी लिए सिर्फ फूल जाता है जब प्राणी नहीं अंदर धनंजय नामक प्राणी है तो सिर्फ मिलता है क्योंकि मिलता है सिर्फ अ कि यह आपका खून चल रहा था इसलिए मैंने बोला था आपको एक बार ने में अनेक बार देखता हूं अब बीच-बीच में फोन करते रहते हैं फोन से बात करते रहते हैं और भी बहुत कुछ करते रहते हैं इसलिए आपको समझ में कम आता है फिर आप भर प्रश्न करते हो यह अच्छे विद्यार्थी का लक्षण बिल्कुल नहीं हां समझ लेना तो सिर्फ फूलता है यह इसलिए फैलता है है क्योंकि धनंजय नामक प्राण नहीं शरीर में और धनंजय नामक प्राणी जो है वह शरीर को बांधे रखता पूंजी नहीं देता है मैं आपको वीडियो फोन करके रखना है तभी पता लगे ना कर क्या रहे हैं कि तभी फूल जाता होगा ढूंढ आपके हां बिल्कुल अ कि जब वह शरीर से निकल गया धनंजय नामक प्रांत सिर्फ फूल गया क्यों फुला क्योंकि उसको बांधे रखना खींचे रखने का काम करने वाला जो प्राण है वह नहीं रहा इसलिए फूल जाता है कि अब यह मैं यहां जो शास्त्रों में बताए इसके अनुसार आज का जो शरीर विज्ञान क्या कहा था उसके बारे में नहीं बोल रहा हूं यहां तो मैं यह जो शास्त्र में जो बोल रहा है उसके आधार पर बता रहा हूं शरीर विज्ञान के व्याख्याता उसके अपने अलग उनके नियमों में उनके थ्योरी में यह प्राण तो आते ही नहीं हो हां जी प्रणाम जाने पर पकने झालावाड़ से स्वामी जी प्राण कनेक्टेड कार्य करते हैं जी पूर्व वह आंखों का कार्य करता है और यह अक्षय ने बताया था इसको के साथ एक मिनट मैं देख लेता हूं में रुके रुके में मेरे को कनफ्यूज हो रहा है देखता हूं मैं एक बार हुआ था कि मैं वह ठीक है ठीक है बोला है मैंने क्योंकि आंखों में अंकों के साथ जुड़ा है उसके साथ में अपन-अपन कोई करेंगे क्योंकि यह जो बातें जो भी बता रहा हूं मैं एक शास्त्र जिसको कहते हैं अ ग्रहण संगीता है मतलब योग के जो शास्त्र हैं घेरंड संहिता हट प्रयोग दीपिका ऐसे बहुत सारे साफ करें उसमें से देख करके बता रहा हूं उसी से हम उन्हीं में हम लोगों ने पढ़ाई की है तो उन्होंने बताया वैसा ही मैं आपको बता रहा हूं क्योंकि जो हमारे वैदिक ग्रंथों में अभी तक मेरे को नहीं मिला केवल स्वामी दयानंद ने लिख दिया है नाग कर्म कृकर देवदत्त और धनंजय उसका वर्णन नहीं किया है कि उसका वर्णन नहीं किया कि यह क्या काम करते हैं और जो प्रामाणिक को योग का ग्रंथ है योग शास्त्र योग दर्शन उसमें इन उपकरणों की चर्चा नहीं और भी बहुत सारे शास्त्रों को देखा है तो उसमें नहीं लेकिन जो योग से संबंधित जो ग्रहण संगीता उस मेरे को मिला यह सब और उसी के आधार पर नियुक्त करके पहले भी वह पहले से जानता हूं पर अब स्कूल तो फिर देखना पड़ेगा तो एक-एक करके है जी हां दिया लेकिन मल-मूत्र त्याग करता है जी हां हां जी मैं आपको जो बोल को खोलकर उतरता है कि दोनों तरफ से चीज हो गई ऐसा है आप देखेंगे अ विद्या जो है ना अमित दिया एक ही चीज है ना कि अ विद्या एक है पर उसका एक राग भी है और एक उसका दृश्य भी है हम इसे डेढ राख राख या फिर भी अपोजिट काम करते ना तो यह मत देखिए का या क्योंकि वह प्राण एक मुख्य रूप से एक ही है प्रांत उसे एक प्राण के विभाग कर दिया प्राण को कप्तान बना दिया प्राण कई विभाग को सामान बनाया प्रांत के एक विभाग को उद्यान बनाया प्राण का एक विभाग को भवन बनाया कर दिया तो है वास्तव में यह प्राण पर उसे 15 प्राण इन पांचों से फिर कुछ अपने और सहयोगी बना ना तो अपोज़िट हो सकते हैं इसमें कोई बड़ी बात नहीं समझ लेंगे तो यह भी समझ में आ गया पर और में कितना अंतर है जमीन आसमान का अंतर है आज रात दो है अटैचमेंट को के लिए काम कर रहे हैं और दृष्टि जो है ना बाहर भगाने का काम कर रहा है तो एक ही अवैध है तो जैसे अ विद्या के पांच विभाग हैं ऐसे प्राण के भी पांच विभाग है और आप देखेंगे वह विद्या के जो पांच विभाग है उसके भी और भी नाम है उनके अपने-अपने पढ़ना योग दर्शन में भी और कि क्या नाम सांख्य दर्शन में संगत दर्शन में मोह मोह मोह व ऐसे बहुत सारे नाम दिए और मच्छर और शैफाली अब देश में भी अंतर कर देना इरशाद एक बना दिया है और मास्टर यह बनाने से कई भी ऐड करते जाते हैं तो उसी तरह यह पुराणों में भी और इसलिए कोई बड़ी बात नहीं है कि अपोजिट हो सकते हैं अच्छा ठीक है ठीक है की हानि श्वेता की स्पष्ट और है जी जी जी जी [संगीत] कि यह कहा यह ग्रह पा के लिए और तंद्रा व आलस्य स्थित राधे राधे चाणक्य के कारण की गुप्ता तहत को अलग प्रक्रिया व प्रक्रिया आयुर्वेद की दृष्टि से यहां पर वात-पित्त-कफ का वर्णन करेंगे अब जी हां वात-पित्त-कफ काजल वर्णन करेंगे उनके वह कार्य होंगे तो हैं पर उनमें यह वाला प्राण भी काम करते को प्राण मैंने बोला था प्रारंभ में ही प्राण जो जो काम कर रहें हैं केवल यही कर रहे हैं ऐसा नहीं उन कार्यों में इनका संयोग यह शुरू में मैंने बोला था है कि जितने भी काम बताए गए हैं केवल यही कराते हैं तो बाकी लोग क्या करेंगे वात का काम बहुत बड़ा काम है वात पित्त कफ में बात का तो बाकि सारे स्वाद के काम में एक प्रकार से परिवार भी प्राण के साथ जुड़ा हुआ है ना इस बात की जो उत्पत्ति है वह प्राण से यह ए न्यू समझेगा तो इस प्रकार से वात पित्त कफ की जब चर्चा करेंगे तो उसके साथ भी जुड़ जाएंगे उनके काम लेकिन जब प्राणों के साथ जोड़ेंगे तो प्राणों की भी बताना पड़े कुछ ना कुछ तो उस जम भाग्य में निद्रा में 15 में अलग से में जकड़ कार्य करता है उसके साथ यह भी प्राण जो है उसको संयोग देता है ऐसा ही मानना होगा कि अच्छा ठीक है ठीक है की कल्पना जब कि आपका म्यूट है हां हां जी शैतान जी बोलिए जी जी आपके साथ क्वालीफिकेशंस लाइक का आंच आपके जो लिक्विड से आग्रह सॉफ्ट और तथा इसे कट करेंगे मैं इसका कोई कनेक्शन नहीं होगा क्योंकि आधुनिक साइंस ना वह प्राणों को समझता यह बात को भी नहीं समझता है आयुर्वेदिक भी नहीं समझता आयुर्वेदिक को भी नहीं समझता ये जो है उसको बिल्कुल नहीं पता तो दोनों का कांसेप्ट बिल्कुल अलग नहीं कर सकते हैं उनकी बिल्कुल अलग से बिल्कुल अलग है कि आपके जी और कुछ टिप्स हां जी बिल्कुल बिल्कुल प्राणायाम से प्राण अपान व्यान उदान समान नागपुर मैकेनिकल देवदत्तं धनंजय कि दोस्तों प्राण एक्टिवेट होते हैं सब काम करते हैं है और एक ही शब्द में मैं बोलूं यह जो प्रावधान है मुख्य तो एक ही है यह प्राणी पूरे शरीर के एक-एक सेल्स तक पहुंचता है में प्राण का मतलब है ऑक्सीजन के रूप में पहुंचता है यह जो भी उसका मोडिफाइड रूप जो होगा जैसे अंदर जाएगा लंच में जाएगा वहां से जो परिवर्तित होकर के जीवनी शक्ति बंद करके यह प्राणी शरीर के एक साल तक पहुंचता है अब वह कैसे पहुंचता है तो शास्त्रकार ने उसके 10 प्रारूप बनाकर के उसके अलग-अलग काम बता करके यह समझाने का प्रयत्न किया है हैं सब देवी जी और दूसरी बात मैं यह कहना चाहूंगा आधुनिकता के साथ में इनको कनेक्ट करने का प्रयास हमको नहीं करना चाहिए दोनों को अलग रखना चाहिए कि पुरुष को पुरुष के रूप में रखिए और स्त्री को स्त्री के रूप में रखिए स्त्री को की तुलना पुरुष के साथ पुरूष की तुलना में स्त्री के साथ मत करिए वह लगी प्रक्रिया है यह लगी प्रक्रिया सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं इस दृष्टिकोण से कनेक्ट करने का प्रयास करेंगे तो आप समझ में नहीं क्योंकि दोनों के अलग-अलग बिल्कुल अलग अलग हो तो इसको कनेक्ट करके उसका कोई लाभ नहीं है हां जी कि मुझे मेरे मोबाइल पर अश्लील कहां फिर बोलिएगा पिछला सॉन्ग को बिल्कुल को पंच महा भूतों में जो वायु है उसी का एक प्रारूप है उसी का एक घटक है यह प्राण हां जी बिल्कुल कि अ अ है तो अब 10 प्राण आपके सामने आ चुके इन तस्वीरों के बारे में किसी को कुछ पूछना हो तो पूछ सकते हैं मैं इसमें विस्तार में जाने की कोई ऐसी इतनी ज्यादा हमें आवश्यकता नहीं है बस इतना समझ लीजिए एक आया प्राण अपान व्यान उदान समान यह पांच प्राण और उसके ऊपर नाग कर्म कृकर देवदत्त और धनंजय हैं बस अगर आपको विस्तार से समझने वालों को लेकर के लिए आप अ अच्छा ठीक है तो और सुनाओ है आगे बढ़ते हम लोग है इन्होंने जो बोला है पांडू उपस्थित अपना नाम चक्षु स्रोत्रम् मुख नासिका भैया हम प्राणों स्वयं प्रतिष्ठित जो लुट कि तीसरे प्रश्न में जो प्रश्न किया था उसका समाधान करते हुए प्रश्नोपनिषद् करने 45 वें श्लोक में जो बात कहिए कि अपन कहां रहता है तो कहा पालतू उपस्थिति पाषाण आप नामक प्राणी वे मुख्य रूप से यहां पर यह मुख्य रूप से प्रधान रूप से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि केवल दोनों केंद्र में रहे तो पूरे शरीर से बाहर निकलना है तब इस दृष्टिकोण से निवास स्थान उसका मुख्य रूप से दोनों केंद्रों में है है और तो फिर कहां है चक्षु श्रोत्र मुख नासिका व्यायाम प्राण असलम प्रतिष्ठित ए ए है और यह जो प्राण हैं यह आंखों में कानों में मुख में नासिका में में विद्यमान रहेगा है कि ऐसा इन्होंने बोला है है और मध्य तो समाना और नाभि में रहता है समान का मुख्य निवास स्थान है इसका नाम भी है हैं और आगे जो बोला है कि व्यान जो है पूरे शरीर में रहता यह बोला अच्छी टेस्ट लुक में हुआ है है और उद्यान को कंठ में बोला है कि उद्यान को घंटे में बोला है और ऐसा ही महर्षि वेदव्यास ने जो लिखा है वह भी इसी तरह लिखा है प्राण जो है मुख नासिका से लेकर के हृदय तक रहता है है उसका मुख्य निवास स्थान जो है इन्होंने व्यास ने हृदय माना है कि व्यास ने इसको रितेश माना है लेकिन मुख नासिका से लेकर के हृदय तक लिखा है पर एक निशान तो बताना होगा तो हृदय समझना है और सम्मानजनक समाधान उठाना भी व्यक्ति और सम्मान जो है वह ना भी बताया तो प्रश्नोपनिषद् करने भी नाम बताया और वेदव्यास ने भी नारी बताएं हैं और अपने ना दबाना आप आदतन वृद्धि कि इन्होंने ऐसे स्पष्ट संकेत तो नहीं किया है लेकिन यह के पास उपस्थित जो बोला यहां पर दो गुप्तेंद्रियों में रहने का प्रश्नोपनिषद् करने और आ गया उसने ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं किया है उन्हें ना तु दाना ऊपर की ले जाने वाला उद्यान यह तो बोला है आशीर्वाद वृद्धि सिर तक यह करंट से लेकर सिर तक यह काम करता है उद्यान नामक प्राण ऐसा बताया गया है तो केवल करंट से लेकर के सिर तक की ऐसा नहीं है वह नीचे से जो भी ऊपर आएंगे यानि पांव से लेकर के जो भी ऊपर की लुभावन जो भी होगा अंगूठे से लेकर के ऊपर तक जो भी ऊपर आने लगेगा वह सबको उद्यान उपरांत काम करेगा वहां पर है और बयान का तो दोनों जगह स्पष्ट है सब पूरे शहर में रहता इस तरह अ है तो में प्राण और अपान की अपराह्न और उपपुराणों की चर्चा हो गई है और शरीर के अंतर्गत यह पांचों प्राणरहित करके क्या-क्या करते हैं प्रश्नोपनिषद् करने प्राण को आध्यात्मिक दृष्टि से बताया है अब जो आगे प्रसंग चलेगा वह कि दृष्टि से बाहिर जगत की दृष्टि से बताएंगे फिर इसकी चर्चा फिर हम लोग कल कर लेते हैं क्योंकि समय भी लगभग पूरा हो गया है आपका है तो इन्हीं प्राणों से संबंधित किसी कोई बात रह गई हो तो पूछ सकते हो आप कि विज्ञान कारण बताया समिति ज्ञानकांड है व्यायाम पूरे शरीर में रहता है में व्यापित इलियाना व्यापी का मतलब है पूरे में व्याप्त होकर के रहता है हां जी हां कुछ तो ख्याल जी बोलिए मुझे कल शाम है प्रभाव पड़ते हैं तो यह पूरे अपराध क्षमा कर जाते हैं कि जब फिर जंग लेते हैं तो यहीं प्रेम से रहते हैं ऐसा मान सकते हैं क्योंकि ऐसा स्पष्ट यहां पर कहीं प्रमाण अभी तक आया नहीं है लेकिन एक जगह संकेत जरूर मिलता है कि कर्मेंद्रियों के स्थान में उपरांत शब्द लिखा है स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने तो वहां प्राण कर्मेंद्रियां भी लेते हैं और उनका अर्थ यह भी लेते हैं तो वह भी निकाल लेंगे तो और वही प्रश्न होंगे इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी जो आप हमारे आगे इस दूसरे शहर में जाते हैं तो इसमें कोई आपत्ति नहीं सकते हम लोग कि यह शांति एवं तय हुआ था राधे राधे शांति रा दाणा शाक्तियों झाला शांति उभरा आइडिया शांति निषेध बाढ़ प्रभावितों के प्रारंभ में शांति सौहार्द एवं शांति शांति भाषा शांति प्रणाम आशा शांति ओम शांति ही शांति ही शांति