महापुरुष का धर्मचक्रप्रवर्तन

Jul 12, 2024

संगीत के महापुरुष का धर्मचक्रप्रवर्तन

परिचय

  • आज के दिन एक महापुरुष ने धर्म का चक्र चलाया है जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते हैं।
  • इससे पहले भी भारत में शील सदाचार का धर्म था, और समाज में गहरे समाधि अभ्यास होते थे।

धर्मचक्रप्रवर्तन में नई क्या?

  • महापुरुष ने लोगों को शील-सदाचार, समाज और प्रज्ञा सिखाई।
  • विशेषता यह थी कि उन्होंने इसे स्वभाव के रूप में अपनाया, जिससे धर्म धारण करना सहज हो गया।
  • जोर जबरदस्ती की बजाय स्वभाव से शील-सदाचार का पालन करना धर्म कहलाता है।

समाधि और ध्यान की अवस्थाएँ

    • पहले चरण में संत अलम्बन के सहारे चित्त को एकाग्र करते थे।
    • विचार (वितर्क) और चिंतन (विचार) के साथ सुख की अनुभूति होती थी।
    • दूसरे चरण में वितर्क-विचार समाप्त होते हैं, मात्र सुख और चित्त की एकाग्रता रहती है।
    • तीसरे चरण में रोमांच शांत होता है और केवल सुख की एकाग्रता बचती है।
    • चौथे चरण में आनंद की लहरें और मन की समाहित स्थिति होती हैं।

ध्यान की गहराईयाँ और उत्थान

  • एक सच्ची समाधि में कल्पना का नामोनिशान नहीं होना चाहिए।
  • संवेदनाओं को जानना और उन्हें अनुभव करना अहम् है।
  • प्रज्ञा का महत्व: संवेदनाओं का शाश्वत सत्य और नश्वरता को समझना।
  • समाधि की वैसी ही अवस्था जैसे सांस पर ध्यान, जो स्वाभाविक सत्य है।

साधना का वास्तविक दिशा

  • समाधि सिखाने की प्रक्रिया एक कल्पना नहीं होनी चाहिए, बल्कि जड़ तक पहुँचने की हो।
  • अपने अंदर की संवेदनाओं को जानना और अनुभव करना ज़रूरी है।
  • भीतर की यात्रा का मतलब है गहरी संवेदनाओं के सत्य को अनुभव करना और उसे पार करना।
  • समाधि को नैसर्गिक अनुरूपता में लाना चाहिए।

आत्मनिरीक्षण और सच्चाई की अनुभूति

  • भीतर का अनुभव वास्तविक होना चाहिए न कि कल्पनात्मक।
  • पूर्वजन्मों के कर्म विनाश के लिए भीतर की सच्चाइयों का अवलोकन आवश्यक है।
  • सांसारिक संवेदनाओं के प्रति प्रतिक्रिया में सुधार होना चाहिए।
  • भीतर के विकार खुद से अनुभव में आते हैं और तब वास्तविक सुधार होता है।

निष्कर्ष

  • महापुरुष का उद्देश्य था धर्म का चक्र चलाना, जो कि स्वाभाविक सहज अनुभूति पर आधारित हो।
  • व्यक्ति को कथा नहीं बल्कि अपने भीतर की गहराइयों में जाकर धर्म को अनुभव करना होगा ताकि वास्तविक मुक्ति मिल सके।
  • हर व्यक्ति को दिन प्रतिदिन साधना में आत्मनिरिक्षण और सुधार करते रहना चाहिए।