एक सेकंड यार, आज की इस फीडियो में हम जो केस डिस्कस करने वाले हैं, पहले उसकी इंपोर्टेंस तो समझ लेते हैं, ठीक है? लाइट्स फ्लीज, तो जब भी कोई बच्चा एक लॉग कॉलेज एंटर करता है, उसकी टीचर्स और उसके सीनियर्स उसे केस रुनदा भारती केस के बारे में जरूर बताते हैं, और कहते हैं, सुना हैं इस केस के बारे में, जो है इंडिया का लॉंगेस चलने वाला केस, 68 क्या सही है, क्या गलत है, ये समझने के लिए 70 से ज्यादा कंट्रीज की कंस्टिटूशन को कंपेर किया गया था और इसका जज्जमेंट पता है कितना लंबा है? 703 पेजेज का और सबसे ज़रूरी बात ये है कि इंडियन कंस्टिटूशन के सबसे इंपोर्टन केसेज में से एक है केस रिनदभाती वर्से स्टेट अफ केलला का केस जिसे हम डिसकस करेंगे आज की इस वीडियो में चली आज के इन वीडियो शुरू करते हैं तो चली इस केस का बैकग्राउंड समझ लेते हैं देखिए independence मिलने के बाद सारे states अपने अपने area के social और economic conditions को ठीक करने में जुड़ जाते हैं और constitution आने के बाद जब citizens को fundamental rights मिलते हैं तब उन्हें ये realize होता है कि equality उनका एक right है उनका हक है देखिए तब के time पे जो system था वो ये था कि resources और means of production सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों के पास था और धीरे धीरे ये realize होने लगा कि जो concentration of wealth है ये सही नहीं है और इसी को change करने के लिए सारे states अपने existing laws अपने system को change करने में लग जाते हैं और ऐसा ही कुछ किया केरला के state government ने भी केरला के state government ने अपनी state के social और economic condition को ठीक करने के लिए जैसे दमिंदारी system, land ownership, tenancy laws इन सब को ठीक करने के लिए केरला land reforms act 1963 को पास किया अब ये जो land reform act थे ये restrictions लगाते थे कि कौन कितना land own कर सकता है basically ये citizens के property rights को restrict करते थे तो इस act को use करते हुए state government केला के कसौरगर district के एदनीर मट का land acquire कर लेती है government की stake over के कारण मट की income खत्म हो जाती है और उन्हें सारे कामकाज सभालने में दिक्कत होने लगती है तो इस land acquisition को एदनीर मट के head challenge करते हैं जो थे केस अनंद भारती और इनकी इस केस को सुप्रीम कोर्ट में रिप्रेजन्ट किसने किया नाना भाई पालकीवाला ने देखिए जो लान्ड रिफॉर्म आट्स ये सिटिजन के राइट टू प्रॉपर्टी पर रिस्ट्रिक्शन्स इंपोस करते थे इसलिए मार्च 1970 को केस अन्द भारती में इन लान्ड रिफॉर्म आट्स को चालेंज और अपोस करते वे सुप्रीम कोर्ट में एक रिट प्रेटिशन फाइल की और ये कहा कि ये जो लान्ड रिफॉर्म आट्स है कि मेरे फंडमेंटल रेट्स जैसे आर्टिकल 14, 19, 1, F article 25 और article 26 को violate करते हैं उनका कहना ये था कि एक land को own करना और उसे manage करना एक citizen का fundamental right होता है और इन fundamental rights को protection मिलनी चाहिए अच्छा उस time पे supreme court पे ऐसे और कई सारे cases चल रहे थे जैसे bank nationalization का case हो गया Madhavrao Sindhya का case या फिर Golakhnath का case और इन सारे cases में आपको clearly ये दिखेगा कि इंडिया की दो बहुत strong parties power struggle कर रही थी ये दो पार्टीज कौन-कौन सी है? एक होगी आपकी पारलेमेंट और दूसरी थी आपकी सुप्रीम कोड.
तो एक हाथ में पारलेमेंट का कहना क्या था? कि आर्टिकल 368 के थूँ हमें ये powers मिली हुई है कि हम Constitution को जैसा चाहे वैसा amend कर सकते हैं. हमारे पास unlimited powers है. पर पारलेमेंट के statement से सुप्रीम कोड agree नहीं करती थी. तभी तो गोलकनाथ वसे स्टेट अफ पंजाब की case में जिसमें सुप्रीम कोड की 11 judges की bench constitute की गई थी.
उनकी सामने जब ये question आया कि क्या Parliament के बास इतनी सारी powers है कि वो जैसे जाहे वैसे Constitution को amend कर सकते हैं, Fundamental Rights को भी change कर सकते हैं, तब इस case में इस question को answer करते हुए Supreme Court ने Parliament की Constitution को amend करने की powers पर काफी सारी restrictions impose की. इसकी बात Parliament क्या करती है? अपने ओपर ये लगी हुए restrictions को हटाने के लिए वो 24th, 25th और 29th Amendment आया है.
आक्ट लेकर आती है ताकि पारलिमेंट को उसकी पावर्स वापस मिल सके चलिए अब इन तीन अमेंडमेंट को भी समझ लेते हैं तो 24th Amendment Act पारलिमेंट को Fundamental Rights को अमेंड करने की पावर्स देती है कहती है कि पारलिमेंट has power to amend any provision of the Constitution किसी भी provision को amend कर सकती है पारलिमेंट इसके बाद है 25th Constitutional Amendment Act इसने कहा कि right to property को curtail किया जा सकता है राइट टू प्रॉपर्टी पर रिस्टिक्शन्स लग सकती है और दवर्मिन्ट पबलिक यूज़ के लिए प्राइविट प्रॉपर्टी को अक्वायर कर सकती है और इसके लिए जो कंपेंसेशन देना होगा वो पारलिमेंट डिसा नेक्स्ट है 29th Amendment Act, तो इस Amendment ने Land Reform Acts को 9th Schedule में डाल दिया, अब 9th Schedule में ऐसी क्या खास बात है, दिखि 9th Schedule में जो भी Laws जाते हैं, उन पर Question नहीं उठाए जा सकते, Court में उन Laws का Review नहीं हो सकता, तो Land Reform Acts को किसी भी Type की Questioning से Immunity मिल गई 9th Schedule में जाने के बाद, तो Case in the Bharti Case में Land Reform Act के साथ साथ, इन तीन constitutional amendment को भी challenge किया गया था तो basically इस case में बहुत सारे मुद्दे उठाए गये थे पर इस case का main question ये था कि सबसे पहले क्या parliament fundamental rights को amend कर सकती है और दूसरा कि अगर पहले question का answer हाँ है तो parliament के पास जो powers है उसकी extent किती रहेगी constitution के वो कौन-कौन से provisions है जो parliament amend कर सकती है ये दो main questions थे इस case के तो चलिए अब हम एक-एक करके इस case के जो arguments थे petitioner side से और respondent side से उसे discuss करते हैं सबसे पहले हम discuss करते हैं petitioner side के argument तो petitioners का सबसे पहला point यह था कि constitution में जो article 368 है जो parliament को amendment करने की power देता है यह एक absolute power नहीं है बलकि उसकी opposite यह जो power है यह limited है restrictive है तो parliament अपने मन से जो चाहे वो provision change नहीं कर सकता है क्योंकि यह power limited है restrictive है, उनका दूसरा point ये था कि constitution में जो rights दिये गए हैं वो citizens की freedom को protect करने के लिए दिये गए हैं, जैसे article 19-1-F जो right to property की बात करता है पर petitioners का कहना ये था कि 24th और 25th amendment act जिससे article 31-C insert किया गया था इस citizens की fundamental right पर restrictions impose करता है, उन्हें curtail करता है, जो की एक गलत act है, वही respondents का कि Parliament के पास Constitution को Amend करने की भरपूर Power है Unlimited और Absolute Powers है उनकी हिसाब से हर State को अपनी Social और Economic Conditions बेटर करनी होती है ऐसे में Parliament की Powers पर Restrictions Imposed नहीं करनी चाहिए क्योंकि अगर उनकी Powers को Restrict किया गया तो ऐसे में Time के साथ साथ वो Society की Needs को कभी Fulfill कर ही नहीं पाएंगे Respondents के हिसाब से Parliament के पास कुछ fundamental rights जैसे freedom of speech and expression, right to form association, freedom of religion इन कुछ fundamental rights पर restrictions लगाने की power होती है क्या आपको पता है कि इस case में Supreme Court की अब तक की सबसे लंबी bench, 13 judges की bench constitute की गई थी तो चलिए इस case की judgment को भी देख लेते हैं तो इस case का judgment आया था 7-6 की majority से जिसमें Supreme Court नी इससे पहले वाले, Kolaknath वसे State of Punjab की case में इसमें ये कहा गया था कि Parliament fundamental rights को amend नहीं कर सकती इस जजमेंट को गलत ठहराया, इसे ओवरूल किया, इसके साथ ही 24th Amendment Act जो चालेंज हुआ था, जिसमें ये कहा गया था कि पारलिमेंट चाहे तो Constitution के किसी भी provision को amend कर सकता है, इसे बैलेट कहा, इसके साथ ही Supreme Court ने ये कहा कि Article 368 के अंदर पारलिमेंट के पास ये पूरी पाव कि पारलेमेंट के पास जो powers है उसकी extend क्या रहीगी तो इसे answer करते वे Supreme Court ने बहुत अच्छी तरीके से ये कहा कि भले ही पारलेमेंट के पास ये पूरी power है कि वो Constitution के provisions को amend कर सकती है पर अपनी amending powers को वो इस तरीके से इस्तमाल कर सकती है जिससे कि Constitution के जो basic features है जो essential features है उसके साथ वो interfere ना करे और इसे ही कहते हैं basic structure doctrine बेसिक स्ट्रक्चर पर और जानकारी के लिए आप मेरे इस डिटेल्ड वीडियो को भी देख सकते हैं, जिसमें मैंने बहुत अच्छी तरीके से इस कंसेप्ट को एक्स्प्लेइन किया है। तो 24th April 1973 को इस Landmark Judgment ने Basic Structure Doctrine को Introduce किया इस case में ऐसे कोई exhaustive list नहीं दी गई थी कि सिर्फ यही कुछ features होंगे जो basic elements होंगे पर एक indicative list दी गई कि यह जो सारे features है यह basic features के लिए qualify करेंगे साती सात यह कहा गया कि आगे आने वाले time पर और भी features इन list में add up हो सकते हैं पर कोई element essential element है या नहीं बेसिक फीचर है या नहीं, ये केस बाई केस बेसिस पर कोड डिसाइड करेगी. तो ये केस इतना important इसलिए है क्योंकि इस केस में सुप्रीम कोट ने अपनी creativity यूज़ करते हुए एक नया doctrine, basic structure doctrine को introduce किया, जिसके थूँ उन्होंने एक हाथ में पारलिमेंट को unlimited और absolute powers तो दी, पर साथी साथ ये भी कहा कि तुम basic features के साथ interfere नहीं कर सकते. इस एक केस ने आने वाले सालों के लिए इंडिया की democracy को safeguard किया. तो ये था आज का वीडियो केशनन्द भारती वर्से स्टेट आफ केरला के उपर मैं उमीद करती हूँ कि आज की इस वीडियो में आपको कुछ नया सीखने को कुछ इंपोर्टन सीखने को मिला हो अगर हाँ तो इस वीडियो को लाइक करे और शेयर करे ऐसी और जानकारी के लिए आप मेरे चानल को सब्सक्राइब कर सकते हैं साथ ही मेरे इंस्टाग्राम पेज को भी फॉलो कर सकते हैं जहांपर हम ऐसी और कई सारे इंटराक्टिव कंटेंट लाते रहते हैं उमीद करती हूँ कि आज का ये वीडियो आपको पसंद आया हो that's it for now see you in the next class बाइ बाइ