जैनिजम आज मैं आपको इंडियन इंचिंट हिस्ट्री के ऐसे दोर से परिज़े कराने वाला हूँ जिसने इंडियन सुसाइटी को बदल कर रख दिया न सिर्फ रिलिजियस सिनारियो पर गेहन प्रभाव छोड़ा बलकि पॉलिटिकल सेट अप और इवन इकाउनमी को भी इंपैक्ट किया गांधी जी की बेसिक आइडियोलोजी अव नॉन बायलेंस को यहीं से प्रेरणा मिली दोस्तों यह कहानी है 6th और 5th सेंचुरी बीसी की जब एंशन्ट हिस्ट्री का वैदे कल्चर अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था। लोग प्रीस्टली क्लास यानि पुरोहित वर्ग कल्ट्स और रिच्वल्स के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे। इस्पेशिली पांचाल और विदेहा में, जहां 600 बी.सी के आसपास उपनिशद्ध को कमपाइल किया जा रहा था। वैदिक फेज के अंड में कई इंपोर्टेंट चेंजेस देखने को मिले। जैसे टेरिटोरियल किंग्डम्स की शुरुआत हुई। जिन्हें जनपदाज बोला जाता था ये जनपदाज ख्षत्रिय रूलर के अंडर में थे युद्ध का मकसद अब केवल कैटल को कैप्चर करने तक सीमित नहीं था बलकि टेरिट्री कैप्चर करना भी वार का एक इंपोर्टेंट आस्पेक्ट था महाभारत वार भी इसी पीरियट की बताई जाती है पैस्टूरल सोसाइटी यानि चरवाहे अब अग्रिकल्चरल सोसाइटी में कन्वर्ट हो रहे थे ऐसे दोर में मिड गैंजेटिक प्लेइंज में कई रिलिजिस सेक्ट्स अर्थात संप्रदायों का उदाय हुआ कुछ estimates के हिसाब से करीब 62 sects rise हुए इन में से सबसे important sects Jainism और Buddhism सामने उभर कर आए आज इस कहानी में हम Jainism पर focus करेंगे Causes of origin पहले समझते हैं कि इन religious orders के start होने के कारण क्या रहे Later Vedic society, four Varnas में divide हो गई और ये division धीरे धीरे rigid होता चला गया Naturally इस वर्ण व्यवस्था से सुसाइटी में टेंशन फैली हुई थी। इसके चलते वैश्याज और शुद्राज के क्या रियाक्शन्स रहे, ये पता लगा पाना मुश्किल है। लेकिन क्षत्रिय वर्ण ने जरूर ब्रहमन डॉमिनेशन के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया। क्षत्रियाज का यही स्ट्रॉंग रियाक्शन नए रिलिजिन्स के ओरिजिन का एक कारण रहा। लेकिन निउ रिलिजिन्स के राइज का रियल कॉस था। North Eastern India में एक नई तरह की Agricultural Economy का Spread होना 6th Century BC के एंड होने तक Eastern UP, North और South Bihar में Iron का इस्तेमाल शुरू हुआ जिसके चलते Dense Forests को Clear करना आसान हो गया और Large Scale में लोग यहां रहने लगे और यहां से Wide Spread Agriculture की शुरुवात हुई 500 BC के आसपास नौर्थ इस्टन इंडिया में बड़ी मात्रा में सिटीज बसना चालू हुई जैसे कोशाम्बी, कुशी नगर, वारानसी, वैशाली, चिरांत, तारादी, पाटली पुत्र, राजगीर और चम्पा वर्धमान महावीर इन में से कई सिटीज से असोसियेटेड रहे सबसे पहले इसी दौर में ट्रेड और कॉमर्स में कॉइंस का यूज किया जाने लगा जो की पंच मार्ग्ड वराइटी के कॉइंस थे जिसके चलते वैश्याज की importance society में बढ़ने लगी नैचरली वैश्य वर्ण ने ऐसे religion को खोजना चालू किया जो उनकी social position को improve कर सके इसी लिए उन्होंने महवीर का support किया उनके support के कई कारण रहे पहला, Jainism ने शुरुवात में वर्ण व्यवस्था को importance नहीं दी ब्रह्मेनिकल लॉबुक्स जैसे धर्मसूत्राज में मनी लेंडिंग की निंदा की गई। इसके कारण ट्रेडर्स को नीची नजर से देखा जाने लगा। और इसी कारण ट्रेडिंग क्लास अपना सोशल स्टेटस इंप्रूव करने के लिए नए रिलिजन की खोज करने ल� प्राइविट प्रॉपर्टी और नए तरह के घर उन्हें रास नहीं आ रहे थे और वो प्रिमिटिव लाइफस्टाइल चाहते थे जैनिजम में सिंपल, प्यौर और असेटिक लाइफस्टाइल को इंपोर्टेंस दी गई जिससे लोग अट्रैक्ट होने लगे यही सब कारण रहे कि जैनिजम जैसे निउ रिलिजिन्स प्रॉमिसिंग लगने लगे और इनका राइज होना इजी हो गया वर्धमान महवीर दोस्तों वर्धमान महावीर जैनिसम के रियल फाउंडर माने जाते हैं जैनाज की मान्यताओं के अनुसार उनके सबसे important religious teacher महावीर के 23 predecessors यानि पूर्वज थे जिन्हें तीर्थंकर बोला जाता है. जैनाज का मानना है कि जैनिजम के पहले तीर्थंकर रिशब देव थे और उन्होंने ही जैनिजम को establish किया. रिशब देव अयोध्या के माने जाते हैं.
अगर महावीर को 24 तीर्थंकरा माना जाए तो जैनिजम का origin करीब 9th century BC तक चला जाएगा. जबकि अयोध्या का settlement 500 BC में start हुआ, इसीलिए रिशबदेव के existence की historicity establish कर पाना मुश्किल है। बाकी सभी तीर्थंकरों की historicity भी extremely doubtful है। जैनिजम की important teachings पार्श्वनात से start हुई, जो की 23 तीर्थंकर थे। वो बनारस के थे, royal life को abandon किया और एक ascetic यानि तपस्वी बन गए। पार्श्व के spiritual successor वर्धमान महावीर ही Jainism के real founder हैं. महावीर की birth और death की exact dates का पता लगाना संभव नहीं है.
लेकिन एक tradition की माने, तो उनकी birth 540 BC में वैशाली में हुई, जो की आज के हिसाब से बिहार के वैशाली district में है. उनके father सिधार्थ क्षत्रिय क्लान के head थे और उनकी mother तृशाला लिच्छवी chief चेतक की sister थी. चेतक की डॉटर की मैरिज बिम्बिसार से हुई। इससे ये तो साफ है कि महावीर की फैमिली मगद की रॉयल फैमिली से जुड़ी हुई थी। जिसकी मदद से उनको प्रिंसिस और नोबल्स तक अपनी अपरोच पहुचाने में आसानी हुई। शुरुवात में महावीर एक ग्रिहस्त जीवन जीते रहे। पर ट्रूथ को ढूणने और समझने की राह पर उन्होंने 30 साल की एज में दुनिया का त्याग कर दिया और एक तपस्वी बन गए। जीवन के 12 साल उन्होंने केवल भ्रमण करते हुए निकाले। विलिजेज और टाउन्स में कुछ दिन के अलावा नहीं रुकते थे। इन बारह सालों की लंबी जौनी में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने कभी कपड़े नहीं बतले। और 42 साल की उम्र में जब उन्होंने कैवल्या यानी उम्नी सियन्स को पा लिया, तब उन्होंने पूरी Conqueror of Oneself बोला गया और उनके followers को जैनाज 30 साल तक महावीर ने अपने religion को propagate किया expand किया और ये mission उनको कौशाल, मगद, मिथला और चम्पा जैसी cities में ले गया 468 BC में 72 साल की age में पावपुरी में उनकी death हो गई यानि वो निर्वान को प्राप्त हो गए बिहार के राजगीर नालंदा district में ये जगए है दोस्तों आगे बढ़ते हैं और जैनिजम की डॉक्ट्रिन्स यानि सिधान्तों पर एक नज़ा डालते हैं Doctrines of Jainism जैनिजम में पाँच सिधान्तों की बात कही गई है Do not commit violence यानि हिंसा मत करो Do not tell a lie यानि जूट मत बोलो Do not steal यानि चोरी मत करो Do not hoard यानि संचय मत करो Observe Continence यानि ब्रह्मचर्य को अपना हो ऐसा कहा जाता है कि सिर्फ पांचवा सिध्धान्त यानि ब्रह्मच्यारिय ही महावीर ने एड किया, बाकी चार उन्होंने पिछले तीर्थंकरों से लिये। जैनिजम का सबसे इंपोर्टेंट डॉक्ट्रिन था अहिंसा यानि नॉन इंजुरी टू लिविंग बींग्स। महावीर के प्रिडिसेसर यानि पार्श्व ने अपने फॉलूवर्स से बॉडी के अपर और लोअर पोशन्स को कवर करने को कहा, जबकि महावीर ने अपने फ इससे पता चलता है कि महावीर ने अपने followers को ज्यादा strict और सीधा सादा जीवन जीने को कहा.
कई reasons में से एक ये भी कारण रहा कि आगे चलकर Jainism दो sects में divide हो गया. Shwetambaras जो white कपड़े पहनने लगे और Digambaras जिन्होंने कपड़ों का त्याग किया. Jainism ने God के existence को recognize किया लेकिन उन्हें जिना की श्रीनी से नीचे ही रखा. Warn system को Jainism ने एकदम condemn नहीं किया. जिस तरह बुद्धिजम ने किया। महावीर के अनुसार, एक पर्सन का अपर और लोवर वर्ण में बर्थ होना, उसके पिछले जन्म में किये गए सिंस और वर्चूस पर डिपेंडेंट था। इसका मतलब, महावीर थियोरी ओफ कर्मा में बिलीव करते थे। महावीर के उपिनियन में लोवर कास्ट के लोग प्योर और मेरिटोरियस लाइफ जीते हुए लिबिरेशन यानि मुक्ति पा सकते थे। फ्रीडम फ्रॉम वर्ल्डली बॉंड्स यानि दुनियादारी से मुक्ति जैनिजम का में मोटिव था। स्पष्ट है कि महावीर लिबरेशन अफ सोल की बात कर रहे थे.
ऐसा करने के लिए किसी भी तरह के रिचुअल्स की जरूरत नहीं थी. राइट नॉलेज, राइट फेथ और राइट आक्शन के थूँ इसको पाया जा सकता था. इनको जैनिजम का त्रीरत्न कहा जाता है. जैनिजम में वार और एग्रिकल्चर दोनों को ही प्रोहिबिट किया गया.
क्योंकि दोनों में ही लिविंग बींग्स की किलिंग इनवार्व थी. इसी के चलते जैनिजम मेंली ट्रेड और मरकेंटाइल अक्टिविटीज तक ही सीमित रह गया. दोस्तो अब बात करते हैं कि किस तरह जैनिजम स्प्रेड हुआ.
स्प्रेड जैनिजम जैनिजम को स्प्रेड करने के लिए महवीर ने एक followers के order या group को तैयार किया, जिसमें men और women दोनों को admit किया जा सकता था. प्राकृत language का use करके महवीर ने अपनी teachings को common लोगों तक पहुचाया. ऐसा कहा जाता है कि उनके करीब 14,000 followers थे, जो की एक बहुत बड़ी संख्या नहीं है. जैनिजम अपने आपको Brahmanical religion से किसी खास तौर पर differentiate नहीं कर पाया.
कि वो मासेज को अट्रैक्ट नहीं कर पाया। इसके बावजूद साउथ और वेस्ट इंडिया में ग्राजुअली स्प्रेड होता रहा, जहां ब्रह्मैनिकल रिलिजन थोड़ा वीक था। एक ट्रेडिशन की माने तो करनाठका में जैनिजम के स्प्रेड का कारण चंद्र गुप्त मौर्या रहे, जो मौर्या एमपायर के फर्स्ट रूलर थे, पर इसका कोई हिस्टोरिकल एविडेंस नहीं है। दूसरा कारण मगद में हुए ग्रेट फैमिन को बताय जाता है, जो महवीर की डेथ के दू साल बाद हुआ। ये फैमिन बारा साल तक चला। इससे बचने के लिए जैनाज का एक ग्रूप साउथ इंडिया में माइग्रेट कर गया, भद्र बाहू की लीडिशिप में. इनहीं के द्वारा साउथ इंडिया में जैनिजम का स्प्रेड हुआ. बचे हुए लोग मगद में ही रहे, स्थल बाहू की लीडिशिप में.
फैमिन खत्म होने के बाद दोनों ग्रूप्स में डिफरेंसेस क्रियेट हो गये. जैनिजम के बेसिक कॉंसेप्ट्स को लेकर. इन डिफरेंसेस को रिजॉल्व करने के लिए और जैनिजम की मेंड टीचिंग्स को कमपा� पाटली पुत्र में.
लेकिन साउथ से वापस आने वाले जैनाज ने इस काउंसिल का बॉयकॉट किया. इसके बाद से सदन ग्रूप को दिगांबराज और मगधन ग्रूप को श्वितांबराज बोला जाने लगा. इस तरह से जैनिजम दो सेक्ट्स में डिवाइड हो गया.
512 AD में भी हुई क्षमास रमाना ने इसको प्रिसाइड किया था इस कांसल में 12 अंगाज और 12 उप अंगाज को कमपाइल किया गया जो जैनिजम के इंपोर्टंट रिलिजिस स्क्रिप्चर्स हैं एपिग्राफिक एविडेंस यानि पुरालेख के अनुसार करनाठका में जैनिजम का स्प्रेड थर्ड सेंचुरी 80 के बाद ही हुआ फिफ्थ सेंचुरी 80 के बाद कई जैना मॉनस्ट्रीज करनाठका में भी बनी जिन्हें बसदीज बोला जाता था कलिंग ओडिशा की बात करें, तो यहां पर जैनिजम का स्प्रेड फोर्थ सेंचुरी बीसी में हुआ. फर्स्ट सेंचुरी बीसी में कलिंग किंग खारवेला का पेट्रिनेज जैनिजम को मिला. आने वाली सेंचुरी में मालवा, गुजरात और राजिस्थान में जैनिजम स्प्रेड हुआ, जहां आज भी इनकी एक सबस्टेंशल पॉपिलेशन है.
इनका में ओक्यूपेशन आज भी ट्रेड और कॉमर्स ही है. यहाँ एक interesting बात सामने आती है, भले ही Jainism बुद्धिजम के comparison में rapidly spread नहीं हुआ, पर आज भी Jain population यहां बरकरार है, जबकि बुद्धिजम virtually disappear हो गया. दोस्तों, एक नजर Jainism के society में contributions पर भी डालते हैं.
Contribution of Jainism Jainism ऐसा first serious attempt था, जो वर्ण सिस्टम और ritualistic वैदिक religion के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था। शुरुवाती जैनाज ने संस्कृत को डिसकार्ट किया, जो की ब्रह्मन पेट्रिनिज में थी। उन्होंने कॉमन पीपल की लैंग्विज यानी प्राकृत को अडॉप्ट किया, अपने डॉक्ट्रिन को प्रीच करने के लिए। उनका रिलिजि जैसे शौरसीनी, जिससे मराठी लैंग्विज डिवेलप हुई। शुरुवाती जैनाज ने कुछ इंपोर्टेंट वर्क्स अपभरंच लैंग्विज में लिखे और इसकी फर्स्ट ग्रामर को भी कमपाइल किया। अर्ली मिडीवल एरा में जैनाज ने संस्कृत में भी कई टेक्स्ट लिखे और आखिर में देखें तो कन्नडा लैंग्विज की ग्रोत में भी इनका कॉंट्रिब्यूशन रहा। और हिंदू आर्किटेक्चर के साथ ही डिवेलप हुआ बाद की सेंचरीज में ये अपनी अलग पहचान बना पाया कई टेंपल्स को बिल्ड कि उदैगिरी और खांडगिरी केव्ज ओडीशा जैना आर्किटेक्चर का अच्छा एक्जांपल हैं, जिन्हें 193 से 170 BC में किंग खारवेला ने जैन मंक्स के लिए बनाया. श्रावन बेल गोला की गोमतेश्वर स्टैचू को तो आप अच्छे से जानते ही हैं, जो की वर्ल्ड की टॉलिस्ट मॉनोलित स्टैचू हैं. 11th से 13th सेंचरी के बीच बने दीलवारा टेंपल्स राजस्थान में हमें तीर्थंकराज पर डेडिकेटिट काव्ड मार्बल्स देखने को मिलते हैं. जैन आर्किटेक्चर का डीटेल्ड डिसकशन हम अलग वीडियो में करेंगे दोस्तों, एक नजर इस पर भी डालते हैं कि जैनिजम डिक्लाइन कैसे हुआ यानि मासेस को अट्रैक्ट क्यों नहीं कर पाया इसके कई कारण रहे आए जानते हैं पहला ये कि जैनिजम ने ब्रहमिन रिलिजिन का फिर्स ओपोजिशन किया जिसके चलते ब्रहमिन्स ने इसका बहिशकार किया दूसरा कारण था Rigorous principles जो की बहुती strict थे. Non-violence के extreme principle के चलते agriculture भी prohibited था.
इसलिए agrarian लोग यानि masses इसको embrace नहीं कर पाए. Fasting, renunciation यानि त्याग, तपस्वी जीवन जैसे hard principles general householder follow नहीं कर सकता था. तीसरा जो की सबसे main कारण हो सकता है वो ये था कि Jainism को कभी political patronage नहीं मिला. जिस तरह से कई rulers जैसे अशोका, कनिशका, एट्सेट्रा, बुधिजम से अट्रैक्ट हुए। जैनिजम ऐसे कोई रूलर को अट्रैक्ट नहीं कर पाया। फाइनली, जैनिजम के संघ संगठन का ओर्गिनाइजेशनल अरेंज्मंट मुनाकिक था। इसके साथ ही जैनिजम का दो सेक्ट्स में डिवाइड होना भी इसके डिक्लाइन का कारण बना। कंक्लूजन तो दोस्तों हमने देखा कि किस तरह जैनिजम कई तरह की पॉलिटिकल, सोशल और एकनामिक कंडिशन्स की कारण एक सेक्ट के रूप में उभर कर आया। और अल्टिमेटली एक रिलिजिन में कन्वर्ट हो गया।