Transcript for:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश राज

कि ब्रिटिशर्स ने जान पूछ के कांग्रेस पार्टी बनाई थी ताकि सिचुएशन उनके हिसाब से चले पांडे नाम का एक सिपाही था उसने भांग ज्यादा खा ली थी अब अगर कोई भी अंग्रेज मुझे दिख गया तो उसको मैं तुरंत गोली मार दूंगा वो गाय की हड्डी को पीस के वो आटे में मिला दे रहे हैं कांग्रेस के जो एक्सट्रीमिस्ट लीडर थे वो गुस्सा हो जाते हैं और बात इतनी बढ़ जाती है कि उसी सेशन के बीच में एक दूसरे को जूता फेंक के मारते हैं 120 लाशें तो सिर्फ वहां पे जो कुआं था वहीं से निकली थी और नेताजी जुगाड़ लगा के हिटलर से भी मिलते हैं वहां के कैंडिडेट जो होंगे वो भी मुस्लिम होंगे और वहां जो वोट डालेंगे वो भी केवल मुस्लिम्स ही डालेंगे तो जिन्ना क्या करते हैं कि कांग्रेस से तो वो रिजाइन नहीं करते हैं इसके साथ-साथ मुस्लिम लीग भी जॉइन कर लेते गांधी जी एक नमक का ढेला उठा के अंग्रेजों के बनाए हुए लॉ को तोड़ देते हैं देखिए इससे पहले की ईस्ट इंडिया कंपनी वाली वीडियो में हमने ऑलरेडी डिस्कस किया था कि ऐसे क्या रीजंस थे कि एक कंपनी हमारे देश को गुलाम बना लेती है और अब ये जो वीडियो है इस वीडियो में हम डिस्कस करेंगे कि ऐसी क्या स्ट्रेटेजी और तरीके यूज हुए जिसकी वजह से हमारे देश को आजादी मिली ये तरीके ऐसे थे जो इससे पहले पूरी दुनिया में कहीं यूज नहीं हुए थे और और ये जो हमारे देश की आजादी की कहानी है ये बहुत ही यूनिक है और ये एक ऐसा डिस्कशन है कि आप दुनिया के किसी भी कोने में चले जाए लेकिन अगर आप एक इंडियन है तो यह डिस्कशन आपके सामने आता ही है तो इस एक वीडियो में आपको सब कुछ पता चल जाएगा कि हमारा देश आखिर आजाद कैसे हुआ है द नोबल मेंशन ऑफ फ्री इंडिया य और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जय हिंद जय तो देखिए ईयर 1600 से ईयर 1837 तक हमने ऑलरेडी डिस्कस किया था कि कैसे एक कंपनी जिसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी था वो आई और उसने क्या-क्या ट्रिक्स खेल के हमारे ऊपर रूल किया और ईयर 1837 आने तक पूरे इंडिया के ऊपर डायरेक्टली और इनडायरेक्टली ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो चुका था डायरेक्टली मतलब कि वो स्टेट जहां ईस्ट इंडिया कंपनी हर एक चीज अपने हिसाब से चलाती थी और इनडायरेक्टली मतलब कि वो स्टेट जहां ईस्ट इंडिया कंपनी राजा या फिर निजाम के साथ मिलके रूल करती थी तो ईयर 1837 तक ये मैप था इस मैप में ये जो आप पिंक एरिया देख रहे हो ये डायरेक्ट ईस्ट इंडिया कंपनी के कंट्रोल में में था और ये जो येलो और ग्रीन एरिया आप देख रहे हो ये प्रिंसली स्टेट थे जो इनडायरेक्टली ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मिलके चल रहे थे येलो मतलब कि हिंदू राजा रूल कर रहे थे और ग्रीन मतलब कि जो मुस्लिम निजाम जो थे वो रूल कर रहे थे लेकिन ये पूरा मैप अगर आप देखोगे तो 50 पर एरिया ही था जहां ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी तरीके से अपनी चला पा रही थी अभी भी काफी एरिया था जहां पे उसकी पूरी तरीके से मनमानी नहीं चल पा रही थी क्योंकि राजा का इवॉल्वमेंट होता था और इस चीज को दूर करने के लिए अब ईस्ट इंडिया कंपनी अलग-अलग ट्रिक्स खेलना स्टार्ट करती है ताकि उसके अंडर में बाकी एरिया का कंट्रोल भी आ जाए ब्रिटिशर्स को पता था कि इन सब चीजों पे कंट्रोल करने के लिए बहुत ही स्ट्रांग होना पड़ेगा तो ये लोग यानी कि ईस्ट इंडिया कंपनी लगातार अपनी आर्मी बढ़ा रही थी अब इतने सारे अंग्रेजों को आर्मी बढ़ाने के लिए इंडिया के अंदर लाना पॉसिबल नहीं था तो इन लोगों ने लोकल इंडियन जो थे उनको आर्मी में हायर करना स्टार्ट किया इस चीज का इनको काफी फायदा भी हुआ इंडिया में वैसे ही भूखमरी वगैरह बहुत ज्यादा फैली हुई थी इंडियंस कम पैसे में ब्रिटिश आर्मी को जवाइन कर लेते हैं और कम पैसों में ज्यादा काम भी करते थे दूसरी चीज ये भी थी जो इंडियंस थे वो वहां की लोकेशन से भी बहुत ज्यादा फैमिलियर थे अब ब्रिटिशर्स इंडियंस को हायर तो कर रहे थे अपनी जरूरत के लिए लेकिन इनके ऊपर विश्वास नहीं था उनको इक्वल नहीं समझते थे उनको ये अपने से छोटा समझते थे यही रीजन था कि जो इंडियंस थे उनको सिर्फ यानी कि सिपाही की जो पोस्ट थी वहीं तक हायर करते थे और जो बड़ी ऑफिसर रैंक होती थी वहां पे इंडियन को अलाव नहीं करते थे वहां पे सिर्फ और सिर्फ गोरे रहते थे ताकि इंडियंस के हाथ में ज्यादा कुछ ना चला जाए लेकिन ये सारी चीजें जानने के बाद भी इंडियन जो थे वो बड़ी आसानी से सिपाही की जो पोजीशन होती थी वो जॉइन कर लेते थे क्योंकि सिपाही की जो पोजीशन होती थी उसको बहुत ही सिक्योर जॉब माना जाता था क्योंकि भुखमरी वगैरह बहुत ज्यादा चल रही थी लोगों को खाने की दिक्कत थी सिपाही बनने पे खाने की जो दिक्कत होती थी वो चली जाती थी महीने में सा से 8 अलग से मिलते थे अब क्योंकि ये चीज ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियंस दोनों को सूट करती थी तो ब्रिटिश आर्मी के अंदर अंग्रेजों से ज्यादा इंडियन सिपाही जो थे वो आ गए थे सिक्स बाय वन का रेशो हो गया था और करीब 45000 ब्रिटिश सोल्जर्स थे और 28000 नेटिव इंडियन सोल्जर्स थे ये जब डटा सामने आया था तब ब्रिटिश मिलिट्री ऑफिसर ने गवर्नर जनरल डल हाउजी को वर्न भी किया था कि एक तरफ तुम इतने ज्यादा किसानों को फौज में भर्ती कर रहे हो और दूसरी तरफ लैंड रिफॉर्म्स वगैरह लाके उन्हीं की जो जमीन है उसको हड़प रहे हो तो ये लोग कभी भी भड़क गए तो बहुत बड़ी दिक्कत हो जाएगी अच्छा इसमें एक चीज और ध्यान रखिएगा कि ईयर 1600 से 1857 तक ईस्ट इंडिया कंपनी जो थी उसने राज किया था ब्रिटिश गवर्नमेंट जो थी ब्रिटिश राज उसने नहीं किया था ब्रिटिश गवर्नमेंट जो थी उसको 18581 37 से ही ईस्ट इंडिया कंपनी पूरा कंट्रोल अपने अंडर में चाहती थी उसको कुछ स्टेट्स में जो इनडायरेक्टली रूल करना पड़ रहा था वो भी उसको कुछ पसंद नहीं आ रहा था तो इस चीज को सॉल्व करने का जो जिम्मा था वो 12थ ऑफ जनवरी 1848 को लॉर्ड डल हाउजी को दिया गया था और जैसे ही ये जिम्मा दिया जाता है लॉर्ड डल हाउजी अपने काम पे लग जाते हैं सबसे पहले वो इनडायरेक्टली रूल जो स्टेट्स थे उनके बारे में रिसर्च करवाते हैं तो इनको पता चलता है कि इस टाइम पे कई ऐसे स्टेट्स हैं जहां के राजा का कोई लड़का नहीं है और उस पर्टिकुलर टाइम पे ये हो रहा था कि अगर किसी राजा का लड़का नहीं होता था तो वो गोद ले लेता था उसके बाद वो राजा बन जाता था तो लॉर्ड डल हाउजी जो थे वो वो इस चीज को एक अपॉर्चुनिटी की तरह देखते हैं और सेम ईयर 1848 को ये एक रूल लाते हैं डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स इसका मतलब ये था कि अगर किसी राजा का खुद का बेटा नहीं है तो उसकी डेथ के बाद जो उसका पूरा स्टेट है जो पूरा राजपाट है वो ईस्ट इंडिया कंपनी के पास चला जाएगा अगर वो किसी को गोद लेता है तो उससे फर्क नहीं पड़ता है अगर उसने गोद लिया है तो जो उसकी पर्सनल प्रॉपर्टी है वो दे सकता है अपने गोद लिए हुए बेटे को लेकिन जो पूरा साम्राज्य है उसका अगर उसका खुद का बेटा नहीं है तो वो पूरा का पूरा ईस्ट इंडिया कंपनी के पास चला जाएगा और इस चीज को सेम यर यानी कि 1848 में इंप्लीमेंट कर दिया जाता है और इंप्लीमेंट करते ही ये सतारा को अपने अंडर में ले लेते हैं एक साल बाद जैतपुर फिर संभालपुर को अपने अंडर किया और नेक्स्ट ईयर छत्तीसगढ़ जिसको छोटा उदयपुर भी कहते थे उसको लिया नागपुर फिर झांसी का नंबर लगता है अब झांसी के अंदर क्या था कि मनीक निका जिनका नाम शादी के बाद महारानी लक्ष्मीबाई हो गया था तो इनकी जो शादी हुई थी वो महाराजा गंगाधर राव से हुई थी और इनका एक बच्चा भी था जिसकी चार मंथ बाद ही डेथ हो जाती है तो ये अपने जो भाई है उसके लड़के को गोद ले लेते हैं और जब 18 53 में महाराजा की डेथ हो जाती है तो लॉर्ड डल हाउजी अपना डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स लगा के झांसी को अपने कंट्रोल में ले लेते हैं और झांसी को अपने कंट्रोल में लेने के बाद रानी लक्ष्मीबाई को 0000 की जो पेंशन थी वो हर साल देते रहते थे तो इस पर्टिकुलर टाइम पे तो रानी लक्ष्मीबाई कुछ नहीं कहती हैं लेकिन आगे वो दिक्कत करती हैं अभी आएगा वो मैं बताऊंगा आपको तो इसके बाद क्या होता है कि 18561 यानी कि आज का यूपी यहां के नवाब वाजिद अली शाह जो थे उन्होंने ब्रिटिशर्स के साथ सब्सिडरी अलायंस ट्रीटी साइन कर रखी थी जिसके चलते नवाब को ब्रिटिश के यहां काफी पैसा देना होता था और जब नवाब पैसे नहीं दे पाए तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवज जो था उसको भी अपने कब्जे में ले लिया था और ये सारी चीजें बैक टू बैक ये अपने अंडर में ले रहे थे तो लोग ज्यादा रजिस्ट नहीं कर पा रहे थे ब्रिटिशर्स की जो आर्मी थी यानी कि ईस्ट इंडिया कंपनी की जो आर्मी थी वो बहुत एडवांस थी उनके पास बहुत ही अच्छे-अच्छे हथियार थे और इधर लोग अभी भी तलवारों से लड़ते थे तो इसलिए ज्यादा कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था क्योंकि उनको पता था बोलने का मतलब यह था कि उनकी हार होना तय थी तो इन सब चीजों को लेके लोगों के अंदर गुस्सा बहुत था और गुस्सा इसी बात के लिए नहीं था और भी कई रीजन थे ईस्ट इंडिया कंपनी अपना अपना इन्फ्लुएंस बढ़ाने के लिए जो मिशनरीज जो होते थे पहले इंडिया में भेजती थी लेकिन उसको और तेज कर देती है ताकि पूरे के पूरे इंडिया में इनका इन्फ्लुएंस रहे तो ये लोग क्या करते हैं कि उसी ईयर में बैप्स मिशनरी सोसाइटी सेटअप करते हैं जिसमें विलियम कैरी जो थे वो इंडिया के अंदर और बहुत ही ज्यादा स्पीड से क्रिश्चियनिटी को प्रमोट करने लगते थे जिसको लेकर लोग बहुत ज्यादा गुस्से में थे लेकिन इस चीज से डील करने के लिए जो लोकल लोग थे उन्होंने बिना लड़ाई झगड़े के ही इसका सॉल्यूशन ढूंढ लिया था उन्होंने क्या कर दिया था कि जो भी लोग कन्वर्ट होते थे उनको सोसाइटी से हटा देते थे उनको प्रॉपर्टी से बेदखल कर देते थे अब ये बात जब अंग्रेज को पता चलती है तो 177th ऑफ अप्रैल 1850 को रिलीजियस डिसेबिलिटीज एक्ट लेके आते हैं इसमें यह था कि अगर कोई कन्वर्ट होगा तो वो अपने आंसेस्टर की प्रॉपर्टी का पूरा का पूरा हकदार होगा अब इसके खिलाफ भी लोगों ने आवाज उठाई लेकिन कुछ होता नहीं है और यहां भी ब्रिटिशर जो थे वो रुकते नहीं है इसके 6 साल बाद यानी कि ईयर 18562 विडो रीमैरिज एक्ट 18562 एक्ट लेके आए हिंदू विडो एक्ट में ये था कि जो विधवा थे जिनकी शादी होना बैन थी उसको अंग्रेज कहते हैं कि अब शादी कराई जा सकती है और उनका जो प्रॉपर्टी पर हक है वो भी उनको दिया जाएगा जनरल सर्विस इनलिस्टमेंट एक्ट में ये था कि सिपाहियों को दूसरे देश भी भेजा जा सकता है अब ये दोनों चीजों से जो लोकल लोग थे उनको दिक्कत थी पहली चीज ये थी कि जो इनकी रीति रिवाज है उसमें ये इंटरफेयर कर रहे हैं दूसरी चीज इनके ट्रेडीशन में था कि जो भी समुंदर पार कर लेता है उसको ये लोग कहते थे कि वो अछूत हो जाता था तो इस एक्ट से वो लोग भी गुस्सा हो गए थे और सिपाही भी गुस्सा हो गए थे क्योंकि जब ये दूसरी कंट्री में जाते थे और वापस आते थे तो जो इनकी सोसाइटी होती थी जो इनकी लोकैलिटी होती थी उसमें लोग इनको एक्सेप्ट नहीं करते थे इसी के साथ-साथ बहुत ही कम सालों के अंदर 12 बार भुखमरी तक फैल गई थी पूरे इंडिया के अंदर तो लोग बहुत ज्यादा गुस्से में थे अंग्रेजों के खिलाफ लेकिन इसके बाद एक ऐसा इंसिडेंट होता है कि अंग्रेजों की नींद उड़ जाती है और बहुत बड़ा डैमेज होता है तो होता क्या है कि ब्रिटिशर जो थे वो पुरानी ब्राउन बेस राइफल जो कि 0.75 कैलिबर की होती थी मतलब कि 0.75 इंच का डायमीटर होता था उसका इसमें आगे कोटा यानी कि चक्कू भी लगा होता था तो ये राइफल यूज करते थे लेकिन अंग्रेज इससे बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे क्योंकि इसमें टाइम बहुत खराब होता था इसमें क्या था था कि बुलेट को लोड करने से पहले गन पाउडर लोड किया जाता था फिर बुलेट डाली जाती थी फिर एक रॉड से इसको सेट करा जाता था इसमें एक तो बहुत ज्यादा टाइम लगता था और दूसरा सिपाही को दो बैग कैरी करने पड़ते थे एक गन पाउडर के लिए और एक बुलेट के लिए दूसरा बुलेट पाउडर अगर नाप के ना डालो तो उसमें दिक्कत आ जाती थी राइफल में भी इशू हो जाते थे तो ईयर 18552 जिसका नाम था एनफील्ड राइफल जिसको p53 एनफील्ड भी बोला जाता था और जनवरी 1857 आते-आते इंडिया के अंदर भी इसकी डिलीवरी हो गई थी अब ये जो नई राइफल्स थी इसमें बुलेट का जो सिस्टम था वो थोड़ा डिफरेंट था इसकी जो बुलेट थी वो एक कागज के सिलेंडर कल पैकेज में बनाई गई थी जिसमें गन पाउडर और बुलेट एक रेशियो में पहले से सेट होके आते थे इसको काटिज बोलते थे इस काटिज की जो आउटर सरफेस थी वो एक रैपिंग पेपर की थी इसलिए इसके फटने का डर बहुत ज्यादा था तो इस रैपिंग पेपर के आउटर पोर्शन पे एनिमल फैट से ग्रीस किया जाता था ताकि ये फटे ना और मॉइश्चर और बारिश वगैरह हो तो उसमें खराब ना हो अब होता क्या है कि सेम मंथ में यानी कि जनवरी 1857 में एक एरिया है दमदम नॉर्थ कलकाता से करीब 8 किमी की दूरी पे है वहां पे एक ब्राह्मण सिपाही जो था वो लोटे में पानी लेके जा रहा था और उस पर्टिकुलर टाइम पे जो कास्ट इजम था वो बहुत ज्यादा था सोसाइटी के अंदर तो रास्ते में जब ये ब्राह्मण सिपाही जा रहा था तो इनको रास्ते में खलासी मिलता है और वो रास्ते में इनसे पानी मांग लेता है और उस टाइम पे ये मानते थे कि ये छोटी कास्ट का है अगर पानी दे दिया तो वापस पूरा लोटा धोना पड़ेगा तो जो ब्राह्मण था वो कहता है कि मैं तुम्हें पानी नहीं दे सकता क्योंकि कि अगर मैं पानी दूंगा तो फिर मुझे धोना पड़ेगा लोटा और धोने के लिए मुझे बहुत दूर जाना पड़ेगा तो इसलिए वो मना कर देता है तो इस चीज पे खलासी थोड़ा सा गुस्सा होता है और कहता है कि जितने भी नखरे हैं आपके वो हमारे सामने ही निकलते हैं उधर जब ब्रिटिशर्स के साथ आप जब काम करने जाते हो तो वहां पे आप बड़ी आसानी से अपना धर्म जो है उसको भ्रष्ट कर लेते हो वहां पे जाके गाय और सूअर की जो चर्बी वाली गोलियां होती हैं उसको मुंह में बड़े आराम से डाल के आप चलाते हो तब आपका धर्म कहां चला जाता है अब ब्राह्मण जो था ये लाइनें सुनके बहुत टेंशन में आ जाता है ये जो काटिज थी काटिज मतलब गोली को ही मैं काटिज बोल रहा हूं तो ये जो काटिज थी ये दमदम जो जगह थी वहां पे इसकी मैन्युफैक्चरिंग हो रही थी और खलासी भी इसी एरिया से था तो उसका शक जो था वो और ज्यादा यकीन में बदल गया कि शायद खलासी जो है वो सही कह रहा है अब ये सारी चीजें सुनके जो ब्राह्मण सिपाही था वो अपनी बटालियन के पास पहुंचता है और अपने सैनिकों के ग्रुप में बताता है कि ये जो मुंह से काटकाट के आप गोली चला रहे हो ये गाय और सूअर की चर्बी से बनी है अब ये लाइन सुनके हिंदू और मुस्लिम जो दोनों थे वो बहुत ज्यादा परेशानी में आ जाते हैं क्योंकि ये चीज ऐसी थी कि जो इनकी धर्म की मान्यताएं थी वो तो खराब होती होती उसके साथ-साथ जो सोसाइटी है जो लोकैलिटी जहां ये रहते हैं वहां से भी इनको निकाल दिया जाए जाएगा इसलिए ये लोग डिसाइड करते हैं कि ये चीज हम कर नहीं सकते और इसके लिए कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा तो इनकी जो रेजीमेंट थी वो 34th बंगाल नेटिव इन्फेंट्री ये कलका से करीब 24 किमी की दूरी पे बारागुर के कैंटोनमेंट में थी अब इसके बाद ये लोग अपने ऑफिसर्स के पास जाके बहुत ज्यादा हल्ला करते हैं उस टाइम के इनके कमांडिंग जनरल जो थे हेयर से वो ऊपर लेटर भेज देते हैं कि यहां पे सिचुएशन थोड़ी खराब हो रही है तो उसके बाद ये जितने भी अंग्रेज ऑफिसर थे ये मीटिंग करके ये डिसाइड करते हैं कि जितने भी सिपाही हैं ये गुस्से में हैं तो इनका अगर गुस्सा शांत करना है तो इसमें एक चीज की जा सकती है कि इनको को काटिज जो है वो इनको डायरेक्ट दे देते हैं ये खुद ग्रीस लगाएंगे तो इनको शक नहीं होगा और चीजें आराम से हैंडल हो जाएंगी और फिर 27th ऑफ जनवरी 1857 को इस चीज को पूरी रेजीमेंट के अंदर लागू कर दिया जाता है लेकिन सिपाहियों को इसमें भी डाउट था कि जरूर कुछ ना कुछ इसमें साजिश है गोरों की इसके बाद इन लोगों को ट्रेनिंग भी दी जाती है कि कैसे ग्रीस लगानी है और किस तरीके से यूज़ करना है लेकिन उसके बाद भी ये जो सिपाही थे ये मानते नहीं है वो कहते हैं कि ये जो काटिज के ऊपर कागज लगा हुआ है ये भी अलग तरीके से शाइन कर रहा है और कुछ लोगों ने उसको जला के भी देखा और ये कहा कि इसमें स्मेल आ रही है तो उनका शक था कि अभी भी इसमें ये जो कागज है इसमें भी ये चर्बी मिला के दे रहे हैं और जब ये सारी चीजें होने लगी तो ब्रिटिशर्स ने कहा कि एक काम आप ये कर सकते हैं कि इसको आप हाथ से तोड़ लीजिए मुंह से मत तोड़िए तो उसके बाद भी ये लोग कहते हैं कि हमारी आदत नहीं है तो हम इसको छू नहीं सकते एक्चुअली जो सिपाही थे उनको अंग्रेजों के ऊपर बिल्कुल भी विश्वास नहीं था उनको ऐसा लग रहा था कि ऑलरेडी हम लोगों को कन्वर्ट करने के पीछे लगे हुए हैं इतने सालों से और अगर हम इनकी बात मान भी ले तो भी हमें समाज से निकाल दिया जाएगा इसलिए वो डिसाइड करते हैं कि इसके खिलाफ हम लोग आवाज उठाएंगे ही अब अब इसके बाद डेट आती है 29th ऑफ मार्च 1857 और लेफ्टिनेंट बॉग जो थे वो 34th ब बंगल नेटिव इन्फेंट्री जो थी उसकी तरफ काम से जा रहे थे लेकिन वहां पे क्या होता है कि सेम जो इन्फेंट्री थी उसमें एक अकेला सिपाही जिसका नाम मंगल पांडे था वो लेफ्ट राइट मार्च कर रहा था और अपने साथियों से कह रहा था कि आगे आओ ये तुम्हारे धर्म की बात है और अभी नहीं अगर जगो ग तो कभी नहीं जगो ग तो उस टाइम पे कोई भी इनके साथ आता नहीं है तो उसके बाद मंगल पांडे कहते हैं कि अब अगर कोई भी अंग्रेज मुझे दिख गया तो उसको मैं तुरंत गोली मार दूंगा और उसी टाइम पे लेफ्टिनेंट बॉक जो थे वो इसी तरफ आ रहे थे मंगल पांडे की नजर जैसे ही लेफ्टिनेंट बॉक पे पड़ती है वो तुरंत गोली चला देते हैं गोली जाके उनके घोड़े को लग जाती है और लेफ्टिनेंट वॉक जो थे वो नीचे गिर जाते हैं गिरने के बाद लेफ्टिनेंट वॉक भी मंगल पांडे के ऊपर गोली चला देते हैं और फिर मंगल पांडे तलवार निकालते हैं और गले और हाथ दोनों पे तलवार चला देते हैं फिर उसके बाद और भी ऑफिसर्स आसपास आ जाते हैं वो बाकी जो बटालियन थी जो इंडियन सिपाही थे उनको कहते हैं कि जाके मंगल पांडे को पकड़ो लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ता है उसके बाद वो धमकी देते हैं कि अगर कोई आगे नहीं बढ़ा और जाके मंगल पांडे को नहीं पकड़ा तो उसपे गोली चला देंगे उसी टाइम पे मंगल पांडे को जैसे ही लगता है कि वो पकड़े जाने वाले हैं वो अपने ऊपर भी गोली चलाने की कोशिश करते हैं लेकिन वो जो गोली थी वो मिस हो जाती है और फिर सिपाही जो थे वो मंगल पांडे को पकड़ लेते हैं पहले उनको हॉस्पिटल ले जाया जाता है और फिर उसके बाद उनको जेल ले जाया जाता है और फिर आगे चलके एथ ऑफ अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी की सजा सुना दी जाती है मंगल पांडे इंडिया के पहले शहीद थे जिन्होंने अंग्रेजों पे अकेले अटैक कर दिया था लेकिन ब्रिटिशर इसको अटैक नहीं मानते वो कहते हैं कि मंगल पांडे नाम का एक सिपाही था उसने भांग ज्यादा खा ली थी इसलिए ऐसा किया और क्योंकि जो इंडियन सिपाही थे उन्होंने जो अंग्रेज थे उनके ऑर्डर नहीं माने थे मंगल पांडे को पकड़ने के लिए तो ये जो सिपाही थे पूरी बटालियन जो थी इसके ऊपर भी केस च ता है पूरी की पूरी 34th बंगाल नेटिव इन्फेंट्री जो थी उसको ही हटा दिया जाता है देखिए मंगल पांडे की तरह और भी बहुत सारे फ्रीडम फाइटर्स ने इंडिया की फ्रीडम के लिए अपनी लाइफ सैक्रिफाइस की जैसे सुभाष चंद्र बोस की आईएएनए का कंट्रीब्यूशन इस स्ट्रगल में काफी बढ़ा रहा है मैं आपको कुक एफएम पे अवेलेबल एक बहुत ही अच्छी ऑडियो बुक सजेस्ट करना चाहूंगा जिसको सुनके आप सुभाष चंद्र बोस जी के बारे में काफी कुछ जान पाओगे ये ऑडियो बुक है आजाद हिंद सरकार ड्रीम ऑफ अ वॉरियर ऑडियो बुक में बताया गया है कि इंडिपेंडेंट से पहले भी इंडिया से कई हजार मीलों दूर कैसे सरकार ने ने खुद की आर्मी बैंक और गवर्नमेंट बनाई थी ऑडियो बुक्स को आप कभी भी कुछ लेजरली एक्टिविटीज जैसे कुकिंग ट्रेवलिंग गार्डनिंग ये सब करते हुए सुन सकते हैं और यह ऑडियो बुक सुनने की हॉबी आपका स्क्रीन टाइम कम करने में भी हेल्प करती है कुक एफएम इंडिया का सबसे बड़ा ऑडियो लर्निंग प्लेटफार्म है जहां क्राइम थ्रिलर बायोग्राफी जैसी कई जनरा की ऑडियो बुक्स और ऑडियो शोज अवेलेबल हैं मेरा एक्सक्लूसिव कूपन कोड nr1 यूज़ करके आप कुक एए का फर्स्ट मंथ का सब्सक्रिप्शन 50 पर डिस्काउंट में एंजॉय कर सकते हैं यानी कि 10000 से ज्यादा ऑडियो बुक्स सिर्फ 9 में टू डाउनलोड शेयरिंग द लिंक इन द डिस्क्रिप्शन अभी जाके डाउनलोड करें तो टॉपिक पे वापस आते हैं अब जब ऐसा होता है और ये जो आर्मी के लोग थे अपने-अपने स्टेट्स में पहुंचते हैं और ये सारी कहानी बताते हैं तो पूरे इंडिया में इसका इंपैक्ट पड़ता है और धीरे-धीरे जो कार्डज वाली कहानी थी ये हर तरफ इसके बारे में बात होने लगती है इसके बाद अप्रैल में अंबाला में भी सिपाहियों ने कार्टेज को यूज़ करने से मना कर दिया था फिर कुछ दिन बाद लखनऊ की जो रेजीमेंट थी उसने भी सेम चीज कही कि वो काटिज यूज नहीं करेंगे और धमकी भी दी अगर हमको मजबूर किया गया तो जो भी ऑफिसर्स हैं उनको हम मार देंगे और जब लखनऊ की रेजीमेंट ने ऐसी धमकी दी तो अवद का चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेंस जो था उसने पूरी की पूरी फोर्स बुला ली थी और कुछ लोग भाग गए थे और कुछ लोगों ने हथियार डाल दिए थे तो जैसे-तैसे लखनऊ की जो सिचुएशन थी वह कंट्रोल में आई थी लेकिन सिचुएशन डे बाय डे खराब होने लगी थी और इसी बीच में एक अफवा फैला दी जाती है कि अंग्रेज जो हैं वो गाय की हड्डी को पीस के वो आटे में मिला दे रहे हैं और कुएं में डाल दे रहे हैं तो फिर लोगों को जो फ्री का आटा मिलता था अंग्रेजों की तरफ से वो भी उन्होंने यूज़ करना छोड़ दिया था अब इसके कुछ दिन बाद 24th ऑफ अप्रैल 1857 को मेरठ में ब्रिटिश ऑफिसर जॉर्ज कर माइकल अपनी 90 सिपाहियों की बंगाल लाइट रेजीमेंट जो थी उनको ये जो नए कार्ट रेज आए थे उनको ड्रिल करवा रहे थे लेकिन 90 में से 85 सिपाही जो थे उन्होंने इसको यूज करने से मना कर दिया क्योंकि उन तक भी खबर पहुंच चुकी थी अब ये जो सिचुएशन थी इसको देख के ब्रिटिशर्स बहुत ज्यादा गुस्सा हो रहे थे तो इसके सलूशन के लिए इन्होंने क्या किया ये जो लोग थे जो मना कर रहे थे कि हम कार्टेज नहीं यूज़ करेंगे भरे ग्राउंड में इनको बुलाया गया इनका कोर्ट मार्शल किया गया कई सारे इंडियंस अंग्रेज और इनके दोस्त वगैरह सब वहां पे थे सबके सामने पीछे से इनकी शर्ट फाड़ी जाती है हथियार छीने जाते हैं और उनको 10-10 साल की सजा सुना के जेल में बंद कर कर दिया जाता है अब ये सारी चीजें इनके जो साथी थे वहीं पे खड़े होक देख रहे थे और उनको भी बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था अंग्रेज ये जो पूरा इवेंट इन्होंने कराया था इसको ऐसे दिखा रहे थे एक मिसाल की तरह इसको दिखा रहे थे ताकि दोबारा ऐसा ना हो लेकिन यहीं से इनसे एक गलती हो गई थी क्योंकि यहां पे सारी लिमिट क्रॉस हो गई थी अगले दिन 10th ऑफ मई 1857 को संडे था और ज्यादातर अंग्रेज जो होते हैं इस टाइम पे चर्च में थे तो ये जो सिपाही थे जिनको बंद किया गया था इनके दोस्त क्या करते हैं जेल के अंदर घुस जाते हैं इन 85 सोल्जर्स जो थे इनको छुड़वाते हैं इनके साथ-साथ बाकी जो कैदी वगैरह थे चोर उचक्के थे वो भी छूट जाते हैं पूरे के पूरे जेल में आग लगा देते हैं जो भी अंग्रेज ऑफिसर वहां पे था उनके गले काट देते हैं बहुत ज्यादा मारकाट होती है और जितना भी गोला बारूद था वो सारा कुछ उठाते हैं और वहां से निकल जाते हैं अब यहां से ये सारी चीजें ये लोग कर तो आए थे लेकिन इनको पता था कि जो ब्रिटिशर्स हैं वो इनको छोड़ेंगे नहीं इसलिए ये लोग जेल से निकलने के बाद तुरंत प्लान बनाते हैं दिल्ली की तरफ जाने का रात में ये लोग निकल जाते हैं और अगले दिन यानी 11थ ऑफ मई 1857 को मॉर्निंग में ये लोग दिल्ली पहुंच जाते हैं अब दिल्ली जब पहुंचते हैं वहां पे ऑलरेडी इंडियन सिपाही थे थे वहां उनकी ड्यूटी लगी हुई थी ये लोग उनको वहां पे सारी चीजें बताते हैं और बताते हैं कैसे इन्होंने मार काट मचाई तो जो दिल्ली के सिपाही थे वो भी इनको जॉइन कर लेते हैं और फिर वहां से ये लोग प्लानिंग बना के दिल्ली के जो ब्रिटिश ऑफिसर्स थे उनके ऊपर भी अटैक कर देते हैं और दिल्ली के अंदर अंग्रेजों को बहुत ज्यादा मारा काटा जाता है द ग्रेट मैगजीन एक जगह थी वहां पे सारे हथियार और सारे बारूद वगैरह रखे हुए थे वो सारी चीजें लूट ली जाती हैं ये जितने अंग्रेज ऑफिसर थे इनको दिल्ली छोड़ के तुरंत भागना पड़ता है और इस पर्टिकुलर टाइम पे दिल्ली के ऊपर सिर्फ और सिर्फ इंडियन सिपाही जो क्रांतिकारी थे उनका कंट्रोल था अब ये सारी चीज करने के बाद ये लोग तुरंत लाल किला पहुंचते हैं वहां पे जाके ये बहादुर शाह जफर से मिलते हैं उनकी एज बहुत ज्यादा हो गई थी 82 इयर्स के थे वो उनसे जाके मिलते हैं और कहते हैं कि आप हमारे लीडर बनिए तो पहले तो बहादुर शाह जो थे वो क्रांतिकारियों के भरोसे ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट खड़े होने से एकदम साफ मना कर देते हैं लेकिन सिपाही इनको फोर्स करते हैं और शहंशाह हिंदुस्तान बनाने का सपना भी दिखाते हैं कि दोबारा से मुगल सल्तनत का परचम लहरेगा ये सारी चीजें बताते हैं तो ये सब सुन के बहादुर शाह जफर जो थे वो हां कर देते हैं जैसे ही हां होती है बहादुर शाह इंडिया के बाकी जो रूलर थे उनको लेटर लिखते हैं उस लेटर में बेसिकली यही लिखते हैं कि ब्रिटिशर्स के खिलाफ लड़ने का टाइम आ गया है और सबको एकजुट होना पड़ेगा और यही कुछ रीजन है जिसकी वजह से सिपाही जो थे वो बहादुर शाह को बहुत ज्यादा फोर्स कर रहे थे अपना लीडर बनाने के लिए एक तो जितने भी बाकी स्टेट्स के राजा थे उनको यूनाइट कर देते दूसरा बहादुर शाह के लीडर बनने के बाद ये पूरी जो लड़ाई थी इसका नेचर चेंज हो जाता है इसको छोटा-मोटा रिवॉल्ट कहा जा रहा था पहले और जैसे ही लीडर बनते हैं ये लड़ाई जो थी एक वॉर में बदल जाती है ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट और यही सारे रीजन थे कि जितने भी सिपाही थे वो बहादुर शाह के पीछे पड़े हुए थे वरना बहादुर शाह जो ऑर्डर वगैरह देते थे वो ये लेते नहीं थे उनको बस नाम का लीडर बना दिया था एक्चुअल जो कमान संभाली थी वो सूबेदार बक्त खान ने संभाली थी ये ब्रिटिश आर्मी में 40 साल से थे और दिल्ली के अंदर ये जो लड़ाई चल रही थी इसको सुनके बरेली से दिल्ली पहुंच जाते हैं और पूरी कमान संभालते हैं अब ये सारी चीजें तो हो जाती हैं इसके बाद एक वीक तक सब कुछ शांत रहता है पहले के हिस्सों में भी पहुंचती हैं तो लोगों को लगता है कि ब्रिटिशर्स इतने भी स्ट्रांग नहीं है इनको हराया जा सकता है और जगह-जगह पे रिवॉल्ट के जो किस्से थे वो सुनाई आने लगते हैं अब ये जो मैं कह रहा हूं कि जगह-जगह पे रिवॉल्ट हो रहे थे इनका मतलब क्या था देखिए रिवॉल्ट करने का मतलब पहली चीज तो सिपाहियों के साथ-साथ आम जनता जो थी वो भी इस रिवॉल्ट में थी मतलब कि आम जनता जो थी वो अंग्रेजों के जो ऑफिसेसूट कर देते थे तो इस तरीके से किससे जगह-जगह पे सुनाई आने लगे थे तो सिपाही और जनता जो थी वो अलग-अलग जगह पे इस तरीके की चीजें कर रही थी और और इनके साथ-साथ आगे चलके जो राजा थे जो डॉक्ट्रिन ऑफ लप्स के चक्कर में पेंशन पे जी रहे थे वो भी इसको जॉइन करते हैं 13th ऑफ मई 1857 को फिरोजपुर में छोटी सी मारपीट होती है फिर अगले दिन 14th ऑफ मई 1857 को मुजफ्फरपुर में इंसीडेंट होता है उसके बाद कुछ दिन शांति रहती है फिर 21 ऑफ मई 1857 को नौशेरा के अंदर लड़ाई होती है और फिर यूपी के अंदर जगह-जगह पे इटावा मेनपुरी अलग-अलग जगह पे लड़ाइयां होने लगती हैं ये यहां इतनी जगह पे जो मेन फोकस था इस पूरे रिवॉल्ट का ये चल रहा था इंडिया का जो साउथ और नॉर्थ ईस्ट का जो एरिया था वहां पे यह जो रिवॉल्ट था वह नहीं हो रहा था उसका बहुत कम असर था अब इसके बाद ब्रिटिशर्स को समझ में आ रहा था कि यह अब आउट ऑफ कंट्रोल हो रहा है तो व तुरंत हरकत में आते हैं और यूके के अंदर से रिइंफोर्समेंट मंगाते हैं 2000 सिपाहियों की अंग्रेज जो थे वो ब्रिगेडियर जनरल जॉन निकोलसन को इन सब चीजों से निपटने का जिम्मा देते हैं सबसे पहले यह यूपी को टारगेट करते हैं और उसके बाद इनको जिम्मा दिया जाता है कि दिल्ली के अंदर ये सब चीजों की जड़ बैठी हुई है दिल्ली के अंदर जाओ और इस चीजों को खत्म करो ब्रिगेडियर जनरल जॉन निकोलसन जो थे वो फौज लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ते हैं तो 255th ऑफ अगस्त 18 57 को रास्ते में नजफ गर पड़ता है यहां क्रांतिकारियों की अंग्रेजों से काफी देर तक लड़ाई होती है और अंग्रेज इसमें जीत भी जाते हैं इसके बाद ये लोग कश्मीरी गेट पे पहुंचते हैं यहां पे जो ब्रिगेडियर जनरल थे जॉन निकोलसन उनको गोली मार दी जाती है फिर उनके जो जूनियर थे विलियम हटसन वो मोर्चा संभालते हैं दिल्ली में पहुंचने के बाद ब्रिटिशर जो थे वो बहादुर शाह के दोनों बेटे और एक पोते को मार देते हैं और 21 ऑफ सितंबर 1857 को दोबारा से दिल्ली के ऊपर कब्जा कर लेते हैं और बहादुर शाह जफर जो थे उनको लाइफ टाइम सजा सुना दी जाती है उनकी जो वाइफ थी जीनत महल उनके साथ उनको रंगून की जेल में भेज दिया जाता है जब इधर ये सारी चीजें हो रही थी तो सेम टाइम पे झांसी जो था वहां पे अंग्रेजों का कंट्रोल था और रानी लक्ष्मीबाई जो थी उनको पेंशन दी जा रही थी उनका कंट्रोल नहीं था तो इसी टाइम पे कुछ इंडियन क्रांतिकारी क्या करते हैं झांसी का जो किला था उस परे कब्जा कर लेते हैं और खजाने पे कंट्रोल ले लेते हैं काफी नेगोशिएशन के बाद क्रांतिकारी जो थे वो अंग्रेजों से कहते हैं कि हथियार आप लोग डाल दो रिटेल मत करो हम आपको और आपकी फैमिली जो है उसको मारेंगे नहीं बल्कि छोड़ देंगे लेकिन जैसे ही अंग्रेज हथियार डालते हैं क्रांतिकारी अपना प्रॉमिस तोड़ देते हैं और करीब 40 से 60 अंग्रेज जो थे उनको और उनकी फैमिली को मार डालते हैं अब इसके बाद जून 1857 को ये जो क्रांतिकारी थे जिन्होंने किले और खजाने पे कब्जा किया था ये सब लेके वहां से भाग जाते हैं तो बेसिकली उस पर्टिकुलर टाइम पे झांसी को कोई भी रूल नहीं कर रहा था तो सेकंड ऑफ जुलाई 1857 को रानी लक्ष्मी बाई मेजर अर्स काइन से कहती हैं कि यहां कोई भी नहीं है तो झांसी मैं संभाल लेती हूं और ब्रिटिशर जो थे वो मान जाते हैं लेकिन झांसी की रानी जो थी वो इस मौके पे क्या करती हैं किले वगैरह पे पूरी तरीके से कंट्रोल ले लेती हैं और अपने लोगों को को तैनात कर देती हैं और जब 23 ऑफ मार्च 18581 से हथियार थे तो उनका मुकाबला करना मुश्किल था और आधी रात में ही ब्रिटिशर्स किले के अंदर घुस जाते हैं और आधी रात को झांसी की रानी को वहां से अपने बेटे दामोदर और घोड़े बादल को लेके भागना पड़ता है कुछ सिपाही भी थे जो रानी लक्ष्मीबाई के साथ निकलते हैं ये नाम थे उनके और ये वो जगह है जहां से रानी लक्ष्मीबाई ने घोड़ पे सवार हो के छलांग लगाई थी अब यहां से निकल के म 18582 कालपी पहुंचती हैं लेकिन यहां भी ब्रिटिशर्स 22 ऑफ म 18582 पे द नवाब ऑफ बांदा और राव साहब के साथ ग्वालियर चली जाती हैं लेकिन 177th ऑफ जून 18582 से ज्यादा क्रांतिकारियों की जान चली जाती है और रानी लक्ष्मीबाई भी शहीद हो जाती हैं रानी लक्ष्मीबाई इस तरीके से लड़ी थी ब्रिटिशर्स के साथ कि कई ऐसे ब्रिटिशर्स खुद तारीफ करते थे उनकी अब यहां से धीरे-धीरे करके ब्रिटिशर्स फैजाबाद बरेली बाग पाद हर जगह जितने भी क्रांतिकारी थे उनको या तो ये मार देते थे या लालच देते थे या फिर कब्जा करके उस इलाके को अपने कंट्रोल में ले लेते थे ये जो पूरा 1857 का रिवॉल्ट था जिसमें ब्रिटिशर्स बैकफुट पे आए थे इसमें हारने के मेन रीजन यही थे कि एक तो कोई प्रॉपर लीडरशिप नहीं थी दूसरा सब अलग-अलग लड़ाइयां लड़ रहे थे उनमें से कोई साथ में नहीं था कोई प्लान ऑफ एक्शन नहीं था और कई स्टेट्स के राजा ने अपने फायदे के लिए अंग्रेजों को सपोर्ट भी किया उन्होंने अपने फायदे से मतलब रखा लड़ाई में प पार्टिसिपेट नहीं किया ये वो स्टेट्स के राजा थे जो लड़ाई से दूर रहे अब जब ये सारी चीजें खत्म हो जाती हैं तो ब्रिटिश गवर्नमेंट हरकत में आती है ये जो ईस्ट इंडिया कंपनी जिसको यूके में बैठ के कई सारे शेयर होल्डर्स जो थे जिनको कोर्ट ऑफ डायरेक्टर बोला जाता था वो कंट्रोल करते थे सारा का सारा जो जिम्मा था या फिर जो सारा ब्लेम गेम था ब्रिटिश गवर्नमेंट ईस्ट इंडिया कंपनी के ऊपर डाल देती है और खुद कंट्रोल ले लेती है इंडिया के ऊपर सेकंड ऑफ अगस्ट 18582 यूके की पार्लियामेंट के अंदर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ऑफ 18581 दिन से से ईस्ट इंडिया कंपनी इंडिया से बाहर चली जाती है अब ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिया को कंट्रोल करती है जिसको ब्रिटिश राज भी बोला जाता है अभी जो अंग्रेज थे इन्होंने ये रिवॉल्ट जो था वो रोक तो दिया था लेकिन इस रिवॉल्ट ने ब्रिटिशर्स को हिला के रख दिया था तो दोबारा से ऐसा ना हो और इंडियंस का जो गुस्सा है उनको खुश करने के लिए कई सारे लीगल एडमिनिस्ट्रेटिव और कांस्टिट्यूशन वगैरह में कई सारे पॉजिटिव चेंजेज लाए गए और ऐसे रूल्स जो ब्रिटिशर्स को फेवर करते थे उनको हल्का किया गया जैसे कि ये डॉक्ट्रिन ऑफ लैब्स वगैरह था इस सबको खत्म कर दिया जाता है लैंड वगैरह जो थे उसमें भी पॉजिटिव रिफॉर्म्स किए जाते हैं लेकिन इसके बाद भी जो इंडियंस थे उनको यकीन नहीं था उनका भरोसा उठ चुका था ब्रिटिश गवर्नमेंट से तो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ऑफ 18581 58 को लॉर्ड कैनिंग क्वीन विक्टोरिया की प्रोक्लेमेशन फॉर द बेटर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को अनाउंस करते हैं इसका इतना मतलब था कि क्वीन खुद ये सिक्योरिटी देती हैं कि अब रिलीजियस भावनाओं को ध्यान में रखा जाएगा डिस्क्रिमिनेशन नहीं होगा और इंडिया के अंदर सबको इक्वली ट्रीट किया जाएगा हर एक चीज कांस्टिट्यूशन हो या कोई लॉ हो फेयर तरीके से फॉलो होगा अब ऑन पेपर पे तो ये सारी चीजें कर दी गई थी लेकिन ग्राउंड पे ऐसा नहीं था अंग्रेज जो थे जो इंडिया के अंदर आते थे वो इंडियंस को छोटा समझते थे कोई भी अंग्रेज जो था वो इंडिया में आके रहना नहीं चाहता था उनका बस इतना ही मतलब था कि इंडिया के अंदर आए वो और उनके रिसोर्सेस ले और यूके में ट्रांसफर कर दें इसी टाइम पे एक और इशू चल रहा था जो आगे चलके काफी दिक्कत करता है तो क्या हो रहा था कि ब्रिटिशर जो थे उन्होंने प्लांटर्स रखे हुए थे ये एक पोस्ट बना के रखी हुई थी जिसमें ये था कि किसानों के लिए इनको अपॉइंट्स हैं ये बताएंगे कि किस चीज की फसल तैयार होगी ये प्लांटर्स लिटरली एक लाठी रखते थे अगर उनकी कोई बात नहीं मानता था तो लाठी से पिटाई होती थी उसकी अब इंडिया के बाहर के मार्केट में क्या था कि ब्लू डाई इंडिको जिससे कपड़े वगैरह कलर होते हैं उसकी डिमांड बहुत ज्यादा थी और इससे बहुत मोटा पैसा भी बनता था तो ब्रिटिशर्स ने ये जो प्लांटर्स बैठाए हुए थे ये किसानों को जबरदस्ती इंडिगो की खेती करवाते थे प्रेशर बनाते थे इनसे इन्होंने ऐसा रूल बना दिया था कि एक किसान के पास जितनी भी जमीन है उसका 25 पर एरिया पे इंडिको की खेती करना कंपलसरी कर दिया था लेकिन किसान जो थे वो इसकी खेती करना बिल्कुल नहीं चाहते थे एक तो अंग्रेज जो थे वह सारा पैसा अपने पास रख लेते थे तो जो किसान था उसके पास इतना कोई खास पैसे का बेनिफिट नहीं होता था दूसरी चीज इको की खेती करने से जो जमीन थी उसकी प्रोडक्टिविटी खराब होती थी और इको एक कैश क्रॉप थी यानी कि उसको खाया नहीं जा सकता था किसान गेहूं वगैरह पे ज्यादा फोकस करते थे ताकि भूखे ना मरे अब ये जो चीज चल रही थी इसको लेके फरवरी 18590 जो सारी चीजें करवा जा रही थी जबरदस्ती इंडिको की खेती करवाई जा रही थी इसके लिए मना कर देते हैं और ये जो पूरा ग्रुप बना के रिवॉल्ट कर रहे थे इसको लीड कर रहे थे दिगंबर विश्वास और विष्णु विश्वास तो ये जो ग्रुप बना के एक छोटा सा रिवॉल्ट करते हैं इसका इंपैक्ट पड़ता है ब्रिटिशर्स जिनको काफी मारते पीटते हैं लेकिन उसका कोई भी असर नहीं पड़ता है और थक हार के ब्रिटिशर्स थोड़े टाइम बाद इस रूल को हटा देते हैं जिससे किसानों को थोड़ी सी रियायत मिल जाती है अभी आगे जब गांधी जी की एंट्री होगी तब आपको ये समझ में आएगा कि ये स्टोरी मैंने अभी यहां पे क्यों बताई है तो अभी आप थोड़ा सा वेट करिए अब देखिए इस टाइम तक अंग्रेजों ने क्या किया था कि अपने काम वगैरह में इंग्लिश में दिक्कत ना आए तो लोगों को इंग्लिश सिखाई एजुकेशन वगैरह करवाई कम्युनिकेशन ट्रांसपोर्ट जैसे रेलवे हो गया टेलीग्राम हो गया ये सब इंप्लीमेंट किया ताकि उनका काम ना रुके वो और तेजी से आगे बढ़े न्यूज़पेपर का जो सर्कुलेशन का जो प्रोसेस था उसको भी बहुत तेज किया तो ये जो टाइम था इस पर्टिकुलर टाइम पे जो लोगों का कम्युनिकेशन था बहुत ही फास्ट हो गया था इस टाइम पे ऐसा नहीं था कि एक कोने में क्या हो रहा है दूसरे कोने वाले को पता नहीं रहता था अगर कोई बात भी होती थी कोई प्लानिंग करनी होती थी तो लोग बहुत ही वेल कोऑर्डिनेटेड होके काम करना स्टार्ट कर देते थे सेमिनार वगैरह करना हो तो बहुत आसानी रहती थी उनके लिए और उस टाइम पे कई इंडियन मिडिल क्लास के जो लोग थे वो पढ़ने लिखने लगे थे पढ़ाई की वजह से यूके वगैरह जाने लगे थे तो उन्होंने ब्जर्व किया कि यूके के अंदर जो डेमोक्रेसी है जो क्वालिटी है वो इंडिया से काफी अलग है इंडिया के अंदर जो ब्रिटिशर्स थे वो छोटा समझते थे इंडियंस को तो ये वो टाइम था जहां पे कई सारे इंडियन पढ़े लिखे लोगों ने इक्वलिटी डिस्क्रिमिनेशन ये सारे जो मुद्दे थे इनकी बातें उठाना चालू करें वरना इससे पहले तो इंडियंस को यही लगता था कि कोई ना कोई तो उन परे राज करेगा ही करेगा वरना वो काम नहीं कर पाएंगे और वो जो गरीब थे उसमें भी वो अपनी गलती मानते थे कि वो उनकी कोई गलती होगी इसलिए वो गरीब हैं उनको ये नहीं पता था कि डेमोक्रेट प्रसी वगैरह भी नाम की कोई चीज होती है इस टाइम पे इंडिया के अंदर जितने भी इंडियन लॉयर्स थे वो भी काफी स्किल्ड हो गए थे वेल एजुकेटेड थे और उनको कानून भी पता था जो ब्रिटिशर्स वगैरह करते थे इसलिए आप नोटिस करोगे जितने भी फ्रीडम फाइटर के लीडर थे नेहरू जी हो गए सरदार वल्लभ भाई पटेल महात्मा गांधी सारे के सारे लॉयर थे तो कहने का मतलब ये है कि ये वो टाइम था जहां पे पढ़े-लिखे लोग जो ज्यादातर लॉयर थे वो आवाज उठाना चालू करते हैं और इक्वलिटी डिस्क्रिमिनेशन इन सारे मुद्दों पे बात करते हैं और ब्रिटिशर्स को बोलते हैं कि हमें इ क्वालिटी मिलनी चाहिए और इन्होंने बहुत ही अलग रास्ता चुना था अपनी बात रखने का इन्होंने बुक्स न्यूज़पेपर सेमिनार के थ्रू जो इन इक्वलिटी होती थी उसके लिए आवाज उठाई और कई सारी पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशंस भी बनाई जो ब्रिटिशर्स के सामने अपनी आवाज रख सके जैसे पुण सार्वजनिक सभा इंडियन एसोसिएशन द मद्रास महाजन सभा द बम्बे प्रेसिडेंसी एसोसिएशन तो ये सारी पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशन भी इस टाइम पे बनने लगी थी लेकिन होता क्या था कि जितनी भी ऑर्गेनाइजेशन थी ये लोकल इशू में ही फंस के रह जाती थी उस टाइम पे पूरे इंडिया की कोई नेशनल पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशन नहीं थी जो एकजुट होके पूरे देश के लोगों की बात ब्रिटिशर्स के सामने रख सके लेकिन जितने भी इंडियंस पढ़े लिखे लोग थे थे वो ऐसा चाहते थे कि इंडिया के अंदर नेशनल पार्टी बने और ये जो सारी बातें हैं नेशनल पार्टी की हो गई ब्रिटिशर्स को जो क्रिटिसाइज करना हो गया ये सारी चीजें न्यूज़ वगैरह के थ्रू करते थे और जब इन सारी चीजों की फ्रीक्वेंसी बहुत ज्यादा हो गई तो ब्रिटिशर्स ने क्या किया उन्होंने ईयर 18788 ऑफ 18788 लेके आए अल्बर्ट बिल ये सारे बिल लेके आए जिससे लोगों में बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया क्योंकि जितने भी लॉज थे एक्ट थे ये जो लेके आ रहे थे इसके थ्रू ब्रिटिशर जो थे वो आम जनता के जो राइट्स थे उनको कम कर रहे थे तो इधर ये सारी चीजें चल रही थी और इसी टाइम पे क्या होता है कि ब्रिटिश गवर्नमेंट में एक एओ ह्यूम नाम का डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर था इसकी उस टाइम के वाइस रॉय लॉर्ड लेटन से बात अच्छी नहीं बनती थी दोनों एक दूसरे के एंटी थे तो लॉर्ड लेटन ने क्या किया था कि एओ ह्यूम जो था उसका डिमोशन कर दिया था अब इसकी वजह से एओ ह्यूम जो था वो बहुत गुस्से में था लेकिन उसके बाद भी उसने रिजाइन नहीं किया था वो वहीं पे काम करता रहता था और रिटायरमेंट के बाद जैसे बाकी ऑफिसर यूके वापस चले जाते थे एओ ह्यूम जो था वो वापस यूके नहीं गया बल्कि उसने इंडिया में रहकर ही इंडिया की सिचुएशन सुधारने का जम्मा लिया इसने क्या किया कि ईयर 1883 में कलका यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट को एक ओपन लेटर भेजा जिसमें इसने इंडिया के सभी बड़े लोगों को इनवाइट किया इंडिया के अंदर एक नेशनल लेवल की पॉलिटिकल पार्टी बनाने के लिए ताकि ब्रिटिशर्स के सामने इंडियंस अपनी बात रख सके अब इंडियन जो थे उनको ये बात बहुत ज्यादा पसंद आती है और दिसंबर अलग एरिया से टोटल 17 पॉलिटिकल लीडर जो थे उनके साथ एक मीटिंग सेटअप करवाते हैं और ये लोग डिसाइड करते हैं कि 28th ऑफ दिसंबर 1885 को पुणे के अंदर और लोगों को जोड़ के एक कॉन्फ्रेंस करेंगे और वहां पे तभी के तभी नेशनल पार्टी बना देंगे और हाथों हाथ उसका जो नाम होगा वो भी अनाउंस कर देंगे लेकिन पुणे के अंदर उस टाइम पे महामारी चल रही थी तो लोकेशन को चेंज करके मुंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में यह कॉन्फ्रेंस कर दी जाती है इस मीटिंग में ऑल ओवर इंडिया से 72 इंटेलेक्चुअल और एजुकेटेड लोग आते हैं जिसमें 69 इंडियंस थे और एओ ह्यूम के साथ दो और ब्रिटिशर्स आते हैं तो कहने का मतलब यह है कि इस दिन 28th ऑफ दिसंबर 1885 को इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी बनके अनाउंस कर दी जाती है इसमें ये लोग कहते हैं कि ये जो कांग्रेस पार्टी है ये पीपीपी मॉडल यानी कि प्रेयर प्रोटेस्ट और पिटीशन इसका यूज करके कांस्टिट्यूशन के दायरे में रहके अपनी बात रखेगी और हर साल ईयर के लास्ट मंथ में यानी कि दिसंबर में अपना एक सेशन रखेगी जिसमें ये फिक्स करेंगे कि आगे किन मुद्दों पर बात करनी है और यह सेशन ऑल ओवर इंडिया में होगा ऐसा नहीं कि सिर्फ एक ही जगह पे होगा कभी ईस्ट इंडिया में होगा कभी नॉर्थ इंडिया में होगा अलग-अलग जगह पे होगा और जिस जगह पे सेशन होगा उसी जगह के नाम से उस सेशन का नाम पड़ जाएगा मान लो सूरत में हो रहा है तो सूरत सेशन उसका नाम पड़ जाएगा तो ऐसे कर कर के इंडिया के अंदर हर साल सेशन होने लगे इनफैक्ट आज की डेट में भी कांग्रेस पार्टी जो एनुअल सेशन रखती है वो दिसंबर में ही रखती है और ये जो मीटिंग हुई थी इसमें एक चीज और डिसाइड हुई थी कि ये लोग हर सेशन में एक प्रेसिडेंट बनाएंगे ऐसा नहीं होगा कि एक प्रेसिडेंट होगा और हमेशा के लिए प्रेसिडेंट रहेगा हर साल एक प्रेसिडेंट बनेगा और वो कौन बनेगा यह वोट से डिसाइड होगा फिर अगले साल नया प्रेसिडेंट बनेगा तो जब यह पार्टी बनी थी शुरू में जितने भी कांग्रेस के लीडर थे इनको मॉडरेट लीडर्स कहा गया क्योंकि इनका मानना था कि ब्रिटिशर्स खराब लोग नहीं थे बट एथनिक का फर्क है इसलिए इंडियंस की जो प्रॉब्लम है वो इनको समझ में नहीं आ रही है इस वजह से गैप आ रहा है एक बार अगर हम सही से इनको ये सारी चीजें समझाएंगे तो इनको ये समझ में आएंगी और जो हमारी प्रॉब्लम है वो सॉल्व हो जाएगी लेकिन कांग्रेस के जो ये मॉडरेट लीडर्स थे इनका ये जो भ्रम था ये आगे जाके टूटता है अभी आगे बताऊंगा मैं आपको लेकिन इसमें एक और थ्योरी कही जाती है जो मैंने अभी आपको चीज बताई इसमें एक और थ्योरी है जिसमें यह कहा जाता है कि एओ ह्यूम जो थे इनको गलत हीरो बनाया जा रहा है और ये सारी चीज जो करी गई ये अंग्रेजों की साजिश थी लॉर्ड डफरिन ने एओ ह्यूम के साथ मिलके कांग्रेस पार्टी बनवाई थी और वो इसलिए बनवाई थी क्योंकि अंग्रेजों को पता था कि इंडियंस अगर एकजुट हो गए इनमें इतनी कैपेबिलिटी है कि अंग्रेजों को इंडिया से बाहर कर सकते हैं इसलिए ब्रिटिशर चाहते थे कि इससे पहले कि इंडिया खुद अपने हिसाब से कोई पॉलिटिकल बना के हमारे लिए दिक्कत क्रिएट करे हम खुद ही अपने लोग लोगों के साथ मिलवा के एक पार्टी बनवा देते हैं और इसका फायदा यह होगा अंग्रेजों को कि अंग्रेजों को हर एक चीज पता चलती रहेगी इंडिया के मन में क्या चल रहा है ये सारे आईडिया लगते रहेंगे कोई भी पॉलिटिकल मूवमेंट स्टार्ट करने वाले होंगे तो वो पता चल जाएगा मान लो कोई पॉलिटिकल मूवमेंट है वो आउट ऑफ कंट्रोल हो गई तो उसको बीच में ही कोई छोटा-मोटा लॉलीपॉप देके उसको शांत करा दिया जाएगा और इस थ्योरी में ये भी कहा गया कि ब्रिटिशर्स चाहते तो ये जो नेशनल पार्टी बन रही थी इसको दो मिनट में रुकवा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया लाला लाजपत राय ने आगे चलके ईयर 1916 में अपनी बुक में लिखा था कि ये जो कांग्रेस पार्टी बनाई गई थी ये एक सेफ्टी वॉल्व थी एक्चुअली कुकर में जब प्रेशर ज्यादा हो जाता है तो सीटी बजती है तो उसके साइड में एक सेफ्टी वॉल्व होती है कि अगर सीटी ब्लॉक हो जाए तो उस सेफ्टी बॉल से प्रेशर रिलीज हो जाए तो इसीलिए एओ ह्यूम ने ब्रिटिशर्स के साथ मिलके कांग्रेस पार्टी को बनाया था कि अगर इंडियंस का प्रेशर बहुत ज्यादा हो जाए तो ये जो कांग्रेस पार्टी बनाई गई थी ये एक सेफ्टी वॉल की तरह काम करेगी विलियम वेडल बन जो एओ ह्यूम के साथ कांग्रेस के फाउंडिंग मेंबर थे और दो बार 188 और 1910 में कांग्रेस के प्रेसिडेंट भी बनते तो इन्होंने ईयर 1913 में एक बुक लिखी थी जिसमें इन्होंने ये कहा था कि ब्रिटिशर्स ने जान पूछ के कांग्रेस पार्टी बनाई थी ताकि सिचुएशन उनके हिसाब से चले अभी जो टाइम चल रहा था 1888 के आसपास का इस टाइम पे गांधी जी जो थे वो 19 साल के थे और फर्थ ऑफ सितंबर 1888 को गांधी जी इन सारी चीजों से दूर लंदन चले जाते हैं लॉ की पढ़ाई करने और इसके बाद 12th ऑफ जनवरी 18912 पे लॉ प्रैक्टिस करते हैं और पेटीशन वगैरह फाइल वगैरह करते हैं लेकिन उस टाइम पे इनको ज्यादा सक्सेस नहीं मिलती है लेकिन ईयर 1893 में एक गुजराती बिजनेसमैन था जो कि साउथ अफ्रीका में बिजनेस करता था तो वो गांधी जी को बुला लेता है कि आप आके हमारी जो लीगल टीम है उसको ज्वाइन कर लो तो अप्रैल 1893 को गांधी जी समुद्र के रास्ते से साउथ अफ्रीका चले जाते हैं वहां पे भी गोरे काले को लेके बहुत डिस्क्रिमिनेशन हो रहा था तो गांधी जी वहां पे भी जाके अपनी आवाज उठाते हैं जिसका एक्सपीरियंस इंडिया में आगे चलके काम आता है अभी आगे बताऊंगा मैं आपको ये जो कांग्रेस पार्टी बनी थी इसमें गोपाल कृष्ण गोखले थे जो कि मॉडरेट लीडर थे कांग्रेस के गांधी जी इनको अपना गुरु मानते थे और इन्हीं के हिसाब से चलते चलते थे अब यहां से गांधी जी तो साउथ अफ्रीका चले गए थे लेकिन इंडिया के अंदर कांग्रेस पार्टी के जो मॉडरेट लीडर थे ये टाइम टू टाइम अपनी बात रखना चालू करते हैं लेकिन कुछ भी होता नहीं है अंग्रेज पे इस पे ज्यादा कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है कांग्रेस के जो मॉडरेट लीडर्स थे ये जो राइट्स वगैरह लेने की बात कर रहे थे उल्टा जो राइट्स थे ऑलरेडी उनको भी नए-नए एक्ट पास करके छीन लिया जा रहा था और ईयर 18960 के बीच में भुखमरी अलग से फैल जाती है जिसमें 990 लाख से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है अब ये सारी चीजें जो चल रही थी यहां से कांग्रेस पार्टी के अंदर भी कुछ यंग लीडर्स थे जैसे लाला लाजपत राय ये कहने लगे कि ये जो कांग्रेस के लीडर कर रहे हैं इससे अंग्रेजों के कान पे जूं तक नहीं रेंग रही है तो जो तरीका यूज़ किया जा रहा है ये एक फ्लॉप तरीका है तो कांग्रेस के अंदर एक ऐसा ग्रुप भी बन गया था जो ये मॉडरेट लीडर्स जो तरीके अपना रहे थे उनसे खुश नहीं था ये जो ग्रुप बना था इनके लीडर्स को एक्सट्रीम लीडर कहा जाता था ऐसा नहीं था कि ये गोली वगैरह चला रहे थे बस इनका ये मानना था कि कांस्टिट्यूशन के दायरे में रह के जो हम ये सारी चीजें कर रहे हैं इससे कुछ होगा नहीं थोड़ा अग्रेशन करना जरूरी है तो ये जो टाइम था यहां से कांग्रेस के अंदर दो ग्रुप्स हो गए थे जिनको आपने सुना होगा नरम दल और गर्म दल अभी जो नरम दल और गर्म दल के बीच की जो जद्दोजहद चल रही थी कांग्रेस के अंदर इसके कुछ ही दिन बाद ब्रिटिशर्स कुछ ऐसा स्टेप लेते हैं जिसकी वजह से पूरी कांग्रेस में उथल-पुथल हो जाती है होता क्या है कि ईयर 1903 में वाइस रॉय लॉर्ड कर्जन ने देखा कि इंडियंस काफी एकजुट होके आ रहे हैं न्यूज़ में भी बहुत कुछ लिखा जा रहा है तो इन्होंने डिवाइड एंड रूल का जो फार्मूला था उस पर्टिकुलर स्टेज से अप्लाई करना चालू किया तो इन्होंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को कहा कि ये जो बंगाल है इसको दो पार्ट में कर दो जो मुस्लिम वाला एरिया है उसको एकदम अलग कर दो अब इसके पीछे जो अंग्रेजों ने रीजन दिए थे पब्लिकली उसमें ये कहा कि गुड गवर्नेंस वगैरह ये सारे रीजन दिए थे लेकिन एक्चुअल में इन्होंने हिंदू मुस्लिम में फूट डलवानी थी इस वजह से डिसीजन लिया गया था तो इधर ये प्रपोजल दिया जाता है और इसके 2 साल बाद यानी कि 19th ऑफ जुलाई 1905 को ये पार्टीशन का प्रपोजल एक्सेप्ट हो जाता है कि अब बंगाल जो है इसको डिवाइड कर दिया जाएगा और उस टाइम का बंगाल जो था वो बहुत बड़ा था उसमें आज की डेट का बिहार उड़ीसा आसाम ये सारा आता था और पॉपुलेशन भी बहुत ज्यादा थी इस पर्टिकुलर टाइम पे जो हिंदू मुस्लिम फूट पड़ी थी उसका असर आज की डेट तक आपको दिखेगा ये जो डिवाइड हुआ था इसमें बहुत सारे इशू थे बंगाली ही बंगाल के अंदर माइनॉरिटी बन गए थे तो लोगों में बहुत ज्यादा गुस्सा आ गया था तो 19th ऑफ जुलाई को बंगाल का ये जो डिवाइड है इसको अनाउंस किया जाता है बंगाल के अंदर भीड़ और मीटिंग होना सब कुछ स्टार्ट हो जाता है सेथ ऑफ अगस्त 1905 को कलकता टाउन हॉल में सारे लोग इकट्ठा हो जाते हैं और सारे लोग डिसाइड करते हैं कि ये जो ब्रिटिशर्स हैं ये कुछ ज्यादा ही कर रहे हैं अब इसका हमें जवाब देना होगा तो ये लोग डिसाइड करते कि जो अंग्रेजों की जान है ये प्रॉफिट में है और हम इसी पे ही अटैक करेंगे इनके सामान को बॉयकॉट करेंगे स्वदेशी प्रोडक्ट जो होंगे इंडिया के अंदर जो खुद इंडियंस बनाते हैं सिर्फ वही यूज़ करेंगे और ये जो पूरा मूवमेंट स्टार्ट किया गया इसको नाम दिया गया स्वदेशी मूवमेंट मेनली इसमें मैनचेस्टर से जो कपड़े आते थे उसको टारगेट किया गया था और इसके अगेंस्ट में जाके लोग गंगा जी के पास इकट्ठा होते हैं वहां पे एक साथ नहाते हैं और निकलते टाइम ही वो लोग गाना गाते हैं वंदे मातरम ये सॉन्ग उसी दिन थीम सॉन्ग बन गया था इस मूवमेंट का इसी टाइम पे रवींद्रनाथ टैगोर जी ने अमर सोनर बांगला ये लिखा था अभी भी बांग्लादेश का जो नेशनल एंथम है वो यही है और अभी भी जो आप देखते हो कि ये जो नेता वगैरह हैं ये जो खादी वगैरह पहनते हैं ये इसी स्वदेशी मूवमेंट का ही असर था जो आज की डेट तक चला आ रहा है अब इधर सारी की सारी जो भीड़ थी वो अपना विरोध जता रही थी स्वदेशी मूवमेंट कर रही थी लेकिन 16th ऑफ अक्टूबर 1905 में बंगाल के दो टुकड़े हो जाते हैं अब इसके एक से डेढ़ महीने के बाद दिसंबर में कांग्रेस का सेशन होता है जैसे हर साल होता था अब इस सेशन में बिल्कुल क्लियर था कि ये जो बंगाल का डिवीजन हुआ है इसी के बारे में बात होनी थी और इसी के आगे का रोड मैप क्या होगा उस पे बात होनी थी और इस सेशन में जो प्रेसिडेंट बनते हैं वो मॉडरेट लीडर गोपाल कृष्ण गोखले बनते हैं तो जब ये सेशन स्टार्ट होता है तो पहले तो कड़े शब्दों में निंदा की जाती है कि जो बंगाल को जो डिवाइड किया गया है ये सारी चीजें गलत की गई हैं और फिर यह डिसाइड होता है कि इसके खिलाफ हम पेटीशन डालेंगे और ये जो बंगाल के डिवाइड का मुद्दा है इसको बंगाल के अंदर हम कोने-कोने में ले जाएंगे लेकिन इस चीज को सुनके कांग्रेस का जो दूसरा ग्रुप था जो एक्सट्रीमिस्ट लीडर थे जिनमें लाला लाजपत राय अरविंदो गोज जैसे नेता थे ये कहते हैं कि ये जो पेटीशन वगैरह डालने से कुछ नहीं होगा मुद्दे में हमें अग्रेशन दिखाना होगा और हड़ताल बंद वगैरह जो हम करेंगे ये सिर्फ बंगाल के अंदर नहीं बल्कि कि हमें पूरे इंडिया के अंदर इन मुद्दों को उठाना पड़ेगा लेकिन उस टाइम के जो प्रेसिडेंट थे वो मॉडरेट लीडर थे तो इस चीज को मना कर दिया जाता है अब यहां से पहली बार था जब कांग्रेस के अंदर फूट पड़ना स्टार्ट हो जाती है और इसी के साथ जो ब्रिटिशर्स थे वो बैक टू बैक ट्राई कर रहे थे कि कैसे भी करके हिंदू मुस्लिम में डिवाइड बना रहे तो वो क्या करते हैं कि अगले साल अक्टूबर 1906 में 35 इंडियन मुस्लिम्स और उनके एक लीडर आगा खान को जो अंग्रेज थे वो शिमला बुलाते हैं वाइस रॉय लॉर्ड मिंटो के साथ मीटिंग करवाते हैं ये जो मीटिंग होती है इसमें मुस्लिम्स के जो राइट्स होते हैं उनकी बात होती है और मुस्लिम्स कहते हैं कि हमारे जो इलेक्टोरेट्स हैं ये भी अलग होने चाहिए ताकि मुस्लिम्स लोग जो हैं वो भी गवर्नमेंट में शामिल हो सकें मीटिंग के अंदर जो वाइस रॉय थे वो मुस्लिम्स को कहते हैं कि ये सारी चीजें होंगी लेकिन उससे पहले मैं आपको ये सजेस्ट करूंगा कि आप एक अलग से पार्टी बना लीजिए ताकि मुस्लिम्स के हक के लिए अलग से बात उठाई जा सके और अंग्रेजों की जो ट्रिक थी ये काफी अच्छे से काम करती है दिसंबर 1906 को ढाका में मुस्लिम लीडर्स ऑल इंडिया मोहम्मद एजुकेशनल एनुअल कॉन्फ्रेंस करते हैं और वहां पे ऑल इंडिया मुस्लिम लीग नाम से एक पार्टी बना देते हैं और पहले प्रेसिडेंट इसके बनते हैं आगा खान सेम मंथ यानी कि दिसंबर 1906 में कांग्रेस का फिर से सेशन होता है और इस बार जो सेशन होता है कांग्रेस का उसमें मोहम्मद अली जिन्ना जो थे वो भी कांग्रेस को जॉइन कर लेते हैं और मॉडरेट लीडर्स जो थे उनके साथ मिलके काम करते हैं अब अगले साल यानी कि ईयर 1907 में कांग्रेस का सेशन होना था इस बार कांग्रेस के जो एक्सट्रीमिस्ट लीडर थे वो सोच रहे थे कि उनके ग्रुप का कोई बंदा प्रेसिडेंट बनेगा तो ये लोग थोड़ा अपने हिसाब से चीजें बनाएंगे लेकिन होता क्या क्या है कि जो मॉडरेट लीडर्स थे वो जान पूछ के ईयर 1907 का जो सेशन था वो सूरत में रख देते हैं अब कांग्रेस के रूल के हिसाब से यह था कि जिस सिटी के अंदर सेशन होगा उस सिटी का जो लीडर होगा उस पर्टिकुलर साल पे प्रेसिडेंट नहीं बन सकता है और क्योंकि अगर सूरत में सेशन होता तो मॉडरेट्स जो थे उनके प्रेसिडेंट बनने के चांसेस ज्यादा होते इसलिए सूरत में रख दिया जाता है और फिर इसके बाद वोटिंग होती है और मॉडरेट्स का जो ग्रुप था उनका ही लीडर बनता है अब यहां से कांग्रेस के जो एक्सट्रीमिस्ट लीडर थे वो गुस्सा हो जाते हैं और बात इतनी बढ़ जाती है कि उसी सेशन के बीच में दोनों ग्रुप एक दूसरे के ऊपर टेबल चेयर फेंकते हैं और एक दूसरे को जूता फेंक के मारते हैं और उसी पर्टिकुलर टाइम पे पुलिस को भी बुलाना पड़ जाता है और यह बात इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि यहां से ये जो दो ग्रुप थे स्प्लिट हो जाते हैं अब इधर ये सारी चीजें होने के बाद ईयर आता है 1909 इसमें हिंदू मुस्लिम डिफरेंस को और बढ़ाने के लिए वाइस रॉय लॉर्ड मेंटो सेक्रेटरी जॉन मोर्ले के साथ मिलके इंडियन काउंसिल एक्ट 1909 लेके आते हैं जिसे मरले मिंटो रिफॉर्म भी कहा जाता है इसमें सेपरेट इलेक्ट्रेट के थ्रू मुस्लिम की सीट्स रिजर्व कर दी गई और जिन-जिन कंसीट को मुस्लिम्स के लिए रिजर्व किया गया था वहां के कैंडिडेट जो होंगे वो भी मुस्लिम होंगे और वहां जो वोट डालेंगे वो भी केवल मुस्लिम्स ही डालेंगे अब इससे मुस्लिम्स तो बहुत ज्यादा खुश हो गए थे लेकिन इसके आने वाले 2 साल में फॉरेन बॉयकॉट जो था स्वदेशी मूवमेंट स्वराज इन सब की जो मांगे चल रही थी उससे ब्रिटिशर्स के ऊपर बहुत ज्यादा प्रेशर बढ़ गया था और ईयर 1911 में बंगाल का जो पार्टीशन किया गया था उसको वापस कर लेते हैं ब्रिटिशर्स क्योंकि ब्रिटिशर्स को डर लग गया था कि अगर वापस नहीं करेंगे तो ईयर 1857 जैसे रिवॉल्ट जो है वैसी सिचुएशन हो सकती है इस डिसीजन से मुस्लिम लीग जो था वो बहुत ज्यादा नाराज हो गया था और उनका भी भरोसा जो था वो ब्रिटिशर से उठ गया था अब इसके बाद ईयर 1913 में मुस्लिम लीग के जो लोग थे वो जिन्ना के ऊपर प्रेशर बनाते हैं कि वो जाके मुस्लिम लीग को जवाइन कर ले तो जिन्ना क्या करते हैं कि कांग्रेस से तो वो रिजाइन नहीं करते हैं इसके साथ-साथ मुस्लिम लीग भी जॉइन कर लेते हैं तो एक तरह से वो दोनों पार्टी में एक ही टाइम पे एक्टिव मेंबर रहते हैं लेकिन इस चीज का एक फायदा होता है क्योंकि दिसंबर 1916 को लखनऊ के अंदर जिन्ना क्या करते हैं दोनों पार्टी कांग्रेस और मुस्लिम लीग जो थी और कांग्रेस के अंदर भी एक्सट्रीमिस्ट और मॉडरेट दोनों जो लीडर थे उनको मिला के एक ही मंच पे लाके खड़ा कर देते हैं और कुछ शर्तों के साथ एक एग्रीमेंट कराते हैं जिसे लखनऊ पैक्ट भी बोला जाता है ये साइन होता है जिसमें ये था कि ये सारे लोग मिलके ब्रिटिशर्स के खिलाफ सेल्फ गवर्नमेंट यानी स्वराज की लड़ाई लड़ेंगे देखिए अभी तक भी आजादी की बात नहीं हो रही है स्वराज जिसमें येता कि ये लोग सेल्फ गवर्नेंस करेंगे अपने लिए सही से काम कर पाए लेकिन ब्रिटिशर जो थे वो रहेंगे उनको भगाया नहीं जाएगा अब इसके बाद डेट आती है 9थ ऑफ जनवरी 1915 और इस डेट को इंडिया के अंदर अंदर गांधी जी की एंट्री होती है और गांधी जी इंडिया आते ही अपने मेंटर गोपाल कृष्ण गोखले से मिलते हैं और उनसे सीधा कहते हैं कि इंडिया की जो फ्रीडम स्ट्रगल चल रही है उसमें उन्हें भी जुड़ना है साउथ अफ्रीका में उन्होंने एक स्ट्रगल ऑलरेडी करी थी तो वो अपना एक्सपीरियंस जो था वो इंडिया में यूज करना चाहते थे लेकिन गोपाल कृष्ण गोगले जो थे वो इनको रोक देते हैं कहते हैं कि पहले तुम पूरा इंडिया घूमो लोगों से मिलो उनकी प्रॉब्लम समझो और गांधी जी जैसा उनके मेंटर गोपाल कृष्ण गो के लिए समझाते हैं एज इट इज करते हैं वो बिना किसी पॉलिटिकल एक्टिविटी के इंडिया में ट्रेवल करना स्टार्ट करते हैं और ट्रेवल करते टाइम यह जैसे एक आम आदमी कपड़े पहनता है जिस ट्रेन में थर्ड क्लास का टिकट लेकर वो चलता है सेम वैसे ही ट्रेवल करते हैं और फिर गांधी जी बॉम्बे फिर कोलकाता अहमदाबाद दिल्ली से चेन्नई पूरे देश में ट्रेवल करते हैं और 2 साल तक पूरे इंडिया में घूमते हैं अब इसके बाद डेट आती है दिसंबर 1916 तो जैसा मैंने बताया था कांग्रेस हर साल के एंड में यानी कि दिसंबर में अपने सेशन रखती थी जिसमें सारे लीडर्स जो थे वो इकट्ठा होते थे तो गांधी जी ने कांग्रेस तो जॉइन नहीं की थी लेकिन इस कॉन्फ्रेंस में गए थे ये कान्फ्रेंस तीन दिन चलती है यहां पे गांधी जी से चंपारण जो कि बिहार में है वहां पे दो किसान राजकुमार शुक्ला और संत राउत ये मिलते हैं और बताते हैं कि चंप रन जो कि बिहार में है वहां पे अंग्रेज उनसे जबरदस्ती इंडिगो की खेती करवा रहे हैं और वो ऐसा नहीं चाहते हैं ये जो इंडिग की खेती करवाई जा रही थी जबरदस्ती इसको तीन खटिया सिस्टम भी बोला जाता था सेम वही इंडिग वाली चीज जो हमने अभी थोड़ी देर पहले डिस्कस करी थी तो ये सब सुनने के बाद 15th ऑफ अप्रैल 1917 को गांधी जी अपने लॉयर की टीम लेके चंप न पहुंचते हैं और वहां पहुंच के गांव में डोर टू डोर जाके जो भी वहां के लोगों के साथ जुल्म वगैरह हो रहे थे वो सारी चीजें रिटर्न में ले लेते हैं और अंगूठा लगवा लेते हैं इसके बाद गांधी जी जगह-जगह पे जाने लगे लोगों से मिलने लगे उनके जाते ही भीड़ बहुत ज्यादा इकट्ठा हो जाती थी लोग उनको सुनते थे और ये सारी चीजें जब ब्रिटिशर्स के नोटिस में आती हैं तो 16th ऑफ अप्रैल 1917 को धारा 144 के तहत डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर गांधी जी को यह बोल के वापस जाने को कहते हैं कि वो वहां पे अशांति फैला रहे हैं गांधी जी इस चीज को पूरी तरीके से मना कर देते हैं कि वो कोई भी गलत काम नहीं कर रहे हैं वो जाके अपने लोगों से ही तो मिल रहे हैं इसके दो दिन बाद 18th ऑफ अप्रैल 1917 को उनकी मोतीहारी कोर्ट में पेशी होती है और जब यह खबर फैल जाती है तो चारों तरफ से लोग कोर्ट को घेर लेते हैं नारेबाजी होती है कोर्ट दो दिन तक जैसे-तैसे ये सब झेलती है इतनी भीड़ इकट्ठी हो जाती कि दो दिन बाद कोर्ट गांधी जी को छोड़ देती है तो गांधी जी ने बेसिकली यहां पे क्या करवाया था लोगों को सत्याग्रह करने को कहा था मतलब ये कहा था कि आप कोई भी वायलेंस मत करो बस ये जो खेती करने को कह रहे हैं अंग्रेज ये करने से मना कर दो चाहे वो मारे पीटे चाहे जो मर्जी करें देखिए सत्या ग्रह का जो लिटरल मीनिंग होता है वो सत्य के लिए आग्रह लेकिन यहां पे सत्याग्रह का मतलब थोड़ा सा अलग था इसका मतलब था कि सिविल डिसोडियम रेजिस्टेंस ये सारी बातें हो रही है एक एग्जांपल समझाता हूं जैसे मान लो आप किसी कंपनी में काम कर रहे हो लेकिन जो रूल्स बोले जा रहे हैं वो आप फॉलो नहीं कर रहे हो मान लो पंचन का रूल है तो वो आप फॉलो नहीं कर रहे हो तो ये हो गया डिसऑबेडिएंस पैसिव रेजिस्टेंस मतलब कि आप और आपके कलीग इकट्ठा होके हड़ताल वगैरह कर रहे हैं बिना किसी वायलेंस के और इस पूरे सत्याग्रह का एक ही रूल था कि वायलेंस नहीं करना है लेकिन जो गलत हो रहा है उसके अगेंस्ट में आवाज उठानी है अंग्रेजों के खिलाफ प्रेशर बनाना है हड़ताल करनी है अनशन करना है और ये सारी चीजें करनी है और फीयरलेस होना होगा इससे पहले जो मॉडरेट लीडर्स थे वो रूल्स वगैरह फॉलो कर रहे थे एक्सट्रीमिस्ट लीडर जो थे उनके तरीके बिल्कुल अलग थे आम जनता को डायरेक्ट इवॉल्व नहीं किया था लेकिन महात्मा गांधी जी ने ऐसी चीज करी थी जो इससे पहले नहीं हुई थी उन्होंने आम जनता को भी जोड़ा जब लोग समझ रहे थे कि ये आम जनता ये पढ़ी लिखी नहीं है इनको एक्ट के बारे में ही नहीं पता तो ये क्या करेंगे आगे जाके लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं सोचा उन्होंने आम जनता के पास गए उनको समझाया और उनको इकट्ठा किया जिसकी वजह से बहुत ज्यादा इंपैक्ट पड़ा तो कहने का मतलब यह है कि चंपारण के अंदर गांधी जी ने लोगों को इकट्ठा किया सत्याग्रह चालू रखा और जब अंग्रेज देखते हैं कि लोगों के ऊपर मार डंडे किसी भी चीज का असर नहीं हो रहा है तो वो थक हार के लास्ट में अंग्रेजों की बात मान जाते हैं और यहां से पहली बार लोगों को सत्याग्रह की पावर का पता चला था कि मारपीट और वायलेंस जो था उससे ज्यादा मजबूर तो जो अंग्रेज थे वो इन सारी चीजों से हो रहे थे अब इसी बीच क्या होता है कि गांधी जी तो चंपारण में थे और अहमदाबाद की एक मील थी जिसके आसपास के एरिया में जो प्लेग था वो फैला हुआ था तो लोग अपनी जान बचाने के के चक्कर में मील में नहीं जा रहे थे काम करने नहीं जा रहे थे तो मील ओनर्स ने क्या किया था एक प्लेग बोनस था वो रख दिया था ताकि इसके लालच में लोग काम करने आ जाए अब इसके कुछ टाइम बाद जब प्लेग खत्म हो जाता है तो ओनर्स ने ये जो प्लेग बोनस था वो देना बंद कर दिया तो वर्कर्स यहां पे थोड़ा सा नाखुश हो जाते हैं वो कहते हैं कि इतने सालों से तो पैसे बढ़ाए नहीं गए हैं और वर्ल्ड वॉर की वजह से जो महंगाई है वो भी आसमान छू रही है तो आप भले ही प्लेग बोनस उसका नाम मत रखो किसी और तरीके से चाहे कुछ तो परसेंटेज आप बढ़ा दो लेकिन पैसे बढ़ा दो आप हमारे लेकिन मल का जो ओनर था वो मानता नहीं है तो इसके बाद गांधी जी चंपारण से यहां पहुंचते हैं और सारी बात समझते हैं गांधी जी फिर लोगों को जोड़ते हैं और हंगर स्ट्राइक करते हैं जिसकी वजह से मील का जो काम वगैरह है प्रोडक्शन वगैरह सब रुक जाता है और जो मील का ओनर होता है वो 30 पर इंक्रीमेंट करने को रेडी हो जाता है तो बहुत ही कम टाइम में गांधी जी बहुत ज्यादा पॉपुलर हो रहे थे लोगों को लगने लगा था कि अगर वो फीयरलेस होके बिना जेल बिना पिटाई के डर से अगर अपनी जिद पे अड़े रहेंगे तो एट दी एंड अंग्रेजों को झुकना पड़ेगा अब इधर गांधी जी अहमदाबाद में थे और सेम टाइम पे प्लेग के साथ-साथ सूखा भी पड़ रहा था कुछ इलाकों में तो गुजरात में एक खेड़ा नाम की जगह थी वहां पे सूखा पड़ने की वजह से फसल खराब हो गई थी अब किसान की कमाई का एक ही जरिया था वो बंद हो गई थी और अंग्रेज जो थे वो टैक्स लेते थे इनसे तो ऐसे केस में वो कहां से अंग्रेजों को टैक्स देता अब कायदे में तो यहां पे टैक्स नहीं लेना चाहिए था लेकिन अंग्रेज जो थे उन्होंने एक चीज और एक्स्ट्रा कर दी उन्होंने टैक्स 23 पर और बढ़ा दिया अब किसान जो थे वो बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था तो गांधी जी खुद तो अहमदाबाद में थे लेकिन वो सरदार वल्लभ भाई पटेल को गुजरात भेजते हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल भी बहुत बड़े लॉयर थे इंडिया की फ्रीडम स्ट्रगल में आपको सारे के सारे लॉयर ही मिलेंगे तो सरदार पटेल वहां पे जाते हैं और लोगों की पिटीशन वगैरह डालते हैं लेकिन सब रिजेक्ट कर दी जाती हैं अब इसके बाद गांधी जी वहां पे पहुंचते हैं और लोगों को कहते हैं कि आप सत्याग्रह करो बस वायलेंस मत करना बाकी आप सत्याग्रह करो और ये सत्याग्रह इतने बड़े लेवल पे होता है कि यहां पे भी अंग्रेजों को झुकना पड़ जाता है इसके बाद हर कोई इंप्रेस था गांधी जी के तरीकों से अब इधर ये सारी चीजें चल रही थी और इसी टाइम पे क्या होता है कि खबरें आने लगती हैं कि इंडिया से कुछ क्रांतिकारी जिनमें से सबसे आगे बागा जतिन थे वह ब्रिटिशर्स के दुश्मन जर्मनी के लोगों के साथ मिलक प्लान बना रहे थे जिसमें यह डिसाइड हुआ था कि जर्मनी इंडिया में हथियार वगैरह भेजेगा और मिलके ब्रिटिशर्स को इंडिया से बाहर फेंकें लेकिन किसी एक खबरी ने सारी बातें अंग्रेजों को पहुंचा दी थी जिससे अंग्रेजों को सब चीज पता चल जाती है और अंग्रेज जो थे वो बागा जतिन को देशद्रोही करार दे देते हैं और 10th ऑफ सितंबर 1915 को उनको शहीद कर देते हैं और इसी के साथ-साथ और भी कई सारी चीजों में जो कांग्रेस के एक्सट्रीमिस्ट लीडर थे उनके भी नाम आने लगे थे तो इन सारी चीजों से निपटने के लिए जस्टिन सिडनी रोलेट की एक कमेटी जो थी वो 18th ऑफ मार्च 1919 को एक एक्ट लेके आती है जिसे रलेट एक्ट भी कहा जाता है इस एक्ट में मेनली दो पॉइंट थे पहला ये था कि अगर कोई भी एक्टिविस्ट ऐसे वायलेंस वगैरह करने की हरकत में पाया गया तो बिना कोर्ट वगैरह ले जाए डायरेक्ट 2 साल के लिए जेल भेजा जा सकता है दूसरा यह तक था कि अगर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कोई न्यूज़पेपर तक आपके घर में है जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ लिखा गया है तो उस केस में भी आपको देशद्रोही मानकर गिरफ्तार किया जा सकता है अब ये एक्ट आने के बाद मदन मोहन मालविया जो थे और जिन्ना यह सब इंपीरियल लेजिस्लेटिव से रिजाइन कर देते हैं गांधी जी भी बहुत ज्यादा गुस्सा हो जाते हैं कि ये तो पूरी तरीके से मनमानी है गुंडा राज है इसमें यह था कि अगर पुलिस आपको उठा के ले जा रही है तो आप वकील के थ्रू या कोर्ट में जाके अपील तक नहीं कर सकते जब ये सारी चीजें चल रही थी लोग कहते थे ना दलील ना वकील ना अपील ये लाइन उस समय बहुत ज्यादा फेमस हो गई थी तो अब ये फिर से बहुत बड़ी चीज थी तो इसके अगेंस्ट में भी गांधी जी ने सिक्स्थ ऑफ अप्रैल 1919 को सत्याग्रह स्टार्ट किया लोगों ने हड़ताल की भूखे रहे इस आंदोलन में आम लोग भी शामिल हुए जैसे किसान कारीगर ये सारे लोग जो थे पहली बार नेशनल इशू कोई ऐसा था जिसमें शामिल हो रहे थे पंजाब के अंदर भी बहुत बड़े लेवल पे इसका विरोध हुआ तो अंग्रेजों ने क्या किया कि पंजाब में मिलिट्री बुलाना चालू कर दी उनको ये डाउट था कि पंजाब में भीड़ बहुत ज्यादा इकट्ठी हो रही है बहुत ज्यादा प्रोटेस्ट वगैरह हो रहे हैं तो कहीं हिंसा ना हो जाए तो पहले से ही वो इंतजाम करके मिलिट्री वगैरह पंजाब में पहुंचा देते हैं और उस मिलिट्री को जनरल डायर जो थे वो लीड कर रहे थे अब एथ ऑफ अप्रैल 1919 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया जाता है इन सारी चीजों के चक्कर में लेकिन यह सत्याग्रह तब भी चलता है रुकता नहीं है पंजाब में दो कांग्रेस लीडर थे डॉकर सैफुद्दीन और डॉकर सतपाल इस सत्याग्रह को पंजाब के अंदर ये लीड कर रहे थे तो नाइंथ ऑफ अप्रैल को जनरल डायर ने डॉक सैफुद्दीन और डॉक्ट सत्यपाल को यह बोल के बुलाया कि उनसे बात करनी है इन सब चीजों के बारे में लेकिन मिलने के बाद उनको धोखे से जेल में डाल दिया अब इससे एक-एक आम आदमी जो था उस एरिया का वो बहुत ज्यादा भड़क जाता है और ये सारी चीजें देख के सारे लोग मिलके ये डिसाइड करते हैं कि 13th ऑफ अप्रैल 19 19 को बैसाखी भी है हम सारे लोग जलिया वाला बाग एक जगह है वहां पे इकट्ठे होंगे वहां पे अपना प्रोटेस्ट करेंगे तो ये जो जलिया वाले बाग में प्रोटेस्ट करने की जो बातें हो रही थी तो ये सारी चीजें 12 तारीख को जनरल डायर के पास पहुंच जाती हैं तो वो क्या करते हैं कि पब्लिक गैदरिंग को बिल्कुल बैन कर देते हैं कि कहीं भी भीड़ इकट्ठी नहीं हो सकती लेकिन उस टाइम पे सोशल मीडिया वगैरह तो था नहीं तो खबर पहुंचने में भी टाइम लगता है तो इस वजह से इतने कम टाइम में सबको पता ही नहीं चल पाया कि ऐसा कुछ बैन भी है फिर 13th ऑफ अप्रैल को करीब 10000 लोग से ज्यादा जलियावाला बाग पहुंच गए प्रोटेस्ट करने अब इधर जनरल डायर जो थे उनको ये चीज पता चल जाती है और वो जलियावाला बाग पहुंच जाते हैं अब देखिए जलिया वाला बाग का जो स्ट्रक्चर था वहां से एक ही एंट्री थी और एक ही एग्जिट था और उसी पर्टिकुलर गेट पे जनरल डायर जो थे उसको ब्लॉक करके वहीं पे अपनी टीम के साथ खड़े हो जाते हैं और फायरिंग स्टार्ट करवा देते हैं अब ब्रिटिशर्स के डटा के हिसाब से 400 लोगों की जान गई है लेकिन जो लोग वहां पे थे उनके हिसाब से 120 लाशें तो सिर्फ वहां पे जो कुआं था वहीं से निकली थी पूरे देश में इनफैक्ट देश के बाहर भी इसके बारे में बहुत हल्ला हुआ गांधी जी इस चीज को सुनके बहुत ज्यादा हताश हो गए थे उन्होंने 18th ऑफ अप्रैल 1919 को इस सत्याग्रह को रोक दिया लेकिन ये सत्याग्रह रोक तो दिया था लेकिन यहां से ब्रिटिशर्स का जो बुरा टाइम था वो स्टार्ट होता है इस इंसिडेंट को लेके हर तरफ से अंग्रेजों के ऊपर बहुत ज्यादा प्रेशर था तो इस चीज के लिए ये लोग इंक्वायरी भी बिठाते हैं एक हंटर कमेटी बनाते हैं जो इस पूरी चीज की इंक्वायरी करती है और पूरी इंक्वायरी कंप्लीट होने के बाद जनरल डायर जो थे उनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया जाता है इनफैक्ट हाउस ऑफ लॉर्ड जो ब्रिटिशर्स का पार्लियामेंट होता है वहां पे उल्टा जो जनरल डायर थे उनको एक देशभक्ति की तरह प्रेस किया गया और कुछ एक दो चीजें की गई जिसमें जनरल डायर को उसकी पोजीशन से हटा के यूके भेज दिया गया था और उसमें भी कहा जाता है कि उसकी सिक्योरिटी की वजह से भेजा गया था और वहां की जो आम पब्लिक थी जो यूके की पब्लिक थी उन्होंने जनरल डायर के लिए 26000 पाउंड का फंड रेज करके जनरल डायर को दिया था तो इन सारी चीजों को सुनके एक तो इंसाफ नहीं मिल रहा था ये सारी चीजें सुनके पूरे इंडिया के अंदर लोग बहुत ज्यादा गुस्से में आ जाते हैं और इसी टाइम पे गांधी जी मुस्लिम ग्रुप जो थे उनसे जाके बात करते हैं और उनको भी ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट अपने साथ में ले आते हैं और कहते हैं कि आप हमारे साथ मिलके नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट करो मतलब कि अब ब्रिटिशर्स के साथ कोऑपरेशन नहीं करना है उनके जो लॉ वगैरह है अब ये जो नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट ये शुरू करते हैं इसमें कुछ दिन के बाद कांग्रेस भी इसमें जुड़ जाती है और ये जो कांग्रेस जुड़ती है इसके मॉडरेट लीडर हो चाहे एक्सट्रीमिस्ट लीडर हो दोनों आके जुड़ते हैं अब ये वो टाइम था जब इंडिया के अंदर ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट में सब एकजुट होना शुरू हो गए थे और इस पूरे नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट को गांधी जी लीड कर रहे थे इस नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट की पहली डिमांड थी स्वराज मतलब कि सेल्फ रूल अभी तक भी ये बात नहीं हो रही थी कि पूर्ण स्वराज चाहिए अभी सिर्फ इक्वलिटी और खुद से अपने रूल्स रेगुलेशन चलाने की बात हो रही थी आजादी की बात अभी आगे होगी और दूसरा ये जो नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट था इसका एक ये भी एम था कि जो जलियाबाग का इंसिडेंट हुआ था उसमें जो दोशी थे उनको सजा दी जाए तो ये जो मूवमेंट इन्होंने शुरू किया था इसमें ये था कि जून 1920 को ये लोग डिसाइड करते हैं कि जितने भी अंग्रेजों के स्कूल्स हैं कॉलेजेस हैं लॉ फर्म्स हैं इलेक्शन वगैरह ये जो करवा रहे हैं इन सबको हम बॉयकॉट करेंगे और जो अवार्ड वगैरह दिए हैं ये सब भी लौटा देंगे अब स्कूल्स वगैरह अगर बॉयकॉट करेंगे तो इसके लिए इन्होंने स्कूल्स वगैरह बनाए भी जैसे जामिया इस्लामिया काशी विद्यापीठ गुजरात विद्यापीठ ये सब उसी टाइम के बनाए गए थे लोगों ने अदालत ना जाके पंचायत में अपने केस सॉल्व करना शुरू किया फॉरेन गुड्स जो थे उनको बॉयकॉट कर दिया गया और गांधी जी ने कहा कि आप चरखा चलाओ और खुद अपने कपड़े बनाओ कई बड़े लोग जैसे जवाहरलाल नेहरू उनके फादर मोतीलाल नेहरू सरदार वल्लभ भाई पटेल राजेंद्र प्रता ये सब जो लॉयर थे इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी इस मूवमेंट की वजह से लेकिन ये सारी चीजों में जिन्ना ज्यादा खुश नहीं थे उनकी कई सारी ऐसी चीजें थी जो पूरी नहीं होनी थी तो ये सब देख के जिन्ना जो थे वो कांग्रेस से रिजाइन कर देते हैं अब ये नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट था इसका इंपैक्ट जो था वो धीरे-धीरे बढ़ रहा था था तो दिसंबर 1921 आते-आते ब्रिटिशर्स ने प्रेस और पब्लिक मीटिंग पर बैन लगा दिया तो ऐसे ही फर्थ ऑफ फरवरी 1922 को यूपी के गोरखपुर में चौरी चौरा नाम की एक जगह थी वहां पे भी नॉन कॉपरेशन मूवमेंट जो था उसको लेके प्रोटेस्ट हो रहे थे नारे लग रहे थे अंग्रेजों के खिलाफ अब ऐसे में क्या होता है कि लोकल दरोगा जो था उसने लाठी चार्ज स्टार्ट कर दी थी और इधर से भीड़ ने भी पत्थर फेंकना स्टार्ट कर दिए थे तो फिर पुलिस वाले क्या करते हैं कि वो पुलिस स्टेशन में घुस जाते हैं और भीड़ क्या करती है वो गुस्से में पूरे के पूरे पुलिस स्टेशन में आग लगा देती है और 22 पुलिस वालों की जान चली जाती है अब ये सारी चीजें देख के गांधी जी बहुत ज्यादा शॉक्ड हो जाते हैं क्योंकि हमेशा से वो ये बात कर रहे थे कि वायलेंस नहीं होना चाहिए था वो इतने ज्यादा डिसपिटर जाते हैं कि 12थ ऑफ फरवरी 1922 को उन्होंने ये जो नॉन कोऑपरेटिव मूवमेंट था इसको बंद कर दिया और अंग्रेजों ने क्या किया कि ये सारी चीजों की वजह से गांधी जी को 6 साल के लिए जेल में डाल दिया अब ये सारी चीजें देख के लोगों को लगने लगा था कि जो स्वराज हड़ताल ये वाला जो तरीका है इससे कुछ होने वाला नहीं है बस टाइम खराब होगा तो कुछ यंग गर्म खून वाले क्रांतिकारी क्या करते हैं वो कहते हैं कि मांगने से अंग्रेज कुछ भी नहीं देंगे क्योंकि इनकी नियत खराब है यह मानेंगे तभी जब हथियार उठा के बात होगी और ये जो यंग ग्रुप था इसके मेन लीडर थे राम प्रसाद बिस्मिल सचिंद्र नाथ बख्शी और जोगेश चंद्र चटर्जी इसके बाद ये क्या करते है कि अक्टूबर के मंथ में कानपुर में मिलते हैं और हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन एचआरए नाम से एक पार्टी बना देते हैं आगे चलके इसमें सोशलिस्ट वर्ड जो था वो और ऐड हो जाता है एचएसआरए हो जाती है फिर ये पार्टी ये पार्टी क्या करती है कि इंडिया के अंदर जितने भी यंग जनरेशन थी उनको अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने के लिए इंस्पायर करती थी और जगह-जगह पे इन्होंने अग्रेसिव मूवमेंट जो थे वो स्टार्ट कर दिए थे और अंग्रेजों को काफी भारी नुकसान हो रहा था लेकिन इनको धीरे-धीरे ये रिलाइज हो गया था कि अगर असली लड़ाई लड़नी है तो हथियार और पैसा चाहिए होगा और पैसा कहां से आएगा क्योंकि ये लोग जॉब तो करते नहीं थे तो इनको एक खबर मिलती है 9थ ऑफ अगस्त 1925 को एक ट्रेन शाहजहांपुर से लखनऊ जाएगी और रेलवे स्टेशन का जो पैसा कलेक्ट होता है वो सारा का सारा उसी ट्रेन में होगा जिसको अंग्रेज जो है वो गवर्नमेंट के खजाने में डालेंगे और जैसे ही ये खबर मिलती है ये लोग क्या करते हैं कि इस खजाने को लूटने की प्लानिंग स्टार्ट करते कर देते हैं मेन ऑब्जेक्टिव यह था कि इसमें से पैसा लूट के हथियार खरीदेंगे यह लोग यंग 20 से 25 क्रांतिकारियों की टीम बनाते हैं और मेन प्लानिंग इसमें करते हैं राजेंद्रनाथ लहरी इन 20 से 25 लोगों की जो टीम बनी थी इसमें थे राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान रोशन सिंह चंद्रशेखर आजाद सचिंद्र नाथ सान्याल अब इसके बाद डेट आती है 9थ ऑफ अगस्त 1925 और प्लान के हिसाब से ये लोग काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन की चैन खींच देते हैं ट्रेन के अंदर 444601 थे उसको ये लोग लूट लेते हैं और लूटते टाइम एक सेंजर को गोली भी लग जाती है और उसकी जान चली जाती है और ये जो इंसिडेंट हुआ था इसको काकोरी कांड भी बोला जाता था इस इंसिडेंट के बाद अंग्रेजों के बीच में अफरातफरी मच गई थी ये पूरा का पूरा मामला उन्होंने सीआईडी ऑफिसर हार्टन को दे दिया था और इंक्वायरी कंप्लीट होने के बाद सितंबर 1925 तक ये लोग 40 यंग क्रांतिकारियों को अरेस्ट करते हैं बाकी अशफाक उल्ला खान और सचेंद्र नाथ बक्षी को एक साल बाद पकड़ पाते हैं लेकिन चंद्रशेखर आजाद जो थे उनको नहीं पकड़ पाते हैं और फिर आगे चलके चंद्रशेखर आजाद जो थे वही एचआरए यानी कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन था उसको यही चलाते थे इसके बाद फर्स्ट ऑफ में 1926 को स्पेशल सेशन कोर्ट में इनके ट्रायल होते हैं और फिर सिक्स्थ ऑफ अप्रैल 1927 को फैसला सुनाया जाता है जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल रोशन सिंह राजेंद्रनाथ लहरी और अशफाक उल्ला खान को फांसी सुना दी जाती है और 16 लोगों को 3 से 14 साल की जेल की सजा सुना दी जाती है और दो क्रांतिकारी क्या करते हैं वह सरकारी गवाह बन जाते हैं और अपनी जान बचा लेते हैं और बाकी लोग जो थे वह सबूत ना मिलने से या तबीयत खराब होने की वजह से बच जाते हैं अब यहां से चीजें आउट ऑफ कंट्रोल हो रही थी और ब्रिटिश गवर्नमेंट क्या करती है जॉन साइमन को बुला के और कहती है कि जो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 है इसमें थोड़े रिफॉर्म लाने की जरूरत है एक्चुअली जो अनरेस्ट था उसको अपने कंट्रोल में करने के लिए ये सारी चीजें की जा रही थी अब क्योंकि जॉन साइमन जो थे वो इस पूरे कमीशन के चेयरमैन बन के हेड कर रहे थे इसलिए जो पूरा कमीशन था इसको साइमन कमीशन बोला जाता है और जान पूछ के एक भी इंडियन इस कमीशन में नहीं रखा जाता है अब ये सारी चीजें देख के इंडियन लीडर जो थे वो बहुत ही ज्यादा भड़क जाते हैं कि इंडियन का फ्यूचर आप डिसाइड कर रहे हो बिना इंडियन से कंसल्ट करे ये किस तरीके का जस्टिस हुआ हमारे साथ और इसी टाइम पे दिसंबर का मंथ भी चल रहा था तो कांग्रेस का जो सेशन था वो भी होना था तो इस सेशन में ये डिसाइड होता है कि साइमन कमीशन का पूरी तरीके से बहिष्कार किया जाएगा और मॉडरेट लीडर हो एक्सट्रीमिस्ट हो सारे के सारे एक ही पीच पे थे इस चीज को लेके अब थर्ड ऑफ फरवरी 1928 को साइमन कमीशन के इंडिया के अंदर आते ही भारी भीड़ इसका काले झंडे लेके विरोध करती है नारे लगाती है साइमन गो बैक हर तरफ हड़ताल होती है विरोध होता है रैलियां चलती है पूरी तरीके से बॉयकॉट होता है अब ये इतना ज्यादा होता है कि अंग्रेज परेशान होते हैं तो इस पे लॉर्ड बिरकन हेड जो थे सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ऑफ इंडिया वो कहते हैं कि चलिए ठीक है आप लोग इतना ज्यादा हल्ला कर रहे हो कि हमने जो किया है वो आपके भले के लिए किया लेकिन अगर आपको लगता है कि हमने गलत किया है तो मैं आपको चैलेंज करता हूं कि अगर आप लोग खुद से एक ऐसा कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म लेके आओ जो इंडिया में रहने वाला हिंदू मुस्लिम सिख सारे धर्म के लोग मान जाएं और अगर आप ऐसा करने में कामयाब होते हो तो जो ब्रिटिश सरकार है वो खुशी-खुशी आपके सारे रिफॉर्म्स जो हैं उनको एक्सेप्ट कर लेगी अब जैसे ही चैलेंज मिलता है तो सारी पार्टियां जो थी चाहे मुस्लिम लीग हो चाहे कांग्रेस हो बहुत तेजी दिखाती हैं कांग्रेस दिसंबर की बजाय फरवरी 1928 में ही अपनी ऑल पार्टी कॉन्फ्रेंस बुला लेती है और अलग से कमेटी भी बना देती है जिसका काम यह दिया गया होता है कि जल्दी से जल्दी नया कॉन्स्टिट्यूशन बनाओ और ये जो कमेटी थी जिसको ये काम दिया गया था उसको जवाहरलाल नेहरू जी के फादर मोतीलाल नेहरू हेड कर रहे थे अब इसके करीब 6 महीने बाद यानी कि अगस्त 1928 में यह रिपोर्ट रेडी हो जाती है जिसमें डोमिनियन स्टेटस फेडरल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट कई सारी चीजें इसमें मेंशन करी गई थी ये जो रिपोर्ट थी इसको नेहरू रिपोर्ट भी बोला जाता है क्योंकि इसको मोतीलाल नेहरू जी ने बनाई थी अब ये रिपोर्ट तो बन गई थी लेकिन ये रिपोर्ट ऐसी बनी थी कि एक नहीं बल्कि सारे रिलीजन के जो लोग थे इस रिपोर्ट से नाराज हो गए थे इनफैक्ट कांग्रेस के अंदर भी असहमति बन गई थी कांग्रेस के जो यंग लीडर थे जैसे जवाहरलाल नेहरू सुभाष चंद्र बोस इस रिपोर्ट में डोमिनियन स्टेटस जो था उसके खिलाफ चले जाते हैं वो कहते हैं डोमिनियन स्टेटस नहीं बल्कि टोटल इंडिपेंडेंस की मांग करनी चाहिए डोमिनियन स्टेटस मतलब कि सारे अधिकार तो इंडिया के रहेंगे लेकिन इंडिया को ब्रिटिश एंपायर का हिस्सा माना आ जाएगा और इसमें कांग्रेस के अंदर एक ग्रुप को दिक्कत इसलिए हो रही थी क्योंकि फॉरेन अफेयर और सिक्योरिटी वगैरह जो थे वो ब्रिटिशर्स का इंटरफेरेंस रहता उसमें वहीं टोटल इंडिपेंडेंस यानी पूर्ण स्वराज मतलब कि ब्रिटिशर्स पूरी तरीके से इंडिया से बाहर चले जाएंगे और इंडिया के लोग ही देश चलाएंगे अब जिन्ना जो थे उन्होंने भी नर जी की जो रिपोर्ट थी उसमें अमेंडमेंट के लिए 14 पॉइंट भेजे थे लेकिन वो भी कांग्रेस ने मना कर दिए इसलिए जिन्ना भी गुस्सा हो जाते हैं और मीटिंग के अंदर आने से मना कर देते हैं और कैंसिल कर देते हैं मीटिंग अब इधर ये सारी चीजें चल रही थी और पैरेलली क्या हो रहा था कि जो साइमन कमीशन था इसको लेके जगजग विरोध फिर भी चालू थे ऐसे ही 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय लाहौर में बहुत सारे स्टूडेंट्स को लेके अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे और उसी टाइम पे लाहौर पुलिस के एसपी जेम्स स्कॉट फ्रस्ट्रेट होकर लाठी चार्ज का ऑर्डर कर देते हैं इस लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय को इतनी ज्यादा लाठियां पड़ जाती हैं कि व घायल हो जाते हैं और 177th ऑफ नवंबर को वह शहीद हो जाते हैं अब एक इतने एजेंड आदमी को लाठी से मार-मार के उसकी जान लेना बहुत सारे लोग गुस्सा हो जाते हैं लाला लाजपत राय जो थे वोह कांग्रेस के एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स थे और जितने भी यंग क्रांतिकारी थे वो इनको अपना आइडल मानते थे और उसमें भी भगत सिंह जो थे वो इनको बहुत ज्यादा मानते थे तो भगत सिंह यह सजेस्ट करते हैं कि लाला लाजपत जी के साथ जो हुआ है ये बहुत गलत हुआ है इसलिए एसपी जेम्स स्कॉट जो है जिसने ये हरकत करी अब उसको मारना होगा तभी इसका बदला पूरा होगा और अंग्रेजों की अकल ठिकाने आएगी अब इसके बाद क्या होता है कि भगत सिंह सुखदेव थापर शिवाराम राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलके प्लानिंग करना स्टार्ट करते हैं और फिर ये लोग मिलके 177th ऑफ दिसंबर 1928 की डेट डिसाइड करते हैं पन के हिसाब से ये था कि ये लोग डिस्ट्रिक्ट पुलिस हेड क्वार्टर जो कि लाहौर में था वहां ये लोग पहुंच के एसपी जेम्स स्कॉट जो था उसको मार देंगे तो एज पर प्लान 177th ऑफ दिसंबर को ये लोग वहां पहुंचते हैं और एसपी जेम्स स्कॉट जो था उसका वेट करते हैं प्लान के हिसाब से राजगुरु को गोली चलानी थी और बाकी दोनों को कवर देना था लेकिन इसमें एक दिक्कत ये होती है कि एसपी जेम्स कॉट को पहचानने में गलतफहमी हो जाती है ये लोग एसपी जेम्स कॉट की जगह गलती से एएसपी जेपी साउंडर को मार देते हैं और मारने के बाद ये लोग वहां पे स्मोक वगैरह फेंकते हैं स्लोगन वगैरह बोलते हैं और भाग जाते हैं वहां से अंग्रेज जो थे इस चीज से बहुत ज्यादा गुस्सा थे उनको बहुत बुरी तरीके से ढूंढ रहे थे और इधर ये लोग भी बहुत टाइम तक छुपे रहते हैं और इसकी वजह से इनकी जो आवाज थी वो दब गई थी लेकिन इनको जो अपनी आवाज थी वो लोगों तक पहुंचा थी तो ये लोग डिसाइड करते हैं कि अगर ये लोग गिरफ्तार हो जाएं तो जितने टाइम हियरिंग चलेगी जो जो बोला जाएगा वो सब न्यूज़पेपर में पब्लिश होगा क्योंकि ऐसा रूल था तो ये लोग गिरफ्तार होने का डिसाइड करते हैं गिरफ्तार होने के लिए ये लोग एथ ऑफ अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली दिल्ली में बॉम फेंक देते हैं और इनका इरादा जान लेने का नहीं था तो इसलिए ये क्या करते हैं साइड में जहां पे भीड़ नहीं होती है वहां पे बॉम फेंकते हैं और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हैं और फिर वहां पे इनको गिरफ्तार कर लिया जाता है अब इसके काफी टाइम तक इंक्वायरी चलती है फिर 24th ऑफ मार्च 1931 को इन लोगों को फांसी की सजा सुना दी जाती है अब इधर एक फांसी की सजा सुनाई जाती है और दूसरी तरफ क्या होता है कि कांग्रेस पार्टी के अंदर एक टेंशन चल रही थी कि यंग लीडर चाहते थे कि पूर्ण स्वराज की मांग हो और बाकी जो लीडर थे उनका ये मानना था कि ब्रिटिशर्स जो थे वो भड़क जाएंगे इस चीज से तो जो हमारा मोटिव है वो पूरा नहीं हो पाएगा लेकिन कांग्रेस में स्प्लिट ना हो जाए टेंशन कम हो जाए इसलिए गांधी जी बीज बचाव करते हैं और सारे ग्रुप को एक साथ करते हैं और सब लोग सेम पेज पर रहते हैं कि अब आगे से पूर्ण स्वराज की ही मांग होगी और दिसंबर 1929 को कांग्रेस अनाउंस कर देता है कि अब से कांग्रेस केवल पूर्ण स्वराज की ही मांग करेगा और इसके साथ कांग्रेस एक चीज और कहती है कि आने वाली 26 जनवरी 1930 को इंडिपेंडेंस डे मनाया जाएगा और तिरंगा फहराया जाएगा गांधी जी सोच रहे थे कि कोई ऐसा मुद्दा होना चाहिए जिससे पूरे देश यूनाइट हो जाए और फिर कुछ दिन बाद उन्होंने एक ऐसा तरीका ढूंढा जिससे वो सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में फेमस हो गए थे ये एक ऐसा मुद्दा था जिससे हर कोई कनेक्ट करता था तो गांधी जी डिसाइड करते हैं कि वो नमक का सत्याग्रह स्टार्ट करेंगे एक्चुअली उस टाइम पे ब्रिटिशर्स ने पहले तो नमक पे टैक्स लगाया था और फिर उसके बाद नमक के प्रोडक्शन और सेल पर पूरा कंट्रोल ले लिया था अंग्रेजों ने कहा था कि अगर कोई इंडियन नमक बनाते हुए या बेचते हुए पाया जाएगा तो उसको कड़ी सजा होगी तो 12थ ऑफ मार्च 1930 को डेट फिक्स होती है और गांधी जी अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती से डांडी की तरफ पैदल निकल जाते हैं ये सारे लोग मिलके टोटल 390 किमी चलते हैं जिसमें इनको 24 दिन का टाइम लगता है और जब तक गांधी जी डांडी पहुंचते हैं एक पूरा का पूरा हुजूम गांधी जी के साथ जुड़ जाता है और इनके साथ डांडी मार्च करने लगता है उसके बाद डांडी बीच पे पहुंच के गांधी जी एक नमक का ढेला उठा के अंग्रेजों के बनाए हुए लॉ को तोड़ देते हैं और यहां से नमक सत्याग्रह जो था उसकी शुरुआत हो जाती है और गांधी जी इस पर्टिकुलर टाइम पे बहुत ज्यादा लोगों को कहते हैं कि यही टाइम है सब लोग एकजुट होके इस नमक सत्याग्रह से जुड़ और इस सत्याग्रह से भी जुड़ने के वही पुराने रूल्स थे कि वायलेंस नहीं करना है गवर्नमेंट के जो टैक्स वगैरह हैं वो नहीं देने हैं और जितनी भी ब्रिटिश गवर्नमेंट की ऑर्गेनाइजेशन है उनको बॉयकॉट करना है अब ये जो नमक सत्याग्रह था ये इतना ज्यादा बड़ा हो जाता है कि पूरे वर्ल्ड का मीडिया इसके बारे में बात करने लगता है और बच्चे से लेकर औरत तक हर कोई इससे जुड़ जाता है अब ये सारी चीजें जो हो रही थी इससे ब्रिटिशर्स पे बहुत ज्यादा प्रेशर आ गया था ब्रिटिशर्स ट्राई तो कर रहे थे इसको दबाने का लाठी चार्ज करते हैं 6000 से ज्यादा लोगों को जेल में उठाकर डाल देते हैं जिसमें 177th ऑफ अप्रैल 1930 को जवाहरलाल नेहरू जो थे उनको भी जेल में डाल देते हैं और उसके एक महीने बाद गांधी जी को भी जेल में डाल देते हैं ब्रिटिशर्स को लग रहा था इन दोनों मेन लीडर्स को जेल में बंद कर देंगे तो ये सारी चीजें रुक जाएंगी लेकिन इसके बाद भी अब्बास तेब जीी और सरोजिनी डू ये कमाल संभाल लेते हैं और इस मूवमेंट को चालू रखते हैं और इसके बाद ब्रिटिशर थाक के वाइस रॉय लॉर्ड इरविन जो थे उनको रिस्पांसिबिलिटी देते हैं कि किसी भी तरीके से जो मूवमेंट है इसको रोको अब लॉर्ड इरविन जो थे वो गांधी जी से जाके मिलते हैं दोनों आपसी सहमति से फिथ ऑफ मार्च 1930 वन को एक एग्रीमेंट साइन करते हैं इसे गांधी इरविन पैक्ट भी बोला जाता है इस एग्रीमेंट में ये डील हुई थी कि अब इंडियंस भी नमक का प्रोडक्शन कर सकते हैं और ब्रिटिशर्स ने जितने भी लोगों को जेल में डाला था उनको वो छोड़ देते हैं और इसके बदले में गांधी जी जो थे वो इस मूवमेंट को बंद कर देते हैं इस मूवमेंट के बाद एक चीज हुई थी कि ये जो कांग्रेस पार्टी थी अंग्रेजों ने कांग्रेस पार्टी को इंडियन लोगों का रिप्रेजेंटेटिव एक तरह से मान लिया था और आगे के जितने भी काम हुए उसमें कांग्रेस को रिप्रेजेंटेटिव मानते हुए ही किया जो कि कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी विन थी अब इधर ये मूवमेंट बंद तो हो जाता है लेकिन दूसरी तरफ तरफ भगत सिंह जी की जो फांसी थी उसकी डेट पास आ जाती है और कई इंडियन लीडर उनको बचाने के लिए लगातार मर्सी अपील कर रहे थे पर सब रिजेक्ट हो जा रही थी और फिर 24 ऑफ मार्च की जगह एक दिन पहले 23 ऑफ मार्च की शाम को ही भगत सिंह जी को फांसी दे दी जाती है और वो शहीद हो जाते हैं कुछ लोग गांधी जी को भी ब्लेम करते हैं कि अगर वो चाहते तो भगत सिंह को बचा सकते थे क्योंकि इस मूवमेंट के बाद अंग्रेज जो थे वो गांधी जी के सामने बैकफुट पे थे और अगर गांधी जी कहते अंग्रेजों को तो उनको उनकी बात माननी पड़ती जैसे बाकी बात मानी थी अब इसके बाद क्या होता है कि ईयर 1938 और 1939 दिसंबर में कांग्रेस के जैसे सेशन होते हैं दिसंबर के मंथ में तो वो होते हैं और इन दोनों सेशन में सुभाष चंद्र बोस जो थे वो प्रेसिडेंट बनते हैं लेकिन सुभाष चंद्र बोस जो थे वो थे तो कांग्रेस में लेकिन गांधी जी की जो नॉन वायलेंस वाली थ्योरी थी उससे एग्री नहीं करते थे और उनका मन था कि कांग्रेस की हड़ताल वगैरह के रास्तों को छोड़ के उनसे ऊपर उठे उनका मानना था कि अग्रेशन और वायलेंस के बिना आजादी नहीं मिलेगी बात इतनी ज्यादा बढ़ जाती है गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस जी के बीच में कि गांधी जी साफ मना कर देते हैं सुभाष सुभाष चंद्र बोस जी के साथ काम करने के लिए और सुभाष चंद्र बोस क्या करते हैं कि वो कांग्रेस के अंदर रिजाइन डाल देते हैं और अलग से एक अपनी पार्टी बना लेते हैं ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक अब सेम टाइम पे यानी कि सितंबर 1939 में सेकंड वर्ल्ड वॉर भी शुरू हो जाती है और लॉर्ड लिन लिथ ग्लो बिना किसी इंडियन या इंडियन लीडर के किसी से भी बिना पूछे डिक्लेयर कर देते कि इस वॉर में जर्मनी के खिलाफ इंडिया हमारे साथ है और इंडिया के लोग हमारे साथ हैं इससे कांग्रेस के जो लीडर थे वो काफी गुस्सा हो जाते हैं कि इंडिया के बिहाव पे ये जो उन्होंने बोला है ये गलत बोला है और इस पट चीज को लेके कांग्रेस लीडर जो थे वो फिर से रिजाइन करना स्टार्ट कर देते हैं और जब बात ज्यादा बढ़ जाती है तो लिन लिथ ग्लो एथ ऑफ अक्टूबर 1940 को एक प्रपोजल भी देते हैं आप जो जो डिमांड कर रहे हैं इंडिया के लिए हम आपकी सारी बातें मान लेते हैं बस एक चीज का आपको ध्यान रखना होगा कि ये सारी चीजें एप्लीकेबल होंगी सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद लेकिन जो कांग्रेस के लीडर थे उनको इनकी बात पे कॉन्फिडेंस नहीं आ रहा था तो इस प्रपोजल को रिजेक्ट कर देते हैं इस ऑफर को अगस्त ऑफर भी बोला जाता है जब ये ऑफर रिजेक्ट हो जाता है लेकिन ब्रिटिशर्स जो थे उन उनको इंडिया की नीड बहुत ज्यादा थी यहां तक कि ब्रिटिशर्स यह तक कह देते कि इंडिया को हम डोमिनियन स्टेटस दे देंगे बस वॉर खत्म होने तक का वेट करना होगा और इस वॉर में हमारा आप साथ दीजिए लेकिन अब इंडियन लीडर्स को डोमिनियन स्टेटस में कोई इंटरेस्ट नहीं था उनको पूर्ण स्वराज चाहिए था फुल इंडिपेंडेंस और यहां से ब्रिटिशर्स के लिए हर तरफ से चीजें खराब होना चालू हो जाती है उधर सुभाष चंद्र बोस जो थे वो लगातार इंडिया के कोने-कोने में इंडिपेंडेंस की जो एक्टिविटीज थी उनको बहुत तेजी से बढ़ा रहे थे इसलिए उनको दिसंबर 1940 में ब्रिटिशर्स उनको जेल में डाल देते हैं लेकिन वहां पे भी हंगर स्ट्राइक वगैरह करने लगते हैं वो तबीयत खराब हो जाती है उनकी तो कुछ दिन बाद ही सुभाष चंद्र बोस को उनके ही घर में उनको हाउस अरेस्ट कर दिया जाता है मतलब कि उन्हीं के घर में उनको बंद करके पुलिस और जासूस वगैरह लगा दिए जाते हैं ताकि कोई एक्टिविटी ना हो पाए लेकिन सुभाष चंद्र बोस क्या करते हैं वो अपना भेस बदल के जैसे-तैसे करके वहां से बच के निकल लेते हैं और इसके बाद वोह दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाला प्लान बना के अफगानिस्तान और रशिया के रास्ते होते हुए दिसंबर 1941 को जर्मनी के पास पहुंचते हैं जो ब्रिटिश के अगेंस्ट में था जब सुभाष चंद्र बोस जर्मनी पहुंचते हैं तो वहां पर सब उनको नेताजी नाम से बुलाने लगते हैं और नेताजी जुगाड़ लगा के हिटलर से भी मिलते हैं और वहां पे उनको प्रपोजल रखते हैं कि आपने जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैनिकों को बंदी बना रखा है उनको आप मुझे दे दीजिए हम मिलके ब्रिटेन के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और हिटलर इस चीज को लेकर मान जाता है और फिर इसके बाद नेताजी जापान के लिए निकल जाते हैं इंडिया के बाहर अलग-अलग देश जाकर सुभाष चंद्र बोस जी अपने हिसाब से इंडिया की लड़ाई लड़ रहे थे इधर इंडिया के अंदर गांधी जी अंग्रेजों के खिलाफ एक नया मूवमेंट स्टार्ट करने का डि साइड करते हैं उनका प्लान था कि थ ऑफ अगस्त 1942 को वो क्विट इंडिया मूवमेंट करेंगे बाकी के जो मूवमेंट्स किए थे उन्होंने उसी तरीके से ये भी था इसमें भी नॉन वायलेंस था लेकिन इसमें गांधी जी ने कुछ रूल्स चेंज कर दिए थे इसमें गांधी जी ने सबको समझाया था कि सरकारी नौकरी इस बार छोड़नी नहीं है बल्कि नौकरी में रह के आंदोलन करने हैं जैसे मान लो कोई सिपाही है अगर उसको इंडियंस को मारने को कहता है तो अंग्रेजों को मना करना है यह काम करने से और गांधी जी ने यह भी समझाया कि इस बार ये मूवमेंट बहुत बड़ा होगा तो ये लीडर्स को फिर से जेल में डालेंगे लेकिन झुकना नहीं नहीं है डू और डाई फॉलो करना है कर जाओ या फिर करते हुए मर जाओ लेकिन इस बार पीछे नहीं हटना है क्योंकि दोबारा ऐसा मौका नहीं आएगा इधर गांधी जी अपना भाषण देते हुए लोगों को समझा रहे होते हैं और दूसरी तरफ कुछ ही घंटों में अंग्रेज गिरफ्तारी शुरू कर देते हैं ऑलमोस्ट सारे लीडर जितने भी मेन लीडर थे सबको उठा के जेल में डाल देते हैं और गांधी जी को नजरबंद कर दिया जाता है अब यहां पे दिक्कत ये हो गई थी कि लीडर्स नहीं थे तो जो क्राउड था जो आम जनता थी वो वायलेंट हो गई थी जगह-जगह आग लगा दे रहे थे सरकारी ऑफिसेज जो थे वहां पे आग लगा दे रहे थे पीटना शुरू कर दे रहे थे ऑफिसर जो थे रेलवे वगैरह जो थे वहां पे तोड़फोड़ स्टार्ट हो गई थी और फिर यह सारी चीजें देख के अंग्रेज जो थे वो बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए थे अंग्रेजों ने कई जगह प फायरिंग स्टार्ट करा दी थी कुछ ही महीनों के अंदर 1 लाख से ज्यादा लोगों को जेल के अंदर डाल दिया था हजारों लोगों की जान चली गई थी तो कुल मिला के ये था कि अंग्रेजों को इस मूवमेंट ने घुटने प लाकर खड़ा कर दिया था दूसरी तरफ इंडिया के बाहर सुभाष चंद्र बोस जो थे वो अपनी प्लानिंग रेडी कर रहे थे वो जर्मनी में डायरेक्ट हिटलर से बात करने के बाद सीधे पहुंचते हैं जापान वहां पहुंचने के बाद भी वो वहां के पीएम से मिलते मिलते हैं और वहां पे भी वो सेम प्रपोजल रखते हैं कि इंडियन ब्रिटिश आर्मी के जितने भी वॉर प्रिजनर हैं उनको वापस मांगते हैं ऐसा करके वो अपनी एक आजाद हिंद फौज यानी कि इंडियन नेशनल आर्मी बना लेते हैं इस आर्मी को बनाने का उनका मेन मकसद ये था कि आर्मी जाके इंडिया के अंदर ब्रिटिशर से लड़ेगी इसमें इन्होंने एक ऑल वुमेन यूनिट भी बनाई थी इस रेजीमेंट का नाम दिया गया था झांसी की रानी रेजीमेंट ये जो आर्मी थी इसमें जितने भी लोग थे वो बहुत ज्यादा जोश में थे और इसके बाद फिर सुभाष चंद्र बोस क्या करते हैं वो अनाउंसमेंट कर देते हैं कि ये जो वर्ल्ड वॉर है इसमें आजाद हिंद फौज जो है है वो जापान के साथ है और कुछ ही दिन पहले जापान ने अंडमान एंड निकोबार आइलैंड जो था तो वो जो आइलैंड था वो जापान ने कुछ शर्तों के साथ सुभाष चंद्र बोस जी को दे दिया था और सुभाष चंद्र बोस क्या करते हैं वहां पे जाके तिरंगा लहरा देते हैं और ये जो अंडमान निकोबार था इसमें अंग्रेज पहले क्या करते थे कि काला पानी की सजा देते थे तो जितने भी इंडियंस को दी जाती थी उनको यहीं पे कैदी बनाया जाता था तो इन लोगों को भी नेताजी ने अपनी फौज में शामिल कर लिया था और इन्होंने अपनी आजाद हिंद की फौज से सबसे यही कहा था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा दिल्ली चलो इस इस तरीके के नारे दिए थे अब इसके बाद मार्च के महीने में ईयर 1944 में नेताजी जापान के साथ मिलके इंडिया की तरफ घुसते हैं फिर बैटल ऑफ कोईमा और बैटल ऑफ इंफाल ये सारी होती हैं ब्रिटिशर्स के साथ सुभाष चंद्र बोस जी की जो आजाद हिंद फौज थी उसकी एक महीने तक लड़ाई चलती है और फिर उसके बाद 14th ऑफ अप्रैल 1944 को मोईरंग के अंदर आजाद हिंद फौज जो थी वो वहां पे जीत जाती है और अपना झंडा फहरा देती है और अगले दो-तीन महीने में मणिपुर नागालैंड इनके काफी इलाके जो थे वो आजाद हिंद फौज इसपे कब्ज कर लेती है लेकिन इसी बीच में एक दिक्कत हो जाती है जापान के ऊपर न्यूक्लियर बम गिरा दिया जाता है जापान सरेंडर कर देता है लेकिन आजाद हिंद फौज जो थी वो लगी रहती है लेकिन जापान जैसे ही पीछे हटता है फौज को हथियार खाने का सप्लाई हर एक चीज में दिक्कत आने लगती है और फिर आगे चलके मजबूरी में आजाद हिंद फौज को सरेंडर करना पड़ता है अब ब्रिटिशर्स ये फौज जो थी इससे जीत तो गए थे लेकिन उनके ऊपर इंटरनेशनल प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया था बाकी देश भी ये बातें डिस्कस करने लगे थे कि इंडिया के अंदर लोगों के साथ जो हो रहा है ये सही नहीं हो रहा है दूसरी दूसरी दिक्कत अंग्रेजों के साथ यह थी कि क्विट इंडिया मूवमेंट की वजह से पूरा देश यूनाइट हो गया था उन्होंने काम धंदा सब रोक दिया था उनका कोई काम ही नहीं आगे बढ़ने दे रहे थे तीसरी चीज ये अंग्रेज वर्ल्ड वॉर में भी काफी फंसे हुए थे और नुकसान बहुत ज्यादा हुआ था इनका और आजाद हिंद फोर्स ने जो नुकसान किया था इसको देख के ब्रिटिशर जो थे वो बहुत ज्यादा शॉक्ड थे ये जीत तो गए थे लेकिन ब्रिटिश आर्मी में जो इंडियन सिपाही थे उनसे इनका विश्वास जो था वो पूरी तरीके से उठ गया था उनको ये चीज रिलाइज हो गई थी किसी ना किसी तरीके से अगर ये किसी रिवॉल्ट को दबा भी देंगे तो उनके जो सिपाही हैं जिसमें सबसे ज्यादा सिपाही हैं वो एक्चुअल में उनके खिलाफ ही हैं तो आज वो दबा भी देंगे तो कुछ टाइम बाद फिर से रिवॉल्ट होगा ये एक नेवर एंडिंग प्रोसेस हो गया था जिसमें उनका नुकसान होना तय था और मेन जो अंग्रेज आए थे वो इंडिया के रिसोर्सेस को पूरी तरीके से लेने आए थे इंडिया के रिसोर्स को पूरी तरीके से यूज करके इंडिया को गरीब तो उन्होंने ऑलरेडी बना ही चुके थे तो ये सारी चीजें जो थी यूके की जो पॉलिटिक्स थी वहां पे भी ये सारी चीजें डिस्कस हो रही थी कि इंडिया में ये जो चल रहा है ये एक नुकसान का सौदा है अब इसके बाद यूके के अंदर चुनाव आने वाले होते हैं और जो अपोजिशन पार्टी थी यानी कि लेबर पार्टी थी उसने अपने मेनिफेस्टो में बोल दिया कि इंडिया को वो से सेल्फ गवर्नेंस देंगे उनका मानना था कि यूके अगर इंडिया से बाहर निकल आए तो ही उसके लिए बढ़िया है और उन्होंने यह भी बोला कि अगर वो जीत जाएंगे तो इंडिया को फ्री कर देंगे और फिर इसके बाद यूके के अंदर जनरल इलेक्शन होते हैं लेबर पार्टी के क्लेमेंट एटली यूके के प्राइम मिनिस्टर बनते हैं और सितंबर 1945 को वो अनाउंसमेंट करते हैं कि दिसंबर 1945 से जनवरी 1946 में इंडिया के अंदर वो इलेक्शन करवाएंगे और इंडिया की जनता जिन कैंडिडेट्स को इलेक्शन में जितवा एगी उनके हिसाब से ही कांस्टीट्यूशनल असेंबली बनाई जाएगी जो कि इंडिया का खुद का अपना कांस्टीट्यूशन होगा और फिर 2 साल बाद 10th ऑफ फरवरी 1947 को यूके के पीएम एटली एक हिस्टोरिकल स्पीच देते हैं जिसमें वो बोलते हैं कि अगले साल जून में यानी कि जून 1948 में इंडिया को इंडिपेंडेंस दे दी जाएगी और इंडिया का खुद का कॉन्स्टिट्यूशन होगा इंडिया एक इंडिपेंडेंट कंट्री होगी जिसको इंडियंस चलाएंगे और ब्रिटिशर्स इंडिया से बाहर चले जाएंगे और जैसा वो कहते हैं वैसा ही होता है लेकिन आजादी की डेट चेंज होती है जून 1948 की बजाय अगस्त 1947 में हमें आजादी मिलती है अब ये 10 महीने पहले क्यों आजादी मिली इसको हम जो इस सीरीज के आगे जो वीडियो बनाएंगे उसमें जो बंटवारे वाली वीडियो बनाएंगे इंडिया पाकिस्तान का कैसे बंटवारा हुआ उसमें ये चीज आपको पता चलेगी लास्ट में एक बार फिर से आपको बता दूं कि कुकू एफएम की ऑडियो बुक आजाद हिंद सरकार ड्रीम ऑफ अ वॉरियर जरूर सुनिए लिंक मैंने डिस्क्रिप्शन में दे दिया थैंक [संगीत] यू [संगीत]