[संगीत] [संगीत] जिना साहब जो रियासतें पाकिस्तान के साथ मिल रही है उन्हें आपसे क्या मिलेगा र हाने आई मेड माय पोजीशन वेरी क्लियर मैं उन्हें हिंदुस्तान से कई ज्यादा सहूलियत देने के लिए तैयार हूं एंड यो हाइनेस आपके लिए मैं यह साधे कागज पर साइन कर रहा हूं पाकिस्तान से शामिल होने के लिए जो शर्त आप इसमें डालना चाहते हैं डाल ले अगर जोधपुर पाकिस्तान के साथ मिल जाए तो कराची पोर्ट हमें इस्तेमाल करने दे हथियारों का फ्री इंपोर्ट हो और सबसे अहम बात तो यह है कि हमारे जोधपुर से आपके सिंध के हैदराबाद जाने वाली रेलवे लाइन पर हमारा अधिकार हो एनीथिंग फॉर यू यो हैनस युवराज जोधपुर की तरह आपकी भी शरद हमारी शरद से मिलेगी तो क्या जोधपुर की तरह जैसलमेर भी पाकिस्तान से नहीं मिलेगा हम पाकिस्तान से जुड़ सकते हैं जिना साहब पर हम हमारी एक कंडीशन है जब भी हमारे राज्य में हिंदुओं और मुसलमानों का झगड़ा होगा तब क्या आप न्यूट्रल रहेंगे यह कैसा सवाल है महाराजा कुवार हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई झगड़ा होगा फसाद होगा यह ऐसी बात सोचना भी फिजूल है यर हाईनेस एस लंग एस द सेंट्रल गवर्नमेंट इन इंडिया इस वीक वी आर बोथ स्ट्रंग आई साइंड न द डॉटेड लाइंस यू फिल इन द कंडीशन मैं शुक्र गुजार हूं चना साहब का कि इतना बड़ा प्रस्ताव उन्होंने मेरे सामने रखा मैं मैं बहुत जल्द सोचकर अपना फैसला आपको बता दूंगा अगर पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिना ने यह कागज छीन ना लिया होता तो क्या होता आज जिसे हम हिंदुस्तान कहते हैं उसका चेहरा कुछ ऐसा हो सकता था यह हिंदुस्तान के बनने की वह कहानी है जब तक कहीं नहीं गई स्वागत है आपका प्रधानमंत्री में प्रधानमंत्री एक ऐसा कार्यक्रम जिसमें हम आपको वह कहानियां सुनाएंगे जिनका जिक्र किताबों में नहीं मिलेगा आजाद हिंदुस्तान की वह कहानियां जो समझे बगैर जो सुने बगैर हम अपने देश को पूरी तरह जान नहीं पाएंगे पहले एपिसोड की शुरुआत करने के लिए चलते हैं आजादी से पहले 3 जून 1947 आजाद भारत की शक्ल कैसी होगी यह बात इसी दिन तय हुई [संगीत] दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियो में 3 जून 1947 को गहमागहमी बढ़ गई पता चला कि भारत के वॉइस रॉय ऑफ गवर्नर जनरल लुई माउंट बैटन आने वाले हैं शाम को लॉर्ड लुई माउंट बैटन तो आए ही उनके साथ थे जवाहरलाल नेहरू बतौर सिखों के नेता सरदार बलदेव सिंह और मुसलमानों के लिए भारत का विभाजन कर अलग देश मांगने वाले मोहम्मद अली जन्ना इटन इबल ट फुल अगी नी पन द प्र ऑ इंडिया देर कैन बी नो क्वे ऑ कोस एनी र्ज एरिया इन वन कमटी मैरिटी ू लिव अग दे विल अंडर ए गमें इ अनिटी ओनली अल्टरनेटिव टू कोर्जन इ पार्टीशन आजादी के बाद दो देश बनेंगे हिंदुस्तान और पाकिस्तान इसका ऐलान सबसे पहले वाइस राय माउंट बट ने किया और कांग्रेस इस बात से रजामंद है उसका ऐलान जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर किया नेहरू के लिए बहुत इमोशनल लमा था भारत के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए मुझे खुशी नहीं हो रही हां मुझे इसमें संदेह भी नहीं है कि इस समय यही एक रास्ता है हमारे पास भारत के किसी भाग का स्वेच्छा से संघ से बाहर रहने का प्रस्ताव हम सबको अखरे फिर भी मैं इस निश्चय पर पहुंचा हूं कि दूर दृष्टि से भी मौजूदा फैसला ठीक है भारत को बांट के दो मुल्क बनाने की इस योजना को इस प्लान को माउंट बैटन प्लान कहा जाता है लेकिन इस माउंट बैटन प्लान से ऐसे बहुत लोग परेशान होने वाले थे जो भारत को बिखरते भारत को पटते देख नहीं सकते थे लेकिन इस ऐलान के एक दिन बाद ही इस कहानी में एक बहुत बड़ा मोड़ आया 4 जून 1947 तब के लेजिस्लेटिव असेंबली और आज के संसद भवन में माउंट बैटन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कितनी अहम होने वाली थी इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वॉइस माउंट बैटन 3 जून की रात देर तक प्रेस कॉन्फ्रेंस की मौक ड्रिल करते रहे थे दुनिया भर से 300 पत्रकार माउंट बैटन से भारत के भविष्य के बारे में सवाल करने के लिए इकट्ठा हुए थे आई सिंसेरली मीन इट न आ से दैट पावर व बी ट्रांसफर्ड कंपलीटली बाय 1947 वे है बिन जून 1948 द डेट ऑफ ट्रांसफर ऑफ पावर बाय ब्रिटन इन इंडिया व बी अराउंड ऑगस्ट 1947 आई है ऑलरेडी बट माय स्टीमर टिकट फॉर ऑगस्ट 15 सो दिस वल बी द डेट ऑफ ट्रांसफर यह बात चौकाने वाली इसलिए थी कि पहले अंग्रेज जून 1948 तक भारत छोड़कर जाने वाले थे और अब माउंट बेटन ने यह घोषणा कर दी थी कि महज 72 दिनों में बटवारा भी होगा और आजादी भी मिल जाएगी आजादी का देर या सवेर आना तो तय था लेकिन 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने की घोषणा के साथ ही एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ जिसका जवाब ढूंढे बगैर आजादी बे माने थी सवाल यह था कि आखिरकार कितने मुल्क आजाद हो रहे थे दो या फिर [संगीत] 565 15 अगस्त 1947 15 अगस्त 1947 को दो देश आजाद हो रहे दो या 565 इतिहास की किताबों में आपको इस बात का जिक्र बहुत कम मिलेगा लेकिन इस देश की आजादी से कुछ ही दिन पहले महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के सामने दो समस्याएं बहुत बड़ी खड़ी थी पहली इस सांप्रदायिक हिंसा को कैसे रोका जाए और दूसरी भारत की खूबसूरत चेहरे को बिगड़ने से कैसे रोका जाए और यह दूसरी फिक्र का कारण था लैप्स ऑफ पैरामाउंट से एक तरफ तो हम यह सुनते आ रहे हैं कि अंग्रेजों ने पूरे भारत को एक सूत्र में बांध दिया था फिर यह 565 अलग-अलग देश की बात कहां से आई दरअसल जिस ब्रिटिश इंडिया की बात हम कर रहे हैं उसमें छोटे मझोले और बड़े सब मिलाकर करीब 565 रजवाड़ थे इन रियासतों पर अंग्रेजों का परोक्ष शासन था इन राजाओं की अपनी फौज अपनी पुलिस अपना कानून और कुछ की अपनी करेंसी तक होती थी इन रजवाड़ों ने ब्रिटेन की राजगद्दी की गुलामी कबूल कर ली थी जिसे पैरामाउंट सी कहते थे अब जब अंग्रेज जा रहे थे तो उन्होंने कहा कि पैरामाउंट सी भी खत्म हो जाएगी और सभी रजवाड़ अपना भविष्य खुद तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे राजस्थान में सिरोही रियासत हुआ करती थी सिरोही रियासत के मौजूदा उत्तराधिकारी रघुवीर सिंह जी को 1947 की घटनाक्रम याद है एक बात की मैं तारीफ करता हूं हालांकि वह विदेशी थे कि जब ब्रिटिश एक्ट ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पास किया इन दैट दे व 100% फेर उन्होंने क्या पास किया आवर ट्रीटी राइट्स विद द इंडियन स्टेट्स आर हियर बाय टर्मिनेटेड एंड दे रिवर्ट टू स्टेटस को एंटी जो इनकी परिस्थिति हमारे साथ संधि करने से पूर्व थी वहां वह वापस पहुंचते हैं मीन दे बिकम सोवन इंडिपेंडेंट स्टेट्स उन्होंने हमारे साथ उसके अंदर कहीं दगा खोरी नहीं की मैं तो नहीं मानता हूं ट्रीटी एग्रीमेंट समझौते यह सब तो सही है लेकिन रजवाड़ों पर ब्रिटन की पूरी हुकूमत रही लेकिन जाने से पहले ब्रिटेन ने अपना सु बदल लिया उन्होंने कहा कि वो रियासतें जो खुद में आजाद रहना चाहती हैं वह आजाद रह सकती हैं इसका नतीजा यह हुआ कि हमें आजादी तो मिल रही थी लेकिन देश बिखर रहा था और पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिना इस बात का पूरा फायदा उठाने में लग गए सर नेहरू और कांग्रेस रियासतों की आजादी के हक में नहीं है मुस्लिम लीग की क्या राय है इस बारे में नेहरू को दिन में सपने देखने की बुरी आदत है हमारे लिए लैप्स ऑफ पैरामन स का सीधा मतलब यह है कि आप चाहे तो पाकिस्तान में रहिए या हिंदुस्तान में और अगर आप आजाद रहना चाहते हैं तो आजाद रहिए ज्योग्राफिकल प्रॉक्सिमिटी या राय शुमारी का कोई मतलब नहीं है जैसा कि कांग्रेस कह रही है जो फैसला करेंगे राजा करेंगे नवाब करेंगे ब्रिटेन की ट्रीटी उन्हीं के साथ थी जिना हिंदुस्तान की रियासतों को बगावत करने के लिए उकसा रहे थे उनका मकसद था हिंदुस्तान हमेशा कमजोर रहे इस हालात में एक ऐसे व्यक्ति थे जो हिंदुस्तान की मदद कर सकते थे और वो थे लॉर्ड लुई माउंट बैटन दरअसल वॉइस रॉय माउंट बैटन भविष्य में जीने वाले व्यक्ति थे उन्हें इस बात की बहुत फिक्र थी कि आने वाली पीढ़ी उन्हें किस नजर से देखेगी बंटवारे की घोषणा से पहले ही चारों तरफ खून खराबा हो रहा था सिर्फ कोलकाता शहर में ही 5000 लोग मारे गए थे माउंट बैटन को ऐसा लगा कि इस खून खराबे के लिए इतिहास उन्हें भी जिम्मेदार ठहराए वीपी मेनन वॉइस रॉय के सलाहकार थे मेनन माउंट बैटन के इस दर्द को जानते थे मेनन ने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स में एक घटना का जिक्र करते हुए कहा मैंने माउंट बटन से कहा कि बंटवारे के घाव पर वह मरहम लगा सकते हैं अगर इन रियासतों को वह भारत में मिलाने में मदद करें भारत की आने वाली पीढ़ियां उन्हें भारत को जोड़ने वाले शख्स के रूप में देखेंगे मुझे लगता है कि यह बात भावुक माउंट बेटन को छू गई सर अभी तो हमने ट्रांसफर ऑफ पावर का ऐलान भी नहीं किया है और 8000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं अगर हमने इसे रोकने की कोशिश नहीं की तो आज की पीढ़ी तो क्या आने वाली पीढ़ी भी हमें इसके लिए जिम्मेदार ठहराए गी सर अभी तो सिर्फ पंजाब और बंगाल में यह राइट्स फैले अगर प्रिंसली स्टेट में फैलेंग तो हम क्या करेंगे सो वड सजेस्ट सर यूल हैव टू इंटरनप एनी फदर फ्रेगमेंटेशन ऑफ इंडिया य आ सजेस्टिंग ट आई ट्रांसफर 560 प्रिंसली स्टेटस टू द डमिन ऑफ इंडिया आई डोंट थिंक सदा पटेल और नेरो एनी अवर लीडर ऑफ इंडिया ड एक्सेप्ट दिस प्रपोजिशन सर जितना मैं इन लीडर्स को जानता हूं उसके हिसाब से आपके किसी भी रोल से उन्हें कोई तराज नहीं हो सकता इनफैक्ट इंडिया को एक रखने के लिए यह लोग कुछ भी कर सकते हैं सर अगर आप इन राजाओं को डोमिनेट ऑफ इंडिया में लाने में सफल रहे तो हमारे हिंदुस्तान का भविष्य मजबूत रहेगा और आपके इस रोल के लिए हमारा हिंदुस्तान आपको हमेशा याद रखेगा लेट मी थिंक जल्द ही वॉइस रॉय माउंट बैटन ने अपनी सहमति दे दी सरदार पटेल से वॉयस रॉय माउंट बैटन की मुलाकात हुई उधर जवाहरलाल नेहरू ने अपनी अंतरिम कैबिनेट से वॉइस रॉय माउंट बैटन को भारत सरकार और रियासतों के बीच मध्यस्थ बनाने की रजामंदी ले ली बिकॉज ही वाज मेंबर ऑफ द ब्रिटिश रॉयल इसलिए इंडियन स्टेट्स के रूलर को उनके साथ इंटरेक्ट करना उनसे घनिष्ठता घनिष्ट दोस्ती रखना व स्वाभाविक था एंड देर फर दे वड रिलाई मोर इन हिम देन इन अनदर गवर्नर जनरल और वाइस लॉर्ड माउंट बैटन हिंदुस्तान के पक्ष में खड़े हो गए उससे हिंदुस्तान का पलड़ा तो भारी हो गया लेकिन वही व्यक्ति जिन्होंने लॉर्ड माउंट बटन को मनाया था जिन्होंने उनको राजी किया था वीपी मेनन उनमें एक डर सा बैठ गया देश आजाद हो रहा है और तुम रिटायर होकर आजाद होना चाहते सर 30 साल से काम कर रहा हूं कभी सोचा भी नहीं था कि आजाद भारत में सांस ले सकूंगा पर अब यह सपना पूरा हो गया तो सोचा कि अब रिटायरमेंट ले लेना चाहिए वैसे आप जानते भी हैं कि पूरी उम्र मैंने अंग्रेजों के साथ काम किया है मैंने अंग्रेजों की नौकरी तुम्हारी तरह सरकारी नौकरी करने वाले हजारों हिंदुस्तानियों की मजबूरी थी अब यह देश तुम लोगों की मदद के बिना नहीं चल सकता यह वक्त थकने का और रिटायर होकर रास्ते से अलग हटने का नहीं सर क्या आप हम पर 100% भरोसा कर पाएंगे मैनन तुम जानते हो अंग्रेज जिस हाल में हिंदुस्तान आए थे उसी हाल में हिंदुस्तान को छोड़ के जा रहे हैं एक टूटा हुआ बिखड़ हुआ भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक कितने राजा महाराजा है यही करीबन 565 या 564 नियत क्या है उनकी इनमें से सैकड़ों एक आजाद मुल्क बनने का ख्वाब देख रहे हैं उन्हें अंग्रेज चाहिए ब्रिटेन की गुलामी उन्हें मंजूर है लेकिन हमारे साथ बैठना वो अपनी तहीन समझते हैं ऐसे लोगों को भारत का भाग्य विधाता नहीं बनने देंगे और एक बात याद रखना बनन 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो रहा है लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक को एक धागे में बांधने का काम हमको साथ मिलकर करना है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी को एक सूत्र में बांधना यही सबसे बड़ी चुनौती थी 565 राजा रजवाड़ थे और उनमें से ज्यादातर बड़े रजवाड़ अपनी रियासत को आजाद देश बनाने का सपना देख रहे थे भारत की लोकशाही से उन्हें डर लग रहा था उन राजाओं को लग रहा था कि उनकी सारी आजादी छिन जाएगी सरदार पटेल जवाहरलाल नेहरू और माउंट बैटन की देखरेख में वीपी मेनन ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन यानी रियासतों के विलीनीकरण के कागजात तैयार किए राजा महाराजाओं को सबसे पहले इन्हीं कागजात पर हस्ताक्षर करने को कहा गया इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन साइन करने को कहा यह उनको हिंदुस्तान में शामिल करने का एक कांट्रैक्ट था लेकिन राजा महाराजा के इरादे कुछ और थे वह अपनी ही आजादी के ख्वाब देख रहे थे यह देखिए सुदूर दक्षिण का यह हिस्सा तब यह त्रावणकोर था 11 जून 1947 को त्रावणकोर ने खुद को आजाद संप्रभुता संपन्न देश बनाने का ऐलान कर दिया समृद्ध त्रावणकोर रियासत के बगावती ऐलान के ठीक एक दिन बाद 12 जून 1947 को हैदराबाद ने विरोध का बिगुल बजा दिया 12 जून 1947 को हैदराबाद ने अपनी रियासत को 15 अगस्त के बाद आजाद मुल्क बनाने का लान किया हैदराबाद के अलग होने का मतलब था पूरे दक्षिण भारत का संबंध उत्तर भारत से टूट जाता संयुक्त स्वतंत्र भारत का सपना बिखर रहा था हालात की गंभीरता को देखते हुए रियासती मामलों के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया गया सरदार उसके मंत्री बने और वीपी मेनन सेक्रेटरी मंत्री बनने के बाद 5 जुलाई 1947 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए इन राजाओं से संपर्क साधा यह बस एक सहयोग है कि कुछ लोग रियासतों में रह रहे हैं और कुछ ब्रिटिश इंडिया लेकिन हमारा खून एक है और हमारे हित भी एक ही है हमें टुकड़ों में कोई नहीं बांट सकता हमारे बीच कोई सरद बाधा नहीं बन सकती इसलिए मेरा सुझाव है कि हम दोस्तों की तरह साथ बैठकर कानून बनाए ना कि बेगानों की तरह समझौते करें मैं रियासत के राजाओं और वहां की प्रजा को कांस्टीट्यूएंट असेंबली की सभा में आमंत्रित करता जय हिंद पटेल राजाओं को नवाबों को बहुत नरमी से समझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन सरदार पटेल जिन लोगों के विचार में जिन लोगों की सोच में बदलाव लाने की उम्मीद कर रहे थे वहां कुछ नहीं बदला उल्टा वो राजा वो नवाब जो कंसीट एंट असेंबली में भी शामिल हो चुके थे वो भी अब इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन साइन करने से कतरा रहे थे 15 अगस्त को सिर्फ 4 दिन बाकी थे अभी भी ज्यादातर बड़ी रियासतें हिंदुस्तान में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थी अब इस हाल में पूरा दार बदार माउंट बैटन के हाथ में था माउंट बैटन पर नेहरू पटेल और मेनन ने बहुत बड़ा दांव खेला था इनका दांव सही बैठेगा या नहीं इसकी परीक्षा 25 जुलाई 1947 को होनी थी उस दिन एडमिरल लॉर्ड माउंट बैटन ने अपने सारे तमगे लगाए ब्रिटेन के राज परिवार से अपने रिश्ते के तमाम प्रतीकों का इस्तेमाल किया और वॉइस रॉय हाउस से निकले उस वक्त के लेजिस्लेटिव काउंसिल की ओर जिसे अब संसद भवन कहते हैं लेजिस्लेटिव काउंसिल हाउस में 100 से ज्यादा राजा महाराजा नवाब माउंट बैटन का इंतजार कर रहे थे माउंट बैटन उस दिन देसी राजाओं को संबोधित करने वाले थे दिस इज पेप्स द लास्ट मीटिंग व्च आई एम गोइंग टू हैव विद द चैंबर ऑफ प्रिंसेस द डेट ऑफ ट्रांसफर ऑफ पावर एज बीन फिक्स्ड फॉर 15th ऑफ ऑगस्ट यू मस्ट एक्ट फास्ट लेट अस फेस द फैक्ट्स यू कैन नॉट रन अवे फ्रॉम द डोमिनियन गवर्नमेंट व्हिच इज योर नेबर एनी मोर दैट यू कैन रन अवे फ्रॉम योर सब्जेक्ट्स फॉर हुज वेलफेयर यू आर रिस्पांसिबल फॉर जोधपुर के तत्कालीन राजा हनुमंत सिंह की आधिकारिक जीवनी लिखने वाले जोधपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह राठौर 25 जुलाई 1947 के दिन को भारत के एकीकरण में सबसे अहम मानते हैं माउंट बेटन ने एक्टेंपोर स्पीच दिया और कहते हैं कि वह स्पीच माउंट बेटन के जीवन का एक सबसे महत्त्वपूर्ण स्पीच था जिसमें माउंट बेटन ने यह नहीं कहा कि आप हिंदुस्तान में रहो या पाकिस्तान में रहो उसने तो एडवांटेजेस बताए लाभ क्या होगा ज्यादातर देशी रियासतें जो है जो टेरिटरी हिंदुस्तान में रहेगी उसी में है और ज्योग्राफिकल भौगोलिक स्थिति को देखते हुए और जनता के हित को ध्यान में रखते हुए आप अपना विलन ण करें तो संकेत क्लियर था कि आप डोमिनियन ऑफ इंडिया में जो है अपना विलीनीकरण करें माउंट बटन के रुख से भारत को फायदा तो काफी हुआ जैसे ही राजा महाराजाओं ने देखा कि उनको ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलने वाली काफी रियासतों ने भारत में शामिल होने का फैसला किया लेकिन इससे भारत की एकता को बनाए रखने की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई थी देश की सबसे समृद्ध रियासत हैदराबाद ने अपनी आजादी का ऐलान 12 जून को कर दिया था हैदराबाद के निजाम के तेवर अभी भी नहीं बदले थे भोपाल के नवाब का बगावती रुख उन्हें पाकिस्तान की तरफ खींच रहा था और पश्चिम में जूनागढ़ और जोधपुर ने नींद हराम कर रखी थी जोधपुर तो वह रियासत थी जिसकी सीमा प्रस्तावित पाकिस्तान से लगती थी 2 अगस्त आते-आते जोधपुर के तेवर बदल गए थे एक अगस्त को भी वह सहमत थे अभ परिवर्तन क्यों आया 2 अगस्त से आया परिवर्तन आया एक तो थी स्पेशल कंसेशन नवाब ऑफ भोपाल और बड़ोदा विलीनीकरण के लिए कुछ स्पेशल कंसेशन चाते थे जो स्टेट डिपार्टमेंट ने स्वीकार नहीं किए महाराजा जोधपुर भी स्पेशल कंसेशन चाहते थे और अब उनको मालूम हो गया कि यह स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि दो को उन्होंने अस्वीकार कर दिया देश आजाद होने वाला था आजादी के साथ जोधपुर और उसके आसपास की रियासत जैसे जैसलमेर पाकिस्तान में जाएगा इसकी अफवाहें गर्म हो गई थी इस दौर से गुजरने वाले दो व्यक्तियों इन के शर्मा और किशन सिंह भाटी को उहापोह का वो दौर याद है यह प्रकार की घोषणा हो गई कि कोई हिंदुस्तान में रहना चाहता है स्वतंत्र रहना चाहता है या पाकिस्तान में मिलना चाहता है तो 1947 के बाद 15 फरवरी 1949 तक जैसलमेर इस असम में रहा कि हम भारत में भारत संघ में मिले या पाकिस्तान में मिले या स्वतंत्र रहे जोधपुर जैसलमेर और बीकानेर एक दूसरे की रिश्तेदारी में और रेगिस्तान की एक की रियासत होने से अच्छे संबंध थे जोधपुर दरबार अणु सिंह जी ने उस समय पहले तो मर्जर के दस्तखत कर दिए फिर भावता में वीपी मेनन पर उन्होंने पिस्तौल ताना और कहा नहीं और उन्होंने फिर विद्रोह की तैयारी की वो चर्चिल से भी मिलकर आए और उनको जज गया कि मैं स्टेट मर्ज नहीं करूंगा उन्होंने आर्म्स और ऑर्डिनेंस की फैक्ट्री भी जोधपुर पोर्ट में खोल दी उनका इरादा नहीं मिलने का था और उनको बहुत बड़ी उम्मीद थी कि जैसलमेर बीकानेर मेरा साथ देंगे इस दौर में जोधपुर जैसलमेर और बीकानेर की जनता में भी काफी दुविधा थी कि कहीं यह राजा महाराजा कोई गलत फैसला ना कर बैठे इन रियासतों को भारत में मिलाने में लगे वीपी मेनन ने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन इंडियन स्टेट्स में इस बारे में लिखा है स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स में इसके बारे में लिखा है जोधपुर महाराज हनुमन सिंह को रास्ते पर लाना मुश्किल बना हुआ था जिना और मुस्लिम लीग के दूसरे लीडरों से उनकी बैठक हुई इस तरह की आखिरी मुलाकात में महाराज हनुमंत सिंह जेसलमेर के युवराज महाराज कुमार गिरधर सिंह को साथ ले गए क्योंकि बीकानेर के महाराज उनके साथ जाने के लिए तैयार नहीं हुए और अकेले जाने में उन्हें डर लग रहा था अपॉइंटमेंट कौन दे नवाब भोपाल से बात की और नवाब भोपाल से बात करने से उसने उसी दिन 6 अगस्त को जिना से मुलाकात कराई और आफ्टरनून में कराई तो यह कौन गए थे जोधपुर महाराजा नवाब ऑफ भोपाल और जैसल में महाराज कुमार जिना साहब जो रियासतें पाकिस्तान के साथ मिल रही है उन्हें आपसे क्या मिलेगा यर हाइनेस आई मेड माय पोजीशन वेरी क्लियर मैं उन्हें हिंदुस्तान से कई ज्यादा सहूलियत देने के लिए तैयार हूं ए नेस आपके लिए मैं यह सादे कागज पर साइन कर रहा हूं पाकिस्तान से शामिल होने के लिए जो शर्त आप इसमें डालना चाहते हैं डाल ले जिना साहब हिंदुस्तान के साथ हमारे मारवाड़ की महान रियासत के मिलने पर हमें इन कांग्रेसियों के साथ दिक्कत होगी अगर जोधपुर पाकिस्तान के साथ मिलता है तो हमारी कुछ मांगे होंगी योर हाईनेस मेरा साइन किया हुआ ब्लैंक पेपर आपके हाथ में है जिना साहब अगर जोधपुर पाकिस्तान के साथ मिल जाए तो कराची पोर्ट हमें इस्तेमाल करने दे हथियारों का फ्री इंपोर्ट हो और सबसे अहम बात तो यह है कि हमारे जोधपुर से आपके सिंध के हैदराबाद जाने वाली रेलवे लाइन पर हमारा अधिकार हो आजकल हमारे यहां आ काल फैला हुआ है प्लीज आप राहत जल्दी भेजे एनीथिंग फॉर यू योहानेस युवराज जोधपुर की तरह आपकी भी शरद हमारी शरद से मिलेगी तो क्या जोधपुर की तरह जैसलमेर भी पाकिस्तान से नहीं मिलेगा हम पाकिस्तान से जुड़ सकते जिना साहब पर हमारी एक कंडीशन है जब भी हमारे राज्य में हिंदुओं और मुसलमानों का झगड़ा होगा तब क्या आप न्यूट्रल रहेंगे यह कैसा सवाल है मराज कुंवार हमारे सपनों के मुल्क पाकिस्तान में ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी यह झगड़ा यह फसाद जो आप देख रहे हैं यह कांग्रेस ने फैलाया और महाराजा जोधपुर को नीचा दिखाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई झगड़ा होगा फसाद होगा यह ऐसी बात सोचना भी फिजूल है यर हाईनेस एस लंग एस द सेंट्रल गवर्नमेंट इन इंडिया इ वीक वी आर बोथ स्ट्रंग द डॉटेड लाइंस यू फिल इन द कंडीशन योर हाईनेस महाराजा जोधपुर जिन्ना साहब को कल कराची जाना है बेहतर होगा कि पाकिस्तान में शामिल होने के मसौदे पर आप आज ही दस्तखत कर दे मेरे पास आप लोगों के शुक्रिया अदा करने के अलावा कोई लफ्ज नहीं लेकिन जिना साहब हमारा राज्य 36 हज वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है 50 से भी ज्यादा जागी दार है और राजमाता भी तो है ना मुझे उनसे सलाह लेनी होगी और मैं शुक्र गुजार हूं चना साहब का कि इतना बड़ा प्रस्ताव उन्होंने मेरे सामने रखा मैं मैं बहुत जल्द सोचकर अपना फैसला आपको बता दूंगा अगर गर दर्शन जी सहयोग दे देते तो जोधपुर की नेतृत्व में बीकानेर जसलमेर तीनों रियासत रिवोल्ट करती और हैदराबाद मेरा तोय हैदराबाद नवाब तो बीच में था ताकि रिचेस्ट स्टेट थी व तो हिंदुस्तान से गिरा हुआ था रजाकार तीन दिन में समर्पित यह जिन्ना के कराची से मिली हुई स्टेट सिं से इधर रहीम यार खान लगता है इधर मीरपुर हैदराबाद सीधा पाकिस्तान लगता पाक आर्मी का सपोर्ट होता तो यह आराम से हिंदुस्तान में मिलने का काम नहीं हो सकता था हिंदुस्तान के एकीकरण में आधा राजस्थान चला जाता इन रियासतों को फौज के द्वारा जीतना बहुत मुश्किल होया तो पूरा पाकिस्तान जीता जाता जो मुश्किल था उस समय तो इन रियासतों को जो पाकिस्तान की सीमा से जुड़ी हुई थी पाकिस्तान से मिलकर के यह करती तो हिंदुस्थान के लिए और शायद इनको देख कर के अन्य रियासतें भी सहयोग करती कि नहीं करती भारत के एकीकरण इतिहास ही बदल जाता 6 अगस्त 1947 जोधपुर का 36000 स्क्वायर किलोमीटर पाकिस्तान के हाथ जाने वाला था सोचिए अगर ऐसा होता तो हिंदुस्तान की ज्योग्राफी उसका भूगोल कैसा दिखाई देता मेनन के मुताबिक जोधपुर को पाकिस्तान से मिलाने के लिए जिन्ना और महाराज हनुमंत सिंह की कई मीटिंग हुई लेकिन महाराज हनुमंत सिंह के बायोग्राफी लिखने वाले इस बात को नहीं मानते उनके मुताबिक 6 अगस्त की मीटिंग उनकी पहली और आखिरी मीटिंग थी जिसके बाद महाराज हनुवंत सिंह जोधपुर वापस चले गए और फिर 9 अग को लॉर्ड माउंट बैटन के बुलाने पर दिल्ली वापस आए ट्रांसफर ऑफ पावर में माउंट बेटन ने सिर्फ चार लाइने लिखी है उसमें कि यह वार्तालाप मैंने सीक्रेट रखी है और यह वार्तालाप संभवत वही हुई है कि आपने जिन्ना से क्या बात की और माउंट बेटन ने यह सलाह दी कि आप पटेल से मिलो 9 अगस्त को तो 9 अगस्त को महाराजा मिले नहीं अपनी फ्लाइट से वापस य आ गए और 10 अगस्त संडे को महाराजा दिल्ली गए पटेल से मिलना सरदार पटेल को जोधपुर के दीवान के जरिए हनुमंत सिंह के इरादों का पता चल गया था सरदार के कहने पर ही माउंट बैटन ने महाराजा हनुमंत सिंह को दिल्ली बुलाया था अब जोधपुर को बचाने का पूरा दारोमदार सरदार पटेल पर था आप लॉर्ड माउंट बेटन से मिले जी सरदार साहब क्या बात है कुछ खास बात मैंने यह भी सुना कि आपकी मुलाकात जिन्ना से हुई और आप स्वतंत्र रहना चाहते हैं ठीक सुना वेल आई हैव नो कमेंट्स टू वेक योर हास आप अलग रहकर सत रहना चाहते हैं ठीक लेकिन आपके फैसले से अगर जोधपुर वासियों ने बगावत कर दी तो भारत सरकार से किसी भी तरह की उम्मीद पत रखिएगा और जिना साहब हमें काफी रियायत तो सारी रियायत हम भी दे सकते हैं मगर वो जोधपुर से कराची की रेलवे लाइन का क्या हुआ अगर वो काम नहीं हुआ तो हमारा व्यापार ठप हो जाएगा हम जोधपुर को कक्ष के बंदरगाह से जोड़ द आपके रेवेन्यू में कोई फर्क नहीं आएगा देखो हनमत तुम्हारे पिता उमेश सिंह जी मेरे बहुत अच्छे दोस्त है और वह तुम्हें बेरी देखरेख पर छोड़ के गए चीनी लोगे चीनी अगर तुम सही रास्ते पर नहीं आए तो समझो तुम्हें अनुशासन में लाने के लिए मुझे पिता के रोल में उतरना पड़ेगा नहीं नहीं आपको ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं दरअसल मैं खुद लॉर्ड माउंट बेटन के पास जाऊंगा और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसशन पर साइन कर दूंगा जी सरदार पटेल के सामने तो महाराजा ने कह दिया कि वह भारत में शामिल होने के लिए तैयार है लेकिन बात वहां खत्म नहीं हुई जो सवाल भारत की एकता पर जोधपुर ने उठाए थे वह एक बार फिर खड़े हो गए 11 अगस्त 1947 सुबह 10 बजे महाराज हनुमंत सिंह वाइस रॉय लज पहुंचे ड़ नॉनसेंस मैन आई रिफ्यूज टू टेक योर डिक्टेशन मुझे किसी की डिक्टेशन पसंद नहीं है सम योर हाईनेस आप यह बच्चों वाली हरकत ना करें मैं तुम्हें कुत्ते की मौत मारूंगा कुत्ते की अगर तुमने जोधपुर की प्रजा को भूखा मारा तो आई विल शूट यू लाइक अ डॉग योर हाईनेस अगर आपने मुझे मारने की कोशिश की तो यह आपकी बड़ी भूल होगी अच्छा आप समझौते को रद्द भी तो कर सकते हैं मुझे सिखाएगा क्या करना मैं य आस्क व्ट इज गोइंग ऑन हियर ही वास ट्रांग टू शूट मी सर डोंट वरी इ जस्ट अ जेस्ट ऑफ अ यंग मैन यू गेट व्हाट यू है बीन प्रॉमिस टू यू ना मे आई हैव द पिस्टल दिस इ अ गिफ्ट फम माय साइड टू यू सर थैंक यू हैंड मेड आई सी यस यू मे नाउ साइन द इंस्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन ओके आ आखिरकार 11 अगस्त को यानी आजादी से सिर्फ चार दिन पहले महाराजा हनुमंत सिंह ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर दस्तखत करही दिया लेकिन महाराजा का असली इरादा क्या था उस पर तो आज भी विवाद है आजादी से मह चार दिन पहले ही जोधपुर भारत में शामिल हुआ यह जो शक्ल आप अपने देश की आज देख रहे हैं यह आजादी से चार दिन पहले तक ही बिल्कुल बिखरी हुई थी हैदराबाद भोपाल जूनागढ़ जम्मू और कश्मीर यह रियासतें भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थी इन रियासतों को भारत में शामिल कैसे किया यह आजाद भारत की सबसे अहम कहानियों में से एक है जो आज तक अनकही है यह कहानी अगली बार लेकिन जाते जाते एक बात और महाराजा हनुमंत सिंह ने वीपी मेनन साहब की ऊपर पिस्तौल जरूर तानी थी लेकिन उनकी कड़वाहट कुछ वही खत्म हो गई यहां तक कि महाराजा हनुवंत सिंह ने वीपी मेनन साहब को जोधपुर से चुनाव लड़ने के लिए भी कहा लेकिन मेनन साहब ने मना कर दिया [संगीत]