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ग्लोबल वित्तीय संकट 2008 का विश्लेषण
Mar 2, 2025
ग्लोबल फाइनेंशल क्राइसिस 2008
परिचय
2008 में आई ग्लोबल फाइनेंशल क्राइसिस का प्रभाव विश्व की आर्थिक स्थिति पर पड़ा।
इस संकट ने विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं को मंदी में धकेल दिया।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने मंदी के बजाय केवल धीमी गति का सामना किया।
संकट के पीछे की वजह
90 के दशक में USA की टेक्नोलॉजी कंपनियों में बूम आया जिसे .com बूम कहा जाता है।
2000 के बाद इन कंपनियों में गिरावट आई और निवेशक अपने पैसे अन्य क्षेत्रों में लगाने लगे।
रियल एस्टेट सेक्टर में बूम के कारण निवेशकों ने यहां निवेश किया।
बैंक और निवेश बैंक का सहयोग, और लो इंटरेस्ट रेट्स ने रियल एस्टेट बूम को बढ़ावा दिया।
बैंकों ने लोन देना शुरू किया, यहां तक कि उन लोगों को भी जिनकी लोन चुकाने की क्षमता नहीं थी।
फाइनेंशल क्राइसिस का प्रभाव
सबप्राइम बॉरोवर्स को दिए गए लोन के कारण बैंक के लिए एनपीए बढ़ गया।
रियल एस्टेट के दाम गिरने लगे और बॉरोवर्स द्वारा लोन न चुकाने से बैंक की पूंजी संकट में आई।
इन्वेस्टमेंट बैंक्स और इंश्योरेंस कंपनियां भी इससे प्रभावित हुईं।
USA की अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई और GDP गिरावट की तरफ बढ़ी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
भारतीय अर्थव्यवस्था ने ग्लोबल रिसेशन के मुकाबले केवल स्लोडाउन का अनुभव किया।
कारण:
कम अनपेक्षितता विदेशों पर निर्भरता
GDP का अधिकांश हिस्सा घरेलू स्रोतों से आता था
भारतीय बैंकों का US मॉर्टगेज मार्केट में सीमित एक्सपोजर
आर्थिक प्रभाव:
फिस्कल डेफिसिट बढ़ गया, जो 2008-09 में GDP का 8.3% हो गया।
करंट अकाउंट डेफिसिट भी बढ़ा, 2008-09 में GDP का 2.3% से बढ़कर 2012-13 मे ं 4.8%।
NPA की समस्या का आरंभ हुआ।
नतीजा
आर्थिक क्राइसिस ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सीमित स्तर पर प्रभावित किया।
रघुराम राजन ने इस संकट की भविष्यवाणी की थी।
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था की लोअर डिपेंडेंस ऑन एक्सपोर्ट और घरेलू बाजार पर निर्भरता ने इसे वैश्विक संकट से बचाया।
भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सीमित एक्सपोजर ने भी महत्वूपर्ण भूमिका निभाई।
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