झाल कि मैं [संगीत] कि अरे इस देश के में एक महापुरुष ने है जिसे सम्यक संबोधित प्राप्त हुई कि आज के ही दिन कि उन्होंने धर्म का चक्र चलाया है है जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते हैं है तो क्या इसके पहले भारत में धर्म नहीं था ना को समझना चाहिए है कि क्या धर्म चक्र इस व्यक्ति ने चलाया है और उसमें क्या नई बात है क्या अनूठी बात ठीक है यह सचमुच इसके पूर्व भी कि भारत ने शील सदाचार का धर्म था ही यह सब नहीं तो अनेक लोग शील सदाचार का जीवन जीते ही थे यह सचमुच उस समय के भारत में में समा जी का गर्म था ही [संगीत] 98 तरह की बड़ी गंभीर समाधियां यह सब लोग नहीं तो भी कुछ लोग तो करते ही थे [संगीत] यह सचमुच उस समय के भारत में कि प्रज्ञा तू थी [संगीत] कि शील सदाचार बिठा समाधि कि प्रज्ञा विधि [संगीत] है और इस व्यक्ति ने धर्म का चक्कर चलाते हुए लोगों को शील-सदाचार सिखाया समाज ही सिखाई प्रज्ञा सिखाई है तो क्या नई बात सिखाई कि उसे समझे क्या नई बात सिखाई [संगीत] कि एक व्यक्ति कि शील सदाचार का पालन करता है [संगीत] मैं जोर जबरदस्ती से करता है है क्योंकि उसके मन में कि एक भाई है कि अगर मैंने कोई अश्लील तोड़ा है तो हो सकता है राज्य की ओर से मुझे दंड मिले कि उसे भय है बल्कि कोई अश्लील तोड़ा है तो हो सकता है समाज में बड़ी मेरी निंदा हो है अथवा भाई है कि कोई अश्लील तोड़ा तो मरने के बाद कोई बहुत बड़ी दुर्गति होगी अधोलोक में जन्म मिलेगा कि इस भाई के मारे शैल का पालन करता है है अथवा कि शैल का पालन करूंगा है तो मुझे राज्य की ओर से दंड मिलने का कोई खतरा नहीं समाज में मेरी बड़ी प्रतिष्ठा होगी यह व्यक्ति बड़ा शीलवान है वह तो बड़ा धार्मिक है तो अच्छा आदमी है है और मरने के बाद मेरी सद्गति होगी कभी दुर्गति होगी नहीं कि इस लुक के मारे शैल का पालन करता है पालन तो करता ही है करता है तो अच्छी ही बात है [संगीत] है लेकिन जिस दिन ऐसा हो जाए है कि मनुष्य अपने स्वभाव से शैल का पालन करने लगे है उसी शैल पालन करने में कोई प्रयत्न नहीं करना पड़े कोई जोर जबरदस्ती नहीं करनी पड़े कि उसका स्वभाव हो जाए तो कि जिस दिन उसका स्वभाव हो गया उस दिन उसका धर्म हो गया है कि गर्म चक्र प्रवर्तन है ना कि पुलिस धर्म है धारण करें इस उधर आधारित थी धम्मा अब उसे धारण कर लिया उसका स्वभाव हो गया है थे फर्म का अर्थ ही स्वभाव है अत्यंत उग्र स्वभाव धारयसीति विश्वम् कि उस व्यक्ति के स्वभाव हो गया था कि ऐसी अवस्था कैसे आए हैं चाहते तो सब है पर कैसे आए कि इस महापुरुष ने रास्ता बताया कैसे आए है तो अगला कदम अपने मन को वश में करना सीखें तू माने समाजी का कदम की समाधि तो उन दिनों थी ही और क्या नई बात बताएं हैं [संगीत] कि किस तरह से किसी एक का आलंबन के सहारे चित्र को एकत्र करने का काम करता था सादकपुर है और उसी का चिंतन करते करते करते जो आलंबन लिया उसको उन दिनों की भाषा में कहा वितर्क है और उसी का चिंतन चल रहा है तो उसे कहा विचरण और वितर्क है विचार है है तो भीतर बड़ी प्रीति जागती है [संगीत] अपने मन को बड़ा अच्छा लगता है कर दो हाउ टो क्रिएट थी मीणा सारे शरीर में एक रोमांच होता है तो उसे का सुख आज भी तर्क है विचार है का परिचय हो चुका है और चित्त की एकाग्रता है अपने आलंबन परिचित लग गया है का पहला ध्यान हुआ था है उससे आगे बढ़ता है और गहराइयों में जाता है का विचार और वितर्क दोनों रुके खत्म हुए अब केवल मन में और शरीर में एक बड़ी परिचय बड़ा सुख है और चित्त की एकाग्रता है [संगीत] हैं और आगे बढ़ता है इस दूसरे ध्यान से 3 से ध्यान की ओर जाता है कि रोमन को इस कदर शांत कर लेता है है कि वो सुख है कि दुख है इसे महत्व नहीं देता है लेकिन फिर भी शरीर में तो फ्लॉप रोमांच हो रहा है तो मन में जो प्रीति जाग रही थी वह उसकी अब केवल सुख की एकाग्रता है है तीसरा चयन हुआ है कि इससे आगे बढ़ा दो कि अभिजीत शरीर में ए ब्लॉक रोमांच की लहरिया चल रही थी यह भी रॉकी ओं आप अपने विचार है न भीतर है न प्रीति है न सुख है कि केवल क्षेत्र की एकाग्रता है अपने ही किसी आलंबन को जो आलम लिया उसी में उचित समाहित हो गया था कि चौथा जान हुआ था हैं अब अपने मन को फैलाता है हैं और आगे बढ़ाता है मैं अपने मानस को की सारी विश्व में कैसे फैला दूं है तो यह जो ज्ञान है उन दिनों की भाषा विज्ञान मैंने कौन श्रेष्ठ है को भी शेयर जो जानने का अंग है चित्रकार उस विज्ञान को फैलाने लगता है मेरे सारे विश्व में फैलने लगा सारे विश्व में फैलने लगा दूर-दूर तक जहां आनंद है इतनी दूर तक अपने मन को फैलाता है आनंद विज्ञान हो गया है अ पांचवा ध्यान हुआ आम रास्ते में कहीं कोई रुकावट नहीं कि जहां मन जाता है बिना किसी बाधा के जाता है आप जैसी आकाशीय आकाश हो गया अनंत आकाश प्रधान हो गया को पकड़ने के लिए कोई लंबा नहीं दे रहा है मैं अकिंचन है कुछ पकड़ने के लिए नहीं आनंद अकिंचन में फैल गया के साथ ध्यान हो गया है कि अब देश है मेरी जो संज्ञा है कि वो काम कर रही है नहीं-नहीं काम कर रही है क्यों नहीं जरा सी तो कर रही है नहीं कर रही ऐसी अवस्था जा संज्ञा काम करती है कि नहीं करती है मैं उस अवस्था में पहुंचा और उसको भी अनंत में फैला लिया तो नए मिशन या ना संध्या संध्या है ऐसा भी नहीं कह सकते संज्ञा नहीं ऐसा भी नहीं कह सकते ऐसे आठ में जान में पहुंच गया है और बात बड़े ध्यान होते भारत के कि आज लुप्त हो गए में अनेक प्रकार की आलंबनों को लेकर के अंत तक फैलने का अभ्यास होता है कि किसी एक रंग का ध्यान करते थे है वहीं आलंबन है हां हां खोली रंग को देख लिया आंखें बंद की फिर हमको देखा बंद आंखों रंग देखने की कोशिश की आंख खोली रंग देखा आंख बंद की फ्रंट देखा का रंग का एक छोटा सा बिंदु आने लगा में लेशमात्र एक बिंदु की तरह फैलाने अ कि जो भी रंग पकड़ा और उसे फैलाने लगे आनंद श्वेता को रंग फैलने लगा पहनने लगा फैलने लगा कि ऐसा हमारे मन की कल्पना भी ना लगा फैलने फैला लिया उसको आनंद तक फैला लिया है मैं इसी तरह से मैत्री की बात भी अच्छी बात है सबका मंगल हो सबका भला हो इन्हीं बात तुम्हे तो कि फैलाने लगा मन को अंदर तक हिला लिया है भी बड़ा लाभ होता था इन आठों दिशाओं में अ मैं एक और बड़ी शक्तियां प्राप्त होती थी बड़ी सिद्धियां प्राप्त होते थे वह व्यक्ति चमत्कारों के काम करके दिखा सकता था और दूसरी ओर मन निर्मल भी होता था [संगीत] है तो क्या कमी से फिर अ कि इस व्यक्ति को संयत संबोधित किया प्राप्त हुई कि इस तरह के हाथों ध्यान तो कर चुका था तो कर लेने के बाद देखता है कि मेरी मानस की गहराइयों में मैं अभी विकारों की जड़ें नहीं निकले थे अपने मन का बहुत बड़ा हिस्सा निर्मल होते होते होते ऐसी अनंत में फैल गया यह तू हुआ अच्छा हुआ यहां पर जड़े नहीं निकली उन दिनों की भाषा में कहा अनुसार एक प्ले स्टोर रही गए के अनुसार माने जो सोए हुए शर्मा ने सेवन करना अनुसार अनुकरण करना सोए-सोए अनुकरण कर रहे हैं चित्रधारा के साथ चित्रधारा की गहराइयों में जो साथ-साथ अनुकरण कर रहे हैं अनेक जन्मों से ही जा रहे हैं है अरे वह तो नहीं निकले ना कि वह नहीं निकले तो अभी मुक्त नहीं हुआ यह तो समाज के क्षेत्र में में एक नई बात दी के प्रधान ऐसा होना चाहिए बाहर हम हजार फैलाएं भीतर जब तक नहीं फैला भीतर जड़ों तक पहुंचाना है ये सब जड़ी निकाल पाएंगे कि प्रभात पलटी जो बात किसी एक आलंबन को लेकर के बाहर खेलने वाली थी अब उसे भीतर की हो और जो बात किसी एक काल्पनिक आलंबन के सहारे फैलने वाली थी कल्पनाएं दूर करो तो कि जो यथार्थ तुम्हारे अनुभव पर उतर रहा है जो सच्चाई तुम्हारे अनुभव पर उतर रही है कि उसकी सारी चलो तो यही यात्रा भीतर की ओर होने लगेगी कि उसने बहुत अच्छी तरह देख लिया कि विपक्षी साधक विपश्यना में जरा आगे बढ़ जाए है तो वह भी खूब जानने लगता है है कि हमारे मानस के कि किस प्रकार दो टुकड़े बने हुए हैं और एक ऊपर ऊपर का मानस जिसे आज के पश्चिमी भाषा में कहते हैं कौन से स्माइल कि हिंदी में उसे कहीं चेतन चित्र कि भारत की पुरानी भाषा के शब्द इस्तेमाल किए गए क्योंकि चेतन तो सारा का सारा ही गलत तरीके से चेतन है तो उसे कहा परिचय एवं मित्र छोटा सा चित्र की सारी की सारी चित्र का बहुत छोटा सा हिस्सा जो केवल ऊपर ऊपर का हिस्सा है और क्या करता है यह ऊपर ऊपर का हिस्सा है जी हां से कुरूप दिखा अच्छा लगा बुरा लगा के कान से कोई शब्द सुना अच्छा लगा बुरा लगा नाक में कोई धंधा ही अच्छी लगी बुरी लगी जीप पर कोई रस लगा अच्छा लगा बुरा लगा शरीर से पुष्पवर्षा हुआ अच्छा लगा या बुरा लगा इस ऊपर ऊपर वाले - में कोई टेंशन चला अच्छा लगा बुरा लगा अच्छा लगा तो रात पैदा किया और बुरा लगा तो देश पैदा किया कि जहां-जहां राग पैदा होगा वहां दुख पैदा होगा जहां जूस पैदा होगा वह बहुत दुख पैदा होगा ना हैं तो इस मन को ऐसे काम में लगा दें तो कौन सी जिससे यह रोग पैदा करना बंद कर दे यह दृश्य पैदा करना बंद कर दे तो दुखों से इसका छुटकारा हो जाए में बहुत तरीके होते हैं [संगीत] मैं अपने मन को है जो इन सांसारिक बातों में राग द्वेष राग द्वेष अनचाही मनचाही अनचाहे मनचाही इस मुझे रहने की उसकी जो आदत हो गई थी उसको कोई ऐसा आलंबन दे दो का जूस अच्छा तो लगे पर उसमें कोई बहुत आसक्ति नहीं हो कि किसी शब्द का आलंबन दे दिया बार-बार बार-बार वह अब दोहरा रहा है लग गया काम मिल गया उसको अच्छा ही काम मिला कि एक रूप का आलंबन दे दिया है में लग गया उसमें और जैसे उन दिनों चलता था नई दिल्ली इसका संबंधित जिया नन्ना सा बिंदु है कि अवधी से फैला तेरी फैलाती फैलाती अनंत तक फैला लो फिर से को सिकुड़ते सिकुड़ते शकूर से फिर लिस्ट तक ले आओ लिस्ट से अनंत अनंत शैलेश इसे उन दिनों की भाषा में लेश्या का हक है बुरी शक्तियां प्राप्त हुई फोन कहां प्राप्त हुई है है कि से प्राप्त हुई है कि यह मानस की भूरि-भूरि हिस्सों से हमने खेल खेला है कि यह सब कुछ चल रहा है हमने अनंत अपने मन को फैला दिया हमने किसी एक का आलंबन में अपने चित्र को एकदम समाहित कर दिया बिना रुके बिना देश के कर दिया अ आप के समर्पण और निर्माण हुआ बड़ा शांत हुआ बड़ा अच्छा हुआ हमें बड़ी शक्तियां मिली बड़ी सिद्धियां मिली है और मरने पर भाव तुझे देख लोग बहुत ऊंचे ब्रह्मलोक प्राप्त हो सारी अच्छी बातें हुई [संगीत] है लेकिन और नीचे क्या है यह देखने का काम ही नहीं किया ना हैं और नीचे तो बहुत कुछ हो रहा है जो व्यक्ति सम्यक संबुद्ध होता है कि वह सच्चाईयों को गहराइयों तक देखता है बाह बाह तो देख लिया और देख कर यह भी जान लिया कि मेरा मन निर्मल हुआ इससे कि जुड़े नहीं निकली तो अब मुझे जड़ों तक जाना है [संगीत] है तो धर्म चक्र चलाया तो क्या धर्म चक्र चलाया है हुआ है है कि समाधि कहीं ऐसी ना हो जाए है कि किसी काल्पनिक आलंबन के सहारे कि हमारा चित्त एकाग्र हो जाय भले बिना राज्य हो जाए बिना देश के हो जाए पर काल्पनिक आलंबन के सहारे हुआ कि हमारी चित्र का केवल भूरी भूरी हिस्सा एकाग्र हो जाए खूब एकाग्र हो जाए और फेल भी जाए कि वह परिपक्व चित्र महत्त्व हो गया महान हो गया कितनी दूर फैल गया सारे विश्व में फैल गया अब प्रमाणन अंत में फैल गया प्रमाण नहीं आ हैं लेकिन फिर भी को अपने भीतर की ओर क्या सच चाहिए हैं यह तो उसने नहीं देखी है तो समाधि सिखाई ऐसी आलंबन के सहारे मन को एकाग्रता करो तो है कि जिसमें कल्पना का नामोनिशान नहीं हो को किसी बनावटी बात का नामोनिशान नहीं हो बौद्ध दर्शन [संगीत] कुछ नहीं सर जी तौर से अपने भीतर क्या हो रहा है बस इसी के सहारे कि प्रशासन हरा दिया कि कुदरतन सांस आ रहा है जा रहा है आ रहा है जा रहा है कभी गहरा है कभी छिछला है कभी इस नासिका से गुजरता है कभी उस नासिका से गुजरता है बस तथा स्वभाव से उसे जान रहे हैं चे ग्वेरा कर नियुक्ति मिला और कल्पनाओं से छुटकारा भी मिला है कि कृत्रिम बातों से छुटकारा भी मिला है कि निसर्ग के सहारे कि जो नहीं सर जीत सत्य है उसके सहारे चित्र को एकाग्र करने का काम शुरू किया है की समाधि का सम्यक समाधि होने लगी की कल्पना ही नहीं कि हम कल्पना करके अपने मन को फैलाएं सारे विश्व में सारे ब्रह्मांड में फैल गया हमारी कल्पना की सारा विश्व कहां प्रमाण दे दो और अब तो अनुभव का ही काम सारा का सारा जो घटना साढ़े तीन आज की काया में घट रही है उसी के सहारे काम [संगीत] कि सामाजिक काम हुआ था कि प्रज्ञा भी भारत में ही [संगीत] के लोगों ने सुनीं रखा था और इसलिए मांग रहे थे है अरे भाई यह सारा शरीर यह सारा चित्र यह तो अनित्य है भाई एक बड़ा नश्वर है बड़ा भंगुर है कि यह मैं नहीं यह मेरा नहीं कि मेरी आत्मा है और अनात्म है अनात्म है अनित्य अनात्म है कि इसके प्रति जरा सा भी तादात्म्य स्थापित हो जाए मैं मेरे का भाव शांत हो जाए जरा सी भी आ सकती है आ जाए तो बड़ा दुखदाई है बड़ा दुखदाई है दुख है अनित्य है अनात्म है दुख है कि ऐसी बातें है भारत के लिए नहीं-नहीं सी और सुना लोगों ने माना उसे कि कुछ लोगों ने चिंतन किया इस पर बहुत चिंतन किया है कि सचमुच यह शरीर तो जन्म देने के बाद मर ही जाता है है और मन तो ऐसा है कि सुबह एक जैसा था शाम होते होते तो न जाने कैसा हो गया बदल गया अरे सुबह-शाम क्या अरे कभी तो थोड़ी सी देर में बदल जाए तो सच पूछिए तो आनी ही है और जो अनित्य है वह मैं कैसे वह मेरा कैसे हो मेरी आत्मा कहे बस जो अमित ने उन्हें जिस कारण कैसे तो शुक्राणु का यूं चिंतन करके मनन करके इस बात को स्वीकार करने वाले लोग थे हैं लेकिन फिर कि इसमें क्या नया धर्म चक्र चलाया [संगीत] और फिर समझाया खुद भी समझा और उसका उपयोग करके लोगों को समझाया फिर तेरा परिचित सही काम कर रहा है ना छोटा सा भूरी भूरी क्षेत्र जिसके साथ बुद्धि लगी है जिसके साथ इंटरनेट लगा है पुरी ओम पुरी चित्र चिंतन कर रहा है अनित्य है ना देख अनाथ महीना मैं नहीं मेरा नहीं मेरी आत्मा नहीं देख ना है तो सुनी सुनाई बात को श्रद्धा से मान रहा है प्रज्ञा तो है ही वह भी सिर्फ मरी प्रज्ञा है कि चिंतन मनन करके उस बात को स्वीकार कर रहा है कि बात बड़ी बुद्धिसंगत है तर्कसंगत है इसे स्वीकार कर रहा हूं तो प्रज्ञा तो है ही टेंशन मई पर गया युधिष्ठिर मानस का बड़ा हिस्सा तो यूं का योर रह गया हमने अपने मानस के ऊपर ऊपर के हिस्से को सुधार लिया है और उसमें क्षमता भी ले आए उसमें निर्मलता भी ले आए उसमें राज नहीं लगने देते अब उसमें द्वेष नहीं लगने देते अरे कल्याण की बात हुई उसका विरोध कौन करेगा से खराब कौन कहेगा है लेकिन भाई केवल उसने से मुक्त नहीं हुए ना क्योंकि बाकी हिस्सा जो कि बहुत बड़ा हिस्सा है अनदेखा रह गया अंजाना रह गया उसकी विकार तो निकाल ही नहीं पाए है और भाई वह विकार जून गहराइयों में है कि वह तो इस सारे प्रपंच की जड़ें हैं ना कि हमने पेड़ को ऊपर ऊपर से हजार सुधार लिया और जुड़ी नहीं सुधार पाए अब तो भाई हमारा पेड़ कैसे सुधरेगा अच्छा लगेगा कुछ दिनों तक बड़ा हरा-भरा हो गया बड़ा स्वस्थ हो गया है लेकिन जड़ों में कीड़े लगे हैं कि कुछ समय के बाद उसमें भी कीड़े लग जाएंगे अस्वस्थ हो जाएगा बीमार हो जाएगा कमजोर हो जाएगा कि जुड़े सुधारे बिना बात बनती नहीं से जुड़े सब सुधरे जब कि इस अंतर्मन की गहराइयों वाली सच्चाई को अनुभूति से जाने तो उसे भावनामई प्रज्ञा का हर कि वह भावना मई प्रज्ञा करने लगे तो मानस को बीनने का काम शुरू कर दे के बाहर फैलाने का काम नहीं कि अब भीतर की ओर मोहब्बत हो रहा है ऊपर ऊपर जो छोटा सा परिचय तथा अब भी च पड़ने लगा पहनने लगा और बहुत महान है भीतर पेड़ के बारे में तो कहते हैं कि पेड़ जितना ऊपर उठा हुआ है उतना ही नीचे है उतनी नीचे उसकी जड़ें हैं जितना ऊंचा उठा हुआ पेड़ होगा उतनी ज्यादा बड़ी उसकी जड़ें होंगी छोटा पेड़ होगा पौधा होगा जड़े होंगी यहां पर भाई हमारे मन का ऐसा खेल है कि यह ऊपर ऊपर परिचित वाला पेड़ इसके मुकाबले जो मोहब्बत अच्छी तरह नीचे वाला रह बहुत बड़ा है बहुत बड़ा है बिंदु से जाओ विंदते जाओ खोज से जाओ अरे कितना मोहब्बत कितना भगत और यह ऊपर ऊपर से फैलाकर के प्रमाणों तक पहुंच गए अनंत तक पहुंच गए मैं तो बाहर बाहर का आनंद हुआ ना एक और अनंत है जो हमारे भीतर है अ कि भीतर की यात्रा करते करते करते शरीर और चित्त की सारी सच्चाइयों का दर्शन करते करते उनको तथा स्वभाव से देखते-देखते जड़ों से विकार निकालते-निकालते जिस समय कि शरीर और चित्त के पर एक ही अवस्था का साक्षात्कार कर देता है जो नित्य है जो शाश्वत है जो थ्रू है जो एक रस है और अपमान है अनंत है उस अनंत प्रदर्शन करता है तो मुक्त हो जाता है बाहर-बाहर के प्राण प्रणित अनंत की कल्पना करता है जिससे को ऊपर ऊपर से निर्मला बुच बनाता है और उसकी वजह से मरने पर अच्छे ब्रह्मणों को में जन्म होता है मुक्त नहीं हुआ अभी बहुत चक्कर चलता है बहुत चक्र चलता है उस अवस्था पर पहुंचे जो चिप्स और शरीर के पर एक ही अवस्था है कि उन्हीं बाद भी तो फिर समाधि प्रज्ञा शील समाधि प्रज्ञा होते हुए भी के गहराइयों तक शील समाधि प्रज्ञा इस अधर्म कालचक्र चले कि भी सर्प का नामोनिशान नहीं रह जाए कि भीतर विकारों का नाम और निशान नहीं रह जाए तो एक अनंत ब्रह्मांड तक अपने चित्र को कल्पना से फैला लिया फिर भी सरसों दबे हुए विकार हैं ही कि चाहे-अनचाहे एपी न जाने कब ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ेंगे और ऊपर ऊपर से हमने बहुत बढ़िया लेप लगाया वह सारा टूट जाएगा भीतर के विकार सिर पर सवार हो जाएंगे जब तक जुड़े नहीं निकली तब तक खतरा ही खतरा है मुक्त नहीं हुए मुक्त नहीं हुए थे है तू अब हमें ऐसी साधना करनी है है कि जो हमें इस परिक्षेत्र से ऊपर ऊपर वाले छोटे से चित्र से हमको नीचे गहराई वाले चित्र की ओर ले जाए है जिसने कभी कि यह तरीका अपना कि नहीं देखा कि वह बेचारा तो इसी भ्रम में रहेगा है और विवाद भी करता जाएगा हम भी जो कल्पना करते हैं या शब्द का इस्तेमाल करते हैं या बनावटी तरंगे बना करके उसका इस्तेमाल करते हैं तो हम भी गहराइयों तक गहराइयों तक जाकर सारे मानस को निर्मल कर लेते हैं कि विपक्षी असाध्य किसी से भी बात नहीं करें झगड़ा नहीं करें नहीं तो कि पश्चिम नहीं होगा ना कि गर्म विनाश से विवाद नहीं हुआ करता झगड़े नहीं हुआ करते थे कि किसी को वही रास्ता अनुकूल लगा अरे भाई तू ऐसा करता है कर दो कि हमें यह अनुकूल लगा इसलिए हम यह कर रहे हैं पांच समय जरूर दोनों में क्या अंतर है यदि कोई कहे कि हम भी इस तरह की साधना करते-करते इस तरह का ध्यान करते-करते एकदम मानस की जड़ों तक चले गए तो उससे झगड़ने की बात नहीं पर अपने मन में तो समझेंगे कैसे चला गया भाई यह जड़ों तक आ कि हमारी जड़ें कहां है का मांस कबूल हिस्सा जिसको अ क्वेश्चन कहीं अर्धचेतन कहें हैं वह क्या करते रहता है में भूतों प्रतिक्षण शरीर पर होने वाली संवेदनाएं ओं के साथ जुड़ा रहता है कि विपक्ष की शादी किस बात को खूब समझने लगेगा फिक्शन जुड़ा रहता है रात को गहरी नींद में हूं और शरीर पर कोई संवेदना जाएगी तुरंत से जाएगा और प्रतिक्रिया करेगा बहुत गहरी नींद में हूं मच्छर ने काटा अब इस शरीर के वजन की वजह से अच्छा नहीं लगा तो प्रतिक्रिया करता हूं मच्छर ने काटा वहां खुद चलाता हूं भारी लगा शरीर तो करवट बदलता हूं सुबह-सुबह ठंड लगी तो कंबल ले करके वोट लेता हूं कौन करता है यह हमारे मानस का हिस्सा जो प्रतिक्षण हमारे शरीर के साथ जुड़ा हुआ है जो प्रतिक्षण हमारे शरीर की संवेदना के साथ जुड़ा हुआ है रात को यही काम करते रहता है में भी काम करते रहता है कि किसी बात में लगा है सुकुन ऊपर कम चित्र लगा है किसी बात में यह भीतर वाला चित्र तो वही काम करता है शरीर में कहां क्या संवेदना हो रही है कहां क्या संवेदना हो रही है कहीं खुजली आई तो जख्म जाता है कहीं भारी लगा तो जरा बदलता है अरे कर रहा है ना वह तो अपने काम में लगा है ना हम जागते हैं तो अपने काम में लगा है हम सो रहे हैं तो भी वह अपने काम में लगा है और उसको तो एक ही काम मिल गया कि शरीर में कहां-कहां कैसी-कैसी संवेदना होती है है उसको ज्वाइन करके प्रतिक्रिया करो अच्छी लगे तो राणा की प्रतिक्रिया करो बुरी लगे तो दोष की प्रतिक्रिया करो हैं तो इस महापुरुष ने देख लिया कि भाई यह ऊपर ऊपर के छोटे से हिस्से को तो हमने निर्मल किया अपराध नहीं लगने देते क्योंकि बुद्धि के स्तर पर खूब समझा दिया उसको विदेशों में रात नहीं लगना चाहिए तो इसमें तो इस नहीं लगना चाहिए साबित यह सब नश्वर है साहब भंगुर है खूब समझा दिया उसे रागनी जगह बाद विशेषज्ञाता यह समझता है कि मैं थोड़ा वीतरागी हो गया बड़ा वृध्दि हो गया बड़ा बीच में हो गया रे मुक्त हो गया ना मैं देखो मेरी बहुत सारे अखिल ब्रह्मांड तक हो गई कितना अनंत में फैल गया मेरी मुक्ति में कहां कोई संदेश कि बेचारे ने अपने भीतर नहीं देखा मैं उस अवस्था में भी व्यक्तियों कल्पना के सहारे अपने इस ऊपर वाले चित्र को सारे विषय में भरा रहा है भीतर-भीतर सब भी कोई संवेदना जागती है और भीतर वाला मानस प्रतिक्रिया करता है संवेदना जागती है भीतर वाला मानस प्रतिक्रिया करता है एक भाई किसी मंत्र को लेकर सजा करता है जौनपुर शहर के शब्द को लेकर जाप हमने बड़ी अच्छी बात है अपने चित्त को एकाग्र भी करता है - के ऊपर ही ऊपर हिस्से को निर्मल भी करता है और उस बेचारे ने कब देखा कि मेरा यह जाप चल रहा था उस समय अभियुक्त थी और संवेदनाओं को यह वाला आंवला जेल की प्रतिक्रिया भी कर रहा था बात कर रहा था रहा था ही नहीं क्योंकि अपने भीतर बंद करके अपने भीतर की सच्चाई जिसने हुआ था कुछ जाने जाते हैं जैसे कि मेरे भीतर क्या हो रहा है वह ज्यादा पैसे कि मेरे मानस का एक हिस्सा ऐसा है जो रात दिन प्रतिक्रिया करता है रात्रि करता है देश की करता है रात करता है दृश्य करता है और सब्सक्राइब नहीं पलटा तुम कैसे हो कि उस कराड़वाला प्रभाव नहीं पड़ता ना अ कि उसका दृश्य वाला प्रभाव नहीं पड़ता ना तुम अभी सदोष कैसे हुआ भाई से मुंह मोड़ना इतना अध्ययन इतनी अभिज्ञा पता ही नहीं क्या हो रहा भीतर है है तो बीत मौत कैसे हुआ मुंह ही मुंह ना कुछ नहीं मैं भी ट्रक नहीं हुआ कि मैं बीत दृष्टि नहीं हुआ मैं भी सम्मोहन नहीं हुआ इस सच्चाई को स्वीकार करता है तो गहराइयों से काम करना शुरू कर देता है गहराइयों से काम करना शुरू कर देता है कि इन गहराइयों तक कि जो मानस काम कर रहा है वह बुद्धि की बात सुनने को तैयार नहीं और बुद्धि के सर पर हमने खूब समझ लिया शरीर अनित्य है चित्र अनित्य है नश्वर है भंगुर है यह मैं नहीं यह मेरा नहीं मेरी आत्मा नहीं यह दुख ही दुख का कारण है खूब समझ लिया है अरुण ऊपर ऊपर वाले चित्र ने उसके प्रति रात करना बंद कर दिया देश करना बंद कर दिया लेकिन यह बीच वाला चित्र बुद्धि की बात सुनने को तैयार नहीं हैं और बुद्धि हजार समझ गई फिर भी वह तो उसी काम में उर्जा है रात पैदा करता है 2 इस पैदा करता है और रात-दिन करता है प्राप्त पैदा करता है डिश पैदा करता है उसे कैसे समझाएं है तो उसको समझाने का एक ही तरीका यह जो परिचित था जिसे बाहर की ओर तो इतना अनंत तक बढ़ा दिया और उसे भीतर की ओर बढ़ाए भाई ताकि भीतर और ऊपरी-ऊपरी क्षेत्र में जो दीवारें पड़ी है वह टूटे थे कि वह टूटे तो - बढ़ता-बढ़ता बढ़ता अपने गहराइयों तक जाना चालू कर दे समाज ही में सांस का सहारा किस लिए लिया कि किसी अन्य आलंबन का सहारा क्यों नहीं लिया कि कोई भी अन्य आलंबन का सहारा लेंगे तो उसमें कल्पना जोड़ी होगी यह कल्पना जुड़ी होगी कि यह कोई क्रीटेड सत्य बनावटी सत्य कृत्रिम सत्य हमने बना दिया कि शब्दों द्वारा हमले को तरंग पैदा कर ली हमने बना लिया अब उसके सहारे चित्र को एकाग्र करने का काम कर रहे हैं नेचुरल स्वभाविक कुदरतन क्या हो रहा है इसको देखने को नहीं किया तो subscribe लिए कि हमको तो उन स्थानों पर जाना है जहां रतन हमारा घाघरा घाघरा लेना होगा जो कि हमको उस रास्ते की ओर ले जाने में सहायक है कि विपक्षी साधक देखता है तीन दिन बेचते-बेचते संवेदनाएं मालूम होने लगे मैं कल्पना करता रहे अनंतर की कल्पना करता रहे संबंधों पर ध्यान जाएगा ही नहीं क्योंकि संविधान को जानने का काम ही नहीं किया कैसी जाएगा जान हमने एक कल्पना कर ली उसी के सारे मन को फैला रहे हैं फैला रही है फैला रहे हैं हमने कुछ सर्विस बनावटी पैदा कर ली है उसके सारे इशारे-इशारे मन को समाहित कर रही है फैला रहे हैं आप अपने भीतर कुदरतन क्या तरंगें पैदा हो रही हैं उधर संख्या संवेदना पैदा हो रही है और उसम दुगना के प्रति हमारा भी सर वाला मानस कैसी प्रतिक्रिया कर रहा है अरे उसी जानना है भाई है क्योंकि उसे सुधारना है भाई बाहर बाहर का सुधार तो किया अच्छा किया भीतर का सुधार हुए बिना हम मुक्त नहीं हुए उसे इसलिए साथ के सहारे काम शुरू किया तीन दिन होते-होते यहां सम्वेदनाएं मिलने लगे हैं और आगे बढ़े और आगे बढ़े तो सारे शरीर की संवेदनाएं मिलने लगी तो जुड़ गए ना अपने ऊपर वाले मानस को इस भीतर वाले - से जोड़ दिया अब ऊपर वाले - को जो बुद्धि समझा रही थी मत कर तू मत कर इससे जुड़े होते हैं अब यही बुद्धि का असर भीतर जाने लगा तो वह - जो कि अंधा करके राधे-राधे पैदा करता था क्योंकि वाले के साथ संवेदना होती है मैं अभी-अभी तो पुरानी आदत के वजह से अंधा है ना उसके बाद अच्छे शुरुआत हुई थोड़ा पैदा कर लिया दुर्गंध हुई ड्रेस पैदा कर लिया लेकिन बीच-बीच में हो सकता है यह ऊपर वाला चित्र नीचे वाले चित्र से जुड़ गया तो होश आया अरे नहीं-नहीं चुके है तू क्या हुआ देखना गहन अनुभव देखने वाला सुनने वाला नहीं कोई सुनने वाला नहीं पूछ ले तू अनुभव से ही गहन अनुभव से ही जगाना अब अनुभव से ही उससे से मुक्त कराना होगा अनुभव से ही उसे नियुक्त करना होगा अब स्कूलों को गिरा और तो यह समस्या बनती जा रही है कि यह देखिए सम्वेदना जाएगी देख तो सही कितनी देर रहती है अच्छा खुजली आए आज तक को तेरी आदत सी खींच लिया खून जल्दी से अब जरा देखना इसे पूछ लिया यह देख कितनी देर ऐसे तु देख तो सही कितनी देर रहती है आ रहे से हुई तेज हुई चीनी समाप्त हो गई ना तो उसके समझ में आने लगता है अरे हां भाई जो उत्पन्न होता है यह शरीर और चित्त में उस समय पाकर समाप्त हो ही जाता है कि जागी जागी जागी नहीं अच्छी लगती पुरानी आदत से नहीं अच्छी लगती उसे समझा मिलने लगी सब्सक्राइब देख सकें सब्सक्राइब करने लगे इसी को कहते हैं भूत वाली प्रज्ञा गई रावण मेघनाद नहीं अभियुक्त नहीं समझ में नहीं आई अपने वाला है तूने अपने भीतर खोट पैदा कि वह अनुभव के कारण कि होश नहीं था अनुभव तो होता है झालरा का नियुक्त कर बहुत सारा पैदा करता था दुकान बहुत आदेश पैदा करता था वहीं अनुभव तुझे हो रहे हैं और साथ ही यह भी है यह नित्य है भाई अनीस चेहरा देख चैनल सबसे बड़ा रोमांच बढ़ा दो है कि मैं नहीं ना ही मैं बुद्धि तो बहुत करती थी यह मैं नहीं मेरा नहीं इसलिए आत्मा नहीं हजार कैसी बुद्धि अब वह भी समझने लगा समितियों में नहीं हरि जी मेरा नहीं कि मेरी आत्मा नहीं और यह भी समझने लगा कि अरे इसमें तो दुख ही दुख समाया हुआ ना मैं जब-जब राज की प्रतिक्रिया करता हूं तो दुखी हो जाता जब जगदीश की प्रतिक्रिया करता हूं तब दुखी हो जाता हूं यह उसे समझ आने लगी तो बात तो वह कि वह उन अधिक है लेकिन इस बात को बल बुद्धि सब्सक्राइब करें अब हमने गहराइयों सब अपने मानस के उस हिस्से को भी समझा दिया तू भी देख तेरे अनुभव से दूर करता है और होता है और इस व्यक्ति के बाहर निकलना रास्ता निकालने का मैं आपको बदलना शुरू हुआ जरा सा ही शुरू होता है पर शुरू तो हुआ ना कि आज तक तो उस ओर ध्यान ही नहीं ले तु ध्यान करेंगे कल्पनाओं का झन कृत्रिम बातों का ध्यान नकली बातों का ध्यान फैलाएंगे मन को इधर से उधर यह डाल देंगे मन को है तो अच्छा तो है आदमी जब दुखी होता है तो अपने मन को अपने दुख के कारणों से कहीं दूर ले जाना चाहता है उसका स्वभाव हो गया बहुत दुखी हो जाए तो ऐसी घटना घट गई कि हम बड़े विषाद में डूब गए बड़े दुख में डूब गए अपना रात को नींद आती है दिन में चैन पड़ती है बहुत व्याकुल है तो चलो भाई थोड़ी देर मन बहलाने के लिए किसी सिनेमा में चलो किसी नाटक में चलो यह अपना वीडियो ही खोलो इसी को देखो है अथवा इससे गया-गुजरा काम करें तो चलो किसी शराब खाने में चलो दो घूंट ले किसी के घर में चलो वह मन लग जाएगा किसी घोड़े की रेस में जाओ वहां मन लगा थोड़ी देर तो अपने मन को दुखों से मुक्त कर लिया बहला लिया भुलावे में ले गया अब तो भाई भिलावा तो भुलाबाई है अपने मन को कितनी देर भुलावे में रखेंगे भीतर तो व्याकुलता भरी हुई है अनचाहे के प्रति द्वेष मनचाहे के प्रति राजन चाहिए के प्रति मनचाहे के प्रति दृढ़ निश्चय ही रहा है और दुख भरा हुआ है और हम अपने ऊपर ऊपर चित्र को बहला रहे हैं उधर नहीं फैलाया तो और किसी बात में फैलाया थोड़ी देर चलो मंदिर हुआ आए थोड़ी देर से मस्जिद हुआ है वह थोड़े से लोग गिरजाघर वाला है छोड़ दे चलो यह पाठ कर लें और थोड़ी देर भजन-कीर्तन में बैठ जाएं थोड़ी देर कोई कथा-वार्ता सुनने धर्म की तो यह ऊपर वाला मन लग गया उससे तो अच्छे काम में लगा है यहां पर भिलावा तो भला बाहिर है ना अपने दुखों की ओर नहीं गया ना पलायन तो पिलाया नहीं रहा ना अपने दुखी और जाना शुरू कर दिया दुखों की ओर जाना शुरू कर दिया तो दुखों की जड़ ए निकालेगा अ का पहला पहला धर्मचक्रप्रवर्तन यही था और कुछ नहीं था कि यह जो चार सत्य हैं इनको आर्य सत्य करके समझाया दुख है तो भाई क्या नई बात हुई दुनिया के सारे लोग जानते थे पहले भी दुख है [संगीत] की बीमारी आ जाए तो दुख है बुढ़ापा आ जाए तो दुख है ढीमर ना आए तो दुख है किसी प्रिय से भी हो गया तो दुख है अप्रिय से सही हो गया तो दुख है मनचाही बात नहीं हुई तो दुख है अनचाहे बात हो गई और बहुत बड़ी वृद्धि मैं कहता है दुख का परिज्ञान करना है एक नया शब्द दिया भारत को परिजन करना है दुख की की परिधि कहां तक है परिसीमा कहां तक है उसका संरक्षित रख कितना है कुछ सारी क्षेत्र को दिए जाएंगे तो हां बाबू दुख का शक दुख को हमने जान दिया पूरी तरह से जान दिया हमने तो ऊपर ऊपर से जाना दुख है और उसको दूर करने के लिए हमने यह भला वह बुलावा तो हमने दुख को पूरी तरह जाना नहीं जब गहराई उसे बंधने लगे बेचने लगे बेचने लगे तो उसकी सारी सीमाओं तक जान लिया अंतिम सीमा तक जान लिया गहराइयों से नींद से विनती ऐसी अवस्था आती है राहुल को आने लगती है पड़ा पुलक रोमांच होता है इस सारे शरीर में धाराप्रवाह बड़ी सुखद संवेदना बड़ी सुखद संवेदना कि प्रज्ञा ठीक से नहीं जागती तो कहता आपकी जान दिया बाद से दूर हो गया Jio का हिस्सा आनंद आया कैसा भी हो सकता है इस सच विपश्यना करता है तू समझता है अभी दुख का ही क्षेत्र है जहां अनिश्चितता का क्षेत्र है वह धोखा ही क्षेत्र है क्योंकि बस रहने वाला नहीं देख समाप्त हो जाएगा समाप्त हो जाएगा फिर रोना आएगा आसक्ति पैदा कर लूंगा ना उसे शुकर मान के आसक्ति पैदा कर ली तो उसके जाते ही रोना आएगा यह बात समझ में आने लगी तो अभी दुख साइड क्षेत्र है अभी दुख का एक क्षेत्र है उस सीमा तक पहुंच गया जिसके बाद शरीर और चित्त के पर एक ही अवस्था का अनुभव हो गया जो नित्य शाश्वत है जो दूर है जिसमें उत्पन्न होता ही नहीं होता ही नहीं एक रस बना रहता है तो दुख ही दुख की की सारी अवधि सारी परिधि देख गया सब पहला आर्य सत्य हुआ के दुख का कारण है तू जानता है तृष्णा दुख का कारण है इसमें नई बात बताई थी श्री कृष्णा मनराज की वितृष्णा द्वेष की वितृष्णा है मनचाही को रोके रखने की तृष्णा बढ़ाने की तृष्णा अनचाही को दूर करने की तृष्णा तो वहीं राघव वहीं द्वेष तो यह दूं जाता है तो व्याकुल हो जाता हूं इस बात को समझता है अरे पर उसकी गहराइयों तक नहीं हुआ था कि उनके गहराइयों तक कि जहां प्रति ठंडक पैदा करता हूं देश पैदा करता हूं उन गहराइयों में जहां बड़ी शांति मिलती है बड़ा आनंद आता है वहां राह है ना अभी विरोध हुआ था उन गहराइयों में रख नहीं निकला ना तो आप भी हमने तृष्णा को उन गहराइयों तक देखा नहीं हमने स्नेक उन गहराइयों तक जड़ों से निकाला नहीं तो रिश्वत नही हुआ था कौन-कौन गहराइयों तक निकाले तो आर्य सत्य हुआ था कि कैसे निकाले तो सुनी सुनाई बात तो बहुत है 22 छील का पालन करो मन को वश में करो अपने भीतर प्रज्ञा जगाओ यह सारा संसार अनित्य है नश्वर है भंगुर है इसके प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए यह सब तो करके देखा करके देखने पर भी उस स्थान पर नहीं पहुंचा जो कि शीघ्र अभी तक तो रास्ता पूरा नहीं किया ऊपर ऊपर से समझ गया से को सबस्क्राइब की गहराइयों की ओर लेता तो सब्सक्राइब कर लेता है सब्सक्राइब कर लेता है और राष्ट्र को पूरा करेंगे उसके बाद की व्यवस्था शीघ्र नियुक्तियां कर लेता है तो चार आर्य सत्य ख्याल में चार आर्य सत्यों की चर्चा करके रह जाए हम चार आज यह को सच्चा राज्यों को सत्य मानने वाले हम भगवान बुद्ध के बड़े अनुयाई हमने धर्म को खूब समझा हमारे लिए तो बड़ा अच्छा धर्मचक्रप्रवर्तन हुआ अरे नहीं हुआ तेरे लिए है तूने भगवान को नहीं समझा आदमी तेज धम्मचक्र नहीं है धर्म चक्र तो सभी धर्म चक्र है जबकि मानस के ऊपरी हिस्से से गहराइयों तक पहुंचा रहे शायरी विकारों को जड़ों तक काटते काटते काटते उस अवस्था तक पहुंचा दे जो विचार बहन अवस्था है भले समय लगता है कि यह आतुरता कोई लेकर चल पड़े रास्ते पर एक शिविर में मुझको तो मुक्त होना ही है मैं मुक्त होकर रहूंगा अथवा एक में नहीं हुआ तो दो हमें तो होकर रहूंगा तीन में तो होकर और अभी समझा नहीं धर्म को हमारा काम नहीं का लहंगा देंगे इस समय आवे तब वे अपना काम किए जा रहे हैं हम अपना काम किए जा रहे हैं - को ऊपर से नीचे की ओर यात्रा करा रहे हैं और जिन गहराइयों तक जा रहे हैं उन गहराइयों तक समता समता समता इसमें पक्ष रहा है कि कितना समय लगेगा और हमने काट कर रखा है में कितने जन्मों से संग्रह कर रखा उसकी पत्नी उतरते-उतरते जितनी जितना समय लगे ऐसे लोग भी होते हैं कि थोड़ी पड़ती है भीतर जल्दी उतर गई तो जल्दी अंतिम अवस्था का साक्षात्कार हो गया बॉस पड़ते हैं तो देर लगती आने पर देर लगे कि जल्दी हो काम तो ठीक कर रहे हैं उतार रहे हैं अपने पति उतर रही है ना अरे जितनी-जितनी उतरी उतने-उतने तो हल्के हुए जिन-जिन विकारों की अवधारणा हुई विपश्यना करते-करते देते हैं कैसे उतरना होती है बढ़ी ठंड का मौसम में थोड़ी गर्मी छुट्टी जोर से अपने विचारों की झूठी ना भाई राजा खूब समझता है कि सूची विकारों की ड्यूटी ना सिर्फ इतनी गर्मी छुट्टी तो हमारे विकारों की गर्मी त्रुटि सुधार ना हुई हम क्षमता से देख रहे हैं उसके ऊपर से उतर रही है पढ़ते उतर रहे हैं और उतरते उतरते उतरते गर्मी चली गई चलता आ गई मैं कभी जान करते-करते देता बड़ी गर्मी की मौत समय और भीतर से थोड़ी धुंधली बड़ा कम होने लगा और वह ठंडक अधिकारी किशनलाल तुम्हें अपनी विकारों की है ना अब देखिए जाए इसको देखते ही देखते देखते पर से उतरते हैं पर से उतरती हैं बड़े आराम से बैठने की आदत घंटे भर तो बैठने में कभी कोई कष्ट होता ही नहीं ऐसा हो गया स्वभाव और कभी बैठे हैं तो 10 मिनट में ही राजा कि और इतनी जो कि अरे दोस्त एक घंटे बैठना है कभी कुछ नहीं होता अब क्या हो गया रे आदत छूट गई है कि दिन में क्या हो गया अरे क्या हो गया कोई भी तार फूटा भीतर से पीड़ा के रूप में हुई है उधर ना उसकी और समझदार साधु देखता है उतरती है पर से उतरती यह पर देखते-देखते समाप्त हो गया कि यू उधर ना होती है निर्जरा होती है उधर ना होती है निर्जरा होती है विकार खोज में जा रहे हैं चीन हुए जा रहे हैं उनसे छुटकारा हुआ जा रहा है तो मन प्रसन्नता से भरा रहे हैं हमको ठीक रास्ता मिल गया है हमारे विकारों से मुक्त होने का सही रास्ता मिल गया है प्रत्येक हमारे विक्रम हुए जा रहे हैं तब हुए जा रहे हैं निकलेंगे इस समय आयोग ने अगर निकलने शुरू हो गए मिल गई इस्तेमाल करने लगे थोड़ा-थोड़ा तो उसने सफेद निर्मलता लगे ना ही उतरते उतरते उतरते सब्सक्राइब कर लें क्योंकि आखिर सब्सक्राइब है अपना काम करते हैं कि यह बात शायद बहुत अच्छी तरह समझ ले हाउ टू समझ में आए कि क्या धर्मचक्रप्रवर्तन हुआ और कैसे हम को अपने भीतर धर्म चक्र प्रवर्तन करते ही रहना है करते ही रहना है क्योंकि इसके बिना हमारी मुक्ति नहीं इसके साथ-साथ हर साधक को एक बात बहुत अच्छी तरह समझते रखनी चाहिए है कि जिस किसी भाई ने बहन ने अभी तक विपश्यना का दर्शन नहीं किया यह अपने भीतर का सम्यक दर्शन किया नहीं केवल चिंतन मना नहीं करता है कल्पनाओं का जीवन ही जीता है और वैसे ऊपर ऊपर से भला आदमी है कोई बुराई नहीं उसमें है लेकिन क्यों क्यों विपस्सना नहीं कर रहा है इसलिए कभी उसके प्रति मन में दृश्य नहीं जाग जाए गिरना नहीं जाग जाए अपने बारे में अहंकार नहीं जाग जाए अरे मेरे जैसा ज्ञानी कौन देखना विपशयना करने लगा और इन वड़ों को देखो यह तो ऊपर ऊपर के चित्र खेल खेलते हैं तो विपश्यना नहीं होगी फिर हम जाएगा और हम की ग्रंथों सबसे बड़ी ग्रंथि बड़ी खतरनाक ग्रंथि करुणा जाएगी जो कोई कैसा काम कर रहा है बहुत ही अनुचित काम कर रहा है जिसको महिला करने का ही काम कर रहा है तो अपनी ओर से करवाए अधिक जाएगी अरे बेचारा बहुत उलझा है रे कि किसी तरह से इसको धर्म का मार्ग मिर्जा है तो आपने बंधनों को बार-बार बांधी जा रहा है बढ़ाई जा रहा है इस आदत के बाहर निकले बंधुओं के बाहर निकले चैटिंग कल्याण हो जाए उसका कल्याण हो जाए ऐसे ही किसी व्यक्ति को देखे कि ऊपर ऊपर से अपने चित्रों को शुद्ध कर रहा है इस साधना से कर रहा है उस साधना से कर रहा है इस ध्यान से कर रहा है उस यान से कर रहा है कर रहा है ना अच्छी बात इतना-इतना तो मंगल हुआ है इस आदमी का लेकिन इस बेचारे को भी कैसे गहराइयों तक चित्त को निर्मल करने का काम मिल जाए करुणा जाए गई मैत्री जागे सद्भावना जागे थे तो कभी जरा सिधार नहीं जाएंगे नहीं तो झगड़े-फसाद एक नया संप्रदाय खड़ा हो जाएगा विपक्षियों कार्य हम तो विपक्ष की हमारा क्या कहना है तो दोस्तों हिंदू है गुजरात तू तो बहुत थक गया गुजरा तू तो जान है गया गुजरात मुस्लिम गया गुजरात में विपक्षी 204 बरस के बाद तो ऐसा पागलपन आने वाला है जानते हैं लेकिन जब तक यह सब लोग कल्याण हो खुश रखे आगे वाली पीढ़ियां भी याद रखें कि धर्म या संप्रदाय से जरा भी लेनदेन नहीं होता है कि जिस आदमी में सचमुच धर्म जाग गया वह संप्रदाय से दूर रहेगा अपने आपको दूर रखेगा क्योंकि धर्म जाग गया उसको जिस आदमी में संप्रदाय जागा हुआ है वह ऊपर ऊपर से 1000 कहतारे में बड़ा धर्मबहनों बड़ा धर्म वाहनों को धर्म से कोसों दूर रहेगा उसका कोई लेन-देन नहीं होगा धर्म है पदार्थ माने मुक्ति वाले धर्म से कोई लेन-देन नहीं होगा यह ऊपर ऊपर से चित्रों को सुधारने वाला काम तो करेगा लेकिन मुक्त हो जाए यह काम वह कटौती करेगा ही नहीं संप्रदाय लोग जाना तो सांप्रदायिक कर्मकांडों को महत्व देता चला जाएगा उसी में उलझा रहेगा और कहेगा यह हमारे कर्मकांड है हमारे संप्रदाय के दो बड़े महान है दूसरों के कपड़े उतरे हमारे बड़े महान हैड यह हमारी संप्रदाय की मान्यता ऐसी ड्रिंक बना देता है हम एसिड सिंह बाद तापमान से जुड़े महान है बाकी सब गए उतरे हैं अरे तेरी दार्शनिक मान्यताओं के बल ऊपर ऊपर वाले चित्र ही तो मान्यता है ना भीतर तक सो गया ना तू मुझे क्या इधर क्या है ऊपर ऊपर से सुन लिया पढ़ लिया उसके अलावा कल्पना करने तो हम है ऐसी मान्यता माने हम ऐसी मान्यता माने हम बड़े धर्मवान है यही हमारा दर्शन तो सम्यग्दर्शन बाकी सब मिथ्यादर्शन हमारा दर्शन सम्यक धर्षण जिसको देखो इस संप्रदाय वाला कैसा हमारा दर्शन सम्यक धर्षण उस संप्रदाय बढ़ाता हमारा दर्शन सम्यक धर्षण किसी के पास प्रदर्शन नहीं क्योंकि भी प्रदर्शन किया नहीं ना भीतर सच्चाई का दर्शन करें और उसके स्वभाव को समझते हुए सप्ताह में स्थित हो तो सम्यक दर्शन हुआ अनशन नहीं हुआ भाई के ऊपर ऊपर के भरमावे में नहीं पड़ना कोई भाई ऐसा उलझा हुआ है कोई बहन ऐसी ऊंची हुई है तो बस मैत्री मैत्री करुणा ही करना प्यार से समझाएं दिया नही समझ में आया क्योंकि है अरे तुम लोग क्या करते हो तुम नेटवर्क ना सर करते हुए इसको हम तो खूब जानते हैं ऐश्वर्या और सलमान को देख जड़ जड़ में पड़े हो तुम को चेतन चेतन चेतन कल्पना करता है आदमी के नहीं पता इसलिए उलझन भरी बातें करता जिस रास्ते पर सबस्क्राइब अनुभूतियों के सब्सक्राइब जे वह सम्यक ज्ञान होगा अन्यथा यह ऊपर इंटरएक्टिव ज्ञान ज्ञान ज्ञान नहीं होगी तो इसी को कहते हैं अनुभूतियों पर नियुक्त कर लिया भाई जी तारा खेतरा नित्य और नित्य का साक्षात्कार होगा उस दिन यह नित्य का बोध और बढ़ा स्पष्ट हो जाएगा और मैं सदा अंधेरे में रहने वाला सदा अंधेरे में रहने वाला उसे हजार कल्पना दो प्रकाश ऐसा होता है प्रकाश घ्यान प्रकार कैसा होता है जिस दिन सचमुच प्रकाश को देख लेगा उस दिन का यह सब अंधेरा ही अंधेरा था भाई हम में माने जा रहे थे बड़े प्रकाश की राशि जा रहे हैं प्रकाश का नामोनिशान नहीं था तो सचमुच इंच के को देख लेगा तब खूब अच्छी तरह जाने का यह निश्चय ही क्षेत्र था सारा अनिश्चय का ही क्षेत्र था अब जाना नित्य क्या है शाश्वत क्या है ध्रुव क्या है सब समझ में आया कि बाकी सारा अनित्य है कितने ही आनंद की लहरें उठीं चिकनाई मंजू लगे जैसे घाघरे तो देखो क्षेत्र इंद्रियों का ना ना ना ना मुझे तो अभी तक पूरा रास्ता पार किया पूरा रास्ता पार कर लेगा तो सब समझ झाल पूरा रास्ता पार करने के लिए काम करना पड़ता है मैं मेहनत करनी होती है परिश्रम करना होता है एक शिविर में आए बड़ा अच्छा लगा बहुत अच्छा मार्ग मिल गया और घर में आगे थोड़े दिन दो काम किया तो छोड़ छोड़ दिया हमको तो यह काम हो गया हमको तो वह काम हो गया हमको तो आइए ऐसा गया हमको तो प्रमाद आ गया तो तेरे लिए वह काम तो बड़ा हो गया यह काम बड़ा हो गया तेरी आदत का गुलाम हो ना तो तुझे अच्छा लगा और अपने भीतर जागरूक करने वाली बात तुझे नहीं अच्छी लगी ना नहीं तो करता ना हां छोड़ देता है इसका मतलब पूरी तरह होश नहीं आया ना अभी नहीं आया तो कई से पूरा हो जाएगी एक सामान्य जीवन में बात बरसात का मौसम हो कीचड़ हो और फल गिर पड़े तो सारे कपड़े मैले हो गए शरीर महिला हो गया गंदा हो गया कीचड़ लग गया कि स्वच्छता से रहने वाला व्यक्ति कैसी तिलमिलाए का यह जल्दी इसको साफ करूं कहीं जाते जल्दी नहा लूं अरे कितनी गंदगी लग गई कि जिस दिन ऐसी तड़पन उठने लगेगी मन के बारे में भी बंद हो गया ना दिख जागरण कार्यालय भी बंद हो गया विकार जाएगा गंदा हो गया उसे तुरंत कैसे धूम वर्क दिनभर शाम को तो मुझे नहीं कर इसे साफ कर लेना है राघवा तो मुझे नहीं कर इसे कर लेना है शरीर की गंदगी को गंदगी को शांत नहीं रखते शाम तक नहीं रखते क्योंकि मैंने समझ लिया रहना स्वस्थ रहना है अच्छा नहीं है कि ऐसे ही जिस दिन उनके बारे में भी बात समझ में आ जाए कि मन को गंदा रहना अब स्वस्थ रहना है बड़ी-बड़ी बात है तो अभी हम पके नहीं अभी हम वितराग हुए नहीं वे रही हमारे सारे विकार निकले नहीं इसलिए भाई जाग जाता है विकार जाता है क्रोध भी आता है वासना भी आ जाती है भाई भी आ जाता है इर्ष्या भी आ जाती है अंतर्मन की गहराइयों से उठकर के ऊपर ऊपर सब जगह अच्छा जाती है तुझे से कीचड़ में गिर गए तो कीचड़ में गिर गए तो और जरूरी है कि जल्दी पाएं तो दिन भर काम करते हुए हमारे अंदर विकार जगह तो जरूरी है कि शाम को जरूर बैठे तो यह मानने को मुक्त करने की तो मैं दिन भर को खोल दो कल सुबह खोलें ऐसी एक भीतर से तड़प चाहने लगी यह स्वच्छ रहने वाले व्यक्ति को तरफ जाती है मैं नहीं रह सकता मेरे कपड़े में नहीं रख सकता ऐसे ही तरफ भागने लगे मेरे मन में नहीं रख सकता हूं जाता है घ्र घ्र पे करना है मैं उस दिन समझ लेना कि सचमुच विपश्यना के रास्ते आगे बढ़ने लगे आज के इस धर्म चक्र के दिवस पर वाले बुद्धि के स्तर पर ही सही इतनी बात तो समझ कर जाएं कि केवल शिविरों में 10 से नहाने से मुक्त नहीं हो जाएंगे 110 दिन आना बुरा नहीं है 10 दिन आते हैं तो अपने मन को जरा जरा से उसका स्वभाव बदलने का काम करते हैं उसको शुरू हुआ अच्छी बात लेकिन उसने नित्य का रोजमर्रा का अभियान से जोड़ना चाहिए सब सही मायने में मुक्त अवस्था की ओर जा रहे हैं मुक्त अवस्था की ओर जा रहे हैं जिससे साधक में जिससे सारिका में कि आज के इस धर्म दिवस पर कि ऐसा धर्म समभाव जागे मुझे मुक्त होना है मुझे अपने मन को निर्मल करना है मुझे अपने मन को निर्ग्रंथ करना है और देख मुझे भैया मिल गई अब तो इसका इस्तेमाल करते हुए ग्रस्त हों तो घर में रहते हुए घर की जिम्मेदारियों को निभाते हुए कीचड़ का रास्ता बार कीचड़ लगेगा बार गंदगी आएगी लेकिन फिर उस पार करते हुए जो रोज उसे साफ करने के साथ करते हुए भी निकालते हुए नहीं करते हुए आगे बढ़ते जाएंगे सब्सक्राइब जाएंगे इतनी बात अगर आप समझ कर लें और एक दृढ़ संकल्प लेकर जाएं कि हम को [संगीत] सब्सक्राइब नहीं बैठना है कि हमें रोज सुबह शाम सुबह शाम ध्यान करना ही है विपस्सना करनी है तो सचमुच मंगल के रास्ते पड़ गए सचमुच कल्याण के रास्ते पर गए सचमुच मुक्ति के रास्ते पड़ गए कि गर्म चक्र का दिवस है हर व्यक्ति में ऐसा धर्म चले ऐसा धर्म चक्र चले कि पाप चक्र रुक जाए दुख चक्र रुक जाए लोक चक्र रुक जाए भौंचक रुक जाए और सबका मंगल हो सबका कल्याण हो सब की वस्तुस्थिति हो स्वस्ति हो कि घर रौत तो सही नांग है कि रेत सह्रदयता नांगल है कि भैरव शब्द है कि उन्हें रे मंगल हो झाल