हलो एवरीवन, आज हम पढ़ने वाले हैं क्लास्टेंथ हिस्ट्री का चे��्टर नमर सेकेंड जिसका नाम है Nationalism in India तो सबसे पहले हम ये समझते हैं कि Nationalism in India का मतलब क्या होता है तो Nationalism का मतलब होता है अपने देश के परती प्यार और गर्व की भावना होना जिसे हम आसान भाषा में देश भक्ती भी कह सकते हैं तो आखर हमारे देश इंडिया के लोगों के बीच में देश भक्ती की भावना कैसे पैदा हुई और इस feeling को पाने के लिए हमारे देश के लोगों ने क्या क्या struggle किया चलिए जानते हैं इस वीडियो में हमारे चेप्टर की सुरुवात होती है 1914 से ये बो साल थी जब विश्व की दो महान सक्तियां आप उसमें लड़ाई लड़ने लगती हैं एक तरफ थी allied powers और दूसरी तरफ थी central powers अलाइट्स पावर में थे रूस, बृतेन, अमेरिका, जापान ये देश आते थे और सेंटरल पावर में ओस्ट्रो, अंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन अंपायर आते थे तो ये दोनों ही पावर आप उसमें लड़ाई लड़ रहे थी लेकिन इंडारेक्ली कनेक्शन था क्योंकि उस समय पर जो बृतेन था वो हमारी इंडिया के ऊपर कबजा बनाई हुए थे यानि कि उस समय पर हम ब्रिटिसर्स की कॉलोनी थे चुकि ब्रिटिसर्स इस बॉर को लड रहे थे और हम ब्रिटिसर्स की कॉलोनी थे अब क्या इंपेक्ट पड़ रहा था चलिए जानते हैं पहला कि जो ब्रिटिसर्स थे वो बॉर लड रहे थे तो इसके लिए जो British Government थी, वो Custom Duties बढ़ा देती है और Income Tax इंट्रिडूस कर देती है। Tax बढ़ाने के कारण महंगाई बढ़ती जा रही थी, हर बस्तू की कीमत लगबग दुगनी हो चुकी थी। जिसके कारण लोग बहुत परेशान थे, लोगों का बुरा हाल था। उपर से जो British Government थी, वो इंडियन लोगों को जबरदस्ती British Army में भरती कर रही थी। हमारे देश को लोग परेशान तो थे ही, उपर से जो प्राकृती थी, वो भी हमारा साथ नहीं रहे थी। नाइन्टीन एटी नाइन्टीन और नाइन्टीन टौन्टी टौन्टीबन की जो फसले थी वो बरसाद ना होने के कारण खराब हो जाती हैं और देश में खाने की कमी हो जाती है जिस वज़े से लोग भूके मरने लगते हैं और साथ में यही वो समय था जब देश में एक महामारी फैल रही थी जिसका नाम था इंफ्लुएंजा एपिडेमिक जिससे कई सारे लोग मर जाते हैं दोस्तों 1921 के सेंसिस के असाब से यह बताया जाता है कि इंडिया के लगवग 13 मिलियन लोग मर जाते हैं इस भूकमरी और इस महामारी के कारण लोगों को लग रहा था कि इस समस्यां बॉर के खतम होने के साथ ही खतम हो जाएंगे लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ अब दोस्तों ये जो परेसानियों का दोर चल रहा था इस दोर में लोगों को जरूरत थी एक ऐसी लीडर की जो इनकी समस्यां को खतम करे तो फाइनली जनबरी 1915 में एंट्री होती है ता ग्रेट मैन ओफ इंडिया की यानि की महात्मा गांधी की गांधी जी साउथ अफरीका से इंडिया आते हैं और एक आइडिया लेकर आते हैं जिसका नाम था सत्याग्रह यह आइडिया तो नॉन बॉयलेंस का यानि की आहींसा का गांधी जी कहते थे कि हमें जो भी लड़ाई लड़नी है उसे हम प्रेम से लड़ेंगे बिना किसी हज सस्त का इस्तमाल किये सत्य की रहा पर चलकर और सांती पून तरीके से गांधी जी ने इंडिया आने से पहले साऊथ अफरिका में 1906 में जो कि साऊथ अफरिका के रेसिजन सिस्टम के खिलाब था और उनके इस नई आइडिया की वज़े से उन्हें साउथ अफरिका में खुब पॉपुलरिटी मिली थी और फिर जब वो इंडिया आए तो उन्होंने भारत में भी तीन अलग अलग जगों पर सत्यागरे आंदुलन ने स्टार्ट किया तो भारत के अंदर गांधी जी ने सबसे पहला सत्यागरे आंदुलन 1917 में स्टार्ट किया था जो की था चंपारन भिहार में यानि की नील की फसल होगाने के लिए और जहां कहीं भी ये फजल उगाई जाती थी वो जमीन बंजर हो जाती थी उपर से जो ब्रिटिसर्स थे वो इन किसानों को पैसे भी कम दे रहे थे मतलब एक तो किसानों की जमीन भी खराब हो रही थी उपर से उन्हें पैसे भी कम मिल रहे थे तो इस वासी जो किसान थे वो परिशान थे तो यहाँ पर गांधी जी क्या करते हैं सारे किसानों को इंस्पायर करते हैं और मिलकर स्टरगल करते हैं और आवाज उठाते हैं इस प्लांटिसन सिस्टम के खिलाब तो यहाँ पर सक्सेस मिलने के बाद 1917 में ही गांधी जी जाते हैं गुजरात के खिलाब डिस्टिक्ट में वहाँ पर वो देखते हैं कि यहाँ पर भी किसानों की कंडिजन खराब है वहाँ के किसानों के साथ क्या हो रहा था कि उनकी जो फसले थी वो खराब हो गए थी और एक पिलग नाम की बीमारी भी फैल रही थी वहाँ पर तो गांधी जी इन फार्मर्स को सपोर्ट करते हैं और लॉंच करते हैं अपना दूसरा सत्यागर्या और डिमांड करते हैं रिलेक्सेशन की है तो गांधी जी का जो दूसरा सत्यागर्या था वह भी सक्सिस्पुल रहता है और जो किसानों का टेक्स रिवेन्यू था वो भी माफ हो जाता है इसके बाद 1918 में गांधी जी जाते हैं एमदाबाद एमदाबाद में क्या हो रहा था कि जो वहाँ के बरकस थे उनको बहुत ही कम बेजिस मिलती थी यानि कि उनको बहुत कम पैसा मिलता था तो जो बरकस थे वो परिशान थे इसलिए जो बरकस थे वो थोड़े जादा बेजिस की डिमांड कर रहे थे वो अपना तीसरा सत्यागरे आंदुलन लॉंच करते हैं तो ये मुमेंट भी सक्सेस्पुल रहता है तो गांधी जी लगाता तीन बड़े-बड़े सक्त्यागरे आंधुलन करते हैं देश के आलग-लग अब दोस्तों जो आंदुलन हो रहे थे देश के अलग-अलग जगों पर ये सब देखकर जो ब्रिटिसाइस थे वो सान थोड़ना रहेंगे ब्रिटिसाइस को इस बास से आ गया गुस्सा ब्रिटिसाइस ने क्या किया कि एक लॉ पास कर दिया जिसका नाम था रॉल एक्ट एक्ट तो रॉल एक्ट एक कानून था जो की 1919 में पास किया गया था ये पास किया गया थे Imperial Legislative Council के द्वारा जो की उस समय की British Parliament थी इंडिया के अंदर इस लॉ की बजे से जो British Government थी उसको बहुती जादा तो ये लॉ क्या कहता था कि जो भी वेक्ती रेवोलूशनरी अक्टिबिटी करते पाया जाएगा तो उसको सीधा दो साल के लिए जेल में डाल दिया जाएगा बिना किसी ट्रायल के मतलब उसको कोई मौका नहीं दिया जाएगा अपनी बेगुनाई साबद करने का ये लॉ इंडियन्स के लिए इतना खराब था कि इस लॉ को ब्लैक लॉ भी बोला जाता था वो उसको सीधा जेल में डाल देती थी दो साल के लिए चाहे वो कोई आम नागरेक हो और चाहे वो कोई पॉलिटिकल लीडर हो तो इस रॉलेट एक्ट के अगेंस्ट में जो गांधी जी थे वो अपना सत्यागर्य आंदुलन लॉंच करते हैं इस रॉलेट एक्ट के बिरोध में जिसको बोला गया रॉलेट सत्यागर्य तो ये जो सत्यागर्य था वो नीसन बाइट सत्यागर्य था मतलब अभी तक जो सत्यागर्य हो रहे थे वो देश के आलग लग रीजन्स में हो रहे थे पर ये जो सत्यागर्य था वो पूरे नीसन के लिए था यानि कि पूरी कंट्री के लिए था गांधी जी क्या कहते हैं कि हम 6 अपरेल को पूरे देश के अंगर हरताल करेंगे वो भी सांतिफून तरीके से तो गांधी जी के कहने पर पूरा देश जो है वो 6 अपरेल को हड़ताल करने लगता है इस हड़ताल के चलते रेल्वे बर्क, सौप और दुकानों को बंद कर दिया जाता है बरकस स्ट्राइक पर चले जाते हैं अमरिश सर के बहुत सारे पॉलिटिकल लीडर्स को जिल में डाल दिया जाता है और गांधी जी को दिल्ली जाने से रोग दिया जाता है यहां तक सब ठीक था लेकिन 10 अप्रेल को जो ब्रिटिस पुलिस होती है वो अमरिश सर में एक सांती पून जुलूस पर गोली चला देती है और वो बैंको पर, पोष्ट ओपिसेस पर, रेल्वी स्टेशन्स पर हमला कर देते हैं वो मार्शिया लॉ लगा देती है मार्सियल लॉ लगने के बाद अब जो पावर थी वो मिलेटरी के पास पहुँच जाती है और उस समय पर मिलेटरी की जो कमांड थी वो थी जनरल डायर के पास अब होता क्या है कि 13 अपरेल का दिन था इस दिन बहुत सारी लोग जलिया वाला बाग जो की अमरिस्तर में है वहाँ पर इखटे होते हैं इस बाग में बैसागी का मेला लगा हुआ था तो जादातर लोग बैसागी का मेला मनाने के लिए आये थे ये लोग इनोसेंट थे इन्हें नहीं पता था कि मार्शल लो नाम का कोई लो लगा हुआ है तो ये सारी लोग चैन से बैसागी का मेला मना रहे थे पर इस बाग में कुछ लोग ऐसे भी थे जो रॉलेट एट के अगेंस्ट में प्रोटेस्ट कर रहे थे तो जब जनरल डायर को ये सब पता चला कि जलिया वाला बाग में बहुत सारी लोग खटे हुए हैं तो वो अपनी मिलटरी के साथ आता है और बाग के सारे दर्बाजों को बंद करवा देता है और लोगों के उपर अंदा धुन्द गोलिया चलवा देता है इसी इंसिडेंट को बोला जाता है जलिया वाला बाग मैसेकर इस इंसिडेंट ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था नौर्थ इंडिया के बहुत सारे सेरों के लोग सडकों पर आ जाते हैं, हड़ताले होने लगती हैं, जनता और पुलिस के बीच में क्लसेस होने लगते हैं, लोग गबर्मेंट बिल्डिंग्स पर हमला कर देते हैं, मतलब बहुती जादा कॉंपलेक्स सिचुएशन होने लग गांधी जी कभी नहीं चाहते थे वॉयलेंस हो यानि कि लड़ाई धंग्य हो ये सब देखकर गांधी जी को बहुत बुरा लगता है और वो रॉलेट सत्यागरह को बंद करा देते और अपना आंदुलन बापुस ले लेते तो हमें और बड़ा आंदुलन करनी की जरूरत है पर इसके लिए हिंदू और मुस्लिम का एक होना जरूरी है अगर हिंदू और मुस्लिम एक हो गए तो जो मुमेंट होगा वो और बड़ी स्केल पर होगा एक कैसे होते हैं जो हिंदू थे वो डिमांड कर रहे थे सुराज की यानि की इंडिपेंडेंस की और वो लड़ाई लड़ रहे थे ब्रिटिसस के के लिए वहीं जो मुस्लिम से वो समय ��र खिलापत हिसू पर काम कर रहा है तो ये खिलापत हिसू क्या था देखो बल्डवार ये जो राजा था वो इसलामिक हेड माना जाता था और जितने भी मुसलिम्स थे वो इनकी बहुती जादा रिस्पेट तो होता क्या है कि इस बॉर में टर्की हार जाता है और बृतेन जीत जाता है। अब जनता में एक अफ़वा फैलने लगती है कि जो बृतेन है वो टर्की के राजा के उपर यानि कि खलीफा के उपर एक हास टीटी इंपोस करने वाला है। उनको ब्रिटिसर्स के ऊपर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था अब आपने एक चीज़ नोटिस की कि हिंदूस की दुस्मनी ब्रिटिसर्स के साथ थी और अब मुस्लिम्स की दुस्मनी भी किस से हो गई थी ब्रिटिसर्स से हो गई थी तो जब यहाँ पर हमारा दुस्मन एक था हिंदू और मुस्लिम को एक करने के लिए तो होता क्या है कि मार्च 1919 में बॉम्बे के अंदर एक कमीटी बनाई जाती है जिसका नाम था खिलाफत कमीटी यह फॉर्म की जाती है कई सारी मुस्लिम लीडर्स के द्वारा जिन मेंसे दो में लीडर थे जिनका नाम था मुहम्मद अली और सौकत अली यह दोनों क्या करते हैं यह गांधी जी के साथ डिसकसन करते हैं कि मा सेक्शन की गुणजास है की नहीं मतलब हम बड़ी तादात में आंदुलन कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं तो इसी मुद्दे पर डिस्कॉसन चलता है और फाइनली सेप्टेमबर 1920 में कलकत्ता के अंदर कॉंग्रेस का एक सेशन होता है जिसमें गांधी जी कन्वेंस कर लेते हैं अदर कॉंग्रेस लीडर्स और फिर एक नया आंदुलन सुरू करने का बिचार करते हैं जिसका नाम था नॉन कॉपरेशन मुवमेंट यानि की असयोग आंदुलन वाई नॉन कॉपरेशन तो इसका आंसर गांधी जी ने बहुत पहले ही दे दिया था गांधी जी ने 1909 में अपनी बुक हिंद सुराज में बताया था कि जो ब्रिटिसर्स थे वो इंडिया में इसलिए रूल कर पाए क्योंकि लोगों ने उनके साथ कॉपरेट किया था यानि कि उनका सहयोग किया था तो एक साल के अंदर ही ब्रिटिस रूल खतम हो जाएगा और हमारे देश के लोगों को सुराज मिल जाए इसलिए गांधी जी मुस्लिम लीडर्स के साथ मिलकर नॉन कॉपरिशन मुवमेंट स्टार्ट करना चाहते थे आप देखते हैं इस नॉन कॉपरिशन मुवमेंट के लिए गांधी जी क्या कहते हैं तो गांधी जी कहते हैं कि सबसे पहले तो गवर्मेंट के दिये हुए जो टाइटल्स हैं उनको सरेंडर करना होगा दूसरी चीज ये बोलते हैं कि जो ब्रिटिस गवर्मेंट के सर्विसेस हैं उनको बाइकॉट करना होगा जैसे कि सिबिल सर्विसेस, आर्मी, पुलिस, कोर्ट्स, लेजिसलेटिव काउंसिल्स, स्कूल और फॉरेंग गुड्स इन सब को छोड़ना पड़ेगा, ना ही इन सर्विसेस का इस्तिमाल करेंगे और ना ही इन सर्विसेस के लिए काम करेंगे। गांधी जी ये भी कहते हैं कि अगर ब्रिटिस गवर्मेंट हमारे साहंदोलन के खिलाफ कुछ एक्सन लेती है या दवाने का प्रियास करती है, तो फिर हम एक फुल सिविल डिसोबिडन्स कैम्पेइन भी चलाएंगे ब्रिटिस गवर्मेंट के खिलाफ में। तो 19-20 के गर्मियों के दौरान गांधी जी और सौके तलिये दोनों ही निकल पड़ते हैं देश की अलग-अलग जगों पर प्रचार प्रसार के लिए। ताकि जादा से जादा लोगों को non-cooperation movement पर जोड़ा जा सके ताकि movement बड़ी scale पर हो सके पर दोस्तों जो Indian National Congress थी वो support नहीं कर रही थी non-cooperation movement को अब क्यों support नहीं कर रही थी तो इसके कुछ कारण थे पहला कि गांधी जी चाहते थे कि British की सारी services को by-court कर देना चाहिए लेकिन जो Congress थी वो November 1920 में होने वाले council elections को by-court करना नहीं चाहरे थी क्योंकि वो सोच रहे थे कि अगर हम election जीत गए तो हमारे पास कुछ पावर आ जाएगी गवर्मेंट की और फिर हम कुछ चेंजेस कर सकेंगे ब्रिटिस की पॉलिसीज के अंदर दूसरा कॉंग्रेस को ये डर था कि जो नॉन कॉपरेशन मुवमेंट है वो बॉयलेस क्रियेट करेगा लेकिन फिर दिसेंबर 1920 में नागपुर में कॉंग्रेस का एक सेशन होता है जिसमें जो कॉंग्रेस होती है वो इस नॉन कॉपरेशन मुवमेंट के लिए तैयार हो जाती है यानि कि उसको अडॉप्� मतलब अब आंदुलन करने के लिए गांधी जी को मुस्लिम्स का सपोर्ट भी मिल गया था और कॉंग्रेस का सपोर्ट भी मिल गया था मतलब अब गांधी जी पूरी तरीके से तयार थे आंदुलन की सुरुवात करने के लिए तो फाइनली जनबरी 1920 में नॉन कॉपरेशन मुवमेंट को स् सेकंड टॉपिक है अमारा differing strengths within the movement तो चलिए अब हम देखते हैं कि ये आंदोलन आगे कैसे बढ़ता है और इस आंदोलन के अंदर क्या क्या होता है तो सबसे पहले हम देखते हैं the movement in the towns मतलब towns यानि कि सेहरों में ये आंदोलन किस तरीके से होता है तो towns के अंदर सबसे ज़्यादा participate किया था middle class लोगों ने तो देखो towns में होता क्या है तो इस movement की चलते towns में रहने वाले हजारों बच्चों ने government, schools और colleges को छोड़ दिया टीचर्स और एडमास्टर ने रिजाइन कर दिया, लॉयस ने अपनी लीगल प्रेक्टिसेस देना बंद कर दिया, ओल पॉलिटिकल पार्टीज ने एलेक्शन्स को बाइकॉट कर दिया, फॉरेंड गुड्स को बाइकॉट कर दिया, लिकर सॉप्स को पिट कर दिया गया, मतल उनका इंपोर्ट आधी मात्रा में होने लगता है और जो मर्चेंट्स और ट्रेडर्स होते हैं वो फॉरेंड गुट्स को खरीदना और बेचना बंद कर देते हैं जिस बज़े से इंडियन टेक्स्टाइल मिल्स और हेंडलूम्स का प्रोड़क्शन बढ़ जाता है इंडियन गुट्स यानि की खादी कपड़ों को पैनना शुरू करते थे लेकिन अफसोस ऐसा नहीं था, धीरे धीरे क्या होता है कि जो non-cooperation movement था, वो सेरो के अंदर धीरे धीरे कमजोर पढ़ने लगता है, यानि कि slow down होने लगता है, अब slow down क्यों होने लगता है, तो इसके पीछे कारण थे, पहला कारण था कि जो Indian cloth थे, यानि कि जो khadi cloth थे, वो ब दूसरा कारण था कि इंडियन इंस्टिटूशन की कमी थी मतलब कि इंडिया के खुद के कोई स्कूल्स और कॉलेजेस नहीं थे सब ब्रिटिसर्स के थे तो उस समय पर कोई भी अल्टरनेटिव नहीं था जिस बज़े से सारी स्टूडेंट्स और टीचर्स ने मजबूरी में वो सिटीज के अंदर धीरे धीरे कमजूर पड़ने लगा था यानि की slow down होने लगा था अब हम देखते हैं कि country side में यानि की ग्रामीड इलाकों में ये movement किस तरीके से चल रहा था तो ग्रामीड इलाकों में दो आंदुलन चल रहे थे एक ता peasants का यानि की किसानों का और दूसरा ता tribal population का यानि की आदिवासी लोगों का तो सबसे पहले हम देखते हैं किसानों का आंदुल तो इसके लिए हम देखते हैं अवध का case तो situation क्या थी कि जो किसान थे वो बहुत ज़्यादा परेशान थे किन से परेशान थे तो लगदार और जो बड़े बड़े लेंडलोड्स होते थे उन से परेशान थे अब क्यों परेशान थे क्योंकि वो काफी ज़्यादा रेंट चार्ज करते थे किसानों से और वे बेगार भी कराते थे पहला कि रेंट कम कर दिया जाए, दूसरा बेगार को खतम कर दिया जाए, और तीसरा जो ओपरेसिव लेंडलोड्स हैं उनका सोचल बाइकॉट होना चाहिए। और इन सब में किसानों की मदद करते हैं बाबा रामचंद्र, जो की एक सन्यासी थे, जोनोंने फीजी में एजा इंडेंचुरल लेवर काम भी किया था। मतलब जितने भी ओपरेसिव लेंडलोड्स थे उनको बेसिक सर्विसेस देना बंद कर देते हैं जैसे कि जो बारवास थे वो इनके बाल काटना बंद कर देते हैं और जो बॉसर में थे वो इनके कपड़े दोना बंद कर देते हैं मतलब जो बेसिक सर्विसेस होती हैं उनहीं देना बंद कर देते हैं समझ रहे हो नाई धोबी बंद जिनका नाम था पंडिज जवालला नेहरू तो पंडिज जवालला नेहरू और बाबा रामचंद्र ये दोनों मिलकर एक किसान सबा भी बनाते हैं जिसका नाम था अबद किसान सबा जो कि किसानों की मदद के लिए अक्टूबर 1920 में बनाई गई थी ये सबा इतनी अच्छी सावित हुई कि एक महिने में इसकी 300 ज़्यादा ब्रांचिस खुल जाती हैं आसपास के गाउं में तो दोस्तों ये जो किसानों का अंदोरन चल रहा था वो धीरे धीरे बॉयलेंट होने लगता है जो स्माल पीजेंट्स होते हैं तो लगदार और मर्चेंट्स के घरों पर अटेक कर देते हैं बाजारों को लूट लेते हैं, ग्रेंस को एकटा कर लेते हैं और तो और जो लोकल लीडर्स थे, कोई ऐसी अववा फैला रहे थे कि गांधी जी ने कहा है कि छोटे कुसन बड़े किसानों की जमीने छीन ले, मतलब जो कोई भी कुछ भी कर रहा था, वो ये कह रहा था कि हम तो गांधी जी के कैनेबर कर रहे हैं, तो देखा आपने धीरे जिस बाद इसे गांधी जी को और अधर कॉंग्रेस लीडर को इस बात से बहुत बुरा लगता है और धीरे धीरे यहाँ पर भी ये मुमेंट सुलो होने लगता है अब हम देखते हैं कि ट्राइवल पॉपुलेशन में ये मुमेंट किस तरीके से चलता है तो आंध प्रदेश में एक जगए है गोडेम हिल्स के नाम से क्यों परेशान थे क्योंकि ब्रिटिसस ने उनकी फॉरेस्ट एरियास क्लोस कर दिये थे मतलब उन्हें जंगलों में जाने से रोक दिया था और आप तो जानते हैं कि जो tribal population होती है वो जंगलों पर कितनी ज़ादा dependent रहती है उन्हें लकडियां चाहिए होती हैं, fruits and vegetables चाहिए होते हैं cattle को चराने के लिए जगए चाहिए होती है इसलिए उनका जो livelihood था वो बहुत ज़ादा affect हो रहा था उन्हें लग रहा था कि Britishers उनसे उनका अधिकार चीन रहे हैं उपर से उन्हें बेगारी कराने के लिए भी प्रेसराइज किया जाता था मतलब बिना पैसों के काम कराने के लिए भी फोर्स किया जाता था इस वासे जो ट्राइबल पॉपुलेशन थी उन्हें ब्रिटिसाइस के उपर बहुत जाता गुस्सा आ रहा था तो इनकी मदद के ये जो थे वो गांधी जी से बहुत ज़ाधे इंस्पायर थे ये सबसे बोलते थे कि खादी कपड़े पैनना चाहिए सराब नहीं पीना चाहिए पर ये गांधी जी की एक बात के बिलकुल खिलाब थे ये कहते थे कि देश को अगर आजादी दिलानी है तो वो नॉन बॉयलेंस से नहीं दिलाई जा सकती तो अलूरी, सीताराम, राजू और सारे आदिबासी लोग मिलकर 1920 में एक मुवमेंट स्टार्ट करते हैं जिसका नाम था गॉरिला मुवमेंट इसमें ये लोग क्या करते हैं ये अटेक करते हैं पुलिस स्टेशन्स पर और कई सारे ब्रिटिस ओपिसियल्स को मारने लगते हैं लेकिन अनफॉर्चुनेटली 1924 में क्या होता है कि जो अलोरी सीतराम राजू थे वो पकड़े जाते हैं ब्रिटिस पुलिस के दुआरा और उन्हें मार दिया जाता है लेकिन तब तक वो लोगों के लिए एक फॉक हीरो बन गए थे आज भी गुड़ेम हिल्स के जो लोग है plantation burkers काम किया कर दे थे tea gardens में तो 1859 में क्या हुआ था कि एक inland immigration नाम का एक act पास हुआ था जिसकी मताबद कोई भी plantation burkers without permission के tea garden को छोड़कर नहीं जा सकता था लेकिन जब burkers को पता चला कि गांधी जी ने non-cooperation movement start किया है तो बहुत सारे burkers plantation fields को छोड़कर भागने लगते हैं British police पकड़ लेती है और उन्हें बहुती बुरी तरीके से मारा जाता है तो दोस्तों अभी तक हमने अलग अलग जगों के movement के बारे में देखा हमने cities के movement को देखा गाउं के movement को देखा tribal और plantation workers के movement को देखा तो यहाँ पर हमें क्या देखने को मिला कि लोग गांधी जी के non-cooperation movement को अलग अलग तरीकों से interpret कर रहे थे सब लोग अलग अलग तरीकों से सोच रहे थे सब के लिए सुराज का मतलब अलग अलग था और हमने यह भी देखा कि धीरे धीरे यह movement buoyant होने लगा था यानि कि हिंसा कोने लगा था इसी दौरा 1992 में क्या होता है एक चौरी-चौरा इंसिडेंट होता है चौरी-चौरा एक जगह है गौरफुर्ड डिस्ट्रिक्ट में तो यहां क्या होता है कि बहुत सारी लोग यहां पर सांती पूर्ण तरीके से प्रदसन कर रहे थे यानि कि पीसफु जिसमें कुछ पुलिस्मेन भी मर जाते हैं ये सब बॉयलेंस को देखकर गांधी जी को और बुरा लगता है और भी नॉन कॉपरेशन मुवमेंट को बिड्ड्रॉव कर लेते हैं यानि कि बंद करा देते हैं दोस्तो नॉन कॉपरेशन मुवमेंट के खतम होने के बाद गांधी जी को ये समझ में आ जाता है कि कोई भी मास्ट स्ट्रेकल करने से पहले लोगों को ये पता होना चाहिए कि मूवमेंट किस तरीके से करना है और मूवमेंट का मकसद क्या है ताकि लोग पहले के तरह गलत तरीके से इंटरप्रेट ना करें अब दोस्तों क्या होता है कि कॉंग्रेस के कुछ लीडर्स को ये लगता है कि हमें मास्ट स्टरगल करने की वज़ाए एलक्शन में पाइटिसिबेट करना चाहिए जिससे हम काउंसिल में ही रहकर बृतिस पॉलिसीज को अपोस कर सकते हैं तो इसके लिए दो लीडर्स थे ज ये क्या करते हैं एक पार्टी बनाते हैं जिसका नाम था सुराज पार्टी लेकिन दोस्तो जो जवालनान नेरू थे और जो सुवास चंद्र बॉस थे वो इसमें पाटिस्पेट ही नहीं करते हैं वो कहते हैं कि अगर लोगों को पून सुराज दिलाना है तो इसके लिए और बड़ा स्टर्गल करने की जरूरत है ना कि इलेक्सल लडने की पहला फैक्टर था ग्रेट एकोनोमिक डिप्रेशन हमने इसके बारे में क्लास नाइन्थ में भी पढ़ा था ये स्टार्ट हुआ था 1929 में तो इस ग्रेट एकोनोमिक डिप्रेशन की बज़े से इंडिया के उपर बहुत बुरा इंपेक्ट पढ़ा था पहला कि इस डिप्रेशन के चलते इंडिया में जिस वज़े से जो किसान थे वो अपनी फसले नहीं बेच पा रहे थे और ना ही ब्रिटिसस को टैक्स दे पा रहे थे दूसरा फैक्टर था साइमन कमीशन देखो क्या था कि ब्रिटेन में एक गवर्मेंट थी जिसका नाम था टूरी गवर्मेंट तो ब्रिटेन के गवर्मेंट क्या करती है ये एक कमीशन बनाती है 1927 में इस कमीशन को जो लीड कर रहे थे वो थे सर जॉन साइमन इसलिए इस कमीशन को बोला गया साइमन कमीशन था इंडिया की कंस्टिट्यूशन को रिव्यू करना और कोई चेंजेस को सजेस्ट करना क्योंकि इंडियन लोग पुराने ब्रिटिसर्स के कंस्टिट्यूशन से खुश नहीं थे पर इस कमिशन में एक प्रॉब्लम थी कि इसमें साथ मेंबर थे और तो जब यह कमिशन 1928 में इंडिया आता है तो बहुत सारी लोग इसका वरोध करते हैं चाहे वो कॉंग्रेस हो चाहे वो मुस्लिम लीक हो सारी लोग मिलकर साइमन कमिशन का वरोध करते हैं और जोरो सोरो से नारा लगाते हैं गो बैक साइमन यानि कि साइमन तुम बापस चलेगा इतना अंगामा देकर बिरिटिस गवर्मेंट को लगा कि कहीं सिचुएशन हाथ से न निकल जाए तो उस समय पर बिरिटिस गवर्मेंट का जो बाइस रोय था वो था लॉर्ड इर्विन तो लॉर्ड इर्विन सिचुएशन को कंट्रोल करने के लिए हमें दो अफर देता है पहला ओफर देता है इंडिया के domination status का मतलब लोडर बिन कहता है कि आप इंडिया का domination status ले लो मतलब आप ही लोग रूल करना, आप ही लोग सब कुछ करना लेकिन इंडिया रहेगा Britishers के ये अंडर में और दूसरा ओफर देता है कि हम एक round table conference करेंगे जिसमें इंडिया के future constitution के बारे में discuss करें तो ये दो ओफर देता है लेकिन जो Congress थी वो इन दोनों ओफर से खुस नहीं थी especially जो radicals थे यानि कि जो गरम सुवाव के बैक्ती थे Congress के अंदर जैसे कि जवालला नेहरू और सुबास चंद वोस ये कह रहे थे कि हमें डॉमिनिशन स्टेटस नहीं चाहिए, हमें छोटी मोटी आजादी नहीं चाहिए, हमें पूरी आजादी चाहिए, यानि की पूर्ण सुराज चाहिए इसी बात को इन दिसेंबर 1929 में जब लाहोर में कॉंग्रेस का सेशन होता है तो वहाँ पर पंडे जवालला नेहरू एक रिजॉलूशन पास करते हैं और ओफिसली डिमांड करते हैं पूर्ण सुराज की, यानि की फूल इंडिपेंडेंस की और ये आलान करते हैं कि हम आने वाली 26 जनबरी 1930 को एज़ ए इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेट करेंगे और हम आजाधी की लड़ाई के लिए सपत भी लेंगे पर अबसोस इस बात को जाधा टेंसन नहीं मिलता है और बहुत कमी लोग इ देश वॉल्ट मार्च एंड सिविल डिसविडेंस मूमेंट यह सब देखकर गांधी जी को लगा कि पहले लोगों को एक जुट करना जरूरी है तब जाकर कुछ अच्छा मूमेंट हो पाएगा तो इस समय पर गांधी जी को एक ऐसी चीज की तलास्थी जिससे लोगों को यूनाइट किया जा सके यानि कि लोगों को एक जुट किया जा सके तो यह सारी खूबियां गांधी अब सवाल ये उठता है कि गांधी जी ने नमक में ऐसा क्या देखा जो उन्होंने से पावरफुल सिंबल बना दिया कंट्री को यूनाइट करने के तो इसमें तीन पॉइंट है पहला कि नमक हर कोई इस्तमाल करता है चाये वो अमीर हो चाये वो गरीव हो वो नमक पर काफी साथ टैक्स ले थी इंडियन्स नहीं कर सकते मतलब समझ रहो हमारी नमक पर टैक्स ले रहे थे तो ये समस्या पूरे देश की थी इसलिए गांधी जी नमक को चुना देश को यूनाइट करने के लिए तो गांधी जी क्या करते है 31 जनवरी को एक लेटर लिखते हैं बाईसरो और लॉर्ड रिविन के लिए जिसमें गांधी जी अपने 11 डिमांड्स को रखते हैं जो की सुसाइटी की अलग-लग समस्याओं की उपर थी और गांधी ही ये भी कहते हैं कि अगर हमारी डिमांड्स 11 माज तक नहीं मानी गई तो हम सिविल डिसॉबिडेंस मुवेंट को स्टार्ट कर दें लेकिन दोस्तों जो लॉर्ड रिविन था वो गांधी जी को हलके में ले लेता है मतलब उनकी डिमांड्स को नजर अंदाज कर देता है तो जब गांधी जी की डिमांड्स नहीं मानी जाती है तो गांधी जी अपने 78 ट्रस्टेट बॉलिंटियर के साथ निकल पढ़ते हैं तो ये चलना सुरू करते हैं साबरमती आस्तरम से इन्हें पहुचना था डांडी जो के गुजरात में है ये पूरी यातरा थी 240 माइल्स की तो गांधी जी और उनके वॉलेंटियस पर्डे 10 माईल चलते थे। ये यात्रा पूरे 24 दिन तक चलती है। और फाइनली 6 अपरेल को गांधी जी और अन्य लोग डांडी पहुँच जाते हैं। और वहाँ पर गांधी जी गैर कानूनी तरीके से नमक बनाते हैं। और कानू जो non-cooperation movement था उसमें क्या था कि हमें Britishers के साथ केबल cooperate नहीं करना था केबल इतना ही था वहीं जो civil disobedience movement इसका objective था कि हमें Britishers के साथ cooperate भी नहीं करना है और साथ में हमें उनके कानुनों को भी तोड़ना है जो कि गांधीजी ने नमक कानुन को तोड़का civil disobedience movement की शुरुवात कर दी थी तो उन्हें देखकर देश की अलग अलग जगों पर भी लोग नमक कानुन को तोड़ने लगते हैं लोग foreign clause को बाइकॉट करने लगते हैं लिकर सॉप्स को पिक्ट कर देते हैं और जो पीजेंड्स थे वो चौकिदारी टेक्स देना बंद कर देते हैं और दोस्तों जो ट्राइवल लोग थे वो फॉरेस्ट लॉस को तोड़ देते हैं मतलब जंगलों में गुसना श्टार्ट कर देते हैं एक एक करके जो पॉलिटिकल लीडर्स थे जोके आंदुलन कर रहे थे उनको अरेस्ट करना सुरू कर देती है देखते ही देखते अपरेल 1930 में अब्दुल गफर खान जो की पेसावर में आंदुलन कर रहे थे उनको अरेस्ट कर लिया जाता है और बाद में जाकर मात्मा गांधी जी को भी अरेस्ट कर लिया जाता है ये सब देखकर जनता और भी जादा भड़क जाती है और काफी जाद पॉल्ड ऑफ कर देते ह���ं यानि कि बंद कर देते हैं और एक पैक्ट साइन होता है यानि कि एक समझोता होता है गांधी जी और लॉर्ड इर्विन के बीच में जिसे बोला जाता है गांधी इर्विन पैक्ट यह हुआ था 5th March 1931 में तो इस समझोते में होता क्या है कि गांधी कि जिन पॉलिटिकल लीडर्स को आपने अरेस्ट करके रखा है उनको रिलीज करना होगा तो ये दोनों लोग राजी हो जाते हैं तो ये ताल गांधी इर्विन पैक तो गांधी जी जाते हैं लंदन सेकंड राउंड टेवल कॉंफरेंस को अटेंड करने के लिए लेकिन अफसोस भागा पर गांधी जी की कोई भी बात नहीं सुनी जाती है यानि कि गांधी जी जब लोड़कर आते हैं तो वो काफी जादा disappointed रहते हैं कि जो गफर खान थे और जो जवालन नेरू थे वो अभी भी जेल में थे और इन लोगों ने कॉंग्रेस पार्टी को भी इल्लीगल डिकलियर कर दिया था मतलब गांधी जी की गैर मौजूदगी का ब्रिटिसस ने बहुत अच्छा फायदा उठाया था और गांधी जी डिसाइड करते हैं कि हम फिर से सिबिल डिसबिडेंस मुमेंट को लॉच करेंगे लेकिन अफसोस 1934 तक जो मुमेंट था वो अपना सारा मुमेंटम लूज कर चुका था How participants were the movement? मतलब इस topic में हम देखेंगे कि जो अलग-अलग groups थे उन्होंने इस movement में किस-किस तरीके से participate किया था तो सबसे पहले हम देखते हैं rich peasants के बारे में मतलब कि जो रहीस किसान थे जैसे कि partydars of Gujarat, yards of UP तो इनके साथ क्या था? ये जो लोग थे वो commercial crops होगाते थे मतलब पैसे कमाने के लिए फसले होगाते थे तो जब economic depression आता है तो जो ये rich peasants थे वो बहुत ज़दा affect होते हैं क्योंकि डिप्रेशन के चलते फसलों के दाम गिर गए थे इसलिए इनकी इंकम भी कम हो गई जिस कारण से जो रिच पीजेंट्स थे वो बृतिसर्स को टैक्स और रिवेन्यू पे नहीं कर पा रहे थे तो जब गांधी जी ने सिविल डिसॉबिडेंस मुवमेंट को स्टार्ट किया तो ये लोग भी काफी ज़ादा पाटिसिपेट करते हैं इस मुवमेंट में और ये क्यों पाटिसिपेट करते हैं क्योंकि येने हाई रिवेन्यू को कम करवाना था कि जो Civil Disobedience Movement होता है वो बंद कर दिया जाता है 1931 और उनका जो Revenue Rate था वो भी कम नहीं हुआ था तो जब गांधी जी ने Civil Disobedience Movement को फिर से लॉच किया तो इन लोगों ने 1932 में फिर से पाटिस्पेट नहीं किया तो आब हम देखते हैं Poor Peasants के बारे में यानि कि जो Poor Peasants थे यानि कि जो गरीब किसान थे तो जो पूर पीजेंट्स थे वो क्या करते थे उनके पास खुद की जमीन तो होती नहीं थी इसलिए भे बड़े बड़े लेंडलोड्स यानि कि जो बड़े बड़े जमीदार होते थे उनकी जमीन पर खेदी करते थे और उनके बदले में उन्हें रेंट देते थे तो जो ए बकाया rent है उसको माफ कर दे लेकिन दोस्तों जो congress थी वो इस no rent campaign को support नहीं कर रही थी क्योंकि ये इन rich peasants यानि की जो बड़े बड़े जमीदार थे उनसे बिगारना नहीं चाह रही थी क्योंकि अगर ये poor peasants को support करेंगे कहीं जो बड़े बड़े landlords हैं वो नाराज ना हो जाएं इस डर से ये poor peasants को support ही नहीं करते अब हम देखते हैं कि जो business class थी उसने किस तरीके से और क्यों participate किया था तो दोस्तों जो business class थी जैसे कि जो merchants थे इंडरेस्टी लिस्ट थे इनकी वो समय पर दो समस्याएं चल रही थे पहली कि जो बृतिस गवर्मेंट थी उसने ऐसी पॉलिसीज बना रखी थी जो इनकी बिजनेस एक्टिविटीज को रिस्ट्रेट करती थी मतलब ऐसे कानून बना रखे थे जिससे बिजनेसमन खुलके बिजनेस नहीं कर पा रहे थे दूसरी समस्या थी कि इंडिया में बाहर से foreign goods import होता था जिस वज़े से जो business class थी उसे बहुत ज़ाधा loss होता था क्योंकि जो foreign goods होते थे वो बहुत सस्ते होते थे तो ऐसे में इनका सामान तो कोई खरीदेगा ही नहीं इसलिए जो business class थी वो ये चाह रहे थी कि जो foreign goods का import हो रहा है इंडिया में वो रोक दिया जाए इसके लिए जो business class थी वो दो federation भी बनाती है जिसका नाम था Indian Industrial and Commercial Congress जो की 1920 में बनाई गई थी और दूसरी थी Federation of Indian Chamber of Commerce and Industries यानि की FICCI जो की 1927 में बनाई गई थी और दोस्तो दो बड़े बड़े इंडस्ट्री लिश्ट थे जो की बिजनिस क्लास को लीड कर रहे थे जिनका नाम था परसुत्तम दास ठाकूर दास और जीडी बिरला तो जब 1930 में Civil Disobedience Movement को स्टार्ट किया जाता है तो जो बिजनिस क्लास थी वो बहुत ज़ादा पाइटस्पेट करती है ये क्या करते हैं जो बाहर से सामान इंपोर्ट होता था उसे खरीदना और बेचना बंद कर देते हैं और साथ में ये मुमेंट को फाइनेंसली सपोर्ट भी करते हैं मतलब मुमेंट के लिए पैसे वगैरा देते हैं अब हम देखते हैं Industrial Working Class को तो दोस्तो जो Industrial Working Class थी वो Civil Disobedience Movement में ज़्यादा पाटिसिपेट ही नहीं करती है Except Nagpur Region और जो पाटिसिपेट करते हैं वो गांधी जी के प्रोग्राम्स को फॉलो करते थे लाइक By-Court Foreign Goods Program इन प्रोग्राम्स को फॉलो करते थे तो उनके लिए उनका मुमेंट ये था कि उनको जो कम बेजेस मिलती हैं वो बढ़ा दी जाएं और पूर बर्केंग कंडिसन्स हैं उनको इंप्रूव किया जाएं तो कॉंग्रेस ये सोच रही थी कि कहीं बर्कस को सपोर्ट किया इसलिए कॉंग्रेस बर्कस को सपोर्ट करी नहीं रही थी यानि कि महिलाओं ने किस तरीके से पाट्सपेट किया था तो वुमेंस ने भी खुब पाट्सपेट किया था इन फेक्ट जब गांधी जी डांडी मार्चेस कर रहे थे तो जब भी वो थोड़ा बहुत रुकते थे तो हजारों महिलाएं घर से बाहर आ जाती थे गांधी जी को सुनने के लिए प्रोटेस्ट मार्चेस में, इलीगल सॉल्ट मैनिफेक्चरिंग में और इन सब के लिए कई सारी महिलाएं जेल भी गई थी The Limits of Civil Disobedience Movement अब हम देखते हैं कि Civil Disobedience Movement में कमी कहां रह गई थी तो दोस्तों ऐसा नहीं था कि Civil Disobedience Movement में सब ने Participate किया हो बलकि दो ऐसे Groups भी थे जिन्नोंने इस Movement में Participate ही नहीं किया था पहला था Dalits का और दूसरा था Muslims का इन दोनों Groups ने Participate ही नहीं किया था तो सबसे पहले हम देखते हैं Dalits के बारे में कि उन्होंने क्यों Participate नहीं किया था तो इसका reason था कि Dalits ने इसलिए participate नहीं किया था क्योंकि जो Congress थी वो Dalits को support नहीं कर रही थी बलकि ignore कर रही थी क्योंकि Congress को ये डर था कि कहीं अगर उन्हें Dalits को support किया तो जो high class Hindu हैं वो offend ना हो जाए यानि कि बुरा ना मान जाए क्योंकि उस समय पर जो high class Hindu थे उनका बहुत जादा participation था movement के अंदर इसलिए Congress Dalits को support करके इन high class Hindus के साथ बिगारना नहीं चाह रही थी और दोस्तो यही वो reason था जिस बजे से जो Congress थी वो Dalits को support ही नहीं कर रही थी लेकिन दोस्तो भले ही Congress support नहीं कर रही थी लेकिन दोस्तो जो गांधी जी थे वो पूरा support कर रहे थे Dalits लोगों को गांधी जी कहते थे कि जो Dalits हैं वो Harijans हैं यानि कि भगवान की संतान है और गांधी जी ये भी कहते थे कि अगर हमने Society से इस Untouchability यानि कि छुआछूत की जो सोच है उसे नहीं बदला तो हमें कभी भी सुराज नहीं मिलेगा इसलिए जो दलित्स लीडर थे वो एक सेपरेट एलेक्टोरेट की मांग कर रहे थे मतलब एक अलग से एलेक्टोरेट की मांग कर रहे थे दलित्स के लिए तो जो बियार अमेडकर जी थे वो भी दलित्स को काफी जाधा सपोर्ट करते हैं कि हाँ दलित्स को सेपरेट एलेक्टोरेट मिलना चाहिए इसके लिए बियार अमेडकर जी ने दलित्स के लिए एक ओर्गनाइजिसन भी बनाई थी जिसका नाम था डिप्रेश्ट क्लास अस गांधी जी सपोर्ट कर रहे थे दलिस को नो डाउट पर गांधी जी को इस बात से बुरा लग रहा था कि सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग की जा रही है क्योंकि गांधी जी लोगों को जोड़ना चाते थे ना कि तोड़ना चाते थे गांधी जी का मानना ये था कि दलिस को अगर सेपरेट इलेक्टोरेट दे दिया गया तो इससे सुसाइटी में डिस इंटिग्रेशन और बढ़ेगा ना कि कम होगा सारी लोग गांधी जी की बहुत जाधर respect करते थे इसलिए भी मान जाते हैं फिर क्या होता है एक PUNA PACT साइन होता है September 1932 में मतलब कि एक समझोता होता है अम्बेडकर जी और गांधी जी के बीच में जिसमें गांधी जी प्रॉमिस करते हैं कि मैं separate electorate तो नहीं पर मैं depressed class के लिए seat reserved जरूर करवा दूँगा provisional and central legislative council में तब ही आप देखते होंगे कि जो backward class होती हैं जैसे कि SC, ST तो इन्हें आज भी reservation मिलता है तो ये पूना पैक्ट के ही कारण हो पाया था अब हम बात करते हैं मुस्लिम कमोनिटी की तो मुस्लिम कमोनिटी ने भी सिविल डिसोबिडेंस मुवमेंट में पाटिस्पेट नहीं किया था अब क्यों पाटिस्पेट नहीं किया था इसके पीछे कारण थे तब हिंदूज और मुस्लिम एक साथ स्टरगल कर रहे थे मतलब यूनाइटेट थे क्यों बढ़ने लगता है क्योंकि रिलीजन के बेसिस पर यानि कि धर्म के बेसिस पर अलग-लग ओर्गनाइजेशन बढ़ने लगते हैं जैसे कि हिंदू के लिए एक ओर्गनाइजेशन था हिंदू महासवा करके और मुस्लिम्स के लिए एक ओर्गनाइजेशन था मुस्लिम मुस्लिम कमुनिडी के एक लीडर थे जिनका नाम था मुहम्मद अली जिन्ना तो ये डेमांड करते हैं एक सेपरेट एलक्टोरेट की बट जो कॉंग्रेस थी वो इसके लिए राजी नहीं होती है वो कह रही थी कि सब के लिए जॉइंट एलक्टोरेट होना चाहिए और बेंगाल और पंजाब में जितनी मुस्लिम पॉपुलेशन है उसी के शाप से सीट मिले मगर कॉंग्रेस ने इन कंडिशन्स को नहीं माना जिस वज़े से कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच में दूरिया बढ़ती गई इसलिए जब 1930 में गांधी जी ने सिविल डिसोबिडेंस मुवमेंट स्टार्ट किया तब मुस्लिम कमोनिटी ने पाट्सपेट ही नहीं किया था मतलब सामूहिक अपनेपन का भाव कैसे पैदा होता है तो इसमें पाँच पॉइंट है पहला United Struggle उस समय पर क्या था कि सब लोगों का एकी मकसद था कि इंडिया को ब्रिटिसर्स से आजात कराना तो यानि कि यहाँ पर सबका एकी विजन था तो सबी श्टगल करते हैं जिस बज़े से लोग यूनाइट होने लगते हैं लोगों में यूनिटी की फीलिंग्स आने लगती हैं दूसरा है कल्चरल प्रोसेसिस दूसरों लोगों ने अपने देश के कल्चर के साथ रिलेट करना श्टार्ट कर दिया था बहुत सारी फॉक स्टोरीज, फॉक सॉंग, रीजिनल लैंग्वेज इन सब के चलते लोग अपने कल्चर के साथ जुड़ने लगते हैं यानि कि अपने कल्चर के साथ रिलेट करने लगते हैं तीसरा है फिगर्स और इमेजिस 18th और 19th सेंचुरी में जो आर्टिस्ट थे वो कंट्रीज को रिप्रेजेंट करते थे अलग-लग एलोगोरीज के तुरू जैसे की जर्मनी की एलोगोरीज थी जर्मेनिया, फ्रांस की एलोगोरीज थी मेरियन, तो इस तरीके से कंट्रीज को रिप्रेजेंट किया जाता था, अलग-लग फिगर्स और पैंटिंग्स के त एक गीत भी लिखा था जिसका नाम था बंदे मात्रम इस सॉंग को उन्होंने अपनी नोबल आनन्द मट में भी इंक्लूट किया था इन फेक्ट जब 1905 में सुदेशी बूमेंट चला था तब बड़ चड़ के लोगों ने बंदे मात्रम सॉंग को गाया था और बाद में जाकर अविनेंदर नाट टैगोर ने भारत माता की पेंटिंग बनाई जिसमें जो भारत माता थी काम, कमपोष्ट और डिवाइन और स्पीरिचुल दिखाई दे रही थी तो फ्लेग की बजे से भी इंडिया लोगों में सेंस आफ कलेक्टिंग ब्लॉगिंग नेस जाकती है क्योंकि जो फ्लेग होता है वो पूरी फंट्री को रिप्रेजेंट करता है तो हमारे देश के लिए भी अलग लग फ्लेग बन रहे थे जैसे की पेंगाल में जब सुदेशी मूमेंट हुआ तो एक फ्लेग बनाया गया था जिसमें तीन कलर थे ग्रीन, यलो और रेड और इसमें उपर की साइट एट लोटस थे जो की एट प्रोविंसीज को दर्सा रह रेट, ग्रीन, वाइट तीन कलर थे और बीच में एक स्पिनिंग वील था जो की सेल्फ हेल्प को रिप्रेजेंट करता था फिर तार री इंटरपेटेशन ओफ हिस्ट्री जब लोगों को समझ में आया की एंसियन टाइम में हमारा देश बहुत डबलब्ट था हर फिल्ड में चाय वो आर्ट और एग्रीकल्चर हो रिलीजन और कल्चर हो हमारी हिस्ट्री बहुत गजब की थी लेकिन जब से ये अंग्रेज आये हैं यानि की गिरता चला गया है तो अगर हमें बापोस से पहले जैसी तरक्की चाहिए तो सबसे पहले तो हमें बृतिस रूल से इंडिया को आज़ादी दिलानी होगी तो इस तरीके से लोगों में अपनी पन का भाव आने लगता है और बाद में जाकर हमारे देश को आज़ादी मिल जाती है I hope आपको ये वीडियो पसंद आई होगी मिलते हैं next video में तब तक के लिए take care bye bye और हाँ instagram पर follow कर लेना link description में