राधा वल्लभ श्री हरिवंश

Jun 30, 2024

राधा वल्लभ श्री हरिवंश

भाव और साधन

  • श्री हरिवंश जी के अनुसार, राधा नाम का आराधन सर्वोत्तम है।
  • राधा नाम का महत्व और उसे जिव्या (जीविका) में स्थान देने का महत्व बताया गया।
  • साधन अन्य त्याग कर केवल राधा राधा का जाप करने की प्रेरणा दी गई।
  • साक्षात्कार और चिदानंद का वास राधा नाम के फलस्वरूप ही संभव है।

सदगुरु की कृपा

  • सदगुरु की कृपा बिना राधा नाम का फल प्राप्त करना कठिन है।
  • सदगुरु ही भवसागर से पार होने का माध्यम हैं।
  • बिना सदगुरु की कृपा और उनके आश्रय के भगवत मार्ग पर चलना कठिन है।

राधा नाम के गुण

  • राधा नाम अद्भुत चंद है, जो शीतलता और अमृत प्रदान करता है।
  • राधा नाम का निरंतर जाप समस्त दुखों का नाश करता है और आनंद देता है।
  • राधा नाम का जाप करते-करते अंतस तम का नाश होकर शुद्ध तत्व बोध प्राप्त होता है।

भक्त और भगवान का संबंध

  • भगवान की कृपा की महिमा, जब जगत से ठोकर मिले तो भगवान की तरफ ध्यान देने की प्रेरणा दी गई।
  • भगवान से अपार प्रेम करने वालों को संसार से तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
  • भक्तिदास भगवान के हाथ के बिके होते हैं, भगवान अपने भक्तों को सुखी रखने के लिए उनके दास हो जाते हैं।

समर्पण का महत्व

  • यदि भक्त अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है तो भगवान भी भक्त के हाथ में बिक जाते हैं।
  • पूर्ण समर्पण भगवत प्राप्ति का मार्ग है।
  • संतों की सेवा और आश्रय भगवान की कृपा प्राप्त करने का उपयुक्त उपाय है।

श्री विट्ठलनाथ जी का जीवन

  • श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी के सेवा और समर्पण की महिमा का वर्णन किया गया।
  • उन्होंने ठाकुर जी की सेवा में तिनके की भी त्रुटि को नहीं सहन किया।
  • उन्होंने अपने पुत्रों को ठाकुर की सेवा प्रदान की और अपने जीवन के अंत में निज धाम को प्रस्थान किया।

गुरू और गुरुवंश का महत्व

  • गुरू और उनके वंशजों के प्रति सम्मान की सीख दी गई।
  • गुरुजनों से विरोध करने का अर्थ सर्वनाश की ओर ले जाता है।

भगवान और भक्त का रिश्ता

  • भक्त और भगवान के बीच के भिन्न-भिन्न भावों का वर्णन किया गया (दास्य, सख्य, वात्सल्य, कांता, सहचर)।
  • भगवान अपने भक्तों के भाव को स्वीकार करते हैं और उनके अनुरूप व्यवहार करते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण धारणाएँ

  • उचित समय पर मेहनत का फल अवश्य मिलता है।
  • स्थिरता और निरंतरता सफलता की कुंजी हैं।
  • अनंत और असीम भगवान सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं।

निष्कर्ष

  • एक मात्र अपने आराध्य देव का आश्रय लें।
  • हरि और गुरु में कोई भेद नहीं है।
  • स्थिर भाव से निरंतर आराधना करें तो इस जीवन में ही भगवत प्राप्ति संभव है।