एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा हमारी यह कहानी एवरेस्ट में चढ़ना वाली भारत की प्रथम महिला विजेंद्र पाल की है जिन्होंने पहले प्रयास में ही एवरेस्ट के शिखर पर चढ़कर विजय प्राप्त की थी विजेंद्र पाल हमें बताती हैं एवरेस्ट में चढ़ना का हमारा यह सफर 1984 की गर्मियों में चालू हुआ 7 मार्च को हमने दिल्ली से काठमांडू के लिए फ्लाइट ली वैसे मीना पहले हमारी मदद करने के लिए 16 लोगों का एक बहुत ही मजबूत ग्रुप निकाल चुका था जिनका कम हमारे लिए रास्ता खोजना जगह-जगह पर रसिया बांधना और कैंप लगाना था खैर काठमांडू से हम एक महत्वपूर्ण स्थान मतलब समुद्र का सर कहते हैं मुझे तो यह नाम बहुत पसंद आया वैसे जब मैंने एवरेस्ट को गौर से देखा तो ऊपर मुझे कुछ बहुत बड़ा सफेद झंडा लहराता दिखे रहा था मुझे बताया गया की ये झंडा जैसा लहराता सुंदर दृश्य एवरेस्ट की छोटी में 150 किमी प्रति घंटे से भी तेज बर्फ के तूफान से बंता है और मजे की बात ये है की हमें इसी तूफान के बीच में एवरेस्ट के शिखर पे पहुंचाना है बस इतना ही मुझे डरने के लिए काफी था डेफिनेटली इस सफर में खतरा तो बहुत था फिर भी मैं सफर के लिए बहुत एक्साइड थी और आखिरकार हम 26 मार्च को पेरिस पहुंचे और पहुंचने ही हमारा स्वागत एक दुखद घटना के साथ हुआ हमें बताया गया आपके लिए रास्ता खोजना और काम बनाने का समाज धोने वाले गोलियां के 16 लोगों की ग्रुप में से आज ही मिस्खलन मतलब बर्फ के पहाड़ के टूट कर गिरने से एक ही मौत हो गई है इस खबर से सबके चेहरे में एक उदासी थी जिसके बाद हमारे कैप्टन करना खुल्लर ने कहा एवरेस्ट जैसे इस महान अभियान में खतरे और कई बार तो मृत्यु भी आपके ने आएंगे और आपको सहज भाव से इन्हें स्वीकार करना चाहिए थोड़ी डर में हमारी मदद करने वाली सपोर्ट टीम के कैप्टन प्रेमचंद पहले चिल्लाया उन्होंने हमें आगे की स्थिति से अवगत कराया और बताया हमने एवरेस्ट शिखर तक पहुंचने के लिए कर कैंप लगाएं हैं कैंप नंबर एक 6000 फिट की ऊंचाई में लगाया है जिसके बाद कैंप नंबर दो कैंप नंबर तीन और कैंप नंबर कर पर करके आखिरकार आपको शिखर तक पहुंचाना है उन्होंने हमारी चढ़ाई का सर इंतजाम कर दिया था सही रास्ते के लिए चिन्ह के तोर पे पतंग यह लगा दी थी सीडीओ का ब्रिज बनाकर और रसिया बांधकर सभी कठिनाइयां का जायजा ले लिया गया था सारे कैंप में खाने का समाज रस्सियां सीढ़ियां और ऑक्सीजन सिलेंडर पहले ही पहुंच चुके थे साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया पहाड़ अभी भी टूट कर रहे हैं हो सकता है हमारे बनाए हुए रास्ते के निशान मिट्टी जाए और ऐसी स्थिति में आपको खुद ही रास्ते खोजना होंगे इंस्ट्रक्शन जीने के बाद हम पेरिस से 20 कैंप की और जा रहे थे जहां हमें कुछ दिन रुक कर वातावरण में रहना सीखना था पहाड़ में चढ़ाई करना सीखना था और वहीं से हमें कैंप नंबर एक ही और निकालना था की तभी हमें बेस कैंप के रास्ते में खबर मिलती है की बस कैंप में खराब जलवायु के करण एक रसोई से है की मृत्यु हो गई है इस खबर के बाद हम जीने करने की साड़ी उम्मीद छोड़कर बस अपने लक्ष्य की और बढ़ते चले जा रहे थे बस कैंप में पहले दिन हमने मौसम के अनुसार खुद को अडॉप्ट करना सिखाया दूसरे दिन डॉक्टर मीनू मेहता ने अल्युमिनियम की सीडीओ से पुल बनाना राशन का अच्छे से उपयोग करना और बर्फ की टेढ़ी मेरी दीवार में रसिया बांधना सिखाया तीसरी दिन हमें कैंप से सम्मान धोकर ले जान की अभ्यास का था और आखिरकार बेस कैंप में तीन दिन रहने के बाद हम कैंप नंबर एक की और निकाल पड़े हम पल-पल की जानकारी करना खुल्लर बहुत खुश थे क्योंकि इतिहास में पहले बार भारत की कोई लड़की बिना डेयर एवरेस्ट को जितने निकाल चुकी थी और मैं कैंप नंबर एक तक पहुंचने वाली भारत की पहले लड़की बन चुकी थी धीरे-धीरे हमने कैंप नंबर दो भी पर कर लिया और 15 16 मैं को हम कैंप नंबर तीन में थे हम लगभग 10 लोग कैंप के अंदर सो रहे थे की तभी लगभग रात के 12:30 बजे एक धमाके के साथ मेरे सर में कुछ बहुत भारी से टकराया दर्द से मेरी नींद खली तो एहसास हुआ मैं बर्फ के पहाड़ के नीचे डब चुकी हूं ये एक ही मिस्खलन था और हमारे कैंप के सभी के सभी लोग बर्फ के नीचे दफन हो चुके थे मैं सांस तक नहीं ले का रही थी लेकिन आखिरकार मेरी टीम द्वारा मुझे बर्फ के उसे कब्र से बाहर निकाला गया अगले दिन हमें हमारी सपोर्ट टीम वापस कैंप नंबर तीन से कैंप नंबर दो पर ले आए हमारे कैंप के सभी नो पुरुष घायल थे किसी की हड्डी टूटी थी तो किसी को चोट आई थी और सभी को बेस कैंप वापस भेज किया गया तभी करनाल खुल्लर मेरे पास आए और पूछे क्या तुम रात को दरी थी मैंने कहा यस सर उन्होंने पूछा क्या तुम घर वापस जाना चाहोगी मैंने बिना हिचकिचाहट के साथ उत्तर दिया नहीं सर और एक बार फिर हमने चढ़ाई प्रारंभ की और धीरे-धीरे हम कैंप नंबर तीन और आखिरकार कैंप नंबर फोर में पहुंच गए लेकिन अभी पिक्चर खत्म नहीं हुई मेरे दोस्त काम नंबर फोर से हमें साउथ कॉल कैंप और फाइनली साउथ कॉल कैंप से शिखर तक पहुंचाना था और आखिरकार बहुत मशक्कत के बाद हम कैंप नंबर कर से साउथ को कम भी पहुंची गए साउथ पाल कैंप पहुंचने ही मैंने अपने अगले दिन की सबसे महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी प्रारंभ कर दी मैंने खाना कुकिंग गैस और कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर [संगीत] भारी भारी समाज लेकर और तो और बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के चल रहे थे साउथ कैंप पहुंचने के बाद अब मेरे पास चाय जूस और कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भी थे तो मैंने सोचा क्यों ना मैं नीचे वापस जाकर अपने टीम के लोगों की मदद ही कर डन कैंप के बाहर आते ही मुझे मीनू मिल गया थोड़ी ही नीचे जान पर मुझे जय भी मिल गया उसने चाय पी लेकिन मुझे नीचे जान से माना किया लेकिन मुझे की से भी मिलन था क्या पता उसे मेरी मदद की जरूर हो मैं थोड़ी ही और नीचे गई की आखिरकार मुझे की दिखाई गया वह मुझे देख के एकदम हक्का बका र गया और कहा तुमने इतना बड़ा रिस्क क्यों लिया बेचैनारी मैंने बहुत प्यार से कहा अरे मैं भी तो तुम्हारे तेरे पर बता रही हूं मैं भी तो इस कैंप का हिस्सा हूं और देखो एकदम फिजिकल फिट हूं लो अपनी किट मुझे दे दो मैं ले जाति हूं की हंस और कहा हां तो मैंने कब कहा की तुम फिट नहीं हो लेकिन मैं अपनी के तुम्हें नहीं ले जान दूंगा लेकिन चाय लाई हो तो लो पी लेते हैं थोड़ी डर बाद हम साउथ पाल कैंप वापस ए गए वहां आराम किया और अगले दिन मैं सुबह 4:00 बजे उठकर तैयार हो गई अपने आखिरी पड़ाव के लिए मैं कैंप के बाहर आई तू बाहर अंग्रेज शिखर तक जान के लिए तैयार खड़ा था वो बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के ही चढ़ना वाला था जिससे उसके पर ठंडी पद जाते तो वो रात को कहानी और रुकना अफोर्ड नहीं कर सकता था तो उन्हें सुबह सुबह भर पे ही निकालना था जिससे शाम होने से पहले पहले वो साउथ कॉल कैंप वापस ए सके उन्होंने मुझे पूछा क्या तुम मेरे साथ चलना चाहोगी भी चांदनी वैसे एक ही दिन में चढ़ना और फिर वापस उतारना मुश्किल तो था लेकिन उसे समय कैंप का कोई और दिखे भी नहीं रहा था तो मैं अकेले उनके साथ चलने को तैयार हो गई अंग्रेजी और मैं एक निश्चित गति से चढ़ते गए अंग्रेजी ने मुझे पूछा तुम थकी तो नहीं भेजी थी मैंने कहा था की वह भी मैं अजी बिल्कुल नहीं वो बहुत खुश हुआ और कहा अगर हम इसी रफ्ता से चढ़ते रहे तो दोपहर के 1:00 बजे तक शिखर पहुंच जाएंगे हम शिखर पहुंचने ही वाले थे की हवा की गति बहुत तेज हो गई और उसे हवा में उड़ते बर्फ की वजह से हमें चारों और कुछ भी नहीं दिखे रहा था फिर भी हमने हिम्मत नहीं हरि और आगे बढ़ते गए थोड़ी डर बाद मुझे ये एहसास हुआ की आगे चढ़ान नहीं ढलान है मेरी तो मानो सांस ही रुक गई मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था की मैं दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान एवरेस्ट की छोटी में खड़ी है और 23 मैं सन 1984 को दोपहर 1:07 पे मैं भारत की सबसे पहले एवरेस्ट की छोटी में पहुंचने वाली महिला बनी उसे छोटी में हमारे पास इतनी भी जगह नहीं थी की हम दो लोग एक साथ खड़े हो सके हमने सबसे पहले अपने फोड़े से खड़े होने की जगह बनाई और फिर मैं अपने साथ ले एक लाल कपड़े में दुर्गा मां की एक फोटो और हनुमान चालीसा लपेटकर उसे बर्फ में ढाबा दिया थोड़ी बहुत पूजा अर्चना की और भगवान को धन्यवाद दिया की उन्होंने मुझे एवरेस्ट में चढ़ना वाली पहले भारतीय महिला बने का सौभाग्य दिया इसके बाद अंग्रेजी ने मुझे प्रोत्साहित किया और मैंने भी उसे बिना ऑक्सीजन दूसरी बार एवरेस्ट चढ़ना की बधाई दी उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा दीदी तुमने अच्छी चढ़ाई की हमने अपने कैप्टन करनाल खुल्लर को वाक्य टॉकी से खुशखबरी दी उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा मैं तुम्हारे माता-पिता को बधाई जरूर देना चाहूंगा अब तुम जब वापस जाओगे तो तुम्हारे पीछे यह संसार बिल्कुल भिन्न होगा तो बस यही पर खत्म होता है हमारे यह प्यार से चैप्टर मिलते हैं अगली वीडियो में अगले चैप्टर के साथ देखने के लिए प्ले स्टोर क्लिक करें