Study IQ IS अब तयारी हुई Affordable दोस्तो स्वाइल दुनिया के मोस्ट इंपोर्टन नाचुरल रिसोर्सेज में से एक है स्वाइल प्लांट्स और ट्रीज के एक्जिस्टन्स को एंशूर करने के लिए उन्हें वाटर और नूट्रियंस प्रवाइड करती है मिट्टी के अलग-अलग रंग, स्वाइल से जोड़े ये सभी पहलू हमारे चेहरे पे अनायास ये एक हलकी सी मुस्कान चोड़ जाते हैं, यानि हम कह सकते हैं कि स्वाइल हमारी लाइफ का एक इंसेपरेबल पार्ट है, जर्नलाइज़ वे में देखें तो स्वाइल स्माल रॉक पार्� सॉयल की इसी डाइवर्सिटी के कारण हमारी एग्रीकल्चरल प्राक्टिसेस भी काफी डाइवर्स हैं असल में सॉयल टाइप और क्लामेटिक कंडिशन्स के ही अनुसार डिफरेंट टाइप्स की क्रॉप्स किसी स्पेस्वे के रिया में ग्रोखी जाती हैं और इसलिए आज के हमारे इस वीडियो डिसकशन में हम भारत में मौझूद सॉयल को समझने का प्रयास करेंगे उन nutrients की कमी से पैदा होने वाली समस्याएं और soil type के according evolve हुई agricultural practices के बारे में जानेंगे तो इस वीडियो की importance UPSC prelims और mains gear GS1 के geography section के लिए हाँ से important है तो चलिए शुरू करते हैं आज का important video साइन्स के according जो wind Water या किसी दूसरे Climate Action के चलते Rocks के Breakdown होने से Soil का Formation होता है इस Process को Weathering कहा जाता है किसी भी Soil का Nature इस बात पर डिपेंट करता है कि वो किस Type की Rocks से Form हुई है Experiment के लिए यदि हम जमीन में एक गढ़ा खोद कर Soil को देखें तो हमें इसमें तीन Different Vertical Layers दिखाई देंगी जहां हर Layer, Texture, Color, Depth और Chemical Composition के Parameters पर एक दूसरे से Different होगी Soil की N Layers को हॉरिजन्स कहा जाता है अपरमोस्ट हॉरिजन हॉरिजन और मिनिरल में रिश होती है और इसलिए जनरली इस हॉरिजन का कलर डार्क होता है असल में हॉरिजन ऐसे डार्क और ओर्गनिक मटीरियल को कहा जाता है यहां मज़ूद यही हॉरिजन सॉयल को डार्कर शेट देने के साथ साथ फाइटाइल भी बनाता है यही लेयर जनरली सॉफ्ट और पूरस होती है जिसकी वज़े से यह सॉयल लेयर जादा water retain करने की capacity रखता है इसे topsoil या horizon A बुलाया जाता है ये layer कई worms, rodents, moles और beetles जैसे living organisms को shelter provide करती है साथ ही छोटे plants के roots completely topsoil में ही embedded होते हैं इसके बाद आने वाली next layer यानि horizon B में horizon A के मुकाबले humus की quantity कम और minerals की quantity जादा होती है इसलिए ये layer generally harder और जादा compact होती है दिसरी layer है horizon C जो रॉक्स के छोटे-छोटे लंब से बनी होती है या यू कहें कि इस लेयर में लूज पेरेंट मटीरियल होता है ये लेयर सॉयल फॉर्मेशन प्रोसेस की फस्ट स्टेज है और इसी लेयर से इवेंचली उपर की दोनों लेयर्स का फॉर्मेशन होता है यानि इन तीन हॉरिजन्स के नीचे पाई जाने वाली और जादा बड़ी और हार्डर रॉक्स को पेरेंट रॉक या बेड रॉक कहा जाता है जिसने हमेशा से साइंटिस्ट का ध्यान अपनी ओर खीचा है। स्वाइल्स को लेकर साइंटिस्ट की इसी क्यूरोस्टी से स्वाइल्स क्लासिफिकेशन का जन्म हुआ। आईए उसे भी समझते हैं। one to one mentorship का feature भी आपके पास रहेगा prelims के लिए practice questions mains के answer writing practice और उसके बाद जो भी students prelims 2024 clear करेंगे उन्हें study IQ campus में बुला कर अगले 4 महिनों के लिए mains residential program के अंडर rigorous preparation कराई जाएगी बिरा किसी additional cost के और दोस्तो ये सब कुछ आपको मिलेगा मात्र और मात्र Prelims to Interview Batches English, English और Hindi Language में Launch होने जा रही हैं जिनमें Classes की Timing Evening 6 PM रहेगी तो आप भी AG Life कूपन कोड यूज़ करिए और पूरे देश के UPSC experience के साथ कहिए कि अब तैरी हुई affordable, steady IQ के साथ इन batches से related सभी important links आपको description और pinned comment में मिल जाएंगी दोस्तो भारत में different type की relief features, landforms, climatic realms और vegetation types present हैं इन सभी factors ने भारत में various types के soil के development में contribute किया है स्वाइल का classification कई हजारों सालों से किया जा रहा है। उधारान के तौर पर, ancient times में स्वाइल को दो main groups में classify किया जाता था। उर्वरा और उसारा। उर्वरा का अर्थ है fertile soil या उबजाव मिट्टी, और उसारा का अर्थ है sterile soil या बंजर मिट्टी। Similarly, 16th century में, अगबर शाषन के दौर में, स्वाइल को उनकी inherent characteristics और external features जैसे कि texture, color, land का slope, स्वाइल के moisture content, इन पारामेटर्स पर क्लासिफाई किया जाता था इसी तरह modern times में texture के basis पर soil के कुछ main types को identify किया गया जैसे कि sandy, clay, silty, loamy, etc. independence के बाद से देश की कई agencies ने soils का scientific survey किया इसी काम में 1956 में soil survey of india का जन हुआ soil survey of india ने दामोदर वैली में indian soils की comprehensive studies की थी इसी तरह natural bureau of soil survey and the land use planning जो इंडियन काउंसिल अफ एग्रीकल्चरल रिसर्च आईसी एयर के अंतरगत एक इंस्टिटूट है उसने इंडियन स्वाइल्स पे ठेर सारी स्टडीज की हैं हम आज स्वाइल्स के दो प्रकार के क्लासिफिकेशन देखेंगे स्वाइल्स पार्टिकल्स के साइज के अधार पर स्वाइल्स के तीन प्रकार होते हैं और लोमी सॉयल अगर सॉयल में बिक पार्टिकल का प्रपोर्शन ज्यादा है तो ऐसे सैंडी सॉयल कहते हैं अगर फाइन पार्टिकल का प्रपोर्शन रिलेटिवली ज्यादा है तो ऐसे क्लेई सॉयल कहते हैं और अगर लार्ज और फाइन पार्टिकल का प्रपोर्शन लग जैसे की sand particles काफी बड़े होते हैं और इसलिए वो closely fit नहीं हो पाती और उनके बीच में large spaces रह जाते हैं वक्त के साथ इन spaces में air भर जाती हैं sand particles के बीच के इन spaces से water quickly drain हो जाता है इसलिए sandy soil light, well aerated और काफी dry सी होती है clay soil के case में clay particles काफी छोटे होने के कारण tightly pack हो जाते हैं और इस वज़े से air के लिए space भी कम बचता है ऐसे में इन छोटे-छोटे particles की packing के बीच में रह जाने वाले tiny gaps water को hold करके रख सकती हैं इस soil में air कम और water जादा होता है और इसलिए ये sandy soil से जादा heavy होती है साथ ही इस सॉयल की water holding capacity सबसे जादा होती है इसके बाद आती है दोस्तो third यानि loamy soil ये plants की growth के लिए best top soil है loamy soil sand, clay और silt का mixture होता है silt एक प्रकार का soil particle है जो riverbeds के deposits में मिलता है silt particles का size sand और clay के बीच का होता है मतलब clay से बड़ा और sand से चोटा loamy soil में humus भी बाया जाता है experts का मानना है कि plant की growth के लिए इस soil में राइट वाटर होल्डिंग के पासिटी होती है इसके बाद आईए आप दोस्तों आते हैं अपने दूसरे क्लासिफिकेशन पर जेनेसिस, कलर, कॉंपरीशन और लोकेशन के बेसिस पर इंडियन सॉयल्स को इस प्रकार से क्लासिफाई किया गया है एलूवियल सॉयल, ब्लाक सॉयल, रेड और येलो सॉयल, लेटराइट सॉयल, एरिट स एलूवियल सॉयल की बात करें तो एलूवियल सॉयल नौर्डन प्लेंस और नौर्डन रिवर वैलीज में पाई जाती हैं कंट्री के टोटल एरिया का अपरोक्स 40% एरिया इसी सॉयल टाइप से कवर्ड है आज एलूवियल सॉयल राजस्थान के एक नेरो कॉलिडोर से होते हुए गुजरात के प्लेंस तक एक्स्टेंट करती है साथ ही ये सॉयल पेनेसुलर रीजन में, रिवर वैलीज में और इस्ट कोस्ट के डेल्टाज में पाई जाती है एलूवियल सॉयल्स का नेचर वैरी करता है ये सैंडी, लोमी या क्लेई टाइप्स में कनवर्ट हो सकती है जेनरली ये सॉयल पोटाश में तो रिच होती है लेकिन फॉसफरस में काफी पूर रहती है अपर और मिडल गंगा प्लेन में जिनने खादर और भांगर कहा जाता है खादर न्यू एलूवियम है फाइन सिल्ट से फॉर्म होती है जो flood plains से दूर deposit होती है खादर और भांगर soils दोनों में calcareous concentrations यानि कंकड का concentration होता है इसी तरह alluvial soils lower और middle ganga plains और ब्रह्मपुत्र valley में जादा loamy और clay होती है जहां west से east के ओर जाने पर sand content decrease हो जाता है alluvial soil का color light gray से लेकर ash gray तक vary करता है असल में इस soil का color mainly deposition की depth, material के texture और soil के maturity attain करने के time पर depend करता है Alluvial soil में intensive cultivation किया जाता है ये soil rice, wheat, sugarcane, tobacco, cotton, bajra, jowar, pea, pigeon pea, chick pea, black gram, green gram, soybean, ground nut, mustard, linseed, sesame, jute, maize, vegetables और सभी प्रकार के oil seeds और ideal irrigation के साथ साथ fruits के लिए भी suitable है अब बात करते है black soil Black soil डेकन प्लीटू के अधिकांश पार्ट को कवर करती है जिसमें महराश्चा, मद्यप्रदेश, गुजरात, आंद्रप्रदेश के पार्ट्स और तमिलनाडू के भी कुछ पार्ट्स इंक्लूड किये जाते हैं गुदावरी और किश्चा नदी के अपर रीचेस यानि की इं रिवर्स के सोर्सेस के पास और डेकन प्लीटू के नौर्थ वेस्टन पार्ट में काफी डेप तक ब्लैक सॉयल मौजूद है ये सॉयल कॉटन प्लांटेशन्स के लिए बेस्ट कंसीडर की जाती है इसलिए इस सॉयल को रेगूर सॉयल या ब्लैक कॉटन सॉयल भी कहा जाता है ब्लैक सॉयल जनरली क्लेई डीप और इंपर्मियेबल होती है जब ये गीली होती है तो ये फूल कर स्टिकी हो जाती है वहीं सूखने पर ये सॉयल सिकुड जाती है इसके चलते ड्राइज सीजन के दुरान ऐसी सॉयल में वाइड क्राक डेवलप हो जाते है जिसके कारण इस सॉयल में एक प्रकार से सेल्फ प्लॉइंग हो जाती है इसलिए ब्लाक सॉयल मॉइस्टर को काफी देर तक रिटेन करके रखती है इन सॉयल की लंबे समय तक मॉइस्टर को रिटेन करने वाली क्वालिटी इसमें पैदा होने वाली crops को dry season में sustain रखने में help करती है especially rain fed crops में chemically black soils lime, iron, magnesium और aluminum में rich होती है इनमें फुटाश भी होता है लेकिन इनमें phosphorus, nitrogen और organic matter की कमी होती है इस soil का color deep black से लेकर grey तक हो सकता है cotton के लावा इसमें rice, sugar के, wheat, jowar, sunflower, citrus fruits, vegetables, ground nut और सभी प्रकार के oil seeds उगाय जा सकते हैं अब बात करते हैं red and yellow soil की Deccan Plateau के eastern और southern part में low rainfall बारे areas में crystalline igneous rocks पर red soil पाई जाती है Western Ghats के Piedmont zone के साथ मतलब Western Ghats के foothills पे एक लंबा area red loamy soil से occupied है उडिशा और चतेजगर के कुछ parts और Middle Ganga Plain के southern parts में yellow और red soil पाई जाती है Crystalline और metamorphic rocks में iron के white diffusion के कारण soil में एक reddish color develop हो जाता है वहीं जब ये iron hydrated form में होती है तो soil का color yellow नजर आने लगता है red और yellow soil जब fine grained होती हैं तो ये normally fertile होती है हलाकि dry upland areas में पाई जाने वाली coarse grained soils की fertility काफी poor होती है ये soil generally nitrogen, phosphorus और humus में poor होती है इन soils में grow की जाने वाली suitable crops है sugarcane राइस, वीट, ग्राउंड निट, रागी, पोटाटो, पल्सिस और मैंगो और ओरेंज जैसे फ्रू� अब बात करते हैं लेटराइट सॉयल की लेटराइट शब्द लैटिन के लेटर से डराइव्ड है जिसका मतलब होता है ब्रिक या इट लेटराइट सॉयल हाई टेंपरिचर और हाई रेइनफॉल के एरियाज में डेवलब होती है बारिश होने पर सॉयल से लाइम और सलिका की लीचिंग हो जाती है और आरेन ओक्साइड और एलमूनियम कमपाउंट्स सॉयल में बचे रह जाते हैं फिर सॉयल के हुमस कॉंटेंट को ऐसे बाक्टरिया जो हाई टेंप्रेचर में ध्राइव करते हैं, फासली रिमूव कर देते हैं. ये सॉयल और्गनिक माटर, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्सियम में पूर होती हैं, जबकि इसमें आयरन ओक्साइड और पुटाश का एक्सस होता है. हाउस कंस्ट्रक्शन के लिए यूज़ किये जाने वाले ब्रिक्स को बनाने के लिए इन सॉयल्स को वाइडली यूज़ किया जाता है। ये सॉयल्स मेंली पेनिसुलर प्लेटू की हाइर एरियाज में डेवलप हुई है। लेटराइट सॉयल्स कॉमनली करनाटका, केरला, तमिलनाडू, मद्रपदेश, उडीशा और असम के हिली एरियाज में पाई जाती हैं। अलाकि ये सॉयल्स ज़्यादा फर्टाइल नहीं होती लेकिन फिर भी हम इनमें टी, कॉपर, रबर, कोकोनट और कैशुनेट जैसी चीज़ें ग्रो हो जाती हैं। अब बात करते हैं एरिट सॉयल की। एरिट सॉयल्स का कलर रेड से लेकर ब्राउन तक हो सकता है। सॉयल का स्ट्रक्चर जनरली सैंडी और नेचर सलीन होता है। कुछ एरियाज में सॉयल में सॉल्ड कॉंटेंट इतना जादा होता है कि सैलीन वाटर को एवापरेट करके हमें कॉमन सॉल्ड भी मिल जाता है। इन सॉयल्स में मॉइशर और हुमिस की कमी होती है। कंकर लेयर पाई जाती है वहीं सॉयल के बॉटम होरिजन में होने वाला ये कंकर लेयर फॉर्मेशन वाटर के डाउनवाड इंफिल्ट्रेशन को रस्टिक्ट करता है इसलिए जब यहाँ इरिगेशन किया जाता है तो सॉयल में प्लांट ग्रोथ के लिए सॉयल मौशर रेडिली अवलेबल होता है इन सॉयल्स में हुमिस और और्गनिक मैटर की जैसे मिलिट्स और मेज अब आते हैं सेलीन सॉयल्स की तरफ सेलीन सॉयल्स को उसर सॉयल्स भी कहा जाता है सेलीन सॉयल्स में सोडियम, बुटेशियम और मैगनीशियम की मात्रा जादा होती है और इसलिए ये इनफॉर्टाइल होती है इन सॉयल में सॉल्ड कॉंटेंट जादा होने के मुक के कारण है ड्राई क्लाइमेट और पूर ड्रेनिज का होना ये सॉयल्स अरिड और सेमी अरिड रीजन्स में इनका स्ट्रक्चर सैंडी से लेकर लोमी तक होता है और कैल्चियम की कमी होती है सैलिन सॉयल्स वेस्तन गुजरात इस्तन कोस्ट के डिल्टाज और वेस्ट बेंगॉल के सुन्दरबन एरियाज में एक्स्टेंसिवली पाई जाती है जैसे कि रन ओफ कच्छ में साउथ वेस्ट मॉन्सून सॉयल्ट सैलिन सॉयल्स की फॉर्मेशन को प्रमोड करता है ऐसे एरियाज जहाँ सलीन हो रही है साथ ही dry climatic conditions में excessive irrigation करने से एक प्रकार का capillary action देखने को मिलता है जिससे soil की top layer में salt deposit होने लगती है इसका उधारन है पंजाब और हर्याना ऐसे areas में farmers को soil में gypsum add करने के लिए advice किया जाता है जिससे soil salinity की problem को solve किया जा सके है अब चलते हैं pt soils की तरफ pt soils heavy rainfall और high humidity वाले areas में पाई जाती हैं ऐसी conditions के करण इन areas में vegetation की growth अच्छी होती है इस वज़े से इन areas में dead organic matter की एक large quantity accumulate हो जाती है और फिर इनसे soils को humus और organic content की एक rich quantity मिल जाती है इस soil में organic matter का content 40 to 50% तक देखने को मिल सकता है ये soils normally heavy होती हैं और इसका color black होता है कई जगहों पर ये soil alkaline होती है PT soils बिहार के northern part में उत्राखंड के सदन पार्ट में और वेस्ट बेंगॉल, उडिशा और तमिलनाडू के कोस्टर एरियाज में पाई जाती हैं यह वेरीशन इस बात पर निर्भग करता है कि किस प्रकार के माउंटेन इन्वायमेंट्स में यह डेवलप हुई हैं, वैलीज में यह लोमी और सिल्टी होती हैं और अपर स्लोप्स में कोर्स ग्रेंड होत साथ ही जब किमालियास के बरफीले इलाकों में इनका डेनुडेशन हो जाता है तो वहाँ स्वाइल्स एसेडिक हो जाती है और अनका हुमस कॉंटेंट भी लो हो जाता है। वहीं लोवर वैलीज में पाई जाने वाले स्वाइल्स फर्टाइल होती है। यह स्वाइल टी कल्टिवेशन, स्पाइसिस, वीड, मेज, बारले, कॉफी, ट्रॉपिकल फ्रूट्स और टेंपरेट फ्रूट्स के लिए अच्छे होती है। तो स्वाइल अपने आप में एक लिविंग सिस्टम है, जहां किसी दूसरे ओर्गनिजम की ही तरह इनका भी decay और degradation होता है और समय रहते अगर सही इलाज मिल जाए तो कुछ cases में treatment के जरिये इसे फिर से harvestable बनाया जा सकता है हलाई कि आज soil degradation हमारे समय की एक गंभीर समस्या बन गई है एक broad sense में soil degradation का अर्थ है soil erosion या misuse के कारण soil की fertility में कमिया नाया खत्म हो जाना वैसे तो ये एक normal natural phenomenon है लेकिन आज intensive farming practices जैसे deforestation, poor grazing, intensive cultivation forest fires और construction work के चलते soil degradation pace up हुआ है यही कारण है कि आज सरकार से लेकर different group of experts soil conservation के लिए collective efforts की मांग कर रहे हैं आशा करते हैं कि soil conservation को लेकर central और state government के प्रयास soil fertility को maintain करने soil erosion को prevent करने और soil की degraded condition को improve करने में काम्याब रहेंगे comment section में जरूर बताईएगा और इस वीडियो की importance UPSC means में देखते हुए एक सवाल हम आपके लिए छोड़कर जा रहे हैं जिसको आपको comment section में answer करना है and the question is make an account of the different types of soils and their distribution system in India and with this question my friends that's it for the video I hope आपको वीडियो पसंद आई होगी और अगर पसंद आई है