1971 का पाकिस्तान और बलूचिस्तान का संघर्ष

Jul 11, 2024

1971 का पाकिस्तान और बलूचिस्तान का संघर्ष

ज़ुल्फिकार अली भुट्टो का किरदार

  • ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को 1971 के संदर्भ में पाकिस्तान में विलन की भूमिका में देखा जाता है।
  • भुट्टो पर बलूचिस्तान में सैन्य ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी है क्योंकि वे उस वक़्त प्रधानमंत्री थे।
  • भुट्टो पर आरोप है कि उन्होंने बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलनों को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई का सहारा लिया।
  • असली मुद्दा: क्यों भुट्टो ने बलूचिस्तान के ऑपरेशन को छुपाया, खासकर तब जब बलूचिस्तान में सैन्य ऑपरेशन हुए?

बलूचिस्तान का संघर्ष

  • 1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद बलूचिस्तान में भी ऐसी आवाज़ें उठीं कि बलूचिस्तान भी स्वतंत्र हो जाए।
  • बलूचिस्तान में शक्ति संतुलन और सत्ता का नियंत्रण हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है।
  • बलूचिस्तान की समस्याओं के समाधान हेतु राजनीतिक संवाद की आवश्यकता जताई गई, बजाय इसके कि सैन्य ऑपरेशन का सहारा लिया जाए।

बलूचिस्तान में सैन्य कार्रवाई

-बलूचिस्तान में सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं किया गया। यह तर्क दिया गया कि सैन्य कार्रवाई से समस्याएं और बढ़ जाती हैं।

  • भुट्टो ने बलूचिस्तान में NAP (नेशनल अवामी पार्टी) की सरकार को 1973 में बर्खास्त किया।
  • बलूचिस्तान में स्थायी शांति हेतु सैन्य कार्रवाई की बजाय राजनीति और संवाद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

ऐतिहासिक और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ

  • अमेरिका और रूस का 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में दखल था।
  • पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई के पीछे का कारण अलगाववादी आंदोलनों और अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों को बताया गया।
  • 1973 में इराकी एम्बेसी से जब्त हुए हथियार बलूच अलगाववादियों तक पहुँचाए गए थे।

बलूचिस्तान के लिए ज़ुल्फिकार भुट्टो की भूमिका

-भुट्टो बलूचिस्तान के मुद्दों को सुलझाने में विफल रहे। बलूचिस्तान में उनके द्वारा सैन्य कार्रवाई की गई जिससे स्थिति और बिगड़ गई।

  • जनरल टिक्का खान, जिनका नाम बांग्लादेश में कत्लेआम से जुड़ा है, को बलूचिस्तान में नियुक्त किया गया।
  • 1974 और 1975 में बलूचिस्तान में हिंसा के उच्च स्तर को देखा गया।

लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष

-बलूचिस्तान में बलूच लोगों की असंतुष्टि और अलगाववादी संघर्ष का लंबा इतिहास है।

  • शासन द्वारा बार-बार होने वाली सैन्य कार्रवाई और बल के प्रयोग ने बलूच लोगों में और असंतोष पैदा किया।
  • बलूच नेताओं और उनकी राजनीतिक आवाज़ों को दबाने का प्रयास किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अधिक संघर्ष और हिंसा हुई।

स्थायी समाधान की राह

  • बलूचिस्तान के मुद्दों का समाधान केवल राजनीतिक संवाद और सामरिक समन्वय से हो सकता है।
  • पाकिस्तानी इतिहास से सीख लेते हुए भविष्य के लिए सही नीतियां बनाई जानी चाहिए ताकि बलूचिस्तान में शांति और स्थिरता को प्रोत्साहित किया जा सके।