क्रांतिकारी और काकोरी कांड
आजादी का संघर्ष
- आजाद भारत की सांसें वीर क्रांतिकारियों के योगदान का परिणाम।
- कई वीर क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बली दी।
- आज हम एक महत्वपूर्ण घटना पर चर्चा करेंगे जिसने अंग्रेजों को भीतर तक हिला दिया।
19 दिसंबर 1927
- शाहिद क्रांतिकारी:
- अशफाक उल्ला खान
- पंडित रामप्रसाद बिस्मिल
- ठाकुर रोशन सिंह
- इन तीनों को फांसी की सजा दी गई।
गांधी जी का आंदोलन
- गांधी जी ने 1 अगस्त 1920 को सहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
- छात्रों ने सरकारी स्कूल और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया।
- वकीलों ने अदालतों में जाने से इनकार किया।
- आंदोलन का स्वरूप शांतिपूर्ण था।
4 फरवरी 1922
- अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं।
- 10 आंदोलनकारियों की मौके पर मौत।
- गांधी जी ने सहयोग आंदोलन वापस लेने का निर्णय लिया।
- कई क्रांतिकारी (जैसे राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान) निराश हुए।
काकोरी कांड
- गांधी जी से मोहभंग के बाद युवा क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हुए।
- हथियारों से लड़ाई की आवश्यकता समझी।
- 9 अगस्त 1925 को काकोरी में लूट।
- सरकारी खजाने से 4601 रुपये लूटे।
- लूट के समय ट्रेन रोकी गई।
- गोलीबारी में एक यात्री की मौत।
गिरफ्तारी और सजा
- घटना के बाद 40 क्रांतिकारी गिरफ्तार।
- 30 लोगों पर मुकदमा चला।
- 1927 में फांसी की सजा सुनाई गई:
- रामप्रसाद बिस्मिल
- अशफाक उल्ला खान
- राजेंद्र नाथ लाहिड़ी
- ठाकुर रोशन सिंह
चंद्रशेखर आजाद
- काकोरी कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद फरार हो गए।
- अंत में एनकाउंटर में शहीद हुए।
फांसी का दिन
- 19 दिसंबर 1927 को तीनों को फांसी दी गई।
- अंग्रेजों ने डर के मारे अलग-अलग जेल में फांसी दी:
- अशफाक उल्ला खान: गोरखपुर जेल
- राम प्रसाद बिस्मिल: फैजाबाद जेल
- ठाकुर रोशन सिंह: इलाहाबाद जेल
भगत सिंह का संदेश
- भगत सिंह ने लिखा: "मैं रहूं या ना रहूं, पर एक वादा है तुमसे, मेरे लहू का हर खतरा इंकलाब लाएगा।"
ये थे काकोरी कांड के वीरों की कहानी और उनकी शहादत।