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ब्रह्मचर्य के महत्व और साधना

म जी दो बच्चों का दोनों का मार जी ब्रह्मचर्य से रिलेटेड है कि सब कुछ करते हैं बट ब्रह्मचर्य नहीं रह पा रहे महाराज जी ऐसा इनका कहना हा इस अवस्था में तो बच्चा ऐसा होता है पर स्वाभाविक ब्रह्मचर्य का रास होना और स्वयं ब्रह्मचर्य का नाश करना इन दो बातों में भेद है एक परमहंस श्री ओंकारानंद सरस्वती से जब हमारा न स्टिक ब्रह्म का समय था 17 18 वर्ष के तो उन्होंने कहा था कि अपने हाथ के द्वारा कोई क्रिया या किसी कुसंग के द्वारा कोई क्रिया ना हो और स्वाभाविक ऐसे तो जैसे दाल में उफान निकल जाता है ऐसे वह वीर्य का उफान होता है ना कि वह ब्रह्मचर्य नष्ट माना जाता है अगर कोई क्रिया के द्वारा नष्ट कर रहे हो तब तो फिर आपको रोकना ही होगा और उस स्वाभाविक स्थिति के लिए जैसे दो किलोमीटर दौड़ लगाओ दो चार लीटर पानी शरीर को जो पेट साफ रहे न नाड़ियों से गर्मी शांत रहे नहाने के समय उदर में ज्यादा ठंडा पानी ऐसे डाले कुछ देर प्राणायाम व्यायाम करें सात्विक आहार करें गंदी बातें ना सुने ना देखे ना मि तो मुझे लगता है ब्रह्मचर्य बच्चा पक्का हो जाएगा अपने हाथ से अगर ब्रह्मचर्य नष्ट किया जाए तो फिर अभ्यास बन जाता है फिर वो अभ्यास कसम खाने पर भी नहीं छूटता यदि ऐसी कोई गंदी बात है तो उसे छोड़ना ही आपको पड़ेगा उसके लिए कोई जादू तमाशा तो आता नहीं आपको नियम लेना पड़ेगा देखो आपको ग्लानि तो है ही तो आप उसका सुधार करने के लिए मुझे लगता है कि स्वाभाविक ब्रह्मचर्य छह से किसी को ग्लानि नहीं होती ज्यादा ग्लानि होती जब हम जब नियम धारण करना चाहते हैं और फिर हम जब नहीं धारण कर पाते तब हमें परेशानी होती है क्यों ऐसे ही तो परेशानी होगी हां महाराज जी ऐसे ही है तो पर बात ये है महाराज जी कि अहंकार बहुत है ग्रानी बहुत कम होती है अहंकार इतना ज्यादा हो गया है कि ये बुरा नहीं लगता है अब हमारे डेली का रूटीन जैसा हो गया है तो मतलब लगता ही नहीं कि कुछ गलत काम किया हां क्योंकि बच्चा जब हम नए नए कोई गलत काम करते हैं तो हमारे अंदर जो सत परमाण होते हैं वो आपको गलानी देते हैं और जब अधिक असत परमाण हो जाते हैं जैसे कोई हत्या करता है पैसे लेके तो उसको हत्या एक व्यापार नजर आता है उसको कोई गलानी नहीं होगी आक शराब पिएगा मस्ती से रहेगा उसको उसके सत परमाणु नष्ट हो चुके हैं जैसे अभी अपने प्रश्न करता पीछे से कि हम जब गाली या कुछ ऐसा कटु बोलते हैं तो हृदय दुखी हो जाता है कितना पवित्र परमाणु है जो गलत बोलने पर भी हृदय को दुख देते हैं तुरंत बाद तुरंत बाद इतना बुरा लगता है महाराज जी कि क्या पाप कर दिया लेकिन करते समय बुरा नहीं लगता नहीं बच्चा हमें लगता है कि ब्रह्मचर्य पर महत्व ना होने के कारण ऐसा होता नहीं ब्रह्मचर्य पर महत्व हो और बुरा लगे फिर अगली बार हम उसको सुधार ना पाए ऐसा कैसे हो सकता है हमको जहां से क्लेश मिल रहा है अशांति मिल रही वह हम कार्य कभी नहीं करेंगे लेकिन हमको सुख मिल रहा है ऐसा आभास हो रहा है इसलिए हम उसे करते हैं बच्चा सुख क्या है एक नई दाद जैसे हो जाए खुजला बस उतने सुख मात्र के लिए अपने ब्रह्मचर्य का नाश कर रहे हो उसको थोड़ा रोकना होगा थोड़ा सहना होगा उसको रोकने सहने के लिए नाम जप और आसन जरूर आसनों में बैठना क्योंकि ब्रह्मचर्य एक तपस्या है बच्चा ये कोई साधारण तो है नहीं नहीं तो सबको ही रह लेता एक तपस्या है सात्विक भोजन कब्ज ना रहना प्राणायाम व्यायाम और यह पक्का समझना कि मुझे किसी भी स्थिति में ब्रह्मचर्य भंग नहीं करना संतान उत्पत्ति गृहस्थ के लिए तो वो अनिवार्य विषय है अनिवार्य विषय वो तो करना ही है उसे क्योंकि गृहस्थ धर्म में गया है तो संतान उत्पत्ति लेकिन जब तक ऐसी स्थिति नहीं आती तब तक हम ब तो उसमें फिर पहले की सारी क्रियाए बंद करने के बाद भी स् बंद नहीं हो पाती अभ्यास अभ्यास अभ्यास तो इतना विचित्र है भैया कि हमको एक साधक मिला उसने बताया मैं करता ही नहीं सोते हुए मेरे हाथ से हो जाता है मैं करता भी नहीं हूं मुझे सुध भी नहीं रहती तो हमें पहले तो लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है फिर चिंतन में आया कि अभ्यास के द्वारा हो सकता है अभ्यास गलत अभ्यास हमारे जीवन को नष्ट कर देता है तो क्या हम सही अभ्यास से धीरे धीरे गलत अभ्यास पर शासन नहीं कर सकते कर सकते हैं पर क्या होता है हम बहुत जल्दी हार जाते हैं अब इसका अंदर से समझो आपको जब मन गलत सलाह दे रहा होता है तो उस समय आप सावधान नहीं होते उस समय आप सुखद वृत्ति करके और आप मान लेते हैं कि इसमें सुख है और फिर जब क्रिया हो जाती है तब आपको होश आता है फिर आप मन से ग्लानि करते हैं कि यार मैंने क्यों किया मैंने तो नियम लिया था अब ऐसा पर आप उसे सुखद मानते हैं अंदर एक शीतलता स दौड़ती जब वोह बात आती है कि यार सुख है इसमें ब यही सुख की भावना ही नष्ट करती भगवान ने काम पर विजय प्राप्त करने के लिए यही बात बताई वैराग्य और अभ्यास के द्वारा भगवत नाम जप सत्संग सुनना भगवत चरित्रों का पढ़ना आसनों पर बैठने का अभ्यास करना प्राणायाम का अभ्यास करना सात्विक भोजन पा ब्रह्मचर्य रहने के लिए तपस्वी जीवन चाहिए बच्चा तो स्वाभाविक ब्रह्मचर्य नष्ट ना हो इसके लिए आपको अपने हाथों पर शासन करना होगा आपको मोबाइल ना देखने का नियम लेना होगा गंदी बातों का गंदे बच्चों का संग नहीं करना होगा तभी आप चल सकते हो नहीं आजकल बहुत गलत उपदेश देने वाले मोबाइल में कुछ मित्र तो ऐसे हैं जो आपके पास भी आने से रोकते हैं हा क्योंकि हमारे पास रुकेंगे तब तो बोलते हैं कि बाबा जी उनका संग ज्यादा मत करो पूजा करना है तो घर पर रहो बोलते उनका कम से कम रोक ही रहे हैं वो रोक ही रहे हैं आ बो संतो का संग करोगे तो वैसे ही हो जाओगे पीला ड़ लोगे लेकिन नहीं हमने कभी ये तो नहीं कहा पीला पहन लो हमने तो यही कहा है कि ऐसे बनो आचरण गृहस्थ में भी बनकर कि दूसरों को सुख पहुंचाओ और अपने को सुख पहुंचाओ अच्छा आप खुद बताओ एक बार ब्रह्मचर्य छी होने के बाद आपको शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है कि नहीं हर तरह से होती है होती है ना तो देखो वो गलत है ना चाहे डॉक्टर कहे चाहे मित्र कहे वो गलत उपदेश देते हैं ना यदि आपका स्वाभाविक ब्रह्मचर्य क्षीण होगा तो आपको उत्साह शारीरिक फूर्ति बढ़ेगी ध्यान देना महीने दो महीने ढाई महीने में जब स्वाभाविक ब्रह्मचर्य स्वप्न दोष आदि होगा वो आपकी शक्ति नहीं होगी वो संतान उत्पत्ति करने वाला वीर्य नष्ट नहीं होता वो क्रिया से ही होता है जैसे आपने हस्त क्रिया या और क्रियाओं का आश्रय लेकर तो यह जो मित्र जन है यह वास्तविक शत्रु जन है जो कहते हैं गंदे आचरण करो यार कुछ नहीं होता सब कोई करता है ऐसे कई बातें कही जाती है नहीं सबको ही नष्ट हो रहा है तो हमको भी नष्ट होना है क्या 10 लोग गलत है तो क्या व सिद्धांत हो जाता है क्या ऐसा नहीं देखो जहां से हमें सद उपदेश मिले अच्छा हमने कभी ऐसा नहीं कहा होगा कि तुम यहां आओ ही नहीं तुम जहां हो वहीं से सुनो और अपने जीवन को सुधारो अच्छा बच्चा आज तक के सत्संग सुनने से ये बताओ कोई ऐसी बात मिली है जो तुम्हारी बिगाड़ने वाली लगी आप कहते दूसरों को सुख हो जाओ दूसरों को सुख पचाने मैं ऐसा हो गया हूं मतलब मेरे को बस ऐसा लगता है कि मेरी कोई ऐसी वाणी ना हो कि मेरी वजह से किसी को दुख पहुच जाए बाद जीवन ब हां ये जीवन यही साधु का जीवन होता है पैजामा कुर्ता में पेंट में आप महान आत्मा हो जाएंगे आप गंदे पुरुष नहीं रहेंगे एक सुधरा तो सैकड़ों को सुधार देगा यह बात समझो एक सुधर जाए ना तो आसपास का माहौल सैकड़ों को सुधार दे कल एक आए थे भाई किसी नौकरी में थे वो कहते थे हमारा पूरा डिपार्टमेंट राधे राधे करके ही हमसे बात करता है बिल्कुल यही होता है तो अब राधा राधा राधे राधे हेलो हाय जहां बंद नहीं अब राधे राधे हो रहा तो कितना बढ़िया बात है अच्छा तुम्हें लोग देख के डरने लगे कि यार यह तो पिएगा नहीं और पीने देगा भी नहीं ऐसे डरने हा तो आप लोग थोड़ा नियम निष्ठा को धारण करें आप दौड़ते हैं हां महाराज क किलोमीटर 400 400 मीटर की तीन चक्कर रोज नहीं हो पाता रूटीन में नहीं हो पाता वो कंटिन्यू नहीं हो पाता महाराज नहीं नहीं ब्रह्मचर्य के लिए बहुत जरूरी बच्चा बहुत बड़े तेज को रोक ला है कोई साधारण ड़ी सात्विक भोजन और व्यायाम और प्राणायाम प्राणायाम करते हो कुछ मिनट तो फिर कैसे रुक पाओगे अरे बहुत बड़ा तेज है इसको रोकने के लिए जरूरी है इसकी वजह से और भी पाप होते हैं महाराज जी जैसे दूसरी माताओं बहनों के लिए दृष्टि खराब होती है झूठ बोलना पड़ता है बहुत सारे इत्यादि ऐसे काम है जिसके लिए नहीं सबसे ज्यादा पाप जो है काम से ही होता है काम से ही क्रोध होता है काम से ही लोभ होता है मान लो काम हमारा भावना बन गई उसके प्रतिकूल हुआ तो फिर हम हिंसा भी कर देंगे कामी पुरुष ही तो हिंसा करता है कामना ही तो हिंसा कराती है देखो जितने बड़े-बड़े गलत काम होते हैं व सब काम ही तो करवा रहा है बहुत बड़ा राक्षस है ये काम और यह धर्म पूर्वक अपने गृहस्थी में जो है वो भगवान धर्म बताया उसे काम को धर्म पूर्वक भोगा जाए जिससे संतान उत्पत्ति के लिए एक पत्नी को भाव रख कर के जिससे पाण ग्रह वो धर्म है लेकिन अन्य भाव अन्य क्रियाएं अधर्म है उसी से हानि होती है अगर 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य र जाए या 20 वर्ष तक और फिर गृहस्थी में अपने ही केवल संतान उत्पत्ति के लिए प्रयोग किया जाए वो ब्रह्मचारी माना जाएगा वह कभी शक्तिहीन नहीं होगा पर य बचपन से शुरू हो जाते हैं अपने सर्वस्व नासन ऐसा संग रहा है महाराज लोगों का पर अब सुधार कर लो क्यों महाराज जी जैसे मैं वोट अबकी बार मैंने अपना बेस्ट दिया जिना दे सकता था लेकिन एक महीने के बाद मतलब फिर वही आप मत करो एक महीने के बाद अगर हो जाता है तो कोई आप मत करो वो खुद फिसल जाता हू मतलब ऐसे नहीं पता चलता क्या हो रहा है मन फिसल जाता नहीं फिसलना से यह तो पता होता है ना मैं क्या कर रहा हूं ऐसा नहीं कह सकते कि मुझे पता ले इतने सिद्ध तो ल होगी राधा राधा राधा राधा