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वन नेशन वन इलेक्शन की सारांश चर्चा

एक और विशय है वन नेशन वन इलेक्शन वन नेशन वन इलेक्शन अरे हमको क्या मिलेगा ये भारत की जरूरत है इसमें अपत्ती क्या है ये चलने वाला नहीं है एक देश एक चुना होना चाहिए एक मतदाता सुची होनी चाहिए हमारे देश में समस्याओं की कमी तो है नहीं बेरोजगारी की मार है महंगाई के सामने हार है ना ढंग का एजुकेशन है ना हिल्थकेर के बारे में ना ही बात करे तो बहतर है बेज़ज़त किया जाएगा बस एक ऐसा वक्त आता है जब आपकी इत्तुसी इजज़त होती है जब देश के राजा महराजा आपको दर्शन देते हैं इलेक्शन सीजन चुनाओं के कुछ महीने पहले नई स्कीम्स लाउंच होती हैं अचानक से नेतागन को याद आता है कि सरकारी नौकरियां बोलकर कोई चीज होती हैं कामकाज क्या होता है समझ में आता है ओफिस जाना क्या होता है समझ में आना है लोगों से मिलना क्या होता ह प्रदानमंत्री MP, MLA, Municipal Corporator या सरपंच की बात कर लो इनको ना मीडिया से डर लगता है ना विपक्स से ना कोड से डर तो बस उन्हें एक चीज से लगता है आपका और मेरा वोट ये जो अलग-अलग इलेक्शन्स होते हैं बार-बार इलेक्शन्स हो रहे हैं बस उसी के चलते सरकार कभी-कभी बूल भालकर थोड़ी सी पूंजपतियों को छोड़कर आपके और हमारे भलाई के बारे में सोच लेती है अपनी जेबे छोड़कर कभी-कभी आपके और हमारे जेब की खस्ता हालत के बारे में सरकार इलेक्शन के वज़े से ही सोचती है लेकिन अगर नरेंद्र मोदी की चले तो आपकी ये वोट की शक्ती, इलेक्शन की शक्ती कई गुना कम हो सकती है और वो भी 2024 के अंदर ही। क्योंकि नोटबंदी के मास्टर स्ट्रोक के बाद बीजेपी अब लाना चाहती है वन नेशन वन इलेक्शन। क्या ये हमारे देश को सच्ची में तरक्की के राह पर ले चलेगी जैसा कि बीजेपी कह रही है या वन नेशन वन इलेक्शन डेमोक्रिसी का वोही हाल करेगी जो नोटबंदी ने ह देशबक के आज के एपिसोड में जानने की कोशिश करेंगे ये वन नेशन वन इलेक्शन का आईडिया आखिर क्या है तो ये कॉनसेप्ट अच्छा है या नहीं ये कब इंप्लिमेंट होगा इसमें लिगालिटीज क्या है और क्या ये इंप्लिमेंट हो भी सकता है या नहीं और क्या इस मास्टर स्ट्रोक की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि भाजपा को कहीं न कहीं समझ में आ रहा है कि इलेक्शन जीतना का कॉंफिडेंस थोड़ा सा कम हो रहा है और अगर मान लेते हैं वन नेशन वन एलेक्शन नहीं होता है तो और हमारे पास क्या आप्शन्स है देश में एलेक्शन को स्मूदली करवाने के लिए अल्टरनिटिव है या नहीं जानने की कोशिश करते हैं मोधी 2.0 के कारिकाल में 2 सितेंबर 2023 को एक हाई लेवल कमिटी का गठन किया गया साइमल्टेनियस एलेक्शन यानि वन नेशन वन एलेक्शन पर एक डीटेल्ड रिपोर्ट बनाने के लिए चेर्मन रहे इसके फॉर्मर प्रेसिडेंट रामनात कोविंड इसलिए इसको कोविन कमिटी भी बुलाया गया है मार्च 2024 को इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सब्मिट की अब सिविक्स में हमने हमेशा पढ़ा है प्रेसिडेंट अफ इंडिया एक रबर स्टैंप होते हैं कमिटी का काम था सरकार के प्लान पर एक मोहर लगाना ये ना पूछना कि वन नेशन वन इलेक्शन का लॉजिक क्या है बस अग्री करना और उसमें राह निकलना कोई भी इसलिए रीजिनल पार्टी, कोई ओपोजिशन का बड़ा लीडर, कोई भी सिटिंग चीफ मिनिस्टर को इस कमिटी में शामिल नहीं किया गया जबकि ये हमारे डिमोकरसी में इतना बड़ा एक चेंज लाने के लिए ये कमिटी बनाया गया था एक साल बाद 18 सेप्टेंबर 2024 को यूनियन कैबिनेट ने कोविन कमिटी की ये रिपोर्ट को एकसेप्ट कर लिया लेकिन एंडिया सरकार ने पब्लिकली ये एलान कर दिया कि वो कोविंट कविटी की रिपोर्ट के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन इंप्लेमेंट करने की कोशिश करेगी। नोटबंदी में जैसे काला धन मिटने वाला था ठीक वैसे ही वन नेशन वन इलेक्शन से देश की प्रजा को बहुत राहत मिलने वाली है। क्यों? क्योंकि लॉजिक ये बताय जाता है कि फिजूल खर्ची बंद की जाएगी, सरकार एक्शन जादा ले पाएगी, काम पर फो बेसिकली हमारी डिमोक्रिसी में अनुसाशन एक सिस्टम लाया जाएगा अब लोग कह रहे हैं मोदी जी ने किया होगा कुछ सोच के ही किया होगा आईए जानते हैं कितना सोच लगाया गया है आजादी के बाद जब देश में इलेक्शन्स होने शुरू हुए 1951 ओनवर्ड्स तब MLA और MP के इलेक्शन्स साथी में होते थे मगर धीरे ये जो सिंक था ये बिखरने लगा अब कुछ स्टेट्स के सरकारे पांच साल नहीं चल पाई कुछ हंग एसेम्बलीज हुई फिर से इलेक्शन होना पड़ा कभी लोगसभा में ही सरकार बीच में गिर गई तो इस सब के चलते आप सोचिए इतने सारे अलग इलेक्शन्स होने लगे कि 2024 तक लोगसभा इलेक्शन्स के साथ सिर्फ चार ऐसे राज थे जहां स्टेट इलेक्शन्स भी उसके साथ सिंक में अब हर साल कुछ स्टेट इलेक्शन्स होते हैं, कभी हर्याना, कभी जम्मोएं कश्मीर, जहारखंड महाराश्टा के चुनाओं हैं इस साल, अगले सार बिहार में इलेक्शन्स हैं, उसके बाद केरला और असाम और बेंगॉल में इलेक्शन हैं, और ठीक ऐसे ही अलग-अलग सरकार के ये कहना है कि इससे पैसा बचेगा, कैम्पेइनिंग में काम बचेगा, डेवलप्पेंट पर सरकार ज़ादा फोकस कर पाएगी ना कि हर दूसरे तीसरे दिन जो इलेक्शन हो रहा है उस पर कैम्पेइनिंग करना पड़ता है सुप्रीम लीडर को अब इस डिबेट पर हम आएंगे पर पहला सवाल तो ये ओवियस सा बनता है कि जब हंग एसेमली होंगी अब सरकार मिट टर्म पे जब गिरेंगी और फिर से इलेक्शन जब बिखर जाएंगे जैसे कि 1960s और 70s में होता था तो फिर इसमें कोविंट कमि� इसलिए कमिटी ने दो बिल्स सजेस्ट किये हैं जिसमें पूरे मिलाकर 15 constitutional amendments भी होंगे याद रखे ये बहुत far reaching concept है समझना जरूरी है उद्देश ये है कि एक two phase system की स्थापना की जाए हर 5 साल लोकसभा और सारे state governments के चुनाओं साथ में किये जाए और उस महा चुनाओं के 100 दिन के अंदर local body elections भी conduct करवा दिये जाए ये plan है आप इसको detail में समझते हैं कि इसको implement कैसे किया जाएगा पहले बिल में सबसे important point ये है और ये लोगसभा और state elections के बारे में है कि ये दोनों को sink में कैसे बठाये जाए ये बिल constitution में कुछ नए articles लाएगा और कुछ को amend करेगा article 82A1 और 82A2 के तहट general elections के बाद president date एक ताय करेंगे जिसको appointed date बुलाये जाएगा ये date पाँच साल बाद आएगी और ये वो दिन होगा जब लोकसभा और सारी स्टेट एसेमब्लीज डिसॉल्व की जाएंगे और फिर से चुनाओ किया जाएगा सबका एक साथ एक्साम्पल देदा हूँ अगर सोच लीजिए सिस्टम अभी एकसेप्ट हो जाता है पाललमेंट पर पारित हो जाता है सोच लीजिए और 2029 से वन नेशन वन इलेक्शन इंप्लेमेंट हो जाता है अपॉइंटेड डेट मान लीजिए पाँच माई 2029 को ताई की जाती है तो एक साल पहले भी ना करनाटका एक्सांपल लिजिए 2028 में उनके इलेक्शन्स होने वाले हैं तो करनाटका की सरकार बस एक साल चलेगी उसके बाद फ्रेश इलेक्शन्स होंगे ताकि करनाटका को वन नेशन वन इलेक्शन के साथ सिंक मिलाया जाए सिर्फ तभी किसी स्टेट का इलेक्शन डिले हो सकता है या फिर कोई मेजर सिक्योरिटी हो या कोई स्पेशल सरकंस्टांस हो नहीं तो सबका एक साथ एक टाइम पर इलेक्शन हो पर यहां सबसे important सवाल यहां आता है कि एक बार तो आपने sink कर लिया, बड़ा decision दे लिया, constitutional amendment कर दिया, सबको एक साथ कर दिया, ठीक है, लेकिन भाई क्या guarantee है कि sink फिर से नहीं तूटेगा, सरकार किसी के गिरेगी नहीं, hung assembly होगा नहीं, किसी के सरकार तोड़ नहीं दी जाए पांच साल तक चलती हैं इनमें एमेंडमेंट करके को विंट कमिटी की रेकमेंडेशन है एक कॉनसेप्ट लाने का फूल टर्म और अन एक्सपायर टर्म समझिए, full term यानि full 5 साल का term, ये कोई नई चीज तो है नहीं, ये तो होता ही है, पर चीज interesting तब हो जाती है जब कोई सरकार full term complete करने से पहले गिर जाती है, और center की सरकार हो या किसी भी state की सरकार हो, अपने 5 साल के full term से पहले अगर dissolve हो जाती है, तो remaining जो period होता है, उसको unexpired term खतम होने वाला है फिर 2034 में ठीक है पर फर्स कीजिए कि कर्नाटेका की सरकार 2032 में गिर जाती है अगला सिंक्रोनाइज इलेक्शन तो 2034 में होने वाला है तो अब इसके बीच में क्या होगा ये दो साल जो अन एक्सपायर टर्म जिसको हम बुला रहे हैं उसमें क्या होगा अब इस वन नेशन वन इलेक्शन मास्टर स्ट्रोक के तहट सरकारे फुल टर्म से पहले अगर गिर जाएं तो वहाँ फिर से चुनाव होंगे पर वो जो नई सरकार होगी वो पाँच साल के लिए नहीं चलेगी वो सिर्फ और सिर्फ वो अन एक्सपायर्ड टर्म के लिए च जो सरकार बनेगी उसको सिर्फ दो साल बाद डिजॉल्व करके 2034 में फिर से वन नेशन वन इलेक्शन के तहट फिर से चुनाव लड़ना पड़ेगा लोगों को फिर से आकर वोट करना पड़ेगा यानि दिखाने के लिए तो वन नेशन वन इलेक्शन है वैसे में वेरी मेनी मोर इलेक्शन हो सकते हैं और भी जादा वोटर फटीग बढ़ सकता है हर स्टेट और यूनियन टरिटरी के ये रूल्स होंगे और सेंटर के लिए भी यही रूल होगा कि term complete करने से पहले अगर कोई सरकार गिर जाती है तो उसे election में लड़कर सिर्फ उस unexpired period के लिए ही उनका term होगा एक दो साल की भी सरकार हो सकती है फिर से चुनाओ होगा हुआ ना? नोट बंदी से भी बड़ा master stroke पहले लोग ATM लाइन के बाहर खड़े रहते थे इस बार polling booth के सामने खड़े रहेंगे और देखेंगे कि ये आओ फिर से चुनाओ करते हैं तो ऐसे छोटे unexpired term से सरकारे बनेंगी ताकि one nation one इलेक्शन का यह जो सिंक है यह बना रहे हैं अब यह इससे क्या होगा उस पर हम अभी आते हैं लेकिन मास्टर स्टोक यहां खतम नहीं होता है जो दूसरा बिल है वो लोकल बॉडी इलेक्शन की बात करता है पालिमेंट को यह पावर देता है कि वो ऐसे कानून बनाए कि लोकल बॉडी इलेक्शन लोकसभा और स्टेट एसेम्बली के सौ दिन के अंदर हो जाए यहां एक कॉमन इलेक्टोरल रोल की भी बात की गई है लेकिन मान लो यह जो मेन जो मुद्धा है यह एक फर्स्ट बिल का ही है सरकार का पक्ष यह है कि बार-बार elections करवाने से सारे बहुत सारे नुकसान होते हैं, पैसा बहुत सारा खर्ष होता है, बार-बार security forces, police की तैनात्की होती है, इससे सारे elections से model code of conduct ना बार-बार लागू किया जाता है, जिससे सरकार फैसले नहीं ले पाती है, चार-साड़े-च और बार चुनाव होने से सारा टाइम कैम्पेइनिंग में चला जाता है। गवर्नेंस पर फोकस, देश की स्टेबिलिटी पर फोकस करने का टाइम नहीं मिलता है जिससे विकास पर इंपैक्ट पड़ता है। तो वैसे पहले नेहरू की गलती थी लेकिन अब समझ में आ रहा है कि देश में चुनाव इतने सारे हो रहे हैं वो ही गलती है नहीं तो विकास अभी तक आ चुका होता। अब एक करके ये आर्ग्यूमेंट को समझते हैं फिर समझ में जहां तक पैसो की बात है ऐसा कोई खास प्रूफ हमें नहीं मिला है कि वन नेशन वन इलेक्शन से खर्चा कम होगा चुनाओं सारे एक साथ होंगे तो अंदाजा ये लगाया गया है कि तीन गुना जादा EVM और BB-PAT मिशीन्स आपको चाहिए होंगे एक चीफ इलेक्शन कमिशनर S.Y.

कुरेशी ने खुद कहा है कि कम से कम 40 लाख एक्स्ट्रा EVM की जरूरत पड़ेगी और इसका काफी बड़ा फाइनेंचल और लोजिस्टिकल इंपैक्ट पड़ने वाला है हमारे सरकार पर और उपर से चुनाओं की frequency कम हो जाएगी इस पर भी कोई खास guarantee नहीं है। देश में अक्षर, बीच-बीच में सरकारे गिरती हैं, ऐसे में फिर से election करवाना पड़ता है, फिर वो सरकारे सिर्फ unexpired term के लिए आएंगी, फिर से dissolve होंगी, फिर से चुनाओं होगा। और अगर बात की जाए पुलिटिकल पार्टीज की खर्चे के बारे में तो EC strictly candidate spending को monitor कर सकती है, model code of conduct को ढंग से लागू कर सकती है, इससे देखिए कितना कम हो जाएगा, पूरा system बदलने की जरूरत है नहीं। भाजपा इलेक्टोरल बॉंड्स जैसे स्कीम लाकर चंदे पर धंदा करना बंद कर दे तो उससे भी बड़े लेवल पर इलेक्टोरल एक्सपेंडिचर कम हो जाएगा और अगर इलेक्शन कमिशन चाहे तो कैंडिडेट ही नहीं पार्टी स्पेंडिंग पर लिमिट लगा र इंक्लूजिव डिमोकरिसी के लिए कभी कभार अगर थोड़े ज़ादा पैसे खर्च होते हैं तो होने दीजिये समझाता हूँ कैसे इतने बड़े देश में अलग-अलग प्रॉब्लिम्स, अलग-अलग डिमांड्स होती हैं और जब स्टेट्स में अलग इलेक्शन्स होते हैं तो उन मुद्दों पर ढंग से फोकस किया जाता है तो क्यों महराश्चा के इशूस पर अलग से फोकस ना किया जाए, उसको नैशनल इशूस के अंडर क्यों लाया जाए? अगर स्टेट और सेंटर के इलेक्शन्स दोनों साथ करवा दोगे, तब कहीं न कहीं स्टेट के मुद्दे नैशनल मुद्दों के नीचे दब जाएंगे, उनके अस्पिरेशन्स दब जाएंगे, और लगता है भाजपा का प्लान भी यही है, कि मोधी करके, नैश और इसका क्या लॉजिक है कि किसी स्टेबल सरकार को डिजॉल्व कर भी दिया जाए सिर्फ सिंक में लाने के लिए कि भाई लोगों ने चुनाओं में वोट किया दो साल पहले वोट किया है लेकिन नहीं आपने कहा तो भाई आप कैलेंडर आ गया है हम सरकार को भंग कर रहे ह जब इलेक्शन होगा कौन नेता इसको सीरिस नहीं लेगा वो अपनी पॉकेटे भरेगा सबसे बुरा तो लोकल बॉडी इलेक्शन के साथ हो रहा है कि उनको जेनरल इलेक्शन और स्टेट इलेक्शन के सौ दिन के अंदर कंडक्ट करवाना पड़ेगा ये भी इसमें समझने वाली बात है खेर लोकल बॉडीज में पूरे 30 लाख रेप्रेसेंटिटिव्स होते हैं जो डिरेक्टली लोकल गवर्नेंस में इंवॉल्ड होते हैं फॉर्मर सी इजी स्वाई कुरेशी का कहना है कि इनको स्टेट और लोकसभा इलेक्शन से ठीक बात कंडक्ट कराना लोजिस्टिकली भी मुश्किल है और उपर से बड़े लेवल पर वोटर फिटीग भी होने वाला है कि पहले जहां आपने बोला लोकसभा में जाओ फिर स्� ट्वेंटी फोर में आप देख लीजिए लोकसभा और चार स्टेट की इलेक्शन करवाने में पूरे साथ फेज़ेस लग गए। लोकसभा और स्टेट्स और यूनियन टेरिटरीज के इलेक्शन करवाने में दस से पंदरा फेज़ेस तो लगी जाएंगे और वो कितने महीनों तक इलेक्शन चलेगा पता नहीं। और उसके ठीक बाद सारे लोकल बॉडी इलेक्शन भी करवा दो नैचरल स्प्रेड आउट सिस्टम है लोगों को सांस लेने का मौका मिलता है पर अविलेटरी फोसेस को मूव करने का मौका मिलता है क्या वो सच में इतना खराब है क्या सच में यह एक प्रॉब्लम है जिसके उपर इतनी बड़ी एक मूव करने की जरूरत है या फिर सरकार के बीजेपी का कहना है कि ये stability की बात है देश में stability आएगे समझते हैं अगर problem है model code of conduct के चलते सरकार फैसले नहीं ले पाती है तो model code of conduct को change करते हैं ना कि पूरी एलेक्शन सिस्टम को खुद अपने वाइदों को आप डिलिवर कर दो ना तो दो करो रोजगार कर पाए ना तो पाकिस्तान अर्बर नकसल खालिस्तान वो सीधे एलेक्शन को आप दोश दिने लगे हो अगर नेताओं को आधे साल कैम्पेइनिंग मोड में र���न तो हो सकता है कि election में problem ना हो आपकी election campaigning system में problem हो मैं तो ये कहूँगा कि जो high level posts पर हैं जो लोग उन्हें campaigning करने के लिए सिर्फ कुछ दिन की permission मिलनी चाहिए बाकी दिन आप चुकचाब अपने नौकरी करो और देश की भाली के बारे में बात करो जो भाजपा की centralizing tendency है ना कि हर state में election मोदी के नाम पर लड़ा जाए वो शायद अपने आप में problem है कहीं न कहीं मुद्दे जो हो रहे हैं वो फिर से लोकलाइज हो रहे हैं रीजिनल पार्टीज फिर से सामने आने की कोशिश कर रही है मुद्दी मैजिक कहीं न कहीं कम हो गया है देश में डी मुद्दियाइजेशन का प्रोसेस शुरू हो चुका है अब शायद इसीलिए वो स्टेबिलिटी और एफिशियंट गवर्बमेंट के नाम पर एलेक्शन्स को एक साथ करना चाहते हैं जिससे नैशनल मुद्दे ही चले और इस सिस्टम में एमोशनल मुद्दों को उठा कर हेडलाइन मैनेजमेंट करके इलेक्शन जीतना भी आसान हो जाता है एक साथ एक बड़ा दंगा हो जाए एक बड़ा धमाका हो जाए फिर चुनाओ आपके जोली में और फिर पाँच साल आश करो आपको जवाब देने की भी कोई टेंशन नहीं और स्टिबिलिटी और एफि� खराब डिसिजियन्स पर सुन्दर शब्दों का स्टिकर चिपकाया जा रहा है आपके सामने पेश किया जा रहा है याद रखे डी मॉनेटाइजेशन के समय बात क्या हुई थी विकास की बात हुई थी तेज रफ्तार पर डेवलप्मेंट की बात हुई थी पर असर पड़ा किस पर देश के गरीबों पर पड़ा छोड़े दुकांदारों पर व्यापयारियों पर पड़ा इस वन नेशन वन इलेक्शन का भी असर सबसे ज़ादा गरीबों पिछले तपकों पर पड़ेगा जिनको कम से कम बार नोट बंदी में 500 और 1000 के नोट को एक्सपायर कर दिया गया यहां तो कोशिश यह हो रही है कि छोटे-छोटे सरकार छोटे-छोटे स्टेट इलेक्शन को एक्सपायर कर दिया जाए इस बात में शायद कोई डाउट नहीं है कि वन नेशन वन इलेक्शन हमारी डिमोकरिसी को डी मॉनटाइज कर देगा उसकी पुंगी बजा देगा लेकिन नोट बंदी और वन नेश नोट बंदी कम्प्लीट मेजॉरिटी वाली सरकार ने किया था और वन नेशन वन एलेक्शन शायद बस एक जुमला बन कर रह जाए क्योंकि मोधी सरकार अपनी मनबरजी से इंप्लिमेंट ये नहीं कर सकती है कोविंद कमिटी ने जो रेकमेंडेशन्स दी है उसके लिए कॉंस्टिटूशनल अमेंडमेंट्स की दरकार है लोगसभा में और राजसभा में मेरे 243 मेंबर लोगसभा में 2 थर्ड मेजॉरिटी के लिए कम से कम बीजेपी को 362 वोट्स चाहिए अभी बीजेपी और सारे इंडिया एलाइस को मिला कर भी 293 वोट्स उनके बनते हैं राजसभा में भी 2 थर्ड मेजॉरिटी मार्क 164 है और पूरे इंडिया की करंट स्टेंथ 121 है इसलिए बीजेपी का 400 पार होना इतना जरूरी था ताकि कॉंस्टिटूशनल अमेंडमेंट्स भी वो कर पाए बिना किसी दिक्कत के पर ना 400 पार हुआ और अब उसके number two third majority वाले है नहीं उपर से Covent Committee का जो दूसरा bill recommendation है उसके लिए two third majority चाहिए आपके states के लिए भी क्योंकि ज़ादा से ज़ादा state governments को ratify करना पड़ेगा क्योंकि municipal और panchayat elections state list में आते हैं यानि states के पास भी topic पर कानून बनाने का power है अभी के लिए इंडिया के पास state ratification करने की power है अगर अभी हर्याना महराश्ट्रा वैसे हालत अभी ठीक नहीं लग रही है ऐसा ही चलता रहा तो स्टेट रेटिफिकेशन भी बुश्किल हो जाएगा इसीलिए शायद मोदी सरकार चाहती है इसको जल्द से जल्द पारलेमेंट में लाया जाए इस विंटर सेशन में शायद लाया जाए जिससे कम से कम और स्ट पर ओपोजिशन छोड़िये शायद बीजेपी के खुद स्टेट लेवल लीडर्स भी वन नेशन वन इलेक्शन पर मनजूर ना हो क्या योगी अदितनात मनजूर होंगे कि यूपी इलेक्शन में सिर्फ मोधी का चेहरा रहेगा उनका नहीं याद रहे योगी अदितनात की परफॉर्मिंस 2022 में काफी अच्छी थी पर 2024 में मोधी मैजिक के चलते यूपी में बीजेपी का बीजेपी के नहीं आई डूब गई खैर अब ये बीजेपी की घर की अंदर की कलेश की बात है उसको अभी छोड़ देते हैं ओपोजिशन पार्टी साफ दोर से ये प्रस्ताव थुकरा चुकी है कुछ का ये मानना है कि ऐसा भी हो सकता है कि ऐसा move basic structure of the constitution के खिलावा ये फेडरिलिजम को अंडरमाइन करता है तो कोट में भी इसको चैलेंज किया जा सकता है गलती से अगर ये पारिद भी हो गया ऐसे में भाजपा का ये स्टेप शायद सिर्फ एक जुमला ही रह जाए लेकिन लोगों को दिखाया तो ये जा रहा है कि मोदी अभी भी मास्टर स्ट्रोक स्टेप्स ले सकते हैं पर अंत में इसको भी ठंडे बस्ते इस पर गोधी मीडिया फाल्तू में बहस तो कर रही है लेकिन होगा शायद कुछ नहीं। इलेक्टोरल रिफॉर्म की बात है तो राइट टू रीकॉल, एक्स्पेंडिचर पर टाइटर कंट्रोल, डी लिमिटेशन ऐसे जो मुद्दे हैं उन पर डिवेट करो। मगर मकसद ये शायद है नहीं। कॉंग्रेस प्रेसिडेंट का कहना है कि मकसद सिर्फ डिस्ट्रैक् जिससे असली मुद्दों पर जबाब ना देना पड़े लेकिन 2024 में सप्राइस परफॉर्मेंस के बाद कॉंग्रेस में भी थोड़ा ओवर कॉंफिडेंस दिख रहा है मोधी का कॉंग्रेस को ये डिरेक्ट चालेंज है कि मोधी का जो नया मास्टर स्ट्रोक है उसका सच क्या है इलेक्शन कमिशन के पास अलड़ी एक अधिकार है छे महिने की चुनाओं एक साथ करवाने का क्या हो अगर आप इसी स्कोप को 12 महिने तक एक्सपैंड कर दो, बने वन यर, वन इलेक्शन, सारे राज्यों के चुनाओं साल में एक बार होंगे और जब लोकसभा का चुनाओं होगा तो उन राज्यों के चुनाओं उसी साल में एक बार होंगे, बने साल में एक बार इलेक अगर बीजेपी को एफिशिंटली इलेक्शन करवाने होते तो हर्याना, जम्मू, इन कश्मीर, महराश्टा और ज्हारकंड के इलेक्शन एक साथ क्यों नहीं करवा पाए? सुनने में तो आ रहा है कि दूसरे स्टेट्स में कैम्पेइनिंग और जादा करना पड़ेगा इसीलिए इलेक्शन को स्प्लिट कर दिया गया। जब चार राज्य के इलेक्शन आप एक साथ नहीं करवा पा रहे हो तो इतने बड़े सपने क्यों दिखा रहे हो कि इ 2019 की हम बात करें, जहारखट एसेम्बली एलेक्शन को पाँच फेज़ेस में किया गया, सिर्फ स्टेट, 2021 वेस्ट बेंगॉल एसेम्बली एलेक्शन को आठ फेज़ेस में किया गया, लोकसवाई एलेक्शन, तीन स्टेट्स, साथ फेज़ेस में किया गया, ग्यारा दिन लग parliamentary और federal system पर आधारित है ना कि presidential और unitary बार-बार हमारे democracy के basic structure के साथ खिलवार करने की कोशिश की जा रही है लोगों की आवाज state के लिए अलग और center के लिए अलग होती है इन आवाजों को कॉस्ट कटिंग और कन्वीनियंस के बहाने एक कैलेंडर में जबर्दस्ती ढालना समझदारी नहीं है हमारे संविधान के साथ गद्दारी है सरल भाषा में बोले तो जब भी देश राज्य के लोगों को सरकार पर उनका विश्वास उड़ जाए तब चुनाओं होगा पांच साल के लिए सरकार रहेगी यही हक हमारा संविधान हमें देता है अब भारत के लोगों को एक संविधानिक हक जो उनका है उसको एक कैलिंडर तबाही की थी