ठाकुर जी दीरे अब बड़े है रहें और अब लाल जी एक वरश के है गए और एक वरश के लाल जी है करके महाराज दो दांत ने कर याएं ठाकुर जी के आगे वारे दो दांत निचे के ने कर याएं पकड़ के कभी नंद बाबा की उंगुरी खा जाएं कभी यशोदा मैया की कंधा पे बैटे कंधाय खा जाएं और दाउ दादा तो जगे ते खा रखे हैं ठाकूर जीने दाउ दादा भागते ही रहें बोल लाला के पास ना जाओंगो खा जाएगो मुझे चार दांत ने करे आएं महराज कभी तो गईया बचड़ा बच्चियान के कानन ने खा जाएं ऐसे ठाकूर जी की लीला चल रही है एक बरस के लाला भैं और ऐसे महाराज नित्रन ने घुमामें कभी यहां देखें कभी महा देखें गोल आँखन ने घुमामें अपनी ने ऐसे मधुर श्री ठाकुर जी है गुंगराले केश हैं ठाकुर जी के अब ये सब चिंतन के विशे हैं इन सब का तो अनुभव करो गुंगराले केश हैं ठाकुर जी के अलकावलियां पूरे दिन मुख पे आती रहती हैं तो मैया कहा करें सुबहर सबरे केशन को एक जूडा सो लें और बीच में ठाकुर जी के बनाए दें वहां में एक मोर पिछ लगा दें मैया बस इतनों इश्रिंगार है और कहा करें मैया थाकुर जी वस्त्र तो पहने ही ना है मैया वस्त्र पहनावे श्रिंगार करें थाकुर जी श्रिंगार ना उतारें वस्त उतार दें मतलब कौंधनी पहन रखें गले में हार पहन नकें बाजु बंद पहन नकें हातन में कडूला पहन नकें पैर में पाजे पहन नकें पर वस्त्र एक भी न पहन नकें नंगम नंगा गूम रहें केवल आभूशन पहन करके थाकुर जी को प्रिय श्रिंगार है यह ऐसे मधुर श्रीलाल जी हैं, मधुर लीला कर रहे हैं, तभी नन्द बाबा के मन में आई कि लाला को नाम करन होनों चाहिए, और श्री गरगाचार जी महराज थाकुर जी के नाम करन के लिए आये, भगवान के कुल प्रोहित तो संडिल्यमुनी हैं पर संडिल्यमुनी कहीं व्यस्त हैं इसलिए श्री गर्गाचार जी आए। गर्गाचार जी आकर के लाला को नाम करन के लिए नंद बाबा ने प्रार्थना करी हैं, हमारे दो बालक हैं, दोनों को नाम करन कर देओ। गर्गाचार जी बोले कल करेंगे कल को दिन बहुत बढ़िया है। कि मैं यह आज तो हम तुम्हारे यहां रहेंगे और गवशाला में करेंगे नामकरण गयान के बीच में वहां माराजी जस्थी आग्या ए सुन्दर कथा है कभी-कभी मैं सुनाऊं कथा में श्री गर्गाचार जी माहाराज येशुदा मैया से बोले मैया मेरे ठाकुर कोई के हाथ को बनो भोग नाएं लगाऊंगे तो मैया ने सूखी सामिगरी दे देई, आटा, दाल, चावल, चीनी, नमक आदी सब दे बोले, बाबा प्रेम सो बनाओ, भोग लगाओ ठाकुर जी को, गरगा चार जी महराज ने सब प्रशादी सिद्ध करी, अंत में अपने ठाकुर जी के लिए भढिया, नन्द बाबा तुगद है वासों ठाकुर जी की अधोटी खीर बनाई अधोटी मतलब दूद जब ओट ते आधो रह जाए वहां में खीर बने वह ठाकुर जी को सबसे प्रिय रवडी जैसी खीर पत्री खीर ना पाम ठाकुर जी अधोटी खीर अधोटी खीर बनाई गरगाचार जी ने और खीर बनाये करके प्रशाद पदराके और अपने शाले गराम भगवान विराजमान किये संघासन पे और थाली सजाके ठाकुर जी के आगे धरदे ही और थाली धर के त्वदियं वस्तु गोविंदत विमेव समर्पयत ग्रहान सुमुको भुक्त्वा प्रशीद परमेश्वर जय हो ठाकुर जी आज बृज्ज़ वृणदावन में आए हैं गोकुल में आए हैं आपके काजी में बढ़िया प्रशाद बनाया होगा है खीर बनाईए प्रेम समपाव और गर्गाचार जी को नियम है जब मैं बैठ जाए थे दो-तीन माला तक करते रहेंगे थाकुर जी भोग लगा लेंगे अब यह गर्गाचार जी तो नाम जप में चले गए इतने में ही बीतर आंगन में खेल रहे थाकुर जी खेलते-खेलते रुक गए बलराम जी बोले लाला का बैओ तो रुक गए हो थाकुर जी बोलना तो जानते नहीं पर बलराम जी ठाकुर जी तो मनी मन बात करें, ठाकुर जी बोले बाबहिया बहुत जोर को भगत आया हो बाहर गरगा अचारे नामे जाको और जाने आज अधोटी दूद की खीर बनाईये और मेरो तो मन है रो बाई खाया हूँ मैं जोर ते और बुलाओ रहो भोग के काजे बहुत दिना तक यहाँ ने मेरे साले ग्राम की भोग लगायो आज मन कर रहा हूँ आगो प्रत्यक्ष भोग लगाया हूँ या के प्रसाद को बलराम जी बोले ठीक है लाला चलो जा और बढ़िया लगे तो मुवे बला लियो ठाकुर जी गुटमन चल के गए चलनो आवे ना है गुटमन चले हैं बस और चल करके गए और उनके ठाकुर जी के आगे धरीवाई थाली में सब सामिकरी रखी है पर ठाकुर जी ने खीर ही उठाई लगाई और खीर उठाई करके बैठ गए नेक महों पर लगाई नेक खीर अपने गार पर लगाई नेक नाक पर लगाई खाते पूरे महों में खीर ही खीर है गई इतने में ही गर्गाचार जी को नाम जब पूरो भयो गर्गाचार जी ने वस्त रटाए जैसे नाम जब जै हो मेरे ठाकुर जी प्रणाम करके जैसे ही थाली की ओर देखो महराज थाली तो सबरी बिकरी पड़ी है गर्गाचार जी पहली बार तो हस गए अरी येशोदा देख तेरो लाला बड़ो चंचल है तेरो लाला हैं मेरे ठाकुर जी के भोगा उठाए के खा गयो येशोदा महिया दोड़ी आई भावा आप नाराज मत हुई हो जै मारे मुकु सवरे दूद गी दाई मक्खन आदी सब उपर धरने पर है ना या के हाथ पर जा तो नाले उनमे बाबा छमा कर दें। नहीं कोई बात नहीं छोटो बाले के मैं फिर खीर बना लूँगा कोई बात ना। गर्गाचार जी ने फिर से खीर बनाई। मैया ने लाला पकड़ के भीतर छोड़ दिये बलराम जी के पास। बलराम जी बोले कैसी रही लाला। खीर तो बहुत जोर की भाईया। मेरे गाल पे लगरी है ने चाट लेओ तमू। लेकिन दारी को भगत बहुत बेकार है भोक के काजे बुलावे मैं चलो जाओं मैं या तुम्हें शिकायत कर दे कोई बात ना लाला तु तो भक्त बच्चल है तु तो कृपालू है दया कर दे ठाकुर जी खेलन लगे बलराम जी के साथ गर्गा अचार जी ने अब की बार और बढ़िया खीर बनाई वामें केसर ने ज़्यादा डार दियो एलाईची ने डार दाई बढ़िया मेवा वेवा डार के और बढ़िया बनाई जै पिछली बार तो छोटा बालक जूटा कर गया फ़र से ठाकुर जी को सुगंधी आ गई खेलते फिर रुक गए बलराम जी बोले अब कहाबे हो लाला फिरते खीर बनाईयो पहले तो बढ़िया बनाईये अबके पहले तो चीनी वारी बनाईये अबके तो याने खान की मिस्री डारी है अब तो मेरो मन कर रो भाईया खावे को और देख ले लाला चरो जा हाँ गुर्जी गुटमन चल के आए और महाराज फिर से खीर को पात रुठाया और लेके पूरी पान लगे गर्गाचार जी के अब की बार नेतर खुले जैसे ही देखे ठाकुर जी, अब गरगाचार जी को प्रेम नहीं, अब तो गुस्सा आ गया, अरे ये शोदा, देख तेरो लाला, फिरते आगो, मेरे ठाकुर जी बिचारे भूके रहे गए आज, बार-बार उनको भोजन जूटो कर दे, जी कोई बात है, अरे चंचल है बाल ये सुधा महियाई बाबा ना राज मत हो वो तो बहुत मानो कि जाने साले ग्राम ना खाये तुमारे अरे नन्द बाबा तो साले ग्राम की सेवा करे एक दना साले ग्राम को पंचामरत्य अवशेक करायो दूद गी दही सहत जैसी स्नान करा जा कुई लगी जैजे मीठो एगे होगो सेध में नावे रोज फिर कहा वे हो, बोल कहा वे हो, नन्द बाबा तो जाप में चले गए नित्र बंद करके, छोटा भगत बीतर गया और साले ग्राम लेके महुमद अल्ली है, नन्द बाबा की जैसी नित्र खुले, देखी सामने सिंघासन खाली, अरे मेरे साले ग्राम जी कहा गए, देखो तो तो मो भूलो वै यो करे, मो ना पतो काए, सोई नन्द बाबा ने गुलचा मारो, तब सालेगराम जी मोते बाहर आया के, ऐसो है जी, बाबा जे तो सवभाग्य मानो कि खीरे ही खाई ये नहीं तो सालेगराम खा जायेगो जे तो, नन्द बाबा बिचारे वाद नाते अपने ठाकूर जी की सेवा करके उपर टांड पर धरके जामें साले ग्राम जी है कहीं लाला के हाथ नहीं पड़ जाएं क्योंकि जे तो नीचे खड़ो जे ही देखा ही जैज़क कब हाथ पड़े मेरे क्या खाऊं मैं ऐसी ठाकूर जी की लीला मैं यह बोली आप चिंता मत करो अब के लाला को कमरा में बंद कर दूँगी मैं मैया ने ले जाके ठाकूर जी एक कमरा बंद कर थाकूर जी रोन लगे तो मैया ने सोची कि अब बंद तो नहीं करूँगी बस किवाड लगा दूँ छोटो बालके कैसे बाहर आयेगो ठाकूर जी के नितरन में आंसू भर रहे हैं और होट नीचे वारो बाहर निकार के गुस्सा कर रहे हैं और जंगला पे चड़ के दोनों जंगला पकड़ करके गरगाचार जी को क्रोध में देख रहे हैं एक साल के है ठाकुर जी गर्गाचार जी भी कह रहे हैं सैतान बालक अब खा के दिखाईयो हमारी खीर ठाकुर जी मनी मन कह रहे हैं दारी के सैतानी तो देखी ना आते हैं अभी मेरी तु बना नहीं खाया तो हम हो नंद के लाला नहीं ओ महराज गर्गाचार जी ना खीर बनाई ओ ठाकुर जी जंगला में से देख रहे हैं मोहमेति लार टपक रही है ठाकूर जी के ऐसी बढ़िया खीर बना रहे हैं दिखा के और अपने ठाकूर जी के ठाकूर जी नादान बालक है शतान बालक है आप उस पर ज़्यादा क्रोधित मत होना आप तो प्रशाद पाओ जैसे ही सामने प्रशाद रखके हाथ जोड़के बैठे इतने मही ठाकुर जी जंगलाते नीचे उतरे किवाड खोली और गुटमन चल करके गए गुस्सा तो आई रहो ठाकुर जी कु और सीधे खीर को पाँचे जाए पात्री उठाया पात्री उठाकर जैसे पान लगे गर्गाचार जी को चप-चप खावे की आवाज तो आ गई वह लगे फिर से आ गया बालक और गर्गाचार जी ने अव की वार पकड़ बस मौते कपड़ा हटा के पकड़ वे कुछ आथ आगे भड़ायो जैसे नेत्र खोले नन्य से गोपाल जी नहीं चत्र भुजरूप प्रगट कर लियो और चत्र भुजरूप धारन करके श्री गर्गाचार जी को दर्शन कराए दिय गर्गाचार जी तो महीं रुख गए ओहो परमात्मा साक्षात नारायन डंडवत करन लगे शास्टा गए बोले ठाकुर जी छमा कर दो मैं आपके रूप को पहचान नहीं पाया भगवान बोले ज़्यादा बिला या डंडवत मत करे बैट जा दो बार तो तेने मैं याद सिकायत कर दे हैं हमारी ले एक बार ठाकुर जी पाम है और अपनी जूटी हाथ की लगी वाई खीर गरगाचार जी छोटे से ही हैं ठाकुर जी और खीर आगे करके कहें लेव पाव और जैसे ही गरगाचार जी ने चक्खी मारा गरगाचार जी समाधिस थे गए अधरामृत मिश्रित खीर खवाईये ठाकुर जी ने थाकुर जी ने गर्गाचार जी को हिरदय से लगायो, वोले आप मेरो नामकरण करवे आये हो, मेरी आपसों बस एक प्रार्थना, ये लीला तो बस मैंने यामारे करी, कि आपके चित्त में अपने परती प्रेम प्रगट करवा दाओं, आप मैया को ये मत बताना कि मैं साक्ष मेरे जन्म नक्षत्र कुंडली आदी से ये बात आप प्रमानित कर दोगे कि मैं परमात्मा हूँ परमय्या को मत बताना क्यों? मैं प्रेम पावे आयो हूँ इन बृजवासीन को और जि बृजवासी बड़े भोरे बड़ो स्वच्च प्रेम है इनको और कहीं इनको पतो चल गई कि मैं परमात्मा हूँ मैंने अनीक अवतार धारण किये सब अवतारण में मैं भगवान बनके आया हूँ पर या अवतार में मैं लाला ही रहनो चाहूँ आप सो मेरी प्रार्थना हैं मैं या को मत बतायूं कि मैं कौन गर्गाचार जी माराज बुल जैहो नात ठाकुर जी मक्खन के भूके ना हैं, चपन भोग के भूके ना हैं, ठाकुर जी आपके सामिक्रिन के भूके ना हैं, धन दौलत के भूके ना हैं, आपको जो स्वच्छ प्रेम चत्म हैं, वाके भूके हैं लाल जी, वो प्रदान करो। गर्गाचार जी महराज, भगवान को नामकरन संसकार कियो। बड़े लाला को नाम राम रखो लेकिन बलकी अधिकता होने के कारण सब उनको बलराम कहते हैं और छोटे लाला को नाम कृष्ण रखो है ऐसे ठाकुर जी के नाम करने संसकार होए बोलो बाले कृष्ण लाले के अब ठाकुर जी थाकुर जी तीन बरस के है गए और जादनात नाम करन भयो लाल जी को महराज ऐसो उधम मचा में धीरे चलो वो सिग गए हैं बोल वो सिग गए हैं कैसे बोलें मैया गोध में लेकर बैठी मैया ने कहीं लाला बोल मैया थाकुर जी नहीं बोले इतने उननंद बाबा है मेरी गोध में दो बाबा बोलेगो बाबा की गोध में गए बोले बाबा थाकुर जी नहीं बोले बाबा बलराम जी बोले मोहे तो भाईया बोलेगो और जैसी गोध में लिये लाला बोल भाईया थाकुर जी नहीं बोले येशोदा मैया गोध में लेके बैठी बोले इतनों बड़ा हैगो लाला बोले ही ना है इतने में गवशाला की गईया सामने ते जा रही मैया गईया और गईया जैसी बोली महराज पूरे वर्जमंडल में आनन धेन लगो आज लाला ने पहली बार गईया बोली श्री ठाकुर जी ने सबसे पहलो शब्द सबसे पहलो कहा बोलो गईया ऐसे हमारे श्री ठाकुर जी की मधूर लिला नेक बड़े है गए अपने नेतर मटका में कभी यहाँ देखें वहाँ देखें गोल घुमा में छोटो सोक नहीं आया के बड़े नेन बड़े नेन यमुनाजी के पार जाके थाडो मार सैन छोटो सोक नहीं आया के बड़े नेन यमुनाजी के पार जाके थाडो मार सैन ये ऐसे भो मटकावी को कहें सेन ठाकुर जी का करें बोले यमना जी के पार जाके ठाड़ो मारे सेन अपनी आईब्रो ये ब्रगुटी को ऐसे उपर नीचे करें ठाकुर जी छोटो सोके नहीं आया के बड़े नेन बड़े नेन यमना जी के पार जाके ठाड़ो मारे सेन छोटो सोके नहीं आया के बड़े नेन यमनाजी के पार जाके ठाडो मारे से छोटो सोक नहीं आया के बड़े ने यमनाजी के पार जाके ठाडो मारे से छोटो सोक नहीं आया के बड़े ने यमनाजी के पार जाके ठाडो मारे से हम बजाएंगे बजाए गयोरी बजाए गयोरी बजाए गयोरी बजाए गयोरी बजाए गयोरी बजाए गयोरी मेरे अंगणा में बंशी बजाए गयोरी छोटो सोख नहीं आया के बड़े नैं बड़े नैं यमनाजी के पार जाके ठाड़ो मार से छुटो सुख में नहीं आया के बड़े रहे यमणाजी के पास बुजा उठा के करताल बजाओ बाल कृष्ण लाल की बोल राधार वनलाल की अंगना में सोय रही सुद्ध बुद्ध नाएं अंगना में सोय रही सुद्ध बुद्ध नाएं अंगना में सोए रही सुद्ध बुद्ध नाएं सोमती पे जादू डारो जगे ही के नाएं सोमती पे जादूडारों जगेगी केणा सुनाए गयोरी सुनाए गयोरी मेरे कानन में बनशी सुनाए गयोरी छोटो सोपन नहीं आया कि बड़े ने यमनाजी की पार जाके ठाड़ो मारे से चोटो सोक नहीं आया के बड़े ने बड़े ने यमनाजी की पार जाके ठाड़ो मारे से चोटो सोक नहीं आया के बड़े ने बड़े देवी पार जाके भरन को गागए पीछे ते आए गए नटवर नागर पीछे ते आए गए नटवर नागर पीछे ते आए गए नटवर नागर पीछे ते आए गए नटवर नागर भी गोए गयोरी भी गोए गयोरी ओ मेरी सगरी चुनरिया भी गोए गयोरी चोटो सोक नहीं आया के बड़े नहीं बड़े नहीं यमुनाजी के पार जाके खाड़ो मर से चोटो सोक नहीं आया के बड़े नहीं बजाए गयोरी, ओ मेरे अंगना में बनशी बजाए गयोरी, छुटो सोखने या यागे बड़े ने यमुनाजी के पार जाके ठाडो मारे से छोटो सोगने याया पड़े बड़े बेद पड़े बड़े श्री राधा वल्लम लाल की वल्लम गंद के लाला की अड़के खड़ो है मेरी गैल में आके अड़के खड़ो हैं मेरी गैल में आके और मागे दधीर दिदान नहीं जान देवे आगे ये तो मागे दधी दान नहीं जान देवे आगे अजय को यह तो खाए गए और यह तो लूट माखन खाए गए नहीं आया के बड़े ने यमनाजी के पार जाके खारों भर से सोडो सोखर नहीं आया के बड़े ने यमाजी की पार लगे अडोहर से ए सुनाए गयोरी ओ मेरे कानन मेरे वंशी सुनाए गया चुटो सबन याया के बड़े नैं यमनाजी के पार जाके आड़ो वाई से दोसों गणियाया की बड़े ने यम्राजी की पार जागिर्धारों परेसे गोविंद मेरो है गोपाल मेरो है गोपान मेरो है, गोविंद मेर ये गोपाल मेरो है केवल ग्राना नहीं है भावस पुकारना है वास्तुम हमारे ऐसे कहनो है ये गोविंद मेरो है प्यारो राधारमन गिरधारी मेरो है प्यारो राधारमन बनवारी मेरो है गुविंद मेरो है यमनाजी की पार जाके ठाडो मर से बोलवाल कृष्णलाल की बोलनन्द के लालाज जय अधरम मधूरम वदनम मधूरम मधूरादिपते अखिलम मधूरम मधूरादिपते अखिलम मधूरम देखो बंदू एक बात ध्यान से सुनना संसार का कितना भी गुणियूक्त व्यक्ति क्यों ना हो उसकी भी एक अवस्था ऐसी होती है उसमें वो बढ़िया नहीं लगता पर हमारे श्री ठाकुर जी की ऐसी कोई सी अवस्था नहीं जिसमें वो मधूर नहीं लगता सोमे मधूर, खामे मधूर, हसे मधूर, चले मधूर, बैठे मधूर तहां तक कहें रो मैं हूँ मधुर। कभी गोपी रोतो भैव और लाल जी को देख लेना, तो दूसरी कोई शांत करावे जावे तो कहें, ए रुख जाने एक दिर रोतो देखने दे, ऐसी बढ़िया लग रहें जे तो। रोते ही बढ़िया लग रहें। सब मधुर है धाकुर जी का। सब मधुर है। कैसे कोई नहीं अठके ठाकुर जी पर ऐसे मदुराश्ट अच्छा बंदुओं कभी मन में एक बात आती है मदुराश्ट कम पढ़ा गाया तो होगा न सबने कि मधुराष्टकम में आप एक चीज नहीं बता सकते जिसके वो जिसको वल्लवाचार जी नहीं लिखाओ सब कुछ लिख दिया वल्लवाचार जी ने सब कुछ मधुर ठाकुर जी का अलकें भी मधुर है बहुत भी मधुर है अच्छा देखो अभी जो पद आ रहे थे हमारे ब्रज को रसी आ है कि यमुना जी के पार जाकर ठाड़ों मारे सेन यह सेन चलावे में सबन पर नयाम है हम सबन की दोनों बोएं एक संग ऊपर जाती हैं पर ठाकुर जी की एक ऊपर जावे एक नीचे रहे दूसरी ऊपर जाए पहली नीचे रहे ऐसे चला मैं ठाकुर और ऐसे ही चलते रहें, ऐसे ही डोलें, ऐसे ही बंची बजा में सबर कहें लाला बड़े सेन चला रहो है, याति कहें सेन चलानो तो कभी कोई मन में भाव आता है कि ठाकुर जी का सब मधुर है, कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके प्रति आप अमधुरता का भाव रखो सब मधुर है, तो सोचो ऐसे मधुर ठाकुर जी जिनकी अगर एक एकनी उंगली भी हमें दिख गई ना तो हम उसी पर ही मोहित हो जाएंगे इतने सुन्दर हैं ठाकुर जी कनिष्ट उंगली हमको अपने उपर आकरशित कर सकती है ऐसे ठाकुर जी जिन किशोरी जी पर आकरशित रहते हैं वो किशोरी जी कितनी सुन्दर होंगे उन किशोरी जी का स्वरूप कितना सुन्दर हो जाएंगे कभी मन में भाव आवे कि इसलिए हमारी शामाजु वृद्धावन में गूंगट में बैठी है और मानों हमसे कह रही है इनको देखकर समल्यों पहले कि हमने गूंगट कर लिया तो मारी जेब फिरेंगे तुम्हारों का हुए को जब देखी बृश्व भानुजा यह विच उठी हूं कर दो वन्शी रह गई हाथ में फिर न लागी फूंक किशोरी जी सामने आ जान थाकुर जी वन्शी बजाई ना आए फिर किशोरी जी ही वन्शी बजाती है एक लीला है मुझे पद याद नहीं पर उस लीला पद में यही भाव है कि स्री ठाकुर जी आए तो ठाकुर जी खूब जोर से बंसी बजा रहे है खूब मधुर बंसी बजा रहे है पर जैसे किशोरी जी आए ठाकुर जी की बंसी की एक स्वर नहीं निकल पाया फूख मार रहे हैं सवरी गोपी बोली है रे लाला अब कहां गई तेरी सवरी बंसी की धुन पतोना जी काई कुना बज रही श्री जी बोलें रुख जाओ इतने में श्री जी गए श्री जी ने जाके जैसे ही लाला को एशपर्श के वो सोई वन्शी बजन लगे मानो ठाकुर जी भी समझ गए बोलें हमारी सामर्थ नहीं है ये तो किसूर जी की अद्भुत लाल जी की लीला ब्रज में खूब लीला की ठाकुर जी ने माखन चोरी लीलाओं का वरणन किया गया कैसे ठाकुर जी लीला करते हैं सब को हम सुक्षम रखेंगे वचसान मुझन वजन क्वचिद समय क्रोष संजात हास स्थेयम स्वादत दधिपयह स्थेयम कल्पित स्थेय योगय मरकान भोक्षन विवजति सचेन नात्रि भांडम विनत्ति द्रव्यालावे सग्रह कुपितो यात्युपक्रोषतो कानि वगवान की मधुर बाल लीलाएं और उसमें भी चोरी की लीलाएं खुब सुनाई तत्पशात दामोदर लीला सुनाई दामोदर लीला क्या है दाम कहते हैं रस्सी को और उदर कहते हैं पेट को मैया यशोदा लाइल जी को एक दिन उखल में बांग देती है लेकिन ठाकुर जी अपनी सत्ता कभी प्रकट कर देते हैं वरंदावन में और सत्ता कैसे प्रगट की ठाकूर जी कह रहे हैं अरी मैया मोई कोई ना बांध सके मैं परब्रम हूं मैं स्वच्छन्द हूं मैं परम मुक्त हूं मोई कोई ना बांध सके मैया खूब बड़ी रस्ती लेकिन आवे सब छोटी पड़ जाएं अंततो गत्वा जब मैया के मुखमंडल पर प्रेम दिखा ठाकूर जी का ठाकूर जी अपना एश्वर भूल गए और ऐश्वर भूलते ही ठाकुर जी मैया के उस पास में बंद गए। मानो अब आचारे जन यहां वर्णन करते हैं कि ठाकुर जी सदा ऐश्वर्य में ही रहते हैं। है पर यदि सामने वाला वैश्णव सामने वाला भक्त यदि अपने प्रेम का प्रधानता उनके सामने कर दे तो देखो हमें प्रेम लक्षणा भक्ति क्यों करनी है कि ठाकुर जी अपना ऐश्वर्य भूल जाएं ठाकुर जी जैसे अपना ऐश्वर्य भूलते हैं वह प्रेम में आ जाते तो प्रेम में आती ठाकुर जी सहज हो जाते हैं जब तक ठाकुर जी को अपना ऐश्वर्य याद रहेगा तब तक हम उनसे दूर रही रह सकते हैं अ हमें भक्ति कैसी करनी है कि लाल जी भूल जाएं कि वो परब्रम है, लाल जी भूल जाएं कि वे परमात्मा है, लाल जी भूल जाएं कि परमपिता है, ऐसी भक्ति करनी है। और बृजबासियों ने वह कर दिखाया। आज की कथा में नहीं, कल की कथा में वरणन आता है जब भगवान को ले जाने के लिए अक्रूर जी आये मथुरा, तब नारज जी भगवान को समझाने आये। प्रभु आप क्यों नहीं जा रहे हैं अभी मथुरा में इतनी लीला करनी द्वारिका में लीला करनी महाभारत का युद्ध करना अभी बहुत कुछ आपको करना है और आप यहां से हिली नहीं रहे हो ब्रज से तो भगवान कहते है नारद सच बताओ मैं भूल गया था कि मैं परमात्मा मैं भूल गया था कि मैं वैकुन्ठ पती हूँ मैं भूल गया था कि त्रलोकी नाथ हूँ इन ब्रजवासियों के प्रेम के आगे मुझे ये विश्मृति हो गई कि मैं जगत नियंता हूँ। तब भगवान एक बात कहते हैं, नारद, एक काम हो सकता है, बोले क्या? जैसे किसी की अनुपस्थिती में कोई और उसका काम समाल लेता है, ऐसे ही तुम सब देवता मिल करके कोई और भगवान बना लो, मुझे यही ब्रज में ही रहन दो। गोपी प्रेम की भजा जिन गोपाल कियों वश अपने जिन गोपाल कियों वश अपने उरधर शाम भुजा गोपी प्रेम की धजा सुक्मुनि व्यास प्रसंसा कीनी उधो संत सल्हारी भूरी भाग्य गोकुल की वनिता अनिपुन अतिपुनीत तब माही गोपि प्रेम की जाँ कहा भयो जो विप्रकुल नाही भाईया परमात्मा को अपने वश्मे करने वाली गोपियां ये विप्रकी नहीं है, ब्राम्मन नहीं है, ताही अहीर की छोहरिया छच्या भरी छाच पे नाच नचाया, इस पंक्ती का आर्थ पताया आपको, श्री रस्खान जी कह रहे है, जो पूरे ब्राम्मन्ड को नचाते हैं, थाकुर जी, उनको ये अहीर की गोपियां, ये अहीर नारियां, ये ब्रचकी गोपियां, गोबर थापने वाली गोपियां, जो कभी विद्याले नहीं गई, जिनोंने कभी कोई वेद सास्त्र अध्यन नहीं किये, जो ब्रह्मन कुल की भी नहीं हैं, ऐसी गोपियां, लाला जब कभी भी गली से निकल के जामे न, सधोरी गईया को दूद न अपनी भुजा बाहर कले खिड़की ते और जैसे ही राहत निकलते भे लाला वा मक्खन को देखें सोई वा गोपी को हाथ पकड़े सोई गोपी लाला को हाथ पकड़े वो लाला मक्खन खाये को बले हाँ खाऊंगो पहले भीतर आ तो थाकुर जी जैसे ही भीतर जामे भीतर ते गोपी सब कोणा लगा ले गेट बंद कर दे और गेट बंद करके के लाला मक्खन खाये को लाला खाऊंगो पहले नाच के दिखाए तो थाकुर जी नाचने लग जाते हैं, अब लाला गाय के दिखा, थाकुर जी गोपी के सामने बैठके गा के सुनाते हैं, लाला एक काम कर, मेरे हिरदय ते लग जा, तो थाकुर जी वाके हिरदय से लग जाएं, अच्छा अपने गाल मेरे गाल ते छुबाए दे ठाकुर जी अपनों काल छुबाये दें, मेरी गोध में लेट जा, ठाकुर जी लेट जाएं, अपने पाम मेरे सिर पर धर्द है, रस्थान कह रहें, जिस परमात्मा को हम कभी चू नहीं सकते, उस परमात्मा को केवल मक्खन का लोब दे करके गोपी नचा देती है, ताही अह कुछ नहीं है इन गोपी और बृजवासीयों के पास केवल वह स्वच्छन्द प्रेम है जो प्रेम हम आप सब लोगों को छूता भी नहीं है इसपर्श में भी नहीं है अमारे वो प्रेम है इनके पास कहा भयो जो विप्र कुल नाही जिन हरी सेवा नाही अश्ट सखाओं में एक सखा हुए श्री परमानन्द दाज जी वे कह रहे हैं, बोले क्या हुआ अगर गोपियां विप्रकुल में नहीं जन्मी तो अरे विप्रकुल में जन्म लेने के बाद भी हरी की सेवा नहीं करते हैं ऐसा सो तो अच्छी है विपरकुल में नहीं है पर हरी को ही तो रिजाती हैं गोपियों की दिन और रात, रात और दिन केवल एक के लिए है क्या यादो हने बहनने मथनों पलेप प्रिंखें खनार भरूदितो छनमार जनादवू गोपियां चलती कृष्ण के लिए, बैठती कृष्ण के लिए, हसती कृष्ण के लिए, रोती कृष्ण के लिए, सजती कृष्ण के लिए, सवरती कृष्ण के लिए कि इन बृज की गोपियों का और केवल गोपियां नहीं बृज का हर बृजवासी कि वह करता है जिससे कृष्ण रीज है कि नंद बाबा रोज जाते हैं गईयाचराने और जानभूज करके अपनी पादुका छोड़कर चले जाते हैं क्यों कि क्योंकि जैसे नंद बाबा चले जामें सोई लाला को दिख जाए बाबा पादुका पहन के नहीं गए तो थाकुर जी पादुका उठाकर अपने हिरदय में ऐसे भरके और फिर बाबा के पीछे तोतली वानी बोलते बाबा नेक लुक जाओ पादुका पेन के जाओ और वो सुनने के लिए श्री नन्द बाबा रोज पादुका छोड़के जाते हैं लाला ये शोदा महिया सुबह जल्दी उठ करके सब काम करती है और हर एक क्रिया के बाद धीमे जाती है अपनी पायल उतार के जाती है कहीं मेरे चरणन की आवास सो लाला उठ नहीं जाये और दीरे ते जहांक के देखे लाला उठो तो नहीं और खूब देर तक सुबह आती है महिया की लाला खूब नीद पूरी करके उठे अपनो और हफ्ता में केवल दो दिन नाते है ठाकुर जी तो साथ दिन में केवल दोई दिना नाम है बाकी दिना कहा करें वह यह शोधा मैया तातो जल तातो मतलब नेक-नेक गुन-गुनों जल गरम-गरम जल वहां से मुख पहुंच दे और अपने दुपट्टा ते मौप पहुंच-पहुंच करके और लाला को बंगार करते है वह लाला तैयार एक दिन दाउदादा बोले मैया मों को तो तुरोज नहाई देवा या लाला को तो दोई दिना नवावे तारों वैसे ऊपर ते नवावे और ना याए अ मैं यह बोली लाला जिन हां वैना है तो यह नजर लगती रहे जिन कारों है तो यह नजर लगती रहे सब रिया की पीछे ��ड़ी रहे यह कुछ नवा दोबा के ज्यादा सुंदर बनाऊंगी तो जन का होगा कोई लेकर भाग नहीं लाया है यह मैं तो नवा हूं ना हूं कभी-कभी ठाकुर जी ज्यादा सुंदर श्रीघार कर लेते ना मैं यह जबरजस्ती लाला की आंखों ने मीड दे ताकि काजल फैल जाए ज्यादा सुंदर नहीं लगा लाला अ कभी केश बहुत सुन्दर बन जाते न, मैया बस अपने श्रुंगार के लिए लाला को सुन्दर बनाती है, और स्वेम श्रुंगार करके पर स्वेम श्रुंगार नेक बिगार दे, कहीं जादा बढ़िया नहीं लगे, बुरे बाबरे पर तो मरी जाएं सबरी गोप कि हमारे ब्रज में कहते हैं लाला तुमने बड़ी कृपा करी जो तुम लाला बनकर आए हे कृष्ण लाला तुम होते लली तो गरे कट जाते करोड़न के बड़ी कृपा करी लाला जो तुम लाला योग लाली बनकर आए होते तो जन कहा करते हैं कि प्रेम तहां भयो भयो जो विप्रकुल नाही, जो हरी सेवा नाही सोई कुलीन दास परमानन्द जो हरी सन मुख धाई जो हरी सन मुख धाई गोपी प्रेम की भजाई ठक् जाओ चलो मैन वृंदा वैन की चलो मैन वृंदा वैन मैं यमुना के नान दावी यमुना श्री वृंदावन यमुना के नाम वहां रित्यत नंद किशो आचत न वैलल किशो चलो मन वृण्धावन की ओर चलो मन वृण्धावन की ओर चलो मन वृण्धावन की ओर चलो मन वृण्धावन की ओर वृद्धावन विरिंदावन चलो मन बुन्दावन की ओर चलो मन बुन्दावन की ओर चलो मन बुन्दावन की ओर भंदा बनकीयों घर तुलसी ठाकुर सेवा दर्शन गोबिंद जी को और भोजन दूँ दूध दही को चलो मन वृणावन की ओरे विन्दावन की ओर चलो मैंने विन्दावन की ओर श्री विन्दावन विर्णावन मेरो वृण्धावन, वृण्धावन मेरो वृण्धावन, वृण्धावन बृद्धावन ब नहीं राधे कहो रहे राधे रादे भगोरे श्री वृणावन राग कहोरे रादे भगोरे श्री वृणावन राग श्री राधे कहो रे चलो मन वृंदावन की ओरे चलो मन वृंदावन की ओरे विचलो मन वृंदा बन की ओ जय श्विराद दे