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मोहनजोदड़ों: सिंधु घाटी सभ्यता का अनोखा नगर

हुआ है कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मानव सभ्यता के इतिहास की महत्वपूर्ण विरासत है और इस विरासत के हजारों नगरों में मोहनजोदड़ों सबसे अनोखा नगर है आज के पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लड़का ना जिले में स्थित मोहनजोदड़ों अतीत में कभी हमारे प्राचीन संस्कृति का गौरव हुआ करता था आज से 5,000 साल पहले यह जैसा था आज भी बिल्कुल वैसा ही है इस शहर की प्राचीन गलियों और सड़कों पर हम आज भी वैसे ही घूम फिर सकते हैं जैसे हमारे पूर्वज अतीत में घूमा करते थे तो आओ दोस्तों आज हम मोहनजोदड़ों की गलियों में घूमते हुए हमारी प्राचीन सभ्यता के गौरवपूर्ण अतीत को महसूस करने की कोशिश करते हैं [संगीत] हुआ है हुआ है हुआ है है मोहनजोदड़ों शब्द का सही उच्चारण है मोहनजोदड़ों और सिंधी भाषा में इसका अर्थ है मुर्दों का टीला वास्तविक रूप में यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व व नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है पुरातत्वविदों के अनुसार लगभग 260 से 1968 पूर्व के बीच आबाद रहा यह नगर अपने समय में समाज के सबसे धनी एक विद्वान और व्यापारियों का गढ़ हुआ करता था आज भी हमें इस नगर के अवशेष लगभग 125 फैक्टर के दायरे में बिक्री अवस्था में दिखाई देते हैं यहां पर कदम रखते ही हमें यहां की डिटेल अपनी तरफ आकर्षित कर देती है विश्वास ही नहीं होता कि हम हजारों साल पुराने प्राचीन खंडहर में है बिल्कुल इसी तरह की डे हम आज भी अपने घरों में इस्तमाल करते हैं में एक सिर्फ इतना है कि मोहनजोदड़ों की मेज़ दुनिया की सबसे प्राचीन ठेर है दरअसल इस कहानी की शुरुआत होती है सन उन्नीस सौ ग्यारह में उस दिन सिंधु नदी के रास्ते दृष्टि से यात्रा कर रहे प्रोफेसर डीआर भंडारकर जी की नजर नदी किनारे स्थित एक टीले नुमा खंडर पर पड़ी वहां का निरीक्षण करने के बाद उन्हें वहां पर एक प्राचीन बौद्ध स्तूप के अवशेष और कुछ बौद्ध कालीन सिक्के नजर आएं उन्हें लेकर वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन प्रमुख सर जॉन मार्शल के पास गए उस समय हड़प्पा का दौरा कर रहे सर जॉन मार्शल ने तुरंत ही मोहनजोदड़ों को भी भेंट दी और उसका बारिकी से निरीक्षण किया अपने व्यापक निरीक्षण से सर जॉन मार्शल ने वहां पर बौद्ध स्तूप के साथ-साथ अति प्राचीन अवशेष होने की थी की पुष्टि की और फिर सन 1922 में सर राखलदास बनर्जी के निगरानी में मोहनजोदड़ों में अधिकारिक तौर पर उत्खनन कार्य को शुरुआत हो गई इस उत्खनन के दौरान उन्हें बड़ी मात्रा में हिट से बनी इमारतें मिट्टी के बर्तन धातु की मूर्तियां और अति प्राचीन मुहरे मिलने लगी जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह का बौद्ध स्तूप और उत्खनन से निकल रहे नगर के अवशेष यह दोनों अलग-अलग समय अंतराल में स्थापित अलग-अलग सभ्यताएं थी पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि बौद्ध स्तूप की वास्तु दूसरी शताब्दी के आसपास बनी होगी जबकि मोहनजोदड़ों नगर ईसा पूर्व छब्बीस सौ के आसपास यहां पर स्थापित हो चुका था इतना पुराना नगर होने के बावजूद भी इस शहर का मुख्य ढांचा आज भी मजबूत है यहां का प्रसिद्ध जलकुंड जो ग्रे क्वाथ के नाम से दुनिया भर में मशहूर है वह 40 फुट लंबा 25 फुट चौड़ा और लगभग 7 पुस्तक गहरा है कुंड में उतरने के लिए उत्तर और दक्षिण दिशा की तरफ से सीढ़ियां है और आठ स्नानघर भी है निरीक्षण से पता चलता है कि इस कुंड को काफी समझदारी से बनवाया गया था यहां की डे आज भी इतनी पक्की है कि जिसका कोई जवाब ही नहीं बाहर से आने वाले और शुद्ध जल को रोकने के लिए कुंडू कैथल और दीवारों पर चूने और चिरोडी से बने अंगारे को लगाया गया है दीवारों में डामर का प्रयोग भी किया गया है इसमें पानी की व्यवस्था के लिए हवा और पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों से बनी नालियां बनाई गई है और खास बात यह है कि उन्हें पक्की ईंटों से टकरा गया है आज सिंधु घाटी सभ्यता अपनी पहचान यहां की पक्की डिटेल और व्यक्ति हुई नालियों से ही है इतिहासकारों का मानना है कि समूचे सिंधु घाटी सभ्यता में मोहनजोदड़ों ही वह पहला नगर है जहां के लोग कुएं खोद कर भूजल तक जा पहुंचे थे इसीलिए वहां पर लगभग 7 सालों के आसपास कुएं मे है यहां की बेजोड़ जल प्रबंधन और जल निकास प्रणाली को ये कुंड एवं नालियों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मोहनजोदड़ों के लोग असल मायने में जिला अभियंता थे यहां की खुदाई से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि यहां पर खेती और पशुपालन भी होता था रबी की फसलों में यहां पर गेहूं सरसों जो और चने की खेती के प्रमाण मिलते हैं दुनिया में सूद के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहीं से प्राप्त हुआ है यहां की सड़के ग्रीड योजना तरह एक दूसरे को समकोण में काटती है और यह नगर मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है जिसका पूर्वी भाग रईसों की बस्ती या दुर्ग कहलाता है तो दूसरा भाग निकला नगर यानी कि मध्यमवर्ग की रहने की जगह लाता है पूर्वी भाग पर बड़े मकान चौड़ी सड़क के और कई सारे को यह है जबकि निचले भाग में छोटे मकान छोटी सड़के और सड़क के दोनों तरफ घर है जिनकी पीठ सड़क की तरफ और दरवाजे गलियों में खेलते हैं मोहनजोदड़ों नगर के बड़े हिस्से की खुदाई अभी भी बाकी है क्योंकि पिछले सौ सालों में इसके उत्खनन में केवल एक तिहाई भाग की ही खुदाई हो पाई है और पाकिस्तान सरकार की तरफ से अब तो वह भी बंद हो चुकी है और इसलिए मोहनजोदड़ों से जुड़े कई सारे राज आज भी जमीन रिमाइंडर दफन है यहां पर एक वस्तु संग्रहालय भी है जिसमें ज्यादातर तांबे और कांसे के बर्तन मुहरे वाध्य विशाल मृदभांड आभूषण दिए माप तौल के पत्थर खिलौने और रोजमर्रा के औजार मौजूद है विद्वानों का अनुमान है कि सिंधु सभ्यता में अनुशासन हथियारों के बल पर नहीं तो बुद्धि के बल पर स्थापित था और यही वजह है कि यहां पर औजार तो कई सारे है लेकिन हथियार एक भी नहीं सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों में कला या सृजना का महत्व भी अधिक था मैं केवल वास्तुकला या नगर नियोजन ही नहीं तो धातु और पत्थर की मूर्तियां मृदभांड उन पर चित्रित मनुष्य वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियां सुनिर्मित मुहरे उन पर सुष्मिता से युक्त किरण आकृतिया खिलौने कि से विन्यास आभूषण और शुद्ध अक्षरों का लिप रूप सिंधु सभ्यता को तकनीक सिद्ध होने के साथ-साथ कला सिद्ध बीच साबित करता है सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य बोध है जो किसी भी राजा या धर्म द्वारा पोषित नहीं था बल्कि वह लोकतांत्रिक समाज द्वारा पोषित था और इसीलिए सिंधु घाटी सभ्यता को दुनिया भर में अपने समय काल की सबसे उन्नत और सबसे सभ्यता होने का बहुमान अर्जित है है तो दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए वीडियो को लाइक करके अपने दोस्तों में शेयर कीजिए और चैनल को सबस्क्राइब करके बेल आइकन को और नोटिफिकेशंस पर सेट कीजिए ताकि हमारी अगली वीडियो की नोटिफिकेशन सी आपको तुरंत प्राप्त हो तो चलिए दोस्तों मिलते हैं अगले किसी वीडियो में तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखना जय हिंद [संगीत] अजय को