हेलो स्टूडेंट आज हम इस वीडियो में कॉस्ट अकाउंटिंग और फाइनेंशियल अकाउंटिंग के बीच में क्या डिफरेंस है उसे डिस्कस करेंगे तो चलिए स्टार्ट करते हैं सबसे पहली बात हम बेसिस के बेसिस डिसाइड करेंगे कि किस बेसिस पे हम इनको डिफरेंशिएबल ऑफ फाइनेंशियल अकाउंटिंग के बीच में क्या डिफरेंसेस हैं उनको आइडेंटिफिकेशन का क्या मतलब है फाइनेंशियल अकाउंटिंग का क्या मतलब है कॉस्ट अकाउंटिंग बेसिकली अकाउंटिंग की वो ब्रांच होती है जो आप आपको प्रोडक्ट या प्रोडक्शन जो भी है उसकी कॉस्ट कैलकुलेट करने में हेल्प करती है कि कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन कितना आ रहा है या प्रोडक्ट बनाने में खर्चा कितना आ रहा है इस चीज को कंप्यूट करने में कौन हेल्प करता है कॉस्ट अकाउंटिंग वहीं पे अगर हम फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात करें तो ये वो ब्रांच ऑफ अकाउंटिंग होती है मतलब अकाउंटिंग की वो ब्रांच होती है जहां पे हम फाइनेंशियल ट्रांजैक्शंस को रिकॉर्ड करते हैं मतलब बिजनेस में जो भी फाइनेंशियल नेचर की ट्रांजैक्शंस हुई हैं उनको हम रिकॉर्ड करते हैं और बिजनेस की फाइनेंशियल पोजीशंस को बताते हैं करेक्ट तो कॉस्ट अकाउंटिंग क्या हो गया कॉस्ट कंप्यूट करना हो गया फाइनेंशियल अकाउंटिंग में में सिर्फ फाइनेंशियल नेचर की ट्रांजैक्शंस की रिकॉर्डिंग होती है और वो भी कैसे हो जाएगी आपकी कि जिससे हम फाइनेंशियल पिक्चर्स बता सकें कि इस कंपनी का क्या फाइनेंशियल स्टेटस है क्लियर है अब हम बात करते हैं ऑब्जेक्टिव के बेसिस पे तो कॉस्ट अकाउंटिंग का क्या ऑब्जेक्टिव है फाइनेंशियल अकाउंटिंग का क्या ऑब्जेक्टिव है तो कॉस्ट अकाउंटिंग का मेन जो काम होता है वो पर यूनिट कॉस्ट कैलकुलेट करना होता है कॉस्ट अकाउंटिंग के थ्रू आप कॉस्ट एसरटेनमेंट को बनाने में क्या कॉस्ट आई है वो हम कॉस्ट अकाउंटिंग के थ्रू कैलकुलेट करते हैं इसके साथ ही कॉस्ट को कैसे कंट्रोल करना है कैसे रिड्यूस करना है यह सारा चीज भी हम कॉस्ट अकाउंटिंग के थ्रू करते हैं तो मेन ऑब्जेक्टिव कॉस्ट अकाउंटिंग का ये चीज हो जाता है कि हम पता कर सके कि कॉस्टिंग पर यूनिट बढ क्या रही है वहीं जब हम बात फाइनेंशियल अकाउंटिंग की करते हैं तो इसका काम होता है ऑपरेशन रिजल्ट जो ऑपरेशनल रिजल्ट है उसको प्रेजेंट करना ऑपरेशनल रिजल्ट मतलब आपका बिजनेस आप सेल परचेस कर रहे हैं आप बिजनेस कर रहे हैं तो अब बिजनेस करने में आपने क्या सामान खरीदा कितने का खरीदा आपने कितने प्राइस प उसको सेल किया लोगों को सैलरी दी है वेजेस दिए हैं तो क्या दिया रेंट दिया तो क्या दिया आपको इनकम आई तो कहां-कहां से इनकम आई तो बेसिकली जो काम आप कर रहे हैं ना उसका रिजल्ट यहां पे डिस्क्लोज किया जाता है और पूरा फाइनेंशियल नेचर के जितने भी ट्रांजैक्शंस होते हैं उनका एक कंप्लीट रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है कहां पे फाइनेंशियल अकाउंटिंग में इसी ऑब्जेक्टिव के साथ कि प्रॉपर फाइनेंशियल सारे ट्रांजैक्शंस को एक प्रॉपर तरीके से रिकॉर्ड किया जा सके जिससे हमें पता चल सके कि हमारा साल भर में ऑपरेशनल वर्किंग हमारी क्या रही है उसका क्या रिजल्ट रहा है तो उसके लिए हम फाइनेंशियल अकाउंटिंग को प्रिपेयर करते हैं नेक्स्ट जो हम देखते हैं नेक्स्ट बेसिस है कॉस्ट दैट यूज टू रिकॉर्ड मतलब हम क्या क्या यूज़ करते हैं अपने जब रिकॉर्डिंग करते हैं कॉस्ट अकाउंटिंग जब प्रिपेयर करते हैं फाइनेंशियल अकाउंटिंग जब प्रिपेयर करते हैं तो किस तरह के कॉस्ट को किस तरह की चीजों को हम यहां पे रिकॉर्ड करते हैं तो अगर हम बात करते हैं कॉस्ट अकाउंटिंग की तो कॉस्ट अकाउंटिंग बेसिकली हिस्टोरिकल और प्रेडिटरमाइंड कॉस्ट दोनों पे बेस्ड होती है मतलब क्या हो गया देखिए हिस्टोरिकल कॉस्ट क्या होती है जो खर्चा ऑलरेडी हो च चुका है उसको रिकॉर्ड करना क्या कहलाता है हिस्टोरिकल कहलाता है और प्री डिटरमाइंड का मतलब जो चीज अभी नहीं हुई है हम उसको एस्टीमेट कर रहे हो तो उसको हम कहते हैं प्री डिटरमाइंड तो कॉस्ट अकाउंटिंग में हम दोनों काम करते हैं हम जो खर्चा हुआ ही नहीं है उसको स्टिमेट करके भी रिकॉर्ड करते हैं और जो हो चुका है उसको भी रिकॉर्ड करते हैं तो जैसे आपको अगर आप पता हो कि जो मार्जिनल कॉस्टिंग वगैरह हमारी होती है स्टैंडर्ड कॉस्टिंग होती है तो आप वहां पे देखेंगे स्टैंडर्ड कॉस्टिंग क्या करते हैं बजटेड फिगर लिखते हैं कि ऐसा होगा हम एस्टीमेट कर रहे हैं कि इतने में आ जाना चाहिए और उसके बाद हम एक्चुअल भी रिकॉर्ड करते हैं मतलब एक्चुअली हिस्टोरिकल बेस में कि कितने का हुआ हम एक्चुअल भी रिकॉर्ड करते हैं स्टैंडर्ड कॉस्ट भी रिकॉर्ड करते हैं तो यहां कॉस्ट अकाउंटिंग में दोनों तरह की कॉस्ट को रिकॉर्ड किया जाता है ठीक वहीं पे बात हम फाइनेंशियल अकाउंटिंग की करते हैं तो फाइनेंशियल अकाउंटिंग में सिर्फ और सिर्फ हिस्टोरिकल कॉस्ट को रिकॉर्ड किया जाता है क्योंकि फाइनेंशियल अकाउंटिंग कैसे बनती है आपकी अ फाइनेंशियल जो स्टेटमेंट्स होते हैं वो ईयर इन तैयार होते हैं साल भर में साल भर में आपने क्या काम किया क्या खर्चा किया क्या इनकम कमाई जो एक्चुअली आपने की होगी वो वहां रिकॉर्ड होने वाली है क्लियर है तो ये क्या होती है हिस्टोरिकल कॉस्ट पे बेस्ड होती है सिर्फ एक्चुअल फिगर्स वहां पे आते हैं कोई भी स्टिमेट चीजें आप वहां पे नहीं डालते आप एक्चुअल चीजें डालते हैं कि यस मेरा रेंट इतने का गया मेरा वेजेस इतने का गया है ना मेरा ट्रैवलिंग एक्सपेंस इतने का हुआ जो हुआ है जो हो चुका है खर्चा हम उस चीज को फाइनेंशियल अकाउंटिंग में रिकॉर्ड करते हैं यहां कुछ भी ऐसा नहीं है जो हम एस्टीमेट करने जा रहे हैं क्लियर है तो इसीलिए कहते हैं फाइनेंशियल अकाउंटिंग कंपैरिजन टू मैनेजमेंट अकाउंटिंग कॉस्ट अकाउंटिंग थोड़ा इजी होता क्योंकि ऑलरेडी वो बन हुई चीजें जो चीजें हो चुकी हैं आप उनकी रिकॉर्डिंग करते हैं सही तरीके से ठीक अब हम बात करते हैं इंफॉर्मेशन टाइप के बेसिस पे कि किस तरह की इंफॉर्मेशन कॉस्ट अकाउंटिंग को प्रिपेयर करने में यूज़ की जाती है फाइनेंशियल अकाउंटिंग कोय प्रिपेयर करने में यूज़ की जाती है तो देखिए कॉस्ट अकाउंटिंग जब हम रिकॉर्ड करते हैं तो वहां पे सारी इंफॉर्मेशन को जो भी कॉस्ट से रिलेटेड है या प्रोडक्शन प्रोसेस से जो रिलेटेड इंफॉर्मेशन होती है उनको हम क्या करते हैं बाफर किट करते हुए यूज़ करते हैं जैसे लेबर का क्या खर्चा है मटेरियल का क्या खर्चा है ओवरहेड का क्या खर्चा है अब इसमें भी हम देखते हैं कि भाई लेबर भी डायरेक्ट नेचर के कितने लेबर हैं इनडायरेक्ट नेचर के कितने लेबर मटेरियल भी डायरेक्ट नेचर का मटेरियल कितना है इनडायरेक्ट नेचर का मटेरियल क्या है है ना तो इस तरीके से इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए ये सब चीजों के बेसिस पे हम अपना पूरा रिकॉर्ड तैयार करते हैं कॉस अकाउंटिंग में इन इंफॉर्मेशन को यूज़ करते हैं वहीं फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात करें तो फाइनेंशियल अकाउंटिंग में बेसिकली सिर्फ मॉनेटरी टर्म जो फाइनेंशियल नेचर के ट्रांजैक्शंस होंगे सिर्फ वही रिकॉर्ड होंगे जो फाइनेंशियल नेचर के ट्रांजैक्शन नहीं होंगे हम उसको रिकॉर्ड नहीं करेंगे क्लियर है तो यहां पे सिर्फ फाइनेंशियल नेचर के मॉनेटरी टर्म्स में जो चीजें होंगी उनको रिकॉर्ड की जाती है इसलिए इनकम हो गया एक्सपेंसेस हो गया एसेट्स हो गई लायबिलिटीज हो गई इस तरह से हम चीजों को रिकॉर्ड करते हैं डेबिट और क्रेडिट के बेसिस पे रिकॉर्ड करते हैं क्लियर है नेक्स्ट हम देखते हैं नेक्स्ट बेसिस हम लेते हैं यूजर्स है ना जो कॉस्ट अकाउंटिंग हमारी प्रिपेयर हुई वो किनके लिए यूज़फुल है और जो फाइनेंशियल अकाउंटिंग के थ्रू हम रिकॉर्ड्स तैयार करते हैं वो हमारे लिए किसके लिए यूज़फुल है तो अगर यूजर्स की बात करें तो जो कॉस्ट अकाउंटिंग है बेसिकली वो कंपनीज के इंटरनल स्टेकहोल्डर्स के लिए यूज़ होती है मैनेजमेंट के लिए एंप्लॉई के लिए क्योंकि आपको पता है कॉस्ट अकाउंटिंग के थ्रू आप क्या करते हैं आप आप कॉस्ट कंट्रोल कर लेते कॉस्ट को रिड्यूस कर लेते हैं है ना आप पर यूनिट कॉस्ट निकाल लेते तो ये सब किसके लिए जरूरी है जो प्रोडक्शन कर रहा है जो कंपनी का ओन मैनेजमेंट है उनके लिए जरूरी है ना कि उनको पता हो कि कहां खर्चा हो रहा है कैसे हो रहा है कैसे कंट्रोल करना है क्या पॉलिसी लगाना है तो बेसिकली इंटरनल स्टेकहोल्डर्स जो होते हैं उनके लिए ये यूजफुल होता है मैनेजमेंट एंप्लॉयज इनके लिए बहुत ज्यादा जरूरी होता है ठीक लेकिन अगर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात करते हो तो सभी तरह के स्टेकहोल्डर्स के लिए जरूरी होता है इंटरनल स्टेकहोल्डर तो साथ-साथ एक्सटर्नल स्टेकहोल्डर के लिए भी जरूरी होता है तो क्रेडिटर हो इन्वेस्टर हो ओनर हो मैनेज हो गवर्नमेंट हो जो भी है उन सबको इन फाइनेंशियल अकाउंटिंग स्टेटमेंट्स की जरूरत होती है वो यूज करते हैं है ना इन्वेस्टर्स को क्यों चाहिए उनको पता चल जाएगा कि इस कंपनी में पैसा लगाना है कि नहीं कितना प्रॉफिट कमा रही है कितना नहीं प्रॉफिट कमा रही है इसी तरह क्रेडिटर को होता है कि इस कंपनी को उधार दिया जा सकता है कि नहीं उधार दिया जा सकता है क्या इसकी कैपेसिटी ऐसी कि उधार वापस कर सकती है कि नहीं तो हर एक को जरूरत पड़ती है फाइनेंशियल अकाउंटिंग की ठीक नेक्स्ट देखते हैं नेसेसिटी टू मेंटेन मतलब क्या मतलब कॉस्ट अकाउंटिंग मेंटेन करना क्या मैंडेटरी है क्या जरूरत जरूरत क्या है इसको मेंटेन करने की या फाइनेंशियल अकाउंटिंग मेंटेन करना जरूरी है तो इस नेसेसिटी की अगर बात करें तो कॉस्ट अकाउंटिंग क्या होता है वो जनरली मैंडेटरी नहीं होता है ठीक जो मैन्युफैक्चरिंग कंपनीज होती हैं उनको कॉस्ट रिकॉर्ड मेंटेन करना पड़ता है ये डिपेंड करता है जैसे हमने लास्ट वीडियो में बताया भी था कि ये कंपनीज एक्ट के जो प्रोविजंस है उसके अकॉर्डिंग होगा कि अगर आप इस कैटेगरी में फॉल करते हैं अगर आपका एग्रीगेट टर्न ओवर इतना हो रहा है तो आपको ये कॉस्ट रिकॉर्ड्स मेंटेन करने की जरूरत है अदर वाइज आपको मेंटेन करने की जरूरत नहीं होती है ठीक है तो कॉस्ट अकाउंटिंग प्रिपेयर करना सबके लिए नहीं जरूरी है जो मैन्युफैक्चरिंग कंसर्न है भाई जो प्रोडक्ट बना रही हैं उनके लिए होता है कि वह अपना रिकॉर्ड मेंटेन कर लें और या फिर गवर्नमेंट जिनको नेसेसरी कर देता है कि आपको अपना कॉस्ट रिकॉर्ड भी मेंटेन करके प्रोवाइड करना है तो उनके लिए जरूरी होता है अदर वाइज़ यह मैंडेटरी नहीं होता है पर जब हम बात फाइनेंशियल अकाउंटिंग का करेंगे तो फाइनेंशियल अकाउंटिंग क्या होता है मैंडेटरी होता है यह सभी पब्लिक क पब्लिक कंपनीज की अगर बात करें तो सभी को यह अ डॉक्यूमेंट प्रिपेयर करना जरूरी है कि फाइनेंशियल अकाउंटिंग फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स और पब्लिक के अलावा भी प्राइवेट कंपनीज को भी ये सब सबको हो जाता है कि भाई आपका फाइनेंशियल रिकॉर्ड मेंटेन होना चाहिए कि आप कहां कैसे बिजनेस कर रहे हैं कंपनी में क्या हो रहा है कैसे हो रहा है तो पूरा चीज मेंटेन होना जरूरी है तो फाइनेंशियल अकाउंटिंग क्या है मैंडेटरी एक तरीके से हो गई पर अगर हम बात करें कॉस्ट अकाउंटिंग की तो डिपेंड करती है सिचुएशन पे ठीक अब हम बात करते हैं बेसिस ऑफ टैक्स की तो देखिए जो टैक्स का बेसिस मतलब कि अगर टैक्स जो लगाया जाता है टैक्स जो कंप्यूट होता है कि आपको इतना टैक्स देना है इतना टैक्स देना है तो क्या कॉस्ट अकाउंटिंग के बेसिस पे टैक्स डिटरमाइंड होता है या फाइनेंशियल अकाउंटिंग के बेसिस पे टैक्स डिटरमाइंड होता है तो अगर हम कॉस्ट अकाउंटिंग की बात करें तो ये टैक्स को असेस करने का कोई बेसिस नहीं है मतलब हम इसके बेसिस पे कॉस्ट अकाउंटिंग के बेसिस पे टैक्स डिटरमाइंड नहीं कर सकते क्यों अगर एक नॉर्मली भी आप सोचिए कि ये सिर्फ खर्चा बता रहा है और टैक्स जो लगता है अगर इनकम टैक्स की बात करें तो ये टैक्स बेसिकली किस किस पे लगेगा आपके प्रॉफिट पे लगता है या अगर हम जीएसटी की बात करते हैं गुड्स एंड सर्विस टैक्स की बात करते हैं तो जिस प्राइस पे ये सेल या परचेज हो रहा होगा उस प्राइस पे वो टैक्स लगेगा तो कॉस्ट के बेसिस पे तो बात ही नहीं बनती है है ना तो बॉस अकाउंटिंग किसी भी तरीके से टैक्स को एसेस नहीं करता क्योंकि यहां तो सिर्फ खर्चा है प्रॉफिट की तो बात ही नहीं हुई है तो इस वजह से यह टैक्स को टैक्स का बेसिस नहीं है टैक्स को एसेस करना इससे पॉसिबल नहीं होता है लेकिन अगर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बेसिस बात करें तो ये क्या है ये टैक्स को डिटरमाइंड करने का बेस बनता है है ना ये इसके थ्रू टैक्स को एसेस किया जा सकता है कि बिजनेस को कितनी टैक्स की लायबिलिटी बन रही है उसको कितना टैक्स पे करना है क्योंकि आप क्या करते हो फाइनेंशियल अकाउंटिंग में इतने का मैंने इनकम कमाई इतना मेरा खर्चा हुआ रिमेनिंग मेरा प्रॉफिट हुआ अब ये अगर आपका प्रॉफिट है तो इस प्रॉफिट में से गवर्नमेंट को टैक्स दीजिए आप इनकम टैक्स की अगर बात करें तो बेसिकली यस फाइनेंशियल अकाउंटिंग टैक्स का बेस बनता है इसी के बेसिस पे ही टैक्स डिटरमाइंड होता है लेकिन कॉस्ट अकाउंटिंग के केस में ऐसा नहीं होता है ठीक नेक्स्ट देखते हैं स्टेटमेंट ऑफ अकाउंट तो स्टेटमेंट ऑफ़ अकाउंट का मतलब ये हो गया कि हम कॉस्ट अकाउंटिंग में किस तरह का स्टेटमेंट्स प्रिपेयर करते हैं और फाइनेंशियल अकाउंटिंग में किस तरह के स्टेटमेंट्स को प्रिपेयर करते हैं ठीक तो अगर कॉस्ट अकाउंटिंग की बात करें तो जो भी एक्सपेंसेस वगैरह है जो भी कॉस्ट वगैरह है उसको हम कॉस्ट शीट में बनाते हैं अगर एक प्रोसेस से दूसरे तीसरे प्रोसेस में जाने वाली चीज़ें जैसे केमिकल इंडस्ट्री वगैरह की चीज़ें या पेपर इंडस्ट्री की चीज़ें जो एक प्रोसेस के बाद फिर दूसरे में जाएगी फिर तीसरे में जाएगी तो उस तरह की चीज़ों के लिए हम प्रोसेस अकाउंट बनाते हैं कॉन्ट्रैक्ट जैसे आपका रोड का कॉन्ट्रैक्ट हो गया जो बिल्डर होते हैं जो कॉन्ट्रैक्ट स्पेसिफिक लेते हैं उसके बाद काम ख़त्म हुआ उसकी प्राइस लगाते हैं तो कॉन्ट्रैक्ट अकाउंट तैयार करते हैं इस तरह से हम वहां पे क्या करते हैं अलग-अलग के लिए अलग-अलग कॉस्ट अ स्टेटमेंट तैयार करते हैं कॉस्ट शीट प्रोसेस अकाउंट कॉन्टेंट अकाउंट यह सब क्या होता है ऑपरेटिंग कॉस्ट शीट यह सब हम तैयार करते हैं कॉस्ट अकाउंटिंग के अंदर ठीक वहीं अगर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात करें तो वहां पे जितने भी ट्रांजैक्शंस होते हैं जितने भी मॉनेटरी नेचर के ट्रांजैक्शन होते हैं उनको कंसोलिडेट करके हम सिर्फ दो स्टेटमेंट्स में खत्म कर देते हैं एक हमारा ट्रेडिंग और प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट हो जाता है और एक हमारा बैलेंस शीट यही दो सबसे इंपॉर्टेंट स्टेटमेंट होते हैं प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट हमारा क्या बताता है कि ड्यूरिंग द ईयर आपने क्या काम किया है और बैलेंस शीट हमें क्या बताता है कि ईयर एंड में एट दैट टाइम की 31 मार्च को अगर जब है तो उस वक्त आपकी कंपनी की क्या पोजीशन है तो फाइनेंशियल पोजीशन बैलेंस शीट के थ्रू चल जाती है और प्रॉफिट एंड लॉस के थ्रू आपका ड्यूरिंग द ईयर क्या वर्किंग हुई है वो पता चल जाती है तो दो स्टेटमेंट जो इंपॉर्टेंट है उनके थ्रू आपका फाइनेंशियल अकाउंटिंग प्रिपेयर हो जाता है नेक्स्ट हम देखते हैं नेक्स्ट हमारा आता है ऑडिट तो अगर हम ऑडिट की बात करें तो कॉस्ट ऑफ फाइनेंशियल अकाउंटिंग में तो कॉस्ट अकाउंटिंग में ऑडिट इतना मैंडेटरी नहीं होता है अगेन कंडीशंस अप्लाई कि अगर वो आप इस कैटेगरी में फॉल होंगे तो आपको कॉस्ट ऑडिट करानी पड़ेगी अगर आप उन कैटेगरी में जो कंपनीज एक्ट 2013 में मेंशन है उन कैटेगरी के अकॉर्डिंग अगर आप नहीं है तो आपको कॉस ऑडिट कराने की जरूरत नहीं है तो एक आप अंदर इंटरनली आप ऑडिट कराते रहिए कि आपका काम सही से हो रहा है या नहीं हो रहा पर एक्सटर्नल ऑडिटर को स्टैचूट ऑडिट ऑडिटर्स की जो बात हम करते हैं उस तरह से आपको कराने के लिए मैंडेटरी नहीं होगा सब्जेक्ट की जब तक आप कंपनीज एक्ट के अकॉर्डिंग नहीं होते हैं मतलब वहां की जो कंडीशंस में आप नहीं फॉल करते हैं तब तक आपको जरूरी नहीं होगा पर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात करते हैं तो वहां पे एक इंडिपेंडेंट ऑडिट होना मैंडेटरी हो जाता है आपके जो फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स हैं वो ट्रू एंड फेयर व्यू दे रहे हैं या नहीं है आपको उसकी ऑडिट करानी पड़ेगी तो जितने भी बिजनेस रन करते हैं जो भी कंपनीज रन करती हैं तो उनके लिए ये चीजें हो जाती है पब्लिक एंड प्राइवेट कंपनीज जो भी हैं कि भाई आपका बैलेंस शीट आपका प्रॉफिट एंड लॉस जो है वो सीए के थ्रू ऑथराइज हो ऑडिट हुआ हो उसका हां ये बात अलग है कि कंपनीज एक्ट में यहां वहां भी कंडीशन दी गई है कि अगर आपका टर्नओवर इतना है तो आपको कॉस्ट आपको फाइनेंशियल ऑडिट करानी पड़ेगी वो भी एक्सटर्नल ऑडिटर से वहां भी कंडीशन अप्लाई है पर इन जनरली फाइनेंशियल अकाउंटिंग की जो ऑडिट है वो होती ही रहती है मतलब वो करानी ही होती है जनरल आप समझिए ठीक नेक्स्ट हम बात करते हैं फिजिकल या मॉनेटरी यूनिट के बेसिस पे तो देखिए यहां पे अगर हम कॉस्ट अकाउंटिंग की बात करते हैं तो यहां फिजिकल यूनिट्स भी कैलकुलेट की जाती है हम वहां पे उसको भी अकाउंट्स कर लेते हैं जैसे कि यहां पे लेबर लेबर आवर कैलकुलेट होता है मशीन आवर कैलकुलेट होता आपको होगा मशीन आवर पर रेट हम कैलकुलेट करते कि मशीन कितने घंटे चल रही है तो मशीन पे खर्चा हम उसका एलोकेट कराते हैं इसी तरह लेबर कितने घंटे काम करता है उसके बेसिस पे हम लेबर का वेज सिस्टम जो है उसको हम अप्लाई करते हैं कि वन लगेगा हल से लगेगा क्या लगेगा तो बेसिकली क्या है ये फिजिकल यूनिट्स कैलकुलेट है एक्चुअली आवर्स में आपका क्या काम हो वो भी वहां पे हम कॉस्ट अकाउंट में कैलकुलेट करते हैं ठीक है जोकि मॉनेटरी बात नहीं है ये तो है ना ये फिजिकल यूनिट्स है कि ये कितना घंटा काम किए कैसे काम किए तो ये सब भी कॉस्ट अकाउंट में कैलकुलेट हो जाता है लेकिन फाइनेंशियल अकाउंटिंग की अगर बात करें तो सिर्फ और सिर्फ वही ट्रांजैक्शन जिनको मनी में आप मेजर कर सकते हैं सिर्फ वही रिकॉर्ड होते हैं क्लियर है नेक्स्ट देखते हैं नेक्स्ट है वैल्युएशन ऑफ स्टॉक तो स्टॉक का जो जिसे कहते हैं क्लोजिंग स्टॉक्स आपके बच गए हैं तो वो तो आपको हर जगह बचेंगे अगर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की बात देखें तो वहां पे बने बनाए मटेरियल बचेंगे जो सेल होना है मार्केट में कॉस्ट अकाउंटिंग की बात करें तो वो रॉ मटेरियल के भी बा फॉर्म में बचेगा वर्क इन प्रोग्रेस के भी फॉर्म में बचेगा है ना फिनिश गुड्स के भी फॉर्म में बचेगा तो वो यहां पे है कि हम स्टॉक को वैल्यू कैसे करेंगे कैसे इसको अकाउंट्स में दिखाएंगे तो यहां पे कॉस्ट अकाउंटिंग के लिए कहा जाता है कि हमेशा उसको कॉस्ट पे ही दिखानी पड़ेगी क्योंकि ये कॉस्ट अकाउंटिंग है जबकि फाइनेंशियल अकाउंटिंग कहता है कि भाई आप उसको कॉस्ट एनआरवी दोनों में जो सबसे कम प्राइस होगी आप उस पे दिखा दीजिए तो इस तरह से वैल्युएशन ऑफ स्टॉक का भी क्राइटेरिया दोनों ही अकाउंट्स में अलग-अलग होता है नेक्स्ट हम देखते हैं फोरकास्टिंग मतलब हम क्या फ्यूचर एक वो एस्टीमेट कर सकते हैं फोरकास्ट कर सकते हैं इनके बेसिस पे तो अगर हम कॉस्ट अकाउंटिंग की बात करें तो यस हम अपनी बजट टेक्निक जो बजटिंग बनाते हैं ना उस टेक्निक के थ्रू हम फोरकास्ट कर सकते हैं कि कॉस्ट अकाउंटिंग के थ्रू कि क्या होने वाला है कितना खर्चा होगा ओबवियस सी बात है जो स्टैंडर्ड कॉस्टिंग हम तैयार करते हैं स्टैंडर्ड कॉस्टिंग में हम बजटेड टेक्नीक ही तो यूज़ करते हैं कि अ मटेरियल का इतना खर्चा लगने वाला लेबर का इतना खर्चा लगने वाला है है ना ये ओवरहेड के इतने एक्सपेंसेस आने वाले हैं रेट इतने रेट में मिल जाएगा यह प्राइस लगेगी आप वहां पे सब कुछ एस्टिमेटर लेते हैं आवर एफिशिएंसी सब आप वो क्या करते हैं बजट बनाते हैं उसका उसको सब कुछ स्टिमेट कर लेते हैं तो इसका मतलब कि हम कॉस्ट अकाउंटिंग में फोरकास्ट कर सकते हैं चीजों को क्योंकि बजटिंग टेक्निक के थ्रू हम फोरकास्ट ही करते हैं पर फाइनेंशियल अकाउंटिंग में ऐसा कुछ भी पॉसिबल नहीं है क्योंकि फाइनेंशियल अकाउंटिंग में आप सिर्फ वही रिकॉर्ड ड करने वाले जो ऑलरेडी हो चुका है हिस्टोरिकल कॉस्ट बेसिस है जो खर्चे हो चुके हैं जो चीजें हो चुकी हैं आप उनकी बेसिस पे ही अपना चीज रिकॉर्ड कर देते हैं पर हां एक एक चीज मैं फिर भी यहां पे क्लियर कर दूंगी फोरकास्टिंग तो नहीं कर सकते लेकिन हम प्रोजेक्टेड बैलेंस शीट बनाते हैं जैसे अगर आपको लोन वगैरह पास कराना होता है लोन लेना होता है ना तो आप अपना इस साल का जो फाइनेंशियल अकाउंटिंग है जो इस साल का आपका मतलब बैलेंस शीट पीएल जो बनाया है उसी के बेसिस पे अज्यू करते हुए आपको आने वाले चार पांच साल का आप क्या करते बना के तैयार करते हो फाइनेंशियल अकाउंट कि मेरे ऐसे ही खर्चे जाएंगे उसमें अपना हर खर्चों में इंक्रीमेंट ले लेते हो इनकम में भी इंक्रीमेंट ले लेते हो कि इतना 10 पर इंक्रीज हो जाएगा खर्चा 10 पर इंक्रीज हो जाएगी इनकम जो भीका परसेंटेज होगा फिर आप उसमें ये भी दिखाते हो कि लोन न अगर हमने लिया है तो लोन अगर हम आपका जिस लोन के लिए हमने अप्लाई किया है अगर ये लोन आप हमें दे देंगे तो इसी पैसे में से कैसे हम उस लोन की ईएमआई भी पे करेंगे उसका भी खर्चा लेके तो इस तरह से हम प्रोजेक्टेड बैलेंस शीट प्रिपेयर करते हैं दैट इज अदर थिंग ठीक है लेकिन हम फोरकास्ट नहीं कर रहे कुछ कि ऐसा हो जाएगा है ना वो चीज यहां पे नहीं होती है ठीक तो अभी हम नेक्स्ट देखते हैं नेक्स्ट बेसिस दैट इज प्रॉफिट असेसमेंट तो कॉस्ट अकाउंटिंग में हम क्या करते हैं जो प्रॉफिट या लॉस जो हमें पता चलता है वो स्पेसिफिक प्रोडक्ट का ब्रांच का डिपार्टमेंट का जॉब का हम उस हिसाब से कैलकुलेट कर लेते हैं है ना क्योंकि इतना खर्चा इस डिपार्टमेंट में आया इतने का हम इस डिपार्टमेंट से कवर करेंगे तो वहां पे स्पेसिफिक प्रोडक्ट या ब्रांच या डिपार्टमेंट उसके बेसिस पे हर जॉब का हर प्रोसेस का हर कांट्रैक्ट का अलग-अलग कैलकुलेट होता है पर फाइनेंशियल अकाउंटिंग अगर बात करें तो ओवरऑल एनटायर बिज़नेस का देता है कि फाइनेंशियल पोजीशन बिज़नेस की क्या है तो ये प्रॉफिट असेसमेंट ओवरऑल बिजनेस का एनटायर बिजनेस का करता है जबकि कॉस्ट अकाउंटिंग में सेगमेंट वाइज चीजें होती हैं क्लियर है रिपोर्टिंग टाइम की अगर हम बात करें कि कब क्या कौन सा प्रिपेयर करना होता है तो देखिए कॉस्ट अकाउंटिंग फ्रीक्वेंसी जैसे कॉस्ट इंफॉर्मेशन हमारी आती है वो उस तरह से कॉस्ट अकाउंटिंग का प्रिपेयर करते रहते हैं पर फाइनेंशियल अकाउंटिंग की अगर बात करते हैं तो वो ईयर इंड जाता है हमारा ईयर इंड द सेंस कि फाइनेंशियल ईयर जैसे हमारा क्लोज होगा तो हमारा फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स भी तैयार हो वो उसके लिए हम प्रोसेस लगातार करते रहते हैं लेकिन जो प्रेजेंट करने की बात जो रिपोर्ट करने की बात हो कि मेरा फाइनेंशियल अकाउंट्स यह रहा या मेरी बैलेंस शीट ये रही वो ईयर एंड में जाती है फाइनेंशियल ईयर एंड में ही जाती है ठीक है हर बार नहीं लेकिन वहां पे हम रिपोर्ट करते रहते हैं मैनेजमेंट को हर फ्रीक्वेंसी पे हमने ये पूरा डिफरेंशिएबल अकाउंटिंग और फाइनेंशियल अकाउंटिंग के कौन से बेसिस हमने यहां पे पकड़े हैं तो हमने मीनिंग के बेसिस पे देखा ऑब्जेक्टिव क्या होता है इन उसके बेसिस पे देखा क्या कॉस्ट ये लोग रिकॉर्ड कर यूज मतलब रिकॉर्ड करने के लिए किस तरह की कॉस्ट को हिस्टोरिकल कॉस्ट या अप डिटरमाइंड कॉस्ट किस तरह की कॉस्ट को यूज़ करते हैं किस तरह के इंफॉर्मेशन टाइप को वो यूज कर रहे हैं अपने अकाउंटिंग करने के लिए राइट उसके बाद यूजर्स कौन-कौन से हैं इसके क्या मेंटेन करना कॉस्ट अकाउंटिंग इंपॉर्टेंट है मैंडेटरी है या नहीं है फाइनेंशियल अकाउंटिंग तो नेसेसिटी हमने देखी टैक्स का क्या बेसिस है हमने वो देखा इसके अलावा हमने स्टेटमेंट ऑफ अकाउंट देखा कि किस तरह का स्टेटमेंट ये लोग प्रिपेयर करते हैं ऑडिट कराना मैंडेटरी है या नहीं फिस्कल एंड मॉनेटरी यूनिट है कि नहीं वैल्युएशन ऑफ स्टॉक कैसे किया जाता है फोरकास्टिंग पॉसिबल है कि नहीं प्रॉफिट को एसेस कैसे करते हैं वहां भा एनटायर बिज़नेस का करते हैं फाइनेंशियल अकाउंटिंग में वहां हर सेगमेंट हर प्रोडक्ट का अलग-अलग करते हैं रिपोर्टिंग टाइम जनरली वहां पे फ्रीक्वेंसी अकाउंटिंग में और फाइनेंशियल अकाउंटिंग में साल के अंत में होती है तो ये हमने 14 बेसिस बनाए जिसके बेसिस पे हमने कॉस्ट ऑफ फाइनेंशियल अकाउंटिंग को डिफरेंशिएबल हुआ होगा विश यू ऑल द बेस्ट थैंक यू सो मच