राधा वल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ श्री हरिवंश वृंदावन [संगीत] तैव पदारविंदम प्रेमा मृत मकरंद रसो पूर्णम हदर पितम मधुपति स्मर ताप मुगम निर्वा पय परम शीतल मा शयाम परम शीतल मा [संगीत] श्रय धा नाम को आराध राधा नाम को आराध साधन अन्य त्याग के मनुवा याही को दृढ़ सा राधा नाम को आराध राधा नाम को आराध श्री ललित किशोरी जी कह रहे हैं राधा नाम का ही आराधन करो राधा नाम को सिंहासन में विराजमान कर आराध्य देव की भावना करके आठो पहर सेवा में रहो राधा नाम को जिव्या में विराजमान करके आठों पहर रटो और साधनों की तरफ देखो भी मत साधन अन्य त्याग के मनुआ याही को दृढ़ साध राधा नाम को आराध मिली है ललित किशोरी नागर विश्वास करो लौकिक भोग सामग्री राधा नाम से मिल जाए तो बहुत सहज बात है श्री श्यामा श्याम का साक्षात्कार इसी राधा नाम से हो जाएगा मिली है ललित किशोरी नागर शोभा सिंधु अगा फली है सकल मनोरथ हुई है श्री वृंदावन बास आहा यदि आप राधा राधा राधा ऐसा रटते रहे राधा नाम को अपने आराध्य देव के रूप में विराजमान करके अष्टयाम सेवा करते रहे तो राधा नाम के फल स्वरूप श्यामा श्याम का साक्षात्कार हो जाएगा आपको चिदानंद में दिव्य वृंदावन का अखंड अनंत काल तक के लिए वास हो जाएगा समस्त तुम्हारे मनोरथ सफल हो जाएंगे क्यों ना मूढ़ मति राधा पुकारे मूढ़ मती क्यों समय नष्ट कर रहा है राधा राधा राधा ऐसा क्यों नहीं पुकार रहा राधा नाम पतवार बावरे मानस हाथन दृढ़ करि धारे क्यों न मूढ़ मति राधा पुकारे भव सागर से पार होने के लिए सुदृढ़ नौका और पतवार य राधा नाम है अरे मूढ़ मती क्यों समय नष्ट कर रहा है निरंतर नाम रट भव समुद्र से पार हो जाएगा ललित किशोरी सदगुरु सो मिली रहु जो बढत आनी उभारे नौका पतवार राधा नाम है पर खिवैया सदगुरु है अरे मूढ़ सदगुरु का आश्रय ले उनकी कृपा के बिना इस भव समुद्र से पार होना राधा नाम में प्रीति होना राधा नाम में विश्वास होना यह बहुत कठिन है सदगुरु रसिक की कृपा से ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है पानी चढ़त शीस ते सजनी फिर को केवट नाव पुकारे यदि तुम डूब गए तो फिर ना तुम नाम पुकार पाओगे राधा और ना केवट खिवैया सदगुरु का आश्रय ले दे पाओगे अभी तुम डूबे नहीं हो अभी पापों ने इतना भयंकर रूप धारण नहीं किया है इसलिए अभी अवसर है राधा नाम पुकार लो सदगुरु की शरण में हो जाओ तो भव समुद्र से पार हो जाओगे क्योंकि बिना सदगुरु की कृपा के भगवत मार्ग प्रकाशित नहीं होता जहां हो वही खड़े रहोगे यात्रा सदगुरु कृपा से हो क्योंकि अहंकार ममता आसक्ति यह हमको जकड़े रहती हैं हथकड़ी बेड़ियों की तरह यह ममता शक्ति और देहा भिमान य सदगुरु की शरण होने पर क्षीण हो जाता है श्री ललित किशोरी जी कह रहे हैं राधा नाम अद्भुत चंद जिसके जिव्या पर राधा राधा तो चंद दो कार्य करता है शीतलता और अमृत प्रदान करता है तो राधा नाम सुध रसम राधा नाम अमृत रस बरसाता है और शीतल चांदनी का प्रकाश कर देता है अर्थात अद्भुत ज्ञान अद्भुत प्रेम बरसत नित श्रंगार सुधरस सरसत अमित अनंद राधा नाम अद्भुत चंद जा सुप्रभा अंतस तम नासन जात सकल दुख द्वंद राधा नाम अद्भुत चंद ललित किशोरी सदा एक रस क्यों ना जसी मति मंद राधा नाम अद्भुत चंद ये राधा नाम अद्भुत चंद्रमा है ये प्रेमा मृत रस और ज्ञान प्रेम का प्रकाश करता है जिस प्रकाश से अंत स्तम की अविद्या का नाश होकर शुद्ध तत्व बोध होता है समस्त दंद पर विजय प्राप्त कर लेता है उपासक ललित किशोरी जी कहते हैं एक रस प्रेम रस भगवता अंद रस में डूबने के लिए तू क्यों नहीं मतिमंद तू क्यों नहीं राधा नाम का भजन कर रहा है राधा गोविंद पद कमल निश दिन हिए सवार जिन करुणावती निकुंज बिहार श्री राधा गोविंद देव जी के चरण कमलों का चिंतन करो मन जिनकी कृपा को से ही नौ निवत निकुंज का अद्भुत सुख इन्हीं नेत्रों से देखने में आता है पद रज तम किम आस करत हो जोग जप जब साधा की सुमिरत होत सुखद आनंद अति जर रहित दुख बाधा की ललित किशोरी शरण सदा रह शोभा सिंधु अगाधा की परब्रह्म गावत जाको जस झारत चरण रेणु राधा की मन तू इधर उधर मत भटक किसी से आस मत कर यज्ञ तीर्थ आटन आदि साधनों का आश्रय मत ले एकमात्र राधा राधा राधा इससे अपार सुख की प्राप्ति हो जाएगी दुख की जड़ नहीं रह जाएगी सदा आगात शोभा सिंधु प्यारी जू का वर्ध हस्त आपके ऊपर रहेगा प्यारी जू कौन है परब्रह्म परमात्मा जिनका जस गाते हैं और जिनके पग पधारने पर आगे आगे सोने लगाते हैं पुष्प दल बिछाते हैं वह है श्री राधा ऐसी श्री राधा का निरंतर नाम रटन करो आराधना करो बहुत जल्दी हमारी करुणामय अलबली सरकार हैं बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं यह प्रसन्न हो गई तो परमात्मा अधीन हो गया श्री कृष्ण अधीन हो गए पूज्य श्री भाई जी महाराज हनुमान प्रसाद पोदार जी अद्भुत वचन भगवान जिसे अपनाना चाहते हैं उसे सब जगत ठुकराने लगता है पकड़ो यह जो रोना धोना शुरू कर देते हो कि अब तो हमसे कोई बात नहीं करता अब तो ऐसा य भगवान की विशुद्ध कृपा है जो यह मोह जाल अज्ञान अविद्या य तुमसे दूर हो रही है असलियत समझ में आ रही है विश्वास कीजिए इस बात पर भगवान की कृपा की अवहेलना मत कीजिए यदि तुम्हें कोई तिरस्कार कर रहा है तुमसे कोई बात नहीं कर रहा है तुम्हारे सामने भारी समस्याएं आ रही तो कृपा है हमारे श्री हरि की अब ऐसा विधान होने वाला है जिससे जन्म जन्म की बिगड़ी बनने वाली है मान लो बात भगवान जिसे अपना प्रेम देना चाहते हैं उसको सब जगत से ठोकर लगवा देते हैं ऐसा ही है ऐसा ही है जिस पर भगवान कृपा करते हैं उसे जगत में कोई प्यार नहीं करता और वोह ठुकराया हुआ जगत का जब भगवान के द्वार पर आता है तो निहाल हो जाता है कृपा करते तब ठुकराते हैं ये कृपा होती है अगर चिंतामणि वैश्या बिल्व मंगल जी को ठोकर ना लगाती तो भगवत साक्षात्कार की योग्यता ना आती जगह-जगह पर ऐसा देखा गया कि जब जगत की ठोकर लगी तो भगवान का द्वार उसे दिखाई दिया फिर भगवान ने इतना ऊंचा उठा दिया कि उसे भगवान स्वरूप मानने लगे हम बिल्व मंगल जी को बिल्व मंगला आचार्य भगवत स्वरूप माना गया किसी भी वस्तु से व्यक्ति से स्थान से जब ममता होती है तो अज्ञान इतना बढ़ जाता है कि भगवान है भी कि नहीं ऐसा संशय होने लगता है य महापुरुषों के वचन है जब भगवान कृपा करते हैं और सब जगह से ठोकर लगती है और ममता भगवान के चरणों में हो जाती है तब उसको जो ज्ञान जो आनंद प्राप्त होता है वह कहीं नहीं है जैसे हम स्वप्न में बाजार देखते हैं मित्र देखते हैं शत्रु देखते हैं अच्छा देखते हैं बुरा देखते हैं लेकिन जब जगते तो सब झूठा होता है ऐसे ही उमा कहो मैं अनुभव अपना सत हरि भजन जगत सब सपना जब भगवान कृपा करते हैं तो स्वप्न टूट जाता है जगत का जो हम यह माने हुए हैं यह मेरे यह अपने मुझे बहुत प्यार करते हैं झूठा स्वप्न टूट जाता है भगवान उसी को मिलते हैं जो अपने आप को अपनी मानी हुई मान्य के सहित अपना अस्तित्व भगवान के हाथ दे देता है भगवान ऐसे उपासक को अपने आप को दे देते हैं सौदा पक्का आप अपने आप को दे दीजिए कुछ ना रहे आपका तो भगवान अपने आप को दे देंगे अहम भक्त पराधीन अस्तं इवज मैं भक्तों के हाथ बिका हुआ दास हूं भगवान कहते मैं हूं भक्तन को दास भगत मेरे मुकुट मणि पग चापू और सेज बिछाओ नौकर बनू हजाम हाकू बैल बनो गड़वार बिना तनख्वा रथवा यही तो मेरे मन में ठनी भगत मेरे मुकुट मणि अपनो परण विसार भगत को पूरो परण निभाव जाचक जाचू कहे तो बेचे से बिक जाऊ जैसे पतिवर्ता नारी घण भगत मेरे मुकुट मणि मैं भक्तन को दास भगत मेरे मुकुट मणि यदि भक्त अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है तो भगवान भी भक्त के हाथ में बिक जाते हैं यह सौदा महंगा नहीं बड़ा सस्ता है क्योंकि आप अपना जीवन तो भोगों में ही बेच दिए जो नाशवान है एक बार सौदा करके देखो बहुत महंगा है बहुत सस्ते में मिल रहा है प्राण दिए यह प्रेम न ऐसो महंगो आय सकीरी बड़ा महंगा है अगर प्राण देने से मिल रहा है तो दौड़ के ले लो कहीं दूसरा ना ले ले हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा यदि हम अपने आप को श्री भगवान के हवाले कर दे मन वचन कर्म से अब मैं आपका हूं दुख दो या सुख दो दुर्गति हो या सद्गति हो अब केवल आप ही मेरी गति हो बहुत बड़ी बहुत बड़ी उत्तम बात है भगवान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दो अभी बेपरवाह हो जाओगे यह जो चिंता है जो शोक है जो नाना प्रकार की परेशानियां है यह अहंकार कारण है अहंकार भगवत प्राप्ति कुछ कठिन नहीं है बिल्कुल कठिन नहीं है किसी साधन की जरूरत नहीं है साधन केवल अस साधन त्यागने के लिए अस साधन त्याग दो अभी भगवत स्वरूप प्रकाशित हो जाए क्योंकि व है जो है उसको किसी साधना से पैदा नहीं किया जाता वह है साधन से असाधारण इसमें काम करता है मन वचन कर्म से समर्पण एक पद महापुरुषों ने गाया कि हरि मेरा सर्वस्व आपको समर्पित है मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊ बहुत जोर की बात है बड़े महापुरुष का पद है श्री सूरदास मदन मोहन जी महाराज अगर हमने अपने प्रभु को सर्वस्व समर्पण कर दिया तो अनेक तोष पाऊ अनेक प्रकार से अपने भक्त का सुख भगवान का एक नाम है भक्त जन मन रंजन अपने भक्त के मन को अपार आनंद देने वाले बन जाते प्राय लोग डिप्रेशन के शिकार होते चले जा रहे हैं क्यों कल भी एक य बहुत परेशान डिपे डिप्रेशन है क्या आप समझिए पहले व्यर्थ का चिंतन व्यर्थ की कल्पना व्यर्थ का भय व्यर्थ की घबराहट कहीं ऐसा ना हो जाए कहीं ऐसा ना हो जाए क्यों ऐसा हो रहा है पाप कर्म किए हैं पाप कर्म किए हैं अब उनके दंड का समय आ रहा है तो सबसे पहले बुरी दशा आने के पहले बुद्धि बदली जाती है जि का विधना दारुण दुख दीन तेही के मति पहले हरि लीन सिद्धांत को समझो और व्यर्थ की कल्पना अगर उसी समय यह बात आने लगे पॉजिटिव क्या होगा भगवान मंगल करेंगे अभी डिप्रेशन खत्म होना शुरू हो जाए पहली बात पाप नष्ट हुए बिना तुम्हारा मन निश्चिंत निशोक निर्भय नहीं होगा प्यारे दवाइयों से समय काट सकते हो लेकिन पूर्ण स्वस्थ नहीं हो सकते पूर्ण स्वस्थ तब होगे जब आपका मन निर्मल होगा मन शांत होगा मन पॉजिटिव चिंतन करेगा सकारात्मक चिंतन करेगा और वो तब होगा जब आप नाम जप करोगे जब भगवान का भरोसा ले लोगे तो बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी अब क्या होगा वही होगा जो प्यारे ने मंगल रचा है अब वही होगा जो आनंदमय होगा मेरी गति तुम ही अनेक दोष पाऊ चरण कमल नख मन पर विषय सुख बहाऊं घर घर जो डोलो तो हरि तुम्हें लजाओ मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊ आपके श्री चरण कमल नख मणि का साक्षात्कार करने के लिए समस्त विषयों को बहा त्याग दिया हे नाथ मेरी गति आप ही हो मैं देख रहा हूं कि अनेक प्रकार से आप पोषण करते हो यदि मैं आपका भरोसा छोड़कर और को आगे हाथ फैलाओ घर घर भटक तो लज्जा है धिक्कार है हमारी शरणागति पर हे इन बातों को समझो अगर आप प्रभु के सिवा किसी के आगे ऐसे करते हैं तो धिक्कार शर गति को तुम्हारी अन्य आश्रय भी बना हुआ है घर घर जो डोलो तो हरि तुम्हें लज जाऊ तुमरो कहाय कहो कौन को कऊ तुमसे प्रभु छाड़ कहा दनन को ध्या इतने बड़े प्रभु का कहला करर किसी के आगे हाथ फैलाओ आप प्रभु के आश्रित है प्रभु को छोड़कर किसी और के आगे जो खुद विषयों का गुलाम है खुद जो नाना प्रकार के भोगों की मार से परास्त है उसके आगे आप हाथ फैला रहे हो धिक्कार है तुम भगवान के कैसे दास हो कैसे भगवान के भक्त हो तुमसे प्रभु छाण कहा दनन को ध्या मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊ महारानी ज प्रभु जो वो देख रहे हैं तुम्हें ऐसे किसी से कहने की जरूरत नहीं विश्वास करो थोड़ा धैर्य रखो 12 बजे पाते हो दो बज सकते हैं लेकिन धैर्य रखो दो बजे ऐसा मिलेगा जो 12 बजे कभी नहीं पाया है विश्वास करो धैर्य रखो टूटो मत तुमरो कहाय कहो कौन को कहा तुमसे प्रभु छाड़ कहा दनन को ध्या हे बाबू जी ऐसा कार्य कर दो इससे अच्छा है भूख प्यास छोड़ कर के और प्राण त्याग दो अगर यह कहना पड़े हरि से अलग किसी से हरि से भी क्यों हरि से भी क्यों तुम्हारी गरज हो तो करो तुम्हारी गरज हो तो करो क्यों गरज तुम्हारी गरज है कोई हमारी गरज है हम आपके हैं जैसे चाहो वैसे करो तुमसे प्रभु छाड़ कहा दनन को ध्या हो सकता है व अमुक भगत काम कर दे प्रभु अखिल कोटि ब्रह्मांड के ईश्वर यदि उनसे काम नहीं बनता तो किसी से नहीं बनेगा और उन्हीं से बनेगा तो बनेगा नहीं तो भरपूर बिगरे किसी और का भरोसा नहीं बिल्कुल य सिद्धांत हृदय में रख लो तो जीवन भी मंगलमय हो जाएगा भगवत प्राप्ति भी हो जाएगी हम कदम कदम पर देख कदम कदम पे मांगना शब्द नहीं है और जो जैसे प्रभु हमारा विधान बनाते हैं वैसे हमें जीना है हमारा परमार्थ भगवत प्रसन्नता के लिए अर्थ के लिए नहीं व्यवस्था के लिए नहीं मानो हमारी कोई व्यवस्था नहीं होगी तो 50 100 निकलो चार गांव में जाओ रोटी मांग के लाओ सब बैठ कर के नमक रोटी खाओ राधा गुण गान करो अरे बिजली नहीं रहेगी तो दीपक से सत्संग हो जाएगा माइक नहीं रहेगा तो इतना आवाज में दम दे देंगे श्री जी की आप तक आवाज पहुंच जाएगी और जो होना है वो पक्का होना है हम आशा क्यों करें भोगों की धन की भोगी पुरुषों की आशा भोगी आज नहीं नहीं आशा ही परमम दुखम नैराश्य परमम सुखम इधर से निराशा आशा है केवल स्वामिनी जी से आशा है केवल स्वामिनी से वो भी स्वामिनी ज से कुछ लेने के लिए नहीं स्वामिनी जी को सुख देने के लिए आसास दस्य बनु जाया केवल एक आशा कि मैं आपकी दासी बनू मैं आपको सुख पहुंचाओ शीश तुम्हे नाय कहो कौन को न वाऊ कंचन उर हार छाण काच क्यों बनाऊ मणि गण पुंज बजप छात हित हरिवंश कर गही कंच प्रभु को छोड़कर संसारी पुरुष का आश्रय कभी नहीं एक बार सदगुरुदेव भगवान के पास एक आए बैठे थोड़ी देर चर्चा हुई फिर उन्होंने कार्ड निकाला ये क्या है बोले इसमें नंबर है कभी आपको कोई जरूरत हो तो फोन करवा दे हां जब से बचपन से बाबा जी बने आज तक तुम्हारे नंबर से ही काम चलता रहा एकदम ले चलो हम श्री जी से बात करेंगे कि तेरे से बात करेंगे चलो जरूरत हमें क्या है जरूरत ना पड़े इसी बात के लिए तो बाबा जी बने पड़े हमारी कोई जरूरत नहीं आपको जरूरत हो तो करो जाही ना चाही कब कछु हमें नहीं चाहिए हम तो उसी में राजी जिसमें आप राजी हो जैसे रखोगे वैसे ज ज राख हो त्य त्य रहित हो हरि भगवत शरणागत चाहे गृहस्थ हो चाहे विरक्त अन्य आश्रय नहीं भगवत आश्रय शीष तुम्हे नाय कहो कौन को न वाऊ कंचन उर हार छाड़ काच क्यों बनाऊं अब तो जागृत सेन रहित रू पर मण कंचन जो पाची प्रियालाल मण कंचन में जैसे नीलमणि में कंचन ऐसे हमारी माला की तरह युगल सरकार हृदय में पड़े अब ये संसार राग कांच थोड़ी पहनेंगे शोभा सब हानि करू जगत को हंसाओ हाथी ते उतर कहा गदहा चढ़ाऊ अरे भाई अब हंसी नहीं करवाएंगे कि देखो भगवान के दास है हाथ केती आयु केतिक जीवन काहे विना सत का हटक कर भगवत दास कहला कर के दांते निपोर करके किसी से पैसा मांगना इससे अच्छा है अन्न जल त्याग करके प्राण प्राण त्याग कर दो प्रभु के लिए क्या यह जीवन है संतों को भक्तों को भागव तों को कोई भिखारी ना समझे व भिखारी नहीं है वो बादशाह है और जो भिखारी है व भगवान के दास नहीं होते भिक्षा के लिए केवल अन्न के टुकड़े की आज्ञा की है आचार्यों ने भिक्षा अनम औषध भूख लगे ग मांग खाऊ गिनो न सां सवेर अगर धैर्य नहीं है तो यह सिद्धांत और धैर्य है तो आकाश वृति लेकर बैठ जाओ व तुम्हारे प्राणों का जब पोषण करना होगा तब भेज देंगे और प्रणाम करके हाथ जोड़ के विनय करके तुम्हें पवा जाएंगे उनके भरोसे तो होकर देखो कह शोभा सब न करू जगत को हंसाओ हाथी ते उतर कहा गधा चढ धाओं मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊ भगवान का दास केय सोभा धारण किए हुए जिसने अनंत ब्रह्मांड का सृजन पलक झपकते कर दिया हम उसके दास हैं भूखे रहेंगे तो भी उसके दास हैं छके रहेंगे तो भी उसके दास है महलों में राखे चाहे झोपड़ी में बास दे उसी के दास है हम लोगों की ट्रेनिंग इसी बात की होती है कभी घी घना कभी मुठी भर चना और कभी वो भी ना बना तो भी जय हो जय हो वाह वाह हमें क्या कहा जाता है वाह वाह वाह वाह तुम्हारा जीवन वाह वाह हर कदम हमारा आगे बढ़ेगा वाह वाह आगे बढ़ेगा अब हाथी से उतर के गधा में तो चढ़ना शोभा नहीं देगा अर्थात भगवत शरणागति स्वीकार करके जन जन से मांगना जो मांगे सो बिल्कुल समझो भिक्षुक है भक्त न सुने कभी भिखारी यह बहुत घटिया बात है जो बाबाजी होकर के रुपया मांगता घूमे बिल्कुल घटिया बात है और य भगवान की शरणागति पर कलंक है और ऐसे कभी भक्त होते ही नहीं और हमें लगता है ऐसों को बढ़ावा देना भी नहीं चाहिए नहीं देना चाहिए जो रूपए से अपनी वासना का पोषण करें और भगवान के नाम पर कलंक दासत का कलंक धारण करें नहीं ये हमारे शास्त्र सिद्धांत गरज कर कहते हैं अरे घुटने टेक के हमने देखा है मा पुरुषों को महापुरुषों को देखा है एक गरीब किसान अगर रप निकाल के देता है ऐसे आराम से रख ले और वही 18 लाख रुपए आ कर के देर सामने र उठा नहीं नहीं सरकार आपकी सेवा तुम्हारे बाप के नौकर सेवा में लगा दे उठा चल क्यों उसको क्यों देखा क्योंकि वो अहंकार से दे रहा है कि हम बड़े धनी और वो गरीब बड़े दैन्य होता से दे रहा है मालिक हम तो देने लायक नहीं गरीब आदमी 10 उठा कर के बड़ी प्रशंसा करते हुए उसको रखते और एक वहीं बड़ी धनराशि देता है अपमानित करके हटा देते चलो कैसे समझा जाए दुर्योधन कह रहा है आओ दु शासन के महल में देवराज इंद्र को भी जो भोग दुर्लभ है वो है मानो भगवान को कह रहा है कि आओ जो तुमने नहीं पाया होगा वो पवाएं से चले आते हैं देखते भी नहीं और विदुरा के हाथ के केले के छिलके पाते हैं जैसा मेरे स्वामी का स्वभाव वैसा सेवक का भी स्वभाव होता है वैसे उनके संतो का और भक्तों का स्वभाव होता है वह कभी वैभव पर झुकने वाले या बिकने वाले नहीं होते हैं शोभा सब हानि करू जगत को हसाओ हाथी ते उतर कहा गदहा चढ धाव एक जगह है जहां ये पश्चाताप होना चाहिए कि मेरे पास वो कुछ नहीं है जिससे मैं इनको लुभाए मान कर सकूं वो है संत वो भगवान के जन जिनके सामने जाकर तुम्हारा सब हेकड़ी धूल धूसर हो जाए और लगे मैं इनको रिझाऊं कैसे मेरे पास तो वो है ही नहीं जिससे ये रीते हैं यह लगना चाहिए हाथी ते उतरी कहा गदा चढ धाव नंबर ले लिया उसको संभाल के रख लिया क्यों कब जब जरूरत पड़ेगी तो फोन करेंगे करो फोन इनका यमराज का फोन जब तो यह कोई फोन तुम्हारे काम नहीं करेंगे अगर हरि का केवल नंबर रखा है सेव है एक नंबर एक ही नंबर सेव है राधा राधा राधा तो ठीक घंटी बजते ही उत्तर मिलेगा और अगर सैकड़ों नंबर सेव है तो किशोरी जी जानती है इसको हमारी विशेष आवश्यकता इसके बहुत से नंबर है देख लो मोबाइल वालों आखिरी नंबर इन्हीं का लगता है तो पहला जो इनका नंबर और आखिरी नंबर इन्हीं का रखेगा पहला भी नंबर है और आखिरी भी इन्हीं से आद भी इन्हीं से अंत भी इन् से तो मध्य भी इ का जीवन मंगल में हो जाएगा हमारी बात मान लो हम जीवन भर के अनुभव की बात करते ऐसे अब तो बिगड़ा और भरोसा इनका तो ऐसा चट संभल के खड़ा हो गया पूछो मत कई ऐसी घटनाएं बड़ा सब व्यवहार का सिस्टम देखते हैं हम किसी भी तरह का कोई प्रतिग्न नहीं है किसी भी तरह का कोई प्रतिज और बड़े-बड़े खर्चे का जब आता है तो देखते कैसे श्री जी कैसे श्री जी करती केवल श्री जी स्पष्ट दिखाई देता है ये स्वामिनी मैं इसको जानता भी नहीं कौन है और रोकर घुटने टेक कर के अपने आप व्यवस्था कर जाता है तो शोभा सब हानि करू जगत को हंसाओ हाथी ते उतर कहा गदा चढ धा जब वीर शिवाजी को पता चला कि जिन तुकाराम जी महाराज का ऐसा प्रताप है उनके घर में खाने की भी व्यवस्था सही ढंग से नहीं ढेल लगा दिया अन्न के बोरे घी के बड़े बड़े टीम बरा के बोरे सब व्यवस्था आप कीर्तन करके जब घर पधारे तो बोले यह सब क्या बोले छत्रपति वीर शिवाजी ने सारी व्यवस्था की पत्नी नेता बोले समय तुरंत घर से बाहर करो सब एक भी दाना नहीं रखना जबक महा भागवत शिवाजी थे एक भी दाना नहीं हम केवल हरि के दिए जीते हम किसी और के नहीं हम केवल विट्ठल के दिए जीते हैं यह नहीं यह नहीं सब हटवा दिया जो चक्की में थोड़ा पीछ गया था ना वो तक हटवा नहीं हम हरि के दिए जीते हैं अगर वैभव हरि देकर वैभव में रखना चाहते तो जय जय आपकी आप हमें अगर आप फुटपाथ पर रखना चाहते हो तो जय जय ये केवल प्रवचन नहीं दोनों जीवन है कुमकुम लेप छाड़ काजर मुह लाऊ कामधेनु घर में तजी अजा क्यों दुहा मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊ यदि आपके सिवा किसी और की तरफ देखूं आपकी तरफ देखने का मतलब है कुम का लेप होना और दूसरों की तरफ देखने का मतलब है काजर की लेप आपसे प्राप्त करना मानो कामधेनु और दूसरों से चाहना मानो बकरी का द नहीं चाहिए कामधेनु जब घर में है तो मुझे अजा का दूध नहीं चाहिए कनक महल छाण अब क्यों परण कुटी छाऊ पायन जो पेलो प्रभु तो नानत जाऊ अब तो हर समय आपके चरणों के समीप रहते हैं मानो हम महल में रहते हैं प्रिया प्रीतम के अब हम पर्णकुटी के छाए जब महल में हमें वास मिल गया अब आप लात मारो तो भी आपको छोड़ने वाले नहीं पाइन जो पेलो प्रभु तो न अनत जाऊ आगे की बहुत बड़ी बात कह रहे सूरदास मदन मोहन जनम जनम गाऊ संतन की पनही को रक्षक कहा ह मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊं हे प्रभु बार-बार जन्म हो और आपका ही नाम जप करके आपकी लीलाओं का गायन कर व्यतीत हो और आपके परम प्रेमी भक्त संतों की जूती का मैं रक्षक कहला हं जहां उनकी जूती उतरे वहां मैं रखकर उनको साफ करूं और उनकी सुरक्षा करूं संतन की पनही को रक्षक कहा ह मेरी गति तुम ही अनेक तोष पाऊं एकमात्र अपने आराध्य देव का आश्रय और आराध्य देव का आश्रय जब सदगुरु के द्वारा मिलता है तो एक खास बात होती उसमें संबंध पकड़ने वाली बात है बड़े भाव का विषय है अगर हमसे भजन नहीं भी हो रहा है तो हमारी भगवत प्राप्ति निश्चित है यदि हमारा संबंध दृढ़ है संबंध दृढ़ और संबंध दृढ़ है तो भजन हर स्वास होता है किया नहीं जाता जैसे शरीर से संबंध दृढ़ हो गया है तो शरीर का नाम कभी भजन करते हो ना कभी भूलते हैं हर समय शरीर की स्मृति बनी रहती है जितना भी व्यवहार होता है उस शरीर के लिए होता है खानपान देखना सुनना भोगना कमाना सब शरीर के लिए संबंध भगवान संबंध का बहुत सुंदर व्यवहार जो हमारा बनता है हृदय में तो वैसे ही प्रभु निर्वाह करते हैं हमारे संबंध के पांच भाव [संगीत] हैं दास सख्य वात्सल कांता सहचर शांत भाव तो संदर्शिका में ब्रह्म ज्ञान के अंदर भी रहता है लेकिन जो सुखा स्पद भाव है उ दस्य सख्य वात्सल्य कांता और सहचर कांता गोपी भाव और सहचर इन भावों के द्वारा जो गुरुदेव हमें संबंध देते हैं उसमें दृढ़ रहना चाहिए संबंध का निर्वाह प्रभु बहुत जोर से करते हैं संबंध जो मिला है वो ठसक में बदल जाए मैं प्यारी जू की सहचर हूं मैं प्रिया जू की प्रि सह चरी हूं य ठसक बन जाए जैसे अपने वृंदावन वासी राधा उपासी नित्य बिहार रस के जो भजनानंद जन है चाहे वो गृहस्थ चाहे विरक्त ठसक होनी चाहिए हमारे माई श्यामा जू को राज मैं श्री जी की हूं मैं प्यारी जू की हूं सच्ची मानिए यह स्त्री पुरुष शरीर की पोशाक है ना तुम स्त्री हो ना पुरुष हो भगवत दिव्य अंश हो कैसे निर्वाह करते हैं संबंध का हमारे प्रिया लाल श्री विट्ठलनाथ जी कल आपने चर्चा सुनी श्री त्रिपुर दास जी की उसमें श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी का भी नाम आया था श्री विट्ठलनाथ जी ठाकुर जी के प्रति वात्सल्य भाव रखते थे मेरे लाला पुष्ट मार्गी वात्सल्य भाव जैसा भाव करोगे वैसे ही यथा माम प्रपद्यंते ताजाम में हम ठाकुर जी के प्रति इनका पुत्र भाव था मेरा लाला जैसे नंद बाबा ठीक ऐसा ही भाव श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी का एक बार श्री श्रीनाथ जी को दूध पवा रहे थे ठाकुर जी ने एक घूट पिया दूध और कटोरा ऐसे हटाते हुए [संगीत] कहा कहा जय जय क्या कमी रह गई दूध में ठाकुर जी ने कहा बहुत मीठा कर दिया मिश्री बहुत अधिक डाल दी मुझसे पिया नहीं जा बड़ी मनोहर करी आज पी लो पीलो कोई बात नहीं क्योंकि पुत्र भाव है ठाकुर जी ने बड़ा ऐसे करते हुए पिया दूसरी बार भोग में आपने मिश्री कम मिलाई ठाकुर जी ने एक घूंट पियाओ ऐसे कर दिया कहा जय जय आज क्या कमी दूध तो एकदम सीठा कर दिया फिर भी पी लो थोड़ा ही कम तो मिी मिलाई पहले वाले में आप कह रहे थे मिश्री बहुत अधिक है इसलिए थोड़ी कम कर दी बोले नहीं सीठा है पीलो आप पी लो पीलो बहुत दुलार किया दूध पी लिया तीसरी बार जब भोग लगाया तो मिश्री अलग दूध अलग लाल जू ने कहा आपने ऐसा क्यों किया मिश्री क्यों नहीं मिलाई गोसाई जी ने कहा जब मेरे द्वारा मिलाई हुई मिश्री आपको पसंद नहीं आ कभी कह देते हो बहुत मीठा है कभी कह देते हो सीठा है तो आज स्वयं मिला लो हंसकर कहा कि हम मिलाने लायक हैं हम आपके बालक हैं बालक मिलाना क्या जाने और दौड़ गए और गोद में बैठकर छाती से चिपक गए और कहा रूस गए क्या मिला केर पिलाओ हम तो बालक है हम थोड़ी मिला पाएंगे ये था माम प्रपद्यंते वात्सल्य मेरे पुत्र हो तो वैसे ही ठाकुर जी गोसाई जी के हृदय से चिपक करके श्री श्रीनाथ जी कहने लगे मैं तो आपका बालक हूं ना अशुभ प्रवाह होने लगा ठाकुर जी ऐसे महान सुख देते हैं जो जिस भाव से एक दिन मचल गए सैया रचना करके जब शयन कराने को गए कहा ये सैया ठीक नहीं दूसरी सैया ले आए यह बिछोना ठीक नहीं है दूसरा बिछोना ले आए नहीं नहीं यह रंग मुझे पसंद नहीं और रंग का बिछोना बिछा दिया अब कितने बिछोना कितनी सैया बदल दी लाल जो महाराज बारबार यह ठीक नहीं यह ठीक नहीं पसीना पसीना हो गए थे गुसाई जी गोसाई जी ने कहा कि आपको कौन सी सैया पसंद आएगी कौन सा बिछोना पसंद आएगा बोले बताओ तुम सैया बलो और तुम्हारी छाती पर हम सोएंगे क्योंकि हम यशोदा मैया की गोद में ही सोते अगर दिन में कभी अथातो उनके तोंद प लेट के सते तो आप लेटो और आपकी गोद में हम श्री नाथ जी श्री विट्ठलनाथ जी गोस्वामी जी की गोद में जैसे मां की गोद में बच्चा ऐसे श्रीलाल जी सोए एक दिन श्रीनाथ जी के सामने गिरिराज जी से बंदर आया हु ऐसे किया जैसे बंदर करते हु ऐसे व बड़ी जोर रो पड़े श्रीनाथ जी और गोस्वामी जी सेवा में थे तत्काल गोस्वामी जी के ऐसी गोद में चिपक गए और कहा बंदर मुझे डर लगता है गोसाई जी ने कहा इस बंदर से डर लगता है बड़े बड़े भयंकर बंदर न जाने ने कितने महाबली बंदर बड़े-बड़े भयंकर राक्षस रामावतार में तुम कैसे मारे होगे राक्षसों को और कैसे तुम्हारे साथ बंदर सेना थी हमारी तो समझ में नहीं आता ऐसे कह के मन में पर्वता आकार बंदर महा भयानक राक्षस हो या छोटे से बंदर को देख के चिपक गए और डर करके कहते मुझे बंदर से डर लगता है जब शयन करने गए तो ठाकुर जी ने शयन में कहा कि देखो गोसाई एकही भाव रखो एक म्यान में दो तलवार नहीं होती यदि पुत्र माना है तो केवल पुत्र मानो अगर भगवान मानोगे ईश्वर तो फिर पार नहीं पाओगे हम ऐसा ऐश्वर्य दिखाना शुरू कर देंगे अगर पुत्र माना है तो केवल पुत्र ही मानो तो तुम्हारा बेटा बंदर से डरेगा कि नहीं तो हम वैसे ही डर रहे हैं जैसे बेटा डरता है और अगर ये कि भगवान ऐश्वर्य शली तो फिर पार नहीं पाओगे हम इतना ऐश्वर्य दिखा देंगे एक म्यान में दो तलवार नहीं रहती गोसाई जी जगे एकदम और श्रीनाथ जी को देखा पास में गले से लगा कर के दुलार करते हुए वात्सल्य भाव एक दिन चूड़ी पहनाने वाली आई गोसाई जी ने कहा कि जाओ हमारे घर में जितनी बहुए हैं सबको चूड़ी पहना दो और पैसा यहां ले लेना आके आपके साथ पुत्र थे तो सात धुए थी गोसाई जी ने यह नहीं कहा कि सात बधु को पहना देना कहा कि मेरी जितनी बहुए हैं उन सबको चूड़ी पहना दो और पैसा यहां से ले जाना अब उनकी सात बहुए तो चूड़ी पहनी आठवी श्री स्वामिनी जू पहुंच गई अपने कर कमल ही उस चूड़ी पहनाने वाली ने श्रीज के कर कमल को देखा अशुभ प्रवाह आनंद मूर्ति हमारी प्यारी जो है अशुभ प्रवाह होने लगी ऐसा उसको लगने लगा कि आनंद के आवेग में मुझे मूर्छा आ जाएगी नीलांबर का हल्का सा घूंघट है मनो मृणाल मानो कमल लाल ऐसे सुंदर करकमल वो सोच रही इनके करकमल में पहनाने लायक तो चूड़िया ही नहीं हमारे पास श्री ने इशारा किया पहनाओ किसी तरह वो प्रेम शिथिल होते हुए जैसे जैसे इशारा होता गया व चूड़ियां पहनाई बहुत देर तक वह शुभ प्रवाह करती रही इसके बाद गोस्वामी जी के पास उसको ले जाया गया गोस्वामी जी ने सात बहुओं की चूड़ी के कितने पैसे होते हैं तो उसने कहा सात नहीं आठ गुसाई जी ने कहा सात बहुए तो तू आठ की बात कैसे कह रही तो उसने कहा मैं कसम खाक कहती हूं मैंने आठ बहुओं को तो बोले जब सात है ही तो आठ कैसे तो कहा मैं कसम खा के कहते ह आठ बहुए थी और मैंने आठ को पहनाई है और जो आठवी थी वो इतनी सुंदर थी इतनी और रोने लगी गुसाई जी ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है चलो इससे झंझट हटे आठ बहुओं की चूड़ी पहनाने के पैसे दे दिए जब रात्रि में शयन किया तो श्री जी ने गोसाई जी से कहा उस चूड़ी वाली से क्यों झगड़ रहे थे क्या आप प्रीतम लाल जू को आप अपना पुत्र नहीं मानते हां पुत्र तो है ही वो हमारे मानने की क्या बात है तो मैं कौन हूं पुत्र बधु हुई कि नहीं अगर आप कहते सात बहुओं को पहना दो तो मैं कदापि नहीं जाती आपने कहा मेरी सब बहुओं को पहना दो तो आठवी मैं हूं मैंने ही धारण श्री जी के इन वचनों को सुनकर गोसाई जी तत्काल उठे और बैठे बैठे रात भर रोते रहे कि लाडली जू कितनी कृपालु कितना भाव स्वीकार करने वाली है यहां एक बात ध्यान रखनी है कि गुरु प्रदत भाव के अनुसार संबंध के अनुसार जब सेवा की जाती है तो बहुत जल्दी वह सेवा सिद्ध हो जाती है आराध्य देव बात करने लगते हैं भक्त की हर बात को प्रभु सुन रहे गोसाई जी ने कहा जाओ सब बहुओं को चूड़ी पहना दो सुन र ना श्री जी इसीलिए चूड़ी पहनने गई हमारा भाव दृढ़ होना चाहिए भाव में कमी नहीं होनी चाहिए जैसा हम भाव गुरु प्रदत करेंगे वैसा ही इष्टदेव अनुभव कराएंगे जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तीनत एक अयोध्या में उमापति नाम के महापुरुष निवास करते थे यह बहुत शास्त्रों के ज्ञाता और भजना नंदी महापुरुष थे तो इनको अपने में भाव आता था कि मैं गुरु हूं राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन का यह मेरे पुत्र और शिष्य के समान है तो यह जब मंदिर में जाते कनक भवन में तो कनक बिहारी राम जी को य माला खरीदते पहन के जाते और अपना पहना माला देते कि राम जी को और लक्ष्मण जी को पहना दो और सीता जी के लिए कहते कि आधा दरवाजा मोड़ दो पर्दा कर दो बहू है हमारी ये रोज ऐसा करते पुजारी वैसा ही कहते जैसा ही कहते क्योंकि महापुरुष थे उमापति जी पर वैष्णव जन संत जनों को अच्छा नहीं लगा कि भगवान को अपनी पहनी माला पहनाते हैं सब वैष्णव जन खिलाफ हो गए और कहा ऐसा नहीं हो सकता भगवान केवल तुम्हारे नहीं कि तुम आकर अपनी प्रसादी माला भगवान को पहनाते हो तो उन्होंने कहा यदि आप लोग ऐसा कहते हो तो हमारी बात सुन लीजिए गुरु के सामने शिष्य कभी अनिया माला पहन ही नहीं सकता य हमारे शिष्य हैं बोले हम तुम्हारी इन बातों को नहीं मानते भावुकता की लेकिन कल से आप ठाकुर जी को अपनी प्रसादी माला नहीं पहनाए वो अ मनिया माला लेके आए 10 और कहा लो पहनाओ तो जो राम जी के गले में जानते टूट के गिर जाती लक्ष्मण जी के गले में डालते टूट के गिर जाती 10 माला पहना दी वह सब टूट के गिर गए सब संत और वैष्णव खड़े देख बोले देखा यह भला मनिया पहन सकते हैं जब मैं इनका गुरु हूं वशिष्ठ भाव से वो रहते फिर उन्होंने माला मंगवाई और सामने माला पहनी और जेही दी कि लो पहनाओ वो माला टूटी रही वो माला धारण हो गई पंडित जी ने साफ संतों से प्रार्थना की कि ठाकुर जी को जिस भाव से भजानेगलू इसलिए प्रभु मेरे भाव का पोषण कर रहे हैं आप लोग अन्यथा नाना समझिए और जब ये मंदिर जाते तो पुजारी से कह देते कि जानकी जी की तरफ का दरवाजा थोड़ा सा जैसे बहु ओट में होती है ऐसे करो कर देते भावा अनुसार पुजारी जी ये भी देखते कि उमापति पंडित दर्शन करने आ रहे तो जानकी जी की तरफ दरवाजा कर देते या पर्दा कर देते पुजारी जी विशेष सावधानी पूर्वक ऐसा करते यह भी भक्तों को अच्छा नहीं लगा कि तुम ही अकेले थोड़ी दर्शन करते हो कि जानकी जु का वो हमारी माता है हमारे सर्वस्व है आप ऐसा तो एक दिन पर्दा नहीं किया तो जही उमापति पंडित जी गए तो फटाक से आधा दरवाजा अपने आप बंद हो गया सब आश्चर्य चकित हो गए क्योंकि ऐसा कैसे बस यह बात समझ लो प्रभु भाव को बहुत पकड़ते हैं भाव ही सबसे बड़ी वस्तु है धड़क से दरवाजा बंद हो गया पंडित जी ने पुजारी जी से कहा आप कभी चूक मत करना जानकी जी हमारी बहू है हमारे शिष्य की है इसलिए वो कभी हमारे सामने ऐसे नहीं पर्दा करके तो पुजारी ने और संतों ने जान लिया कि महामहिम भाव को प्राप्त महापुरुष है सबने क्षमा मांगी गोसाई जी स्वयं पद रचना करने में कुशल और गा कर के ठाकुर जी को पद सुनाने में कुशल अष्टयाम सेवा पद्धति से श्री श्रीनाथ जी की सेवा करते और आठ परम प्रवीण कीर्तनकार नियुक्त किए श्री सूरदास जी श्री परमानंद दास जी श्री कुंभन दास जी और श्री कृष्ण दास जी ये चार महापुरुष श्रीमद वल्लभाचार्य जी महाप्रभु की कृपा पात्र थे और श्री गोविंद दास जी श्री चतुर्भुज दास जी श्री ीत स्वामी जी और श्री नंद दास जी ये चार महापुरुष श्री विट्ठलनाथ गोसाई जी की कृपा पात्र थे ये आठ महापुरुष आठों पहर की प्र प्रिया प्रीतम की जो लीलाएं हैं वह गा गाकर श्रीनाथ जी के सामने सेवा पद्धति के अनुसार सुनाते थे एक बार की बात है कि श्री विट्ठलनाथ जी श्री ठाकुर जी को भोग लगा रहे थे तो भोग में तिनका देखा बहुत दुख हुआ कि मेरे सुकुमार लाडले ठाकुर और उनके भोग में इतनी असावधानी बनाने वाले तिनका बहुत सावधान रहना चाहिए ठाकुर जी का जब भोग बनाए तो बोल चाल में भी सावधानी रखे कहीं थूक की छिट्टुपुर जी के भोग सामग्री जो बन रही है उसमें गिरना हो सकता है कितनी सावधानी महापुरुषों के चरित्र से हमें प्राप्त होती है तिनका को देख कर के बहुत खी हुए और कहा कि आज हम हैं तब हमारे ठाकुर जी के भोग में तिनका निकला और कल हमारा शरीर छूट जाएगा तो तुम लोग कैसे हमारे ठाकुर जी की सेवा करोगे तो मैं आज ही सन्यास धारण करूंगा और विचरण करूंगा जैसा मनावे वैसा करो आप इतना कहे तो सब लोग बहुत दुखी हो गए सबने अनुनय विनय की कि एक बार अपराध क्षमा कर दो ठाकुर जी की भोग में कभी त्रुटि नहीं होगी आपने कहा हम परिहास में कभी झूठ नहीं बोलते हमने कहा सन्यास लेंगे तो सन्यास लेंगे अब हम तुम्हारे बीच में नहीं रहेंगे श्री ठाकुर जी श्रीनाथ जी से आज्ञा लेने गए ठाकुर जी ने बहुत सुदास होकर के कहा गोसाई जी एक गेरुआ वस्त्र हमको भी मंगवा दो बोले आपको क्यों जय जय आपके पास तो बहुत सुंदर सुंदर पोशाक है बोले हम आपके बिना नहीं रह सकते अगर आप स्या लेंगे तो हम भी सन्यास लेकर आपके साथ ही चलेंगे देखो कैसा प्यार करते जैसे माधवदास बाबा जगन्नाथ जी को प्यार करते तो जगन्नाथ जी से जाकर आज्ञा ली जय जय अब ब्रज चौरा को साब की लीला भूमि में जाना चाहता हूं आदेश दे दो बोले बाबा आपके बिना हम रह नहीं सकते बोले नहीं जय ज हमारे पास इतनी भोग सामग्री नहीं कि मैं रास्ते में आपको भोग लगाऊं आपको नहीं ले जा पाऊंगा पर हम जाएंगे ब्रज चौरासी को दर्शन करने आपकी लीला भूमि के ठाकुर जी चुप हो गए उनके आगे बस कहां अब वो सुबह प्रातः कालीन चले अब सुबह सुबह ही इतनी भूख लग आई तो उन्होंने कहा आज तक कभी ऐसी भूख नहीं लगी तो एक माई थी तो उससे कहा माई बहुत भूख लगी कुछ मिल सकता है बोले बाबा अभी बना देती हूं तो कुछ समय में वो भोजन बना कर के पवानी और जब पवा रही थी माधवदास बाबा को तो रोते जा रही तो बाबा की दृष्टि गई बाबा ने कहा माई रो क्यों रही हो बोले इतना सुंदर सुकुमार लाड़ला बालक तुम्हारे जैसे बाबा जी के साथ कैसे आ गया इसकी मां कैसे रहती होगी तो उन्होंने भागवत दृष्टि से देखा तो थाल में बैठे जगन्नाथ जी पा रहे थे बोले इसीलिए भूख लग रही थी हमें पता क्या कि तुम्हें भूख लग रही है तुम क्यों साथ बोले बाबा मैं नहीं रह पाऊंगा आपके ये ये जरा प्यार देखो ठाकुर जी का कह रहे बाबा मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे ही श्रीनाथ जी गोसाई जी से कह रहे कि एक गेरुआ वस्त्र हमको भी मंगा दो अगर आप सन्यास लोगे तो हम भी सन्यास ले लेंगे गोसाई जी आपके बिना हम नहीं रह सकते गोसाई जी ने गले से लगा लिया तो कहा गले से लगा लिया तो मेरी बात मानो अब तुम्हें सन्यास नहीं लेना बोले जैसी आपकी आज्ञा बोले सेवा में त्रुटि अगर हो रही तो जब मुझे दुख नहीं तो तुम्हें दुख क्यों हो रहा है तो बोले तुम्हें दुख हो या ना हो आप मेरे पुत्र हो मेरे को दुख होता है कि मेरे लालन के भोग में तिनका कैसे आ गया भाव समझिए श्री विट्ठलनाथ गोसाई जी स्वयं सेवा में सावधानी पूर्वक पर कभी-कभी अगर त्रुटि हो जाए सेवा में तो बहुत ही असंतुष्ट हो यह ध्यान रखने का विषय है कि हम केवल विग्रह की पूजा नहीं कर रहे साक्षात श्यामा श्याम विराजमान है साक्षात श्री जी विराजमान हम जल पिवाय तो उसी भाव से भोग लगावे तो उसी भाव से पोशाक पहराव तो उसी भाव से श्री गोस्वामी जी शयन करते थे गोकुल में आकर और नित्य प्रति श्री श्रीनाथ जी की सेवा में आते यहां जति पुरा गोवर्धन में श्रीनाथ जी विराजमान थे तो आप घोड़े पर चढ़ कर के आते थे यदि कहीं आने में कुछ विलंब हो जाए तो अन्य सेवा चाहे कोई कर ले पर आरती आप ही रोज करते थे सेवा आप ही करते थे आज भी वल्लभ कुल में नियम चला आ रहा है कि और ठाकुर सेवा तो सब मिलकर करेंगे लेकिन आरती गोस्वामी वंशज ही करेंगे श्री ठाकुर जी की अक्षुण सेवा गोस्वामी जी अपने बालक के समान मान कर कहते जो भगवन निष्ठ सदाचारी पुरुष होते हैं तो उनका प्रभाव सबके ऊपर पड़ता है उस समय भक्ति का वातावरण एक बन चुका था जिसको देखो सब भगवान की भक्ति में निमग्न जो श्री विठठल नाथ जी थे य श्री मद वल्लभाचार्य जी के द्वितीय सुपुत्र हैं आपका जन्म प्रादुर्भाव विक्रम 1572 में काशी के निकट चुनारगढ़ में हुआ श्री आचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने प्रयाग में अड़ेलते आपकी दो पत्नियां थी रुक्मिणी जी और पद्मावती जी श्रीमद वल्लभाचार्य महाप्रभु जी के गोलोक गमन के अनंतर उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथ जी यह द्वितीय पुत्र से श्री विट्ठलनाथ जी गोपीनाथ जी आचार्य गद्दी पर बैठे परंतु थोड़े ही समय में वह गोलोक वासी हो गए और गोपीनाथ जी के जो पुत्र थे श्री पुरुषोत्तम जी वह अभी बाल्यावस्था को थे तो विट्ठलनाथ जी को ही सारा कार्यभार संभालने को मिला आचार्य गद्दी का ठाकुर जी की सेवा जी का स ऐश्वर्य श्री विट्ठलनाथ जी संभाले श्री विट्ठलनाथ जी संभाले तो पर कृष्ण दास जी य वल्लभाचार्य जी के शिष्य और य संपूर्ण सेवा सामग्री के अधिकारी थे यहां एक बहुत सूक्ष्म विषय निकल के आता है कि कभी गुरु और गुरु वंशज के प्रति थोड़ा भी हे भाव ना कर ले नहीं तो दुर्गति पक्की है चाहे जितना बड़ा उपासक हो कृष्ण दास जी बहुत बड़े महापुरुष है पूरे श्रीनाथ जी की सेवा के अधिकारी हैं अधिकारी पदवी की है अब किसी सेवा पद्धति को लेकर कृष्ण दास जी से श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी ने तो कृष्ण दास जी असंतुष्ट हो गए कभी ऐसा नहीं होना चाहिए गुरु के समान ही गुरु वंशजों को समझना चाहिए जैसे हमारे गुरु वंश के अगर बच्चा भी आ जाए तो हम उसके झुक कर चरण छुए उसको गुरु के समान आसन पर बैठा लेंगे और नीचे उतर कर हम बैठेंगे चैतन्य महाप्रभु ने ईश्वर पुरी जी के जब गांव में गए तो रज में लोट लोट के कह रहे थे यहां के सब जीव जंतुओं की भी चरण रज हमारे लिए बंद नहीं क्योंकि य हमारे गुरुदेव भगवान प्रकट हुए ईश्वर पुरी जी के गांव में यहां त्रुटि हो रही है कृष्ण दास जी से कृष्ण दास जी ने क्या किया कि जो गोपीनाथ जी गोलोक गमन हो गया था तो उनकी पत्नी और उनके पुत्र पुरुषोत्तम जी अभी छोटे थे उनसे बात की और गद्दी पर पूरा अधिकार कर लिया पुरुषोत्तम है ही क्योंकि उनके पिता गोपीनाथ जी थे और हटा दिया श्री विट्ठल नाथ जी को और हटा ही नहीं दिया पूरी सेवा से हटा दिया कृष्ण दास अधिकारी जी ने पुरुषोत्तम जी को गद्दी पर बैठा दिया उनकी मां को समझा बुझा कर के दसक करवा लिए और श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी को हटा दिया श्रीनाथ जी की सेवा मतलब आना भी बंद करवा दिया ऐसा नहीं करना चाहिए थाय बहुत बड़ा अपराध बन गया और बहुत बड़े महापुरुष हैं कृष्णदास जी कोई साधारण नहीं आगे उनके कवि चरित्र का श्रवण करना इतने बड़े महापुरुष गोसाई जी को सब अधिकार छिन जाने का कष्ट तो नहीं हुआ पर सेवा छूट जाने का बहुत कष्ट हुआ और महापुरुषों के हृदय में किसी भी तरह का यदि कष्ट हो गया तो उसे फिर भगवान बर्दाश्त नहीं करते आपको बहुत क्लेश हुआ श्रीनाथ जी का दुलार छूट गया सेवा छुड़वा दी कृष्णदास अधिकारी ने आप पारा सौली में जाकर रहने लगे पर बहुत दुखी अंदर से और दूर तक वहां तक आते जहां श्रीनाथ जी की ध्वजा दिखाई देती है वहां से साष्टांग दंडवत करके बहुत एकाग्रता पूर्वक ऐसे देखते मंदिर की तरफ रोने लगते श्री विट्ठल नाथ जी यह बहुत बड़ी हानि के विषय बहुत बड़ी हानि का विषय गुरुजनों से विरोध करने का मतलब है सर्वस्व का नाश चाहे जितना बड़ा भी कोई तपस्वी भजनानंद हो एक श्री रामदास जी भीतरिया जो ठाकुर जी की सेवा में रहते थे वह श्री विट्ठलनाथ जी की स्थिति से परिचित थे वह रोज गुप्त रूप से समय निकालते यद्यपि श्री कृष्ण दस जी ने उनको भी मना कर दिया था पर वह जाते और गोसाई जी को श्री लाल जू का बीड़ा प्रसाद देते बीड़ा प्रसाद आंखों से ऐसे रख कर के खूब रुदन करते श्री विट्ठलनाथ जी यह बहुत बड़ा अपराध है बहुत बड़ा अपराध गोसाई जी ठाकुर जी के लिए अपने कर कमल से एक फूलों का हार बनाते और कहते पहना देना जाके और रोज एक श्लोक दनता का लिखते हैं और कहते ठाकुर जी को सुना देना जाके श्री रामदास जी नित्य प्रति आकर वो फूलों का हार और ठाकुर जी को एक श्लोक सुनाते ठाकुर जी को फूलों का हार पहनाते और ठाकुर जी रोज एक पान की बीड़ी देते जो उनको जाकर देते और उनको प्रणाम करते एक दिन ठाकुर जी ने संदेश में कहा कि गोसाई जी से कह दो मेघ तो समय पर बरसेगा तुम दुखी क्यों हो रहे हो मेघ तो समय आने पर बरसेगा तुम दुखी क्यों हो रहे हो विट्ठलनाथ जी के सामने जब जाकर रामदास जी ने कहा मेघ तो समय पर बरसेगा आप दुखी क्यों हो रहे हो लालन ने ऐसा कहा है तो विट्ठल नाथ जी ने कहा कि मेघ तो समय पर बरसेगा पर चातक अपनी टेक पुकार क्यों छोड़ेगा चातक तो रटता ही रहेगा बहुत सुंदर बात अगर चातक अपनी रटन छोड़ दे तो चातक कैसा मेघ तो समय पर बरसेगा व से लेकिन चातक अपनी रटन नहीं छोड़ सकता मेरी रटन घटने वाली नहीं मैं तो रो रोकर आपको पुकारता ही रहूंगा चातक रटन घटे घट जाई बढ़े प्रेम सब भात भलाई विट्ठलनाथ जी के इस दुख को अकबर बादशाह ने सुना उसने तत्काल आदेश किया और कृष्ण दास जी को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया और गोसाई जी को विरुद्ध आचरण किया इसलिए उनको कठोर दंड कृष्ण दास जी को बादशाह अकबर ने जब गोसाई जी को य पता चला तो गोसाई जी ने अन्न जल त्याग दिया और कहा जब तक सम्राट अकबर सादर कृष्ण दास जी यह देखो महापुरुषों का हृदय सादर कृष्ण दास जी को नहीं छोड़ते तब तक मैं अन्न जल भी नहीं पाऊंगा जब बादशाह अकबर को यह पता चला कि गुसाई जी ने अन्न जल त्याग दिया तो सादर कृष्ण दास जी को पुनः छोड़ दिया कृष्णदास जी को जब य पता चला कि गोसाई जी मेरे लिए अन्न जल छोड़ दिए तब गोसाई जी के पास आए और चरणों में गिरे और कहा मुझे आपके प्रभाव का पता नहीं था क्षमा कीजिए कृष्णदास जी ने पारा सौली में आकर गोसाई जी के चरण पकड़ लिए गोसाई जी गंभीर हो गए महापुरुष अगर डांट दे तो बच गए आप और गंभीर हो गए तो पिट गए आप बस इतना समझ लो गंभीर इसलिए हो गए कि तुमने लालन की सेवा छुड़वा दी सब ठीक है लेकिन लालन की से दूर रखा दर्शन नहीं सेवा नहीं इसलिए गंभीर हो गए विट्ठलनाथ गोस्वामी जी को पूर्व सेवा अधिकार प्राप्त हो गया श्री कृष्ण दास जी का अंतिम लीला जा जानते हो कैसे हुई कुआ में पैर फिसल गया गिर के मरे और प्रेत बने इसी अपराध के कारण बहुत सावधान इतने बड़े महापुरुष है उनका चरित्र है कृष्णदास जी का बहुत बड़े महापुरुष हैं लेकिन अपने गुरु से अपराध बन गया गुरु वंश गुरु स्वरूप ही है अपराध बन गया तो प्रेत योनि को पैर फिसल गया कुए में गिरे और उनके प्रेत योनि को प्राप्त हुए बहुत सावधानी की जरूरत है कि कहीं ऐसे अपराध नहीं तो चाहे जितना भजन हो भजन बाद में तो कल्याण करेगा लेकिन बीच में छूट जाएगा और बीच में हमारी दुर्गति हो जाए अंतिम तो मंगल ही होगा क्योंकि भगवान का जन कभी नाम भक्ता प्रणति जब यह प्रेत बन गए थे तब भी उद्धार गोस्वामी विट्ठल नाथ जी के द्वारा ही इनका हुआ अकबर क्यों कृपालु था क्यों श्रद्धा करता था विठल नाथ जी ग स्वामी के ऊपर एक बार श्री यमुना जी में स्तोत्र का गायन कर कंचन वर्ण तेज चमकता हुआ विट्ठल नाथ गोस्वामी जी का तो स्नान करके यमुना जी की आराधना कर रहे थे तो उधर नौका में जल विहार करते हुए इसकी बादशाह की कोई हिंदू बेगम होगी तो वो दूर से देखा कि तेजस्वी तो भगवान के समान है नौका समीप ले गए उतरकर चरणों में वंदन किया विट्ठलनाथ गोस्वामी जी को देखकर उसे पक्का लगा कि यह जो आशीर्वाद दे देंगे तो पक्का तो उन्होंने कहा कि आपसे मैं एक ही आशीर्वाद चाहती हूं कि मेरे बादशाह मेरे अनुकूल रहे हर पत्नी यही चाहती है आप कृपा करके कोई ऐसा तुर बांध दीजिए कोई मंत्र बता दीजिए कोई उपाय बता दीजिए कि बादशाह सलामत हमारे बस में रहे हमारे अधीन रहे आपने मुस्कुरा दिया कि मैं एक जंतुर देता हूं इससे बादशाह तुम्हारे अधीन रहेंगे और दोहा लिख कर के भुजा में बांध दिया यंत्र मंत्र और तंत्र को भूल करो जनि कोय पति कहे सो कीजिए वो आप बस हो यह दोहा लिख करके बांध दिया दूर से गुप्तचर लगे रहते थे गुप्तचर ने कहा कि विट्ठलनाथ गोस्वामी जी ने कोई जादू टोना करके आपकी हिंदू बेगम की बाह में जंतुर बांध दिया है तत्काल आया जब व बलपुर तोड़ दिया जंतु और उसे कहा खोला जाए खुला गया और जब ये दो हा पढ़ा कि यंत्र मंत्र तंत्र को भूल करो जनि कोय कोई उपाय मत करो येय यंत्र तंत्र मंत्र जंत्र वाला पति की आज्ञा में रहो इसी से पति अधीन हो जाएगा जब यह दोहा पढ़ा कि पति की आज्ञा का पालन रूप परम बल है जो पति को अधीन कर लेता है बहुत प्रसन्न हुआ कहा इसी समय मुझे विट्ठलनाथ गोस्वामी के चरणों में जाकर प्रणाम करना है और उनके दर्शन करने तब से बहुत श्रद्धा विट्ठलनाथ गोस्वामी जी के ऊपर और वह आकर के गोकुल में और गोवर्धन में बहुत सी संपत्ति जमीन यह सब विट्ठलनाथ गोस्वामी जी को दी श्रीमद वल्लभाचार्य महाप्रभु जी ने पुष्ट मार्ग का प्रवर्तन किया विट्ठलनाथ गोस्वामी जी ने उसका बहुत प्रकाश किया श्री सूरदास जी कुंभन दास जी परमानंद दास जी कृष्ण दास जी ये वल्लभाचार्य जी के शिष्य और नंददास जी चतुर्भुज दास जी श्री गोविंद दास जी श्री ीत स्वामी ये विट्ठल नाथ जी के शिष्य यह रात दिन ठाकुर जी की सेवा में पद गायन की सेवा में रहते थे जिस समय महाप्रयाण का समय आया तो विट्ठलनाथ गोस्वामी जी ने सातों पुत्रों को बुलाया और अलग-अलग ठाकुर जी प्रदान किए सात पुत्र श्री गिरिधर जी श्री गोविंद जी श्री बालकृष्ण जी श्री गोकुलनाथ जी श्री रघुनाथ जी श्री यदुनाथ जी और श्री घनश्याम जी य सात पुत्र श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी के सातों को अलग-अलग ठाकुर सेवा प्रदान की श्री गिरिधर जी को श्री ठाकुर मथुरेश जी जो वर्तमान में जतीपुरा गोवर्धन में विराजमान है श्री गोविंद राय जी को श्री श्रीनाथ जी जो वर्तमान में राजस्थान में श्रीनाथ द्वारा में विराजमान है श्री बालकृष्ण जी को श्री द्वारिकाधीश भगवान जो वर्तमान में काकरोली में विराजमान है श्री गोकुलनाथ जी को जो वर्तमान में श्री गोकुल में विराजमान है श्री रघुनाथ जी को श्री गोकुल चंद्रमा जी जो वर्तमान काम वन में विराजमान है श्री अधुना जी को श्री बालकृष्ण भगवान जो वर्तमान में सूरत में विराजमान है श्री घनश्याम जी को श्री ठाकुर मधुन मोहन जी जो वर्तमान में काम वन में विराजमान है इन सातों पुत्रों को सात ठाकुर की सेवा प्रदान की और चल अचल संपत्ति का बंटवारा किया और समस्त वैष्णव को बुलाया और कहा आज हमें ठाकुर जी बुला रहे ने धाम में ऐसे जाना होता है महापुरुषों का मृत्यु मृत्यु नहीं महोत्सव होता है सब वैष्णव जनों को बुलाया और बोले आज जो है ठाकुर जी बुला रहे हैं अपने निज सेवा में निज धाम में इनके पीछे पीछे पुत्र जो सातों पुत्र थे वो पीछे पीछे गए आप चलकर के जति पुरा आए अपने निज कंठ की माला चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथ जी के गले में डाल दी और कहा सब वापस हो जाओ अब मैं परमधाम जा रहा हूं और गुफा में प्रवेश करने लगे तो सबसे बड़े पुत्र गिरिधर जी ने आपका वस्त्र पकड़ लिया तो केवल वस्त्र ही हाथ में रहा और आप अंतर्ध्यान हो गए सदे भगवान के धाम को गए श्री विट्ठलनाथ गोस्वामी जी फिर आकाशवाणी हुई कि रा जो वस्त्र तुमने पकड़ा इसी से मुझे अंतिम संस्कार जो होते हैं वह अंतिम उत्तर क्रिया इसी से संपन्न करो और जैसा हमने आदेश दिया वैसा कहना जिस समय गोस्वामी जी श्री लाल जू को श्लोक भेजते थे वह बाद में श्लोक संग्रहित कर कर के लिखते थे यद दैन्य कृपा हेतु नत दस्ती ममा ताम कृपा कुरु राधे याया त दन्य मापन याम हे राधा पति जिस दनता से आप कृपा करते हैं रिते व दनता तो मेरे में है नहीं अनु मात्र भी नहीं है अब तो आप अपनी तरफ से कृपा करें और मुझे वह धन्यता प्रदान करें जिससे आप रीते हैं दूसरा श्लोक स साधन शून्य हम सर्व सामर्थ वान भवान श्री गोकुल प्राण नाथ न त्याज हम कदा पवई हे गोकुल के नाथ स्वामी मैं सर्वथा सर्व साधन हीन हूं देखो आचार्य है पर कैसी दनता है और आप सामर्थ्य वान है अतः किसी भी स्थिति में आप मेरा त्याग मत कीजिए क्योंकि मैं धन आप सामर्थ्य वान है आपके द्वारा त्याज नहीं हूं नाथ मेरा कभी त्याग मत कर देना यदि तुष्ट सोवा त्वमेव शरणम ममो मारने धारण वा प दना नामन प्रभु गति प्रभु आप चाहे मुझ पर संतुष्ट हो या नाराज हो मेरे लिए तो आप एक मात्र ही सहारा है आप चाहे नाराज रहो चाहे प्रसन्न रहो हम दिनों को मारो या तारो अब आपके सिवा कोई नहीं आपको हमारा भार वहन करना ही पड़ेगा नाथ आपको हमारा पोषण करना ही पड़ेगा जबरदस्ती आपको अंगीकार करना ही पड़ेगा क्योंकि आपके सिवा हमारा कोई नहीं है ऐसे दैन्य भाव से जब कोई भाव संबंध से प्रभु से जुड़ जाता है तो इसी जन्म में देखो हम प्रभु को अपना स्वामी मानते हैं हम प्रभु को अपना सखा मानते हैं हम प्रभु को अपना प्रीतम मानते हैं यह भाव तब तक साधन भाव माना जाएगा जब तक प्रभु आपका भाव स्वीकार नहीं कर लेते निहाल तभी उपासक होता है जब वह आक कह देते तू मेरी जो भाव किया तू मेरा सखा तू मेरी दासी तू मेरी सहचर जब वो स्वीकार कर लेते हैं तब मोहर लग गई पक्का हो गया एक यह सिद्धांत और दूसरा जब गुरु स्वीकार कर लेते हैं तो इष्ट की स्वीकृति अपने आप हो जाती है इष्ट और गुरु में भेद नहीं होता गुरु गोविंदन भेद कराए जब गुरुदेव स्वीकार कर दि कि तू प्रिया जू का तो गुरुदेव ने जो कह दिया वो प्रिया जू भी नहीं काट सकते है इसलिए हमें अपने भाव संबंध में दृढ़ रहना चाहिए और भाव के द्वारा ही हमारा व्यवहार होना चाहिए जैसा हमारा इष्ट से व्यवहार है ठीक वैसा ही भाव हमारा होना चाहिए जैसा भाव है वैसा इष्ट से व्यवहार होना चाहिए इसी जन्म में आपको उत्तर मिल जाएगा कि श्री जी ने आपको स्वीकार कर लिया है और जब यह आ जाता है श्री जी ने स् एकदम बेपरवाही ऐसी मस्ती आती है कैसे उदाहरण में बताएं बने नहीं उदाहरण पर थोड़ा सा इशारा जैसे शाखा चंद्र नय से कहते हैं कि डाल के एक हाथ ऊपर देखो चंद्रमा दिखाई दे रहा चंद्रमा तो जाने कितनी दूर है पर हम चंद्रमा को देख पाते ऐसे उदाहरण में जैसे भारत का कोई बड़ा अधिकारी आपसे आकर हाथ मिला दे कह दे चिंता मत करना आज से मैं आपका और आप जो कहेंगे सो हम करेंगे फिर कैसा और लगेगा वो दोबारा कभी फोन करे या ना मिले लेकिन आप छाती चौड़ी करके घूम ऐसे ही हम श्यामा जू के बल अभिमानी वह तो नाशवान पद है और नाशवान शरीर है और वह सर्वज्ञ नहीं है वो अल्पज्ञ बहुत दूर रहता है वह असीम नहीं है वो अनंत नहीं है सर्वत्र नहीं है सर्वज्ञ नहीं है लेकिन प्रियालाल असीम है अनंत है सर्वज्ञ है सर्वत्र है और गुरु ने संबंध करवा दिया उनकी शरणागत करा दिया और जिस समय शरणागति आपके हृदय में पुष्ट हो जाएगी तो हम श्री श्यामा के बल अभिमानी टेढ़े रहे मोहन रसिया सो बोले अट पटवानी बड़ा अद्भुत आनंद इस ठसक में रहता है कि हमारी श्यामा जू हमारी प्यारी जू हमारी लाडली जू हर समय नाम जप करते रहो और अपने आराध्य देव के सानिध्य का अनुभव करते रहो इसी जीवन में इस माया प्रपंच से हटकर परमानंद स्वरूप प्रियालाल को प्राप्त हो जाओगे विश्वास कर लो ब नाम ना छूटे और संबंध का भाव ना टूटे तो आप निश्चित जन्म में अनुभव हो जाएगा शेष चर्चा आ ग श्री राधा वल्लभ लाल की जय