स्क्रीन पर दिख रही तस्वीरें देखिए यह मार्तंड मंदिर है कश्मीर में अनंतनाग के पास बना यह सूर्य मंदिर 1300 साल पहले बना था आज इसकी हालत एक खंडहर जैसी है अब एक और तस्वीर देखिए कुछ 150 साल पहले एक ब्रिटिश लेखक ने मार्तंड मंदिर का यह स्केच बनाया था जिसे देखकर पता लगता है कि यह मंदिर कितना भव्य रहा होगा हालांकि इससे भी दिलचस्प है उस राजा की कहानी जिसने यह मंदिर बनाया था एक राजा जिसने दक्षिण से लेकर पूर्वी भारत तक सैन्य अभियान चलाए थे यहां तक कि चीन के एक हिस्से को भी जीत लिया था इसी कारण इस राजा को उपाधि मिली एलेग्जेंडर ऑफ कश्मीर या कहे कश्मीर का सिकंदर हम बात कर रहे हैं कश्मीर के सबसे ताकतवर सम्राट ललितादित्य मुक्ता पीड़ की ललितादित्य ने अपना राज्य चीन तक कैसे फैलाया कैसे निर्माण हुआ मार्तंड मंदिर का और यह जरजर हालत में कैसे पहुंचा जानेंगे कहानी आज के एपिसोड में नमस्ते मेरा नाम सोनल है और आप देख रहे हैं तारीख जिसमें आज कहानी कश्मीर के सम्राट ललितादित्य मुक्ता पीढ़ और मार्तंड मंदिर की कुछ ब्योरे देखिए 3600 किलो चांदी से बनी परिहास केशव की मूर्ति मुक्त केशव की प्रतिमा जिसमें 979 किलो सोने लगा हुआ था बुद्ध का एक स्टैच्यू जिसे 62000 किलो तांबे से बनाया गया था यह सब डिटेल है उन मंदिर और बौद्ध मठों की जिन्हें सम्राट ललितादित्य ने बनाया था ललितादित्य कौन थे कश्मीर के राजाओं की कहानी हमें मिलती है राजतरंगिणी में यह एकलौती किताब है जिसमें कश्मीर का हजारों साल पुराना इतिहास दर्ज है राजतरंगिणी को लिखा था कलहन नाम के कश्मीरी इतिहासकार ने इसे 12वीं शताब्दी में लिखा गया था जब कलहर के पिता लोहार राजवंश के आखिरी राजा हर्ष देव के दरबार में मंत्री हुआ करते थे राजतरंगिणी में कलहन ने कश्मीर के बहुत से राजा और रानियों का जिक्र किया है कलहन के अनुसार इनमें सबसे महान थे राजा ललितादित्य जो कश्मीर के कारकोडाकन थे कारकोडाकन के अनुसार उनका शासनकाल 724 से 761 ईसवी के बीच रहा इस काल को कश्मीर का गोल्डन पीरियड भी कहा जाता है गोल्डन पीरियड क्यों क्योंकि उस समय भारतीय महाद्वीप का हाल देखिए सातवीं सदी आते-आते गुप्त वंश का अंत हो चुका था पूरा महाद्वीप छोटे-छोटे राज्यों में बट गया ऐसे में ललितादित्य को एक अच्छा मौका मिला अपने राज्य की सीमा का विस्तार करने का ललितादित्य ने अपने सैन्य अभियान की शुरुआत की और 14 साल तक यह अभियान चलता रहा इस दौरान ललितादित्य ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई जीतें हासिल की पहला अभियान था कन्नौज का जहां राजा यशोवर्मन का राज हुआ करता था कल्हन के अनुसार ललितादित्य और यशोवर्मन के बीच कई दौर की लड़ाइयां के बाद दोनों एक शांति समझौते के लिए तैयार हुए जिसे नाम दिया गया यशोवर्मन ललितादित्य संधि संधि की शर्तें दोनों राजाओं को मंजूर थी लेकिन एक जगह गरारी अटक गई ललित ललितादित्य के एक मंत्री ने संधि पत्र में यशोवर्मन का नाम ललितादित्य से पहले आने पर ऐतराज किया ललितादित्य ने अपने मंत्री की बात सुनते हुए संधि कैंसिल कर दी युद्ध दोबारा चालू हो गया कल्हन के अनुसार इस युद्ध में ललितादित्य की जीत हुई इसके बाद ललितादित्य ने पंजाब अफगानिस्तान सहित कई इलाकों में सैन्य अभियान चलाए और एक के बाद एक जीत हासिल करते रहे जर्मन इतिहासकार हरमन गेट्स के अनुसार 735 ईसवी के आसपास ल ता आदित्य ने बिहार बंगाल और उड़ीसा पर जीत हासिल की इसके बाद उनका दक्षिण अभियान शुरू हुआ प्राचीन भारत में तब दो मुख्य रास्ते हुआ करते थे जिनसे ट्रेड होता था कौन से थे ये दो रास्ते ये थे दक्षिणा पथ और उत्तरा पथ उत्तरा पथ पंजाब से बंगाल तक जाता वहीं दक्षिणा पथ वाराणसी से होकर दक्षिण में चोल राज्य की सीमाओं तक जाता कल्हन के अनुसार कर्नाटका की एक रानी रत्ता ने ललितादित्य की मदद की थी जिसके चलते कश्मीर की सेनाएं कावेरी तक पहुंची दक्षिण में युद्धों के बारे में ज्यादा तो नहीं पता चला लेकिन कलहन के अनुसार इस अभियान के बाद ललितादित्य ढेर सारी धन दौलत लेकर कश्मीर लौटे 14 वर्ष लंबे इस अभियान के चलते ही ललितादित्य को कश्मीर के सिकंदर की उपाधि मिली सिकंदर का अभियान 11 साल तक चला था भारतीय उपमहाद्वीप के सफल अभियानों के बाद ललितादित्य की नजर पड़ी चीन पर [संगीत] यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोसिन में प्रोफेसर आंद्रे विंग अपनी किताब अलहिंद में लिखते हैं कि सातवीं सदी में अरब आक्रमण के पर्शिया का सस्त वंश कमजोर हो चला था सेंट्रल एशिया के तमाम राज्यों के हालात खराब थे ऐसे में मौके का फायदा उठाते हुए ललितादित्य ने सेंट्रल एशिया के कई शहरों पर जीत हासिल की और वर्तमान चीन के शिंजियांग प्रांत का भी बड़ा हिस्सा जीत लिया चीन पर ललितादित्य की जीत को लेकर इतिहासकारों में कुछ भेद भी है लेकिन माना जाता है कि सेंट्रल एशिया पर ललितादित्य का निश्चित ही प्रभाव था ललितादित्य की सेना इतनी ताकतवर आखिर बनी कैसे कश्मीरी इतिहासकार पीएन के बम जई अपनी किताब कल्चर एंड पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ कश्मीर में बताते हैं कि ललितादित्य ने अपनी सेना में चीन और तुर्क सैनिकों को भर्ती किया चीन के पास युद्ध की बेहतर टेक्नोलॉजी थी जिसे उन्होंने अपनी आर्मी में शामिल किया उनके एक सेनापति का नाम कानकुन था जो संभवत एक चीनी व्यक्ति थे क् क्योंकि मैंडरिन भाषा में आर्मी जनरल को कैन क्यून कहा जाता है चीन के साथ ललितादित्य का एक और दिलचस्प प्रसंग है जिसका जिक्र चीन के ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है स्क्रीन पर नजर डालेंगे तो आपको सातवीं सदी का एक नक्शा दिखाई देगा उस दौर में चीन में टैंग नाम का एक साम्राज्य हुआ करता था इसके अलावा तिब्बत भी एक साम्राज्य हुआ करता था जो चीन से भी ज्यादा ताकतवर था दोनों में दुश्मनी थी टंग वंश के ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि दोनों साम्राज्य के बीच शांति समझौते के लिए एक शादी का सहारा लिया गया 12 साल की एक टैंग राजकुमारी की शादी तिब्बती राज परिवार में कर दी गई लेकिन वहां राजकुमारी इतनी परेशान हो गई कि उन्होंने वहां से भागने का फैसला किया राजकुमारी ने इसके लिए कश्मीर से मदद मांगी और तब कश्मीर के राजा की तरफ से जवाब में एक खत भेजा गया जिसमें लिखा था राजकुमारी आपका कश्मीर में स्वागत है इस घटना से हमें पता चलता है कि तिब्बत और कश्मीर के बीच तनातनी थी तिब्बत ताकतवर था और वे अपने साम्राज्य को फैलाते जा रहे थे इस मुसीबत से निपटने के लिए ललितादित्य ने चीन के टैंक साम्राज्य के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया कश्मीर और टैंग साम्राज्य के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हो गए ललितादित्य ने टैंग राजमहल में एक खत भी भिजवाया जिसमें उन्होंने लिखा था कि कैसे उनकी सेना तिब्बतियों को कई बार खदेड़ चुकी है उन्होंने तिब्बत का प्रभाव कम करने के लिए टैंग वंश को मदद की पेशकश की और 2 लाख सैनिकों की एक सेना देने का वादा भी किया इसके बाद तिब्बत और कश्मीर के बीच कई लड़ाइयां लड़ी गई तीन असफल अभियानों के बाद 737 ईसवी में ललितादित्य तिब्बत को हराने में सफल रहे इन तमाम अभियानों के अलावा कलहर ने लिखा है कि ललितादित्य ने एक ऐसे राज्य पर जीत हासिल की थी जिस पर स्त्रियां राज करती थी और जिसे सोने की खान कहा जाता था माना जाता है कि कलहन का आशय वर्तमान बल्ट स्तान से था किसी राजा के महान होने का मतलब सिर्फ सैन्य अभियानों से नहीं होता असल सवाल यह है कि उसने जनता के लिए कितना और क्या किया ललितादित्य को महान कहे जाने के पीछे एक बड़ा कारण उनके बनाए पुल मठ मंदिर और नेहरे थी कल्हन के अनुसार झेलम जहां कश्मीर को पानी देती है वहीं झेलम में आने वाली बाढ़ हर साल आपदा लाती है ललितादित्य ने नदी का सिल्ट साफ कर नहरें बनवाई ताकि बाढ़ पर काबू पाया जा सके और दूर के इलाकों को पानी मिल पाए कलहर ने लिखा है कि ललितादित्य ने एक विशाल पंचक्की का भी निर्माण कराया ललितादित्य के काल में कश्मीर में कई नए शहर भी बसाए गए इनमें से एक परिहासपोरा सपुरन से जाना जाता है यहां सम्राट ने कई मंदिर भी बनवाए और बौद्ध मठों स्तूप का भी निर्माण करवाया ललितादित्य की बनाई मूर्तियों का जिक्र हमने शुरुआत में किया था इनके अलावा कलहन के अनुसार ललितादित्य ने नरहरी की एक विशाल प्रतिमा बनवाई थी जो चुंब कों की मदद से हवा में तैरती थी एक विष्णु स्तंभ का जिक्र भी कलहन ने किया है जो 54 हाथ बराबर लंबी थी इन सबके अलावा भव्य मार्तंड मंदिर का निर्माण भी ललिता आदित्य ने ही कराया था जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं मार्तंड मंदिर की खास बातें यह है कि एक ऐसे स्थान पर इसे बनाया गया था जहां पूरी कश्मीर घाटी और पंजाल की चोटियों को देखा जा सकता है आज यह मंदिर जरजर हालत में है इसकी हालत आखिर हुई कैसे कश्मीरी इतिहासकार जोन राजा के अनुसार 15वीं सदी में कश्मीर के सुल्तान सिकंदर शाह ने मार्तंड मंदिर में तोड़फोड़ की थी और यह काम एक सूफी संत सैयद मोहम्मद हमदानी की सलाह पर हुआ था आने वाली सदियों में इस इलाके में आए भूकंप के चलते इस मंदिर को और नुकसान हुआ और इसकी हालत जरजर होती चली गई इसे बनवाने वाले सम्राट ललितादित्य का आखिर हुआ क्या ललितादित्य की मृत्यु को लेकर अलग-अलग कहानियां हैं एक सोर्स के अनुसार एक मिलिट्री अभियान के दौरान बर्फ में दमने के कारण उनकी मौत हो गई थी जबकि एक दूसरी कहानी के अनुसार एक युद्ध में हार के चलते अपने मंत्रियों के साथ वह अग्नि में कूद गए थे सच्चाई चाहे जो हो यह तय है कि ललितादित्य का कश्मीर के इतिहास में एक बड़ा जरूरी और उल्लेखनीय योगदान रहा है जिसके बारे में सबको पता होना चाहिए इस एपिसोड के जरिए यही हमारी कोशिश थी उम्मीद है कि यह कहानी आपको पसंद आई होगी कैसी लगी कमेंट में अपनी राय जरूर बताइएगा सारी जानकारी मेरे साथी कमल ने जुटाई थी मेरा नाम सोनल है ललन टॉप देखते रहिए शुक्रिया [संगीत]