प्राचीन साधनाओं में समाधि और उसके विभिन्न स्तरों की महत्ता
शैव दर्शन और समाधि की अवस्थाएँ
- समाधि की परिभाषा: समाधि वह अवस्था जब चित्त स्थिर हो जाता है और स्वयं में स्थित हो जाता है।
- जगदानंद समाधि: इसे अंतिम समाधि कहते हैं क्योंकि इसमें व्यक्ति विश्व को देखता है और महसूस करता है कि 'यह भी मैं हूँ, यह विश्व भी मैं हूँ'।
- समाधि का अंतिम स्तर क्योंकि इसके बाद शिव तत्व (जिसमें कोई अनुभव नहीं है) में पहुँचने की संभावना नहीं है।
- शिव और सदाशिव:
- शिव सर्वोच्च तत्व हैं, जिसमें संसार का कोई अनुभव नहीं होता। इसमें केवल अहं का भाव होता है, कोई इदम नहीं होता।
- सदाशिव अवस्था, जहाँ पर व्यक्ति संसार का अनुभव कर सकता है और उसकी अनुभूति करता है।
मानव शरीर में सदाशिव अवस्था की महत्ता
- मानव शरीर में जगदानंद समाधि की प्राप्ति सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य हो सकता है।
- इसमें व्यक्ति तन मात्राओं (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और मन-बुद्धि-अहंकार) के द्वारा संसार को अपने रूप में अनुभव करता है।
- शिव तत्व की अनुभूति: शिव अवस्था में किसी भी अनुभव को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि सभी विपरीत भाव समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न और उत्तर सत्र
- व्यक्ति केवल सदाशिव अवस्था तक ही पहुँच सकता है, शिव तत्व को अनुभव करना संभव है लेकिन ठहरना नहीं।
- शिव तत्व का अनुभव निरंतर रहता है, लेकिन उसे परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि वहाँ कोई दूसरा नहीं है।
- जगत अनुभव में वास्तविक या अवास्तविक दोनों हो सकता है, यह प्रमाता (द्रष्टा) के रूप पर निर्भर करता है।
- विज्ञान कल प्रमाता: जगत मिथ्या है।
- ईश्वर प्रमाता: जगत ना वास्तविक है ना अवास्तविक है, इसका अनुभव 'अहम इदम' में होता है।
- सदाशिव प्रमाता: जगत खुद से उत्पन्न होता है, प्रश्न पूछने वाला और उत्तर देने वाला दोनों 'मैं' ही हूँ।
समाधि के अनुभव का पुनः प्राप्ति
- वर्तमान क्षण में रहना महत्वपूर्ण है, विचारों को आने और जाने देना है।
- विचारों को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें स्वीकारना चाहिए।
- समाधि अवस्था में विचार और अनुभव आकाश में बादलों के समान आते और जाते रहते हैं।
सांकेतिक भजन
- शिव तत्व की अनुभूति का बोध कराने के लिए भजन का गान किया गया।
निष्कर्ष
- हमारी आयु या मृत्यु मात्र एक विचार है।
- अंतत: हमें अपने स्वभाव में स्थित होकर समाधि प्राप्त करनी होती है।
- शिव तत्व हमेशा हमारे भीतर स्थित है।
अंतिम मंत्र: ओम नमः शिवाय, ओम चैतन्य नमः