प्रणाम गुरुजी एक एक प्रश्न पूछ रही थी एंड काफी आज पहले तो थैंक यू सो मच आज का बहुत ही हमेशा की तरह इंटरेस्टिंग एंड पावरफुल सेशन था सो थैंक यू भगवान जी फॉर दैट मेरा प्रश्न यह है कि आपने हमेशा बोला है कि शैव दर्शन में एटलीस्ट जगदानंद समाधि सर्वश्रेष्ठ होती है सबसे परम समाधि होती है पर आपने आज यह भी बोला कि जगदानंद समाधि सदा शिव प्रमाता में होती है क्योंकि शिव प्रमाता में जगत है ही नहीं लेकिन शिव सर्वोच्च तत्व है तो इसका मतलब कि शैव दर्शन में योगी अपने आप को शिव भाव में नहीं रखना चाहता अपने आप को सदाशिव भाव में ही रखना चाहता है या फिर जीते जी शिव भाव में अपने आप को रखना पॉसिबल ही नहीं है मतलब वाई इ जगदानंद और सदाशिव स्टेट सपोज टू बी वो सर्वोच्च कैसे है हम बहुत अच्छा प्रश्न है आपका तो आप यह देखें कि अगर हम समाधि की बात करें तो समाधि निश्चित रूप से एक ऐसी अवस्था है हमारे चित्त की ऐसी अवस्था है जहां पर हम स्वयं में स्थित हो जाते हैं उसी को हम समाधि कहते हैं और जगदानंद को अंतिम समाधि इसलिए कहा गया क्योंकि वहां पर आप इस विश्व को देखते हैं और आपको कुछ अन्य अनुभव नहीं होता आपका अनुभव यह होता है कि यह भी मैं हूं यह विश्व भी मैं हूं तो आप विश्व को एकएक करके सारी तन मात्राओं के द्वारा पांच तन मात्राएं शब्द स्पर्श रूप रस गंध और मन बुद्धि अहंकार इन आठों के द्वारा आप रीइंस्टेट करते हैं कि यह भी मैं हूं यह विश्व मैं ही हूं तो यह जो समाधि है यह अंतिम समाधि है क्योंकि इसके बाद शिव तत्व के भीतर समाधि के लिए भी स्थान नहीं है क्योंकि समाधि तब तक ही संभव है जब तक आपके अनुभव में कुछ हो जब आप स्वयं ही अनुभव हो जाते हैं तो फिर समाधि भी चली जाती है अर्थात समाधि का कोई औचित्य नहीं है फिर समाधि का कोई उपयोग नहीं है फिर समाधि आप कैसे डिफाइन करेंगे शिव अवस्था में कि समाधि होती क्या है क्योंकि भाव सिर्फ अहम अहम का है कुछ इदम बचा ही नहीं है वह है ही नहीं सिर्फ यह यह यह है जब सब कुछ यह है तो वह के लिए कोई स्थान नहीं बचा है और दूसरा जो आपने बात कही वह बड़ी अच्छी बात है कि मनुष्य के रूप में जगदानंद के रूप में जगदानंद समाधि को अनुभव करना यह एक मनुष्य का सबसे बड़ा सबसे बड़ी अचीवमेंट भी है मनुष्य शरीर के लिए और सबसे बड़ा एक लक्ष्य भी हो सकता है क्योंकि सारे स तन मात्राओं को स्वयं के रूप में अनुभव करना और हर तन मात्रा से आनंदित होना यही एक योगी का अंतिम लक्ष्य है मनुष्य के रूप में शरीर के रूप में क्योंकि जब आप शिव भाव की बात करते हैं तो फिर यह सारी फिर आप यह प्रश्न भी नहीं पूछ सकते इसका कोई उत्तर भी नहीं हो सकता क्योंकि वी विल बी डिफाइनिंग दैट उसको डिफाइन नहीं अर्थात शिव के लिए आनंद क्या है इसका अर्थ क्या है कि क्या कभी शिव ऐसी स्थिति में होता है कि वह आनंदित नहीं है और अगर शिव सदैव आनंदित है तो फिर आनंद का मतलब क्या है आप देखें जरा इस बात को एक कमरा है मान लीजिए इस संसार में सारी चीजें सफेद है तो फिर आप क्या कहेंगे सफेद रंग क्या होता है फिर आप कैसे कहेंगे कि सफेद है अगर सब कुछ ही सफेद है तो कुछ भी सफेद नहीं है क्योंकि सफेद कहने के लिए कोई और रंग होना चाहिए तभी सफेद विल स्टैंड आउट तभी हम कहेंगे कि कुछ लाल है कुछ पीला है लेकिन यह सफेद है इसी प्रकार से संसार है माया है बंधन है मल है तो शिव है लेकिन शिव भाव से ना कुछ माया है ना कुछ बंधन है ना कुछ और है तो उसको परिभाषित ही नहीं किया जा सकता इसीलिए इसीलिए उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए उसके बारे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह आनंद है कैसे कहेंगे कि वह आनंद है या शांति है या प्रेम है कुछ भी आप उसको नहीं कह सकते यह सारे भाव तभी संभव है जब एक विपरीत भाव हो जो कि सदाशिव परमाता तक ही संभव है इसीलिए इसीलिए अंतिम समाधि हमने कहा जगदानंद को क्योंकि समाधि है शिव में कोई समाधि नहीं है तो तो फिर भगवान जी जैसे कभी-कभी जैसे हम लोग समा आपने बोला वो समाधि भी नहीं है बट जस्ट फॉर स्पीकिंग सेक कभी-कभी जैसे चैतन्य में जाके ऐसा होता है अनुभव कि मतलब हम ही हम है मतलब मैं ही मैं हूं ऐसा अनुभव होता है तो क्या वह शिव शिव तत्व को नहीं छूते कोई कोई नहीं छू पाता शिव तत्व को सब सदाशिव तक ही जाते हैं या हम या फिर जो जगदानंद में रहते हैं वो भी शिव तत्व को छू स छू के नीचे आके सदाशिव भाव में कोई भी क्रिया या कुछ भी करते हैं शिव तत्व के बारे में कहा तभी जा सकता है जब आप शिव से नीचे आ जाए शिव अवस्था के बारे में कहा तभी जा सकता है जब व्यक्ति शिव से नीचे आ जाए शिव अवस्था में रहकर शिव अवस्था के बारे में कहा नहीं जा सकता शिव माता को डिफाइन करने के लिए यह आवश्यक है कि शिव प्रमाता से संकुचित हुआ जाए पर टच किया जा सकता है शिव तत्व को मतलब हम छू सकते हैं हम हो सकते हैं वहा पर या सदाशिव के ऊपर ह्यूमन बॉडी अला ही नहीं करती मतलब टच करना भी नहीं वहां पर कौन होगा प्रश्न ये है कि वहां पर कौन होगा मैं मैं मैं ही मैं जैसे बस मैं वाली कुछ भी मतलब जैसे कई बार कैसे बोले कई बार जैसे आपके साथ भी भगवान जी जब बैठते हैं तो ऐसा लगता है ना जैसे एक बार फीलिंग होती है कि कुछ दिखता नहीं है कोई परसेप्शन नहीं है कुछ नहीं है बस ह एक्जिस्टेंस वो होता एक कभी कभी टच होता है वो चीज तो क्या वो शिव तत्व है या शिव तत्व को टच करना किसी भी योगी के लिए पॉसिबल नहीं है स मैक्सिमम कोई समाधि कोई भी उसको या शिव तत्व को हम अनुभव कर सकते हैं यह मेरा प्रश्न शिव तत्व को अनुभव तो हम करते ही हैं ना सदैव शिव तत्व को हम अनुभव करते हैं इसमें तो कोई संदेह नहीं है उसके जैसे हते नहीं है हा हते नहीं अनुभव तो हम करते हैं लेकिन हम वहां ठहरते नहीं है हम ठहरते हैं अन्य परमाता के रूप में जैसे एक आम व्यक्ति जो बिल्कुल नींद में चल रहा है एक आम व्यक्ति जो बिल्कुल दिन में दो बोतल शराब पीकर सो रहा है अगर बाय द डेफिनेशन देखेंगे और ध्यान से देखेंगे तो वह भी शिव तत्व को अनुभव कर रहा है तभी वह देख पा रहा है तभी वह सुन पा रहा है तभी वह चक पा रहा है शिव तत्व का अनुभव तो उसको उसको भी है और उसकी वजह से ही आप उससे पूछेंगे कि आर यू अवेयर तो उसका उत्तर होगा हां आई एम अवेयर इसी वजह से हम देख पाते हैं सुन पाते हैं समझ पाते हैं कुछ भी उसी शिव की वजह से तो उसका अनुभव निश्चित रूप से है लेकिन उसके अनुभव को डिफाइन नहीं किया जा सकता क्योंकि डिफाइन करने के लिए आपको कोई दूसरा चाहिए यहां कोई दूसरा नहीं है तो उसको डिफाइन भी नहीं किया जा सकता तो मतलब जो ठहरना जो हाईएस्ट लेवल ऑफ ठहरना मैं का जो ठहराव हास्ट लेवल परमानेंट होता है फिजिकल बॉडी में वो सदा शव हो गया हम यस जहां से आप वापस आकर संसार को भी अनुभव कर सकते हैं ये तो बहुत ब्यूटीफुल है गुजी मतलब यह तो मतलब बहुत ही सुंदर जो आपने अभी सब कुछ बताया अब तो वही रहना है क्योंकि फिर आप संसार को भी अनुभव कर पाते हैं इसीलिए यह कहा कि मनुष्य के शरीर में सदाशिव परमाता सबसे बड़ा परमाता है अंतिम परमाता है क्योंकि उस श्रेणी से ही आप नीचे आकर अन्य परमाता का अनुभव कर सकते हैं उस श्रेणी में इदम का भाव रहता है उस परमाता के रूप में विश्व का आभास रहता है शिव के रूप में विश्व का आभास समाप्त हो जाता है विश्व समाप्त हो जाता है तो विश्व समाप्त हो जाता है तो सारे कांसेप्ट सारे दृश्य सब रूप सब रस सब गंध सब समाप्त हो जाते हैं और कोई प्रश्न है तो हम ले सकते हैं थंक य गुरुजी एक प्रश्न पूछना था मुझे आपसे जी ऐसा क्यों कहा जाता है कि य जो विश्व है यह वास्तविक और अवा स्विक सं अगर य विश्व वास्तविक है तोय वास्त ओके क्या यह विश्व वास्तविक वास्तविक है या यह विश्व अवा स्तक है तो इसका उत्तर यह है कि हम किस प्रमाता के रूप में इसको देख रहे हैं उस प्रमाता के रूप में हम इस विश्व को समझ पाएंगे जैसे मैंने कहा विज्ञान कल प्रमाता विज्ञान कल प्रमाता क्या है कि यह जगत मिथ्या है अहम अहम इदम इदम मैं सत्य हूं मैं चिदानंद रूप हूं लेकिन जगत जो है वह मिथ्या है अवा स्तक है लेकिन एक सकल के रूप में जगत वास्तविक है एक सकल के रूप में तो जगत का बहुत बड़ा महत्व है जगत के जगत के साथ ही हमारे सारे काम सारे बंधन सारे कर्म सब जगत से जुड़ा हुआ है तो वास्तविक है अब ईश्वर परमाता के रूप में आप देखेंगे तो हर परमाता के रूप रूप में इस जगत को देखा जाएगा तो उत्तर अलग-अलग आएगा ईश्वर परमाता के रूप में देखें जरा अहम इदम मैं यह भी हूं मैं यह जगत भी हूं अर्थात फिर यह जगत ना वास्तविक है ना अव अ वास्तविक है यह जगत जैसा दिख रहा है वैसा नहीं है जैसे कि हमें दिख रहा है कि सामने एक पेड़ है लेकिन वह पेड़ नहीं है वह मैं हूं हमें सामने दिख रहा है कि गाड़ी आ रही है वह गाड़ी मैं वह गाड़ी गाड़ी नहीं है वह मैं हूं यह ईश्वर परमाता का अनुभव है तो अब आप क्या कहेंगे यह जगत वास्तविक है या अवा स्तक है इसवा बोलेंगे इसको आप अवा स्तक कहेंगे क्योंकि मैं ही मतलब मेरा अलग अलग नाम है बट ये सब कुछ इसी प्रकार जब अगर आप सदाशिव परमाता के रूप में जाएंगे तो वही अनुभव क्या होगा इदम अहम सारे रूप मैं ही हूं सारे रूप मैं बन रहा हूं जैसे कि यह प्रश्न पूछने वाला कौन है मैं हूं मैंने यह प्रश्न खुद से पूछा है यह सदाशिव परमाता का अनुभव है कि यश के रूप में कौन बोल रहा है मैं बोल रहा हूं उत्तर देने वाले के रूप में कौन बोल रहा है मैं ही बोल रहा हूं यह सदाशिव परमाता का अनुभव है तो उस परमाता के भाव से भी अब आप देख ले कि क्या इसे वास्तविक कहेंगे या अवा स्तक कहेंगे क्या यह कहेंगे कि यशी नहीं है या यह कहेंगे कि उत्तर देने वाला नहीं है अभी आपको निर्णय लेना है कि आप किसी वास्तविक मानते हैं किसे अवा स्तक मानते हैं सत्य यह है कि यह जगत जैसा प्रतीत होता है वैसा नहीं है यह मेन बात है कि जगत हमें जैसा प्रतीत होता है यह वैसा नहीं है उसके बाद आप इसको वास्तविक कहे अवा स्तक कहे जिस कैटेगरी में रखना है रखें लेकिन जैसा यह विश्व दिखता है भास है वैसा यह नहीं है जैसे हमें विश्व में क्या भास है क्या प्रतीत होता है कि स्पेस है चीजें एक दूसरे से दूर है सत्य क्या है सत्य यह है कि एक तन मात्रा है जिस तन मात्रा का नाम क्या है आकाश तन मात्रा का नाम है स्पर्श और दृश्य अगर आंखें ना हो तो बताए यशी कहां है अगर आंखें ना हो तो बताएं यूरोप कहां है इंडिया कहां है अगर आंखें ना हो तो कौन किससे कितना दूर है कैसे पता लगेगा दृश्य तमा तन मात्रा की आवश्यकता है उसी प्रकार से श्रवण तन मात्रा की आवश्यकता है के लिए छूने के लिए स्पर्श तन मात्रा की आवश्यकता है तो यह जो संसार हमें प्रतीत होता है यह इन तन मात्राओं के कारण प्रतीत होता है वास्तव में य संसार जैसा प्रतीत होता है वैसा नहीं है तोब इस इसे आप वास्तविक कहे या अवा स्तक कहे यह आपके ऊपर है जैसे जो हमें शरीर प्रतीत होता है तो ऐसा शरीर जैसी कोई चीज नहीं है शरीर सिर्फ आकाश है जो हमें देश प्रतीत होते हैं वह कोई देश नहीं है क्योंकि कोई दूरी नाम की कोई चीज अनुभव में नहीं है अनुभव लेकिन अब आप अनुभव अगर आप अनुभव लेंगे त्वचा से अनुभव लेंगे द से या अनुभव लेंगे श्रवण से तो उस अनुभव में तो आपको विश्व प्रतीत होगा लेकिन वास्तव में वह वैसा नहीं है जैसा प्रतीत होता है तो अब हम उसको वास्तविक कहे या अवा स्तक कहे यह हमारे ऊपर है भगवान मुझे भी कुछ पूछ जी जी पूछिए आपने बताया जैसे की फंग प्रमाता और शव प्रमाता सदाशिव प्रमाता हो के फिर नीचे आ जाने प लगता है कि फिर क्या उस जगह तक पहुच पाएंगे क्योंकि पता ही नहीं चला की कैसे फिर से विजान मतलब आपकी बातो से य सबको मतलब समझ में आ रहा है यहां तक जाने के बाद फिर नीचे कैसे मतलब य से ह ओके ओके यानी आप प्र आप प्रश्न य पूछ रहे कि अगर वहां चले गए कहीं ऊपर चले गए तो नीचे कैसे आएंगे नहीं भगवान जी जैसे कि हमको कुछ समय तक ये सब अनुभव में थे स मतलब यहां तक जो आपने कहा सदास वाला फीलिंग आता था कि हा ये चीज है याय भी तो हम ही है ऐसा ऐसा वाला चीज होता था उसके कुछ समय बाद सब चीज गायब हो गई सब होना क्योंकि अच्छा लगता था लेकिन कुछ मेरे में पता नहीं कुछ वो हुआ होगा कि ये सब चीज अब हो ग अब हम तड़पते रहते हैं कैसे उस वहा तक फिर से जाए फिर से कैसे पहुंचे तो वो नहीं हो पा रहा लग रहा है कि क्या फिर नहीं ऐसे ही चला जाएगा पूरा क्योंकि इ इतना टाइम भी नहीं बचा है हम हम यह प्रश्न कई बार लोगों के सामने आता है कि ऐसा लगता है कि हम पहले जो हमने अनुभव किया अब वो अनुभव में नहीं है तो आप यह देखें कि यह जो विचार आपके भीतर आया कि मैं उस अनुभव में दोबारा कैसे जाऊं अगर हम उस विचार को छोड़ दें और हम स्वयं से पूछे कि मैं कहां पर हूं कि इस समय मैं कहां पर हूं विचार आ रहे हैं विचार जा रहे हैं जैसे एक विचार आया कि मुझे तो सदाशिव अवस्था में वापस जाना है यह क्या है एक विचार है इस विचार को आपने छोड़ दिया जी आप वर्तमान क्षण में है श्वास आ रही है श्वास जा रही है कोई और विचार आया कि अब तो बहुत आयु हो गई है कहीं पहुंच पाएंगे कि नहीं पहुंच पाएंगे बहुत अच्छा यह भी एक अन्य विचार आया क्या करेंगे वेलकम मोस्ट वेलकम अब उसको जाने दे फिर से श्वास ले कोई अ अगर और कोई विचार आना चाह रहा है उसको भी आने दे वेलकम विचारों को रोके ना जैसे ही आप विचारों को रोकने का प्रयास करेंगे आप उन्हें बल देंगे उनको स्वीकार करें उस विचार को स्वीकार करने के उपरांत उसके बाद जब वह विचार गिर जाता है तब आपका अनुभव क्या है बस अपने को फील कर बस आप अपने आप को अनुभव कर रहे हैं इसी अनुभव में में विचार आ रहे हैं जा रहे हैं राइट जैसे आकाश में बादल आ रहे हैं जा रहे हैं आकाश को क्या फर्क पड़ता है ऐसे ही विचार इस अनुभव में आ रहे हैं जा रहे हैं आपको क्या फर्क पड़ेगा उससे नहीं जिस प्रकार से विचार आते और जाते हैं उसी प्रकार से दृश्य आते और जाते हैं शब्द आते और जाते हैं जैसे मैं बोल रहा हूं शब्द उठ रहे हैं गिर रहे हैं आप बोल रहे हैं शब्द उठ रहे हैं गिर रहे हैं रूप आता जाता है दृश्य आते जाते हैं विचार आते जाते हैं स्पर्श आता और जाता है क्या इनके आने और जाने से आपके ऊपर कोई प्रभाव पड़ता है एक ए न देहो हम न [संगीत] मनो न जा नामी को [संगीत] हम न देहो हम न मनो [संगीत] हम न जाना म को [संगीत] हम नित्य हम शुद्ध [संगीत] हम गगन प [संगीत] मोहम नित्य हम शुद्ध [संगीत] हम [संगीत] गगन प [संगीत] मोहम चिदानंद [संगीत] रूपा शिव शिव सोहम शिवो हम शिवो [संगीत] हम चिदानंद हम शिवो हम शिवो हम शिव शिव [संगीत] सोह न देहो हम न मनोह ना जा नाम [संगीत] कोह नित्य हम शुद्ध हम शिव शिव [संगीत] सोह शिवो हम शिवोहम शिव शिव [संगीत] सो ना आपकी कोई आयु है ना आपकी कोई मृत्यु है यह सब हमारे विचार हैं कथम रोदसी अपने स्वभाव में स्थित हो जाएं तो आज के लिए इतना ही ओम नमः शिवाय ओम चैतन्य नमः आप सबके भीतर बैठे उस शिव तत्व को