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काकोरी कांड और वीर क्रांतिकारी

आज अगर हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं तो इसमें हमारे देश के वीर क्रांतिकारी का बहुत बड़ा योगदान है हमारा देश के कई वीर क्रांतिकारी ने हमारे आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है यह बात भी जग जाहिर है और अलग-अलग समय पर अंग्रेजों के खिलाफ हमारे क्रांतिकारी ने कई घटनाओं को अंजाम दिया है इसलिए आज हम आपको एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताएंगे जिसने अंग्रेजी हुकूमत को अंदर तक चोर के रख दिया था यह घटना इतनी बड़ी थी की अंग्रेज इस कांड के बाद डरने लगे द और आनंद का आनंद में अंग्रेजों ने वीर क्रांतिकारी को फांसी के फंदे पर लटका तो दिया लेकिन इसका खौफ उनके दिल में हमेशा हमेशा के लिए बना रह गया क्या आप यह कहानी है क्या पूरा घटनाक्रम सब कुछ जाने की इस वीडियो में तो चलिए बिना देरी की वीडियो को शुरू करते हैं वह 19 दिसंबर 1927 का दिन था जब भारत के शाहिद क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई फांसी की पुरी कहानी को समझने के लिए आपको गांधी जी के उसे आंदोलन को समझना होगा जिसकी वजह से शाहिद क्रांतिकारी में गांधी जी के प्रति नाराजगी के लहर उठी और बात काकोरी कांड तक पहुंच गई जी हान अब बिल्कुल सही सन रहे हैं ये पुरी कहानी काकोरी कांड के बारे में और हम सभी काकोरी कांड को राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान राजेंद्र नाथ लाहिड़ी रोशन ठाकुर समेत गुलदास क्रांतिकारी के फौलादी जज्बे को सलामी के तौर पर याद करते हैं गांधी जी से नाराज होकर क्रांतिकारी ने थाली बंदूके दोस्तों बात उसे समय के जब अंग्रेज हुक्मरान की बढ़ती जातियों का विरोध करने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को सहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी आंदोलन के दौरान स्टूडेंट्स ने सरकारी स्कूल और कॉलेज में जाना छोड़ दिया था वकीलों ने अदालतों में जाने से इनकार कर दिया था गांव से लेकर शहर तक गांधी जी के सहयोग आंदोलन का सर बड़े पैमाने पर देखने लगा था लोग भारी संख्या में आंदोलन से जुड़ने जा रहे द इस दौरान लोगों को छोटे-छोटे ग्रुप में ढूंढ कर आजादी के संदेश दिए जाने का कम कर जा रहा था और यह सब गांधीजी के देखरेख में shantipre ढंग से भी हो रहा था लेकिन 4 फरवरी सैन 1922 का वो दिन जब देशभर भैण गांधी जी का सहयोग आंदोलन चल रहा था तभी उसे दौरान लोगों के भीड़ देख कर गोरा ने क्रांतिकारी के ऊपर गोली चला दी दरअसल ऑन हो है ये गोलियां भीड़ को तितर-बितर करने के लिए चलाई थी लेकिन बहुत दौड़ मचाने की वजह से भीड़ का हो गई और गोरे से दर गए और इस बार उन्होंने गोलियां सीधा हमारे क्रांतिकारी के ऊपर चलाई जिसमें 10 आंदोलनकारी की मौके पर ही मौत हो गई बस फिर क्या था गांधी जी का सहयोग आंदोलन जो shantiprer ढंग से चल रहा था और जिसमें हथियार ना उठाने देश को इंसा के मार पर चलते हुए आजादी दिलाने की बात कही गई थी वो सब कुछ धारा का धारा रह गया और वो सारी बोल दिया ठाणे में आग लगा दी जिसमें देखते ही देखते दर्जनों पुलिसकर्मियों की चलकर मौत हो गई छोड़ चोरी के नाम से जानते हैं जूस के बाद गांधी जी ने सहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला किया तो कई युवाओं को उनके इस कदम से निराशा हुई इनमें सबसे बड़ा नाम राम प्रसाद बिस्मिल और ashvakulla खान और ठाकुर रोशन सिंह इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर देखा ही नहीं और थाली बंदूके मांगने से नहीं लड़ने से मिलेगी स्वतंत्रता बता दें की गांधी से मोहभंग होने के बाद युवा क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी में शामिल हो गए इनके साथ मानना था की मांगने से स्वतंत्रता मिलने वाली नहीं है इसके लिए हमें लड़ना होगा और लड़ने के लिए बंदूके और हथियारों की जरूरत है जिनके सहारे अंग्रेजों से आजादी छीनी जाती युवा क्रांतिकारी का यह भी मानना था की अंग्रेजों की संख्या होने के बावजूद करोड़ भारतीयों प्रशासन कर रहे हैं क्योंकि उनके पास अच्छे और एडवांस टेक्नोलॉजी क्रांतिकारी के दिलों दिमाग में बंदूके और पैसे जीतने वाले आइडिया ने जन्म ले लिया क्रांतिकारी के पास ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए जज्बा था हिम्मत थी और उम्मीद भी थी बस कमी थी तो पैसे और हथियारों की तो अभी एक रोज राम प्रसाद बिस्मिल हैं शाहजहांपुर से लखनऊ की ओर सफर की है और उसके दौरान ध्यान दिया किस स्टेशन मास्टर पैसों का थैला गार्ड को देता है जैसे वो ले जया कर लखनऊ के स्टेशन सुप्रीम टेंडन को दे देता है फिर क्या था बिस्मिल्लाह तय किया की पैसे को आल में लूटने है बस यहीं से काकोरी लूट की नहीं पड़ी इसके बाद 9 अगस्त 1925 को काकोरी में जो हुआ वो देश की आजादी का वो कांड है जिसे सुनकर कोई आज भी सहमत है यह कोई मामूली लूट नहीं थी| बल्कि अंग्रेजी हुकूमत को ऐला देने वाली अब गो के पसीने छुड़ा देने वाला सबसे बड़ा लूट कांड था अब आप इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं की मामला इतना बड़ा था की इस घटना के ऊपर शाहिद ए आज़म भगत सिंह ने काफी विस्तार से लिखा है बता दें की उन दोनों छापने वाली पंजाबी पत्र कीर्ति में भगत सिंह ने काकोरी के वीरों से परिचय नाम के लिए लिखे हैं दरअसल 9 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन से ट्रेन चली ये गरीब लखनऊ से 8 मिल की दूरी पर थी ट्रेन चलने की कुछ ही देर बाद उसमें बैठे तीन नौजवानों ने अचानक से गाड़ी रोक दी गाड़ी रुकती सारा खेल शुरू हो गया उन तीनों नौजवानों के साथ दरअसल के साथ ही वी हुए द उसे पर किया था उन्होंने गाड़ी और मौजूद सरकार 1000 इसके बाद हम 3 नौजवानों ने बड़ी चतुराई से ट्रेन में बैठे anyatriyon को धमकाया समझाया की उन्हें कुछ नहीं होगा बस उन्हें चुप रहना है लेकिन तब तक इस बात की गोरों पुलिस को लग गई जिसके बाद दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी और इस बीच एक यात्री की गोली लगने की वजह से मौत हो गई लेकिन तब तक सारा मल लूट चुका था बंदूक की नोक पर काकोरी में सरकारी खजाने के 4601 लूटने के बाद ब्रिटिश सरकार में भूचाल मच गया उसके बाद अंग्रेजों ने इस घटना की जांच हटा दी और सीआईडी सर हार्डन को जांच में लगा दिया लेकिन फिर भी अंग्रेजों के मैन में अब भी बात खटक रही थी की आखिर इतनी बड़ी लूट को अंजाम देने वाले कौन हो सकते हैं उनका शक बिल्कुल सही जा रहा था उनके मुताबिक इस कम को अंजाम देने के लिए कोई चोरी और चक्का तो नहीं हो सकता ये जरूर किसी ग्रुप का कम है जो आजादी का चोल उड़े घूम रहे हैं इधर कुछ वक्त बाद ही क्रांतिकारी के मेरठ में होने वाली बैठक कापसार हाथन को पता लग गया और छानबीन शुरू हो गई और सितंबर का महीना आते-आते गिरफ्तार या उन्हें भी शुरू हो गई बता दें की एक महीने के अंदर लगभग 40 लोग रफ्तार कर लिया गया इसमें स्वर्ण सिंह रामप्रसाद बिस्मिल आशु akulla खान राजेंद्र lohiri दुर्गा भगवती चंद्र बोहरा रोशन सिंह सचिन बख्शी चंद्रशेखर आजाद विष्णु शरण dublesh केशव चक्रवर्ती बनवारी लाल मुकुंदी लाल शशि इंद्र नाथ सान्याल और मनमत नाथ गुप्ता जैसे कई वीर क्रांतिकारी शामिल द गिरफ्तारी के बाद इनमें से 29 लोगों के अलावा बाकियों को छोड़ और 30 लोग स्पेशल मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चला गया इसके बाद अंग्रेजी अप्रैल 1927 को अपने आखिरी फैसला सुनाया जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्लाह खान राजेंद्र लहदी ठाकुर रोशन सिंह फांसी की जरूरत सुनाई गई जिन लोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ-कुछ 14 साल तक की सजा दी गई और दो लोग सरकारी गवाह बन गए इसीलिए उनको माफ भी कर दिया गया हालांकि दोस्तों देखा जाए तो इस गंद के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजों के सबसे बड़े मुख्य आरोपी चंद्रशेखर आज़ादरी द जिस घटना का अंजाम देने के बाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए द जिसके चलते वो अंग्रेजों की नजर में चल गए द लेकिन इसके बाद में एनकाउंटर में वो भी शाहिद हो गए उन्होंने अंग्रेजों से डट के अलावा आपके ऑल फिट पार्क में मुकाबला किया लेकिन गोली खत्म होने की वजह से उन्होंने लास्ट गोली अपने सर में मार ली और वहीं शाहिद हो गए फिलहाल चंद्रशेखर की पुरी कहानी हम किसी और वीडियो में बताएंगे अभी सवाल हमारे तीन वीर क्रांतिकारी के फांसी का है seatepak माना जाए या फिर कुछ और ही कहा जाए जब एक ही शहर में बिस्मिल अशफाक और रोशन सिंह का जन्म हुआ था और एक ही दिन तीनों अमर शहीदों को फांसी दी गई थी बस कुछ अलग था तो दोस्तों फांसी का फंदा शहर और जेल कौड़ी कांड के लिए भारत के शाहिद क्रांतिकारी शिवाला का पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई तीनों की फांसी की सजाई की तारीख पर दी गई थी लेकिन फांसी के लिए अंग्रेजों ने तीन अलग-अलग जेल चुनी थी ये कुछ और नहीं था अंग्रेजों का इन तीन शक्तियों से दर था की कहीं तीनों मिलके एक बार फिर कोई नई मुसीबत ना कड़ी करते हैं अशफाक उल्लाह खाक 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी जबकि राम प्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई थी वहीं ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई थी मेल इन तीनों को फांसी दे दी गई थी लेकिन शाहिद ए आज़म भगत सिंह ने लिखा है लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा मेरे लहू का हर खतरा इंकलाब लाएगा मैं रहूं या ना रहूं पर एक वादा है तुमसे मेरा की मेरे बात वतन पे मरने वालों का सैलाब आएगा तो दोस्तों ये था काकोरी कांड का पूरा प्रोग्राम और अमर शाहिद क्रांतिकारी की शहादत की पुरी कहानी आपको हमारी वीडियो कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा साथ ही चैनल को सब्सक्राइब करके बेल आइकन दबाना बिल्कुल मत bhuliyega धन्यवाद