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छठ पूजा: महत्व और प्रक्रिया

जब प्रभुष्रे राम और माता सीता चौधा वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लोटे थे, तब रावनवद्ध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने रिशी मुनियों के आदेश पर राज सुर्य यग्य करने का निर्णय लिया. इसके बाद माता सीता ने मुगदल रिशी के आश्रम में रहकर छे दिनों तक सुर्य देव की उपासना की और पूजा के लिए उपासना की और कार्तिक महा के शुक्ष दिया. सब्तमी के दिन सुर्यदेव के समय फिर से अनुष्ठान कर उनसे आशिर्वात लिया कहा जाता है माता सीता ने सबसे पहला छट पूजन मुंगेर के गंगा तट पर किया था जिसके बाद छट महा परव की शुरुवात हुई थी इस परव को सबसे पहले सुर्यपुत्र कर्ण ने सुर्य की उपासना करके शुरु किया था सुरी की कृपा से ही वो महान योध्धा बने और आज भी छट में अर्गिदान की जो परंपरा है ये बड़ी प्रशलित है। पुराणों में कहा गया है कि प्रिवृत नाम का एक राजा जिसकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्हें हर प्रेयतन कर लिया, लेकिन कोई उन्हें फाइदा नहीं मिला, तब राजा को संतान प्राप्ती के लिए महरशी कश्यप ने पुत्रियश्टी यग्य करने का पर इसमें बैठी देवी ने कहा मैं शष्ठी देवी हूँ और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूँ। इतना कहकर उन्होंने शिशु के मृत्र शरीर को चुआ, सपर्श किया और वो जिवित हो उठा। अगर साइंटिफिकली बात करें तो छट पूजा शष्ठी तिती पर एक खगोली घटना होती है। इफेक्ट होता है जिससे की धरती की सर्फिस पर जो पहुँचने वाली ये किरने इनकी मात्रा नियंत्रित हो जाती है और इनका कोई हानी कारक प्रभाव नहीं पड़ता काय जाता है कि इसलिए इस दिन सुर्योपासना से मनुष्री के शरीर को और जीवन को बहुत लाभ मिलता है चट पूजा की शुरुआत भईया दूच के तीसरे दिन से होती है ये पूजा चार दिनों का उत्सव होता है जिसमें पहला दिन नहाए खाए के रूप में मनाय जाता है जिसमें घर की साफ सफाई होती है और व्रती जो है वो गंगा नदी या तालाप में सनान करने भोजन है ये सिर्फ तामर पत्र कांसे का या मिट्टी का जो बर्तन है उसमें ही पकाया जाता है। दूसरा दिन उसे खरना का जाता है जब व्रती पूरा दिन उपवासी रहते हैं और सुर्यास्त से पहले तक जल ग्रहन नहीं करते हैं। शाम को चावल, गुड और गन्ने के रस्से खीर बनाकर सुर्य देवता को नयवेद्धी अरपित करते हैं। वित्रित करते हैं तीसरा दिन जो है वो होता है संध्या अर्गे ये संध्या अर्ग का दिन वो है जब व्रती जो हैं डूबते वे सुरी को अर्गे अरपित करते हैं इसके लिए बहुती स्पेशल प्रसाद बनता है जैसे कि ठेकुआ चावल के लड्डू ये बनाये जाते है जो है व्रती जो है सुरी देव को अर्गे देते हैं और सुर्यास्त के समय पांच बार परिक्रमा करते हैं और चौथा जो दिन आता है छट पूजा का वो होता है उशा अर्गे जब उकते वे सुरी को अर्गे अरपित के आता है व्रती जो है सुरी देव से पहले घाट पर प व्रती जो हैं उनके लिए थोड़ा सा ये कठिन व्रत होता है क्योंकि चार दिनों तक उपवासी रहना होता है अन और जल का त्याग करना होता है सिर्फ एक बार प्रसाद ग्रहन कर सकते हैं दिन में सादा भोजन करना होता है रात में विशेश पूजा प्रसाद होती है और म भगवान सुरी को आरोग्य देवता के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उनकी किर्णों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है।