नमस्कार दोस्तों मैं हूं अभिषेक और आज मैं बात करने जा रहा हूं लेखक मिथिलेश्वर द्वारा लिखी गई कहानी जिसका शीर्षक है हरिहर काका इस कहानी में पारिवारिक संबंधों में व्याप्त मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति को उजागर किया गया है साथ ही यह कहानी बदलते पारिवारिक मूल्य को भी स्पष्ट करती है तो चलिए दोस्तों शुरू से इस कहानी को समझने की कोशिश करते हैं हरिहर काका उसी ं में रहते हैं जिसमें खक रहता है हरिहर काका चार भाई हैं हरिहर काका को छो ड़कर सभी का परिवार है हरिहर काका के दो विवाह हुए थे लेकिन उनकी दोनों पत्नियां लंबे समय तक उनका साथ नहीं दे सकी और उनकी दोनों पत्नियों की मृत्यु हो गई हरिहर काका नी संतान रह गए वे अब अपने भाइयों के साथ रहते हैं उनके परिवार में 60 बीघे खेती योग्य जमीन है यदि इसे विभाजित किया जाए तो हरिहर काका के हिस्से में 15 बीघे जमीन आती है उनकी कोई संतान ना होने के कारण उनके भाइयों की नजर उनकी जमीन पर है हरिहर काका और लेखक पड़ोसी थे लेखक का हरिहर काका से बहुत घनिष्ट संबंध था हरिहर काका ने लेखक को बहुत अपनेपन के साथ प्यार दिया विशेष रूप से तब जब लेखक बहुत छोटा था इसका एक कारण यह भी है कि हरिहर काका की अपनी कोई संतान नहीं थी और वे अपना सारा प्यार लेखक पर न्यौछावर कर देते थे सिर्फ यही नहीं वे अपने मन की अधिकतर बातें लेखक के साथ बांटा करते थे कुछ समय से हरिहर काका ने अपनी परेशानियां और अपनी निजी बातें लेखक को भी बताना कम कर दिया था इससे लेखक की चिंता बढ़ गई लेखक कोई ऐसा कार्य करना चाहता था जिससे हरिहर काका पहले की तरह ही उससे अपनी सभी निजी बातों को साझा करें लेखक को यह बात पता चली कि हरिहर काका के परिवार और धार्मिक समुदाय ने उन्हें बहुत दुख दिए थे जिससे वे परेशान रहने लगे थे और इस परेशानी का अंत उनके मौन के रूप में हुआ अब वे किसी से कोई बात नहीं करते वे चुपचाप बैठे रहते थे गांव में में ठाकुरबारी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है यह एक पूजा स्थल है इसकी स्थापना के विषय में ठीक-ठीक जानकारी किसी को नहीं है लेकिन हां इतना जरूर पता है कि एक संत यहां आकर रहने लगे थे लोगों ने मिलकर चंदा जमा किया और यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया गांव वालों के लिए ठाकुरबारी का इतना महत्व है कि जब भी कोई ग्रामीण नया कार्य आरंभ करने की बात सोचता था तो वह ठाकुरबारी में आकर मन्नत मांगता क्योंकि ठाकुरबारी पर सबको बहुत विश्वास था ठाकुरबारी का संचालन एक धार्मिक सभा द्वारा किया जाता है इसके पास बहुत जमीन जायदाद है यहां ज्यादातर समय ईश्वर का भजन कीर्तन चलता रहता है जब कभी गांव में कोई बड़ी आपदा आती है तो ठाकुरबारी के द्वार सभी के लिए खोल दिए जाते हैं लेकिन लेखक की राय ठाकुरबारी के विषय में बहुत अच्छी नहीं है लेखक का कहना है कि यहां रहने वाले साधु संत कुछ करते धरते नहीं हैं वे लोग ठाकुर जी को भोग लगाने के नाम पर अच्छा-अच्छा भोजन करते हैं इसके अतिरिक्त वे लोगों को अपनी बातों से मूर्ख बनाते हैं जिनमें लोग फंस जाते हैं शुरू शुरू में तो हरिहर काका का जीवन शांतिपूर्वक चलता रहा लेकिन कुछ सालों के बाद उनके परिवार के सदस्य उनसे दूरी बनाने लगे उनके मान सम्मान में भी कमी आने लगी घर में बचा हुआ भोजन उन्हें खाने को दिया जाता था यदि वे बीमार हो जाते थे तो उनकी सेवा करने के लिए कोई नहीं आता था यहां तक कि उस समय उन्हें पानी पीने के भी लाले पड़ जाते थे ऐसे में उन्हें अपनी दोनों पत्नियों की बहुत याद आती थी अचानक उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनके परिवार के प्रति मोह को समाप्त कर दिया एक बार उनके भतीजे का एक मित्र शहर से गांव में आया उसकी खूब खातिरदारी की गई उसके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया गया लेकिन हरिहर काका को सूखा भोजन ही दिया गया हरिहर काका इस घटना से इतने दुखी हुए कि उन्होंने भोजन की थाली को पटक दिया और घर छोड़कर निकल गए अब उन्हें परिवार से कोई मोह नहीं था अन्य ग्रामीणों की तरह हरिहर काका भी समय मिलने पर ठाकुरबारी जाया करते थे ठाकुरबारी के महंत इस बात को जानते थे कि हरिहर काका की अपनी कोई संतान नहीं है जब महंत को हरिहर काका के गुस्से के विषय में पता चला तो वे हरिहर काका को ठाकुरबारी में ले गए फिर महंत ने उन्हें समझाया कि उन्हें मोह माया के फेर में ना पढकर अपने हिस्से की जमीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और यह भौतिक जगत भी सही रहेगा इसी बीच हरिहर काका की खूब खातिरदारी की गई उन्हें तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए उनका पूरा मान सम्मान किया गया फिर महंत ने उन्हें समझाया कि यदि वे अपनी जायदाद को ठाकुरबारी के नाम करेंगे तो इससे लोगों के बीच उनका मान सम्मान बढ़ जाएगा हरिहर काका जब घर छोड़कर गए थे तो उनके भाइयों को इस बात का पता नहीं चला था जब वे लोग खलिहान से लौटे तो उन्हें सारी बातें पता चली उन्हें यह भी पता चला कि ठाकुरबारी में हरिहर काका को लालच दिए गए हैं उन्हें लगा कि यदि हरि हर काका ठाकुरबारी के महंतों की बातों में आ गए तो उनके हाथ से अपने भाई की जायदाद चली जाएगी भाइयों ने अपनी अपनी पत्नियों को इस बात के लिए बहुत बुरा भला कहा कि उनके कारण उनके बड़े भाई घर छोड़कर चले गए हैं इसके बाद वे लोग ठाकुरबारी गए और अपने भाई से वापस घर चलने की विनती की बड़ी मु मुश्किल से हरिहर काका घर जाने को राजी हुए घर पहुंचते ही घर के सभी सदस्यों ने अपने व्यवहार के लिए उनसे क्षमा मांगी और उनकी खूब सेवा की जिससे हरिहर काका घर ना छोड़े इतनी खातिरदारी देखकर हरिहर काका को भी लगा कि अपने तो आखिर अपने ही होते हैं उनका दिल घर के सदस्यों के लिए पसीज गया हरिहर काका द्वारा घर छोड़कर एक रात के लिए ठाकुरबारी में रहने और उनके भाइयों द्वारा विनती करने पर वापस वास घर जाने वाली बातें गांव में फैल चुकी थी इसी बीच लोगों ने तरह-तरह की बातें भी शुरू कर दी थी कि हरिहर काका को अपनी सारी जायदाद ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए इससे उनका नाम अमर हो जाएगा कुछ लोगों की राय इससे अलग थी वे सोचते थे कि हरिहर काका को अपने हिस्से की जायदाद अपने भाइयों के ही नाम कर देनी चाहिए एक दिन हरिहर काका ने अपने मन की उलझन लेखक को बताई लेखक को लगा कि हरिहर काका उलझन के कारण सही फैसला नहीं कर पा रहे हैं इसके बाद बहुत सोच विचार के बाद फैसला हुआ कि हरिहर काका को अपने जीवित रहते हुए किसी को भी अपनी जायदाद का मालिक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि इससे पहले जिन्होंने भी ऐसा किया था उनका जीवन नर्क समान हो गया था इसी बीच एक दिन ठाकुरबारी के महंत ने हरिहर काका का अपहरण कर लिया था जिससे उनके हिस्से की जायदाद को ठाकुरबारी के नाम लिखवाया जा सके महंत और उनके आदमियों ने हरिहर काका के अंगूठे के निशान ले लिए ताकि उनकी सारी जायदाद ठाकुरबारी की हो जाए हरिहर काका अब तक महंत का बहुत सम्मान करते थे लेकिन उसकी इस हरकत को देखकर हरिहर काका को महंत से घृणा हो गई इसी बीच हरिहर काका के भाइयों ने पुलिस का प्रबंध किया और महंत की कैद से हरिहर काका को छुड़वा लिया अब हरिहर काका के सोचने का नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था उन्हें लगने लगा कि ना तो ठाकुरबारी के महंत और ना ही उनके सगे भाई कोई भी उनका सम्मान नहीं करता है वे तो केवल उनसे उनकी जायदाद हड़पना चाहते हैं अब उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे अपनी जमीन किसी के नाम नहीं करेंगे हरिहर काका के भाइयों को भी हरिहर काका के बदले हुए व्यवहार का अनुमान हो गया था वे समझ चुके थे कि अब हरियर काका अपनी जायदाद उनके नाम नहीं लिखेंगे एक दिन उनके भाइयों ने भी व वही तरीका अपनाया जो ठाकुरबारी के महंत ने उनकी जायदाद अपने नाम करने के लिए अपनाया था भाइयों ने हरियर काका के साथ मारपीट की और जमीन को अपने नाम लिखवाने की कोशिश की जब हरिहर काका जोर से चीखे तो लोगों ने उनकी चीख सुनकर उन्हें आजाद कराया अब हरिहर काका का अपने भाइयों से पूरी तरह मोह भंग हो चुका था फिर हरिहर काका को पुलिस सुरक्षा दे दी गई और वे अपने परिवार से अलग होकर रहने लगे अब पूरे गांव में हरिहर काका की ही चर्चा थी अब कोई उनकी जमीन को उनके भाइयों को देने के बारे में विचार प्रकट करता था तो कोई उस जमीन को ठाकुरबारी को दान में देने पर जोर देता था इस प्रकार पूरे गांव में केवल यही चर्चा चलती रहती थी अब तक हरिहर काका सब कुछ समझ चुके थे इन घटनाओं का उन पर इतना गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा था कि वे मौन रहने लगे वे किसी से कुछ भी नहीं कहते थे केवल खुली आंखों से आकाश को निहारते रहते थे अब उन्होंने एक नौकर रख लिया था जो उनका ख्याल रखता था पुलिस के जवान भी हरिहर काका के खर्च पर मौज उड़ा रहे थे तो दोस्तों इस वीडियो को लाइक और शेयर करके आप हमारा आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और हमारे चैनल पर पहली बार आए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद