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वित्तीय प्रबंधन के मुख्य बिंदु

आज हम कक्षा बार्बी बिजनेस स्टडीज चेप्टर नंबर नाइन फाइनेंशल मैनेजमेंट जिससे आपको बहुत ज्यादा डर लगता है स्टार्टिंग से लेकर एंड तक पूरी तरीके से समाप्त करने जा रहे हैं उपर आई बटन में एक लिंक लगा दिया है, वहाँ से जाके देख लेना, आपका जल्दे का काम बढ़िया हो जाएगा, ठीक है, चलो, तो यह वाला चेप्टर बहुत इंपोर्टेंट है, क्योंकि इससे कॉस्टिन भी बनते हैं, और नमबर भी सबसे ज़ादा यही काटता फटाफट से इसको डिस्क्रिप्शन के लिंक से ले लीजिये और जन के पास है खोल लो जब टरम बनाई चले शुरुवात करते हैं बात करते हैं पैसे की देखो पैसा बिल्कुल वैसा ही है जैसा हमारे लिए खून है जैसे हमारी बॉडी के अंदर अगर खून निकाल लिया जाए पूरा तो हम मर जाएंगे जादा खून होगा तो भी दिक्कत है कम खून होगा तो भी दिक्कत है सिमिलरली पैसा बिजनिस के लिए भी ऐसा ही काम करता है जादा पैसा हो जाएगा तो पड़े सडेगा और कम पैसा रहेगा तो प्रॉपरली बिजनेस फंक्शन नहीं कर पाएगा ये पूरा जो प्रॉसेस है जिसके अंदर हम adequate amount of money जो बिजनेस को चलाने के लिए चाहिए होती है इसका अंदाजा लगाते हैं और साथ में जो पैसा आता है उसका manage करते हैं उसी को कहते है financial management यानि finance का management यानि पैसे का management अब what is finance देखो भाई तो money required to carry out business activity is known as business finance जो business को चलाने के लिए पैसा चाहिए होता है उसको business का finance कहा जाता है और उस finance का proper management करना उसको financial management कहा जाता है तो availability of efficient finance सही समय पर सही तरीके से जितना चाहिए उतना पैसा मिल जाना ये business के लिए बहुत ज़्यादा crucial होता है for the survival and growth for the business इसलिए कहा जाता है कि business के लिए पैसा lifeblood है, क्या है, lifeblood for the business, अगर नहीं होगा, तो सब कुछ सत्यानास हो जाएगा, ठीक है, so what is financial management, it is concerned with efficient acquisition, पैसा कहां से आएगा, utilization, कैसे उसको invest करेंगे, हमारी firm की asset में लगाना है, day to day में खर्च करना है, कहीं और invest करना है, and distribution and allocation of fund. यानि कि तो profit आया उसको कैसे बाटना है रखना है future के लिए समालना है इसको बोलते है financial management और simple बाशा में देखो the proper and efficient use of ये क्या लिखा है the proper and efficient use or management of business finance is known as financial management ठीक है क्या मतलब हुआ इसका कि सर सही तरीके से पैसे का management करना उसको business finance कहते है अब मैं एक सवाल पूछता हूँ भाईया, पैसे का management करना क्यों ज़रूरी है? मतलब जितना आ रहा है बढ़िया है, जितना जा रहा है बढ़िया है. अगर ऐसा ही करते रहेंगे तो क्या होगा? जो main objective है जिसकी वज़े सम पैसे का इतना ध्यान रखते हैं, वो है कि मालिक के पास पैसा बढ़ता रहे. यानि कि the main objective of financial management is to maximize the wealth of equity shareholder. अब देखो कंपनी के अंदर मालिक कौन होता है कंपनी के अंदर मालिक होता है उसका shareholder अब मेरे पास अगर Reliance के share है तो मैं Reliance का shareholder हो गया ठीक है इसी प्रकार से बहुत सारे लोग होंगे तो main objective इस पैसे के proper management का होता है कि हम shareholder की wealth को increase कर दें shareholder की wealth को increase कर दें पर sir ये क्या होता है देखो wealth ता shareholder increase करने का simple वाशा है मतलब है आपके share के दाम बढ़ने चाहिए अगर आपके share के दाम भड़ रहे हैं तो सब चंगा सी, सब भड़िया है, क्योंकि share के दाम भड़ने का मतलब सब कुछ short हो रहा है, अगर ऐसा दिखता है बजार में कि यार एक company है इसके share बहुत उच्छे जा रहे हैं, तो उसका मतलब है कि लोगों के दिमाग में ये चीज� यह पता रहेगा कि भाई कंपनी किसी से बेक नहीं मांग रही है, कंपनी अपने financial commitment को पूरी तरीके से ओके कर रही है अगर share के धाम बढ़ेंगे तो financial commitment को okay कर रही है ठीक है अगर share के धाम बढ़ रहे हैं तो ये माना जाएगा company को adequate profit भी हो रहा है अगर company के share के धाम बढ़ रहे हैं तो ये भी कहीं न कहीं माना जाएगा company के goodwill भी increase हो रही है समझ में आगे मेरी बार अगर कहीं न कहीं company के share के ध और at the end अगर मेरे पार reliance के share है तो मैं क्या चाहूँगा बई रोज दाम बढ़ते जाएं और रोज अच्छा profit होता जाएं तो यही main objective होता है company के finance को manage करने का और कहीं न कहीं अगर wealth बढ़ रही है तो यह भी indication जाता है कि वो proper utilization कर रहे हैं पैसे का क्या कर रहे हैं proper utilization कि सब कुछ बढ़िया है या सब कुछ खराब है तो सर जब यह इतना important task है कि पैसे को manage करना तो कोई न कोई आदमी तो होगा न जो कि यह काम कर रहा होगा तो आपने बिलकुल सही कहा है इसके लिए एक अलग से job position है जिसका नाम होता है financial manager एक पूरा finance department है और जो व्यक्ति main है उसका नाम होगा financial manager यानि ऐसा व्यक्ति जो पैसे की पूरी जिम्मेजारी लेगा मैं समालता हूँ जादा होंगे तो कहां लगाना है मैं देखूंगा कम पड़ेंगे तो कहां से लाना मैं देखूंगा और जब प्रॉफिट आ जाएगा तो वो कैसे बटेगा ये भी मैं ही देखूंगा बड़ा इंपोर्टेंट व्यक्ति है कौन-कौन से तीनों का नाम बताते हैं पहला है इंवेस्मेंट डिसीजन पहला क्या है इंवेस्मेंट डिसीजन पहला decision जो यह लेते हैं वो यह देखते हैं कि बईया पैसा कहां लगाना है आप बोलो सर पैसा कहां से लाना है पहले यह तो देखो नहीं बिजनेस बहुत दिमाग से चलता है बिजनेस में पहला यह देखा जाता है कि हमें investment कहां करना है बई नई machine लेनी पड़ेगी या नई दूसरा जो काम करते हैं, उसको हम बोलते हैं financing decision, क्या बोलते हैं, financing decision, यानि कि पैसा कहां से लाना है, कहां लगाना है, दूसरा हो गया, कहां से लाना है, भाई खुद का पैसा लगा है, लोन ले कहीं से, या बाकी public से पैसा मांगे, ये भी decide करना बहुत जुरूरी है, ये financial manager ही करता है, और तीसरा, सबसे important, dividend decision, क्या होता है, dividend decision, dividend decision का मतलब, भाई जो profit हो गया है, उसको distribute कैसे करें, पूरा कर दे, आदा करें, क्या करें, ये सब चीज़े देखना, ये होता है financial manager का काम, और इन तीन यह है financial decision यानि पैसे का decision और यह है financing decision यानि पैसा कहां से आएगा इसका decision ठीक है अब अपन एक करके इन तीनों decision को देखते हैं और यह समझते हैं कि इनके अंदर क्या आता है कौन से चीजें हमें ध्यान में रखने पड़ती है ठीक है तो सबसे पहला decision हम देख रहे हैं वो है investment decision कि पैसा कहां पर लगाना है ध्यान से समझना सबसे जरूरी यही होता है क्यों होता है वो समझो इस प्रकार के असित खरीदने में लगेगा ताकि हमें सबसे ज़्यादा प्रॉफिट मिलें फर्म invest in fund in जो फर्म जो है वो अपना पैसा जो है वो invest करती है in acquiring either fixed asset या तो हम fixed asset को खरीदने में पैसा लगाएंगे और हमें पैसा चाहिए for वर्किंग कैपिटल मतलब डे टू डे रिक्वारमेंट को पैसा चाहिए या तो हमें लंबे समय के लिए पैसा चाहिए होगा जहां हम कोई एसेट खरीदेंगे, कोई बिल्डिंग खरीदेंगे, कोई मशीन खरीदेंगे जो बहुत महंगी होगे दूसरा तरीका होता है कि सर हमें पैसा चाहिए तो जब हम बात करते हैं fixed asset यानि कि long term के बारे में तो उसको बोलते है capital budgeting decision ध्यान रखना ये बहुत important है what is capital budgeting decision investment in long term assets is known as capital budgeting decision जब हमें ये सोचना पड़ता है कि भाई लंबे asset में पैसा लगाना है क्या देखना है क्या नहीं देखना है तो हम उसको बोलते है capital budgeting decision क्योंकि ये बहुत मोटे amount का capital का budget खा जाता है लोग पर बहुत बहु लगाने वाले हैं तो पहली चीज जो देखनी है वह यह है कि कैस्ट लोग कितना है जहां पैसा लगा रहे हो वहां कितने पैसे की जरूरत होगी फर एक्जांपल में बताता हूं कि ऐसा बिजनेस है जिसमें एक बार पैसा डालो और उसके जाओ डालना पड़ेगा फिर आएगा मतलब चलता रहेगा तो सबसे पहली चीज फर्म देखती है वो देखती है कि जिस project में हम पैसा लगा रहे हैं उसमें cash flow कितना होगा अगर दो project मेरे सामने है एक है जिसमें cash flow नहीं है यानि कि पैसा लगा और गया अब आएगा कभी 10 साल 20 साल बद वो है return on investment, भाई जब मैं पैसा लगाओंगो तो return कितना आने की उमीद है, एक ऐसा project है जिसमें 10 करोड रुपे लगेंगे, और return में मेरे को 10 लाक रुपे मिल रहे है, दूसरा project है जिसमें 10 करोड लेखे रहे हैं, और 1 करोड रुपे मिल रहे है, तो मैं बोलूंगा भाई या एक प्रोजेक्ट है ए जिसमें आपको 10 टका रिटर्न मिल रहा है दूसरा प्रोजेक्ट है बी जिसमें आपको 15 टका रिटर्न मिल रहा है तो हम अगर सिर्फ इसकी बात करें तो हम बोलेंगे रिटर्न और इन्वेस्टमेंट के हिसाब से तो भाई प्रोजेक्ट नंबर भी दूसरा हमने बोला कि ROI return on investment के हिसाब से यह नहीं यह वाला सही है तो company ऐसे एक पूरा चार्ट बनाती है तीसरी चीज जो देखी जाती है वो है risk भाई जब हम पैसा लगा रहे हैं तो risk भी तो होगा risk is directly proportional to profit भाई risk ज़्यादा है तो profit भी ज़्यादा होगा पर risk एक बहुत बड़ा factor है या तो win होगा या lose होगा और दूसरा project जिसमें आता तो रहेगा बेसिक फ्लो तो चलता रहे तो अगर मेरे पास ज़्यादा पैसा नहीं है या मैंको पैसा बहुत जोर लगा के डूंडना पड़ रहा है तो मैं भाई इस वाले मैं जाओंगा यहां से रिस्क थोड़ा सा कम है तो रिस्क के साफ से देखा जाता है चौती चीज कि सर इनवेस् पर ऐसी चीज में पैसा चला गया है जिससे return कुछ नहीं आना और कल को अगर जंदा बंद भी हो गया है तो मैं उसको बेच ही नहीं सकता हूँ एक ऐसा project है दूसरा ऐसा project है भाई जिसमें पैसा तो लग रहा है पर उसको पैसे को लगाने के बाद मुझे मिल रहे हैं asset टेके machine आ रही है अब वह machine को अगर कुछ नहीं बेचला तो भी मैं वापस बेच सकता हूँ तो यह वाला option ज़्यादा बेहतर है ठीक है तो labor machine और बहुत सारी चोटी चीजें आपको दे� जब आपने कहा investment करना नहीं है इतनी सारी चीज़ें देखनी पड़ रही हैं तब जाके हम investment करते हैं अरे शार्क टेंग आपने देखा है वो paper पर यही कुछ लिखते रहते हैं कि भाई cash flow कितना जाने वाला है risk कितना है वो सब चीज़े analyze करते रहते हैं paper पर फिर जो है अपना लंबे समय में कितनी ग्रोथ होगी आज अगर मैं कोई मशीन खरीज लेता हूं तो वहीं डिफाइन करेंगे कि अगले दस साल में कैसा काम करूंगा या अगले पास साल में कितना काम करेंगे फर्स कीजिए कि हमारा यूट्यूब चैनल है तो इस पर यह नहीं यह डिजिटल क्योंकि ये जितना अच्छा होगा, जितना हेंडी होगा, उसके हिसाब से ही मेरे आने वाले 5-7 साल चलेंगे, अगर माल लो कि ये ऐसा है जिसमें हर एक स्लाइड मुझे लानी पड़ रही है, उसमें बहुत मुश्किल आती है, फोटो खीच-खीच केक-केक लानी पड़ती ह आपको तो आपको बहुत सो समझ के डिसीजन लेना पड़ेगा सेकंड पैसा बहुत लगता है ना यार मशीने है सस्ती तो आएंगी नहीं तो सस्ती नहीं आएंगी महंगी आएंगी बहुत ज़्यादा पैसा लगेगा तो ज़्यादा पैसा मतलब ज़्यादा टेंसन तो इसल कि कहीं भी invest करने से पहले 50 बार देखो, 50 बार पूछो और चोथा irreversible भाई सा मैंने अगर ये खरीद लियाना एक बार तो वापिस नहीं बिखेगा और बिखेगा तो second hand में जाएगा तो एक बार decision लेने के बाद बापिस buy back नहीं होगा इस चीज़ का तो इसलिए ये decision सबसे important कहा जाता है सबसे जरूरी कहा जाता है क्योंकि इसके अंदर पीछे मुढ़के देखने की option ही नहीं होता समझ मा आगया? चले तो पहली decision के बाद अब अपने सोच लिया कि मान लो हमें चाहिए 10 कोरोड रुपे हम लगाने वाले हैं प्रोजेक्ट नमबर A में अब सवाल उठता है कि सर ये 10 कोरोड रुपे आएंगे कहां से तो चलिए बात करते हैं दूसरे डिसीजन की जिसका नाम है financing decision मुझे लगा ही था कि इनसे होगी क्या है financing decision यानि कि पैसे को finance कहां से करना है पैसा लेके कहां से आना है अब देखो जब भी पैसा लाने की बात होती है तो दो ऑप्शन आपके पास है या आप class 11 chapter number 8 में business finance के अंदर already पढ़ चुके हो आना आपका chapter number 8 sources of business finance उसके अंदर पढ़ चुके हो सीम चीज है कुछ अलग नहीं तो जब हमें पैसा चाहिए तो दो ऑप्शन हमारे साम तो या तो आप debt ले लो या फिर क्या कर लो या फिर आप equity पे पैसा लो यानि कि आप जाओ बजार में बोले हैं हमारे पास company है हमारा ये project है हम नए share बजार में डालते हैं और shareholder से पैसा लेने दोनों के अपने फाइदे अपने नुकसान है अगर हम shareholder से पैसा तो मैं ज्यादा प्रॉफिट भी कमा लूँगा तो भी मालिक खर्च ज्यादा हो गए तो प्रॉफिट मेरे पास कम ही आएगा ठीक है लोन लेने का फाइदा क्या है कि देखो मालिक कोई भी नहीं है और दूसरा सबसे बड़ा फाइदा लोन लेने का यह होता है कि टेक्स जो है ना वह इंट्रेस्ट के बाद लगता है क्या लगता है इंट्रेस्ट के बाद इसको समझो इससे रिलेटेट न्यूमेरिकल इविट मतलब अर्निंग बिफोर इंट्रेस्ट एंड टेक्स यानि टेक्स और इंट्रेस्ट देने से पहले हमारे पास कितना पैसा है ठीक है उसके बाद कंपनी उसमें से देती है भाई इंट्रेस्ट मैंने कहीं लोल लिया है तो मैं उसमें से इंट्रेस्ट दे दूँगा टेक्स ठीक है यानि कि इंटरेस्ट आपने दे दिया देखो अर्निंग बिफॉर इंटरेस्ट एंड टेक्स है इसमें से इंटरेस्ट निकल है तो बचा क्या अर्निंग बिफॉर टेक्स ठीक है अब लगेगा टेक्स यहां से जो टेक्स की रेट होती है पर जो गिवन रेट होगी उस पर टेक्स लगाओगे जो बचेगा उसको बोलते हैं इएटी यानि कि अर्निंग आफ्टर और यहीं से एक important concept आपका निकलके आता है, वो लिख लो अभी से, ताकि आगे भी काम आजाएगा, उसको अपन कहते है EPS, यानि कि earning per share, मुश्किल नहीं है, देखो बहुत आसान है, फर्स कीजिए, एक simple सा example मैं आपको देता हूँ, कि बाई मेरी earning एक करोड रुप हुई है, 10 टोटल नंबर आफ शेयर्स जितने शेयर है उनके हिसाब से बाड़ दो तो इससे आजाएगा अर्निंग पर शेयर यानि कि एक शेयर को कितने पैसे मिल रहे हैं कमाई की अब सुनना इंपोर्टेंट कोनो डिसिजन की समझ जिए अगर मैं एक्विटी लेता हूं मान लो लोन यहां से पैसा खतम हो जाएगा, मेरे को ब्याज नहीं देना, तो मेरा पैसा बढ़ जाएगा, जब मुझे interest नहीं देना, तो मेरा profit बढ़ जाएगा, interest ठटेगा इन उसमें से, बट नुकसान क्या है, कि यहां पर मेरे number of share बढ़ जाएगे, number of shareholders भी बढ़ जाएगे, तो पैस कि यहां पर इंटरेस्ट आ जाए तो कंपनी को बड़ा दिमाग लगा कि यह कैलकुलेट करना पड़ता है कि सब एड दी एंड ऐसा क्या करें जिससे इपीएस बढ़ जाए मेन ऑब्जेक्टिव जो होता अपने पहले पढ़ लिया कि वेल्थ बढ़नी इस प्रतियों को बात करें। इस प्रतियों को बात करें। दोनों का बात करते हैं। दोनों का बात करते हैं। आपको एक रेशो बात करें। चैप्टर अपने उसके अंदर पड़ो जिसको बोलते हैं डेट एक्विटी रेशो ठीक है उस रेशो का नाम है क्या डेट टू एक्विटी रेशो यानि कि डेट अकॉन एक्विटी कितना लोन लेना है और कितना एक्विटी इसलिए नाइस का इडियल रेशो होता है जिसको बहुत सारे फैक्टर जिन पर डिपेंड करता है कि मैं कहीं ना कहीं लोन लूं या फिर एक्विटी पर जाओ एक तो अपने पढ़ लिया कि भाई मेजर फैक्टर जो है वह यह है कि इस फॉर्मले में पुट करके देखते हैं फायदा किससे हो रहा है इसके इलावा कुछ और भी फैक्टर्स होते हैं कौन-कौन से पहला अंसर कौस्ट कितनी लग रही है कि भाई अगर मैं लोन लिया पैसा डूप गया तो मैं तो मर जाओंगा बियाज भी देना पड़ेगा पैसा भी देना पड़ेगा तो अगर आपके प्रोजेक्ट में रिस्क जादा है तो आप बोलो के एक्विटी से ले लो उनको पैसा वापस नहीं चुकाना शेयर ओडर क्या तो equity से सबसे बड़ा फायदा यह है कि return नहीं करना पड़ता बढ़कि debt जो है उसको return करना पड़ता along with interest तो risk भी बहुत important factor है जिसको ध्यान में रखा जाता है next आपकी cash flow position कैसे है? yours आपकी cash flow position कैसे है? मतलब आपके पास पैसे का क्याल चल रहा है जाता है आता है चलता रहता है ठीक है तो इस प्रकर की company जो है ना वो loan ले लेगे पर अगर मेरी ये कैसी company जिसमें पैसा बहुत रुक के आता है, तो भाई मैं ब्याज नहीं लूँगा, मैं लोन नहीं लूँगा, क्योंकि मुझे इस पर जो interest देना पड़ेगा, वो फिर जेब से निकल जाए, तो अगर मेरी company के cash flow position अच्छी है, बहतर है, तो मैं क्या कि आप लोन क्यों ले रहे हो, फर्स कीज़े कि मुझे लोन लेना है for purchasing an asset, ठीक है, एक machine खरीदनी है, अब कमाल की बात सुनना होता क्या है, मालो इस machine की कीमत से 10 करोड रूप है, यह 10 करोड का आपको लोन लेना है, जहां से समझना, जब आप किसी बैंक के पास जाते हो, कि सा तो यह बैंक पता है क्या करता है वह आपको पैसा नहीं देगा वह बोलेगा ठीक है आप मशीन खरीद लो जब मशीन की पेमेंट करनी होगी तो हम एक दस करोड़ रुपए का चेक बना के इसको दे देगे यानि कि यह पैसा कभी आपके पास नहीं आया बस आपको इस पैसे स अब मैं नहीं खुश हूँ, मैं इसको उपयोग करना चाहता हूँ, लेकिन मैं इसे उपयोग करना चाहता हूँ। तो आप लोन नहीं लोगे, आप क्या बोलोगे, नह जबकि बैंक जो है अगर मैं लोन ले रहा हूं कई से तो वो तो मेरे से पूछ लेंगे बाई पैसा इसी जगह जाना चाहिए ठीक है तो ये क्या है कंट्रोल कंसिडरेशन नेक्स्ट फ्लोटेशन कॉस्ट मतलब चलती फिरती कॉस्ट ठीक है जैसे लोन लेने में चक्कर काटने पड़ते हैं ये पैसा वो पैसा इसको खिलाना उसको खिलाना ठीक है दो चार चक्कर पानी ठीक है ये सारे भी खर्चा होता है एक्विटी का खर् उसके बाद underwriter appoint करने हैं, उसके बाद share issue करने का छोटा-मोटा खर्चा, मतलब दोनों options में छोटे-मोटे खर्चे होते हैं, ठीक है, ऐसा तो है नहीं कि loan लेना, अगर better-better loan आ गया, बहुत सारे खर्चे होते हैं, वैसे equity shareholder से पैसा लेना तो ऐसे ही आ गया, ठीक है, एक की सम तो हमारी वेबसाइट से जब भी आप लेते हो तो आपको एक confirmation WhatsApp आएगा कि भाई आपका ये नाम है आपका हमने order ओके कर लिया तो उस particular message का हमें 35 पैसा देना पड़ता है किसको मेटा तो ये क्या है ये भी cost है तो चोटी-चोटी cost सब में include होती है तो company देखेगी कि भाई दोनों में से किसमें cost कम पड़ रही है comparatively दोनों में से जो सस्ता है उस पे tick लगाएगी ठीक है fixed operation cost आपको कितना पैसा चाहिए आपका business करने के लिए मतलब आपका एक तो हो गया working capital एक हो गया fixed capital अगर आपके business का fixed capital बहुत जादा है तो भाई equity ले लो क्योंकि ये पैसा तो रहेगा ही, मतलब simple सी बात है कि अगर मैं 30 लाग रुपे loan ले रहा हूँ जिसमें से 25 लाग रुपे asset खरीदने में जाएंगे, तो भाई मेरे पास तो चलत मैं 5 लाग ही बचा, तो कहीं न कहीं 2-4 तो मैं बोलूंगा कि ठीक है वै ये काम करो आप debt ले और last share market की condition कैसी है मतलब market में अभी downtrend आ रहा है uptrend आ रहा है यानि की bearish market है या bullish market है ठीक है या simple बाशा हम बोले तो recession है या फिर boom है ये देखना अगर बजार में सब कुछ बढ़िया चल रहा है share बजार उपर जा रहा है तो भाई आपके share आएंगे लोग खरीद लेंगे उसके बाद share के दाम automatically उस trend के साथ बढ़ते जाएंगे प्रेंड के साथ बढ़ जाते हैं कभी कोई शेरों के जाब ठीक है तो ठीक है आप एक्विटी की पर जा सकते हो पर मान लो कि आपने नए शेर इशू करें बजार कभी तूट रहा है जैसे यूद दो रहें कहीं पर कहीं लड़ाई हैं और एको मिसाइल गिरा रहा है किसी पर इनवेस्ट भी कर दिया तीसरा काम प्रॉफिट आया है प्रॉफिट का क्या खाने तो थर्ड डिसीजन आता है आपका डिविडेंट डिसीजन सिंपल बाचा में समझे तो रेसिडूल इंकम जो बचीवी इंकम है यानि कि जो प्रॉफिट आपका ब� 60 करोड रुपे हो सकता है कि मैंने कहा नहीं यार मेरी तो कंपनी ऐसी है जिसमें अभी और investment चाहिए ताकि अगले 5 सालों में और अच्छा profit हो, तो मैं उस profit में से और कहां से लूँगा पैसा, जो profit आया है उसी में से लूँगा न, तो मैंने उस profit में से ज़्यातर इंवेस्ट आइदर आप distribution करोगे उसका या फिर कुछ के पास रखोगे और कहीं और invest करोगे future projects में, ठीक है, so dividend decision concerned with the distribution of surplus fund, जो extra पैसा आपके पास है, उसको आप किस तरीके से बातोगे, ठीक है, अब company का profit काई लोगों में बढ़ता है, देखो profit हो गया company को, तो जो creditors को देना पड़ रहा और साथ मैं shareholder को पैसा लिया अब जान से समझो यह जो surplus profit है यह either will be divided to shareholder or will be kept aside as retainer नहीं या तो हम इसको shareholder को बार दिएगे या फिर खुद रख लेगे अब सिर कितना बाटे या कितना रखे यह financial manager कैसे decide करेगा तो चलो कि देखते हैं कि dividend decision को कैसी चीज़ों के हिसाब से तोला जाता है तो कौन से factors है पहला factor है आपकी कमाई अगर आपकी earning जादा हुई है तो जादा बात सिद्धि स्वाद भाई जितना पैसा होगा उतना ही बातेंगे तो company की earning अगर जादा है तो shareholder भी कहीं न कहीं इच्छा करेंगे न यार जादा पैसा मिलना चाहिए तो अगर company के earning पहले के मुकाबले जादा हुई है तो company चाहेगी और shareholder भी चाहेगे कि उनको जादा profit मिले और company के earning अगर पहले के मुकाबले कम हुई है तो shareholder भी चाहेगे कि पैसा कम मिलेगा तो भी वो चेंचे चूचू नहीं करेंगे next है आपके cash flow position कैसी है अगर आपके पास cash flow है पैसा है पड़ा हुआ company के share के दाम भी बढ़ जाएंगे, market में भी अच्छा impression जाएगा, impression बहुत ज़रूरी होता है, impression ही ज़रूरी होता है, मैं कहता हूँ share market में, क्योंकि आपने देखा होगा कि कभी किसी company के बारे में negative report आती है, तो इधम से share गिर जाता है, अब actual में वो report सही है, इसकी पुष्टी होने से पहले ही share गिर जाता है, तो impression बहुत ज़रूरी है, reputation बहुत ज़रूरी है, तो अगर आपकी casual position अच्छी है, आपके पास पैसा है, शेयरोल्डर को डिविडेंट बार दो ताकि उनके पास भी पैसा पहुंचा है अगर आपके पास कैश फ्लो नहीं है मतलब प्रॉफिट तो हो गया 100 करोड पर भाई रेगुलर पैसा नहीं आता है साल दो साल में एक बार पैसा आता है ताकि जब पैसा रुकेगा तब आप काम ले सको और थोड़ा बहुत शेयरोल्डर को बार तो यह देखना कि आपकी कंपनी की कैसे है आपकी ग्रोथ की क्या अप्पॉर्ट्यूनिटी है अगर आपको लगता है कि ग्रोथ की अप्पॉर्ट्यूनिटी है मतलब अभी तो बजार शुरू हुआ है अगले 5 सलों में बजार 100 गुना पड़ेगा तो आप क्या करोगे आप बोलोगे कि अगर growth की opportunities हैं तो आप retained earning को जादा focus करोगे यह भाई रख लो बाटो मत अभी हमें जरूरत है ठीक है और अगर आपको लगता है कि नहीं आ रही है त आप dividend को distribute कर दोगे बोलोगे कि जाओ ऐश करो अब देखो ऐश करो का मतलब यह नहीं है कि सब जनता में बाड़ दिया कमपनी के मालिक के पास भी तो उसके share है तो वो भी ऐशी कर रहा है अच्छे ठीक है एक होता है stability of dividend कुछ companies यह prefer करती है कि यार हमारा dividend जो है वो fix है इससे क्या होता है shareholder को उमीद भी रहती है और दूसरी चीज shareholder एक तो यह रहता है कि हाँ बई dividend आना है और ऐसा भी नहीं कि नहीं बहुत ज्यादा ही आएगा, उसको पहले से पता है कि यार कितना आना है, कंपनी थोड़ी से स्टेबलाइज हो जाती, इससे क्या है, एक अच्छी में जाती है, कि वहीं कम प्राफिट भी हुआ, तो भी हम दे रहे हैं, ऐसा नहीं कि कभी बहुत ज अब हमें कितना भी profit हो हमें एक रुपे का देंगे profit कम भी हुआ तब भी हमें एक रुपे का दे देंगे profit जादा हुआ तब भी हमें एक रुपे का देंगे ठीक है यह एक अच्छी policy है क्योंकि कम profit होने पे भी लोगों को पैसा मिल रहा है second यार देखो हमें ने 10% of profit बाढ़ देंगे भाई जितना हमें मालो 100 करोड का profit हुआ तो 10 करोड बाढ़ दो 1000 करोड का profit हुआ 100 करोड बाढ़ दो जिस प्रोफिट होगा उसका दस परसेंट हम बातेंगे बाकि नब्बे परसेंट रखें ठीक है यह पॉलिसी हो सकती है भी दस परसेंट तो मैंने नंबर लिया है 20 हो सकता है 50 हो सकता है 70 हो सकता है जिसना भी आप बातना चाहे ठीक है तीसरा उप्षण होता है कंपनी बोलती एक रुपए का डिविडेंट अगर सौ करोड़ तक का प्रॉफिट हुआ और अगर हमारा प्रॉफिट सौ करोड़ पार चला जाता है तो एक रुपे प्लस दो रुपे एडिशनल और दे देंगे अब आप ठीक है यह कंपनी पॉलिसी निकाल लेती है अब इंपोर्टेंट या फिर आप share खरीदने से पहले देख रहे हो कि पिछले 5 साल में company का profit क्या हुआ, उसने कितना बाटा, तो आपको idea लगता, बाकि ये सी कोई policy नहीं है जिसको चिला-चिला के बजार में बताया जाए. चौता factor इस पर depend करता है वो है expectation of shareholder या ही friends of shareholder, भाई मान लो मेरी company है जिसमें सारे नौजवान हैं, employee नहीं, जो shareholder है उनकी उमर 20-30 साल, 40 साल है, तो अभी उनके पार जिन्दगी है. तो वो इस बात को समझेंगे कि अभी growth हो रही है, अगले 5 साल बाद पैसा आएगा, वो इस बात को समझ जाएंगे, तो मेरा shareholder चाहता है कि long term में अच्छी growth मिले, तो मैं dividend कम दूँगा और return earning पैसा रखके नए-ने projects में पैसा invest करूँगा, मालो मेरा shareholder है 55 साल का व्यक्ति, मेजरली 60 साल का व्यक्ति अब मैं उसको बोलूं देखो भाईया हम 10 साल बाद पैसा बनाएंगे वह बोलेगा बावजी मेरे पास जिंदगी 5-7 साल की रह गई है मुश्किल से तुम 10 साल बाद बनाओगे तो मैं क्या करूंगा उसका यानी कि अगर आपके शेयरोल्डर की एज़ ग्रुप ज्यादा है तो कहीं ना कहीं आप बोलोगे कि भाई हमें आज पैसा दे दो और कि नहीं रिटेन अर्डिंग ज्यादा रखो हमें बली आज के तारीख में कम पैसा दे दो दो तो आपके शेयरों डेस्ट क्या जाता है इससे बहुत अधिक पैक पड़ता मान लो आपके 60 साल के शेयरों डेस्ट आप बोल नहीं हम दस साल बाद देंगे अभी तो डिविडेंट नहीं जाए तो शेयरों डेस्ट बेच देंगे तो शेयर जानी शेयर का प्राइस जो है वह नीचे आने की उम्मीद हो सकते क्योंकि मेजॉरिटी लोग 60 साल से ऊपर है तो वहीं होगा तैक्स क्या कहता है अभी अपने बात करा कि टेक्स के हिसाब से भी जो है पर शेयर ऊपर नीचे होता है लीगल रिस्टिक्शन अगर किसी प्रकार के हैं कि बाई लॉ ने कह रहा है भी प्रॉफिट का इतना इससे आपको बाटना है तो आपको फिर बाटना ही पड़ेगा कि बाई प्रॉफिट का मिनिमम 2% 5% आपको बाटना है कंपनी की रेपुटेशन पे भी डिपेंट करता है क अर्शत मेता का नाम खराब किया जा रहा था तो अर्शत मेता ने कहा वोले कोई दिक्कत नहीं है नाम खराब कर रहे हैं ना करने दो बता दो दुनिया को कि हमारे पास बहुत पैसा नहीं पैसे की बदली नहीं है बता दो तुम तो नाम फैला तो ऐसा तो कोंट्रैक्ट्रेस कुछ रिस्ट्रिक्शन दो सकती है जैसे आपने कहीं से लोन लिया है तो भाई वो company कह रही है या वो bank कह दी कि भाई पहले loan की payment करो फिर चुका ठीक है यह आपके कुछ projects हैं जिसमें आपने collaboration किया है कि भाई इतना पैसा हम देंगे तो अगर कोई contractual constraint यानि कि कोई फस रहे हो आप कहीं पे तो उसके एसाब से देखो फिर तो बाइब्स बजार तो गिरेगा अगर शोक मार्केट बूम पर है पॉसिबिलिटी है कि आपका शेयर आगे बढ़ जाए और ऊपर हो जाए तो दे दो सारा का साला पैसा ताकि शेयर के दाम बढ़ जाए अ समझ में आ गया, तो यह है वो तीन financial decision और उस से related उनके feature या फिर importance या फिर factor affecting, अब एक चीज़ याद रखना, ये तीनों क्या है, पैसे से related decision, अब इन तीनों को पकड़के, इन तीनों को एकटा करके, जो financial manager है वो क्या करता है, पैसे की planning करता है, इन तीनों को एकटा करके क्य आना चाहिए, रहना चाहिए, तो उसको हम बोलते हैं financial planning, यानि कि पहले से decide कर लेना, कितना चाहिए, कहां से चाहिए, कब चाहिए, और कितना बटेगा, businessman हमेशा future planning करता है, पहले से आगे के बारे बे सोच के रखता है, ताकि जितने भी losses हैं, उसको वो समहल ले, तो what is financial planning, deciding in advance, how much to spend, on what to spend, according to the funds at disposal, disposal मतलब जो पड़े हुए हमारे पास, ठीक है, तो पहले से decide करना कहां कर invest करना है कितना invest करना है जितना पैसा आपके पास है जितना आने वाला है उसके हिसाब से ठीक है the financial planning begins with the distribution of total capital requirements planning की शुरुवात होती है हम देखते हैं कि यार कितना पैसा हमारी जेम में है चाहिए तो ये देखो कहां से और आना है और कहां invest करना है मतलब ये तीनों जो अपने decision पड़े इन तीनों को इखटा करें जब financial manager सोचता है तो उसको हम बोलते है financial planning, अब क्यों जरूरी है सर, पहले से सोचना, अपने ट्रिनो डिसिन की बात कर ली, उसकी importance देख ली पर पहले से क्यों सोचना जरूरी है पर जब समय आया गए तब सोच ली नहीं, बिजनेस्मन बोलता है पहले से ही पैसे के बारे में सोच लो क्योंकि ये आपको optimum fund लाने में मदद करता है मतलब, ऐसा पैसा जिससे क्योंकि अभी rate जादा है और मुझे पैसे के urgent जरूबत है तो अगर आपने पहले से plan नहीं कर रखा तो आप नुकसान में fund लोगे तो अगर आपको optimum fund चाहिए मतलब बिना wastage के पैसा चाहिए तो आप क्या करोगे पहले से planning करके रखोगे ठीक है आपका सबसे perfect या appropriate capital structure define होगा मतलब कितना loan लेना है और कितना debt लेना है या पहले से पता करके रखोगे ना सही प्रोजेक्ट में पैसा लगाने में आपको मदद मिलेगी क्या होता है अगर मैंने पहले से प्लेन नहीं कर मेरे पास अच्छा प्रोजेक्ट है लगा दो और यह अच्छा दिख रहा है यहां भी लगा दो तो बिजनेसमैन इधर ओधर पैसा लगा देगा पर अगर मेरा पहले से गोल फिक्स है कि मुझे नहीं यही करना है तो क्या होगा मैं सही प्रोजेक्ट में पैसा लगा पाओ ठ तो जब वो पहले से ये सारी चीज़े प्लान करके रखते हैं तो उनको ज़्यादा प्रॉब्लिम नहीं जिलने पड़ते हैं वरना अपने क्या है आजकल के हमारे भी 22 साल के क्या करेंगे अरा 30,000 ता तंखा है मेरी पैसा आने से पर तो उड़ जाता है देखेंगे बाद की बाद में तो फिर वो उधारी में जिंदगी उनकी पूरी निकल जाती है आपको सही यूटलाइजेशन करने में मदद करता है पैसे को सही तरीके से इस्तमाल करने में आपकी मदद करता है ठीक है, बिजनिस के शौक और सर्प्राइज से आप बच जाते हैं, बई बिजनिस का एक सबसे बड़ी प्रॉब्लम है, कल क्या होना है, सोचते सब है, पर पता कोई नहीं कर सकता, तो कल मोदी जी आके बोल दे कि मित्रों आज से ये बंद हो जाएगा, वो बंद हो जाएगा अगर आप पहले से planning करके रखते हो तो आपको present और future के मिच में एक link बना देता है क्योंकि आपने पहले से decide कर रखा है सारी की सारी चीज़ों साथ सत्मे coordination increase करता है अब एक चीज़ समझो यह कहीं न कहीं आपको planning के features दिख रहे होंगे इसके अंदर यह planning की importance दिख रहे होगी थोड़ा सा business का तड़का लगा कर दिख रही है इसलिए मैंने जो definition दी थी न यह भी planning जैसी ही थी है हमारी जो एल्ट बुक है उसमें भी सिम प्लानिंग जैसे ही डेफिनेशन दिये है ताकि आप लिंक कर पाओ उस चीज को कि हम वहाँ प्लानिंग कर रहे थे यहां भी प्लानिंग ही कर रहे हैं बस फरक यह है कि वहाँ बिजनेस की प्लानिंग कर रहे थे यह बिजनेस के पैस पैसे की प्रॉपर प्लानिंग ठीक है कि capital structure, financial leverage और fixed or working capital ठीक है बहुत simple है यह same चीज़ को repeat करते हैं बहुत थोड़ी सी अलग भाषा के अंदर थोड़ी सी भाषा change हो रही है कैसे है देखते हैं देखो सबसे बहुत आता है capital structure यानि कि आपका जो total capital है वो कैसे divided है in short proportion of debt and equity in financing business operation debt और equity आपकी कितनी है formula simple है capital structure का मैंने पहले ही बताया था debt upon equity company ये ध्यान रखती है कि उसका capital structure कुछ ऐसा होना चाहिए कि उसके wealth of shareholder वो ही सेम चीज maximize हो ठीक है अब देखो दो बाते आती हैं यहाँ पर कि sir ये जो है ये अलग topic कैसे है अब ही अपने financing decision पढ़ा ठीक है अब अपन बढ़ रहे हैं capital structure जो की बता रहा है debt upon equity, तो financing decision क्या था, एक project को लेके decision, जबकि capital structure क्या है, overall मेरी company है, उसमें debt कितनी है, और equity कितनी है, और capital structure को तोड़के एक नाम दिया गया है, जिसको हम बोलते है, financial leverage या फिर trading on equity, मतलब कोई अलग नहीं है, मतलब approximately आपका same है, financial leverage या trading on equity, यानि कि हम कितना equity और कितना debt पे काम कर रहे हैं मतलब वो ही हुआ घुम पिरके कि हम अपनी capital का कितना हिस्सा equity में लेते हैं और कितना हिस्सा debt के format में लेते हैं अगर हमारा trading on equity है तो यानि कि अभी हम और loan ले सकते हैं profit हो जाएगा अगर negative है इसका मतलब नहीं बईया वापिस आ जाओ और equity raise करो अभी आप और debt नहीं ले सकते हैं तो कौन-कौन से factor हैं जो बताते हैं क्या equity और लेना चाहिए तो यह सारे फैक्टर है, सर यह कौन-कौन से है, यह वो ही है जो आपने पहले पढ़े थे फाइनेंसिंग के अंतर, दो-तीन अलग है, बाकी सब कुछ सेम है, देखो मैं रिपीट करा रहा हूँ सारे के सारे, ताकि आपको कोई छूटे ना, बट सब कुछ आपको सेम साही मिल यह भी अलग दिख रहा है। इसके एलावा मुझे जादा कुछ अलग नहीं दिख रहा है कि हम capital structure कैसे define करेंगे कि debt और equity लेना है, कितना debt और equity होना चाहिए company के अंदर। तो देखो, सबसे पहले cash flow position, आपकी cash flow कैसी है। सिम्वोई, अगर cash flow जादा है तो सरेट हम debt ले लें� अगर आपका cash flow position खराब है, आपके पार पैसा नहीं है, तो चुपचाप मालिकों के पास जाओ, बोलो पैसा दो, और चुपचाप थोड़े समय बैठाओ, हम तुमको अभी पैसा नहीं देंगे, ठीक है, second, interest coverage ratio, अब यह interest coverage ratio क्या होता है, देखो, accountancy तो है नहीं है, तो simple भा� नसलाख यह प्रॉफिट बिफॉर इंटरेस्ट टेक्स तो अपने एबीआइट देखा हरने बिफॉर इंटरेस्ट टेक्स इसमें से मुझे इंटरेस्ट देना है दो लाख किता देना है दो लाख तो मेरा इंटरेस्ट कवरीज रेशन हुआ पांच यानी कि मैं अपने इंटरेस्ट दिया जा सकता है इसका मतलब है कि हां अभी आपके पास एडिशनल पैसा है और लोन ले सकते हो अगर मेरे interest coverage ratio कम है, मानलो 10,00,000 का profit हुआ है, 10,00,000 ही मुझे interest में चुका है, तो भाईया पूरा पैसा मेरा interest में जा रहा है, और loan नहीं लूँगा, मेरे पार पैसा नहीं है, ठीक है, तो यह भी defend करता है कि आपका interest coverage ratio कैसा है, third, वो इसे मैं repeat नहीं करूँगा मैं, return on investment, investment में return कितना आ रहा है, ठीक है, अच्छा return है, interest दे सकते हो, तो variant good है, नहीं आ रहा है, तो फिर loan लो, cost of debt, loan लेने का कर्चा कितना आ रहा है, अगर लोन लेने का खर्चा बहुत आ रहा है, अभी लोन में लाई रहा है, बहुत चक्र काटने पड़ेंगे, तो ठीक है आप फिर एक पुटी ले सकते हो, टेक्स रेट कितनी है, अगर टेक्स रेट हाई है, मतलब सरकार ने बोला बाई, साल हम टेक्स जादा लगाएंगे, नहीं बचने वाला तो सरकार पैसा ले जाए इससे बेहतर है कि हम इंटरेस्ट पर पैसा दे देते ताकि हमारा टेक्स बच जाएगा ठीक है कॉस्ट ऑफ डेप्ट था कॉस्ट अफिक्विटी सेम वही है खर्चा कितना आ रहा है ठीक है तो ये दोनों पिछले पॉइंट में आपके जैसा काम जो दूसरी कंपनी कर रही है, वो क्या कर रही है? क्योंकि वो भी सारी planning-wailing करके बैठी होंगे. दो तरीके होते हैं बिजनेस में करने के, एक तो यह है कि आप raw से कर रहे हो, तो सीखते-सीखते करो, एक यह है कि कोई और ऐसा काम कर रहा है, तो उसको देख लो, उससे inspiration लेकर कर लो. तो अगर आप ऐसे company खोल रहे हो, जहां पहले से market में लोग है, तो आप पहले competitor का analyze करो, कि बई यह क्या कर रहा है, और एट दी एंड वो यहाँ पहुचा है, तो आप भी वैसा ही कर लो, आपकी बिना मेहनत के काम हो जाएगा, ठीक है, तो इसके इसाब साफा capital structure define होता है, ध्यान रखना capital structure मतलब पूरी company में कितना debt हो, कितना वो होगा, financing decision मतलब अभी इस project के लिए पैसा चाहिए, तो कहां से क्या factors होते हैं, कितना पैसा fixed capital के लिए चाहिए होता है, कौन-कौन से factors हैं, जो define करते हैं, fixed capital ज़्यादा चाहिए, कम चाहिए, ठीक है, एक working capital मतलब चलने वाला पैसा, देखें, तो fixed and working capital सबसे पहले है fixed capital, यानि कि पैसा distribute करना in long term asset fund project, fixed capital मतलब, लंबे समय में company कितना पैसा invest कर रही है, fixed capital को manage करना investment decision का ही एक part है, फिक्स कैपिटल को मैनेज करना investment decision का ही part है और देखो मैंने कक्षा के शुरुवात में बताया था कि फिक्स कैपिटल का investment capital budgeting कहलाता है और यही बात यहाँ पर आ गई कि long term में जब हम invest करते हैं तो उसको capital budgeting decision कहते हैं ठीक है अब कौन से फिक्स कैपिटल में लगाना है कौन सी machine आपका नेचर विजनेस कैसा है अगर आप सर्विस रिलेटिड बिजनेस कर रहे हो जैसे हम सर्विस रिलेटिड करते हैं ठीक है तो सर्विस रिलेटिड ब कम चाहिए ठीक है अभी जैसे हम जिस वेबसाइट के जरूर बेचना उसकी मेंटरेंस को इतनी आती है दो पांच जारों पर महीना तो हमारी वो फिक्स कैपिटल है बाकी सेल्स होगी तो प्रॉफिट होगा इसलिए नहीं होगी तो प्रॉफिट नहीं होगा तो फिक्स कैपिटल काफी की लो है अगर आप सर्विस बेज बिजनेस कर रहे हो तो आपको कम चाहिए होगी अगर आप मैनिफेक्ट्रिंग बेज बिजनेस कर रहे हो मशीने लगा लगो की काम कर रहे हो तो आपको जादा फि कम होगी, भाई एक ही कमरे में काम कर रहे हैं भाई साम, ठीक है, और ये गली-गली के लोगों को ही दे देते सामा, तो ज़्यादा fixed capital नहीं चाहे, अगर आपका scale of operation huge है, मतलब पूरे देश में काम चल रहा है, तो आपकी fixed capital requirement ज़्यादा होगी, कौन से production का इस्तमाल कर रहे हो लाइटी लेबर इंटेंसिव टेक्निक कैपिटल इंटेंसिव टेक्निक कहती है मशीनों का इस्तमाल करो और सामान बनाओ कैपिटल इंटेंसिव के अंदर पैसा बहुत लगता है तो फिक्स कैपिटल जादा लगेगी लेबर इंटेंसिव मतलब लेबर इंटेंसिव का इस्तमाल करो टेक्नोलॉजी कितने इस्तेमाल कर रहे हैं? अगर आप टेक्नोलॉजी ज्यादा इस्तेमाल करते हो, हर बार टेक्नोलॉजी के जाब से बदलाव करते हो, तो पैसा ज्यादा चाहिए, तो आपको फिक्स कैपिटल ज्यादा चाहिए, और अगर चलता है वाईया, हम तो वह प� हमने एक वेंटर पकड़ा हुआ है, जिसको हम माल्स के कहते हैं, मटीरियल देते हैं, कि बई यह आपको छापना है, वो उसको छाप के दे देता है, तो अगर हम जॉइंट वेंचर्स कर रहे हैं, कोलाबरेशन के तुरू काम कर रहे हैं, तो हमें पैसे, फिक्स कैपिटल की ज तो अगर आपकी diversity ज्यादा है तो fixed capital ज्यादा चाहिए diversity कम है तो fixed capital कम चाहिए समझ गए तो यह fixed capital देख लेते है भाई यह चलता पैसा working capital इसके बहुत सारा point है यार ठीक है आपको यह सारे point याद नहीं रखने होते तो जो आपको सही लगे इन में से proton कर देना ठीक है देखो working capital का simple भाषा मतलब होता है CA-CLO Current asset minus current liability. इससे आप कुछ नहीं समझ पाओगे. हाँ, इससे आप कुछ नहीं समझ पाओगे. Simple वाशा में, रोज मर्रा का जो day-to-day पैसा है ना, वो कितना चाहिए आप? Day-to-day पैसा आपको कितना चाहिए होता है? ठीक है? चलिए बात करते हैं. पहला, length of operating cycle. अगर आपकी operating cycle बड़ी है, और अगर आपकी operating cycle चोटी है, तो आपको day to day पैसा कम चाहिए होगा सत्परी operating cycle होती क्या है देखो बड़ा simple है operating cycle का मतलब जैसे मान लो मेरी कोई दुकान है जिसमें मैं raw material लाता हूँ एक जनवरी को ठीक है उससे सामान मनता है दस जनवरी तक सामान distributor तक पहुँचता है बीस जनवरी तक तो मेरी operating cycle हुई 1-1 यानि कि एक महिने में मेरा लगावा पैसा मेरे पास वापिस आ गया तो मुझे जो पैसे की ज़रूरत पड़ेगी ना वो एक महिने के अंतराल में पड़ेगी एक महिने तक machine को चालू रखने के लिए तो अगर मेरी operating cycle छोटी है, एक महिना, दो महिना है, तो मुझे ज़्यादा working capital नहीं चाहिए, क्योंकि जो पैसा मैंने invest किया, वो एक महिना बाद वापिस आई जाएगा, तो मैं उसी को use कर लूँगा बार बार, पर अगर मालूं एक ऐसा business है, जिसकी operating cycle एक साल है, आज पैसा जितनी जरूरत तो नहीं ले लो स्केल आफ ऑपरेशन कितना है चोटा बिजनिस कर रहे हो तो चोटी वर्किंग कैपिटल जादा बिजनिस कर रहे हो तो जाद बूम पीरियड है रिसेशन है जैसे अपने कह रहे हैं ना या दाम बढ़ने वाले तो अगर आपको लग रहा है कि आने वाले समय में दाम बढ़ने वाले तो आज आपको वर्किंग कैपिटल जादा चाहिए सामान खरीद के रख लो अगर आपको लग रहा है क्योंकि इस सामान आएगा भी, बिखेगा भी, नया भी लाना है, पुराना भी लाना है, तो गर्मियों के अंदर जब आपका सीजन है, तो आपकी working capital ज़्यादा होगी, जब आपका सीजन नहीं, या ओफ सीजन है, तो working capital आपको कम चाहिए, क्योंकि कम सामान बन रहा है, जैस 10-15 दिन के अंदर आप पूरी किताब पढ़ सकते हैं, तभी तो इनका नाम help book है, कि कम समय आपको बहुत अच्छा output दे जाती है, तो 10-15 दिन का time है तो ले लो, कोई दिक्कत नहीं है, ठीक है न, तो season अगर मेरो on है तो भाई मेरे को ज़्यादा पैसा चाहिए, नहीं है तो तो आपको तो काम करना पड़ेगा, आपने तो आगे उधार में बेच दिया, वो आगे उधार में बेचता रहेगा, आपके पास तो 3-4 महीने बाद पैसा आएगा, पर machine तो चलेगी, employees तो पैसा लेंगे, ठीक है, तो अगर आप उधार ज़्यादा देते हो, तो आपको working capital ज तो आपको ज्यादा working capital नहीं चाहिए होगी उल्टा credit receipt अगर आपको credit अच्छा मिलता है मतलब आगे से जहां से आपने सामान करे था वो उधार पर दे रहा है और वो मज़ा है खरीदने के लिए सामान पैसा ही नहीं चाहिए तो working capital कम चाहिए होगी पर अगर वो आपसे cash मांगता है तो फिर आपको working capital ज़यदा चाहिए होगी ठीक है ऐसे ही दो चार factor और है operational efficiency आप कितने efficient हो competition कैसा है, competition जादा है तो आपको भी competition के साथ चलना पड़ेगा, inflation महंगाई कितनी है महंगाई जादा है तो जादा पैसा चाहिए, कम है तो कम पैसा चाहिए capital की requirement कितनी है और आपकी growth कितनी है, same way factors है इन्हें सारे factors आपको करने की वैसे भी जरूरत वो आप देख लो और उनको समझ लो यहाँ पर हो जाता है, समाप्त यह हमारी हेल्प बुक अगर अब तक आपने लिए है मैं नहीं लिए है तो मैं आपको जेनुरली दिल से भाई वाली एडवाइस देता हूं जाकर ले लेना क्योंकि इनके अंदर जो चीज़ें हमने पुट आउन की हैं वो सारी आपकी मदद करने को है चाहे वो इजी एक तो आपको माथा पच्ची वाली explanation देखने की जरूरत नहीं है और previous year question paper and at the end आपके कुछ fun facts भी हमने यहाँ पर डाले हैं यानि कि कुछ आपके how to write answer किसके related page है और how to solve case study इनको detail में समझाया properly कि कैसे करनी है और last में यह हमारे crossword puzzle हैं जो आपके revision करने हैं बहुत मदद करेंगे ठीक है तो एक genuine advice है जाके इसको लेने ना और अगर cash on delivery चाहिए तो आप Amazon से ले सकते हैं ठीक है दूसरी बात बहुत important इस चीज़ को याद रखना है कि अब आपका paper नज़री का रहा है तो अब आपको अपनी तैयारी को next gear में लगाना ही पड़ेगा चाहे कुछ भी हो जाए you have to add on a gear और इसके लिए अपना schedule बना लो proper तरीके से ताकि पढ़ाई करने मजाए हमारे gear change हो चुके हैं अब बारी आपकी है