Hello friends, मैं हूँ गौरव ठाकोर और BJP government जबी power में आई थी तब उन्होंने तीन main मगर controversial issues उठाए थे और ये दावा किया था कि वो इन्हें हर हाल में पूरा करेंगे पहला issue था abrogation of article 370 दूसरा था राम मंदिर issue और finally third uniform civil code UCC लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मानो तो finally ये government अपने आखरी वादे UCC को काफी seriously ले रही है क्योंकि अभी रीसेंटली ही 14 तारीको एक खबर आई है कि उन्होंने स्पेशली UCC के लिए एक लॉ कमिशन इस्टाबिलिश की है जो अगले 30 दिनों के अंदर अंदर आम जनता से इस पर राय मांगने वाले हैं पट यही पर आता है असली प्रॉब्लम लोग क्या राय क्योंकि आज देखो इस पूरे टॉपिक को ना एक religious angle देकर कई communities का अलग-अलग opinion form हो चुका है एक तरफ वो लोग हैं जो इसे खुल कर support कर रहे हैं लेकिन media हमें ये बताती है कि ये mostly Hindus हैं दूसरे तरफ इसके विरोध में हमें ये बताया जा रहा है कि mostly minority groups हैं जिनका ये मानना है कि इससे इंडिया की unity in diversity का main essence ही खतम हो जाएगा और फाइनली आते हैं तीसरे कैटेगरी के लोग जो माइनॉरिटी में होने के बावजूद भी इसे सपोर्ट कर रहे हैं। वेल्प जब भारतीय मुसलिम महिला अंदोलन बीमेमे में करीब दस राजियों में मुसलिम औरतों का सर्वे की तो ये पता चला कि उन में से 90% पर रोट कर रही है महिलाओं ने यूजी के सपोर्ट में क्लियर लिए कहा कि वह ओरल एंड यूनिलाटरल तलाक और पॉलिगेमी पर सरकार द्वारा कंप्लीट बैन चाहते हैं तो यहां पर वापिस आ जाता है वही सवाल कि असली सच्चाई क्या है क्या कुछ नहीं है एंड फाइनली क्या ऐसे में गिवन दाट इंडिया में करीब 75% आबादी हिंदू की है क्या बीजेपी उनकी मदद से यूजी को बहुती जल्दी लागू कर देगी तो देखो इससे जुड़ी रीसेंटली एक खबर आई है कि उत्राखंड गवर्मेंट ने UCC लागू करने की तैयारी कर लिये और जैसे कि आप यहाँ पर देख सकते हो कि इसमें होने के अवल दा हिंदू मैरिज आक्ट 1955 Muslims के लिए Muslim Personal Laws 1937, Christians के लिए The Indian Christian Marriage Act 1872 और Parsis के लिए Parsi Marriage and Divorce Act 1936. But अब अगर UCC लागू होता है तो Marriage, Divorce, Property में हक जैसे Personal Disputes को Resolve करने के लिए सभी धर्मों के लोगों को एक Single Law ही Follow करना पड़ेगा. So इससे kind of UCC का एक Basic Clause क्या है उसका Idea आपको आ गया होगा. अब बात करते हैं जो UCC के अगेंस्ट में हैं, वो इसके विरोध में क्या अर्ग्यूमेंस उठा रहे हैं? So, उनके चार Major अर्ग्यूमेंस हैं. सबसे पहले, उनका ये कहना है कि गवर्मेंट UCC को लेकर बाकी सभी धर्मों पर Hindu Code या Simply अपने Hindu-thwa ideology को Impose करना चाहें.
और इसलिए Courts को इसमें Strongly Intervene करना चाहें. Basically, उन्हें ये डर है कि UCC लागू होने से बाकी सभी धर्मों को Hindu Customs को Follow करना पड़ेगा. और देखा जाये तो गलती भी नहीं है क्योंकि मीडिया और दूसरे जो पॉलिटिकल पार्टीज है वो यही नेरेटिव को बहुत ज़्यादा प्रोपोगेट कर रहे हैं और यहाँ पर मैं सिर्फ क्रिशियन्स और मुस्लिम्स की बात नहीं कर रहा हूँ इसमें इं� परिशद ने यूशी सी के अगेंट सुप्रीम कोट को अप्रोच किया था क्लेमिंग देट पॉलिगेमी एक ऐसी प्राक्टिस है जो नागा गॉन्ड्स बलगालुशाय और इसे कई आदिवासी समुदायों में भी कब से होती आ रही है और इसके अलावा बलावा एक महीला का मल्टिपल पूरुषों के साथ शादी करना या सिंपली पॉलीएंड्री यह तियान तोड़ा रोटा खासा लधाकी तो यह सभी ट्राइब्स यू सी सी को ओपनली एक्सेप्ट करेंगे जमायतुलमाहिंद के चीफ अर्शद मदानी का तो यह कहना है कि वह अपने परसनल लॉज पिछले इनी सारे arguments के चलते कई political parties जैसे the Samajwadi Party, Communist Party of India, CPI, Nationalist Congress Party और Indian National Congress और भी parties का ये मानना है कि ये bill अगर pass हुआ तो ये हमारे देश के social fabric को destroy करके सीधा unity in diversity वाले हमारे principle को ही चोट मौचा देगा और इसलिए courts को इन values को preserve करने के लिए intervene करना ज़रूरी है खेर UCC के against दूसरा argument है कि UCC के आने से लोगों का fundamental right Freedom to practice any religion violate हो जाएगा क्योंकि UCC सभी religious personal law को abolish करके India-wide सभी लोगों पर irrespective of religion बस एक ही single law लागू करेगा Then आता है तीसरा argument जिसमें opposition का ये कहना है कि जब CRPC और IPC जैसे criminal laws India-wide uniformly implement नहीं हुए हैं याने कि जैसे Maharashtra, Karnataka, Delhi में alcohol consumption age अलग-अलग है या UP में bail grant करने वाले CRPC Section 438 State के साप से Personalized है तो ये सब जब अलग-अलग है और इंडिया फिर भी Efficiently Work कर ही रहा है तो इंडिया को Uniform Personal या Civil Laws की क्या जरूरत है?
और इन सभी Arguments के अलावा चौथा Major Argument है कि क्या Constitutional Father याने Dr. B.R. Ambedkar जी भी Total Uniformity चाहते थे? क्योंकि अगर वो ऐसा चाहते तो वो UCC को Current List में नहीं रखते लिस्ट क्या है ये नहीं पता तो बेसिकली इंडियन कॉंस्टिटूशन के स्केडूल 7 में हर सबजेक्ट को बेसिकली यूनियन लिस्ट, स्टेट लिस्ट और कॉंकरन्ट लिस्ट में बाइफरकेट किया गया है ये बेसिकली बस इतना बताते हैं कि किस सबजेक्ट पर कान या state government या फिर दोनों governments मिलकर खेर ये मुद्धा उठाकर simply ये कहने की कोशिश की जा रही है कि constitutional father कभी भी सारे personal laws को unify करना ही नहीं चाते थे वो चाते थे कि ये सिर्फ तभी हो जब center states और सभी लोग साथ में ऐसा करना चाहते हो याने की सभी के consensus से तो जब हमारे founding father ये नहीं चाते थे तो अभी हमें इसके साथ छीट छाट करने की क्या जरूरत है so friends याने की मामला simple है in short UCC के जो लोग again वो सीधा Constitution के शुरुवाती drafting पर ही सवाल उठा रहे हैं दरसल देश के शुरुवाती दिनों में हमारे Constitution को draft या revise करने वाली Constitutional Assembly UCC को लेकर काफी confused थी You know कि उसे Part 3 Fundamental Rights में डाले या फिर उसे suggestions के तौर पर Part 4 Directive Principle of State Policies में डाले अब यहाँ पर खेल देखो अगर UCC को शुरुवात से ही Fundamental Rights के साथ रखा गया होता तो उस पर कानून बनाना पड़ता और उससे possibility थी कि लोग भावनाओं में बहे कर अभी की तरह ही इस पर जम कर विरोध करते हैं सो इसे काफी स्मार्टली, डिरेक्टिव प्रिंसिपल्स के लिस्ट में डाल कर एक सजेशन के तौर पर फ्यूचर गवर्मेंट्स पर सब कुछ छोड़ दिया गया अब इस पर कईयों का ये कहना है कि मेबी ऐसा इसीलिए किया गया क्योंकि उस वक्त इंडिया जो रिलिजियन के बेसिस पर ही सेपरेट हुआ था उसमें UCC एजिली प्रोटेस्ट ट्रिगर कर सकता था जो तप का नूली इंडिपेंडेंट भारत बिलकुल भी अफोर्ड नहीं कर सकता था क्योंकि हम वैसे ही हजारों प्रॉब्लम से जूट रहे थे तो कुछ का ये कहना है कि तब की गवर्मेंट ने ये मुद्दे से उनकी अगेंस्ट बैकलैश नाए करके करके इसे आगे ढखेल दिया अब क्योंकि डीएसपीएस सिर्फ सजेशन होते हैं और कानून नहीं इसलिए यूजी को इंप्लीमेंट करने से पहले उसका ऑप्शनल सजेशन से इंप्लीमेंट लॉ में कंवर्ट होना बहुत जरूरी है और यह तो भाई एक अलग ही गैंबल है दरअसल अगर बीजेपी सरकार यूचीसी को लॉ में कंवर्ट करना चाहे अ तो अज़ वी आल लो इंडियन पारलिमेंट में दो हाउसेस होते हैं लोकसभा और राज्यसभा सो गवर्मेंट को UCC का बिल इन दोनों हाउसेस में से किसी एक हाउस में इंटेडूस करना पड़ेगा इसके बाद उस परिकलर हाउस के मेंबर्स उस बिल पर डिसकशन करेंगे और अगर मैजॉरिटी वोट मिला तो ही वो बिल दूसरे हाउस में भेजा जाएगा जहां अगेन सिमिलर डिसकशन और वोटिंग से उ याने simply put, BJP को दोनों houses में majority की जरूरत होगी और यही होगा UCC का सबसे पहला obstacle अब let's say BJP somehow कोई छोटी मोटी parties का साथ लेकर इन दोनों भी houses में UCC को पास करवा लेती है तब भी आगे का गेम is not going to be easy दोनों houses में pass होने के बाद Bill usually final sign slash approval के लिए President के पास बेजा जाता है अब यहाँ पर President के पास Bill को लेकर तीन options होते हैं First, Absolute Veto मतलब सीधे Bill को reject कर देना Second, Suspensive Veto याने कि Bill में changes बता कर वापिस से Parliament में भेज देना और Third, Pocket Veto यह President का सबसे powerful veto होता है जिसमें as the word says Bill को reject या वापिस दिये बिना Indefinite time टाइम के लिए उसे लटका दिया जाएगा यानि कि ना ही अप्रूफ और ना ही रिजेक्ट जो है यू सी सी का सेकंड मेजर ऑप्शनल अब लेट से हाइपोथेटिकली यह वाला राउंड भी बीजेपी समाओ क्लियर कर लेती है तब फिर आता है तीसरा और सबसे क्रूशियल ऑप्शनल यानि जुडीशियरी अब जुडीशियरी के बारे में आप ऑलरेडी जानते हो कि वह रवाब इदर केस हमारे देश के कोर्ट में लोगों के फंडमेंटल राइट्स किसी भी पर्सनल लॉज से हमेशा ऊपर माने जाते हैं तो यूशी बिंग पर्सनल लॉज अगर let's say किसी के rights to practice to religion के बीच आता है तो chances है कि हमारे courts उसके against में फैसला सुनाएंगे But एक second, एक question यहाँ पे आता है What if एक fundamental right दूसरे fundamental right के आडे आ रहा हो तब फिर courts क्या फैसला सुनाएंगे? Well, बस इसी चीज को test करने के लिए UCC के supporters अपनी तरफ से Delhi High Court में recently PILs फाइल कर रहे थे दरसल Delhi High Court में UCC के favor में BJP द्वारा दो PILs फाइल होने के बाद तीसरी और चौती PIL खुद इंडिपेंडन्टली दो मुस्लिम्स ने फाइल की थी परिसिक्स में हिंदू परस्णल लॉज मॉर्डरनाइज कर दिया गया लेकिन मुस्लिम परस्णल लॉज के डीफेक्स को रिमूव करने की कोशिश नहीं की गया याने कि उसमें मॉर्डरनाइजेशन या रेफर्मेशन नहीं लाया गया और निकाहलाला के अनुसार अगर उसने अपनी किसी बीवी को तलाक दे कर वापिस से अपनाना चाहा तो उसकी उस एक्स वाइफ को किसी दूसरे पराय मर्थ से शादी करनी पड़ेगी और फिर उससे तलाक लेकर अपने पुराने स्लाश ओरिजिनल पती से शादी करने पड़ेगी और यही वज़े है कि एक बड़ी जर्नलिस्ट अमाना बेगम अनसारी ने मुस्लिम परस्णल लॉस को स्पेसिफिकली एक पेट्रियार्चल सेटअप कहा था उनका मानना यह है कि UCC मुस्लिम महिलाओं के लिए उनकी राइट टू जेंडर इक्वालिटी को इंशौर करेगा जो basically counter करता है UCC के against वाले लोगों का second argument regarding fundamental rights इसके अलावा इन supporters का एक और एक argument ये भी है कि जिस single personal law को लागू करने की बात हो रही है वो हिंदुत्व से जुड़ी हुई है ये आखिर किस basis पर बोला जा रहा है क्योंकि जड़ा US और UK जैसे secular देशों में marriage वगेरा को लेकर क्या laws है अगर हम वो देखें और उन्हें Hindu Marriage Act 1955 से compare करें तो US में भी majorly polygamy, polyandry यानि की multiple partners के साथ marriages prohibited है underage marriages prohibited है और divorce के लिए भी proper compensatory provisions है same as in the case of UK यहां भी marriage की पूरी country में एक single age that is 18 years है और polygamy, polyandry banned है अब यही exactly Hindu Marriage Act 1955 में भी है तो supporters का question यहाँ पर यह है कि फिर क्या US और UK के marriage acts भी हिंदूत्वा driven है बिसाइट्स, Goa में तो UCC 1961 से ही लागू है और महां तो कोई हिंदू मुस्लिम या हिंदू क्रिशियन नहीं हो रहा है तो क्या social fabric खराब होगा यह argument भी पूरी तरीके से valid है on the first place क्योंकि supporters के हिसाब से यह against narrative के सबसे main point हिंदूत्वा के point को counter करता है और रही बात कि हमारे founding fathers है सचात चाहते थे या फिर से प्रोटेस्ट होंगे इसीलिए नहीं छेड़ना चाहिए या इवन सीरा पीसी वाला पॉइंट की क्रिमिनल लॉस्ट तो नेशनवाइड एकदम यूनिफॉर्म नहीं होते सो पर्सनल लॉस को क्यों करना है इन सब आर्ग्यूमेंट के अगेंस सपोर्टर्स का यही कहना है कि अगर ऑलरेडी सिस्टम में कुछ इर्रेगुलारिटी हो तो क्या हमें उसे वैसे ही छोड़ बिकिस जहाँ पर एक तरफ गवर्मेंट देश में जेंडर इक्वालिटी और यूनिफॉर्मिटी के लिए एफर्ट्स डाल रही है, वहीं पर सोसाइटी के कुछ सेक्शन्स ऐसे भी हैं, जो केवल वॉयलेंस में ही विश्वास रखते हैं, जैसे कि अभी मनीपूर में हो और इसके पीछे किस का हात है। इन सारी बातों को एकदम डीटेल में मैंने इस वीडियो में पूरा कवर किया है इसे आप यहाँ पर क्लिक करके देख सकते हो। और अगर आपको इस वीडियो से कुछ भी नया जानने के लिए मिला एक लाइक जरूर ठोकना। जैहिंद।