जैजी नेंद्रदर्शकूं, आज की वीडियो में हम मेना सुन्दरी की कथा के बारे में जानेंगे। हम आपको सिद्ध चक्र महा मंडल विधान की महीमा के बारे में भी बताएंगे। तो चलिए देड न करते हुए इस कथा को शुरू करते हैं। उजेन नगर में महा प्रतापी प्रजा पाल नामक राजा राज्य किया करते थे। दोनों राणियों से एक-एक पुत्री थी। पहली राणी सोभाग्य सुन्दरी की पुत्री का नाम सुर सुन्दरी जो सोभाव से मिठ्यात्व को मानने वाली थी। दूसरी रूप सुन्दरी की पुत्री का नाम मैना सुन्दरी था जो सम्यक्त को धारन किये हुए थी। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सुर सुंदरी ने कहा मुझे मेरे महान राजा पिता की क्रपा से सब कुछ मिल रहा है प्रश्न उत्तर में मेना सुंदरी ने कहा सभी जीवात्मा अपने पूर भव एवं वर्तमान कर्म के अनुसार ही सुख दुख प्राप्त करते हैं। उसमें ना कोई कम कर सकता है और ना ही किसी के सुख दुख को बढ़ा सकता है। मेरे पूर्वभव के कृत कर्मों के कारण ही आपके यहां जन्म लिया है। प्रिजापाल राजा ने पुत्री सुर सुंदरी की इक्षिद वर्दान दिया एवं शंकपुरी के अधीपती राजा अरीदमन के साथ उनका विभा राजशाही ठाट बाट से किया दहेज में अनन्ने धन दोलद दास दासिया दी। गहमंडी पिता प्रिजापाल ने मैना को धिकारते हुए कहा तूने मेरा अपमान किया है तू वास्तव में मूर्क है। इस राज्यसवा के समक्ष में ने मान सम्मान को भैंका ठेस पोचाई है। इसका दंड तुझे अवश्य मिलेगा। अगले दिन जब प्रजापाल शिकार पर निकले, वहाँ एक जुंड को उनोंने आते हुए देखा। पता लगने पर उन्हें मालूम हुआ कि ये 700 कोडियों का जुंड है। राजा का विरोधी मन एहंकार से जलित हो उठा और पुत्री मैना का विवा कोडियों के राजा श्रीपाल के साथ करने का निश्चे कर लिया। श्रीपाल की बारात राजमहल की ओर बढ़ रही थी। सभी तरफ कोतुहल का माहोल था। सभी लोग रोग से ग्रसित थे। कईयों के शरीर पर घाव थे। खून टपक रहा था, मक्खियां भिनविन आ रही थी, उन्हें देखकर लग रहा था कि नरक से भी बत्तर जिन्दगी वे लोग जी रहे हैं। राज्य सभा में प्रजापाल ने आदेश वरोग कहा, मैना तेरे कर्म द्वारा प्रदान ये तेरा पती आया है। इसके साथ शादी कर सभी प्रकार के सुखों को प्रदान देखा। तू भोग ले कर्म आधारित भाग्य पर भरोसा करने वाली मैना सुंदरी ने शन भर भी विलंब नहीं किया दर्द से तड़प रहे कोडी के गले में वर्माला अरपित करके उसने अपने पती के रूप में उसको सुईकार कर लिया श्रीपाल लड़खड़ाती आवाज में मैना से कहते हैं खूब गहराई से सोच लो कंचन वर्णी तुमारी काया है मेरे साथ यह नष्ट हो जाएगी तुम देवांगना जैसी मुझे पती मानना उचित नहीं नहीं है ऐसे वचन सुनकर मैना को अपार दुख हुआ आखों से आसू टपकने लगे पती के चर्णों में गिरकर बोली हे स्वामी आप ये क्या बोल रहे हैं जैसे सूरे पश्चिम दिशा से नहीं उपता ठीक वैसे ही सती इस्त्रियां अपने पती धर्म से कभी भी दूर न श्रीपाल राजा पूर्भव में हिरन्य नगर के श्रीकांत नाम के राजा थे। जिन्ने शिकार का व्यसन था। उनकी राणी श्रेष्ट गुणवाली श्री मती जिनकी जेन धर्म पे अटूच श्रद्धाती वे हमेशा राजा को एकांत में समझाया करती थी कि किसी भी जीव की हिंसा से जन्मो जन्म तक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इस घ्रिनासपद कृत्ते से पृत्वी दोनों लज़ित होती हैं। लेकिन गलत मार्ग के व्यसनी इतनी जल्दी कहां समझने वाले थे। एक दिन साथ सो लोगों की टोली के साथ राजा श्री कांत शिकार के लिए भयंकर परिणाम भुगतने परिणाम वहाँ पर ध्यान में खड़े एक मुनिराज को देखकर सभी व्यंग के साथ कहने लगे ये तो किसी रोग से ग्रसित कोडिया है इसे मारो राजा के मुक से वचन निकलते ही सभी मिलकर उन मुनिराज को मानने लगे मुनिराज खून से लहु लुहान हो गए इस द्रश्य को देखकर राजा आनन्दरस में दूब गया। मुनीवर ने तो समता भाव में लीन होकर सलेखन धारण की। उदर धर्मानु रागी श्रीमती के बारं बार अनन्त बार समझाने पर भी श्रीकांत को अपने पुन्ट बार देखा। पुर्ण के उदय से कूकृत कार्यों का एहसास हुआ और महापाप का प्राइश्चित करते उसने संयम दीक्षा ग्रहन कर ली। जिन शाशन की अराधना करते हुए श्रीकांत के जीव ने मृत्यू के उपरांत श्रीपाल राजा के भव में ने जन्म लिया पूर्व पुन्ने एवं कठोर पश्चताप से राजा के हां उंबर नाम से उसने जन्म लिया मगर जन्म के साथ ही वे कोड़ रोग से ग्रसित हो गया राजा श्री कांत ने पूर्व भव के साथ सो सेनिक को भी कुष्ट रोग से ग्रसित होकर मानव जन्म में टोलियों का प्रमुक बना लिया इस प्रकार राजश्री पाल कोड रोग से ग्रसेत हुआ अब हम आपको आगे की कथा बताते हैं प्राता काल होने पर मैना ने अपने पती से कहा हे स्वामी चलिए भगवान आदिनात के मंदिर जाकर उनके दर्शन करके आते हैं। रिशब दे प्रभु के दर्शन से दुख और क्लेश का नाश होता है। एकागर चित से भक्ति भाव से दोनों ने प्रभु दर्शन किये एवं कायोच सर्ग आदि करके मैना ने प्रभु से प्रार्थना की के हे प्रभु आप तो जगत के चिंता मणी रत्न के समान हैं। मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। शरण में आय सेवक के आप ही आधार हैं� पुजन होने के बाद मेना ने अपने पती से कहा स्वामी पास में ही प्रोशद साला में गुरु भगवंत विराजमान हैं एवं उनकी देशना भी हो रही हैं हम भी वे धर्म देशना सुनकर कुछ पुन्णे अर्जित करते हैं देशना के उपरांट मैना ने गुरु देव से विंती करते हुए कहा कि हे गुरुवर आगम शास्त्रों जेन साधुओं का आचार नहीं है परन्तु फिर भी गुरुदेव ने आगम में देखकर मैना से कहा कि आप श्री सिद्ध चक्र विधान आयोजित कीजिए गुरुबन ने मैना से कहा कि आप श्री सिद्ध चक्र जी की इस्थापना कर नव पद की आराधना ध्यान और पूजन कीजिए यह तप आशार शुकला सप्तमी को आरंब करके इसी तरह चेत्र शुकल सप्तमी से कुल सारे चार वर्ष तक आराधना कर छल कपट रहित होकर शुद्ध भक्ति भाव से यह तप कीजिए। इस तप की विशुद्ध आराधना से रोग दूर और सभी दुरभाग्य नष्ट हो जाते हैं। के लगाने से अठरप्रकार के कोडों का नाश होता है एवं घाव भी अच्छे हो जाते हैं विविद्ध प्रकार की पीड़ा वेदना सभी दूर हो जाती है मन वचन काय को सैयम में रख कर शुद्ध उच्छारन से नव पद को समर्पित भक्ति भाव से धर्म ध्यान आराधना कीजिए उसकी सभी प्रकार की वेदनाएं दूर होकर इस भव और पर भव में भी मनवांचित सिद्धी देने वाली होंगी जेनचारे ने मैना को ये शी सिद्ध चक्र का यंत्र बना कर दिया एवं संपूर्ण विदी समझा कर शुबाशीस प्रदान किया। श्राविकाओं ने मैना और श्रीपाल को अपने घर ले जाकर स्वामी भक्ती की। गुरु आज्या अनुसार मैना सुंदरी ने इस विधान को पूर्ण किया और विधान पूर्ण होते ही राजा ने एक सुंदर तेजस्वी कांती मै राजकुमार श्रीपाल करू फिर से धारन कर लिया। यह उनके द्वारा पूर भव में की हुई गलतियों का उसी भव में आत्मिक पश्चताप एवं इस भव में शुद्ध भाव से जिन शाषन के नो रत्नों की आराधना का ही नतीजा था। इतना प्रफुलित हुआ जैसे उन्हें संसार ही नहीं स्वर्ग के सभी सुख मिल गए हूं। दोनों ने मा के चरण इसपर्श किये और मा ने करोना मैं आशिर्वाद दिया। मा ने दोनों को गले लगाते हुए करोना मैं आशिर्वाद दिया और जिन्वानी के मार्गदर्शन को शाश्वत बताते हुए बहु को दिल से आभार व्यक्त किया। भवो भव से जिन शाशन की आराधना में रहे इस जोड़े ने अपने साथ सो कोड़ी साथियों की भी आराधना से ही कोड़ रोग को दोर किया वर्षो उपरांत एक दिन राजप्रजपाल ने महाकाल राजा के स्वागत प्रत में कार्यक्रम रखा उसमें श्रीपाल राजा मैना सुंदरी को भी बुलाया गया कार्यक्रम में निर्त्य रखा गया और निर्त्यांग्यनाएं भी बुलाई गई जब निर्त्य की शुरुआत हुई तब अशुभ कर्म करने और और उनके उदे से उस नित्यांगना की पहचान हुई। जब मैना सुंदरी को ये बात पता चली कि वे नित्यांगना कोई और नहीं उसी की बेहन सुर सुंदरी है तो ये बात उसको बहुत ही बुरी लगी। और सुर सुंदरी मैना सुंदरी के पेरों में गिर कर बहुत रोई और अपनी पूरी व्यथा बताई कि वे किस तरह बिक कर वेश्यालाय पहुँच गई और अकतनिय कश्टों को भुगत ती रही। मैना उसे संतावना दे कर घर ले कर गई और सुर सुंदरी मैना उसे बहुत रोग कर गई और अपनी पूरी व्यवस्था बताई कि वे किस तरह बिक कर गई और अकतनिय कश्चों को भुगत ती रही। सोर सुन्दरी ने भी पश्चताप करते हुए स्वाकर्म को सुइकार कर जिन आराधना में लग गई। दर्शकों, इस कथा के माध्यम से हमने स्वाकर्म के सिध्धान्त को समझा जो शाश्व थे और केवली प्रणी थे। हमें इसको समझना चाहिए और अपने जीवन में भी उतानना चाहिए। अगर आपको ये कथा अच्छी लगी तो इस वीडियो को लाइक और 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