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महाभारत के 10 महान योद्धा

धरती खून से लथपथ थी आकाश चीख से गूंज रहा था महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे भयानक युद्ध था ऐसे योद्धा जिनके क्रोध ने धरती को हिलाकर रख दिया जिनके युद्ध कौशल ने देवताओं को भी दंग कर दिया जिनकी कहानियां रोंगटे खड़े कर देती हैं आज हम टाइम ट्रेक ट्रिविया हिंदी के इस नए वीडियो में आपको महाभारत के 10 सबसे महान योद्धाओं से परिचित कराएंगे यह योद्धा अपनी वीरता शक्ति और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे और में से कुछ तो देवताओं को भी परास्त करने की क्षमता रखते थे नंबर 10 अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु 16 साल का ही था परंतु युद्ध कौशल में दिग्गजों को भी मात देता था अभिमन्यु की सबसे बड़ी वीरता थी चक्रव्यूह को तोड़ना यह एक जटिल युद्ध रचना थी जिससे बाहर निकलना लगभग असंभव माना जाता था उसने कई प्रसिद्ध योद्धाओं को युद्ध में पराजित किया जिनमें दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मणा और कौरव सेना के अनेक महारथी शामिल थे हालांकि नियति कुछ और ही मंजूर था युद्ध के दौरान अभिमन्यु अकेला पड़ गया उसके सारथी और घोड़े मारे गए उसका धनुष टूट गया निहत्थे होने के बावजूद उसने हार नहीं मानी उसने टूटे रथ के पहिए को हथियार बनाकर लड़ना जारी रखा कौरवों के छह महारथियों द्रोणाचार्य कर्ण कृपाचार्य कृत वर्मा अश्वथामा और शकुनी ने मिलकर धर्म युद्ध के नियमों का उल्लंघन करते हुए अभिमन्यु पर आक्रमण किया और उसे वीर गति प्राप्त हुई यही उसकी अमर कहानी उसकी वीरता की कहानी युगों युगों तक याद की जाएगी नंबर नौ सात्यकि महाभारत के रण में जहां भीष्म अर्जुन कर्ण जैसे नाम युद्ध के पर्याय बन गए वहीं कुछ ऐसे योद्धा भी थे जिनकी वीरता को इतिहास के पन्नों में उतना स्थान नहीं मिला ऐसे ही एक अविस्मरणीय योद्धा थे यादव कुल के सात की उन्होंने शस्त्रों का ज्ञान अर्जुन से प्राप्त किया था साथ की एक बेहतरीन तलवारबाज भी थे उन्होंने शकुनी को दो बार पराजित किया और जब द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को मारने के लिए आगे बढ़ रहे थे तो सात्यकि ने ही काफी लंबे समय तक गुरु द्रोण को रोके रखा था उन्होंने अर्जुन की सहायता करते हुए जयद्रथ वद में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई सात्यकि ने पांडव सेना के सेनापति दृष्ट दमन की भी जान कई बार बचाई थी युद्ध के दौरान उन्होंने भूरिश्रवा को मार गिराया जिसके बाद उन्हें काफी आलोचना भी मिली सात की उन कुछ चुनिंदा योद्धाओं में से थे जो युद्ध के बाद जीवित बचे और यहां तक कि अर्जुन तो सात की को अपने समान योद्धा मानते थे नंबर आठ भग दत्त नरकासुर के पुत्र प्राग ज्योतिष के राजा भग दत्त अपने विशाल काय हाथी सुप्रतिक पर सवार होकर युद्ध भूमि में उतरते थे हाथियों के युद्ध में उनकी कुशलता अद्वितीय थी उनका हाथी सुप्रतिक विशाल शक्तिशाली और लगभग अपराज था सुप्रतिक इंद्र के ऐरावत के समान बलशाली था वृद्ध के बावजूद भग दत्त में अदम्य वीरता का वास था कुरुक्षेत्र युद्ध में वे सबसे वरिष्ठ योद्धाओं में से एक थे शायद भीष्म और द्रोणाचार्य से भी अधिक उनका सामर्थ्य ऐसा था कि वे भीम और घटोत्कच जैसे शक्तिशाली योद्धाओं को भी परास्त कर सकते थे उनके पास एक अमोघ अस्त्र था जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने उन्हें प्रदान किया था वैष्णव अस्त्र यह अस्त्र अपनी दिव्य शक्ति के कारण किसी भी लक्ष्य को भस्म कर सकता था भग दत्त ने इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन के विरुद्ध किया परंतु भगवान कृष्ण ने अपने चमत्कार से इस अस्त्र को माला में बदल दिया नंबर सात घटोत कच घटोत कच भीम और राक्षसी हिडिंबा का बेटा था उसकी मां के कारण वह आधा राक्षस था जिससे उसे कई मायावी शक्तियां मिली थी वह उड़ सकता था अपना रूप छोटा या बड़ा कर सकता था और अदृश्य भी हो सकता था उसने कई राक्षसों को मारा जिनमें अलं भूषा और बहुत सारे विशालकाय असुर भी शामिल थे दुर्योधन ने कर्ण से घटोत्कच को मारने की गुहार लगाई क्योंकि घटोत्कच के हमलों से पूरी कौरव सेना नाश के कगार पर पहुंच चुकी थी कर्ण के पास भगवान इंद्र द्वारा दिया गया वासुकी शक्ति नाम का दिव अस्त्र था लेकिन वह इसे सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल कर सकता था और कर्ण इसे अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन के लिए बचा कर रखना चाहता था मगर दुर्योधन को मना नहीं कर पाने के कारण कर्ण ने वासु की शक्ति का इस्तेमाल करके घटोत्कच को मार डाला ऐसा कहा जाता है कि जब घटोत्कच को लगा कि वह मरने वाला है तो उसने बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया उसका विशाल शरीर गिरने पर कौरव सेना की एक अक्षौहिणी सैन्य दल उसके नीचे दबकर मर गई घटोत्कच के मरने पर भगवान कृष्ण खुश थे क्योंकि अब कर्ण के पास अर्जुन के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए वासु की शक्ति नहीं बची थी नंबर पांच भीम वायु देवता ने कुंती और पांडु को पुत्र प्रदान किया और भीम का जन्म हुआ 10000 हाथियों के बल से समृद्ध उसकी गर्जना युद्ध भूमि पर कंपन पैदा कर देती थी गदा युद्ध में वह दुनिया के सबसे बेहतरीन और कुशल योद्धाओं में से एक था और साथ ही एक महान पहलवान भी था भीम को कृपाचार्य और द्रोणाचार्य ने शिक्षा दी थी बचपन से ही भीम की कौरव खासकर दुर्योधन के साथ दुश्मनी चलती थी द्रोणाचार्य और कृपाचार्य के मार्गदर्शन में वह एक अजय योद्धा बन चुका था जिसके रौद्र रूप से खल नायकों के रोंगटे खड़े हो जाते थे उसने हिडिंबा और बकासुर जैसे कई राक्षसों का वध किया जरासंध मगध का शक्तिशाली राजा अपनी अत्यधिक शक्ति के लिए जाना जाता था भीम ने जरासंध को कुश्ती में पराजित किया और उसे बीच से फाड़कर मार डाला किचक द्रौपदी को परेशान करने का प्रयास करता था भी ने उसे फर्श पर पटक पटक की मार डाला कुरुक्षेत्र युद्ध में भीम ने 100 के 100 कौरव भाइयों को मार डाला युद्ध के अंतिम दिन भीम ने दुर्योधन से युद्ध किया और अपनी गदा से उसकी दोनों झं काओं पर प्रहार किया इस प्रकार उसने द्रौपदी के चीर हरण के समय ली गई प्रतिज्ञा को पूरा किया नंबर पांच द्रोणाचार्य और कृपा के तप से जन्मा अश्वथामा युद्ध में गरजता तूफान था उसके माथे पर अलौकिक तेजस्वी मणि जगमगाती थी जो उसे भूख प्यास थकान और बीमारियों से बचाती थी जिससे वह लगभग अजय हो गया था अश्वथामा के पास दिव्य अस्त्रों का भरमार था उसके तरकश में ब्रह्मांड को नष्ट करने वाला ब्रह्मास्त्र और सृष्टि को लील लेने वाला नारायणास्त्र जैसे महा विनाशकारी शस्त्र थे युद्ध के 14वें दिन उसने राक्षसों की एक पूरी सेना को मार डाला जिसमें घटोत्कच का पराक्रमी बेटा अंजना पवन भी शामिल था उसने घन तोत कच को भी हरा दिया और उसके माया जाल को तोड़ दिया साथ ही उसने घटोतकच की एक अक्षौहिणी सेना को भी नष्ट कर दिया था अश्वथामा का सबसे कुख्यात कार्य युद्ध के 18वें रात का ढावा था जहां उसने सोते हुए द्रौपदी के पुत्रों का भीषण हत्याकांड किया था वहां उसने धृष्टद्युम्न और शिखंडी को भी मार डाला जो कि युद्ध के नियमों के विरुद्ध था नंबर चार गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के राजगुरु गुरु द्रोण वह महान गुरु युद्ध कलाओं और रणनीतियों में निपुण थे और युद्ध के सभी रूपों में अत्यधिक कुशल थे उनकी युद्ध तकनीक इतनी सटीक और घातक थी कि मानो वह युद्ध के मैदान पर एक शतरंज का खेल खेल रहे हो गुरु द्रोण एक से बढ़कर एक दिव्य अस्त्रों के झाता थे परशुराम ने उन्हें दिव्यास्त्र की गहन विद्या सिखाई जिसमें उन अस्त्रों को बुलाने और वापस लेने के मंत्र भी सम्मिलित थे द्रोण की शस्त्रागार में ब्रह्मास्त्र ब्रह्म शिर नारायणास्त्र रुद्र अग्ने वज्र जैसे अनेक शक्तिशाली अस्त्र थे उनके पास ब्रह्मा की अजय खडक भी थी जिसे देवताओं ने सुर के संहार के लिए निर्मित किया था इस खड को असी कहा जाता था और यह मान्यता थी कि जो कोई भी इसे धारण करता वह अजय हो जाता युद्ध के 13वें दिन द्रोणाचार्य ने अपनी चतुराई से चक्रव्यूह का निर्माण किया जिसका उद्देश्य युधिष्ठिर को बंदी बनाना था उन्हें पता था कि केवल अर्जुन और कृष्ण ही इस व्यूह को भेदने की कला जानते हैं अभिमन्यु को इस व्यूह को भेदने का ज्ञान तो था परंतु वापस निकलने का मार्ग उन्हें मालूम नहीं था इसी च व्यूह में अभिमन्यु को अधर्मी तरीके से मारा गया था गुरु द्रोण ने ब्रह्मास्त्र जैसे दिव्यास्त्र का प्रयोग सामान्य सैनिकों के खिलाफ किया जो कि युद्ध नीति के अनुसार अनुचित था नंबर तीन अर्जुन अर्जुन पांडु और कुंती के तीसरे पुत्र थे उनका जन्म इंद्र देव की कृपा से हुआ था इसलिए उन्हें देवराज इंद्र का पुत्र भी कहा जाता था छोटी उम्र से ही अर्जुन एक असाधारण धनुर्धर के रूप में उभरे का गांडीव धनुष से छूटे बाण शत्रुओं के कवच को ची ते हुए उनके प्राणों को क्षण भर में लीन लेते थे अर्जुन ने सुना कि द्रुपद अपनी पुत्री के लिए एक स्वयंवर का आयोजन कर रहे हैं प्रतियोगिता में धनुष से पानी में परछाई देखकर एक सुनहरी मछली की आंख में बाण मारना था स्वयंवर में शामिल लगभग सभी राजाओं को यह चुनौती पूरी करने में असफलता मिली अंत में अर्जुन ने अपनी अद्भुत शक्ति और अचूक निशाने से इस प्रतियोगिता को जीत लिया और द्रौपदी को अपने साथ ले गए असंख्य दिव्य अस्त्रों से लैस अर्जुन एक ऐसे योद्धा थे जिनके शौर्य से रोंगटे खड़े हो जाते थे उनके सबसे प्रमुख हथियारों में से एक था गांडीव अग्निदेव से प्राप्त एक अलौकिक धनुष जिसकी शक्ति अपरम थी उनके पास पशु पास्त्र भी था जो भगवान शिव द्वारा प्रदत्त एक विनाशकारी अस्त्र था पशुपतास्त्र व अस्त्र जिसके नाम में ही कंपन था महादेव का प्रलयंकारी वरदान जिसका स्पर्श विनाश का पर्याय था ब्रह्मास्त्र सृष्टि के रचयिता का ही विनाश का मंत्र आधुनिक परमाणु अस्त्र के समान अर्जुन के ही अस्त्रों में से एक था उनके शस्त्रागार में अन्य भयानक अस्त्र भी शामिल थे जैसे इंद्रास्त्र जो वज्रपात का प्रहार करता था अग्नि वर्षा वाला अग्नि अस्त्र और जल का आव्हान करने वाला वरुणा स्त्र यह दिव्य अस्त्र ना केवल शक्तिशाली थे बल्कि देवताओं के अनुग्रह और अर्जुन के आध्यात्मिक बल के भी प्रतीक थे यह अस्त्र ऐसे थे मानो युद्ध भूमि पर स्वयं देवता अर्जुन के साथ खड़े हो महाभारत के अनुसार युद्ध के दसवें दिन शिख और अर्जुन दोनों एक ही रथ पर सवार थे और दोनों ने भीष्म से युद्ध किया भीष्म ने शिखंडी पर बाण नहीं चलाए क्योंकि वे एक क्लीप थे अर्जुन ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया अर्जुन ने शिखंडी की आड में भीष्म को बाणों से घायल कर दिया जिससे वे युद्ध भूमि में शर शैया पर लेट गए युद्ध के 12वें दिन अर्जुन ने अपनी अतुलनीय धनुर्विद्या से प्राग ज्योतिष के शक्तिशाली राजा भग दत्त और उनके विशाल काय हाथी सुप्रतिक को मार गिराया युद्ध के 14वें दिन अर्जुन ने कौरव सेना में घुसकर दो अक्षौहिणी सेना का संहार किया अंत में उन्होंने जयद्रथ का सिर भी धड़ से अलग कर दिया इसी दिन उन्होंने इंद्रास्त्र का प्रयोग करके कंबोज राज्य के राजा सुद शि को भी मार गिराया युद्ध के 17वें दिन अर्जुन और कर्ण के बीच होने वाली महानतम लड़ाई की प्रतीक्षा सभी को थी जब यह भयानक मुकाबला हुआ तो दोनों ओर से अपरिमित शक्ति के साथ बाणों की वर्षा की गई जब कर्ण बिना किसी शस्त्र के रह गए तब अर्जुन ने दिव्य अस्त्र अंजलिका स्त्र के प्रयोग से उनका अंत कर दिया नंबर दो कर्ण महाभारत में कर्ण एक ऐसा वीर था जिसकी कहानी दिल को चीर देती है क्रूर भाग्य और अन्याय की जंजीरों में जकड़ा हुआ वह प्रेम का भूखा योद्धा था पर मित्रता के लिए वह अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार था सूर्यदेव के अंश से जन्मा कर्ण अपने दिव्य कवच और कुंडल से अलंकृत था यह वरदान उसे जन्मजात अमृत्व प्रदान करते थे कर्ण के पास भार्गव स्त्र नाम का एक विनाशकारी अस्त्र था जो उसने अपने महान गुरु परशुराम से प्राप्त किया था युद्ध के 17वें दिन उसने पांडव सैनिकों के लाखों सैनिकों को मारने के लिए भर्ग वस्त्र का आह्वान किया विजय धनुष भगवान शिव का अमोघ ऐसा धनुष जिसे कोई भी अस्त्र छीर नहीं सकता था कर्ण एक महान दानी था कोई भी उसके पास से खाली हाथ नहीं लौटता था उसने अपने जन्म सिद्ध दिव्य कवच तक दान कर दिए मानो दान ही उसका धर्म था एक बार कण ने दान देने में अपनी अदम्य क्षमता का परिचय दिया उसने दान के लिए अपने कवच और कुंडल तक दान कर दिया इससे प्रभावित होकर देवराज इंद्र ने कर्ण को वास्वी शक्ति प्रदान की इंद्र ने कहा इस अस्त्र से तुम देवताओं असुरों राक्षसों यक्ष किन्नरों और सर्पों में से जिसे भी मारना चाहो निश्चित रूप से मार सकते हो लेकिन इसे सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता था कर्ण के पास ब्रह्मास्त्र भी था हालांकि विडंबना यह थी कि कर्ण को अपने गुरु परशुराम जी का श्राप था श्राप के कारण युद्ध के निर्णायक क्षण में जब उन्हें ब्रह्मास्त्र की सब से ज्यादा जरूरत होगी तो वे इसके मंत्र भूल जाएंगे अर्जुन के साथ अपने अंतिम युद्ध में खून सूख चुका था बदन तीरों से छलनी था मानो भाग्य के सारे तीर एक साथ उस पर बरस रहे हो रथ कीचड़ में धंसा हुआ था मानो युद्धभूमि खुद ही उनका साथ छोड़ रही हो उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने का प्रयास किया लेकिन परशुराम जी के श्राप के कारण वे इसके मंत्र को भूल चुके थे वास्वी शक्ति भी घटोत्कच पर खर्च हो चुकी थी ऐसा लग रहा था मानो भाग्य उनका मजाक उड़ा रहा हो जब वे रथ का पहिया निकालने के लिए नीचे उतरे तो उन्होंने युद्ध रोकने के लिए अर्जुन से निवेदन किया युद्ध के नियमों के अनुसार ऐसा करना सही नहीं था लेकिन कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध जारी रखने के लिए प्रेरित किया उन्होंने तर्क दिया कि कर्ण ने पहले ही युद्ध के नियमों को तोड़ दिया था जब उन्होंने अभिमन्यु वध किया था नंबर एक भीष्म भीष्म पितामह के नाम से पूज्य गंगापुत्र जिन्होंने अपने पिता के सुख के लिए जन्म सिद्ध सिंहासन को ठुकरा दिया और आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर अग्नि की तरह तपते रहे इस अद्वितीय त्याग के कारण उन्हें भीष्म की उपाधि मिली और साथ ही अपने पिता शांतनु से उन्हें वह वरदान प्राप्त हुआ उन्हें इच्छा मृत्यु का वर भी मिला यानी उनकी मृत्यु का समय उनके ही इशारों पर नाचता था भीष्म और परशुराम की लड़ाई महाभारत की एक प्रमुख घटनाओं में से एक है एक भयंकर युद्ध छिड़ा भीष्म अपनी प्रतिज्ञा की धार पर अडिग वज्र की तरह खड़े रहे 23 दिनों तक युद्ध गर्जा दिव्य शस्त्रों का प्रलय बरसाता रहा गंगा ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन असफल रही युद्ध के 24वें दिन भीष्म ने परशुराम के खिलाफ प्राश का इस्तेमाल करने का प्रयास किया लेकिन दिव्य आर्ष नारद और देवताओं ने हस्तक्षेप किया और विनाशकारी शस्त्रों के इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की कुरुक्षेत्र के मरण में कौरव सेनापति के रूप में भीष्म खुद युद्ध नहीं बल्कि विनाश का पर्याय बन गए पांच पीढ़ियों को पार कर चुके वृद्ध भीष्म उस युद्ध में ऐसे लड़े मानो युद्ध का देवता खुद युद्ध भूमि पर अवतरित हो हर रोज 10000 सैनिकों और 1000 रथों को रौते हुए वे आगे बढ़ते रहे युद्ध से पहले कृष्ण ने वचन दिया था कि वे हथियार नहीं उठाएंगे मगर भीष्म का रौद्र रूप देख अर्जुन भी विचलित हो उठे एक बिंदु पर जब अर्जुन असहाय हो गया और मृत्यु के खतरे का सामना कर रहा था कृष्ण युद्ध क्षेत्र में कूद पड़े और भीष्म पर रथ का पहिया फेंकने के लिए दौड़े भीष्म व वीर थे जिसने भगवान को भी अपना वचन तोड़ने पर विवश कर दिया दसवें दिन की के युद्ध में अर्जुन शिखंडी के सारथी बनकर उनके साथ गए दोनों मिलकर भीष्म से लड़ने गए भीष्म पितामह ने स्त्रियों पर शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा ली थी जब उन्होंने शिखंडी को देखा तो स्त्री समझकर उन्होंने अपने हथियार रख दिए इस मौके का फायदा उठाकर अर्जुन ने शिखंडी को अपनी ढाल बनाकर भीष्म पर बाणों की वर्षा कर दी भीष्म पितामह लड़ाई ना कर पाए और अर्जुन के बाणों से छलनी होकर बाणों की शैया पर लेट गए