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वन नेशन वन इलेक्शन की सारांश चर्चा
Sep 24, 2024
वन नेशन वन इलेक्शन
प्रस्तावना
वन नेशन वन इलेक्शन का विचार बीजेपी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
उद्देश्य: देश में एक साथ चुनाव करवाना यानी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना।
समस्याएँ और तर्क
वोट की शक्ति
: बार-बार चुनाव से सरकार को जनता की समस्याओं पर ध्यान देना पड़ता है।
फिजूल खर्ची बचत
: सरकार का दावा कि इससे पैसे की बचत होगी और प्रशासनिक कार्यों में सुधार होगा।
लॉजिस्टिक्स
: अधिक मशीनों की जरूरत और सुरक्षा बलों की बार-बार तैनाती रोकने का तर्क।
मास्टर स्ट्रोक
2024 तक एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई जिसके चेयरमैन रामनाथ कोविंद थे।
इस समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया।
उद्देश्य: चुनाव में स्थिरता लाना और खर्च में कटौती करना।
विधायी प्रस्ताव
फुल टर्म और अनएक्सपायर्ड टर्म
: सरकार गिरने पर नए चुनाव होंगे पर सरकार केवल अनएक्सपायर्ड टर्म तक ही चलेगी।
दूसरा बिल
: लोकल बॉडी चुनावों को लोकसभा और विधान सभा चुनावों के बाद 100 दिन के अंदर पूरा करवाना।
आलोचना
वोटर फटीग
: बार-बार चुनाव से जनता की थकान बढ़ सकती है।
क्षेत्रीय मुद्दे दब सकते हैं
: राज्य के मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के तले दब सकते हैं।
संविधानिक चुनौतियाँ
: वन नेशन वन इलेक्शन से संविधान के बुनियादी ढांचे पर असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर विपक्ष में भी कड़ा विरोध है।
भाजपा को संविधानिक संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
इस विचार के प्रभावी कार्यान्वयन पर संदेह है, और इसे एक राजनीतिक जुमला माना जा सकता है।
वैकल्पिक सुझाव
चुनाव आयोग की मौजूदा शक्तियों का विस्तार कर चुनाव को अधिक सुचारू बनाने की बात।
अधिक संगठित और जवाबदेह चुनाव प्रणाली की आवश्यकता।
अंतर्दृष्टि
लोकतंत्र की प्रक्रियाओं को केंद्र में रखकर ही किसी परिवर्तन को लागू करना चाहिए।
किसी भी नए प्रस्ताव को लागू करने से पहले उसके दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना आवश्यक है।
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