नमस्कार, आदाब, सत श्रीकाल और खुशामदीद। सो वेलकम टू ऑल ऑफ यू टु द सेशन। दिस इज योर मास्टर डीजे हर्ष प्रियम जो कि आज बात करने आए हैं जे डबलई 2026 के बारे में। लेकिन ध्यान दीजिएगा ये सेशन सिर्फ जेई 2026 वाले बच्चों के लिए नहीं बल्कि जे डबलई एग्जामिनेशन में जो भी बच्चा इंटरेस्ट रखता है या माता-पिता इंटरेस्ट रखते हैं उनके लिए यह वीडियो है और इस वीडियो में जे डबलई एग्जामिनेशन की पूरी जर्नी मैं डिटेल में एक्सप्लेन करूंगा। सबसे पहले आपको यह बताऊंगा कि एक जे डबलई की जर्नी कब शुरू होती है और बीच में कौन-कौन से पड़ाव आते हैं। फिर आपको यह बताऊंगा कि जे डब्ल्यूe की जर्नी में क्या कंपटीशन है। कितने सारे बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। मेंस में कितना सिलेक्शन होता है? फिर एडवांस जाते हैं और एडवांस में कितने सिलेक्शन होते हैं जिसके बाद आईआईटी मिलता है। और इन अलग-अलग लेवल्स पे बच्चों को कितने अंक लाने की जरूरत है, यह भी मैं इस वीडियो में बताऊंगा। इसी के साथ कितने नंबर लाने पर किस टाइप का एनआईटी मिल सकता है? किस टाइप के आईआईटीस मिल सकते हैं? आज इस वीडियो में इसकी चर्चा भी होगी और उसके बाद हम चर्चा करेंगे कि उन संख्याओं पर पहुंचने के लिए सबसे आसान तरीका क्या हो सकता है तैयारी करने का और जे डबलई के सिलेबस को सबसे कम समय में सबसे बुद्धिमानी से कैसे कंप्लीट किया जा सकता है? उसके लिए सबसे इंपॉर्टेंट चैप्टर्स क्या हैं? सिलेबस और थ्योरी को किस तरीके से इतने कम समय में बेहतरीन तरीके से पूरा किया जाए? यह सारी चीजें, सारी बातें आज इस सेशन में करेंगे। [संगीत] [संगीत] सबसे पहले बात करते हैं जे डब्ल्यूe की जर्नी। तो जे डब्ल्यूe की जर्नी की शुरुआत होती है हर साल जनवरी में। जनवरी में जे डब्ल्यूई एग्जामिनेशन का पहला अटेम्प्ट लिया जाता है जिसे जनवरी अटेम्प्ट या सेशन वन के नाम से भी जानते हैं। इस जनवरी अटेम्प्ट के लिए रजिस्ट्रेशन आयतः नवंबर के महीने में शुरू हो जाता है। उसके बाद जनवरी को जनरली लास्ट वीक में जेईई का पहला अटेम्प्ट का एग्जामिनेशन होता है। इस एग्जामिनेशन को देने के बाद बच्चा 12वीं के बोर्ड एग्जामिनेशन के लिए तैयार होता है जो कि जनरली फरवरी के मिड से शुरुआत होती है। ये सीबीएसई 12वीं बोर्ड की मैं बात कर रहा हूं। अलग-अलग स्टेट बोर्ड्स के एग्जामिनेशन 10-15 दिन आगे या पीछे से शुरुआत होते हैं। उसके बाद बोर्ड एग्जामिनेशन के खत्म होने का समय मार्च के मिड के आसपास होता है और मार्च के मिड के बाद जनरली बच्चों को 15 से 20 दिन का समय मिलता है जे डबल एग्जामिनेशन के दूसरे अटेम्प्ट की तैयारी करने के लिए। इसे कहते हैं हम अप्रैल अटेम्प्ट और यह एग्जामिनेशन जनरली अप्रैल के फर्स्ट वीक में लिया जाता है। इन दो अटेम्प्ट्स को क्लियर करने के बाद जो बच्चा इस एग्जामिनेशन में सफल होता है वो बच्चा जे डबलई एडवांस एग्जामिनेशन को देने के लिए एलिजिबल होता है। ध्यान दीजिएगा जेईई एडवांस का एग्जामिनेशन हर बच्चा नहीं दे सकता और वही बच्चा दे सकता है जो जेईई मेंस को क्लियर करेगा और इसीलिए जेईई मेंस को स्क्रीनिंग टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। अब जेईई एडवांस का एग्जामिनेशन मई के मिड में होता है। डेट्स वेरीरी करते हैं हर साल के हिसाब से और फाइनली जेईई एडवांस के एग्जामिनेशन में जो बच्चा अच्छा करता है उस बच्चे को मिलता है आईआईटी। आईआईटी का सिलेक्शन जेई एडवांस के थ्रू होता है और जे डबलई मेंस एग्जामिनेशन के थ्रू बाकी कई सारे अन्य कॉलेजेस मिलते हैं जिसमें सबसे फेमस एनआईटी कॉलेज है। तो अब बात करते हैं कि इस पूरे एग्जामिनेशन के दरमियान बच्चों को किस तरीके के कॉमटीशन से रूबरू होना पड़ेगा। तो सबसे पहले बात कर लेते हैं सीबीएसई बोर्ड एग्जामिनेशन की। सीबीएसई बोर्ड एग्जामिनेशन में साल 2024 का आंकड़ा यह बताता है कि करीबन 16 लाख से ज्यादा बच्चे इस एग्जामिनेशन में अपीयर हुए थे। इन 16 लाख बच्चों में से करीबन 1 लाख के आसपास ऐसे बच्चे थे जिन्हें 90% से ज्यादा नंबर आए थे। लेकिन सीबीएसई बोर्ड एग्जामिनेशन में 90% से ज्यादाेंट मार्का 75% का है। वो इसलिए क्योंकि एनटीए ने एक रूल निकाला है सारे जेईई एग्जामिनेशन के बच्चों के लिए और वो रूल यह कहता है कि जो भी बच्चा जे डबलई के एग्जामिनेशन से किसी भी कॉलेज में जाना चाहता है उस बच्चे को 12वीं के बोर्ड एग्जामिनेशन में कम से कम 75% नंबर लाना अनिवार्य है। अगर वह बच्चा यह नहीं कर पाता है तो उस बच्चे को जेईई मेंस के एग्जामिनेशन तो देने दिया जाएगा लेकिन इस एग्जामिनेशन के थ्रू आगे की काउंसिलिंग में बैठने नहीं दिया जाएगा और इसी की वजह से वो बच्चा ना ही एनआईटी और ना ही जेई एडवांस्ड और ना ही आईआईटी किसी के लिए भी एलिजिबल होगा। तो इसीलिए सीबीएसई बोर्ड्स में 75% मार्क सबसेेंट माना जाता है। अब सीबीएसई के एग्जामिनेशन के बाद बात करते हैं जे डब्ल्यूई मेंस एग्जामिनेशन की। तो जेईई मेंस एग्जामिनेशन का शिफ्ट वन और शिफ्ट टू जो कि जनवरी अटेम्प्ट और अप्रैल अटेम्प्ट के नाम से जाना जाता है। इन दोनों की संख्याएं मिला दें तो साल 2024 का आंकड़ा है कि 14 लाख से ज्यादा बच्चे इस एग्जामिनेशन में अपीयर हुए थे। इन 14 लाख बच्चों में से ढाई लाख बच्चों का चयन किया जाता है और उन बच्चों को अलऊ किया जाता है कि आप जे डब्ल्यूe एडवांस का एग्जामिनेशन लिखेंगे। ध्यान दीजिएगा यह ढाई लाख का आंकड़ा फिक्स्ड है। क्योंकि साल 2023 में सिर्फ 11 लाख बच्चे जेईई मेंस दिए थे। लेकिन उसमें से भी ढाई लाख बच्चों का ही चयन हुआ था। वहीं साल 2022 में सिर्फ 9 लाख बच्चे जेईई मेंस का एग्जाम दिए थे। लेकिन उसमें से भी 2.5 लाख बच्चों का चयन किया गया था जेईई एडवांस के लिए। तो हर साल जेई एडवांस में ढाई लाख बच्चे ही एलिजिबल होते हैं। लेकिन आश्चर्य होगा आपको यह जानकर कि इन ढाई लाख बच्चों को जिन्हें जेई एडवांस लिखने के लिए एलिजिबल बनाया जाता है। जेईई एडवांस एग्जामिनेशन के दिन एग्जामिनेशन सेंटर पे केवल 1,80,000 या 1,90,000 बच्चे ही पहुंचते हैं। बीच के 60 से 70,000 बच्चे जेई एडवांस एग्जामिनेशन देने ही नहीं आते हैं। अब कारण क्या है? इसके पीछे लंबी लिस्ट है। लेकिन अभी फोकस करते हैं कि इन 1,80,000 बच्चों का आगे क्या होता है? तो अब यह 18,80,000 बच्चे जो जेई एडवांस का एग्जामिनेशन देते हैं। इनमें से करीबन 40 से 500 बच्चे ऐसे होते हैं जो जेई एडवांस क्लियर कर लेते हैं। यहां क्लियर करने का अर्थ यह नहीं है कि इन बच्चों को आईआईटी मिलेगा। क्योंकि आईआईटी की सीटें महज 17,000 से 18,000 के बीच में हैं। तो, यह 40 से 5,000 वह बच्चे होते हैं जिन्हें जे डबलई एडवांस एग्जामिनेशन में ऑल इंडिया रैंक मिलती है। बचे हुए बाकी बच्चों को कोई रैंक भी नहीं दी जाती है। अब जिन बच्चों को रैंक मिल गई है और जिन बच्चों को रैंक नहीं भी मिली है, वह दोनों ही बच्चे जोसा की काउंसलिंग में बैठने के लिए एलिजिबल होते हैं और इस काउंसलिंग के जरिए वो आईआईटी की सीट के लिए अप्लाई करते हैं। इनमें से जिन बच्चों के अंक अच्छे होते हैं, उन्हें आईआईटी की सीट मिल जाती है अलग-अलग ब्रांचेस में। जिनके अंक अच्छे नहीं होते हैं, वह फिर नीचे के कॉलेजेस में या दूसरे काउंसलिंग के जरिए दूसरे कॉलेजेस में अपना लक ट्राई करते हैं। तो, यह था एक ब्रीफ इंट्रोडक्शन ओवरऑल कंपटीशन की। अब थोड़ा डिटेल में बात करते हैं कि 12वीं के बोर्ड एग्जामिनेशन में 75% क्राइटेरिया का क्या अर्थ है। यहां पर कुछ रूल और रेगुलेशंस हैं जिसे ध्यान से समझना बेहद अनिवार्य है। पहला कि 75% मार्क्स एग्रीगेट में मांगे जाते हैं ना कि इंडिविजुअल सब्जेक्ट में। दूसरा यह एग्रीगेट के सब्जेक्ट्स होते कौन से हैं? तो यहां पर केवल पांच सब्जेक्ट का चयन किया जाता है जिस पे एग्रीगेट मार्क्स निकाले जाते हैं। लेकिन ये पांच सब्जेक्ट बेस्ट ऑफ फाइव होते हैं या कोई फिक्स सब्जेक्ट है? तो इसे ध्यान से समझिएगा। कहने को रूल के हिसाब से इसे बेस्ट ऑफ फाइव सब्जेक्ट कहा जाता है। लेकिन इसके पीछे रूल यह है कि 75% कैलकुलेट करने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स और इंग्लिश मैंडेटरी सब्जेक्ट्स होते हैं। और पांचवा सब्जेक्ट आप कोई भी चुन सकते हैं अपनी स्वेच्छा से जिसमें आपके ज्यादा अंक हैं। और इसी बेसिस पे टॉप फाइव सब्जेक्ट्स बनते हैं जिनके मार्क्स टोटल जोड़े जाते हैं और वहां पर आपको 75% नंबर से ज्यादा हासिल करना जरूरी है। तभी आप जोसा की काउंसलिंग में बैठ पाएंगे और अपने कॉलेज के लिए अप्लाई कर पाएंगे। हां इस रूल में कुछ सब पॉइंटर्स भी हैं। वो सब पॉइंटर्स ये हैं कि जो बच्चे सीबीएसई या आईसीएससीई में नहीं पढ़ते हैं उनके लिए 75% रूल के अलावा एक दूसरा एलबाई भी दिया गया है और वो ये है कि कई सारे स्टेट बोर्ड ऐसे होते हैं जहां पर 75% नंबर पे टॉपर्स होते हैं। तो इसीलिए कोई ऐसा स्टेट बोर्ड है जहां पर बहुत ज्यादा मार्क्स नहीं उठते हैं। तो उन स्टेट बोर्ड्स को अपने टॉप 20% बच्चों की लिस्ट सबमिट करनी पड़ती है एनटीए को। एनटीए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को कहते हैं। यह वो बॉडी है जो जे डबलई एग्जामिनेशन की परीक्षा संचालित करती है। इस एनटीए को मार्क्स सबमिट करने के बाद जो जो बच्चे उस स्टेट बोर्ड में टॉप 20% बच्चे होते हैं वो सारे बच्चे अलाउड और एलिजिबल होते हैं जे डबलई एग्जामिनेशन की काउंसिलिंग में बैठने के लिए। फिर चाहे वो मार्क्स 50% ही क्यों ना हो। तीसरा कंडीशन यह है कि कोई भी बच्चा जो एससी एसटी कैटेगरी से है उसके लिए यह मार्क्स 65% का रखा गया है इन सीबीएसई बोर्ड एग्जामिनेशन। तो, यह थी पूरी जानकारी सीबीएसई बोर्ड एग्जामिनेशन पे और द इनफेमस 75% क्राइटेरिया पे। अब बात करते हैं जे डबलई मेंस एग्जामिनेशन की। डबलई मेंस एग्जामिनेशन में फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स तीन सब्जेक्ट्स पूछे जाते हैं। ये तीनों सब्जेक्ट में 100-100 नंबर के पेपर आते हैं। 100 नंबर फिजिक्स, 100 केमिस्ट्री और 100 मैथमेटिक्स। इन 100 नंबर के पेपर में कुल 25 सवाल पूछे जाते हैं। हर सवाल चार अंक का होता है और अगर गलत आपने जवाब दिया तो उसके लिए आपको माइनस वन दिया जाता है। ये जो 25 सवाल होते हैं ये दो तरीके के सवाल पूछे जाते हैं। 20 सवाल ऐसे होते हैं जिन्हें एमसीक्यू कहते हैं। मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन जिसमें चार ऑप्शंस होंगे। आपको किसी एक का चयन करना है और पांच ऐसे सवाल होते हैं जिसे न्यूमेरिकल आंसर टाइप क्वेश्चन कहते हैं एनएटी। इन सवालों में आपको सवाल सॉल्व करने के बाद इसका आंसर टाइप करना है अपने कंप्यूटर पे। आपको बता दूं कि जे डबलई मेंस एग्जामिनेशन पूरी तरह से कंप्यूटर बेस्ड एग्जामिनेशन है और पूरे भारत के अलग-अलग शहरों में अलग-अलग सेंटर्स पे कंप्यूटर पे ही ये टेस्ट लिया जाता है। ये जेईई मेंस का 300 नंबर का पेपर 3 घंटे की अवधि का होता है। इस 3 घंटे का सेक्शनल डिवीजन नहीं है। अर्थात आप किसी भी वक्त कोई भी पेपर को और कोई भी सवाल को अटेम्प्ट कर सकते हैं। 3 घंटे में आप जो भी अटेम्प्ट करना चाहे कर सकते हैं। इस 3 घंटे का पेपर अलग-अलग भाषाओं में भी आता है। जैसे इंग्लिश, हिंदी, गुजराती, मराठी और और बहुत सारे लैंग्वेजज़ और उसके साथ-साथ इस जे डबलई मेंस एग्जामिनेशन के जरिए आपका सिलेक्शन एनआईटी, ट्रिपल आईटी और सारे के सारे जीएफटीआई मतलब गवर्नमेंट फंडेड टेक्निकल इंस्टट्यूट्स में होता है। आपको यह भी जानकारी दे दूं कि जे डबलई मेंस इतना कॉमन एग्जामिनेशन है कि इस एग्जामिनेशन के मार्क्स के बेसिस पे बहुत सारे प्राइवेट और स्टेट गवर्नमेंट के इंजीनियरिंग कॉलेजेस भी एडमिशन लेते हैं। तो अब बात कर लेते हैं जे डबलई मेंस एग्जामिनेशन में कंपटीशन की। तो जैसा मैंने आपको पहले ही बताया था साल 2022 में करीबन 9 लाख बच्चों के आसपास इस एग्जामिनेशन में अपीयर हुए थे। इस 9 लाख बच्चे में सिलेक्शन तो 2.5 लाख का ही हुआ था। पर इस एग्जामिनेशन में सिलेक्शन के लिए मार्क्स या रैंक नहीं होता बल्कि परसेंटाइल का सिस्टम होता है। परसेंटाइल का सिस्टम का मतलब यह होता है कि अगर किसी बच्चे को 90%ाइल नंबर आए हैं। इसका मतलब यह है कि वो बच्चा इस एग्जामिनेशन में अपीयर होने वाले 90% बच्चों से आगे है। और इसीलिए उस बच्चे को कहते हैं 90%ाइलर। इसका मतलब उस एग्जामिनेशन में केवल वही बच्चे सिलेक्ट हुए हैं जो टॉप के 10% हैं और इसे ही कहते हैं परसेंटाइल सिस्टम। तो साल 2022 में 9 लाख बच्चों में कट ऑफ गया था 88.4%ाइल मार्क्स। मतलब वही बच्चा सेलेक्ट हुआ था जिसने 88.4% बच्चों को पीछे छोड़ दिया था। साल 2023 में बच्चों की संख्या 11 लाख से ज्यादा हो गई और इस साल कट ऑफ गया था 90.77%ाइल। वहीं साल 2024 की बात करें तो 14 लाख से ज्यादा बच्चे इस एग्जाम में अपीयर हुए थे और इस साल का क्वालीिफाइंग कट ऑफ था 93.23%ाइल। मतलब टॉप के कुछ 6 से 7% बच्चे ही सेलेक्ट हो पाए थे एग्जाम में। हां, एक बात ध्यान देने वाली है कि ये जो क्वालिफाइंग कट ऑफ मैं बता रहा हूं ये जनरल कैटेगरी का है। अलग-अलग कैटेगरीज के लिए क्वालिफाइंग कट ऑफ अलग-अलग बनाया जाता है। अब बात कर लेते हैं कि इन एग्जामिनेशंस में इतना कट ऑफ लाने के लिए बच्चों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। तो ध्यान दीजिएगा जे डबलई मेंस के एग्जामिनेशन में कोई फिक्स्ड मार्क्स नहीं होता जो बच्चों को लाना पड़ता है जिससे वो कट ऑफ क्लियर कर ले। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें एक प्रोसेस का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कहते हैं नॉर्मलाइजेशन प्रोसेस। नॉर्मलाइजेशन प्रोसेस एक्चुअली में एक तरीका होता है जिसमें हर एक शिफ्ट का एक अपना रिजल्ट निकाला जाता है। अगर इसको सरल शब्दों में समझाऊं तो देखिए जे डबलई एग्जामिनेशन को देने वाले 14 लाख बच्चे हैं। अब भारत में इतने सारे परीक्षा केंद्र नहीं है और इतने सारे कंप्यूटर एक समय पर इंतजाम नहीं किए जा सकते जिनसे 14 लाख बच्चों का एग्जामिनेशन एक ही वक्त में लिया जा सके और इसकी वजह से जनरली इन बच्चों को 10 से 12 शिफ्ट में बांटा जाता है। अब अगर 10 शिफ्ट में बच्चे बांटे गए तो औसतन 1.5 लाख बच्चे हर एक शिफ्ट में बैठेंगे। तो 1.5 लाख बच्चे जो एक साथ एग्जामिनेशन दे रहे हैं उनका पेपर जो दूसरे शिफ्ट में 1.5 लाख बच्चे एग्जाम दे रहे हैं उनके पेपर से भिन्न होना जरूरी है। अन्यथा दोनों में चीटिंग हो सकती है। तो जब दोनों का सवाल अलग-अलग होगा तो सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब अलग-अलग सवाल है तो दोनों सवालों के डिफिकल्टी लेवल सेम नहीं रखे जा सकते। जाहिर सी बात है ये सवाल के डिफिकल्टी लेवल अलग होंगे। तो फिर बात उठती है कि फिर एग्जामिनेशन को फेयर कैसे बनाया जाएगा? और यही आता है नॉर्मलाइजेशन का प्रोसेस। इस प्रोसेस के तहत जो भी 1.5 लाख बच्चा एक शिफ्ट में एग्जाम दे रहा है, उस एक शिफ्ट में जितने भी बच्चे एग्जाम दे रहे हैं, उनमें से टॉप 10% या 5% जितने बच्चों को सेलेक्ट करना है, उन 5% बच्चों को सेलेक्ट किया जाएगा। और यही 5% बच्चे हर एक शिफ्ट में सेलेक्ट होंगे। तो इससे अगर आगे चलकर कट ऑफ 95%ाइल बना है। मतलब हर शिफ्ट में से 5% बच्चे चुने गए हैं। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि कुल 14 लाख बच्चों में से 5% बच्चे सिलेलेक्ट हुए हैं। अर्थात यह है कि हर शिफ्ट में बैठा जाने वाला 1400 बच्चों में से हर शिफ्ट में 5% बच्चे चुने गए हैं जो कि जे डब्ल्यूई मेंस के फर्स्ट स्टेज को क्लियर कर पाए और इसीलिए हर एक शिफ्ट में जो कट ऑफ मार्क्स होता है वो अलग होता है। क्योंकि हो सकता है कि किसी शिफ्ट में पेपर बहुत ही कठिन आ गया हो। तो जो टॉप के 5% बच्चे होंगे वो शायद बेहद कम मार्क्स लाकर भी टॉप के 5% आ गए होंगे। वहीं कोई दूसरा शिफ्ट ऐसा हो सकता है जहां पर बेहद आसान पेपर होने की वजह से बहुत ज्यादा अंक लाने पड़े हो बच्चों को टॉप 5% में आने के लिए और यही तरीका होता है बच्चों के सिलेक्शन का जिसे हम नॉर्मलाइजेशन एंड परसेंटाइल मेथड कहते हैं। तो अब जब आप यह समझ चुके हैं तो मैं आपको बताता हूं कि साल 2023 में जो 90.77 परसेंटाइल का कट ऑफ गया था उसके लिए बच्चों को 74 से लेकर 110 नंबर के बीच में लाने पड़े थे इन अ पेपर ऑफ 300 मार्क्स। वहीं साल 2024 की बात करें तो 93.21%ाइल के कट ऑफ के लिए बच्चों को 91 से 155 मार्क्स के बीच में हासिल करना पड़ा था इन अ पेपर ऑफ 300 मार्क्स। तो इससे आपको महसूस हो गया होगा कि बच्चा 91 मार्क्स पे भी क्लियर कर ले रहा है और 155 पे भी क्लियर कर रहा है। यह इसलिए क्योंकि अलग-अलग शिफ्ट के बच्चों के पेपर की डिफिकल्टी लेवल अलग-अलग आई थी और ऐसा हर साल ही होता है। इससे फिर यह भी बात निकल कर आती है कि जब अगले साल का बच्चा इस एग्जामिनेशन को दे रहा होगा तो उसे कितने कट ऑफ की उम्मीद रखनी चाहिए। तो ध्यान दीजिएगा यहां पर एक थोड़ा सा कॉमन सेंस आप लगा सकते हैं। हालांकि ये 100% फुल प्रूफ नहीं है लेकिन माना जाता है कि हर साल करीबन 15 से 20 नंबर बढ़ाकर बच्चे को कट ऑफ एक्सपेक्ट करना चाहिए और वही लोएस्ट से लेकर हाईएस्ट के बीच में रेंज बनता है। तो अब बात करते हैं कि जे डबलई मेंस से अगर एनआईटी मिल सकता है तो क्या इसी परसेंटाइल वाले बच्चे को एनआईटी मिलता है? जो जेईई मेंस क्लियर करके एडवांस लिखने के लिए एलिजिबल है? तो देखिए ऐसा नहीं होता है। इनफैक्ट हर साल 2.5 लाख बच्चे सेलेक्ट किए जाते हैं मेंस से एडवांस के लिए। लेकिन अगर एनआईटी की सीटों की बात करें तो करीबन 30 से 32,000 सीटें हैं एनआईटी में। और वहीं अगर ट्रिपल आईटीस की बात करें तो करीबन 8 से 9,000 सारे सरकारी कॉलेजेस को भी अगर आप मिला दीजिएगा तो यह आंकड़ा 60 से 70,000 से ज्यादा नहीं होता है। तो अगर 70,000 बच्चों को सीटें दी जा सकती हैं और बच्चे सेलेक्ट किए गए हैं 2.5 लाख तो जाहिर सी बात है बहुत सारे बच्चे सेक्ट नहीं होंगे। तो फिर इससे अगला सवाल यह उठता है कि फिर कौन सा ऐसा बच्चा होगा जिसको एनआईटी की सीट मिल पाएगी? तो ध्यान दीजिए यहां पर भी अलग-अलग कट ऑफ होते हैं और एक जनरल गोल्डन रूल माना जाता है कि अगर बच्चा 99%ाइल या उससे अधिक हासिल करता है तो बच्चा ऑलमोस्ट श्योर रहे कि उसे एनआईटी में सीट मिल जाएगी और आयता एक अच्छी ब्रांच भी मिल जाएगी। इस बात को सुन के ये जरूर लगता है कि 99%ाइल मतलब कंपटीशन इतना है कि टॉप 1% बच्चों में आना पड़ेगा। देखिए सुनने में जितना ही यह आश्चर्य वाली बात लगती हो परंतु उतनी ही सत्य है। और एक्चुअली में हम भी जब बच्चों को पढ़ाते हैं तो उन्हें यही कहते हैं कि टारगेट 99%ाइल का लेके चलो ताकि तुम्हें अच्छा एनआईटी और एक अच्छी ब्रांच मिल सके। हालांकि सत्य तो यह है कि बहुत पीछे के एनआईटी जिन्हें कि हम टियर थ्री एनआईटी कहते हैं जो कि जनरली बहुत ही दूर-सुदूर के इलाके में होते हैं उन एनआईटीस में बड़े पीछे के ब्रांच जैसे कि माइनिंग इंजीनियरिंग, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग ऐसे ब्रांचेस कम मार्क्स पे भी मिल जाते हैं। और वो कम मार्क्स जनरली 96 या 97 परसेंटाइल के आसपास पिछले साल तक का रहा है। तो अब अगर इनके मार्क्स पर नजर डालें तो जो भी बच्चा 99% या उससे अधिक लाता है साल 2024 में उस बच्चे को कुछ 180 से लेकर 210 नंबर के बीच में लाने पड़े थे जिससे उसे 99%ाइल या उससे अधिक हासिल हुए होंगे। वहीं अगर एक ऐसे मार्क्स की बात की जाए जिसप कि सबसे पीछे वाला एनआईटी में सबसे पीछे वाला ब्रांच मिल जाए तो वो मार्क्स साल 2024 में करीबन 130 से लेकर 150 के आसपास था। हां, इनमें एक बात ध्यान रखने वाली जरूर है कि ये जो सारे आंकड़े मैं आपके सामने रख रहा हूं, यह सारे जनरल कैटेगरी को मद्देनजर रखते हुए बनाए गए हैं। ऑब्वियसली अगर कोई बच्चा ओबीसी, एससी, एसटी या पीडब्ल्यूडी कैटेगरी का है, तो उसके मार्क्स की रिक्वायरमेंट इन संख्याओं से हर हाल में कम होगी। तो अब मार्क्स की बात करने के बाद थोड़ा और आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं जनवरी अटेम्प्ट और अप्रैल अटेम्प्ट की। तो इस पे थोड़ी और रोशनी डालता हूं। देखिए जे डबलई एग्जामिनेशन को दो हिस्सों में लेने का पीछे का उद्देश्य क्या है? वो समझते हैं। जनवरी अटेम्प्ट और अप्रैल अटेम्प्ट दोनों ही अपने आप में स्वतंत्र अटेम्प्ट हैं। मतलब कोई बच्चा जनवरी अटेम्प्ट दे और अप्रैल नहीं दे तो भी उसके मार्क्स मिलेंगे और अगर वाईसेवरसा हो तो भी उसको मार्क्स मिलेंगे। और वहीं अगर कोई बच्चा जनवरी और अप्रैल दोनों अटेम्प्ट देता है तो भी उसके मार्क्स निकलते हैं। फिर इन दोनों अटेम्प्ट्स का क्या अस्तित्व है? तो देखिए जनवरी और अप्रैल अटेम्प्ट को बेस्ट ऑफ टू थॉट प्रोसेस से बनाया गया। मतलब अगर कोई बच्चा जनवरी में एग्जामिनेशन दे रहा है और किसी कारणवश वो उस एग्जामिनेशन में अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाता तो उस बच्चे के पास दूसरा चांस रहेगा एंड दैट वुड बी अप्रैल अटेम्प्ट और वैसा ही वाइससेवरसा तो यहां पर एक बड़ा सवाल यह आता है कि फिर जनवरी अटेम्प्ट और अप्रैल अटेम्प्ट तो शायद दोनों को देना चाहिए और कॉमन सेंस भी यही है कि हां भाई दोनों अटेम्प्ट दे दो और जिसमें आपके ज्यादा अच्छे अंक आ जाए उसके हिसाब से आपकी रैंकिंग बन जाएगी। आयता करते भी यही है सारे लोग, लेकिन इसमें एक सवाल हमेशा बच्चों को परेशान करता है। और वह यह है कि ज़्यादा फोकस किस पे करें? जनवरी अटेम्प्ट या अप्रैल अटेम्प्ट। तो अब इस सवाल का जवाब देने से पहले यह जानना जरूरी है कि ये सवाल आता ही क्यों है। देखिए, होता यूं है कि जनवरी में जब पेपर होने वाला होता है, तो उस वक्त तक अधिकांश बच्चों के सिलेबस कंप्लीट नहीं हो पाते। या अगर सिलेबस कंप्लीट होते भी हैं, सिलेबस कंप्लीशन का जो टाइम कोचिंग्स में होता है, वो जनरली अक्टूबर से नवंबर का होता है। अब अगर बच्चा अक्टूबर या नवंबर में सिलेबस कंप्लीट किया है, तो महज एक से डेढ़ महीने में वो इतना प्रैक्टिस नहीं कर पाता कि वो इस कॉन्फिडेंस में आ पाए कि हां यार जनवरी अटेम्प्ट में तो मैं बहुत अच्छा करूंगा। और इसी वजह से यह बच्चा यह सोचना शुरू करता है कि जनवरी अटेम्प्ट पे फोकस करूं या फिर अप्रैल पे ही सीधा ध्यान दे लूंगा। और इसके साथ-साथ दूसरा कारण यह भी है कि बच्चा यह बात जानता है कि अगर बोर्ड एग्जामिनेशन में 75% अंक नहीं आए तो चाहे जितना भी अच्छा कर लो जेई में कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि एडमिशन बिना 75% के तो मिलेगा नहीं और इसी वजह से कई सारे बच्चे बोर्ड एग्जामिनेशन को लेकर भी ज्यादा चिंतित रहते हैं तो वो सोचते हैं कि मैं अपना जनवरी और फरवरी बोर्ड एग्जामिनेशन की तैयारी में लगा लूं और बोर्ड हो जाने के बाद मैं अप्रैल अटेम्प्ट पर ध्यान देकर जेई अच्छा कर लूंगा और इसी वजह से यह सवाल बार-बार उठता है कि जनवरी में फोकस करें या अप्रैल में फोकस दोनों में से कौन आसान होता है और कौन कठिन। तो चलिए इसको थोड़ा डाटा से समझने की कोशिश करते हैं। तो अगर डाटा की माने तो हमेशा यह देखा गया है कि जनवरी अटेम्प्ट में सेम परसेंटाइल आयता कम मार्क्स पे हासिल हो जाता है और वहीं अप्रैल अटेम्प्ट में उतने ही परसेंटाइल को लाने के लिए बच्चे को ज्यादा मार्क्स लाने की जरूरत पड़ती है। अब ऐसा क्यों? तो देखिए बड़ी कॉमन सी माइंडसेट है। अप्रैल अटेम्प्ट में सारे के सारे बच्चे मानसिक तौर पर बहुत ही शांत और सुकून में होते हैं। उन्हें पता होता है कि उनके बोर्ड एग्जामिनेशंस खत्म हो चुके हैं। उनके पास समय ज्यादा होता है प्रैक्टिस का। जो बच्चे ड्रॉपर्स होते हैं उनके लिए भी तीन से 4 महीने की अवधि ज्यादा मिल जाती है उन्हें सवाल लगाने के लिए। एंड हेंस वो ज्यादा कॉन्फिडेंट होते हैं। तो अप्रैल अटेम्प्ट में जब बच्चे उतरते हैं एग्जाम के लिए तो हर बच्चा ज्यादा कॉन्फिडेंट है और इसीलिए वो ज्यादा बेहतर स्कोर कर पाता है। अब जब सारे बच्चे ज्यादा बेहतर स्कोर करेंगे तो आपको नॉर्मलाइजेशन का प्रोसेस बताया था जिसके तहत सिर्फ टॉप के पांच या 8% बच्चे ही चुने जाने हैं। तो सारे बच्चे जब ज्यादा अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं तो टॉप के फाइव या 8% बच्चे में आना ज्यादा कठिन हो जाएगा। और इसी वजह से जनरली जनवरी अटेम्प्ट में कम मार्क्स लाकर स्ट्रेटजी ये कि आपको यह समझना पड़ेगा कि इस एग्जामिनेशन में क्या पूछा जाता है? कैसे सवाल पूछे जाते हैं और उन सवालों को आपको कहां से उठाना है अपनी प्रैक्टिस के लिए। इसको मैं एक उदाहरण से समझाता हूं। जैसे मैथमेटिक्स का ये चैप्टर लिस्ट आपको दिख रहा होगा। इसमें एक चैप्टर है वेक्टर 3D का। यह चैप्टर पिछले चार से पांच सालों में हर साल हर शिफ्ट में तीन से चार सवाल इस चैप्टर से पूछे जा रहे हैं। लेकिन वहीं एक चैप्टर है कंटिन्यूटी डिफरेंशिएबिलिटी। इस चैप्टर से जब पिछले चार से पांच साल के पेपर्स को एनालाइज किया गया तो ऐसा पाया गया कि कई सारे पेपर में इसके सवाल पूछे ही नहीं गए हैं और कुछ पेपर में पूछे गए भी हैं तो सिर्फ एक ही सवाल पूछा गया है। तो इससे एक बात तो तय होती है कि कंटिन्यूटी डिफरेंशिएबिलिटी अगर आपकी छूट जाए तो आप छोड़ सकते हैं और बहुत टेंशन लेने की बात नहीं है। लेकिन अगर वेक्टर 3D छूट जाए तो आपके 12 से 16 अंक पूरी तरह से चले जाएंगे। इसका यह मतलब कि अगर आपको प्रायोरिटाइज करने के लिए ऐसी चैप्टर लिस्ट मिल जाए जिसमें जो सवाल सबसे ज्यादा पूछे जा रहे हैं पिछले तीन-चार साल के पैटर्न के हिसाब से तो आप उन चैप्टर्स को ज्यादा स्ट्रांग करेंगे और हेंस आपके अच्छे अंक आने की चांसेस बढ़ जाते हैं। और वो करना इसलिए जरूरी है क्योंकि जितना वक्त बच्चों को मिलता है उतने वक्त में फिजिक्स के 20 से 25 चैप्टर, केमिस्ट्री के 20 से 25 चैप्टर और मैथमेटिक्स के 20 से 25 चैप्टर करने बच्चों के लिए आयता कठिन हो जाते हैं। और इसी वजह से बच्चे सिलेक्टिव चैप्टर्स करना चाहते हैं। हां, इस बात का आप खास ध्यान दीजिएगा। मैं इस बात से यह बिल्कुल नहीं कहना चाहता यह एक सब्स्टट्यूट हो सकता है फुल सिलेबस कंप्लीशन का या एक हार्ड वर्क का। नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि जो बच्चा सारे के सारे चैप्टर्स पढ़कर जाएगा और सारे सवाल अच्छे से बनाकर जाएगा हमेशा वो बच्चा ज्यादा बेहतर परफॉर्म करेगा कंपेयर टू वो बच्चा जिसने सेक्टिव चैप्टर्स पढ़ाई की है। तो इसीलिए सेलेक्टिव चैप्टर्स का स्ट्रेटजी तभी लगाया जाना चाहिए जब आपके पास वक्त कम हो और आखिरी के कुछ दिन या कुछ महीने बच रहे हो। तो ऐसी चैप्टर लिस्ट मैंने और मेरी टीम ने मैथमेटिक्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री तीनों के लिए बनाई है। और ये हम हर साल एग्जामिनेशन से कुछ महीनों पहले बच्चों को देते भी हैं। और हां ध्यान रखिएगा ये चैप्टर लिस्ट समय के साथ बदलते रहते हैं क्योंकि आईआईटी हर दो-तीन सालों में अपने पैटर्न को बदलता है और नए चैप्टर्स को ज्यादा वेटेज पे लाता है और जो हाई वेटेज वाले चैप्टर्स हैं उनको धीरे-धीरे नीचे करता है ताकि हर साल सेम टाइप के सवाल ना आते रहें और बच्चे पैटर्न को पूरी तरह से डिकोड ना कर लें। अब JWE मेंस की सारी बातें करने के बाद आते हैं JWE एडवांस पे। तो JWE एडवांस में वो बच्चे सिलेक्ट होते हैं जो 2.5 लाख सबसे टॉप के बच्चे होते हैं मेंस एग्जामिनेशन के। इस ढाई लाख बच्चे में करीबन 1 लाख ऐसे बच्चे होते हैं जो जनरल कैटेगरी के होते हैं। बाकी 1.5 लाख के आसपास ऐसे बच्चे होते हैं जो किसी कैटेगरी या कोटा में होते हैं। तो अब इन 2.5 लाख में से जो 2 लाख बच्चे एग्जामिनेशन देने पहुंचते हैं उनके लिए बता दूं कि जे डबलई एडवांस का साल 2026 का एग्जामिनेशन आईआईटी रुड़की कंडक्ट कराने वाली है। और वहीं साल 2027 का पेपर आईआईटी दिल्ली कंडक्ट कराने वाली है। अब यह जानना क्यों जरूरी था? क्योंकि हर साल आईआईटी का पेपर किसी एक आईआईटी को दिया जाता है कंडक्ट कराने के लिए। और यह आयता पुराने वाले सात आईआईटीस के बीच में ही घूमता रहता है। अब यहां कौन सी आईआईटी पेपर सेट कर रही है यह जानना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि बीते हुए सालों के पैटर्न के हिसाब से थोड़ा बहुत अंदाज या अनुमान लगाया जाता है कि कौन सा आईआईटी कैसा पेपर सेट करती होगी। जैसे आईआईटी रुड़की जो साल 2026 में पेपर सेट कर रही है। इसने इससे पहले साल 2019 का पेपर सेट किया था जो कि काफी कठिन था। और इसी वजह से जनरली यह माना जाता है कि अगर आईआईटी रुड़की पेपर सेट कर रहा है तो पेपर जरूर टफ आएगा। और इसी तरीके से आईआईटी दिल्ली के लिए फेमस है। यह जनरली मॉडरेट लेवल का पेपर सेट करते हैं। ना ही बहुत ज्यादा कठिन ना ही बहुत ज्यादा आसान। तो अब पेपर सेटिंग के बाद बात कर लेते हैं मोड ऑफ एग्जामिनेशन की। तो ध्यान दीजिएगा ये एग्जामिनेशन भी पूरी तरह से कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट होता है। लेकिन ये एग्जामिनेशन सिर्फ एक ही दिन में हो जाता है और इसके लिए मल्टीपल शिफ्ट्स नहीं होते। मतलब इस एग्जामिनेशन में कोई नॉर्मलाइजेशन का प्रोसेस नहीं होता है और ना ही परसेंटाइल सिस्टम होता है। तो इस एग्जामिनेशन का तरीका यह है कि एग्जाम के दिन आपके दो पेपर्स होंगे। पहला पेपर 3 घंटे का जिसमें आपसे फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स पूछा जाएगा। फिर 2 घंटे का ब्रेक देने के बाद उसी दिन आपसे दूसरा पेपर भी लिया जाएगा जिसमें अगेन फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स ही पूछा जाता है। इन दोनों पेपर को मिलाकर आपके जो टोटल मार्क्स आएंगे उसी के बेसिस पे आपका कट ऑफ तैयार किया जाएगा। हां, आपको बता दूं कि यह जो पेपर वन और पेपर टू है, यह दोनों ही 3-3 घंटे के एग्जामिनेशन होते हैं। और इसीलिए यह एग्जामिनेशन और भी ज्यादा कठिन हो जाता है क्योंकि इस एग्जाम में आपको सिर्फ कठिन सवाल ही नहीं बनाने होते बल्कि अपने शरीर को थकने से भी बचाना होता है। क्योंकि जनरली एक बच्चा एक ही दिन में दो-दो एग्जामिनेशन वो भी 3-ती घंटे के जब देता है तो वो इतना थक जाता है कि आखिरी पेपर के आखिरी एक-द घंटे आते-आते वो बच्चा पूरी तरह से एग्जॉस्ट हो जाता है और इसकी वजह से अधिकांश बच्चों का पेपर खराब हो जाता है। अब इन दोनों पेपर्स के पैटर्न की बात करें तो पेपर वन और पेपर टू दोनों में मैथमेटिक्स में 17 सवाल आते हैं। फिजिक्स में भी 17 सवाल और केमिस्ट्री में भी 17 सवाल और इससे कुल बनते हैं 180 नंबर का पेपर वन और 180 नंबर का पेपर टू। लेकिन ध्यान दीजिएगा ऐसा नहीं है कि हर साल पेपर 180 मार्क्स का ही बनता है। पिछले कुछ ऐसे साल भी आए हैं आईआईटी की हिस्ट्री में जब जे डबलई का एडवांस का पेपर 360 नहीं बल्कि 352 नंबर, 372 नंबर या कुछ अलग ही नंबर्स के टोटल मार्क्स बने हैं। तो ये कोई फिक्स पैटर्न नहीं है। डिपेंड करता है कि आईआईटी कितने का पूछेगा। पर पिछले दो-तीन सालों से तो 360 का ही पेपर आ रहा है। और हां, 17 फिजिक्स, 17 केमिस्ट्री और 17 मैथ्स से 51 सवाल बनते हैं। पर 51 सवाल में 180 नंबर कैसे आएगा? तो देखिए यहां पर अलग-अलग सवाल के मार्किंग स्कीम अलग-अलग होती है जिसको आपको डिटेल में उनके वेबसाइट से उनका नोटिफिकेशन डाउनलोड करके ही पता चलेगा। तो आप उसके लिए डिटेल नोटिफिकेशन डाउनलोड कर लीजिएगा। अब बात करते हैं कि इस जे डब्ल्यूe एडवांस एग्जामिनेशन में कितने बच्चे सेक्ट होते हैं। तो देखिए साल 2023 के आंकड़े के हिसाब से 1880372 बच्चे इस एग्जामिनेशन में अपीयर हुए थे। जिनमें से 43773 बच्चे क्वालिफाइड कहे गए। मतलब इन बच्चों को रैंक दी गई थी। वहीं साल 204 में 1880 बच्चे इस एग्जामिनेशन में अपीयर हुए थे। जिनमें से 48248 बच्चों को रैंक दिया गया। पर इन्हीं दोनों सालों में आईआईटी की सीटें 17385 और 17740 रही थी। और आपको बता दूं कि हर साल आईआईटी की सीटें करीबन 200300 की संख्या से बढ़ती रहती हैं। तो अब सवाल उठता है कि ये जो 40 500 बच्चे जो जेई एडवांस क्वालीफाई करते हैं जिन्हें रैंक दी जाती है। इन बच्चों के लिए कट ऑफ कितना होता है? तो देखिए साल 2023 और 24 दोनों ही साल 360 अंक का पेपर पूछा गया था। जिनमें से जनरल कैटेगरी वाला बच्चा साल 2023 में 86 नंबर लाकर कट ऑफ क्लियर किया था। वहीं साल 2024 में यह अंक 109 नंबर था आउट ऑफ 360। हालांकि इस एग्जामिनेशन को क्लियर करने के लिए सब्जेक्ट वाइज कट ऑफ भी होता है। मतलब आपको हर एक सब्जेक्ट में कम से कम आठ नंबर या 10 नंबर लाने ही होंगे। तभी आपका फाइनल रैंक आएगा। साल 2023 में यह मार्क्स आठ नंबर पर सब्जेक्ट था और साल 2024 में यह मार्क्स 10 नंबर पर सब्जेक्ट था। और आपको यह भी बता दूं कि ये जो बच्चा 86 नंबर लाया था साल 2023 में उसका एक्चुअली में रैंक आया कितना था? साल 2023 में 86 नंबर लाने वाले बच्चे का रैंक था 26321 वहीं साल 2024 में जिस बच्चे ने 109 नंबर लाया था उस बच्चे का रैंक था 25946 और हां ये सारे रैंक और मार्क्स जनरल कैटेगरी के बता रहा हूं बाकी कैटेगरीज में ये मार्क्स और रैंक अलग-अलग थे। तो अब फिर आखिरी सवाल यह उठता है कि रैंक वन वाले को तो आईआईटी मिल जाएगा। लेकिन आखिरी कौन सा रैंक होगा जहां तक आईआईटी मिलेगा? क्योंकि 26,321 या 25,946 इस बच्चे का तो सिर्फ जेई एडवांस क्लियर हुआ है। इसे आईआईटी तो नहीं मिलेगा। तो फिर कौन सा वो आखिरी रैंक वाला बच्चा है जिसे आईआईटी मिलेगा? तो ध्यान दीजिएगा अलग-अलग आईआईटीस के अलग-अलग कट ऑफ होते हैं। इनमें से सबसे फेमस आईआईटी बॉम्बे है। तो अगर मैं उसके कट ऑफ की बात करूं। अब आईआईटी बॉम्बे का सबसे फेवरेट ब्रांच सारे बच्चों का कंप्यूटर साइंस माना जाता है। तो कंप्यूटर साइंस साल 2023 में 67 रैंक पे बंद हो गया था। वहीं साल 2024 में यह 68 रैंक पे बंद हो गया। और वहीं आईआईटी बॉम्बे के आखिरी ब्रांच की बात की जाए तो वो था बैचलर इन साइंस इन केमिस्ट्री और यह बीएस केमिस्ट्री की जो डिग्री थी साल 2023 में 964 रैंक पे बंद हुई थी। वहीं साल 2024 में 7430 रैंक पे बंद हुई थी। मतलब आईआईटी बॉम्बे में जाने वाला बच्चा साल 2023 में रैंक वन से लेकर रैंक 964 के बीच वाला था। वहीं आईआईटी बॉम्बे का बच्चा साल 2024 का रैंक वन से रैंक 7430 के बीच वाला बच्चा था। अब यही आंकड़ा आईआईटी दिल्ली के लिए अलग होगा। आईआईटी खड़कपुर के लिए, कानपुर के लिए और बाकी सारे आईआईटीस के लिए अलग होगा। अगर मोटा-मोटी बात समझे तो शायद 10 से 12,000 जे डबलई एडवांस के रैंक वाला बच्चा आखिरी के आईआईटी में आखिरी के ब्रांचेस में जा पाता है जो कि एक जनरल कैटेगरी का बच्चा होता है। रिजर्व कैटेगरी में ऑब्वियसली मार्क्स और रैंक कम हो जाते हैं। तो ये थी आज की पूरी जानकारी जे डबलई एग्जामिनेशन और उस तक पहुंचने की बीच के सफर की कहानी। उम्मीद करता हूं कि इस वीडियो से आपको पूरी क्लैरिटी मिली होगी कि जे डबलई का सफर कैसा होता है? उसके बीच में क्या-क्या पड़ाव होते हैं? कितने मार्क्स लाने की आवश्यकता है? सीबीएसई के क्या रूल्स हैं? और जे डब्लई से जेई मेंस और जेई एडवांस में क्या अंतर होता है। अगर आपको वीडियो पसंद आया हो तो वीडियो जरूर लाइक कीजिए और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिएगा और चैनल जरूर सब्सक्राइब रखिएगा ताकि ऐसे बेहतरीन वीडियोस आप तक पहुंचते रहे। मुलाकात करते हैं अगले वीडियो में तब तक के लिए टेक केयर। बाय।