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Engineering Journey: Challenges and Solutions

हाय एवरीवन एंड वेलकम टु अपना कॉलेज सो फाइनली वह टाइम आ गया है जब बहुत सारे स्टूडेंट्स अपनी जेई जर्नी अपनी स्कूल जर्नी से निकल के अपनी कॉलेज की जर्नी अपनी इंजीनियरिंग जर्नी की शुरुआत करेंगे अब हम में से मेजॉरिटी स्टूडेंट्स का इंजीनियरिंग करने से पहले एक गोल होता है कि हम एट दी एंड एक बहुत अच्छी प्लेसमेंट को क्रैक कर रहे होंगे हम अपने पेरेंट्स को प्राउड फील कराएंगे जो भी हमारा थोड़ा बहुत रिग्रेट रह गया है कि मनपसंद ब्रांच नहीं मिल पाई मनपसंद कॉलेज नहीं मिल पाया हम उसे ओवरकम करेंगे विद द हेल्प ऑफ़ आर प्लेसमेंट एंड इंटर्नशिप्स और यह गोल्स और ड्रीम्स होना बहुत जरूरी है क्योंकि इन्हीं की हेल्प से एट दी एंड हम एक अच्छा आउटपुट अपने लिए निकाल कर लेकर जाते हैं पर आज की डेट में जो करंट इंजीनियरिंग कॉलेजेस हैं उनके अंदर कई सारी प्रॉब्लम्स भी हैं जो एजिस्ट करती हैं जिनके बारे में हमें एज अ स्टूडेंट पता होना चाहिए ताकि फ्यूचर में हम उन प्रॉब्लम्स को अच्छे से टैकल कर सकें अब वैसे तो ह्यूमन नेचर होता है कि प्रॉब्लम्स को हम लोग बहुत जल्दी आइडेंटिफिकेशन की भी बात कर रहे होंगे अब मेजॉरिटी स्टूडेंट्स जो इंजीनियरिंग करने आते हैं वो ऑलरेडी 2 साल लगा के जेई कोचिंग कर चुके हैं वहां पे कई सारे स्टूडेंट्स ने ऑफलाइन कोचिंग के अंदर दो से ₹ लाख स्पेंड किए होंगे कई सारे स्टूडेंट्स तो फुल टाइम जाके कोटा जैसे शहर के अंदर रहे होंगे और वहां पे उन्होंने बहुत सारे पैसे स्पेंड किए होंगे उसके बाद भी हर साल जेई का पेपर 10 लाख के आसपास स्टूडेंट्स देते हैं और उसमें से गवर्नमेंट सीट्स या अच्छे कॉलेजेस की सीट्स बहुत लिमिटेड होती है आईआईटी के अंदर करीबन 177000 सीट्स हैं एनआईटी के अंदर अराउंड 23000 सीट्स हैं गवर्नमेंट फंडेड टेक्निकल इंस्टिट्यूशन जो जसा के अंदर पार्टिसिपेट करते हैं उनमें अराउंड 8000 सीट्स हैं ट्रिपल आईटी के अंदर अराउंड 7000 सीट्स हैं तो स्टूडेंट्स के पास बहुत ही लिमिटेड ऑप्शन बच जाते हैं अगर उनका इनमें से किसी इंस्टिट्यूशन के अंदर नहीं हुआ तो बहुत कम ऑप्शंस होते हैं अच्छे और गवर्नमेंट इंस्टीट्यूशंस या अच्छे और प्राइवेट कॉलेजेस के तो मेजॉरिटी स्टूडेंट्स जो हर साल अपना ग्रेजुएशन करते हैं बीटेक के अंदर इंजीनियरिंग के अंदर वो प्राइवेट कॉलेजेस से कर रहे होते हैं और प्राइवेट कॉलेजेस में भी बहुत लिमिटेड कॉलेजेस होते हैं जो टियर वन या टियर टू की कैटेगरी में आएंगे मेजॉरिटी प्राइवेट कॉलेजेस टियर थ्री या टियर फोर की कैटेगरी में आते हैं अब यहां पे सबसे पहली बेसिक प्रॉब्लम तो यही है कि जब कोई स्टूडेंट ऑलरेडी बोर्ड एग्जाम की तैयारी करके साथ में एक मुश्किल कंपीटेटिव एग्जाम की तैयारी करके कॉलेज के अंदर आता है तो वह सोचता है कि शायद मेरा गवर्नमेंट कॉलेज में हो जाएगा तो मुझे थोड़ी सी राहत मिल जाएगी पर अगर हम गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेजेस की फीस की बात करें तो 2023 के अंदर फीस थी 2 टू 2.5 लाख पर ईयर व्हेन आई वाज डूइंग माय ग्रेजुएशन इन 2017 द फीस वाज अराउंड 1 टू . 5 लाख पर ईयर व्हेन अमन सर वाज डूइंग हिज ग्रेजुएशन इन 2015 द फीस वाज लेस दन 1 लाख अगर इस फीस का हम ग्रोथ रेट कैलकुलेट करेंगे तो ये ग्रोथ रेट इंफ्लेशन से भी ज्यादा है मतलब जितनी तेजी से महंगाई बढ़ रही है देश के अंदर उससे ज्यादा तेजी से हमारी गवर्नमेंट कॉलेजेस के अंदर इंजीनियरिंग की फीस बढ़ रही है और ये तो फिर भी गवर्नमेंट कॉलेजेस हैं जहां पे गवर्नमेंट हर एक सिंगल सीट पे सब्सिडी देती है जहां पे कई सारी हमें अपॉर्चुनिटी प्रोवाइड की जाती है इन टर्म्स ऑफ प्लेसमेंट इन टर्म्स ऑफ रिसर्च या दूसरी चीजों के टर्म्स में और जहां पे साथ में एक प्रेस्टीज का टैग भी हमें मिल जाता है तो ये चीजें तो फिर भी जस्टिफाई हो जाती हैं तो कई सारे स्टूडेंट्स को गवर्नमेंट सीट मिलती है तो वो लोन लेकर भी अपनी डिग्री को कंप्लीट कर लेते हैं पर प्रॉब्लम यहां आती है कि इंडिया के अंदर हर साल 15 लाख इंजीनियर्स ग्रेजुएट होते हैं और 15 लाख में से मेजॉरिटी स्टूडेंट्स ग्रेजुएट होते हैं विद अ प्राइवेट डिग्री और प्राइवेट कॉलेजेस की अगर सिचुएशन की बात करें तो वो बहुत वर्स है इन मेजॉरिटी केसेस फ्रॉम द गवर्नमेंट कॉलेजेस सिचुएशन मेरी समझ के अनुसार मुझे तो ये लगता है कि इलेक्ट्रिकल ब्रांचेस मैकेनिकल ब्रांचेस में स्टूडेंट्स के पास इक्विपमेंट नहीं होते तो वहां पे लैब्स बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट है लैब पे बहुत ज्यादा खर्चा होना चाहिए तो ऐसे केसेस में तो कोर ब्रांचेस की फीस ज्यादा हाई होनी चाहिए पर क्योंकि कंप्यूटर साइंस का करेज ज्यादा है तो इस लिए कंप्यूटर साइंस की सीट के लिए आपको प्रीमियम देना पड़ रहा है आज की डेट में फॉर मेजॉरिटी ऑफ द प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस प्रॉब्लम यह है कि वो हाई फीस लेने के बाद भी कॉलेज के अंदर करिकुलम वैसा नहीं है कि आपको प्लेसमेंट्स में हेल्प मिले कॉलेज के अंदर करिकुलम वैसा नहीं है कि आपको एक्चुअली प्रैक्टिकल स्किल्स सीखने को मिले जो आपको स्टैंड आउट कराने में हेल्प करेंगी जो आपको प्लेसमेंट लेने में हेल्प करेंगी जो आपको इंटर्नशिप लेने में हेल्प करेंगी कॉलेज के अंदर हाई फीस देने के बाद भी काम पूरा बच्चे को ही करना पड़ता है स्टूडेंट के ऊपर ही पूरी रिस्पांसिबिलिटी आती है कि अगर कॉलेज के एग्जाम के लिए सेमेस्टर एग्जाम के लिए पढ़ना पड़ेगा तो youtube3 आपको ऑनलाइन ऑफलाइन जाके कोचिंग लेनी पड़ेगी तो मेजॉरिटी प्राइवेट कॉलेजेस के अंदर जो हम हाई फीस भर रहे होते हैं उसका आउटपुट हमें एज सच कहीं कॉलेज के अंदर देखने को नहीं मिलता अब यहां पे कुछ लोग एक तर्क प्रेजेंट करते हैं कि बीटेक करने के लिए कोई किसी को फोर्स तो नहीं कर रहा बीटेक तो एक बैचलर्स डिग्री है बैचलर्स डिग्री करना तो एक चॉइस होती है पर रियलिटी ये है कि इंडिया जैसी कंट्री के अंदर जहां कंपटीशन इतना हाई है बैचलर्स डिग्री करना एक चॉइस नहीं है एक नेसेसिटी है एक जरूरत है क्योंकि हम में से मेजॉरिटी लोगों ने अगर ग्रेजुएशन कर रखा है हमारे घर में तो किसी की फर्स्ट प्रेफरेंस यह नहीं होगी कि हम एक 12थ पास व्यक्ति से शादी कर लें अगर हम लोग जॉब के लिए हायर करने निकले खुद तो हम में से किसी की प्रेफरेंस ये नहीं होगी कि एक अच्छी जॉब के लिए हम एक 12थ पास कैंडिडेट को प्रायोरिटी दे दें तो कंपनीज भी उसी तरीके से सोच रही हैं और हम सबके घर में भी उसी तरीके से सोचा जा रहा है तो इंडिया के अंदर ग्रेजुएशन करना नेसेसरी हो जाता है अगर आपको एक अच्छी जॉब चाहिए अगर आपको एक अच्छी जगह प्लेसमेंट चाहिए अगर आपको लाइफ में अच्छी अपॉर्चुनिटी चाहिए तो अब यहां पे सेकंड तर्क कुछ लोग ये देते हैं कि फिर आपको बीटेक जैसी महंगी डिग्री पसू करने की क्यों जरूरत है आप बीएससी जैसी जनरल डिग्री भी पसू कर सकते हैं उसमें आपकी कम फीस लगेगी तो इसका जवाब यह है कि इंडिया के अंदर ना किसी स्टूडेंट को ना स्टूडेंट के पेरेंट को मजा आता है एक्स्ट्रा फीस भरके अपनी बीटेक करने में एक स्टूडेंट अपना एक्स्ट्रा साल इसलिए लगाता है एक स्टूडेंट एक्स्ट्रा फीस इसलिए देता है और कई केसेस में लोन लेके फीस इसलिए भरता है क्योंकि वो कंपटीशन से थोड़ा सा स्टैंड आउट कराने की खुद को कोशिश कर रहा है उसे फील होता है कि एक प्रोफेशनल डिग्री में शायद उसे कहीं ना कहीं स्टैंड आउट कराने का ज्यादा अपॉर्चुनिटी लेने का चांस मिल जाएगा एज कंपेयर्ड टू अ जनरल डिग्री लाइक बीएससी तो इसीलिए कई सारे स्टूडेंट्स हैं जो हर साल बीटेक डिग्री को पसू करते हैं इंडिया के अंदर पर रियलिटी में यह होता है कि एक स्टूडेंट डिग्री करने के लिए इंजीनियरिंग करने के लिए कॉलेज के अंदर जाता है और मेजॉरिटी कॉलेजेस के अंदर जो 10 प्रोफेसर उससे मिलते हैं 10 में से दो से तीन प्रोफेसर्स तो ऐसे होते हैं जो बहुत बढ़िया पढ़ाते हैं बहुत इंटरेस्ट लेके पढ़ाते हैं वो अपने सब्जेक्ट को बहुत बढ़िया तरीके से सिखाते हैं इनफैक्ट प्रैक्टिकल चीजें सिखाते हैं पर मेजॉरिटी जो बचे हुए प्रोफेसर्स रह जाते हैं ना वहां पे उस स्टूडेंट को वो क्वालिटी ऑफ टीचिंग नहीं मिल पाती जिसकी उसने हाई फीस भरी है हम में से मेजॉरिटी लोग मिडिल क्लास फैमिलीज से आते हैं और हम सबको पता है कि कई सारे लोग इंडिया के अंदर प्रोफेसर वाला करियर क्यों पिक करते हैं क्योंकि स्टेबल जगह शादी हो जाती है क्योंकि एक स्टेबल करियर हमें मिल जाता है उसमें से शायद टॉप प्रायोरिटी कभी भी इंटरेस्ट इन टीचिंग मैक्सिमम केसेस में नहीं होता है और कई सारी केसेस में गलती सिर्फ प्रोफेसर की भी नहीं होती हमारा करिकुलम ही उसी तरीके से डिजाइन है है इंजीनियरिंग के अंदर अगर कोई कंप्यूटर साइंस में बीटेक कर रहा है तो डीएसए जैसा प्रैक्टिकल सब्जेक्ट के लिए मेजॉरिटी जो मार्क्स दिए जाते हैं स्टूडेंट्स को वो पेपर पेन पे कोड लिखवा के दिए जाते हैं थ्योरी के बेसिस पर डेवलपमेंट जैसे प्रैक्टिकल सब्जेक्ट के लिए मेजॉरिटी जो मार्क्स दिए जाते हैं वो पेपर पेन पे कोड लिखवा के दिए जाते हैं मशीन लर्निंग जैसे प्रैक्टिकल सब्जेक्ट का जो मेजॉरिटी मार्क्स होते हैं वो थ्योरी के बेसिस पे दिए जाते हैं इंस्टेड ऑफ टेस्टिंग स्टूडेंट ऑन द बेसिस ऑफ प्रैक्टिकल स्किल्स अगर कॉलेज के करिकुलम में इस लेवल की थ्योरी पढ़ाई जा रही है प्रैक्टिकल चीजों के लिए है तो कंपनीज आके इस लेवल की चीजें पूछ रही हैं प्लेसमेंट में तो स्टूडेंट को एगजैक्टली पता ही नहीं है कि पढ़ना किस तरीके से और पढ़ना किस लेवल का है अभी रिसेंटली वीी वर हायरिंग अ कैंडिडेट फॉर अ मैनेजमेंट पोजीशन और इस कैंडिडेट का इंजीनियरिंग का बैकग्राउंड था तो हमने इनसे पूछा कि इन्हें कितना डीए से आता है तो कैंडिडेट ने बोला कि मेरे मार्क्स अच्छे आए थे इंजीनियरिंग में डीएसए मुझे बहुत अच्छे से आता है पर सिर्फ थ्योरी आती है मुझे कोड लिखना नहीं आता मुझे इंप्लीमेंटेशन नहीं आती जबकि वही इंप्लीमेंटेशन ही एक्चुअल प्रैक्टिकल स्किल है जो उन्हें जॉब मार्केट के अंदर जो एगजैक्टली रियल लाइफ के अंदर उन्हें हेल्प करने वाली है पर इशू यह कि वो स्किल उन्हें कॉलेज के अंदर सिखाई नहीं जाएगी कॉलेज सेमेस्टर एग्जाम के लिए कोई नहीं स्टूडेंट youtube2 इंटर्नशिप की तैयारी करनी होगी तो वो एडिशनल जाके कोचिंग ले लेगा क्योंकि कॉलेज के करिकुलम में तो हमें वो चीजें नहीं सिखानी है जो प्रैक्टिकली स्टूडेंट को आनी चाहिए सबसे बेसिक चीज जो हर एक प्लेसमेंट के अंदर हेल्प करती है कम्युनिकेशन स्किल चाहे आप टेक में चले जाओ चाहे आप नॉन टेक में चले जाओ क्यों कॉलेजेस के अंदर स्टूडेंट्स को रिलाई करना पड़ता है सोसाइटीज पे कि बच्चा सोसाइटी जॉइन करेगा वहां से वो कम्युनिकेशन स्किल्स सीखने की कोशिश करेगा क्या ये कॉलेजेस का प्राइमरी कंसर्न नहीं होना चाहिए कि हर एक स्टूडेंट के लिए जब कम्युनिकेशन स्किल्स इतने इंपॉर्टेंट है तो स्पोकन इंग्लिश कम्युनिकेशन बच्चों का इंप्रूव करें एक कंपलसरी इलेक्टिव जाले जिसमें हर बच्चे को आके बोलनी पड़े इंग्लिश ताकि उनकी इंग्लिश इंप्रूव हो वो एनवायरमेंट प्रोवाइड किया जाए बच्चों को पर प्रॉब्लम यह है कि उतनी हाई फीस के बाद भी ना करिकुलम प्रोवाइडेड होता है ना वो क्वालिटी प्रोफेसर्स मैक्सिमम केसेस में जो प्रॉमिस होते हैं वो प्रोवाइडेड होते हैं ना उसे वो एटमॉस्फियर वो एनवायरमेंट दिया जाता है कि वो उन प्रैक्टिकल स्किल्स के ऊपर काम कर सके जो उसको एक्चुअली करियर ग्रोथ देने वाले हैं जो एक्चुअली उसे एक जॉब लेने में अपने पैरों पे खड़ा करने में हेल्प करेंगे अब इंडिया के अंदर जहां यूथ पॉपुलेशन इतना ज्यादा है हमारी कंट्री में इतना यूथ है कि उसे अपॉर्चुनिटी सिर्फ इंडिया के अंदर नहीं ग्लोबली ढूंढनी पड़ेगी और जब भी हम ग्लोबल अपॉर्चुनिटी की बात करते हैं तो वहां पे ग्लोबल स्किल लेवल स्टैंडर्ड्स को मीट करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है इनफैक्ट ग्लोबली भी अगर भूल जाएं तो नेशनल लेवल पे भी हमें स्टैंड आउट कराना पड़ेगा टॉप 10 पर टॉप 20 पर के अंदर आना पड़ेगा चाहे हम किसी भी फील्ड के अंदर काम कर रहे हैं अगर हमें बेस्ट अपॉर्चुनिटी चाहिए तो इनफैक्ट यहां पर एक इनिशिएटिव रिक्रूटर्स भी ले सकते हैं कि वह अपनी ऑफ कैंपस हायरिंग को और ज्यादा स्ट्रांग करें ताकि ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स फ्रॉम अक्रॉस ऑल कॉलेजेस ऑफ इंडिया उन अपॉर्चुनिटी के लिए अप्लाई कर पाएं और इस डायरेक्शन में कुछ कंपनीज ने काम शुरू भी कर दिया है इफ यू लुक एट द रिसेंट रिपोर्ट्स ऑफ कैंपस हायरिंग इज एक्सपेक्टेड टू इंक्रीज इन द कमिंग इयर्स व्हिच इज़ अ रियली गुड साइन फॉर ऑल ऑफ़ द स्टूडेंट्स अब यह तो हो गई कि रिक्रूटर्स क्या करेंगे तो आई होप कि यहां तक हमें क्लियर पिक्चर मिली होगी कि प्रॉब्लम सिर्फ कॉलेज की फीस कॉलेज के प्रोफेसर्स के साथ नहीं है प्रॉब्लम एगजैक्टली कॉलेज करिकुलम के साथ भी है जो हमें वह प्रैक्टिकली चीजें सिखा ही नहीं रहा जिनकी हमें एक्चुअली जरूरत है अब यह तो हमने सारी प्रॉब्लम्स को एड्रेस कर लिया अब इन सारी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन क्या है सबसे पहला सॉल्यूशन तो यही है कि हम अवेयर हो गए कई सारे स्टूडेंट्स ऐसे होते हैं जो कॉलेज पूरा ग्रेजुएट कर जाते हैं तब जाके उन्हें हिट करता है कि अच्छा जॉब मार्केट के अंदर कुछ और ही एक्सपेक्टेशन चल रही हैं कॉलेज के अंदर तो कुछ और ही चल रहा था तो उन चीजों से हम अगर पहले ही अवेयर हो गए तो अब हम बेटर प्रिपेयर्ड हैं हमें ऑलरेडी पता है कि सिचुएशन क्या चल रही है किस तरीके से हमारा माइंड सेट होना चाहिए किस तरीके की चीजें हमसे एक्सपेक्टेड हैं और क्या हमें सीखने की जरूरत है एक चीज जो हमें यहां पे जान लेनी चाहिए वो ये है कि थिंग्स विल डेफिनेटली चेंज ऐसा नहीं है कि ये जो सिस्टम के अंदर प्रॉब्लम्स हैं ये चलती जाएंगी चलती ही जाएंगी इंडेफिनटली थिंग्स आर गोइंग टू चेंज बट थिंग्स आर नॉट गोइंग टू चेंज इन योर टाइम हम अगर चीजों के ठीक होने का वेट करेंगे तो चीजें कभी ठीक नहीं होंगी हमें अपने लेवल पे जितने हम एक्शंस ले सकते हैं उन एक्शंस को लेने की कोशिश करनी है तो फर्स्ट जो सबसे रियल टाइम रियलाइफ अबाउट द ऑन ग्राउंड रियलिटी अब सेकंड सॉल्यूशन जो हम एज अ स्टूडेंट अपना सकते हैं वो ये है कि हम रिक्रूटर का माइंडसेट समझ सकते हैं रिक्रूटर चाहता है कि उसे अच्छा टैलेंट मिल जाए एट अ रीजनेबल प्राइस तो जनरली रिक्रूटर्स जो होते हैं अगर उन्हें कुछ पर्टिकुलर सेट ऑफ स्टूडेंट्स हायर करने होते हैं उनमें से जो टॉप के स्टूडेंट्स होते हैं उनके लिए उनकी प्रेफरेंस होती है कि टियर वन से कुछ बच्चे हायर कर लिए और बाकी जो वैकेंसीज बच गई उनके लिए वो कैंडिडेट्स ढूंढते हैं दूसरे कॉलेज इसके अंदर तो यहां पर हमारे लिए समझने वाली बात यह है कि एक किसी की भी बिना एक्स्ट्रा तैयारी के जॉब नहीं लग रही अगर आईआईटी के अंदर भी कोई टॉप प्लेसमेंट निकालकर लेकर जा रहा है तो वो स्टूडेंट कॉलेज की पढ़ाई के अलावा भी एक्स्ट्रा तैयारी करता है और वही सेम चीज हमें भी बैठकर करनी पड़ेगी अगर हम चाहते हैं कि हमारी टियर थ्री कॉलेज से टियर फोर कॉलेज से हमें एक अच्छी अपॉर्चुनिटी मिल जाए तो उसके लिए हमारी तैयारी भी अच्छे लेवल की होनी चाहिए अगर हमारे कॉलेज के अंदर 1000 बच्चे हैं तो 1000 में से हमें टॉप 50 के अंदर टॉप 10 के अंदर आने की कोशिश करनी है क्योंकि अगर अगर हम अपने टियर थ्री कॉलेज में टियर फोर कॉलेज में प्राइवेट कॉलेज में टॉप के स्टूडेंट्स में होंगे तब जाके हमें टॉप अपॉर्चुनिटी डीसेंट पैकेजेस मिल रहे होंगे तो डिसेंट पैकेज के लिए कोशिश करनी है कि हम टॉप की जो डायरेक्शन है उसकी तरफ जा रहे हो एंड थर्ड रियलाइफ लेकर जानी है वो ये है कि ऐसा नहीं है कि कॉलेज यूजलेस हो जाता है कॉलेज हमें एक बहुत अच्छा डेडिकेटेड टाइम देता है वो वनवास टाइप हमें टाइम देता है जिसमें हम अपने सिंगल गोल के ऊपर ध्यान दे सकते हैं कि अगर हमें इंजीनियरिंग में करियर बनाना है तो हम स्पेसिफिकली इंजीनियरिंग की डायरेक्शन में जा सकते हैं किसी और फील्ड में करियर बनाना है तो हम उस डायरेक्शन में जा सकते हैं तो इतना डेडिकेटेड 4 साल का जो टाइम है उसे हमें अच्छे से यूटिलाइज करना है कॉलेज के अंदर एक तो हमें एक्सपोजर बहुत अच्छा मिल जाता है कॉलेज के अंदर जाके हम कई सारे लोगों से मिलते हैं हमें दूसरे लोगों के भी थॉट प्रोसेसेस पता चलते हैं अच्छा टेक फील्ड के अंदर ये करियर एजिस्ट करते हैं हम एड में जा सकते हैं हम वेब में जा सकते हैं मशीन लर्निंग में जा सकते हैं हम डेटा एनालिस्ट में जा सकते हैं हम दूसरी फील्ड्स के अंदर भी जा सकते हैं तो एक तो हमें कई सारी डिफरेंट फील्ड्स पता चलती हैं स्कूल के अंदर तो हमें कोई आईडिया नहीं होता कि जॉब लगती कैसे है कॉलेज के अंदर एक्चुअली जाके हमें पता चलता है कि अच्छा इस तरीके से हमारे जॉब की तैयारी हो सकती है तो वो एक्सपोजर एक तो बहुत ज्यादा जरूरी होता है जो हमें कई केसेस में घर बैठे-बैठे नहीं मिल सकता सेकंड कॉलेज का एनवायरमेंट हमें बहुत ज्यादा इन्फ्लुएंस करता है और जब मैं इन्फ्लुएंस कह रही हूं तो इन्फ्लुएंस वो दोनों डायरेक्शंस में करता है वो आपको पॉजिटिव डायरेक्शन में भी बहुत ज्यादा इन्फ्लुएंस कर सकता है वो आपको नेगेटिव डायरेक्शन में भी बहुत ज्यादा इन्फ्लुएंस कर सकता है तो एक बहुत ही आपको माइंडफुल चॉइस लेनी पड़ेगी कि कॉलेज के अंदर आप किस तरीके का एनवायरमेंट रखते हैं जिस तरीके का आपका फ्रेंड सर्कल होगा जिस तरीके के लोगों के साथ आप इंटरेक्ट करेंगे डे टू डे बेसिस पर वैसे ही रिजल्ट्स हमें एट दी एंड अपने कॉलेज के एंड पे मिल रहे होंगे तो अगर आपने अपने लिए एक पॉजिटिव एनवायरमेंट सेट किया है अगर आप ऐसे लोगों के साथ इंटरेक्ट करें हैं जिनके गोल्स एंड ड्रीम्स आपके गोल्स एंड ड्रीम्स के साथ अलाइन है तो एट दी एंड ऑफ़ फोर इयर्स यू आर गोइंग टू सी अ ट्रांसफॉर्मेशन इन योरसेल्फ तो वो रियलाइफ इंपॉर्टेंट है और अपना माइंडफुल जो सर्कल बिल्डिंग होता है कॉलेज के अंदर उसको बनाना बहुत इंपॉर्टेंट है मुझे बिल्कुल भी बताने की जरूरत नहीं है कि कौन सी खराब आदते हैं जो कॉलेज के अंदर पिक कर लेते हैं कई सारे स्टूडेंट्स तो उनसे आप जितना बचकर चलोगे उतना हम लॉन्ग टर्म में बेनिफिट्स लेकर जा रहे होंगे तो आई होप कि इन सारे प्रॉब्लम्स एंड सॉल्यूशंस को समझ के जो भी स्टेप हम एज अ स्टूडेंट अपने लेवल पे ले सकते हैं उन सारे स्टेप्स को जाकर हम ले रहे होंगे एंड इफ यू आर अ स्टूडेंट जो अपनी इंजीनियरिंग के साथ-साथ अपनी कोडिंग की अपनी टेक प्लेसमेंट की तैयारी शुरू करना चाहते हैं तो आप सभी के लिए एक डेडिकेटेड सेशन हमने अपना कॉलेज स्टेप पाथ मिल जाएगा कि किस तरीके से फर्स्ट ईयर में हमें क्या पढ़ना है सेकंड ईयर में हमें क्या पढ़ना है थर्ड ईयर में हमें क्या पढ़ना है फोर्थ ईयर में हमें क्या पढ़ना है तो हमें एक क्लियर डायरेक्शन मिल जाएगी कि किस तरीके से टेक प्लेसमेंट्स इंडिया के अंदर वर्क करती है और हमें एज अ स्टूडेंट कैसे अपनी तैयारी करने की जरूरत है तो आई होप कि आज का सेशन आपकी जर्नी के अंदर कहीं ना कहीं आपको हेल्प कर रहा होगा एंड कहीं ना कहीं कुछ यूज़फुल हम इससे सीख कर जा रहे होंगे आज के लिए इतना ही मिलते हैं नेक्स्ट वीडियो में टिल देन कीप लर्निंग एंड कीप एक्सप्लोरिंग