भगवद गीता का ज्ञान और शिक्षाएँ

Nov 21, 2024

भगवद गीता का सार

आत्मा और शरीर

  • मानव शरीर पंच महाभूतों (भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से निर्मित है।
  • आत्मा अमर है, शरीर नाशवान है। आत्मा ना जल से, ना अग्नि से नष्ट होती है।
  • मृत्यु के बाद आत्मा का नाश नहीं होता, आत्मा पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करती है।

जीवन का उद्देश्य

  • जीवन का उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के अंश के रूप में पहचानना है।
  • मनुष्य का परिचय उसकी देह से नहीं, बल्कि उसके स्वभाव, आचरण और कर्म से होता है।

कर्म और धर्म

  • धर्म वह मार्ग है जो आत्मा की परमात्मा से पहचान कराता है।
  • अधर्म अज्ञान का मार्ग है जो आत्मा को परमात्मा से दूर ले जाता है।
  • कर्म का बंधन तभी होता है जब कर्म को फल की आशा से किया जाता है। निश्काम कर्म योग में फल की अपेक्षा नहीं होती।

ज्ञान के तीन गुण

  • सत्व (ज्ञान), रजस (अहंकार), तमस (अंधकार) से मनुष्य के स्वभाव का निर्माण होता है।
  • सत्व गुण से प्रेरित व्यक्ति धर्म का पालन करता है, रजस गुण से अहंकार और तमस से अंधकार की ओर उन्मुख होता है।

भक्ती और समर्पण

  • भक्ती का अर्थ परमात्मा के प्रति सम्पूर्ण समर्पण है।
  • समर्पण मन की वह स्थिति है जब व्यक्ति अपने संकल्पों का त्याग कर देता है।

कृष्ण का दिव्य रूप

  • कृष्ण कहते हैं कि वे परब्रह्म हैं और समस्त सृष्टि में व्याप्त हैं। वे हर गुण, वस्तु और घटना में उपस्थित हैं।

युद्ध और धर्म

  • अर्जुन को मोह छोड़कर धर्म के लिए युद्ध करने की प्रेरणा दी जाती है।
  • धर्म की स्थापना के लिए अधर्म का नाश आवश्यक है।

अंतिम निर्देश

  • फल की आशा छोड़कर युद्ध करो, और अपने कर्तव्य का पालन करो।

निष्कर्ष

  • यह ज्ञान आत्मा की अमरता, परमात्मा की उपस्थिति, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
  • समर्पण और भक्ती के माध्यम से अमरत्व और मोक्ष की प्राप्ति होती है।