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छठ पूजा: महत्व और प्रक्रिया
Nov 6, 2024
छठ पूजा का महत्व और प्रक्रिया
पृष्ठभूमि
प्रभु श्री राम और माता सीता के अयोध्या लौटने के बाद, रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए राज सूर्य यज्ञ का निर्णय।
माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में सूर्य देव की उपासना की।
सबसे पहला छठ पूजन मुंगेर के गंगा तट पर हुआ।
इतिहास
सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की उपासना करके छठ पर्व की शुरुआत की।
पुराणों में राजा प्रिवृत की कहानी, जिन्हें संतान प्राप्ति के लिए देवी षष्ठी ने वरदान दिया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
षष्ठी तिथि पर खगोलीय घटना होती है जिससे धरती पर सूर्य की किरणों का प्रभाव नियंत्रित होता है।
सूर्य उपासना से शरीर को लाभ मिलता है।
छठ पूजा का आयोजन
पहला दिन: नहाय खाय
घर की साफ-सफाई और व्रती का गंगा स्नान।
ताम्र, कांसे या मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाना।
दूसरा दिन: खरना
व्रती का उपवास और सूर्यास्त से पहले जल ग्रहण न करना।
चावल, गुड़, और गन्ने के रस से खीर बनाकर सूर्य देवता को अर्पित करना।
तीसरा दिन: संध्या अर्ग
डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना।
विशेष प्रसाद बनाना जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू।
सूर्यास्त के समय पाँच बार परिक्रमा करना।
चौथा दिन: उषा अर्ग
उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना।
व्रती का कठिन व्रत, चार दिन उपवास और अन-जल का त्याग।
दिन में सादा भोजन और रात में विशेष पूजा प्रसाद ग्रहण करना।
महत्व
भगवान सूर्य को आरोग्य देवता माना जाता है जिनकी किरणों में रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।
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