नमस्कार आदाब सत श्री अकाल वेलकम सुस्वागतम सभी लोगों का दोस्तों मैं अभिषेक सुमन आप लोगों के सामने हाजिर हूं और जैसा कि मैंने आपसे वादा किया था कि हम लोग एसएससी सीजीएल के लिए एक क्विक रिवीजन सेशन लेकर आएंगे जिसमें आपको लिमिटेड टाइम में एक क्विक रिवीजन करवाएंगे वह पूरी की पूरी जीएस जो आपने तैयार की है एसएससी सीजीएल के एग्जाम के लिए मेरे पास हिस्ट्री और पॉलिटी का सेशन रहेगा तो इस सेशन में मैं आपको एक हिस्ट्री का ओवरव्यू दूंगा एक हिस्ट्री का क्विक रिवीजन करवाऊंगी से एक सीक्वेंस में सारी की सारी वो चीजें जानेंगे जो आपने हिस्ट्री में तैयार की है अपने अपकमिंग एग्जाम के लिए दोस्तों आप जानते हैं कि करियर लप पिछले पा सालों से आप लोगों की सेवा में है आप लोगों की मदद कर रहा है और आपने इतना ज्यादा प्यार हमें दिया है और हजारों की संख्या में हम लोगों ने सिलेक्शन यहां से दिए हैं तो हम चाहते हैं कि आप भी इसका फायदा जरूर उठाएं और हमारे चैनल और हमारी ऐप के साथ जुड़कर अपनी जो तैयारी है और अपनी सक्सेस है उसको सुनिश्चित करें तो दोस्तों हम शुरू करने जा रहे हैं इंडियन हिस्ट्री या भारतीय इतिहास आप जानते हैं कि इंडियन हिस्ट्री या भारतीय इतिहास को हम तीन मेजर पार्ट्स में डिवाइड करते हैं एसिएंट इंडिया मेडियल इंडिया और मॉडर्न इंडिया प्राचीन भारत मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत तो सबसे पहले हम सीक्वेंस में लेकर चलेंगे और सबसे पहले बात करेंगे एंसेट इंडिया या प्राचीन भारत के बारे में तो चलिए सेशन स्टार्ट करते हैं सबसे पहले हम बात करने वाले हैं एसिंट इंडिया यानी कि प्राचीन भारत के बारे में और आप जानते हैं अगर हम प्राचीन भारत की बात करें एंट इंडिया की बात करें तो एंट इंडिया को भी हम फर्द तीन मेजर पार्ट्स में क्या करते हैं डिवाइड करते हैं प्रीहिस्टोरिक पीरियड प्रोटोहिस्टोरिक पीरियड एंड हिस्टोरिक पीरियड प्रागैतिहासिक काल आद्य ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल जिसमें प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसके हमारे पास अवशेष है लेकिन कोई भी लिखित साक्षी नहीं है आद ऐतिहासिक काल वह काल है जिसके हमारे पास अवशेष भी हैं लिखित साक्षी भी है लेकिन जितने भी लिखित साक्ष्य हमें मिले हैं उन्हें आज तक भी पढ़ा नहीं जा सका है दे आर स्टिल अन आइडेंटिफिकेशन भी है लिखित साक्ष्य भी हैं और सारे के सारे लिखित साक्ष्य को पढ़ने में भी सफल हासिल कर ली गई है तो दोस्तों हम बात करेंगे सबसे पहले प्रीहिस्टोरिक पीरियड के बारे में जिसे आप हिंदी में कह सकते हैं प्रागैतिहासिक काल और याद कीजिए मैंने आपको बताया था कि हम प्रागैतिहासिक काल या प्रीहिस्टोरिक पीरियड को फर्द दो एजेस में डिवाइड करते हैं या दो युगों में विभाजित करते हैं एक कहलाता है स्टोन एज पाषाण युग और एक कहलाता है मेटल जज या धातु युग नाम से ही पता चल रहा है पाषाण युग वो युग है जिसमें मनुष्य केवल पाषाण का पत्थरों का इस्तेमाल किया करता था लेकिन जब उसने अपने लिए सबसे पहली धातु खोजी दैट वास कॉपर तांबा तो उसने पत्थरों के साथ-साथ तांबे का इस्तेमाल करना शुरू किया तांबे में टिन मिलाकर कांसा बनाया और उसके बाद लोहे की भी खोज कर ली गई तो मेटल एज को हम डिवाइड करते हैं कॉपर एज ब्रॉज जज और आयरन एज में तो सबसे पहले हम बात करने जा रहे हैं किसके बारे में सबसे पहले हम बात करने जा रहे हैं स्टोन जज के बारे में स्टोन जज जिसे हम हिंदी में कह सकते हैं पाषाण युग वह युग जिसमें मानव के द्वारा मनुष्य के द्वारा केवल और केवल पाषाण का या पत्थरों का इस्तेमाल किया गया और मैंने आपको बताया था कि स्टोन जज को भी हम फर्द तीन पीरियड्स में करते हैं डिवाइड तीन भागों में करते हैं विभाजित जिसमें सबसे पहला होता है पलियो पीरियड या जिसे आप हिंदी में लिख सकते हैं पूरा पाषाण काल और पूरा पाषाण काल माना जाता है एक अनिश्चित काल से लेकर एक अननोन पीरियड से लेकर लगभग 8000 बीसी या ईसा पूर्व तक का [संगीत] पीरियड ये होता है पलियो थिक पीरियड पूरा पाषाण काल पूरा पाषाण काल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या रही यह वह पीरियड है जिसमें मनुष्य के द्वारा फयर या आग का आविष्कार किया गया मनुष्य ने आग का आविष्कार तो कर लिया था लेकिन आग के इस्तेमाल से वो पूरी तरी से अनभिज्ञ था उसे नहीं पता था आग का इस्तेमाल कैसे करना है इस पीरियड को दोस्तों ध्यान रखेंगे हंटिंग एंड फूड गैदरिंग पीरियड कहा जाता है यह पीरियड आखेटक एवं भोजन संग्रहण काल कहलाता है क्यों क्योंकि इस समय मानव का मुख्य काम अपने लिए भोजन इकट्ठा करना हुआ करता था जिसके लिए वो शिकार किया करता था पत्थरों के बड़े-बड़े औजार बनाकर उन्हीं से जानवर का शिकार किया करता था इसीलिए हम इसको पलियो पीरियड या पूरा पाषाण काल कहते हैं और वो टूल्स और वो औजार जो मनुष्य के द्वारा इस काल में बनवाए बनाए गए थे वो थे हैंड एक्सेस क्लीवर्स एंड स्क्रैपर्स और इस काल के जो एविडेंसेस है जो साक्ष्य हैं वह हमें मुख्य रूप से तीन स्थानों से प्राप्त हुए सबसे पहला सोहन रिवर वैली यानी कि सोहन नदी घाटी जो कि पंजाब में है बेलन रिवर वैली जो कि उत्तर प्रदेश में है और एक याद रखेंगे नर्मदा रिवर वैली नर्मदा नदी घाटी जो कि मध्य प्रदेश में है इन तीन स्थानों से इस पीरियड के एविडेंसेस हमें प्राप्त हुए हैं और साथ में ध्यान रखेंगे पैथिक पीरियड ही वह पीरियड है जिसकी हमें कुछ केव पेंटिंग यानी कि कुछ गुफा चित्रकारी और कुछ केव शेल्टर्स मिले हैं या कुछ गुफा शैलाश्री मिले हैं और कहां से मिले हैं मध्य प्रदेश के भोपाल के ही निकट भीमबेटका नामक स्थान से यह सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता रही पलियो निथिक पीरियड यानी कि पूरा पाषाण काल की इसके बाद स्टोन जज में दूसरा पीरियड इसके बाद स्टोन जज में दूसरा पीरियड कहलाता है मेसोलिथिक पीरियड जिसे आप हिंदी में कह सकते हैं मध्य पाषाण काल लगभग 8000 बीसी से लेकर 4000 बी सीसी तक के पीरियड को ही हम कहते हैं मेसोलिथिक पीरियड यानी कि मध्य पाषाण काल अभी तक मनुष्य के द्वारा पत्थरों के बड़े-बड़े औजार बनाए जा रहे थे लेकिन मेसोलिथिक पीरियड में उन औजारों का आकार कंपेरटिवली छोटा हुआ जिन्हें माइक्रोलिथ कहा गया और वही हमें प्राप्त हुए मेसोलिथिक पीरियड के इसके अलावा मेसोलिथिक पीरियड की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या रही सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह रही कि मेसोलिथिक पीरियड में ही तो मनुष्य के द्वारा डोमेस्टिक केशन शुरू किया गया या पशुपालन की शुरुआत की गई इसी में मनुष्य के द्वारा शुरू किया गया पशुपालन और पशुपालन के मनुष्य के द्वारा किए जाने के एविडेंसेस या साक्ष्य हमें दो स्थान से प्राप्त हुए एक मध्य प्रदेश का आदम गढ़ नामक स्थान और दूसरा राजस्थान में भीलवाड़ा का बागौर नामक स्थान वह जगह है जहां से मनुष्य ने सबसे पहले पशुपालन की शुरुआत की थी और मैं लिथिक पीरियड की एक और बड़ी विशेषता है वह यह कि मेसोलिथिक पीरियड के ही हमें क्या मिले हैं फर्स्ट एविडेंसेस ऑफ ह्यूमन स्केलेटन या मानव अस्थि पंजर के सबसे पहले साक्ष्य भी हमें इसी पीरियड से प्राप्त हुए और कहां से प्राप्त हुए तो ध्यान रखेंगे उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के सराय नाहर राय नामक स्थान से जो कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है यह महत्त्वपूर्ण विशेषता रही मेसोलिथिक पीरियड या मध्य पाषाण काल की और स्टोन जज में तीसरा पीरियड कहलाता है नियो निथिक पीरियड जिसे आप हिंदी में कह सकते हैं नवपाषाण काल जो कि लगभग 4000 बीसी से लेकर 00 बीसी तक का पीरियड है सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता ओलिथु पीरियड की रही यही वह पीरियड है यही वह काल है जिसमें मनुष्य के द्वारा एग्रीकल्चर या कृषि की शुरुआत की गई और मनुष्य के द्वारा कृषि किए जाने के सबसे पहले एविडेंस सबसे पहले साक्षी हमें कहां से मिले तो ध्यान रखेंगे बलूचिस्तान के मेहरगढ़ नामक स्थान से कहने का मतलब अब मनुष्य ने कृषि की शुरुआत कर दी थी और क्योंकि कृषि की शुरुआत की थी इसीलिए वह बस्तियां बनाकर स्थाई रूप से भी रहने लगा था एसएससी सीजीएल में कई सवाल यहां से पूछे गए जैसे कि लिथिक पीरियड में पूछा गया कि बताइए लिथिक पीरियड को क्या कहा जाता है इसे न्यू स्टोन जज भी कहा जाता है इसके अलावा पूछा गया कि बताइए मानव बस्ती के प्राचीनतम साक्षी कहां से मिले मेहरगढ़ नामक स्थान से मिले एक सवाल पूछा गया कि बताइए वह कौन सा स्थल है जो कि प्रीहिस्टोरिक पीरियड से लेकर हड़प्पा काल तक इंपॉर्टेंस रखता है और जिसके अवशेष हमें मिलते हैं वह भी मेहरगढ़ है इसके अलावा ध्यान रखेंगे मनुष्य के द्वारा चावल की कृषि कीए जाने के साक्ष एविडेंसेस ऑफ हार्वेस्टिंग ऑफ राइस भी हमें कहां से मिले निलिन पीरियड के ही मिले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के समीप कोल्डी हावा नामक स्थान से आपसे पूछेंगे मनुष्य ने सबसे पहले किस चीज की कृषि शुरू की थी तो ध्यान रखेंगे जौ गेहूं और कपास वह चीजें थी जिनकी सबसे पहली कृषि शुरू की गई थी मनुष्य के द्वारा और नियो थिक पीरियड में ही सबसे महत्त्वपूर्ण इन्वेंशन जो मनुष्य के द्वारा की गई वह था व्हील यानी कि पहिए का आविष्कार भी नियो लिथिक पीरियड में ही माना जाता है लेकिन जब हम लिथिक पीरियड के उत्तरार्ध में थे सेकंड फेज में थे तो मनुष्य के द्वारा अपने लिए सबसे पहली मेटल सबसे पहली धातु की खोज कर ली गई विच वास कॉपर जो था तांबा और जैसे ही मनुष्य ने पत्थरों के साथ-साथ तांबे का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया वी एंटर्ड इनटू अ न्यू पीरियड व्हिच इज नोन एज जिसे कहा जाता है चालको निथिक पीरियड और दोस्तों ध्यान रखेंगे चालको लिथिक पीरियड को ही हम हिंदी में लिख सकते हैं ताम्र पाषाण काल यानी कि वह काल जिसमें मनुष्य पत्थरों का तो इस्तेमाल कर ही रहा था लेकिन पत्थरों के साथ उसने लिए अपने या उसके द्वारा अपने लिए खोजी गई सबसे पहली धातु का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जोथी कॉपर जोथी तांबा उस पीरियड को हम कहते हैं चालको लिथिक पीरियड और इसी के बाद हम मेटल्स के आधार पर मेटल जज की बात करते हैं या धातु युग की बात करते हैं और यह जो धातु युग है इसे हम तीन मेटल्स के आधार पर डिवाइड कर सकते हैं जैसे सबसे पहले कॉपर जज ताम्र युग जिसमें हमें तांबे की मूर्तियां तांबे से बने हुए भाले तांबे से बनी हुई अन्य उपकरण हमें प्राप्त हुए हैं जिन्हें गंगा घाटी ताम्र निधि भी कहा जाता है इसके बाद दूसरा पीरियड कहलाता है ब्रॉज जज या जिसे आप हिंदी में कह सकते हैं कांस्य युग और ध्यान रखेंगे सिंधु वासियों के द्वारा ही कॉपर में टिन मिलाकर कांसे का निर्माण किया गया था इसीलिए हम कांसे युग में ही पढ़ते हैं अपने देश की सबसे पहली सिविलाइजेशन के बारे में जो है हड़प्पा सिविलाइजेशन या सिंधु घाटी की सभ्यता जिसे हम कहते हैं और तीसरा कहलाता है आयरन जज तीसरा कहलाता है लोह युग मनुष्य के द्वारा भारत में लोहे की खोज लगभग 1000 ईसा पूर्व में हुई और कहां पर हुई तो ध्यान रखेंगे उत्तर प्रदेश के ईटा के अतरंजीखेड़ा नामक स्थान पर उत्तर प्रदेश के टा का ंजी खेड़ा ही वह स्थान है जहां से हमें लोहे के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं और 1000 बीसी से लेकर 600 बीसी आते-आते मनुष्य पूरी तरीके से कृषि करने के लिए भी लोहे के उपकरणों का इस्तेमाल करने लगा था यह है दोस्तों प्रीहिस्टोरिक पीरियड प्रागैतिहासिक काल प्रागैतिहासिक काल समाप्त होते ही हम प्रवेश कर जाते हैं एक और काल में जो कहलाता है प्रोटोहिस्टोरिक पीरियड जो कहलाता है आद ऐतिहासिक काल और अगर हम प्रोटोहिस्टोरिक पीरियड की बात करें तो यह वह पीरियड है जिसके हमारे पास अवशेष तो हैं साथ में लिखित साक्ष्य भी है लेकिन जितने भी लिखित साक्ष्य हमें मिले हैं उन्हें आज तक भी पढ़ने में सफलता हासिल नहीं की जा सकी है इसीलिए इसको हम आध ऐतिहासिक काल कहते हैं और इसी में एजिस्ट करती है हमारे देश की सबसे पुरानी सबसे पहली सिविलाइजेशन वच इज नोन एज इंडस वैली सिविलाइजेशन या जिसे आप हिंदी में कहते हैं सिंधु घाटी की सभ्यता और अगर सिंधु घाटी की सभ्यता की बात करें तो कार्बन 14 डेटिंग मेथड के अनुसार यह 2500 ईसा पूर्व से लेकर अपने परिपक्व चरण में चली 1 स ईसा पूर्व तक वैसे तो विश्व की प्राचीनतम सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता मानी जाती है मेसोपोटामियन सिविलाइजेशन मानी जाती है लेकिन उसी के समकालीन सिंधु घाटी की सभ्यता को भी माना गया है सभ्यता क्या होती है जब किसी एक भूभाग एक क्षेत्र में रहने वाले लोगों में कल्चर की या संस्कृति की समानता मिलती है तो उसी को हम सभ्यता कहते हैं भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पहली नगरीय सभ्यता कहा जाता है यह एक अर्बन सिविलाइजेशन मानी जाती है और यह सबसे ज्यादा फेमस है दिस सिविलाइजेशन इज फेमस फॉर यह दो चीजों के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है सबसे पहली चीज अद्वितीय है जो इसकी टाउन प्लानिंग यानी कि इसका नगर नियोजन और दूसरी चीज इसका ड्रेनेज सिस्टम यानी कि जल निकासी प्रणाली इन दो चीजों के लिए यह विश्व प्रसिद्ध मानी जाती है इस सभ्यता के बारे में हमें जानकारी लगभग 100 साल पहले चली 1921 में बेसिकली हुआ क्या जब भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलोजी हुआ करता था तो लॉर्ड डलोजी ने ही अपने शासनकाल में 18567 में 16 अप्रैल 18533 रेल चलवाई जो बंबई से लेकर ठाणे तक चली और उसके बाद हमारे देश में रेलवे का विकास शुरू हुआ अलग-अलग जगहों पर रेलवे ट्रैक्स बिछाए जाने के काम शुरू हुए जब लाहौर से कराची तक रेलवे ट्रैक्स बिछाए जाने का काम चल रहा था तो जमीन पर जो टीले बने थे उन्हीं को खोदकर जमीन को समतल किया जा रहा था रेलवे ट्रैक से बिछाए जाने के लिए उन्हीं जब टीलों की खुदाई की गई तो उसमें से कुछ अवशेष निकले जो पहले कम मात्रा में और कम फ्रीक्वेंसी जब वो बहुत अधिक मात्रा में और फ्रीक्वेंसी ने उन अवशेषों को इकट्ठा करके उन पर शोध करने का काम किया और इसी आदमी के प्रयासों से आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया डिपार्टमेंट जिसे हम भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग कहते हैं उसकी स्थापना हुई लेकिन जब 18999 से 1905 तक भारत का वायसराय बनकर आया लॉर्ड कर्जन जो कि खुद एक आर्कियोलॉजिस्ट एक पुराता विद था तो इसने इन चीजों में इंटरेस्ट लिया और इसी ने एएसआई आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का महानिदेशक बनाया जॉन मार्शल को और ध्यान रखेंगे जॉन मार्शल की ही अध्यक्षता में उन जगहों पर जहां पर जमीन के नीचे से अवशेष प्राप्त हुए थे वहां पर एक्सक वेशन शुरू किया गया वहां पर उत्खनन शुरू किया गया और सबसे पहली सफलता लंबे समय तक खुदाई करने के बाद 1921 में में राय बहादुर दयाराम साहनी को मिली जब जमीन के नीचे से खुदाई में एक पूरे के पूरे शहर होने के एविडेंसेस मिले हड़प्पा में जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है इसकी खोज दयाराम सहानी के द्वारा की गई और अगले ही साल अगली सफलता एक और स्थल के रूप में पाकिस्तान के ही लरकाना डिस्ट्रिक्ट में सिंधु नदी के किनारे 1922 में खोज हुई मोहन जो की या मोहन जोदड़ो की जिसकी खोज राखल दास बैनर्जी यानी कि आर डी बैनर्जी के द्वारा की गई यह दोनों के दोनों स्थल आप जानते होंगे एक ही वैली में मिले जो कहलाती है इंडस वैली जो कहलाती है सिंधु घाटी और क्योंकि दोनों स्थल एक ही घाटी से मिले और जब दोनों स्थलों से मिलने वाले अवशेषों को आपस में कंपेयर किया गया तो पता चला कि हड़प्पा वासी और मोहन जोदड़ो वासी जो थे उनकी संस्कृति में समानता थी उनके कल्चर में सिमिलरिटीज थी इसीलिए निष्कर्ष निकाला गया दैट वास अ सिविलाइजेशन वो एक सभ्यता थी इसका नामकरण हुआ इसका नाम रखा गया इंडस वैली सिविलाइजेशन सिंधु घाटी की सभ्यता लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या यह सभ्यता सिर्फ सिंधु घाटी में ही एजिस्ट करती थी या और नदी घाटियों के किनारे भी इसकी कोई एसिस्टेंसिया खुदाई का काम शुरू किया गया और लंबे समय तक खुदाई करने के बाद हमें पता चला कि यह सभ्यता केवल और केवल सिंधु घाटी में नहीं बल्कि पूरे उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में एक्सिस्ट करती थी उत्तर में चेनाब नदी से लेकर दक्षिण में गोदावरी तक पश्चिम में दास्करोई डेंसेस मिले और इसके स्थल मिले सबसे उत्तरी स्थल की अगर हम बात करें तो जम्मू कश्मीर में अखनूर जिले में एक जगह मांडा हमें मिली चेनाब नदी के किनारे जो कि हड़प्पा कालीन जो कि सिंधु घाटी सभ्यता का स्थल माना गया दक्षिण में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में दैमाबाद नामक स्थल मिला गोदावरी नदी के किनारे पश्चिम में बलूचिस्तान का सुत कागें डोर हमें मिला दास्करोई आलमगीरपुर हमें हिंडन नदी के किनारे मिला और हमारे आर्कियोलॉजिस्ट को पता चला कि यह सभ्यता केवल इंडस वैली या सिंधु घाटी में नहीं बल्कि पूरे के पूरे उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में एजिस्ट करती थी इसीलिए इस सभ्यता का नामकरण एक बार फिर से हुआ और क्योंकि पहला स्थल कौन सा मिला हड़प्पा इसीलिए इस सभ्यता का नाम ही रख दिया गया हड़प्पा सिविलाइजेशन या हड़प्पा सभ्यता और क्योंकि इसी सभ्यता के लोगों ने कॉपर में टिन मिलाकर ब्रॉन्ज बनाया इसीलिए सभ्यता को ब्रॉन्ज एज सिविलाइजेशन भी कहा जाता है अभी तक 1350 से ज्यादा बस्तियां इस स्थल की हमें या इस सिविलाइजेशन की हमें मिल चुकी हैं जिसमें से कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण स्थल हैं हालांकि काफी सारे महत्त्वपूर्ण स्थल पाकिस्तान में जा चुके हैं विभाजन के बाद लेकिन भारत में अगर हम बात करें तो सबसे ज्यादा हड़प्पा कालीन जो स्थल हमें मिले हैं वह मिले हैं गुजरात राज्य से गुजरात के कुछ महत्त्वपूर्ण स्थल जैसे लोथल है रंगपुर है धौलावीरा है यह सब गुजरात में मिले राजस्थान में कालीबंगा एक महत्त्वपूर्ण स्थल था इस सभ्यता का हरियाणा में इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मिला जो है राखीगढ़ी और बनावली यह दोनों कहां से मिले हरियाणा से मिले पंजाब में रोपड़ नामक स्थान जो है वह भी हड़प्पा कालीन माना गया है जम्मू कश्मीर में मांडा हमें मिला उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर मिला और अगर उधर महाराष्ट्र की बात करें तो दैमाबाद महाराष्ट्र में एजिस्ट करता है और इन्हीं स्थलों से कई ऐसे महत्त्वपूर्ण अव और चीजें हमें मिली जो एग्जाम में पूछी जाती है और सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट एग्जाम में पूछने के लिए होता है हड़प्पा मोहनजोदड़ो चनद औरो लोथल और कालीबंगा सबसे ज्यादा क्वेश्चंस एग्जाम में आपको यहीं से मिलेंगे जैसे हड़प्पा से मिलने वाली सबसे बड़ी इमारत एक 12 कक्षों का अनागारिगाम गई एक ऐसी मूर्ति मिली जिसमें एक स्त्री के गर्भ से पौधे को उगते हुए दिखाया गया था जिसे हमने गॉडेस ऑफ फर्टिलिटी और वता की देवी की संज्ञा दी वैसे ही मोहन जोदड़ो से मिलने वाली सबसे बड़ी इमारत एक विशाल अनागारिगाम अनुष्ठानों के समय शाही स्नान के लिए काम में आया करता था ऐसे ही मोहन जोदड़ो से हमें कांसे की बनी एक नृत्य करती हुई बालिका की मूर्ति मिली जो कि सबसे प्रसिद्ध है मोहन जोदड़ो में उसके अलावा मोहन जोदड़ो से ही हमें स्वास्तिक चिन्ह मिला हमें नटराज की मूर्ति मिली पशुपतिनाथ की मूर्ति मिली पुरोहित राजा की मूर्ति मिली और पक्की ईंटों के मकान बने हुए मिले जो कि ग्रिड सिस्टम से बनाए गए थे जाल पद्धति से बनाए गए थे जो एक दूसरे को समकोण पर काटते थे सारे मकान पक्की ईंटों के हुआ करते थे हर घर में एक कुएं का साक्षी हुआ करता था आंगन हुआ करता था रसोई घर हुआ करते थे कमरे हुआ करते थे स्नानागार हुआ करता था कहने का मतलब यह सिविलाइजेशन बहुत ही ज्यादा एडवांस और बहुत ही ज्यादा डेवलप्ड थे लेकिन इस सभ्यता के लोगों ने लिपियों का आविष्कार तो कर लिया था लेकिन अपनी लिपि में क्या लिखा यह हम आज तक नहीं समझ पाए सारे के सारे शहरी स्थल माने जाते हैं लेकिन अगर ड्रेनेज सिस्टम की बात करें जल निकासी प्रणाली की बात करें तो वह अद्वितीय देखने को मिलती है धौलावीरा में सारे के सारे स्थल की जो टाउन प्लानिंग हुई थी जो नगर नियोजन हुआ था वह हर टाउन दो भागों में विभाजित हुआ करता था जिसमें एक पश्चिमी टीला और एक पूर्वी टीला कहलाता था लेकिन धौलावीरा एक मात्र ऐसा स्थान था जहां पर एक मध्यम नगर या मध्य टीला भी हमें प्राप्त हुआ यानी कि धौलावीरा एक्सेप्शनल था उसके अलावा चनद एकमात्र ग्रामीण स्थल इस सभ्यता का माना जाता है क्योंकि वहां से एक भी दुर्ग एक भी सीटा के एविडेंसेस नहीं मिले हैं और वहां पर जो ईट मिली है वह भी कच्ची ईट मिली है जिनका वक्राकार था जो कि गोल ईट थी इसके अलावा लोथल बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लोथल इस सभ्यता का बंदरगाह माना जाता है और लोथल से ही हमें फारस की मुद्राएं और एविडेंसेस ऑफ हार्वेस्टिंग ऑफ राइस चावल की कृषि के शाक से हमें लोथल से मिले हैं क्योंकि सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण फसलें मानी जाती थी जौ और गेहूं लेकिन हमें लोथल से चावल की कृषि किए जाने के भी एविडेंसेस प्राप्त हुए हैं इसके अलावा अगर हम इस सभ्यता के अंत की बात करें तो दोस्तों आप जानते हैं कि लगभग 1750 ईसा पूर्व में इस सभ्यता का अंत बाढ़ आ जाने के कारण हुआ ऐसा माना जाता है और इसके बाद 250 साल तक क्या हुआ इसके बारे में तो हमारे पास कोई जानकारी नहीं है लेकिन 250 साल के बाद ईसा के जन्म से लगभग 1500 साल पहले हमारे देश में आगमन हुआ आर्यंस का आर्यों का जिन्होंने यहां पर एक ग्रामीण सभ्यता की शुरुआत की जिसे हम वैदिक सभ्यता के कहते हैं या वैदिक सिविलाइजेशन कहते हैं तो हड़प्पा सभ्यता के बाद जो दूसरी सभ्यता हमारे देश में पंपी व किस पीरियड में थी उस पीरियड को दोस्तों कहा जाता है वैदिक पीरियड उसे कहा जाता है वैदिक काल और अगर हम वैदिक काल की बात करें तो वैदिक काल 1500 ईसा पूर्व से लेकर लगभग 600 ईसा पूर्व तक का पीरियड है 900 साल का पीरियड और यही वैदिक काल वो पीरियड है जिसे हम दो पार्ट्स में डिवाइड करके पढ़ते हैं सबसे पहला 1500 बीसी से लेकर 1000 बीसी तक का पीरियड यानी कि यह 500 साल का पीरियड जिसको हम कहते हैं ऋग्वैदिक पीरियड इसे कहा जाता है ऋग्वैदिक काल यह ऋग्वैदिक पीरियड कहलाता है या ऋग्वैदिक काल कहलाता है नाम से ही पता चलता है वह पीरियड जिसमें हमारे प्राचीनतम वेद ऋग्वेद की रचना हुई उसी को हम ऋग्वैदिक काल कहते हैं और 1000 बीसी से 600 बीसी तक का जो पीरियड है इसे कहा जाता है पोस्ट वैदिक पीरियड इसे कहा जाता है उत्तर वैदिक काल यह वो पीरियड है जिसमें हमारे अन्य वेदों की रचना हुई हमारे रामायण महाभारत की जो रचना मानी जाती है वह उत्तर वैदिक काल में मानी जाती हैं इन दो पीरियड्स में डिवाइड करके ही हम किसको पढ़ते हैं वैदिक पीरियड को पढ़ते हैं और वैदिक पीरियड के बारे में जानकारी जिन लिटरेरी सोर्सेस से जिन साहित्यिक स्त्रोतों से हमें मिलती है उसे कहा जाता है दोस्तों वैदिक लिटरेचर उसे वैदिक लिटरेचर या वैदिक साहित्य कहा जाता है और वैदिक साहित्य में हम इंक्लूड करते हैं किन-किन चीजों को वैदिक साहित्य में ही हम इंक्लूड करते हैं अपने वेद वेदों के ब्राह्मण टेक्स्ट या ब्राह्मण ग्रंथ अरण्य कास अरण्यक और उपनिषद या उपनिषद यही मिलाकर क्या कहलाते हैं वैदिक लिटरेचर या वैदिक साहित्य कहलाते हैं वेदों की संख्या चार है सबसे प्राचीनतम ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद चारों के चारों वेदों में प्राचीनतम वेद ऋग्वेद को माना गया है जिसकी रचना 1500 बीसी से 1000 बीसी तक हुई ऋग्वेद में 10 मंडल है और दसों मंडलों की रचना अलग-अलग ऋषियों के द्वारा अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग समय पर की गई और बाद में उन्हें संकलित करने का काम महर्षि कृष्ण द्वे पायन वेदव्यास के द्वारा कर दिया गया और उसे कंपाइल कर दिया गया ऋग्वेद के रूप में ऋग्वेद में 10 मंडल है और आप जानते हैं लगभग 10500 के आसपास मंत्र हैं जो कि विभिन्न देवताओं से संबंधित है विभिन्न देवताओं के स्तुति से ही संबंधित मंत्रों का संकलन ऋग्वेद में किया गया है ऋग्वेद में वैदिक काल की सबसे पवित्र नदी सरस्वती को बताया गया और सबसे महत्त्वपूर्ण नदी इंडस या सिंधु को माना गया है ऋग्वेद का ही वह तीसरा मंडल सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि तीसरे मंडल की रचना ऋषि विश्वामित्र ने की है और यहीं से हमें गायत्री मंत्र मिला है जो कि सावित्री को सम है और जिसका इस्तेमाल हम सूर्यदेव की स्तुति के लिए करते हैं और अगला महत्त्वपूर्ण दसवां मंडल माना जाता है जिसमें ऋषि महासू कते ने मनुष्य की वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया है और मनुष्य की वर्ण व्यवस्था का सबसे पहला उल्लेख ही हमें कहां से मिला है ऋग्वेद के दसवें मंडल से मिला है इसके अलावा ऋग्वेद का जो पाठक होता है उसे त्री या हुता कहा जाता है इसके बाद सामवेद पोस्ट वैदिक पीरियड में सामवेद की रचना हुई सामवेद बना है साम शब्द से जिसका मतलब है गायन या सिंगिंग इसीलिए भारतीय संगीत का जनक सामवेद को कहा जाता है क्योंकि इसमें ऋग्वेद के वह मंत्र है जिनका उच्चारण नहीं किया जाता बल्कि जिन्हें गाया जाता है गाए जाने वाली ऋचाओं का संकलन ही सामवेद में है संगीत के सात स्वरों सारेगामा पाद नि का सबसे पहला उल्लेख हमें सामवेद से मिला है और सामवेद के ही मंत्रों का गायन करने वाला व्यक्ति कहलाता है उद्गा उसके बाद आता है यजुर्वेद जो बना है यजू शब्द से यजू का मतलब है यज्ञ या यजना तो यज्ञों के नियमों से संबंधित और अन्य धार्मिक क्रियाकलापों से संबंधित मंत्रों का संकलन ही यजुर्वेद में किया गया है और आप जानते हैं अगर हम यजुर्वेद की बात करें तो यह एकमात्र ऐसा वेद है जो कि गद्य और पद्य दोनों में है और इसी का पाठ करने वाला जो है उसे अधर्वम कहा जाता है उसके बाद आता है अथर्व वेद जो सभी वेदों में नवीनतम है जिसमें 20 अध्याय हैं एसएससी सी जेल में पूछा गया था अथर्व वेद में कितने अध्याय हैं इसमें 20 अध्याय हैं और इसमें वशीकरण जादू टोना और अन्य औषधियों से संबंधित भूत प्रेतों से संबंधित मंत्र है जो किसमें होते हैं अथर्व वेद में और ध्यान रखेंगे अथर्व वेद में ही सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां बताया गया है मगध काशी का सबसे पहला उल्लेख भी हमें कहां से मिलता है अथर्ववेद से ही मिलता है और वह व्यक्ति जो अथर्व वेद के मंत्रों का पाठ करता है उसे ब्रह्मा कहा जाता है इसके अलावा ब्राह्मण टेक्स्ट भाई वेदों की भाषा इतनी ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड और इतनी ज्यादा जटिल थी कि उन्हें इजी टू अंडरस्टैंड बनाने के लिए उनके डिस्क्रिप्टिव वर्जन लिखे गए जिन्हें क्या कहा जाता है ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है और सभी वेदों के अपने-अपने क्या होते हैं ब्राह्मण ग्रंथ होते हैं जैसे त्र कौशकी गोपथ ब्राह्मण शत पथ ब्राह्मण यह सारे के सारे क्या कहलाते हैं ब्राह्मण टेक्स्ट या ब्राह्मण ग्रंथ और वह ब्राह्मण ग्रंथ जिनकी रचना हुई वनों में क्योंकि यह जो आरण्यक है यह आरण्य शब्द से बना है आरण्य का मतलब ही क्या होता है वन जंगल तो जिन ब्राह्मण ग्रंथों की रचना वनों में की गई जंगलों में की गई उन्हीं को आरण्यक कहा जाता है और फिर उपनिषद जो दो शब्दों से मिलकर बना है उप जमा निषद उप का मतलब होता है समीप और निषद का मतलब होता है बैठना वैदिक काल में जिन विद्याओं का ज्ञान शिष्य गुरु के समीप बैठकर लिया करते थे उन्हीं को उपनिषद कहा जाता था जिनकी संख्या 108 है जिसमें से 12 प्रमाणित है और ध्यान रखेंगे हमारा राष्ट्रीय शब्द सत्यमेव जैते भी एक उपनिषद से ही लिया गया है जिसे हम मुंडकोपनिषद कहते हैं तो यह सारे के सारे वो लिटरेचर है वो साहित्य है जो हमें वैदिक काल या वैदिक पीरियड के बारे में जानकारी देता है लेकिन जैसे ही 600 बीसी जैसे ही ईसा मसीह के जन्म से 600 साल पहले हम पहुंचे तो वहीं से हमारी सोसाइटी और हमारे समाज में नगरीकरण शुरू हुआ अर्बनाइजेशन शुरू हुआ और दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई 600 ईसा पूर्व में एक तो हमारे देश में एक धार्मिक आंदोलन हुआ जिसके तहत बुद्धिज्म और जैनिज्म बने बौद्ध धर्म और जैन धर्म की स्थापना हुई और उधर 16 महाजनपदों का उल्लेख हमें मिला एक बहु ग्रंथ जो कहलाता है अंग उत्तर निकाय उस अंग उत्तर निकाय से ही हमें जानकारी मिली कि ईसा के जन्म से 600 साल पहले हमारे देश में क्या हुआ करते थे 16 महाजनपद हुआ करते थे तो दोस्तों 600 बीसी या 600 ईसा पूर्व से ही शुरुआत हो जाती है किसकी हिस्टोरिक पीरियड के ऐतिहासिक काल की 600 ईसा पूर्व के बाद का जो पार्ट है जो पीरियड है उसी को हम ऐतिहासिक काल कहते हैं हिस्टोरिक पीरियड कहते हैं और ध्यान रखेंगे 600 बीसी में ही सबसे पहले बात होती है अबाउट 16 महाजनपदास या 16 महाजनपद और इन 16 महाजनपदों के बारे में जानकारी का जो हमारे पास सोर्स है या जो स्त्रोत है ऐसे दो सोर्सेस हैं ऐसे दो स्त्रोत हैं जहां से हमें यह जानकारी मिलती है ईसा के जन्म से लगभग 600 साल पहले हमारे देश में 16 महाजनपद हुआ करते थे जिनकी अलग-अलग कैपिटल्स या राजधानी हुआ करती थी सबसे पहला सोर्स है एक बुद्धिस्ट टेक्स्ट यानी कि एक बौद्ध ग्रंथ जो कहलाता है अंगो तर निकाय जो कहलाता है अंगुर निकाय जिसमें ऐसा लिखित है कि गौतम बुद्ध के जन्म से पहले भारत में 16 महाजनपद हुआ करते थे और साथ में एक जैन टेक्स्ट एक जैन ग्रंथ जो कहलाता है भगवती सूत्र अंगुर निकाय और भगवती सूत्र क्योंकि भगवती सूत्र में ऐसा लिखित है कि महावीर स्वामी के जन्म से पहले भारत में 16 महाजनपद हुआ करते थे तो बस इन 16 महाजनपदों में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण सबसे ज्यादा शक्तिशाली और राजनैतिक तौर पर सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट महाजनपद हुआ मगध अब यह मगध कौन सी जगह है आप जानते होंगे जो आज बिहार में पटना गया और शाहाबाद जिला है वही क्या कहलाता था कभी मगध कहलाता था मगध की सबसे पहली कैपिटल राजगृही या गिरी व्रज हुआ करती थी राजगृही के बाद मगध की दूसरी राजधानी बनी पाटलीपुत्र जो कि आज बिहार की राजधानी है पटना और मगध से ही 600 बीसी में दो महत्वपूर्ण का हुए और वह दो महत्त्वपूर्ण काम क्या-क्या थे तो ध्यान रखेंगे मगध में ही एक तरफ हुआ एक रिलीजियस मूवमेंट एक धार्मिक आंदोलन और इसी धार्मिक आंदोलन के ही तहत हमारे देश में दो धर्मों की स्थापना हुई बुद्धिज्म यानी कि बौद्ध धर्म और जैनिज्म यानी कि जैन धर्म और जहां एक तरफ बुद्धिज्म और जैनिज्म की स्थापना मगध से हुई और वहीं दूसरी तरफ मगध से ही शुरुआत हुई राइज ऑफ डायनेस्टीज या राजवंशों का उदय भी कहां से हुआ मगध से हुआ और जिन डायनेस्टी में सबसे महत्त्वपूर्ण और सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट कहलाता है मौर्य एंपायर या मौर्य साम्राज्य तो कहने का मतलब हिस्टोरिक पीरियड में ऐतिहासिक काल में सबसे पहले ही हम बात करते हैं किसके बारे में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बारे में और साथ में हम बात करते हैं मौर्य साम्राज्य के बारे में लेकिन मौर्य साम्राज्य से पहले का पीरियड जिसे हम प्री मरन पीरियड कहते हैं पूर्व मौर्य काल और मौर्य साम्राज्य के बाद का जो पीरियड है उसे हम पोस्ट मरन पीरियड या मौर्योत्तर काल कहते हैं तो सबसे पहले हम बात करते हैं रिलीजियस मूवमेंट या धार्मिक आंदोलन की और इसमें हम दो धर्मों की बात करेंगे दो धर्मों को आपस में कंपेयर भी करेंगे एक बुद्धिज्म और एक जैनिज्म तो एक तरफ हम लिख सकते हैं बुद्धिज्म यानी कि बौद्ध धर्म और एक तरफ जैनिज्म या जैन धर्म बुद्धिज्म एंड जैनिज्म बौद्ध धर्म और जैन धर्म अगर हम ब धर्म की बात करें तो आप जानते होंगे बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं गौतम बुद्ध जिन्हें कहा जाता है लाइट ऑफ एशिया एशिया का ज्योति पुंज और क्योंकि इनका जन्म एक क्षत्रिय कुल में हुआ था एक शाक्य कुल में हुआ था इसीलिए इन्हें शाक्य मुनि भी कहा जाता है लेकिन अगर हम जैन धर्म की बात कर तो ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म में 24 धर्म गुरु हुए हैं जिन्हें जैन धर्म के 24 तीर्थंकर कहा जाता है जिसमें सबसे पहले तीर्थंकर हुए ऋषभ देव लेकिन ऋषभ देव की ऐतिहासिकता सिद्ध नहीं मानी जाती और ऐसे ही पहले तीर्थंकर से लेकर 22वें तीर्थंकर तक की भी ऐतिहासिकता सिद्ध नहीं मानी गई है जैन मत के अनुसार ऋषभ देव के दो पुत्र हुआ करते थे बड़े पुत्र भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा और छोटे पुत्र गोमटेश जो बाहुबली कहलाते हैं जिनकी मूर्ति कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में है इसके अलावा जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर माने जाते हैं पार्श्वनाथ लेकिन जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक एक्चुअल फाउंडर माने गए महावीर स्वामी भाई महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था ये वर्धमान महावीर भी कहलाते हैं और आप जानते हैं कि गौतम बुद्ध के बचपन का नाम क्या था सिद्धार्थ दोनों क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे दोनों का जन्म क्षत्रिय कुल में हुआ था शाक्य कुल के थे गौतम बुद्ध और जत्रिक कुल के थे महावीर स्वामी गौतम बुद्ध जिन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग किया और लगभग छ वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद फाइनली इन्हें बोध गया में निरंजना नदी के तट पर एक वट वृक्ष या पीपल वृक्ष के नीचे महा ज्ञान की प्राप्ति हुई उसी के बाद यह कहलाए बुद्ध 29 वर्ष की आयु में इन्होंने गृह त्याग या महाभिनिष्क्रमण कर दिया था और उसके बाद ही यह इधर-उधर इनलाइटनमेंट या महा ज्ञान की प्राप्ति के लिए भटकते रहे है इन्होंने अपना सबसे पहला उपदेश उत्तर प्रदेश के वाराणसी के सारनाथ में दिया जिस घटना को धर्म चक्र परिवर्तन कहा जाता है लेकिन सबसे ज्यादा उपदेश इन्होंने पाली भाषा में श्रावस्ती में दिए थे गौतम बुद्ध के बारे में अगर हम बात करें तो इन्होंने बौद्ध संघ की स्थापना भी सारनाथ में की थी और इन्होंने अपना अंतिम उपदेश अपनी अंतिम वर्षा ऋतु वैशाली में बिताई थी लेकिन अपना अंतिम उपदेश इन्होंने कुशी नगर में दिया अगर हम गौतम बुद्ध के जन्म की बात करें तो माना जाता है 563 ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिल वस्तु के लुंबनी नामक स्थान पर हुआ था और अगर इनकी मृत्यु की बात की जाए 80 वर्ष की आयु में 413 ईसा पूर्व में इनकी मृत्यु कुशी नगर में हुई जो कि मल महाजनपद की राजधानी हुआ करती थी और इधर महावीर स्वामी की बात करें तो महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली के कुंड ग्राम में हुआ था और इनकी मृत्यु 468 ईसा पूर्व में पावापुरी में हुई यह भी मल महाजनपद की ही राजधानी हुआ करती थी गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म में सुधार करने के लिए रिफॉर्म करने के लिए चार बौद्ध महा संगीति हों का आयोजन करवाया गया जिसमें प का आयोजन हरिय वंश के राजा आजाद शत्रु ने करवाया दूसरी का आयोजन शिशुनाग वंश के राजा काला शोक ने करवाया तीसरी बौद्ध महासंगम मौर्य वंश के राजा अशोक ने करवाया और चौथी बौद्ध महा संगीति का आयोजन कुषाण वंश के राजा कनिष्क ने करवाया कश्मीर में और उधर जैनिज्म की अगर हम बात करें तो जैन धर्म में जैन धर्म में सुधार करने के लिए दो जैन महा संगीति का आयोजन करवाया गया जिसमें सबसे पहली का आयोजन चंद्रगुप्त मौर्य ने करवाया पाटलीपुत्र में और दूसरी 513 ईसवी में गुजरात के वल्लभी में हुई जिसके आयोजक के बारे में कोई खास जानकारी हमें नहीं मिलती है तो जहां एक तरफ 600 ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय हुआ वहीं दूसरी तरफ वहीं दूसरी तरफ आप जानते हैं हमारे देश में राजवंशों का उदय हुआ मगध से जिसे हम कहते हैं राइज ऑफ मगध या मगध का उत्कर्ष राइज ऑफ मगध मगध का उत्कर्ष जिसको हम तीन पीरियड में डिवाइड करते हैं सबसे पहला कहलाता है प्री मोरियन पीरियड सबसे पहला प्री मरन पीरियड या पूर्व मौर्य काल दूसरा होता है मोरियन पीरियड या मौर्य काल और तीसरा होता है पोस्ट मरन पीरियड जिसे आप हिंदी में कहते हैं मौर्योत्तर काल सबसे पहले प्री मोरेन पीरियड में हम तीन डायनेस्टीज पढ़ते हैं तीन राजवंश पढ़ते हैं सबसे पहला हरियांका डायनेस्टी या हर्यक वंश उसके बाद शिशु नाग डायनेस्टी या शिशु नाग वंश और उसके बाद नंदा डायनेस्टी या नंद वंश लेकिन प्री मरन पीरियड में ही हमारे देश में दो विदेशी आक्रमण भी हुए टू फॉरेन इनवेजन या दो विदेशी आक्रमण भी हुए और वह जो दो विदेशी आक्रमण हमारे देश पर हुए तो ध्यान रखेंगे हमारे देश पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण किसके द्वारा किया गया पर्शियंस के द्वारा ईरानी और दूसरा विदेशी आक्रमण किया गया ग्रीक्स के द्वारा यानी कि यूना के द्वारा नंद वंश के बाद नंद वंश के बाद मगध में स्थापना हुई मौर्य वंश की मौर्य डायनेस्टी की और आप जानते होंगे मौर्य वंश में ही सबसे पहला राजा हुआ चंद्रगुप्त मौर्य उसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिंदुसार और फिर बिंदुसार का पुत्र सम्राट अशोक या अशोका द ग्रेट आप तो जानते ही होंगे भारत के इतिहास में केवल दो शासक ऐसे हैं जिनके नाम के ही साथ जुड़ा है द ग्रेट महान प्राचीन काल में अशोक महान अशोक द ग्रेट और मेडि वल पीरियड में हम बात करते हैं और कहते हैं अकबर द ग्रेट अकबर महान इसके बाद पोस्ट म पीरियड में सबसे पहला शुंग वंश उसके बाद कनव वंश और उसके बाद आंध्र सातवाहन वंश और कुछ विदेशी आक्रमण ध्यान रखेंगे कुछ विदेशी आक्रमण पोस्ट मरन पीरियड में भी हुए फॉरेन इनवेजंस जो किसकिस के द्वारा किए गए थे सबसे पहले आगमन हुआ इंडो ग्रीक्स का यानी कि हिंद यवन या हिंद यूनानिमिटी यह कहलाता है राइज ऑफ मगध या मगध का उत्कर्ष दोस्तों राइज ऑफ मगध में सबसे पहले हम बात करते हैं प्री मरन पीरियड के बारे में प्री मरन पीरियड में सबसे पहले स्थापना हुई और मगध का सबसे पहला वंश माना जाता है हरिय डायनेस्टी या हरिय वंश हरिय वंश की स्थापना बिंबी सार नामक शासक के द्वारा की गई थी जो कि गौतम बुद्ध का समकालीन था ऐसा माना जाता है कि बिंबिसार ने अंग पर आक्रमण करके उसे जीतकर मगध साम्राज्य में मिलाया था इसने कौशल देवी के साथ विवाह किया था और उसी के भाई राजा प्रसनजीत से इसे दहेज में काशी प्राप्त हुआ था बिंबी सार से पूछे जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल बिंबिसार का ही एक राज वैद हुआ करता था जिसका नाम था जीवक और बिंबिसार ने जीवक को अवंती के राजा चंड प्रद्योत का इलाज करने के लिए भेजा था क्योंकि वह पीलिया ग्रस्त था बिंबी सार की हत्या उसी के पुत्र आजाद शत्रु के द्वारा कर दी गई और मगध का पहले राजवंश का पहला राजा ही अपने पुत्र के हाथों मारा गया उसकी हत्या करके उसका बेटा आजाद शत्रु अगला शासक बना और आजाद शत्रु के ही शासनकाल में गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों की मृत्यु हुई थी आजाद शत्रु ने ही गौतम बुद्ध के शरीर के अवशेषों पर आठ स्तूप का निर्माण करवाया और जिस वर्ष गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई उसी साल प्रथम बौद्ध महा संगीति का आयोजन राजगृह में करवाया क्योंकि उस समय मगध की कैपिटल राजगिरी ही हुआ करती थी लेकिन जो आजाद शत्रु ने अपने पिता के साथ किया वही उसके बेटे ने उसके साथ किया अजा शत्रु की हत्या भी उसके पुत्र के द्वारा कर दी गई जिसका नाम था उदयन या उदय भद्र और वह अगला शासक बना उदयन ने ही गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटली पुत्र या कुसुमपुर नामक शहर की स्थापना की जो आज हम पटना के नाम से जानते हैं इसके बाद हरिय वंश का अंतिम राजा नाग दशक हुआ नाग दशक का ही एक महामात्य या महामंत्री हुआ करता था जिसका नाम था शिशु नाग उसी शिशु नाग ने नाग दशक की हत्या करके मगद के दूसरे राजवंश की स्थापना अपने नाम से की जो कहलाता है शिशुनाग डायनेस्टी या शिशुनाग वंश इसकी स्थापना शिशुनाग ने की थी और सबसे पहले अवंती पर आक्रमण करके इसने प्रद्योत वंश का अंत किया और अवंती को मिलाया मगध साम्राज्य में इसका उत्तराधिकारी इसका पुत्र हुआ जिसका नाम था काला शोक या काक वर्ण इसी काला शोक ने अपने शासनकाल में 383 ईसा पूर्व में दूसरी बौद्ध महा संगीति का आयोजन करवाया जिसमें बौद्ध धर्म के अनुयाई स्था वर और महा संघिक में क्या हुए विभाजित हुए इसके बाद काला शोक काला शोक ने के समय में मगध की राजधानी वैशाली हुआ करती थी लेकिन इसने फिर से वैशाली से मगध की राजधानी को पाटलीपुत्र स्थानांतरित किया क्योंकि जब बदाई ने पाटलीपुत्र शहर की स्थापना की तो उसने मगध की राजधानी भी किसको बना लिया पाटलीपुत्र को शिशु नागवंश का अंतिम राजा नंदी वर्धन हुआ और उसी नंदी वर्धन का एक सचिव हुआ करता था एक सेक्रेटरी हुआ करता था जिसका नाम था महापद्मनंद उसी महापद्मनंद ने एक नए वंश की स्थापना मगध में की जिसे हम नंद वंश या नंदा डायनेस्टी के नाम से जानते हैं और इसी को भारत के इतिहास का सबसे पहला शूद्र शासक भी माना जाता है इसके आठ पुत्र थे और पुराणों के अनुसार इसके बाद एकएक करके इसके आठों पुत्र सिंहासन पर बैठ बैठे और राजा बने लेकिन इस वंश का अंतिम शासक इसका आठवां पुत्र हुआ जिसका नाम था धनानंद और इसी धनानंद के शासनकाल में ही हमारे देश में आक्रमण हुआ किसका ग्रीक्स का यूनानिमिटी ने अपने गुरु चाणक्य की मदद से की और मगध के सबसे बड़े साम्राज्य की स्थापना की जिसे हम मौर्य वंश के नाम से जानते हैं और 323 ईसा पूर्व के आसपास मगध में स्थापना हुई मौर्य डायनेस्टी या मौर्य वंश की लेकिन मौर्य वंश की स्थापना होने से पहले हमारे देश में दो विदेशी आक्रमण भी हो चुके थे सबसे पहला विदेशी आक्रमण रानियों का हुआ लगभग 519 518 ईसा पूर्व के आसपास जिसकी जानकारी हमें बस्त अभ लेख से मिलती है और यह जानकारी मिलती है कि भारत पर आक्रमण करने वाला सबसे पहला ईरानी शासक जिसने यहां पर कुछ भाग पर अधिकार किया था उसका नाम था डेरियस फर्स्ट या डेरियस प्रथम जिसे भारतीय इतिहासकारों ने दारा प्रथम कहा है या दारा फर्स्ट की संज्ञा द है उसके बाद हमारे देश में दूसरा विदेशी आक्रमण यूनानिमिटी के सारे राजाओं ने ऐसा कहते हैं उसके सामने सरेंडर कर दिया आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन पंजाब के पौरव वंश का एक राजा था पोरस जिसने एलेग्जेंडर या सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं की तो दोनों के बीच हाइ डिस पीज या वितस्त नदी के किनारे 326 ईसा पूर्व में एक युद्ध लड़ा गया जो कहलाता है बैटल ऑफ फइड स्पीस जिसमें अलेक्जेंडर ने पोरस को पराजित किया लेकिन अपने अभियान को बीच में ही छोड़कर चला गया क्योंकि यह बीमार हो गया और ऐसा कहते हैं कि 323 ईसा पूर्व में मात्र 33 वर्ष की आयु में एलेग्जेंडर डाइड सिकंदर की मृत्यु हो गई और फिर धनानंद की हत्या करके भारत में सबसे बड़े साम्राज्य की स्थापना हुई जो कहलाता है मौर्य डायनेस्टी या मौर्य वंश मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा की गई थी अपने गुरु चाणक्य की मदद से विलियम जोनस के द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की ही पहचान सेंट्रो कोट्स के रूप में की गई है और ऐसा कहा जाता है दो यूनानी लेखक प्लुटार्च और जस्टिन ऐसा कहते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में 640000 सैनिकों की कैपेसिटी हुआ करती थी इसके पास 640000 सैनिक हुआ करते थे जिन्होंने पूरे के पूरे भारत को रौद डाला था उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम चारों दिशाओं में चंद्रगुप्त मौर्य की ही कीर्ति विद्यमान थी इसीलिए चंद्रगुप्त मौर्य को भारत का पहला चक्रवर्तिन सम्राट कहा जाता है चंद्रगुप्त मौर्य ने ही गुजरात के गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील का निर्माण करवाया जिसकी पहली मरम्मत रुद्र दामन के द्वारा और दूसरी स्कंदगुप्त के द्वारा करवाई गई जिसका उल्लेख हमें रुद्र दामन के जूनागढ़ अभिलेख में मिलता है जो कि संस्कृत का भारत में सबसे पहला और सबसे लंबा अभिलेख माना जाता है चंद्रगुप्त मौर्य के ही शासनकाल में 305 ईसा पूर्व में सेलक निकेटर का आक्रमण हुआ और दोनों के बीच में एक संधि हुई जिसके तहत सेलक निकेटर के द्वारा काबुल कंधार हेरात और मकरान चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया गया सेलक निकेटर की पुत्री हेलेना का विवाह भी चंद्रगुप्त मौर्य से किया गया और सेलक निकेटर का ही एक राजदूत हुआ करता था मेगस्थनीज उसे चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा गया उसी मेगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक की रचना की थी इसके बाद 300 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने ही पहली जैन महा संगीति का आयोजन पाटलीपुत्र में करवाया जिसमें जैन धर्म दो समुदायों में विभाजित हुआ श्वेतांबर और दिगंबर श्वेतांबर के संस्थापक स्थूल भद्र हुए और दिगंबर के संस्थापक माने जाते हैं भद्र बाहू इसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य भी जैन दीक्षा लेकर जैन भिक्षुक बनकर कर्नाटक के श्रवण बेलगोला चला गया और वहीं जाकर संलेख या संथारा करने के कारण चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हो गई चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार मगध का अगला शासक बना और ध्यान रखेंगे बिंदुसार के बारे में हमें जानकारी मिलती है और इसी के अन्य नाम हमें मिलते हैं सिंघ सेन और अमित्र चिट्स या अमित्र घात जैन श्रुति हों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि बिंदुसार की 16 पत्नियां थी जिसमें सबसे प्रसिद्ध और प्रिय पत्नी धर्मा या सुभद्रा गी थी जिससे अशोक का जन्म हुआ था और मान्यताओं के अनुसार पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है ही हैड 10 सनस बिंदुसार के 101 पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा था सुसीम जिसे बिंदुसार अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं होने दिया अशोक ने बिंदुसार के दूसरे पुत्र ने इसने अपने एक भाई को छोड़कर अपने सारे के सारे भाइयों की हत्या करवाई और सबकी हत्या करवाकर यह खुद मगध का अगला शासक बन गया सम्राट अशोक के नाम से बिंदुसार के शासनकाल में एक महत्त्वपूर्ण घटना भी घटित हुई तक्षशीला में एक विद्रोह हुआ तक्षशिला का गवर्नर सुसीम हुआ करता था जो कि तक्षशीला के विद्रोह को नियंत्रित नहीं कर पाया तो पहली बार में तो सुसीम को ही तक्षशीला का विद्रोह नियंत्रित करने के लिए भेजा गया था लेकिन जब उससे नहीं हुआ तो अशोक ने तक्षशीला के विद्रोह को नियंत्रित किया बिंदुसार बिंदुसार के दरबार में दो विदेशी राजदूतों का आगमन हुआ एक आया डायमेक्स जो कि सीरिया से आया था और ध्यान रखेंगे एक आया डायोनिसियस से बिंदुसार की मृत्यु लगभग 272 ईसा पूर्व में हुई और उसके मरते ही सिंहासन की लड़ाई शुरू हुई गृह युद्ध शुरू हुआ सारे के सारे उसके पुत्रों में जिसको जीता अशोक ने और अपने 99 भाइयों की हत्या करवाकर राधा गुप्त की मदद से अशोक मगध का अगला शासक बन गया अशोक के नाम का उल्लेख हमें मास्की अभिलेख और गुर्जरा अभिलेख से मिलता है और ऐसा अशोक के बारे में जानकारी मिलती है कि अशोक ने प्रथम विवाह अवंती या उज्जैन की राजी की राजकुमारी महादेवी से किया था और महादेवी से ही अशोक का एक पुत्र महेंद्र हुआ और एक पुत्री संघमित्रा और ऐसा माना जाता है कि अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को ही बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा था अशोक ने अपने शासनकाल के आठवें वर्ष यानी कि 261 ईसा पूर्व में सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध लड़ा जो कहलाता है कलिंग वॉर कलिंग युद्ध जिस समय कलिंग युद्ध हुआ था उस समय कलिंग की राजधानी तोस हुआ करती थी और कलिंग का युद्ध क्यों हुआ था टू गेट एलिफेंट्स अशोक ने कलिंग से हाथी प्राप्त करने के लिए ही कलिंग युद्ध लड़ा था जिसमें लगभग एक लाख लोग मारे गए और डेढ लाख के आसपास लोग मंदी बना लिए गए बस फिर क्या था अशोक का मन इतना ज्यादा विचलित हुआ इसने कलिंग युद्ध के बाद कलिंग की ही राजकुमारी कारवा की या कवकी से भी विवाह किया था लेकिन इस भीषण युद्ध से मन इतना विचलित हुआ कि कलिंग युद्ध के बाद ही अडॉप्टेड बुद्धिस्म इसने बौद्ध धर्म अपना लिया उपगुप्ता नामक बौद्ध भिक्षुक ने इसे बौद्ध धर्म की शिक्षा दी और मोगली पुत तिस नामक बौद्ध भिक्षुक ने इसका धर्म परिवर्तन किया अशोक ने ही अपने शासनकाल में तीसरी बौद्ध महा संगीति का आयोजन करवाया जिसमें इसने तीसरा पिटक बौद्ध धर्म में जोड़ा जो अभी धम्म पिटक कहलाता है इसके बाद अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया सांची का स्तूप और वाराणसी में धमेक स्तूप भी अशोक के ही द्वारा बनवाए गए इसी के द्वारा श्रीनगर शहर की स्थापना भी की गई और यह भारत के इतिहास का सबसे पहला शासक माना जाता है जिसने भारत में राष्ट्रीय उद्यानों का भी निर्माण करवाया था नेशनल पार्क्स भी बनवाए थे क्योंकि इसी के द्वारा पशु बलि पर पूरी तरीके से प्रतिबंध लगा दिया गया हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि अशोक ने अपने जीवन काल में बौद्ध धर्म तो अपनाया लेकिन जीवन के अंतिम समय में इसने बराबर की गुफाएं आजीवक को दान में दे दी वह गुफाएं जिनका संबंध बौद्ध धर्म से था तो कुछ कुछ इतिहासकार कहते हैं कि इसने अपने जीवन के अंतिम काल में आजीवक संप्रदाय को ही मानना शुरू कर दिया था अशोक के बाद इसका पुत्र कुणाल अगला शासक बना और कुणाल के बाद दशरथ और मौर्य वंश का अतिम राजा हुआ बृहद्रथ और जो मौर्य वंश का अंतिम राजा था बृहद्रथ इसी का एक सेनापति हुआ करता था कमांडर इन चीफ हुआ करता था जो कहलाता है पुष्यमित्र शुंग जो कि एक ब्राह्मण हुआ करता था उसी ने ब्रीद रत की हत्या करके मगध के सबसे पहले ब्राह्मण वंश की स्थापना की जिसे हम शुंग वंश के नाम से जानते हैं शुंग वंश का संस्थापक हुआ पुष्यमित्र शुंग इसने दो अश्वमेघ यज्ञ करवाए जिनका आयोजन पतंजलि के द्वारा किया गया क्योंकि पुष्यमित्र शुंग का ही राज पुरोहित पतंजलि हुआ करता था इसी के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे ज्यादा विकास हुआ और भागवती जम भागवत धर्म की शुरुआत भी इसी के शासनकाल में हुई और वासुदेव विष्णु की उपासना इसी के शासनकाल में शुरू हुई थी पुष्यमित्र शुंग के बाद इसका पुत्र अगला राजा बना जिसका नाम था अग्निमित्र शुंग जो कि महाकवि कालिदास के द्वारा रचित एक नाटक मालविका अग्नि मित्रम का नायक था क्योंकि उसमें अग्निमित्र शुंग और उसकी प्रेमिका मालविका की लव स्टोरी को एक नाटक के रूप से लिखा गया है नाटक के माध्यम से लिखा गया है महाकवि कालिदास के द्वारा उसके बाद शुंग वंश का अंतिम राजा हुआ देव भूति और देव भूति को ही सिंहासन से हटाकर वासुदेव नामक व्यक्ति ने कनव वंश या कनवा डायनेस्टी की स्थापना मगध में की छोटा सा शासनकाल इस वंश का रहा केवल दो राजाओं के नाम आपको याद रखने हैं कनवा डायनेस्टी या कनव वंश का संस्थापक वासुदेव हुआ और इसका अंतिम शासक हुआ सु शर्मा लेकिन क्योंकि सु शर्मा एक कमजोर और अयोग्य शासक था इसी की अयोग्यता का फायदा उठाया महाराष्ट्र और दक्कन में शासन कर रहे कुछ रूस ने जिन्हें सातवाहन कहा जाता था और सात वाहनों के ही एक राजा जिसका नाम था सिमुक उसी ने पराजित करके उसकी हत्या करके मगध पर अधिकार किया और स्थापना हुई आंध्र सातवाहन वंश की जिसका संस्थापक सिमुक माना जाता है लेकिन प्रथम शासक कहलाता है शातकर्णी प्रथम इसका सबसे पहला महान शासक शातकर्णी प्रथम माना जाता है लेकिन अगर हम सातवाहन वंश के सबसे महान राजा की बात करें तो 106 ईसवी से 130 ईवी तक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने आंध्र सातवाहन वंश में शासन किया और इसी के शासन का में तीन महत्त्वपूर्ण काम किए गए भारत के इतिहास में सात वाहनों के ही द्वारा चलवा गए लेड कॉइंस शीश के सिक्के इसी ने ब्राह्मणों को भूमिया दान में देने की शुरुआत की और इसी ने अपने नाम से पहले अपनी माता का नाम लगाने की भी प्रथा शुरू की यह गौतमी का पुत्र था इसीलिए कहलाता है गौतमी पुत्र सातकर्णि तो वहीं पर चार विदेशी आक्रमण भी हमारे देश में हुए जिसमें सबसे पहले आए इंडो ग्रीक्स या हिंद यवन शासक जिन्हें भारत के इतिहास में सबसे पहले गोल्ड कॉइन से चलाने का श्रेय प्राप्त है और इन्हीं का सबसे महत्वपूर्ण राजा हुआ मिनांडर या मिलिंद जिसने बौद्ध धर्म अपनाया नाग सेन नामक बौद्ध भिक्षुक ने इसे जैन धर्म सॉरी इसे बौद्ध धर्म की शिक्षा भी दी और इस बात का उल्लेख हमें बौद्ध ग्रंथ मिलिंद पन्हो से मिलता है क्योंकि उसी में मिनांडर को मिलिंद कहा गया है इसके बाद आए भारत में शक जिन्होंने भारत में आकर अपनी पांच ब्रांचेस या पांच शाखाएं बनाई शकों का ही या शक वंश का या शकों का ही सबसे महत्वपूर्ण राजा रुद्र दामन हुआ करता था जिसने जूनागढ़ अभिलेख लिखवाया था और सुदर्शन झील की पहली मरम्मत करवाई थी शक वंश का अंतिम राजा हुआ रुद्र सेन तृत्य जिसकी हत्या करके भारत से शक वंश का अंत चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त शासक ने किया था उसके बाद आते हैं पर्थय और अगर हम पर्थय की बात करें तो दोस्तों ध्यान रखेंगे पर्थय में सबसे महत्त्वपूर्ण और महान शासक गोंडो फर्निस माना जाता है इसी गोंडो फर्निस के ही शासनकाल में फर्स्ट सेंचुरी में सबसे पहले ईसाई सेंट सबसे पहले ईसाई संत सेंट थॉमस का भारत में आगमन हुआ था उसके बाद भारत पर आक्रमण हुआ कुषाण का कुजु कट फिस विम कट फिस और सबसे महान राजा हुआ कनिष्क 78 ईसवी में कनिष्क के द्वारा ही शक संवत की शुरुआत की गई और इसी ने चौथी बौद्ध महा संगीति का आयोजन कश्मीर के कुंडल वन में करवाया जिसकी अध्यक्षता कनिष्क के ही दरबार के दो बौद्ध भिक्षु कों ने की वसुमित्र और अश्वघोष और ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म हीन यान और महायान में भी विभाजित कनिष्क के ही शासनकाल में हुआ था कनिष्क के ही दरबार में प्रसिद्ध चिकित्सक भी हुआ करते थे जिनका नाम था चरक जिन्होंने महत्त्वपूर्ण पुस्तक चरक संहिता की र की थी धीरे-धीरे कुषाण की शक्ति कमजोर होने लगी और कुषाण की शक्ति कमजोर होने की वजह से ही एक और साम्राज्य की स्थापना हुई जिसे हम गुप्ता एंपायर जिसे हम गुप्त साम्राज्य कहते हैं कुषाण के ही दरबार में सामंत हुआ करते थे लेकिन खुद को कुषाण से स्वतंत्र करके इन्होंने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की जिसे हम गुप्ता एंपायर या गुप्त साम्राज्य कहते हैं कुषाण वंश जैसे-जैसे कमजोर हुआ तो कुषाण के ही सामंतों ने खुद को इंडिपेंडेंट किया और ध्यान रखेंगे एक नए साम्राज्य की स्थापना हुई चच इज नोन एज गुप्ता एंपायर जिसको हम कहते हैं गुप्त साम्राज्य और याद रखेंगे 3199 ईसवी से लेकर लगभग 550 ईसवी तक यहां चला गुप्त साम्राज्य यहां पर चला गुप्ता एंपायर गुप्त साम्राज्य की स्थापना श्री गुप्त नामक शासक के द्वारा की गई थी या आप कह सकते हैं द फाउंडर ऑफ गुप्ता एंपायर द फाउंडर ऑफ गुप्ता एंपायर वास रूलर नेड श्री गुप्त गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त नामक शासक के द्वारा की गई थी जिसने महाराज या महाराजा की उपाधि धारण की गुप्त साम्राज्य के सोर्स से हमें जानकारी मिलती है कि गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने की श्री गुप्त के बाद इसका उत्तराधिकारी बना घटोत कच लेकिन गुप्त साम्राज्य का एक्चुअल फाउंडर या वास्तविक संस्थापक माना जाता है चंद्रगुप्त प्रथम चंद्रगुप्त फर्स्ट या चंद्रगुप्त प्रथम इसने 319 ईसवी में यह गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा और इसने एक नया संवत चलाया जो कहलाता है गुप्त संवत इसी के द्वारा गुप्त संवत चलवा गया था और ध्यान रखेंगे गुप्तकालीन शासकों में यह सबसे पहला राजा था जिसने सिक्के जारी किए थे जिसने कॉइन से इशू किए थे इसका उत्तराधिकारी इसका पुत्र हुआ समुद्रगुप्त और उसके बाद समुद्रगुप्त बना अगला शासक आप जानते हैं समुद्रगुप्त को ही भारत का नेपोलियन कहा जाता है क्योंकि यह फेमस था अपने आर्मी मिशंस के लिए दक्षिण भारत के 12 और उत्तर भारत के नौ शासकों को इसने पराजित किया था और इसी के द्वारा अपने दरबारी लेखक हरिषेण के द्वारा इसने प्रयाग प्रशस्ति भी लिखवाई थी समुद्रगुप्त के दो बेटे थे बड़े बेटे का नाम था राम गुप्त जो उसके बाद इसका उत्तराधिकारी हुआ जिसके बारे में जानकारी हमें केवल दो सोर्सेस से मिलती है एक रण अभिलेख से और एक देवीचंद्रगुप्तम नामक उपन्यास से जिसको विशाख दत्त के द्वारा लिखा गया था इसके अलावा राम गुप्त का उत्तराधिकारी इसका छोटा भाई चंद्रगुप्त द्वितीय हुआ जिसे गुप्त साम्राज्य का सबसे महान राजा माना जाता है इसी ने सबसे पहले भारत के इतिहास में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी दोस्तों याद रखेंगे भारत के इतिहास में ऐसे 14 शासक हुए हैं जिन्होंने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की है सबसे पहला चंद्रगुप्त सेकंड और अंतिम अकबर का समकालीन राजा हेमू हुआ करता था जिसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी चंद्रगुप्त सेकंड के ही शासनकाल में 399 ईसवी में प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान भारत आया जो लगभग 14 इयर्स तक 14 वर्षों तक भारत में रहा चंद्रगुप्त द्वितीय ही भारत के इतिहास का पहला शासक माना जाता है जिसने अपने दरबार में नवरत्न रखे थे जिसमें से महाकवि कालिदास भी एक हुआ करते थे चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी इसका पुत्र कुमारगुप्त हुआ जो कुमारगुप्त महेंद्रा दित्य के नाम से प्रसिद्ध है कुमारगुप्त के ही शासनकाल के सर्वाधिक अभिलेख हमें प्राप्त हुए हैं कुमारगुप्त का नाम तब आता है जब बात होती है नालंदा विश्वविद्यालय की कुमारगुप्त ने ही अपने शासनकाल में भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालय या वर्तमान भारत के प्राचीनता विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई थी वैसे तो भारत की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी तक्षशीला मानी जाती है लेकिन वह वर्तमान भारत में नहीं है वर्तमान में तक्षशीला पाकिस्तान में है वर्तमान भारत की प्राचीनतम यूनिवर्सिटी या प्राचीनतम विश्वविद्यालय कहलाता है नालंदा जिसकी स्थापना कुमार गुप्त ने करवाई कुमार गुप्त के बाद अगला शासक आया स्कंदगुप्त और स्कंद गुप्त को ही हूणों का विनाशक कहा जाता है क्योंकि ों का पहला आक्रमण इसी के शासनकाल में हुआ था और इसी ने गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील की दूसरी बार मरम्मत भी करवाई थी इसे गुप्त साम्राज्य का अंतिम महान राजा माना जाता है क्योंकि इसके बाद तेजी से हूणों के आक्रमण लगातार गुप्त साम्राज्य पर होने लगे और धीरे-धीरे छठी शताब्दी में 550 ईसवी के आसपास आते-आते गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया द लास्ट रूलर ऑफ गुप्ता डायनेस्टी गुप्त साम्राज्य का अंतिम राजा ध्यान रखेंगे हुआ विष्णुगुप्त जैसे ही गुप्त साम्राज्य समाप्त हुआ उसके बाद पूरे के पूरे उत्तर भारत में अनस्टेबल बन गई और ध्यान रखेंगे इसके बाद छठी शताब्दी में एक और वंश की स्थापना हुई एक और डायनेस्टी आई जो कहलाती है पुष्यभूति डायनेस्टी जिसे हम कहते हैं पुष्यभूति वंश और इसी पुष्यभूति वंश में भारत का अंतिम हिंदू सम्राट शासन करने के लिए आता है जिसे हम जानते हैं हर्षवर्धन के नाम से सम्राट हर्षवर्धन हर्षवर्धन की राजधानी थानेश्वर हुआ करती थी जो वर्तमान में हरियाणा में है और इसकी दूसरी राजधानी उत्तर प्रदेश का कन्नौज हुआ करती थी कहने का मतलब जो अभी तक 600 ईसा पूर्व से इंपॉर्टेंस चली आ रही थी पिछले लगभग 1200 साल से मगध की पाटलीपुत्र की अब राजनैतिक तौर पर ज्यादा महत्त्वपूर्ण जगह हो चुकी थी उत्तर प्रदेश का कन्नौज हर्षवर्धन के शासनकाल में ही प्रसिद्ध चीनी यात्री हुन सांग भारत आया जिसने सीयू की नामक पुस्तक लिखी और जिससे हमें महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं हर्षवर्धन के शासनकाल के बारे में ऐसा कहते हैं कि हर्षवर्धन भारत का अंतिम हिंदू सम्राट था जिसने पूरे आर्यवर्त क्षेत्र पर अधिकार किया था लेकिन हर्षवर्धन दक्षिण भारत नहीं जा पाया क्योंकि दक्षिण भारत में चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन सेकंड या पुलकेशिन द्वितीय के द्वारा हर्षवर्धन को पराजित कर दिया गया हर्षवर्धन की मृत्यु हो जाने के बाद सेवंथ सेंचुरी में पूरी तरीके से अनस्टेबल आई राजनैतिक तौर पर सबसे महत्त्वपूर्ण जगह कन्नौज बन चुकी थी इसीलिए कन्नौज को लेकर तीन राजवंशों के बीच में एक गृह युद्ध चला एक त्रिपक्षीय संघर्ष चला जो लगभग 200 साल तक चलता रहा और आप जानते होंगे यह जो कन्नौज को लेकर त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ यह हुआ प्रति हारों के बीच में पाल शासकों के बीच में और राष्ट्र कूटों के बीच में गुजरात और राजस्थान के प्रतिहार बंगाल के पाल शासक और दक्कन के राष्ट्र कूटों में कन्नौज को लेकर एक त्रिपक्षीय संघर्ष चला जिसको जीता प्रतिहार ने और फाइनली कन्नौज पर अधिकार हुआ गुर्जर प्रतिहार वंश का और दोस्तों ध्यान रखेंगे यहीं से प्री मेडि वल इंडिया की शुरुआत हो जाती है पूर्व मध्यकालीन भारत की शुरुआत होती है जिसमें हम कुछ उत्तर भारतीय राजवंश पढ़ते हैं जैसे कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार डायनेस्टी गुर्जर प्रतिहार वंश उसके अलावा दिल्ली के चौहान जिसमें हम पृथ्वीराज चौहान की बात करते हैं बंगाल में पाल और सेन वंश की बात हम करते हैं उसके बाद हम बुंदेलखंड में चंदेल वंश की बात करते हैं मालवा के परमार वंश की बात करते हैं उसके अलावा हम अलवाड़ी वंश की बात करते हैं यह सारी की सारी वो डायनेस्टीज हैं जो उत्तर भारतीय डायनेस्टीज कहलाते हैं और उधर अगर हम दक्षिण भारत में बात करें तो दक्षिण भारत में चालुक्य वंश हुआ करता था दक्षिण भारत में वकाटक वंश हुआ करता था दक्षिण भारत में ही राष्ट्रकूट वंश हुआ करता था दक्षिण भारत में ही पल्लव और चोल साम्राज्य हुआ करता था तो कहने का मतलब है यह वह समय था सेवंथ और एथ सेंचुरी जब हमारे देश में एक तरीके से राजनैतिक अस्थिरता चल रही थी अनस्टेबल चल रही थी इसी का फायदा उठाकर हमारे देश में सबसे पहला मुस्लिम इनवेजन हुआ सबसे पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ जो अरब से हुआ और अरब का ही एक सेनापति जिसका नाम मोहम्मद बिन कासिम था उसने 712 ईसवी में भारत पर आक्रमण किया और वहीं से शुरुआत हो गई मेडिएविल इंडिया या मध्यकालीन भारत की तो यहीं से हम मध्यकालीन भारत के बारे में डिस्कस करना शुरू करेंगे तो दोस्तों यह था एंट इंडिया और एंट इंडिया का एक क्विक रिवीजन जो हमने लिमिटेड से टाइम में लिमिटेड से टाइम पीरियड में क्या किया समाप्त किया तो अब हम बात करते मेडि वल इंडिया या मध्यकालीन भारत के तो चलिए दोस्तों अब हम बात करते हैं मेडि वल इंडिया या मध्यकालीन भारत के बारे में आप जानते हैं मेडि वल इंडिया मध्यकालीन भारत की शुरुआत 712 ईसवी से मानी जाती है क्योंकि 712 ईसवी में हमारे देश पर सबसे पहला सफल मुस्लिम इनवेजन या आक्रमण हुआ जो अरबों के द्वारा किया गया मोहम्मद बिन कासिम वह व्यक्ति था जिसने सबसे पहले भारत पर सफल मुस्लिम आक्रमण किया था लेकिन 1700 712 ईसवी से लेकर 1707 ईसवी तक यह लगभग 1000 साल का जो पीरियड है इसी को हम कहते हैं मध्यकालीन भारत और इसमें हमें पढ़ना होता है मुस्लिम रूल इन इंडिया या भारत में मुस्लिम शासन तो चलिए शुरुआत करते हैं मेडि वल इंडिया या मध्यकालीन भारत की और ध्यान रखेंगे अगर हम मेडि वल इंडिया की बात करें अगर हम मध्यकालीन भारत की बात करें इसकी शुरुआत ही किससे होती है इस्लाम के उदय से क्योंकि इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए और हिंदुस्तान से लूट पाट करने के उद्देश्य से ही मुस्लिम इनवेडर्स का यहां पर आगमन हुआ था यहां पर अराइवल हुआ था तो सबसे पहले ही हम थोड़ा सा जानेंगे किसके बारे में इस्लाम के बारे में सबसे पहले ही हम इस्लाम के बारे में बात करते हैं आप जानते हैं इस्लाम इज अ रिलीजन इस्लाम एक धर्म है जिसे एकेश्वरवाद धर्म माना जाता है जिसमें केवल एक ईश्वर को महत्व दिया जाता है और उस ईश्वर को अरबी भाषा में अल्लाह कहा जाता है और फारसी भाषा में खुदा और ऐसा इस्लाम के अकॉर्डिंग माना जाता है कि अल्लाह एक है उसके जैसा कोई नहीं और जो पैगंबर मोहम्मद है प्रोफेट मोहम्मद है वह धरती पर अल्लाह के आखिरी रसूल है मैसेंजर हैं या संदेशवाहक हैं अगर हम अल्लाह को इमेजिन भी करने की कोशिश करेंगे तो नहीं कर पाएंगे ही इज बियोंड आवर इमेजिनेशंस और जिसको हम इमेजिन ही नहीं कर सकते क्या उसकी कोई इमेज बनेगी डेफिनेटली नहीं बनेगी इसीलिए अल्लाह की ना कोई सूरत है ना ही कोई मूरत और यही कारण है कि इस्लाम धर्म में स्टैचू वरशिप इज स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड मूर्ति पूजा पूरी तरीके से प्रोहिबिटेड है प्रतिबंधित है इस्लाम धर्म में लेकिन इस्लाम धर्म को मानने के पांच पिलर्स या पांच स्तंभ होते हैं जिसमें सबसे पहला होता है बिलीव इन कलमा कलमा पर तबार वह व्यक्ति जो कलमा पर विश्वास करता है कलमा इस्लाम धर्म के कुछ पवित्र शब्द हैं ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद रसूल अल्लाह अल्लाह एक है उसके जैसा दूसरा कोई नहीं और पैगंबर हजरत मोहम्मद धरती पर अल्लाह के आखिरी रसूल हैं जो व्यक्ति बिना सवाल और बिना डाउट करे इस बात पर ऐतबार करता है कलमा पर बिलीव करता है वही कहलाता है मुसलमान यह इस्लाम धर्म को मानने का फॉलो करने का सबसे पहला स्तंभ और सबसे पहला पिलर है इसके बाद एक सच्चा मुसलमान दिन में पांच बार नमाज अदा करेगा जब अजान होगी जो कि अरबी भाषा में होती है तो वह पांच बार दिन में नमाज पढ़ेगा प्रेयर करेगा रमजान के महीने में वह हमेशा फास्टिंग करेगा रोजा रखेगा और रमजान के बाद ही क्या मनाई जाती है ईदुल फितर मनाई जाती है या ईद का त्यौहार मनाया जाता है इसके अलावा जीवन में मिनिमम एक बार अगर पॉसिबल हुआ तो अपनी सारी जिम्मेदारियों से फ्री होकर बिना किसी की आर्थिक मदद के वह हज यात्रा करेगा यानी कि इस्लाम धर्म के दो सबसे बड़े पिलग्रिम्स मक्का और मदीना विजिट करेगा और एक सच्चा मुसलमान हमेशा जकात देगा एक साल में वह जितनी भी आमदनी करेगा वह जितना भी कमाई करेगा उसका ढाई प्रतिशत या 1 ब 40 वह क्या करेगा दान करेगा लेकिन बाईने हाथ को भी नहीं पता चलना चाहिए कि दाहिने हाथ ने क्या दान किया है उसे पूरी तरीके से गुप्त रखा जाएगा पूरी तरीके से गोपनीय रखा जाएगा लेकिन इस्लाम धर्म का इतिहास क्या है फाउंडर ऑफ इस्लाम वास प्रोफेट मोहम्मद साहब इस्लाम धर्म की स्थापना हजरत मोहम्मद साहब के द्वारा की गई और ध्यान रखेंगे हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईसवी में सऊदी अरब के ही एक शहर मक्का में हुआ था यहीं पर 610 ईसवी में इनका इनलाइटनमेंट हुआ एक गुफा में जिसे हीरा नामक गुफा कहा जाता है और वहीं से बाहर आकर इन्होंने अल्लाह का संदेश दिया लोगों को और लोगों से कहा कि अल्लाह ने अपने एक फरिश्ते जिब्राइल को मेरे पास भेजा जिसने अल्लाह का संदेश मुझे दिया है कि और बताया है कि आप धरती पर अल्लाह के ही क्या है संदेशवाहक है मैसेंजर है रसूल हैं मेरी बात पर बिलीव कीजिए जिन लोगों ने बिना सवाल करे इस बात पर बिलीव किया वही बन गए मुसलमान और इस्लाम धर्म का उदय सेवंथ सेंचुरी में हुआ या सातवीं शताब्दी में हुआ इसके बाद पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपने उपदेश देने शुरू किए इनकी पॉपुलर धीरे-धीरे बढ़ने लगी लेकिन इनकी बढ़ती हुई पॉपुलर इनसिक्योरिटी बन गई उन एसिस्टिंग धर्मों के लिए जो पहले से ही वहां पर एजिस्ट करते थे इसीलिए इन्हें हमेशा के लिए मक्का छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया और हमेशा के लिए 622 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का छोड़कर हमेशा के लिए मदीना चले गए और ध्यान रखेंगे जिस वर्ष यह मक्का छोड़कर मदीना गए उसी वर्ष को इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत माना जाता है और 622 ईसवी में ही शुरू हुआ हिजरी संवत और आप जानते होंगे जो इस्लामिक कैलेंडर है व हिजरी संवत से ही चलता है मक्का से मदीना जाने की जो इनकी जर्नी थी जो इनकी यात्रा थी उसी को इस्लाम धर्म में कहा जाता है हिजरत उसी को इस्लाम धर्म में हिजरत कहा गया है इसके बाद पैगंबर मोहम्मद साहब हमेशा के लिए मदीना में ही रहे यह मक्का से मदीना शिफ्ट हो गए और वहीं पर 632 ईवी में इनकी मृत्यु कहां पर हुई मदीना में हुई लेकिन जब पैगंबर मोहम्मद साहब की मृत्यु हुई तो सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि अब इनका उत्तराधिकारी कौन होगा अब इनका सक्सेसर कौन होगा मोहम्मद साहब के सबसे पहले शिष्य इन्हीं के दामाद अली हुआ करते थे जो इनके सक्सेसर उत्तराधिकारी बनने के सबसे बड़े दावेदार थे लेकिन सबसे पहले उत्तराधिकारी इनके एक और अनुयाई बना दिए गए जिनका नाम था अबू बक्र और ध्यान रखेंगे इस्लाम जगत में मोहम्मद साहब के उत्तराधिकार हों को ही खलीफ या खलीफा कहा गया इस्लाम जगत के पहले खलीफा अबू बक्र बने उसके बाद उमर और उसके बाद उस्मान और फिर चौथे नंबर पर बने अली और जब अली चौथे नंबर पर खलीफा बने तो इसी बात को लेकर एक विवाद हुआ और वह विवाद यह कि कुल मुसलमानों में से 15 से 20 प्रत मुसलमान ऐसे थे जो अली के डाई हार्ट फॉलोवर थे और जिन्हें जिनका यह मानना था कि हम इस्लाम जगत का सबसे पहला खलीफा ही किसे मानेंगे अली को मानेंगे जिन लोगों ने अली को पहला खलीफा माना वही क्या शिया मुस्लिम्स और जिन 80 से 85 प्र मुसलमानों ने अबू बक्र को ही सबसे पहला खलीफा माना वही कहलाए सुन्नी मुस्लिम्स और इस्लाम दो समुदायों में विभाजित हुआ एक कहलाए शिया मुस्लिम्स एक कहलाए सुन्नी मुस्लिम्स आगे चलकर शिया और सुन्नियों के बीच में मतभेद हुए और इन्हीं के मतभेदों को कम करने के लिए एक और कम्युनिटी की स्थापना हुई जिसे हम कहते हैं सूफी सूफियों का कहना था हम केवल अल्लाह में बिलीव करते हैं अल्लाह को अपना महबूब समझकर उससे मोहब्बत करते हैं अल्लाह से प्रेम करना ही उसकी इबादत करना है और उसकी इबादत करने का सबसे सही तरीका है सूफी म्यूजिक या सूफी संगीत इसीलिए जब हम दरगा हों पर पीरों पर मजारों पर जाते हैं तो हमेशा वहां पर हमें सूफी संगीत या कवालियां होती हु मिलती हैं जिसका उद्देश्य मनोरंजन नहीं बल्कि अल्लाह की इबादत करना है क्योंकि एक सूफी का अल्लाह की इबादत करने का तरीका ही क्या है सूफी संगीत सूफी म्यूजिक कहने का मतलब हमें सऊदी अरब से ही या अरब से ही तीन कम्युनिटीज मिली इस्लाम से शिया मुस्लिम्स सुन्नी मुस्लिम्स और सूफी इसके बाद अरब से ही दुनिया के अलग-अलग देशों में मुस्लिम शासकों को भेजा गया और कहा गया जाइए और जाकर पूरी दुनिया में प्रचार कीजिए इस्लाम धर्म का और हमारे देश पर इसी के बाद हुआ सबसे पहला मुस्लिम इनवेजन मुस्लिम आक्रमण जो अरब से हुआ इसीलिए इसको हम कहते हैं अरेबियन इनवेजन यह कहलाता है अरबों का आक्रमण अरेबियन इनवेजन या अरबों का आक्रमण और अरबों के आक्रमण में आप जानते हैं भारत पर आक्रमण करने वाला सबसे पहला सफल मुसलमान हुआ मोह बिन कासिम नाम याद रखेंगे इंपॉर्टेंट है एग्जाम में पूछा भी जाता है इसका पीरियड 712 ईसवी से लेकर 714 ईसवी तक रहा मोहम्मद बिन कासिम जिस समय मोहम्मद बिन कासिम हिंदुस्तान में आया उस समय हिंदुस्तान में सिंध में ब्राह्मण वंश चला करता था जिसमें शासन किया करता था दाहिर नाम का एक हिंदू शासक और उस समय अरब में रूल किया करता था एक रूलर जिसका नाम था अल हज्जाज उसी अल हज्जाज का सेनापति हुआ करता था मोहम्मद बिन कासिम और अल हज्जाज ने अपने 16 वर्षीय सेनापति मोहम्मद बिन कासिम को ही सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा था 712 ईसवी में ही मोहम्मद बिन कासिम हिंदुस्तान पर आक्रमण करने वाला सबसे पहला सफल मुसलमान हुआ ही अटैक्ड सिंध एंड डिफीटेड हिंदू रूलर नेम दाहिर इसने सिंध पर आक्रमण किया और सिंध पर आक्रमण करके वहीं पर शासन कर रहे एक हिंदू रूलर को पराजित किया जो कि ब्राह्मण वंश का राजा था जिसका नाम था दाहिर दाहिर को पराजित करके इसने दाहिर की हत्या की और दाहिर की दो पुत्रियां सूर्य देवी और परमल देवी दोनों को अगवा करके भेज दिया गया अल हज्जाज के पास उसके पुत्रों के लिए और सिंध पर अधिकार हुआ मोहम्मद बिन कासिम का सिंध वासियों से मोहम्मद बिन कासिम ने कहा अभी तक आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दाहिर की थी लेकिन अब आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है यू हैव टू ऑप्शंस आइर अडॉप्ट इस्लाम या तो आप इस्लाम धर्म कबूल कीजिए या फिर आपको एक टैक्स देना होगा जो कहलाता था जजिया तो ध्यान रखेंगे भारत में सबसे पहले जजिया वसूल करने वाला या जजिया लगाने वाला भी मोहम्मद बिन कासिम ही हुआ जजिया एक प्रकार का टैक्स कर हुआ करता था जो गैर मुसलमानों से वसूल किया जाता था उनकी आय के 1/2 से लेकर 2/3 तक इसके अलावा मोहम्मद बिन कासिम ने यहां पर स्वर्ण सिक्के चलवाई गोल्ड कॉइंस चलवाई जिन्हें दिरहम कॉइंस या दिरहम सिक्के कहा जाता था तो मुसलमानों में भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के चलवा वाला भी कौन हुआ मोहम्मद बिन कासिम हुआ यही भारत में यही भारत में लेकर आया अरबी घोड़े अरेबियन हॉर्सेसगर्ल्सेक्स इता और पंचतंत्र का अरबी में अनुवाद भी करवाया पंचतंत्र का अनुवाद कालीना व दिम नामक या नाम से किया गया दो साल तक सिंध पर अधिकार मोहम्मद बिन कासिम का रहा लेकिन 714 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम को अल हज्जाज के द्वारा वापस बुला लिया गया ऐसा कहते हैं कि दाहिर की जो दो बेटियां थी सूर्य देवी और परमल देवी उन्होंने अल हज्जाज को मोहम्मद बिन खला मोहम्मद बिन कासिम के खिलाफ भड़काया और कहा कि हमारी असमत और आबरू पहले ही वो लूट चुका है इस बात से नाराज हुआ अल अजाज अल अजाज ने वापस मोहम्मद बिन कासिम को बुलाया और ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद बिन कासिम को मृत्यु दंड दे दिया गया यह भारत पर होने वाला सबसे पहला मुस्लिम इनवेजन था लेकिन सक्सेसफुली भारत पर इनवेजन तब माना जाता है जब 11वीं शताब्दी में अफगानिस्तान के गजनी का एक शासक महमूद ऑफ गजनी या महमूद गजनवी हिंदुस्तान आया तो उसके बाद मुसलमानों के हमारे देश पर दो तुर्क आक्रमण हुए दो टर्किश इनवेजन हुए अब हम बात करते हैं कि इनवेजंस के बारे में टर्किश इनवेजंस या तुर्क आक्रमण और भारत पर तुर्क आक्रमणकारियों में सबसे पहला व्यक्ति कौन हुआ महमूद ऑफ गजनी या महमूद गजनवी जिसका भारत में पीरियड 1000 ईसवी से लेक 1027 ईसवी तक रहा कौन था महमूद गजनवी इसे हिंदुस्तान आने की जरूरत क्यों पड़ी यह एक तुर्क हुआ करता था यह एक टर्किश हुआ करता था और शासन किया करता था अफगानिस्तान के गजनी नामक स्थान पर दोस्तों अफगानिस्तान में एक शहर है गजनी वहीं पर एक वंश चला करता था गजनी वंश या यामिनी वंश जिसकी स्थापना अलप्तगिन नामक शासक के द्वारा की की गई थी अलप्तगिन का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था लेकिन उसका गुलाम और दामाद सुबुक्तगीन उसके बाद अगला शासक बना और सुबुक्तगीन का ही बेटा हुआ महमूद गजनवी और जब सुबुक्तगीन की मृत्यु हुई तो ध्यान रखेंगे सुबुक्तगीन के ही मरने के बाद 997 98 ईसवी में गजनी के सिंहासन पर बैठा महमूद गजनवी और यह कसम खाकर बैठा कि हिंदुस्तान में हर साल एक आक्रमण करेगा इसका हिंदुस्तान में बार-बार आक्रमण करने का उद्देश्य यहां पर मूर्ति पूजा को खंडित करना था और यहां से धन लूटना था यहां से सोना लूटना था क्योंकि इसका उद्देश्य हुआ करता था यहां से सोना लूटकर गजनी वापस लौटना और अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना और यही कारण है दोस्तों कि 1000 ईसवी से लेकर 1027 ईसवी तक 1000 ईसवी से लेकर 1027 ईसवी तक महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए इसने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए और ध्यान रखेंगे सबसे पहला आक्रमण महमूद गजनवी का 1000 ईसवी में हुआ जो इसने कहां पर किया तो ध्यान रखेंगे पेशावर में क्योंकि उस समय पेशावर में ही एक डायनेस्टी चला करती थी जो कहलाती थी हिंदू शाही डायनेस्टी और उसी में एक रूलर रूल किया करता था जिसका नाम था जयपाल और ऐसा कहते हैं कि वह हिंद के प्रथम युद्ध में इसी जयपाल को पराजित किया गया महमूद गजनवी के द्वारा जयपाल हिंदू शाही वंश या हिंदू शाही डायनेस्टी का राजा हुआ करता था यह महमूद गजनवी का भारत में सबसे पहला अटैक था लेकिन यह अनिर्स नहीं निकला अगले ही साल 100 1001 ईसवी में महमूद गजनवी डिफीटेड जयपाल महमूद गजनवी ने जयपाल को पराजित किया जयपाल अपमानित हुआ और जयपाल ने महमूद गजनवी से हारने के बाद आग में कूदकर आत्म दहा कर लिया आत्महत्या कर ली ऐसा माना जाता है और जयपाल के मरने के बाद जयपाल का पुत्र आनंदपाल हिंदू शाही वंश का अगला राजा बन गया जिसको 1008 ईसवी में व हिंद के दूसरे युद्ध में महमूद गजनवी ने पराजित कर दिया लेकिन महमूद गजनवी का आप जानते हैं सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध आक्रमण इसका सवा आक्रमण माना जाता है जो कि 1025 ईसवी में हुआ था और कहां पर गुजरात के सोमनाथ टेंपल पर गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर और ध्यान रखेंगे जिस समय इसने सोमनाथ मंदिर को लूटा था उस समय गुजरात का शासक भीम फर्स्ट या भीम प्रथम हुआ करता था जो कि अन हेलवा के चालुक्य वंश का राजा था गुजरात के सोमनाथ मंदिर को ही लूटकर वहां से सोना लूटकर जब यह उत्तर भारत की तरफ जा रहा था तो रास्ते में इसकी भिड़ंत जाटों से हुई और ऐसा कहते हैं कि जो सोने का दरवाजा यह सोमनाथ मंदिर से लूटकर ला रहा था वह इस से वापस जाटों ने लूट लिया था इसी बात का बदला लेने के लिए महमूद गजनवी ने अपना लास्ट अटैक अपना अंतिम आक्रमण 1027 ईसवी में जाटों पर ही किया था और जाटों को पराजित करके यह वापस गजनी लौट गया उसके बाद इसका आक्रमण भारत पर नहीं हुआ क्योंकि 1030 ईसवी में गजनी में ही इसकी डेथ हो गई इसकी मृत्यु हो गई महमूद गजनवी भारत के इतिहास में सबसे पहला मुस्लिम माना जाता है जिसने सुल्तान और गाजी की उपाधि धारण की थी ही टूक द टाइटल ऑफ सुल्तान एंड गाजी सुल्तान एक उपाधि हुआ करती थी जो ऑफिशियल वैधानिक रूप से बगदाद के खलीफा के द्वारा द दी जाती थी लेकिन महमूद गजनवी ने खुद अपने आप को सुल्तान कहवा था और सुल्तान की उपाधि धारण की थी इसे किसी खलीफा ने सुल्तान की उपाधि नहीं दी थी और गाजी का मतलब काफिरों का नाश करने वाला योद्धा ही क्या कहलाता है गाजी तो महमूद गजनवी से सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट जो सवाल आता है वह सोमनाथ टेंपल गुजरात से ही रिलेटेड आता है और संबंधित महत्त्वपूर्ण सवाल आता है महमूद गजनवी के फेमस राइटर्स इसके प्रसिद्ध लेखक तो आप जानते महमूद गजनवी का समकालीन सबसे प्रसिद्ध लेखक माना जाता है अल बूनी अल बूनी जो कि महमूद गजनवी के साथ भारत भी आया था और अल बूनी ने ही एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी जो कहलाती है किताब उल हिंद या तहकीक हिंद इसके अलावा एक और इसका प्रसिद्ध लेखक जिसका नाम था फिरदौसी जिसने शाहनामा नामक पुस्तक लिखी थी और एक याद रखेंगे वै हाकी जिसके द्वारा लिखी गई थी तारीख ए सुबुक्तगीन जिसके द्वारा तारीख सुबुक्तगीन लिखे गई थे इसके अलावा ध्यान रखेंगे भाई महमूद गजनवी को मूर्ति भंजक या बुत शिकन भी कहा जाता है क्योंकि महमूद गजनवी ही यहां पर आकर टारगेट किया करता था टेंपल्स को मंदिरों को और मंदिरों को तुड़वा करर वहां पर रखी मूर्तियों को भी खंडित करवा दिया करता था इसलिए इसको बुत शिकन या मूर्ति भंजक भी कहा जाता है महमूद गजनवी के बाद जो अगला तुर्क आक्रमण भारत पर हुआ वह गजनी के ही शासक ने किया जो गजनी वंश का नहीं बल्कि गौर वंश का था जिसे हम मोहम्मद गौरी के नाम से जानते हैं महमूद गजनवी के बाद भारत में आगमन हुआ मोहम्मद गौरी का का 1175 ईसवी से लेकर इसका पीरियड रहा 1206 ईसवी तक का यह एक संस बानी टर्किश यह एक संस भी तुर्क था और अपने साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से ही हिंदुस्तान आया था और इसने हिंदुस्तान में अपना सबसे पहला ्र मण 1175 ईसवी में किया था इसका सबसे पहला आक्रमण 1175 ईसवी में हुआ जो इसने किया मुल्तान पर आज मुल्तान पाकिस्तान में है उस समय वह भारत का ही भाग था और मुल्तान में कमाथ मुसलमानों पर कमाथ जाति के मुस्लिम्स पर कमाथ जाति के ही मुसलमानों पर इसने ने अपना सबसे पहला आक्रमण किया था यह बात 1175 की है इनके साथ लूटपाट करके यह वापस लौटा और इसके बाद ध्यान रखेंगे 1178 ईसवी में 1178 में मोहम्मद गौरी अटैक्ड गुजरात मोहम्मद गौरी ने भी गुजरात पर आक्रमण किया और जब इसने गुजरात पर आक्रमण किया तो ध्यान रखेंगे इस समय गुजरात में शासक कर रहा था चालुक्य वंश का ही भीम द्वितीय या मूलराज सेकंड या मूलराज द्वितीय क्योंकि मूलराज द्वितीय इससे ज्यादा पावरफुल था इसीलिए उसने मोहम्मद गौरी पर क्रॉस अटैक कर दिया मोहम्मद गौरी की सेना कमजोर साबित हुई मोहम्मद गौरी अपनी सेना लेकर वापस भाग खड़ा हुआ लेकिन उसका पीछा किया मूलराज दत्य या भीम सेकंड ने इसकी सेना का नेतृत्व इसकी माता नायिका देवी कर रही थी और राजस्थान के ही माउंट आबू में जाकर 1178 में मोहम्मद गौरी को भारत में सबसे पहले ही किसने पराजित किया भीम सेकंड ने या मूलराज सेकंड ने एग्जाम में पूछते हैं कि भारत में मोहम्मद गौरी को सबसे पहले किसने हराया था तो ध्यान रखेंगे मूलराज सेकंड ने या भीम सेकंड ने इसके बाद मोहम्मद गौरी उत्तर भारत चला गया और उत्तर भारत जाकर इसने कश्मीर और पंजाब के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया इसी के समकालीन दिल्ली में चौहान चल रहा था और चौहान वंश में शासन कर रहा था पृथ्वीराज चौहान आप जानते हैं पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश का तीसरा पृथ्वीराज था इसको पृथ्वीराज तृत्य भी कहते हैं और यह राय पिथौरा भी कहलाता है मोहम्मद गौरी ने पंजाब के भटिंडा में एक किला हुआ करता था जिसे तबर हिंद का किला कहते थे या बठिंडा फोर्ट कहते हैं उस पर अपनी दावेदारी पेश की लेकिन उस पर तो दावेदारी पृथ्वीराज चौहान की थी इसी बात को लेकर दोनों के बीच में एक विवाद हुआ पृथ्वीराज चौहान का ही दरबारी कवि और मित्र चंद्र बदाई हुआ करता था जिसने एक प्रसिद्ध महाकाव्य लिखा जिसका नाम था पृथ्वीराज रासो और आप जानते होंगे पृथ्वीराज रासो ही वह सबसे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत और महत्त्वपूर्ण सोर्स है जो हमें मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच में लड़ाइयां के बारे में जानकारी देता है हालांकि पृथ्वीराज रासो में चंद्र वदाई ऐसा लिखता है कि बार-बार पंजाब से मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान पर अटैक किया करता था और बार-बार पृथ्वीराज च उसे पराजित कर दिया करता था लेकिन पराजित होते ही वह पृथ्वीराज चौहान से माफी मांग लिया करता था और पृथ्वीराज चौहान उसे बार-बार माफ कर दिया करता था ऐसा 16 बार हुआ लेकिन ऐसा 16 बार हुआ यह बात केवल चंद्र वदाई की पृथ्वीराज रासो में है बाकी इतिहासकारों का ऐसा कहना है कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच में दो प्रसिद्ध युद्ध लड़े गए थे एक 1191 में फर्स्ट बैटल ऑफ तराइन या तराइन का प्रथम युद्ध तराइन का प्रथम युद्ध जिसमें मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने पराजित किया लेकिन मोहम्मद गौरी ने माफी मांगी और पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड़ दिया लेकिन इसके बाद कहानी में एक नया मोड़ आया उत्तर प्रदेश के कन्नौज में एक डायनेस्टी चला करती थी जो गढ़वाल डायनेस्टी कहलाती थी और जिसमें रूल किया करता था राजा जयचंद इसी राजा जयचंद की पुत्री हुआ करती थी संयोगिता और संयोगिता से ही प्रेम किया करता पृथ्वीराज चौहान उसे विवाह करना चाहता था एक बार राजा जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर आयोजित करवाया जिसमें सारे के सारे शासकों को आमंत्रित किया गया लेकिन नहीं बुलाया गया पृथ्वीराज चौहान को इसीलिए पृथ्वीराज चौहान ने कन्नौज जाकर भरे स्वयंबर से संयोगिता को अगवा कर लिया और उसे विवाह कर लिया जिस बात से बेहद नाराज हो गया राजा जयचंद और आप जानते हैं राजा जयचंद्र ने पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने की कस सम खाली और अगले साल 1192 ईसवी में भारत के इतिहास का सबसे प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया सेकंड बैटल ऑफ तराइन मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच इस बार पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को नहीं बल्कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया और उसकी हत्या कर दी क्योंकि इस बार मोहम्मद गौरी की मदद राजा जयचंद कर रहा था घर का विधि लंका ढाए और इसी के बाद यहीं से मुस्लिम रूल या मुस्लिम शासन की स्थापना मोहम्मद गौरी ने हिंदुस्तान में की हालांकि चंद्र बदाई पृथ्वीराज रासो में ऐसा लिखता है कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या नहीं की थी बल्कि उसे गजनी ले गया था और वहां पर जाकर उसने पृथ्वीराज चौहान को अंधा करवा दिया और अंधे पृथ्वीराज ने ही शब्द भेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी की हत्या की थी मोहम्मद गौरी को मारा था लेकिन ज्यादातर इतिहासकार इस बात का खंडन करते हैं इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में ही या दूसरे युद्ध के ही बाद भारत में स्थापना हुई मुस्लिम शासन की तो भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय किसे जाता है मोहम्मद गौरी को जाता है और इसी के अगले साल 1193 में मोहम्मद गौरी ने भारत में अपनी राजधानी भी किसे बना लिया दिल्ली को लेकिन इसी के अगले साल 1194 में एक युद्ध एक प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जो कहलाता है बैटल ऑफ चंदावर और ध्यान रखेंगे इसी चंदावर के युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पराजित करके हत्या की राजा जयचंद की और इस युद्ध को जीतने में मोहम्मद गौरी की महत्त्वपूर्ण मदद की और भूमिका निभाई मोहम्मद गौरी के ही एक गुलाम ने जो उसका दामाद भी था जिसका नाम था कुतुबुद्दीन ऐबक इसीलिए मोहम्मद गौरी हिंदुस्तान से वापस लौट गया और अपने पूरे के पूरे साम्राज्य का केयर टेकर कुतुबुद्दीन ऐबक को बनाकर चला गया और ऐसा कहते हैं कि इसी के बाद कुतुबुद्दीन नवक ने भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करवाने के लिए सबसे पहली दो मस्जिदों का निर्माण करवाया दिल्ली में बनवाई गई कुवतुल इस्लाम मस्जिद जो आज कुतुब मीनार परिसर में है और अजमेर में बनवाई गई अाई दिन का झोपड़ा 1199 में अपने गुरु कुतुबुद्दीन बख्तियार अल काकी के ही नाम पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर कुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने शुरू करवाया था लेकिन इसको पूरा किया कुतुबुद्दीन ऐबक के ही एक गुलाम और दामाद ने जिसका नाम था इल्तुतमिश ऐबक ने ही भारत के सबसे पहले मुस्लिम वंश मुस्लिम डायनेस्टी की स्थापना की जिसे हम स्लेव डायनेस्टी कहते हैं जिसे हम गुलाम वंश कहते हैं क्योंकि इसकी स्थापना एक स्लेव एक गुलाम के द्वारा की गई थी और दोस्तों बस यहीं से यहीं से शुरुआत होती है दिल्ली सल्तनत की यहीं से दिल्ली सल्तनत की शुरुआत होती है और आप जानते होंगे अगर हम बात करें दिल्ली सल्तनत की तो 1206 ईसवी से लेकर 1526 ईसवी यानी कि अगले 320 साल का जो पीरियड है मेडि वल इंडिया में मध्यकालीन भारत में उसे हम पढ़ते हैं दिल्ली सल्तनत के रूप में दिल्ली सल्तनत में कुल पांच वंश ने शासन किया 320 साल तक और दिल्ली सल्तनत का सबसे पहला वंश कहलाता है स्लेव डायनेस्टी या गुलाम वंश जिसका का शासनकाल 1206 से लेके 1290 ईसवी तक रहा और आप जानते हैं द फाउंडर ऑफ स्लेव डायनेस्टी या गुलाम वंश का संस्थापक मोहम्मद गौरी का ही गुलाम और दामाद हुआ जिसका नाम था कुतुबुद्दीन ऐबक जिसने सिर्फ चार साल 1206 से लेकर 1210 तक शासन किया कुतुबुद्दीन बबक कुतुबुद्दीन बबक के नाम में बबक का मतलब होता है चंद्रमा का स्वामी या चंद्रमा का देवता ऐसा कहते हैं कि शासक बनने के बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना करने के बाद इसने अपनी जनता में लाखों रुपए बांटे लाखों का दान किया और अपनी राजधानी दिल्ली को नहीं बल्कि इसने दिल्ली सल्तनत या गुलाम वंश की सबसे पहली राजधानी बनाई लाहौर और क्योंकि इसने लाखों का दान किया इसीलिए इसकी जनता ने इसे लाख वक्ष की उपाधि दी एग्जाम में पूछते हैं ना लाख भक्ष के नाम से कौन सा शासक प्रसिद्ध हुआ है कुतुबुद्दीन ऐबक को ही क्या कहा जाता है लाख वक्ष कहा जाता है कुतुबुद्दीन ऐबक का ही गुलाम और दामाद इल्तुतमिश हुआ करता था और ध्यान रखेंगे कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में इसका गुलाम या दामाद इल्तुतमिश बदायूं का राज्यपाल या बदायूं का गवर्नर हुआ करता था 4 साल तक कुतुबुद्दीन नबक ने शासन किया लेकिन 1210 ईसवी में जब यह एक बार चौगान खेल रहा था या पोलो खेल रहा था तो आपने सुना होगा कि कुतुबुद्दीन ऐबक पोलो या चौगान खेलते समय अपने घोड़े से नीचे गिरकर मर गया था इसकी मृत्यु लार में हुई इसीलिए इसका मकबरा इसका टूब भी कहां पर है लाहौर में जो कि आज पाकिस्तान में है जो कि आज भारत में नहीं है कुतुबुद्दीन ऐबक के मरने के बाद इसका बेटा आराम शाह सिंहासन पर बैठा लेकिन उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया इल्तुतमिश ने और दिल्ली सल्तनत में अगला शासक बना इल्तुतमिश जो कि मोह जो कि कुतुबुद्दीन ऐबक का ही गुलाम और दामाद हुआ करता था और दोस्तों ध्यान रखेंगे 1211 ईसवी से लेकर 1236 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत में अगला शासक हुआ इल्तुतमिश इल्तुतमिश को ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है और बगदाद के खलीफा हों के द्वारा लीगली सबसे पहले सुल्तान की उपाधि भी कुतुबुद्दीन ऐबक को ही सॉरी इल्तुतमिश को दी गई थी इसीलिए कहलाता है भारत का प्रथम सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल में ही 1221 ईसवी में चंगेज खान का भारत में आक्रमण हुआ जो कि एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है और 1215 ईसवी में इल्तुतमिश और मोहम्मद गौरी के ही एक और गुलाम यदज के बीच में एक युद्ध लड़ा गया था 1215 में जिसे तराइन का तीसरा युद्ध कहते हैं इल्तुतमिश ने ही कई महत्त्वपूर्ण काम अपने शासनकाल में शुरू किए जैसे कि दिल्ली सल्तनत में नियमित रूप से सिक्के चलाने का श्रेय किसे जाता है इल्तुतमिश को जिसने चांदी और तांबे के सिक्के जलवाए थे चांदी के सिक्कों को कहा जाता था टंका या टका और तांबे के सिक्के कहलाते थे जीतल चांदी का टंका और तांबे का जीतल इसके अलावा इल्तुतमिश के ही द्वारा तुरकाने चहलगानी तुरकाने चहलगानी या दल चालीसा प्रथा की भी शुरुआत की गई थी जिसमें इसने अपने सबसे खास विश्वास पात्र 40 गुलामों को अपना प्रशासन बनाया था और इसके अलावा दिल्ली सल्तनत में एकता व्यवस्था या एकता प्रथा की शुरुआत भी किसने की इल्तुतमिश ने की 1229 में इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण पूरा करवाया और इसने दिल्ली सल्तनत की राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित कर लिया और अब दिल्ली सल्तनत की राजधानी बन गई दिल्ली इल्तुतमिश के चार बेटे थे लेकिन इसने अपना उत्तराधिकारी अपनी बेटी रजिया को घोषित किया था और यही कारण है कि इल्तुतमिश के मरने के बाद इसका बड़ा पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज शाह सिंहासन पर बैठा लेकिन उसी को हटाकर दिल्ली सल्तनत में शासक बनकर अगली सुल्तान बनी रजिया सुल्तान और ध्यान रखेंगे 1236 ईसवी से लेकर 1240 ईसवी तक दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाली प्रथम एवं एकमात्र महिला शासक ही मानी जाती है रजिया सुल्तान लेकिन रजिया सुल्तान की भी हत्या साजिश करके दल चालीसा के 40 सरदारों के द्वारा हरियाणा के कैथल नामक स्थान पर कर दी गई और रजिया सुल्तान के मरने के बाद बहराम शाह उसके बाद मसूद शाह और उसके बाद नसीरुद्दीन महमूद दिल्ली के सुल्तान बने लेकिन आप जानते हैं अगला महत्त्वपूर्ण सुल्तान जिसने स्लेव डायनेस्टी गुलाम वंश में शासन किया ही वस गयासुद्दीन बलबन इसके बाद आया गयासुद्दीन बलबन लगभग 1266 ईसवी से लेकर 1287 ईसवी तक और ध्यान रखेंगे बलबन ही वो सब सबसे पहला व्यक्ति था जिसने दल चालीसा को आकर समाप्त किया जिसने दल चालीसा का अंत किया बलबन के ही द्वारा सिजदा और पाई बूस प्रथा की शुरुआत की गई जिसके तहत सुल्तान के आगे घुटनों के बल बैठकर सर झुकाना और लेटकर उसके पांव को चूमना होता था इसी ने नवरोज नामक त्यौहार की भी शुरुआत करवाई थी और दिल्ली में लौह एवं रक्त की नीति चलाने वाला भी कौन था बलबन बलबन ही खुद को जिले इलाही और खुद को नियामत एक खुदाई कहा करता था खुदा का प्रतिनिधि और खुदा की परछाई खुद को कहने वाला भी कौन था बलबन 1287 ईसवी में बलबन के शासनकाल में मंगोलों का आक्रमण हुआ जिसमें बलबन का पुत्र शहजादा मोहम्मद मारा गया और अपने पुत्र वियोग में अपने पुत्र की मृत्यु हो जाने की वजह से बलबन इतना ज्यादा डिप्रेसो गुलाम वंश का अगला सुल्तान बना जिसका नाम था कैकू बाद जो कि एक अयोग्य सुल्तान था 1287 से लेकर इसने 1290 ईसवी तक शासन किया लेकिन मलिक फिरोज के द्वारा कैकू बाद को सिंहासन से हटाकर गुलाम वंश का अगला सुल्तान कैमर्स को बना दिया गया और ध्यान रखेंगे कैमर्स एक अल्प व्यस्क सुल्तान था जिसका फायदा मलिक फिरोज ने उठाया और मलिक फिरोज ने ही कैमर्स को सिंहासन से हटाकर दिल्ली सल्तनत में एक और वंश की स्थापना की जिसका शासनकाल दिल्ली सल्तनत में सबसे कम माना जाता है और आप जानते हैं यह डायनेस्टी यह वंश कहलाता है खिलजी डायनेस्टी या खिलजी वंश तो दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के बाद स्थापना हुई खिलजी डायनेस्टी या खिलजी वंश की 1290 से लेकर 1320 दिल्ली सल्तनत में सबसे कम समय तक शासन करने वाला वंश ही हुआ खिलजी डायनेस्टी या खिलजी वंश और ध्यान रखेंगे खिलजी वंश का संस्थापक द फाउंडर ऑफ खिलजी डायनेस्टी वाज जलालुद्दीन फिरोज खिलजी जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के द्वारा ही खिलजी वंश की स्थापना की गई जिसने 1290 से लेकर 1296 तक दिल्ली सल्तनत में शासन किया दो महत्त्वपूर्ण बातें सबसे पहली तो दिल्ली सल्तनत का सबसे वयोवृद्ध या सबसे ज्यादा उम्र में सुल्तान बनने वाला ही कौन था जलालुद्दीन फिरोज खिलजी इसका वास्तविक नाम मलिक फिरोज था और ध्यान रखेंगे इसी ने अपने शासनकाल में एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की थी एक सेकुलर स्टेट को स्थापित किया था इसी का भतीजा हुआ करता था अली गुरुशा स्प या अलाउद्दीन खिलजी जो इसके शासनकाल में कड़ा मानकपुर का इक्तीदार हुआ करता था और ध्यान रखेंगे 1266 में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी अपने ही चाचा या ससुर की हत्या करवाकर ही दिल्ली का अगला सुल्तान बन गया अलाउद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी का नाम आपने सुना होगा डेफिनेटली सुना होगा 1296 से लेकर 1316 तक दिल्ली सल्तनत का अगला सुल्तान रहा अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत में स्था सेना रखने वाला और अपनी सेना में नकद वेतन देने की शुरुआत करने वाला ही कौन था अलाउद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी के कई महत्त्वपूर्ण अभियान हुए जिसमें अगर हम अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के सबसे अभी पहले अभियान की बात करें तो वह गुजरात मिशन हुआ 1298 में जब गुजरात के शासक राय करण बघेला या कर्ण देव को पराजित करके गुजरात पर अधिकार किया गया लेकिन इंडिविजुअली अगर अलाउद्दीन खिलजी के सबसे पहले मिशन की बात करें तो वह रणथंबोर मिशन था जो कि 1301 ईसवी में हुआ 1303 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी का सबसे प्रसिद्ध अभियान चित्तौड़ पर हुआ जिस समय चित्तौड़ का राजा महारावल रतन सिंह हुआ करता था और उसकी पत्नी रानी पद्मावती या पद्मिनी को ही प्राप्त करने के लिए इसने यह मिशन किया था और आप जानते हैं अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ मिशन की जानकारी हमें मलिक मोहम्मद जायसी के द्वारा रचित पद्मावत नामक उपन्यास से मिलती है और वहीं से हमें पता चलता है अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ अभियान या चित्तौड़ मिशन के बारे में इसके अलावा ध्यान रखेंगे अलाउद्दीन खिलजी ने ही सबसे पहले हुलिया दाग प्रथा अपने शासनकाल में शुरू की थी अलाउद्दीन खिलजी ने ही दक्षिण भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया और इसी का सेनापति दक्षिण भारत अभियान पर भेजा गया मलिक काफूर जिसने 1309 ईसवी में वारंगल पर आक्रमण करके काकातीय शासक प्रताप रुद्रदेव को अपने सामने आत्मसमर्पण करवाया और उस उसी से इसने विश्व प्रसिद्ध कोहीनूर हीरा भी प्राप्त किया अलाउद्दीन खिलजी के ही द्वारा दिल्ली के मेहरौली में कुतुब मीनार परिसर में अलाई मीनार और अलाई दरवाजा का निर्माण करवाया गया इसने मंगोलों के आक्रमण से बचने के लिए दिल्ली के श्री नामक स्थान पर अपनी राजधानी बनाई और वहां पर सिरी फोर्ट का भी निर्माण करवाया और दिल्ली के हौज खास और जमात खाना मस्जिद का निर्माण करने का श्रे भी किसको जाता है अलाउद्दीन खिलजी को अलाउद्दीन खिलजी के ही दरबारी कवि प्रसिद्ध कवि अर खुसरू हुआ करते थे जिन्हें हम पैरेट ऑफ इंडिया या तूती ए हिंद के नाम से जानते हैं और आप जानते हैं कि सितार और तबले का आविष्कार करने का काम अमीर खुसरो ने किया अमीर खुसरो ने ही खड़ी बोली भी क्या की डेवलप की अमीर खुसरो के ही द्वारा गजल और कवाली गायकी जैसी नई संगीत विधाए बनाई गई और कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहने वाले भी तो कौन थे अमीर खुसरो ही थे और अमीर खुसरो ने ही अलाउद्दीन खिलजी को सुल्तान जहां या वि के सुल्तान की उपाधि दी थी और जब अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया तो ध्यान रखेंगे अलाउद्दीन खिलजी ने खुद को सिकंदर सानी कहा अलेक्जेंडर सेकंड इसने सिकंदर सानी की उपाधि धारण की थी या खुद को कहा था अलेक्जेंडर सेकंड सिकंदर द्वित और इतना ही नहीं अलाउद्दीन खिलजी के काल में दो प्रकार के कर चलाए गए जिन्हें घरी और चरी कहा जाता था घरी एक प्रकार का आवास कर हुआ करता था हाउस टैक्स हुआ करता था और चरी एक प्रकार का मवेशी कर हुआ करता था जो अलाउद्दीन खिलजी के ही द्वारा अपने शासन काल में शुरू किया गया अलाउद्दीन खिलजी के बाद अगला सुल्तान मुबारक शाह खिलजी बना और 13 16 ईसवी से लेकर 1320 ईसवी तक मुबारक शाह खिलजी अगला सुल्तान बना इसके बाद खिलजी वंश का लास्ट सुल्तान और अंतिम सुल्तान कहलाया खुसरो शाह इसी खुसरो शाह को सिंहासन से हटाकर गाजी मलिक ने गाजी मलिक अलाउद्दीन खिलजी का ही एक सेनापति हुआ करता था जो कि पंजाब में तैनात था और बार-बार मंगोलों के होने वाले आक्रमणों को नियंत्रित करने का काम भी गाजी मलिक ही किया करता था इसी गाजी मलिक ने खुसरो शाह को सिंहासन से हटाया और उसे सिंहासन से हटाकर एक नए वंश की स्थापना की जिसे हम जानते हैं तुगलक डायनेस्टी या तुगलक वंश के नाम से तो दिल्ली सल्तनत का तीसरा वंश हुआ तुगलक डायनेस्टी या तुगलक वंश 1320 ईसवी से लेकर 1414 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत में सबसे लंबे समय तक शासन किया तुगलक वंश ने या तुगलक डायनेस्टी ने और दोस्तों ध्यान रखेंगे तुगलक वंश का संस्थापक गाजी मलिक हुआ जो कि दिल्ली का सुल्तान बना गयासुद्दीन तुगलक के नाम से और ध्यान रखेंगे 1320 ईस्वी से लेकर 1325 ईस्वी तक दिल्ली सल्तनत में शासन किया गयासुद्दीन तुगलक ने इसी ने दिल्ली सल्तनत में सिंचाई के लिए सबसे पहले नहरों का निर्माण करवाया था इसी ने दिल्ली में तुगलकाबाद नामक शहर की स्थापना भी की थी और ध्यान रखेंगे गयासुद्दीन तुगलक के ही समकालीन दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया हुआ करते थे जिन्हें महबूबे इलाही की उपाधि भी इसी ने दी थी लेकिन दोनों के बीच में एक विवाद हुआ और गयासुद्दीन तुगलक को ही हजरत निजामुद्दीन औलिया के द्वारा प्रसिद्ध शब्द कहे गए अनूज दिल्ली दूरस्थ अभी तो दिल्ली दूर है लेकिन 1325 ईसवी में गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली के तुगलकाबाद नामक स्थान पर अपने ही लकड़ी के महल के गिर जाने के कारण उसमें दबकर कौन मर गया गयासुद्दीन तुगलक लेकिन गयासुद्दीन तुगलक का ही एक बेटा था जिसका नाम था शहजादा जना खान जिसे तेलंगाना अभियान पर भेजा गया था जिसने तेलंगाना के काकातीय शासकों को अपने अधीन किया था और वा का नाम बदलकर सुल्तानपुर रखा था और सिर्फ इतना ही नहीं इसने जाकर उड़ीसा के जाजपुर के राजा भानु देव द्वितीय पर भी अटैक किया था क्योंकि राज मुंद्री के अभिलेख से ही जना खान को ही क्या कहा गया है उलूक खान तो जब गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हुई तो गयासुद्दीन तुगलक के मरने के बाद जवाना खान ही दिल्ली का अगला सुल्तान बना बाय द नेम ऑफ मोहम्मद बिन तुगलक 1325 ईसवी से लेकर 1351 तक मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का अगला सुल्तान बना जिसे दिल्ली सल्तनत का इनसेन सुल्तान या पागल सुल्तान कहा जाता है इतिहासकार एलीफेंट स्टीन ने इसे पागल सुल्तान कहा दिल्ली सल्तनत का सबसे ज्यादा विद्वान और सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक था लेकिन परेशानी एक ही थी जनता में और कोई पढ़ा लिखा नहीं था और जो अपने अमीर थे अपने मंत्री थे व भी कम पढ़े लिखे थे इसीलिए मोहम्मद बिन तुगलक को जनता की बात और जनता को मोहम्मद बिन तुगलक की बात समझ में नहीं आती थी इसीलिए इतिहासकार इसे पागल सुल्तान कहते हैं मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल की अगर हम बात करें तो ध्यान रखेंगे मोहम्मद बिन तुगलक के ही शासनकाल में 1333 ईसवी में मोरक्को का प्रसिद्ध अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता भारत आया था और 8 साल तक इसके दरबार में इसका काजी बनकर रहा था और उसी के द्वारा एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी गई थी जिसे हम रेहला के नाम से जानते हैं रेहला से ही हमें कई जानकारी मिलती है मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में मोहम्मद बिन तुगलक को एक्सपेरिमेंट्स करने की बड़ी आदत थी और इसने कई एक्सपेरिमेंट्स भी किए थे कई डिसीजन भी लिए थे जो पूरी तरीके से फेल हुए जैसे अपनी राजधानी को दिल्ली से देवगिरी या दौलताबाद ले जाने वाला सुल्तान भी मोहम्मद बिन तुगलक हुआ उसका यह फैसला पूरी तरीके से गलत साबित हुआ अपने शासनकाल में सांकेतिक मुद्रा या टो करेंसी चलाने का काम भी मोहम्मद बिन तुगलक ने किया उसमें भी यह विफल हुआ दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि मोहम्मद बिन तुगलक के द्वारा कर दी गई जिसकी वजह से अकाल पड़ा महामारी फैली और महामारी फैलने की वजह से इसे खुद दिल्ली छोड़कर स्वर्गद्वारी या कन्नौज में जाकर 4 साल के लिए रहना पड़ा इसके अलावा खुरासान अभियान की विफलता और कराचिल अभियान की विफलता इसके वो डिसीजन माने जाते हैं जो पूरी तरीके से विफल हुए जिसकी वजह से इसे दिल्ली सल्तनत का पागल सुल्तान कहा गया मोहम्मद बिन तुगलक जब सिंध में थट्टा नामक स्थान के एक विद्रोह को नियंत्रित करने के लिए गया तो वहीं जाकर इसकी तबीयत खराब हुई और तेज बुखार आ जाने की वजह से इसकी मृत्यु हो गई लेकिन मरने से पहले इसने अपने कजन अपने चचेरे भाई को दिल्ली का अगला सुल्तान घोषित किया जिसका नाम था फिरोज शाह तुगलक और इसके बाद दिल्ली का सबसे परोपकारी काइंड हार्टेड सुल्तान बना फिरोजशाह तुगलक जिसकी तुलना अकबर से की जाती है लैंड रेवेन्यू रिफॉर्म्स की वजह से और इसे सल्तनत काल का अकबर कहा जाता है यह कहलाता है सल्तनत काल का अकबर दिल्ली सल्तनत का सबसे परोपकारी और काइंड हार्टेड सुल्तान फिरोजशाह तुगलक था लेकिन धार्मिक तौर पर इसे कट्टरता में औरंगजेब का भी बड़ा भाई बताया जाता है ऐसा कहते हैं कि फिरोजशा तुगलक ने अपने शासनकाल में में 300 से भी ज्यादा नगर बसाए थे हरियाणा का हिसार हरियाणा का फतेहाबाद पंजाब का फिरोजपुर दिल्ली में फिरोजशाह कोटला और उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद और जौनपुर की स्थापना का श्रेय भी किसको जाता है फिरोजशाह तुगलक को ही जाता है आप जानते होंगे जौनपुर को ही क्या कहा जाता था पूर्व क शिराज कहा जाता था क्योंकि जौनपुर मुस्लिम शिक्षा के लिए भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध था और सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण स्थान था जौनपुर को ही शिराज हिंद या पूर्व का सिराज कहा जाता था फिरोजशाह तुगलक ने सिंचाई के लिए सबसे ज्यादा नहरें बनवाई फिरोजशाह तुगलक ने ही एक खैराती अस्पताल भी दिल्ली में बनवाया जिसे दारुल शिफा कहा जाता था इसने गरीब और जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करने के लिए एक विभाग बनाया था जिसे दीवाने खैरात कहा जाता था जहां पर गरीबों में खैरात बांटी जाती थी इसके अलावा मैरिज ब्यूरो इसके अलावा पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट या लोक निर्माण विभाग इन सबकी स्थापना करने का श्र भी किसे जाता है फिरोज शाह तुगलक को ही जाता है इसके अलावा ध्यान रखेंगे इसी के द्वारा गुलामों का भी एक विभाग बनाया गया था जिसे दीवाने बंदगा कहा जाता था और इसके अलावा एंप्लॉयमेंट डिपार्टमेंट रोजगार विभाग भी अपने समय में फिरोजशा तुगलक के ही द्वारा बनाया गया लेकिन क्योंकि धार्मिक रूप से कटर था इसी के द्वारा जगन्नाथ मंदिर को नष्ट करवाया गया और उत्तर भारत में हिमाचल के ज्वालामुखी मंदिर में इसने लूट पाठ करवाई अशोक के दो स्तंभ मेरठ स्तंभ और टोपरा स्तंभ को दिल्ली स्थानांतरित करने का काम दिल्ली लाने का काम भी फिरोज शाह तुगलक के ही द्वारा किया गया और ध्यान रखेंगे फिरोज शाह तुगलक के बाद तेजी से तुगलक साम्राज्य का पतन हुआ और तुगलक वंश का अंतिम शासक हुआ नसीरुद्दीन महमूद और नसीरुद्दीन महमूद का नाम हम इसलिए याद रखेंगे क्योंकि नसीरुद्दीन महमूद के ही शासनकाल में 1398 ईसवी में हुआ इनवेजन ऑफ तैमूर या तैमूर का आक्रमण दिल्ली सल्तनत को लूटपाट करने के उद्देश्य से समरकंद का शासक तैमूर लंग भारत आया तैमूर एक पांव से लंगड़ा था इसीलिए इतिहास में तैमूर लंग के नाम से यह प्रसिद्ध है और तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली सल्तनत बिखरी और दिल्ली सल्तनत से ही स्वतंत्र राज्यों की स्थापना होनी शुरू हुई जैसे जौनपुर स्वतंत्र हो गया गुजरात स्वतंत्र हो गया उधर बंगाल पूरी तरीके से स्वतंत्र हो गया कई स्वतंत्र राज्य यहां पर बने और दोस्तों ध्यान रखेंगे मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दक्षिण भारत में एक हिंदू और एक मुस्लिम संस्कृति के साम्राज्य की स्थापना भी हुई हिंदू संस्कृति का साम्राज्य विजयनगर एंपायर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बक्का नामक दो भाइयों के द्वारा की गई और बहमनी साम्राज्य की जो स्थापना थी व अलाउद्दीन हसन बहमन शाह या हसन गंगू के द्वारा की गई यह मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में हुआ था तो फाइनली नसीरुद्दीन महमूद 1414 ईसवी में सिंहासन से हटाया गया और ध्यान रखेंगे तैमूर के आक्रमण में तैमूर की मदद खिजर खान के द्वारा की गई थी जो नसीरुद्दीन महमूद का ही एक मंत्री था उसी खिजर खान ने दिल्ली सल्तनत के चौथे वंश की स्थापना की जिसे हम सैयद वंश के नाम से जानते हैं जो भारत का सबसे पहला शिया वंश हुआ इसके बाद शासनकाल आया सैयद डायनेस्टी या सैयद वंश का और ध्यान रखेंगे 1414 से लेकर 1451 तक दिल्ली सल्तनत में शासन किया सैयद डायनेस्टी या सैयद वं ने ज्यादा इंपॉर्टेंट एग्जाम के लिए नहीं है केवल सुल्तानों या शासकों के नाम याद रख सकते हैं सबसे पहले आया खिज्र खान जिसने 1414 ईसवी से लेकर 1421 ईसवी तक शासन किया इसके बाद ग्रेटेस्ट सुल्तान ऑफ दिस डायनेस्टी इस वंश का महानतम सुल्तान हुआ मुबारक शाहा 1421 से लेकर 1434 तक और उसके बाद आखिरी सुल्तान अलाउद्दीन आलम शाह इसी अलाउद्दीन आलम शाह को सिंहासन से हटाकर बहलोल ने दिल्ली सल्तनत में सबसे पहले अफगान वंश की स्थापना की जिसे हम जानते हैं लोदी डायनेस्टी या लोदी वंश के नाम से से और दिल्ली सल्तनत का सबसे आखिरी वंश अस्तित्व में आया जो कहलाता है लोदी डायनेस्टी या लोदी वंश 1451 से लेकर 1526 तक 1451 से लेकर 1526 तक भारत के इतिहास का सबसे पहला अफगान वंश अफगानी डायनेस्टी हुई लोदी डायनेस्टी और लोदी डायनेस्टी का संस्थापक फाउंडर हुआ बहलोल लोदी 1451 से लेकर 1489 तक इसने शासन किया इसका उत्तराधिकारी इस वंश का सबसे महान सुल्तान था जिसका नाम था सिकंदर लोदी 1489 से लेकर 1517 तक दिल्ली सल्तनत में शासन किया सिकंदर लोदी ने और दोस्तों ध्यान रखेंगे सिकंदर लोदी के ही द्वारा 1504 ईवी में आगरा शहर की स्थापना की गई और इसने 1506 ईवी में दिल्ली सल्तनत की राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानांतरित किया सिकंदर लोदी के ही समय में वास्को डिगामा का आगमन भारत में हुआ था 1498 ईसवी में और ध्यान रखेंगे सिकंदर रोदी ने अपने शासनकाल में कुतुब मीनार का भी जीर्ण उद्धार करवाया था या रिनोवेशन करवाया था सिकंदर लोधी एक कवि हुआ करता था जो गुलरूखी नाम से कविताएं लिखा करता था और ध्यान रखेंगे सिकंदर लोदी का ही उत्तराधिकारी इसका पुत्र हुआ जिसे हम भारत के अंतिम सुल्तान के रूप में जानते हैं ही वाज इब्राहिम लोध और ध्यान रखेंगे 1517 से लेकर 1526 तक इब्राहिम लोदी भारत का अंतिम सुल्तान हुआ जिस साल यह शासक बना उसी साल बैटल ऑफ तली या खतौली का युद्ध इसने लड़ा और ध्यान रखेंगे इब्राहिम लोदी को खतौली के युद्ध में पराजित किया मेवाड़ के राजपूत शासक राणा सांगा ने पहले यह राणा सांगा से पराजित हुआ और 1526 ईसवी में जब पानीपत का प्रथम युद्ध लड़ा गया फर्स्ट बैटल ऑफ पानीपत तो हम सब जानते हैं पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित किया गया बाबर के द्वारा और बाबर ने ही पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित करके उसकी हत्या की और उसकी हत्या करके भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की और ध्यान रखेंगे दिल्ली सल्तनत का एकमात्र सुल्तान जो युद्ध में लड़ते हुए मारा गया वो कौन था इब्राहिम लोदी तो जैसे ही इब्राहिम लोदी मरता है दोस्तों वैसे ही स्थापना होती है मुगल साम्राज्य की मुगल वंश की और फिर आधा जो मेडि वल इंडिया का पार्ट है 1526 से 1707 उसमें हम मुगल एंपायर पढ़ते हैं और बात करते हैं छह मुगल एंपरर्स के बारे में बाबर हुमायूं अकबर जहांगीर शाहजहां और औरंगजेब हां जी तो अब हम बात करते हैं मुगल साम्राज्य के बारे में मुगल डायनेस्टी के बारे में जिसकी स्थापना 1526 ईसवी में जहीरुल मोहम्मद बाबर के द्वारा की गई तो यह है मुगल वंश या मुगल डायनेस्टी जिसे हम मेडि वल इंडिया में 1526 से लेकर पढ़ते हैं 1700 सात तक मुगल डायनेस्टी या मुगल वंश दोस्तों आप जानते हैं मुगल वंश की स्थापना 15666 में जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर ने की जिसका जन्म 1483 ईसवी में तुर्की के ही फरगना नामक स्थान पर हुआ था मुगल वंश का संस्थापक हुआ बाबर जिसका शासनकाल मात्र 1526 से लेकर 1530 ईसवी तक का रहा इसने मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी बाबर का जन्म 1483 ईसवी में तुर्की के फरगना नामक स्थान पर हुआ था जब यह मात्र 11 साल का था तो उसके पिता उमर शेख मिर्जा की डेथ हो गई और अपने पिता की मृत्यु के बाद सिर्फ 11 साल की उम्र में ही यह शासक बन गया लेकिन इसे फरगना मजबूरन छोड़ना पड़ा और अगले 8 साल तक यह स्ट्रगल करता रहा क्योंकि 15 1444 से लेकर 1502 ईसवी तक इसने समरकंद को तीन बार जीता तीन बार उसका उस पर अधिकार किया लेकिन तीनों बार समरकंद इसके हाथों से निकल गया 1502 ईसवी में इसे सरबल के युद्ध में शहवानी खान जो कि कुछ भी एक शासक था उसने हराया और अब तुर्की के या तुर्की को छोड़कर बाबर ने अफगानिस्तान की तरफ रुख करा और अपने जीवन की सबसे पहली सफलता 1504 ईसवी में इसने काबुल और कंधार पर अधिकार करके प्राप्त की और वहीं पर काबुल में ही इसने बादशाह या बादशाह की उपाधि धारण की लंबे समय तक इस काबुल में ही शासन करता रहा लेकिन वहां पर भी स्टेबिलिटी ना मिल पाने के कारण इसने हिंदुस्तान की तरफ अपना रुख किया और ध्यान रखेंगे बाबर ने हिंदुस्तान में अपना सबसे पहला आक्रमण 1500 19 ईसवी में किया था जब इसने हिंदुस्तान में आक्रमण किया उस समय यहां पर लोदी डायनेस्टी या लोदी वंश चल रहा था तो जैसा कि मैंने आपको बताया 1526 ईसवी में पानीपत का प्रथम युद्ध लड़ा गया और बाबर के द्वारा लड़े गए प्रसिद्ध युद्ध सबसे पहले 1526 में फर्स्ट बैटल ऑफ पानीपत या पानीपत का प्रथम युद्ध जिसमें बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया और इब्राहिम लोदी को पराजित करके भारत में मुगल साम्राज्य या मुगल वंश की स्थापना की अगले ही साल 1527 में में बाप ने लड़ा बैटल ऑफ खानवा खानवा का युद्ध खानवा के युद्ध में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा सांगा को पराजित किया इसके अगले साल 1528 में बाबर ने लड़ा बैटल ऑफ चंदेरी चंदेरी का युद्ध जिसमें बाबर डिफीटेड मेदनी राय मालवा का शासक हुआ करता था मेदनी राय बाबर ने मेदनी राय को पराजित करके उसकी हत्या की थी और इसी के अगले साल 1529 में उत्तर प्रदेश में घागरा नदी के किनारे लड़ा गया बैटल ऑफ घागरा जिसमें बाबर ने पराजित किया अफगान को अफगान का नेतृत्व इब्राहिम लोदी का छोटा भाई महमूद लोदी कर रहा था तो मुगल साम्राज्य की स्थापना करने से अगले 4 साल तक बाबर ने सीक्वेंस में लगातार यह चार बैटल लड़े और चारों के चारों बैटल्स जीते भी लेकिन अगले ही साल 1530 ईसवी में बाबर डाइड बाबर की मृत्यु हो गई इसका शासनकाल मुगल साम्राज्य में मात्र चा साल का रहा 1526 से 1530 1530 में इसकी मृत्यु हुई बाबर ने अपनी आत्मकथा लिखी थी जो कहलाती है तुजू के बाबरी जो उसने तुर्क भाषा में लिखी थी लेकिन अकबर के शासनकाल में इसका फारसी में अनुवाद करवाया गया अब्दुल रहीम खाने खाना के द्वारा और ध्यान रखेंगे जो कि बाबर नामा के नाम से प्रसिद्ध है बाबर की अंतिम इच्छा यह थी कि इसे काबुल में दफनाया जाए लेकिन जब इसकी मृत्यु हुई थी इसे आगरा के आरामबाग में ही दफना दिया गया था लेकिन बाद में इसके ताबूत को निकालकर भेजा गया काबुल और इसके मकबरे का निर्माण कहां पर करवाया गया है अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में है बाबर का मकबरा बाबर के चार पुत्र थे हुमायूं कामरान अकरी और हिंदा बाबर के मरने के बाद बाबर का सबसे बड़ा बेटा अगला मुगल बादशाह बना अगला मुगल एंपरर बना नसीरुद्दीन मोहम्मद हुमायूं पहले 1530 ईसवी से लेकर 1540 ईसवी तक इसने शासन किया और फिर 1555 से लेकर 1556 दो शासनकाल हुमायूं के रहे दो शासनकाल देख के ही समझ में आ रहा है कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर हुई है पहले इसने 1530 से 1540 तक शासन किया फिर 1540 में इसे शेरखान या शेरशाह सूरी के द्वारा पराजित कर दिया गया और 15 साल तक स्ट्रगल करने के बाद इसने दोबारा से आकर मुगल साम्राज्य की स्थापना की और कुछ ही महीनों यह शासन कर पाया था कि दिल्ली में अपने ही पुस्तकालय की सीढ़ियों से नीचे गिर जाने के कारण हुमायूं की मृत्यु हुई इतिहासकार कहते हैं कि यह अभागा मुगल बादशाह था यह ज्योतिष में विश्वास किया करता था और इतना ज्यादा कि ज्योतिष के ही अनुसार अलग-अलग दिन अलग-अलग रंग की पोशाकें पहना करता था हुमायूं पहले इसने 10 साल शासन किया लेकिन 1539 में यह पहले चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी से हारा और फिर 1540 में बिलग्राम या कन्नौज के युद्ध में शेषा सूरी ने इसको पराजित करके भारत के दूसरे अफगान वंश की स्थापना की जिसे हम सूरी डायनेस्टी या सूरी वंश के नाम से जानते हैं और हुमायूं को निर्वासन में 15 साल बिताने पड़े 15 साल तक खान खाक छान हुए फाइनली 1555 ईसवी में पंजाब के सरहिंद नामक स्थान पर इसने एक प्रसिद्ध युद्ध लड़ा बैटल ऑफ सरहिंद और सरहिंद के युद्ध में ही हुमायूं ने सूरी डायनेस्टी के अंतिम शासक सिकंदर सूरी को पराजित करके मुगल वंश की स्थापना की लेकिन हुमायूं कुछ ही समय तक शासन कर पाया था कि दिल्ली में अपने ही पुस्तकालय की सीढ़ियों से नीचे गिर जाने के कारण इसकी डेथ हो गई और आप जानते होंगे हुमायूं का मकबरा भी कहां पर है दिल्ली के निजामुद्दीन नामक स्थान पर हुमायूं की जीवनी का नाम है हुमायूं नामा जिसको हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम के द्वारा लिखा गया था लेकिन हुमायूं का यह जो 15 साल का गैप था इसी में सूरी डायनेस्टी इसी में सूर वंश की स्थापना हुई थी जिसे भारत के इतिहास का दूसरा अफगान वंश कहा जाता है 1540 से लेकर 1555 तक और दोस्तों ध्यान रखेंगे फाउंडर ऑफ सूरी डायनेस्टी वास शेरशाह सूरी इस वंश की स्थापना शेरशाह सूरी के द्वारा की गई जिसने शासन की 1540 से लेकर 1545 तक और ध्यान रखेंगे इतिहास में शेरशाह सूरी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है अपने एडमिनिस्ट्रेशन के लिए अपने प्रशासन के लिए जब भी शेषा सूरी की बात होती है तो सबसे पहले बात आती है भारत की सबसे प्रसिद्ध सड़क की जो शेरशाह सूरी मार्ग कहलाती थी जिसका निर्माण शेरशाह सूरी ने ही करवाया था हालांकि अब ये वर्तमान में जीटी रोड कहलाती है ग्रैंड ट्रंक रोड कहलाती है जो हमारे पास अमृतसर से लेकर कोलकाता तक है 1839 ईसवी में उस समय के भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड के द्वारा इस सड़क का नाम बदलकर जीटी रोड रखा गया था शेषा सूरी के द्वारा ही अपने शासनकाल में चांदी और तांबे के सिक्के चलवा गए थे और ध्यान रखेंगे इसके द्वारा चलवा गए चांदी के सिक्कों को रुपया कहा जाता था जो आज भी हमारी करेंसी है भाई आज भी तो हमारी मुद्रा का नाम क्या है रुपया और ध्यान रखेंगे जो कॉपर कॉइंस हुआ करते थे जो तांबे के सिक्के हुआ करते थे उन्हें कहा जाता था दाम चांदी का रुपया और तांबे का दाम भी चलवा गया किसके द्वारा शेरशाह सूरी के द्वारा इसके अलावा ध्यान रखेंगे शीर्षा सूरी ने ही उत्तर प्रदेश में कन्नौज का नाम बदलकर शेषा सूरी के ही द्वारा उत्तर प्रदेश में कन्नौज का नाम बदलकर शेर सूर नगर रखा गया और इसी ने पाटलीपुत्र का नाम बदलकर रखा पटना 1545 ईसवी में जब यह कालिंजर मिशन पर गया जब यह कालिंजर अभियान पर गया तो कालिंजर अभियान के ही दौरान एक दुर्घटना हो जाने के कारण शेषा सूरी की मृत्यु हो गई और इसे दफनाया गया इसी के द्वारा निर्मित इसके मकबरे में जो कहां पर है बिहार के सासाराम में शेरशाह सूरी के मरने के बाद इस्लाम शाह सूरी इसका उत्तराधिकारी हुआ उसके बाद आदिल शाह सूरी और ध्यान रखेंगे आदिल शाह सूरी के मरने के बाद सूरी वंश का अंतिम शासक लास्ट रूलर हुआ सिकंदर सूरी इसी सिकंदर सूरी को सरहिंद के युद्ध में पराजित करके ही तो हुमायूं ने पुनः मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी लेकिन जब 1556 ईसवी में हुमायूं की डेथ हुई हुमायूं की मृत्यु हुई उस समय हुमायूं का पुत्र मात्र 13 वर्ष का था और 13 साल की ही उम्र में भारत का मुगल भाष बन गया जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर और हुमायूं की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य में अगला और सबसे महान राजा बना अकबर द ग्रेट जिसका लंबा शासनकाल रहा 1556 ईसवी से लेकर 1605 ईसवी तक जब 1556 5 ईसवी में हुमायूं की डेथ हुई उस समय अकबर मात्र 13 साल का था और पंजाब के गुरदासपुर के काला नौर नामक स्थान पर एक अभियान कर रहा था बैरम खान के साथ जैसे ही खबर पहुंची कि भाई हुमायूं की डेथ हुई है तो इसका फायदा उठाया हरियाणा के रेवाड़ी के एक हिंदू शासक ने जिसका नाम था हेमू और उसने दिल्ली पर आक्रमण करके दिल्ली पर अधिकार कर लिया विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और हेमचंद्र विक्रमादित्य के नाम से दिल्ली का शासक बन गया दोस्तों याद रखेंगे दिल्ली के सिंहासन पर ने वाला अंतिम हिंदू राजा ही किसे माना जाता है हेमचंद्र विक्रमादित्य या हेमू को माना जाता है और उधर पंजाब के काला नौर नामक स्थान पर मात्र 13 साल की उम्र में अकबर का राज्य अभिषेक करवा दिया गया बैरम खान के द्वारा और फिर 1556 ईसवी में ही आप जानते हैं पानीपत में एक और प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जो कहलाता है सेकंड बैटल ऑफ पानीपत पानीपत का दूसरा युद्ध सेकंड बैटल ऑफ पानीपत या पानीपत का दूसरा युद्ध जो लड़ा गया अकबर और हेमू के बीच इसी युद्ध में अकबर की सेना के द्वारा हेमू को पराजित कर दिया गया और अकबर के ही सेनापति बैरम खान ने हेमू की हत्या करती अकबर की उम्र कम थी इसीलिए उसका संरक्षक बैरम खान बन गया और अगले चा साल तक अकबर ने शासन किया बैरम खान के ही संरक्षण में लेकिन 4 साल के बाद बैरम खान का संरक्षण पूरी तरीके से समाप्त हो गया और बैरम खान के संरक्षण के समाप्त होने के बाद अकबर पूरी तरीके से इंडिपेंडेंट रूलर बन गया अकबर ने ही अपने शासनकाल में दास प्रथा सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियां समाप्त की जजिया जो लंबे समय से वसूल किया जा रहा था और तीर्थ यात्रा कर भी अकबर के ही द्वारा समाप्त कर दिया गया इसीलिए अकबर की जनता ने इसे अकबर की उपाधि दी क्योंकि यह तो पहले जलालुद्दीन मोहम्मद कहलाता था लेकिन ये अकबर तभी कहलाया जब इसने जजिया और तीर्थ यात्रा कर को समाप्त कर दिया था अकबर के शासनकाल में अकबर ने मनसबदारी प्रथा मनसबदारी सिस्टम की भी शुरुआत की थी ऐसा करने वाला भी य पहला शासक था यह प्रथा मंगोलिया से अडॉप्ट की गई थी अकबर के गुरु फतेहपुर सीकरी के प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिस्ती हुआ करते थे और उन्हीं की कुटिया में अकबर के पुत्र का जन्म हुआ था जिसका नाम रखा गया सलीम 1572 में अ गुजरात मिशन पर गया इसने गुजरात को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिलाया और इसी अभियान के दौरान इसने सबसे पहले समुद्र के दर्शन किए सबसे पहले सी देखा और पुर्तगालियों से अकबर की सबसे पहली मुलाकात भी गुजरात मिशन के ही दौरान हुई सिखों के चौथे गुरु गुरु रामदास अकबर के परम मित्र हुआ करते थे और अकबर ने अपने मित्र गुरु रामदास को 500 बीघा भूमि उपहार में दी थी जिस पर एक सरोवर का निर्माण करवाया गया था और वहीं पर गुरु रामदास स ने ही अमृतसर नामक शहर की स्थापना की थी हालांकि उसे रामदास नगर कहा जाता था लेकिन आज वह अमृतसर कहलाता है और वहीं पर सिखों के पांचवें गुरु गुरु अर्जुन देव के द्वारा गुरुद्वारा हरिमंदिर साहिब यानी कि गोल्डन टेंपल का निर्माण करवाया गया है 1582 में अकबर ने एक नया धर्म चलाया जिसे दीन इलाही या तौहीद इलाही कहा जाता था और इसी दीन इलाही धर्म को अपनाने के लिए केवल और केवल मुसलमान ही आगे आए एक मात्र हिंदू जिसने दीन इलाही धर्म को अपनाया था वह था बीरबल अकबर का मुख्य सलाहकार जिसका वास्तविक नाम महेश दास था केवल उसने दीन इलाही अपनाया था अकबर के काल को साहित्य का स्वर्ण काल कहते हैं क्योंकि साहित्य का भरपूर विकास अकबर के शासनकाल में हुआ हालांकि इसने चित्रकला को भी संरक्षण दिया दशवंथ और बसावन इसके प्रसिद्ध चित्रकार हुआ करते थे अकबर के ही शासनकाल में अंग्रेजों का भारत में आगमन हुआ और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भी अकबर के शासनकाल में हुई थी लेकिन अकबर क्या जो अंतिम समय बीता वह सबसे ज्यादा परेशानियों में बीता और वह सबसे ज्यादा परेशानी इसको किससे थी अपने ही पुत्र सलीम से क्योंकि वही अकबर के खिलाफ बार-बार विद्रोह किया करता था और एक बार अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल की हत्या भी सलीम के द्वारा करवा दी गई थी 1605 ईसवी में अतिसार रोग या डिसेंट्री से अकबर की मृत्यु हुई और अकबर को दफना दिया गया कहां पर आगरा के सिकंदरा नामक स्थान पर अकबर की मृत्यु हो जाने के बाद अकबर का ही बेटा सलीम जहांगीर के नाम से भारत का अगला मुगल बादशाह बना जिसका शासनकाल 1605 से लेकर 1627 ईसवी तक रहा इसके बचपन का नाम सलीम था सलीम ने सबसे पहले मानबाई से विवाह किया था जो मानसिंह की बहन हुआ करती थी और उसी से इसका पुत्र हुआ था खुसरो इसने दूसरा विवाह जग ग गोसाई से किया था जिससे खुर्रम नामक इसका एक पुत्र हुआ था और तीसरा विवाह इसने नूर जहां से किया था जिसका वास्तविक नाम मेहरू निसा था जहांगीर के समय में या जहांगीर से आने वाला सबसे इंपॉर्टेंट सवाल जहांगीर के ही दरबार में सबसे पहला अंग्रेज कैप्टन विलियम हॉकिंस इसके दरबार में आया था जिसे इंग्लिश खान की उपाधि इसके द्वारा दी गई थी और उसके बाद 1615 ईसवी में सर टॉमस रो आने वाला दूसरा अंग्रेज इसके दरबार में था जहांगीर के ही शासनकाल में 1613 ईसवी में अंग्रेज ने अपनी सबसे पहली फैक्ट्री सूरत में स्थापित की थी और ध्यान रखेंगे जहांगीर के काल को चित्रकला का स्वर्ण काल कहते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा चित्रकला का डेवलपमेंट जहांगीर के ही शासनकाल में हुआ और इसी का प्रसिद्ध चित्रकार हुआ करता था उस्ताद मंसूर खान इसके बाद ध्यान रखेंगे जहांगीर ने अपने पुत्र खुर्रम को अहमदनगर मिशन पर भेजा था और उसे शाहजहां की उपाधि दे थे जहांगीर की मृत्यु लाहौर में 1627 ईसवी में हुई इसे लाहौर में ही ही दफना दिया गया इसकी बायोग्राफी इसने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखी थी आत्मकथा लिखी थी जो कहलाती है जहांगीर नामा जिसको कंप्लीट मौत बिंद खान के द्वारा किया गया था वहीं अकबर की जीवनी आईने अकबरी या अकबर नामा कहलाती है जिसको अबुल फजल ने लिखा था जहांगीर के मरने के बाद जहांगीर का पुत्र खुर्रम भारत का अगला मुगल भाषा बना बाय द नेम ऑफ शाहजहां और आप जानते हैं शाहजहां के शासनकाल को वास्तु कला या स्थापक कला का स्वर्ण काल कहा जाता है क्योंकि चाहे हो आगरा का ताजमहल दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद सब शाहजहां के ही द्वारा उसके शासन काल में बनवाए गए शाहजहां से अगर आपको सवाल मिलेगा तो डेफिनेटली ताजमहल से रिलेटेड मिलने के बहुत ज्यादा चांसेस हैं लेकिन 1658 में शाहजहां को इसी के बेटे औरंगजेब ने कैद करवा लिया और शाहजहां को कैद करवाकर भारत का अगला मुगल भाषा बन गया औरंगजेब और दोस्तों ध्यान रखेंगे 1658 से लेकर 1707 ईसवी तक औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य में शासन किया और मुगल साम्राज्य को सबसे ज्यादा विस्तृत करने का काम भी औरंगजेब ने ही किया क्योंकि इसी ने दक्षिण भारत के दो महत्त्वपूर्ण सूबे बीजापुर और गोलकुंडा को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया था मुगल साम्राज्य में मिलाया था इतना ही नहीं औरंगजेब के ही समकालीन औरंगजेब के ही शासनकाल में दक्षिण में मराठा साम्राज्य का उदय हुआ जिसकी स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा की गई थी और मुगलों से लोहा लेने वाली दो कम्युनिटीज दक्षिण में मराठा और उत्तर में सिख इनका संघर्ष औरंगजेब के साथ जारी रहा 1707 ईसवी तक केवल और केवल मुगल साम्राज्य का विस्तार ही होता रहा राइज ही होता रहा लेकिन 1707 ईसवी में औरंगजेब की मृत्यु महाराष्ट्र के अहमद नगर में हुई इसे दफना दिया गया दौलताबाद महाराष्ट्र में और जैसे ही औरंगजेब की मृत्यु होती है ताश की प पतो की तरह बिखरा मुगल साम्राज्य और वहीं से बहुत तेजी से मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो जाता है और इतिहासकार कहते हैं कि जैसे ही औरंगजेब मरता है बस वहीं से शुरुआत होती है मॉडर्न इंडिया की वहीं से शुरुआत होती है आधुनिक भारत की तो इसी के बाद की कहानी आधुनिक भारत में है हां जी तो अब हम बात करते हैं मॉडर्न इंडिया या आधुनिक भारत के बारे में जिसकी शुरुआत 1707 ईसवी से मानी जाती है क्योंकि मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु 1707 ईसवी में महाराष्ट्र के अहमद नगर में हुई और यहीं से मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ सबसे पहले 1707 ईसवी से लेकर 1857 ईसवी तक हम बात करते हैं लेटर मुगल्स के बारे में या उत्तर वर्दी मुगल शासकों के बारे में औरंगजेब के चार बेटे थे मुअज्जम आजम काम बख और मजम आजम और काम बख यह तीन पुत्र औरंगजेब के जीवित उसकी मृत्यु के बाद बचे इन्हीं तीनों में सिंहासन को लेकर लड़ाई शुरू हुई और मुअज्जम ने ही अपने भाइयों आजम और काम भक्ष की हत्या करवाकर मुगल साम्राज्य का सिंहासन प्राप्त किया और यह बहादुर शाह प्रथम के नाम से अगला मुगल बादशाह बन गया तो जैसे ही मॉडर्न इंडिया की शुरुआत होती है दोस्तों तो ध्यान रखेंगे मॉडर्न इंडिया में सबसे पहला ही टॉपिक जो हम पढ़ते हैं वह होता है डिक्लाइन ऑफ मुगल्स यानी कि मुगल साम्राज्य का पतन 1707 ईसवी से लेकर 1857 ईसवी तक हम बात करते हैं और उत्तर वर्दी मुगल बादशाहों के बारे में लेटर मुगल्स के बारे में औरंगजेब की जब मृत्यु हुई तो उसके तीन पुत्र जीवित थे मुअज्जम आजम और काम बख मुअज्जम ने ही आजम और काम वक्ष की हत्या करवाकर मुगल साम्राज्य का सिंहासन प्राप्त किया और यह बहादुर शाह प्रथम के नाम से भारत का अगला मुगल भाष बन गया 1707 ईसवी में इसने मुगल भाषा बनते ही मेलमिन कर पाया और 1712 ईसवी में इसकी डेथ हो गई इसके मरने के बाद भारत का अगला मुगल बादशाह बना जहा दर शाह 1712 से 1713 तक शासन किया जहांदरी शाह ने और फिर 1713 में फरूक शियर जहा दर शाह की हत्या करवाकर भारत का अगला मुगल बादशाह बना 1713 से लेकर 1719 तक और ध्यान रखेंगे 1716 ईसवी में फरख शियर के ही द्वारा सिखों के प्रथम राजनैतिक नेता बंदा बहादुर की हत्या करवा दी गई और सिखों का जो संघर्ष मुगलों के खिलाफ चल रहा था वह कहीं ना कहीं कमजोर पड़ा उसके बाद 1719 में फरक शियर की हत्या करवाकर सैयद बंधु या सैयद ब्रदर्स ने रफी उद् दरजत को मुगल भाषा बनाया जो कि तीन महीने में चल बसा और उसके बाद रफी उद् दौला शाहजहां सेकंड के नाम से मुगल बादशाह बना और यह भी चल बसा लगभग पाच महीने के बाद 1719 में सबसे अयोग्य मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला की ताजपोशी हुई और इसी के शासनकाल में 1739 ईसवी में नादिर शाह का आक्रमण हुआ और ऐसा कहते हैं कि ईरान का नेपोलियन कहलाता था नादिर शाह और नादिर शाह ने ही मुगलों के साथ लूटपाट करके मुगलों के तक्ते त उस मयूर सिंहासन को छीना और वह मुगलों से लूटकर ले गया सुप्रसिद्ध कोहिनूर डायमंड या कोहिनूर हीरा 1748 में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला की डेथ हुई उसके बाद अगला शासक बना अहमद शाह और अहमद शाह के बाद फिर आया आलमगीर सेकंड या आलमगीर द्वितीय आलमगीर द्वितीय के ही शासनकाल में प्लासी की लड़ाई अंग्रेजों और बंगाल के नवाब सी राजू दौला के बीच में लड़ी गई और दोस्तों ध्यान रखेंगे जब मोहम्मद शाह रंगीला शासन कर रहा था तो मोहम्मद शाह रंगीला के ही शासनकाल में मुगलों के के ही जो अलग-अलग प्रोविंसेस अलग-अलग राज्य थे उन्होंने खुद को मुगलों से स्वतंत्र स्थापित करना घोषित कर दिया और हमारे देश में कई स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई जैसे बंगाल की स्थापना मुर्शिद कुली खान के द्वारा की गई वो बंगाल का पहला नवाब कहलाया अवध की स्थापना सादतपुरा की गई भरतपुर राज्य की स्थापना हुई रोहेल और बंगश पठानों ने भी खुद को मुगलों से अलग कर लिया जयपुर जो कि आमेर कहलाता था जयपुर और जोधपुर भी मुगलों से इंडिपेंडेंट हुए और दक्षिण में मराठा हों का उदय हो ही रहा था कहने का मतलब मुगल साम्राज्य बिखरा दक्षिण में दक्कन में हैदराबाद राज्य की स्थापना निजाम उल मुल्क या चिनक खान के द्वारा की गई और इंडिपेंडेंटली मैसूर में हैदर अली ने खुद को क्या कर लिया स्वतंत्र कर लिया इसके बाद 1759 से लेके 1806 ईसवी तक भारत का मुगल बादशाह शाह आलम सेकंड बना शाह आलम द्वितीय बना और इसी के समय में पानीपत की तीसरी लड़ाई पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया जो कि अहमद शाह अब्दाली और मराठा हों के बीच हुआ इसमें अहमद शाह अब्दाली ने मराठा को बुरी तरीके से पराजित किया और मराठा साम्राज्य भी इसके बाद कमजोर हो गया 1806 ईसवी से लेकर 1800 37 तक अकबर सेकंड अकबर द्वितीय भारत का अगला मुगल भाषा हुआ और 1837 से लेकर 1857 तक भारत का अंतिम मुगल भाषा हुआ बहादुर शाह जफर तो कहने का मतलब यह है कि बहादुर शाह प्रथम से लेकर बहादुर शाह प्रथम से लेकर और बहादुर शाह द्वितीय तक या बहादुर शाह जफर तक कुल 11 मुगल बादशाह और मुगल साम्राज्य में आए लेकिन जैसा कि मैंने आपको बताया इसी के दौरान कुछ इंडिपेंडेंट स्टेट्स कुछ स्वतंत्र राज्यों की भी स्थापना हुई और इन स्वतंत्र राज्यों में कुछ महत्त्वपूर्ण राज्य जहां से एग्जाम में सवाल पूछे जाते हैं और पूछे जा सकते हैं वह कौन-कौन से रहेंगे सबसे महत्त्वपूर्ण बंगाल बंगाल को स्वतंत्र किया गया किसके द्वारा मुर्शिद कुली खान के द्वारा अवध अवध को स्वतंत्र किया गया सादतपुर से सवाल बनते हैं मैसूर को स्वतंत्र करने वाला हैदर अली और फिर हैदर अली के बाद टीपू सुल्तान हैदराबाद हैदराबाद को स्वतंत्र किया गया निजाम उल मुल्क के द्वारा उसके बाद सिख राज्य पंजाब जिसको स्वतंत्र किया महाराजा रणजीत सिंह ने और अगर मराठा की बात करें तो मराठा स्टेट में स्थापना शिवाजी के द्वारा की गई थी लेकिन शिवाजी के बाद मराठा हों के पेशवा ही मराठा साम्राज्य के वास्तविक शासक बन गए तो कहने का मतलब भारत पूरी तरीके से स्वतंत्र राज्यों में विभाजित हो चुका था उधर भारत में यूरोपियन का भी आगमन हो चुका था तो जहां एक तरफ मुगल साम्राज्य का पतन हुआ भारत में इं पेंडेंट राज्यों की स्थापना हुई वहीं दूसरी तरफ भारत में आगमन हुआ ब्रिटिशर्स का अंग्रेजों का और अन्य यूरोपीयंस का जिसको हम कवर करते हैं एडवेंटो पियंस इन इंडिया भारत में यूरोपियों का आगमन एडवेंटो पियंस इन इंडिया भारत में यूरोपियों का आगमन और दोस्तों आप जानते होंगे अगर हम यूरोपियन कंपनीज की बात करें तो यूरोपियों में भारत में आने वाले सबसे पहले हुए पोर्तुगीज सबसे पहले आए भारत में पुर्तगाली जिनका आगमन 1498 ईसवी में त हुआ जब यूरोप से लेकर भारत तक आने के एक नए समुद्री मार्ग की खोज वास्कोडिगामा के द्वारा की गई इसके बाद भारत में आगमन हुआ डचेस का डच आतो 1596 में ही गए थे लेकिन 1602 ईसवी में इन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की नीदरलैंड के लोगों को ही डच कहा जाता है डचों के बाद भारत में आगमन हुआ ब्रिटिशर्स का यानी कि अंग्रेजों का अंग्रेज 1599 में आए लेकिन सन 1600 ईसवी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और ध्यान रखेंगे मात्र 100 साल के भीतर अंग्रेजों ने भारत में अपने तीन मुख्यालय स्थापित कर लिए मद्रास बॉम्बे और कोलकाता इसके बाद भारत में आए डेंस या डेनिश लोग डेनमार्क के लोगों को ही डेनिश कहा जाता है इनका आगमन 1616 ईसवी में हुआ था और आखरी में लास्ट भारत में आगमन हुआ फ्रेंच या फ्रांसी सियों का जहां एक तरफ मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था मुगल साम्राज्य कमजोर हो रहा था वहीं दूसरी तरफ यहां पर अपनी स्थिति को मजबूत कर रहे थे यूरोपिय और यूरोपिय में भी खासकर ब्रिटिशर्स अंग्रेजों ने सबसे पहली फैक्ट्री तो स्थापित की थी कहां पर सूरत में लेकिन इन्होंने सबसे पहले अधिकार जमाया बंगाल पर पहले 1757 ईसवी में प्लासी के युद्ध में सिराज उ दवाला को रॉबर्ट क्लाइव ने पराजित किया और फिर 1764 में बक्सर के युद्ध को जीतने के बाद पूरे के पूरे बंगाल बिहार और उड़ीसा पर दीवानी के अधिकार प्राप्त कर लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने और आप जानते हैं यहीं से अंग्रेजों की शक्ति का विस्तार होना शुरू किया या विस्तार होना शुरू हुआ और जितने भी इंडिपेंडेंट स्टेट्स यहां पर स्थापित हुए थे मुगलों से इंडिपेंडेंट होकर धीरे-धीरे सभी पर अपना अधिकार जमा लिया अंग्रेजों ने किसी को सहायक संधि से किसी को हड़प की नीति से सारे के सारे राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया और कहने का मतलब है 1757 से लेकर 1857 तक लगभग 100 साल तक राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक रूप से हमारा शोषण होता रहा लेकिन फाइनली हमारे सब का बांध टूटा और सब्र का बांध टूटने के बाद हमने अंग्रेजों के खिलाफ एक विद्रोह किया जो कहलाता है रिवोल्ट ऑफ 1857 1857 का विद्रोह रिवोल्ट ऑफ 1857 1857 का विद्रोह एग्जाम पॉइंट ऑफ व्यू से इंपॉर्टेंट टॉपिक है इसे आप जरूर तैयार करके जाएं 1857 के विद्रोह के बारे में आप अच्छी तरीके से जानते होंगे भाई में लॉर्ड कैनिंग भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया था और उसी के शासनकाल में 1857 की क्रांति हुई थी इस क्रांति की शुरुआत इस क्रांति की शुरुआत 10 मई 1857 से उत्तर प्रदेश के मेरठ से शुरू हुई ज्यादातर आपको 1857 की क्रांति से ऐसे सवाल मिलेंगे कि आपको किसी भी स्थल किसी भी जगह का नाम दिया जाएगा और आपसे पूछेंगे कि बताइए यहां पर किसके द्वारा विद्रोह किया गया या फिर किस ब्रिटिश अधिकारी के द्वारा उस विद्रोह को नियंत्रित किया गया तो इस विद्रोह की शुरुआत सबसे पहले इस विद्रोह का स्थल था मेरठ जो कि आज उत्तर प्रदेश में है यहां से विद्रोह किया गया कदम सिंह के नेतृत्व में और इसे ब्रिटिश अधिकारी कॉलिन कैंबल के द्वारा नियंत्रित किया गया दिल्ली में विद्रोह हुआ दिल्ली में विद्रोह का नेता बना दिया गया अंतिम मुगल भाषा बहादुर शाह जफर को जिसे नियंत्रित कर लिया गया निकलस और हडसन के द्वारा निकलस और हडसन के द्वारा दिल्ली में विद्रोह नियंत्रित कर लिया गया और भी कई जगह थी जैसे मथुरा मथुरा से विद्रोह किया देवी सिंह ने जिसे नियंत्रित किया गया कॉलिन कैंबल के द्वारा इसके [संगीत] बाद एक विद्रोह कानपुर में भी हुआ कानपुर में विद्रोह करने वाले नाना साहब और नाना साहब के ही सेनापति तात्या टोपे कंट्रोल्ड बाय कॉलिन कैंबल झांसी झांसी से विद्रोह किया गया रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा जिसको कैप्टन यूरोज के द्वारा नियंत्रित किया गया लखनऊ लखनऊ से विद्रोह किया बेगम हजरत महल ने कंट्रोल्ड बाय कॉलिन कैमल बिहार का जगदीशपुर जहां से विद्रोह किया कुंवर सिंह ने कंट्रोल्ड बाय विलियम टेलर और विंसेंट आयर ने इसके अलावा भी कई सारे महत्त्वपूर्ण विद्रोह के स्थल थे जैसे बरेली से विद्रोह खान बहादुर ने किया जिसको विंसेंट आयर के द्वारा ही नियंत्रित किया गया फैजाबाद से विद्रोह मौलवी अहमद उल्ला ने किया जनरल लेनार्ड ने उसको नियंत्रित किया इलाहाबाद से विद्रोह करने वाले लियाकत अली जिसको कर्नल नील के द्वारा नियंत्रित किया गया कहने का मतलब 1857 की क्रांति हुई और विभिन्न स्थानों पर इस क्रांति को इस विद्रोह को नियंत्रित कर लिया गया बड़ी आसानी से ब्रिटिशर्स के द्वारा अंग्रेजों के द्वारा जहां एक तरफ 19वीं शताब्दी में 19th सेंचुरी में अंग्रेज भारत में रिफॉर्म कर रहे थे सुधार कर रहे थे वहीं हमारे देश में एक सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन हुआ जिसमें 19th सेंचुरी में ही हमारे देश में कई ऐसे समाज सुधारक हुए जिन्होंने हमारे देश में सोशल और रिलीजियस रिफॉर्म्स किए या सामाजिक और धार्मिक सुधार किए राजा राम मोहन राय ईश्वरचंद्र विद्यासागर स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी विवेकानंद यह सारे के सारे वो लोग थे जिन्होंने कई सामाजिक और धार्मिक सुधार हमारी सोसाइटी में या हमारे समाज में किए थे यह टॉपिक बेहद इंपॉर्टेंट रहेगा इसको आप जरूर पढ़कर जाएं यहां से आपको कई सारे क्वेश्चंस देखने के लिए मिल सकते हैं और दोस्तों ध्यान रखेंगे जहां 1857 की क्रांति हुई तो क्योंकि 1857 की क्रांति पूरी तरीके से विफल हुई थी पूरी तरीके से फेल हुई थी इसीलिए हम लोगों को समझ में आ गया कि हम लोगों ने विद्रोह जरूर किया था लेकिन इस विद्रोह को कुशल नेतृत्व प्राप्त नहीं हो पाया और इस विद्रोह में राष्ट्रीयता की भावना की बहुत कमी थी नेशनलिज्म की बहुत कमी थी इसीलिए इसके बाद हमारे देश के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ या जागरण हुआ और आप अच्छी तरीके से जानते हैं इसी का नतीजा हुआ 1885 ईसवी में स्थापना हुई कांग्रेस की और वहीं से शुरुआत हुई इंडियन नेशनल मूवमेंट के या भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के और अगर हम इंडियन नेशनल मूवमेंट की बात करें अगर हम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बात करें तो ध्यान रखेंगे 1885 ईसवी से लेकर 1947 तक का जो पार्ट है इसी को को इंडियन नेशनल मूवमेंट या भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन कहा जाता है जिसे हम विभिन्न चरणों में पढ़ते हैं सबसे पहले 1885 ईसवी में फाउंडेशन ऑफ कांग्रेस कांग्रेस की स्थापना और 1885 से लेकर 1948 तक हुए कांग्रेस के महत्वपूर्ण सेशंस या इंपॉर्टेंट सेशंस या महत्त्वपूर्ण अधिवेशन तो कांग्रेस के इंपॉर्टेंट सेशंस आप जरूर पढ़ के जाएं और जब इंडियन नेशनल मूवमेंट की शुरुआत होती है तो इसे हम विभिन्न चरणों में पढ़ते हैं जैसे इंडियन नेशनल मूवमेंट के अगर हम फर्स्ट फेज की बात करें इसे कहा जाता है एरा ऑफ लिबरल्स इसे कहा जाता है उदारवादी युग और अगर हम उदारवादी युग के बारे में बात करें तो ध्यान रखेंगे 1800 85 ईसवी से लेकर 1905 ईसवी तक का जो पीरियड रहा उसी को कहा गया एरा ऑफ लिबरल्स या उदारवादी युग उसके बाद सेकंड फेज में एरा ऑफ अल्ट्रा नेशनलिज्म या जिसे आप कह सकते हैं उग्र राष्ट्रवाद का युग 1905 से लेकर 1919 तक का पीरियड उसके बाद थर्ड फेज में हम पढ़ते हैं सबसे इंपॉर्टेंट गांधियन एरा या गांधीवादी युग 1900 19 से लेकर 1942 तक का जो पीरियड रहा उसी को हम गांधीवादी युग कहते हैं गांधियन एरा कहते हैं और जहां एक तरफ गांधीवादी युग चलता है वहीं दूसरी तरफ ध्यान रखेंगे एक होता है एरा ऑफ रिवोल्यूशन एक्टिविटीज जिसे आप हिंदी में कह सकते हैं क्रांतिकारी गतिविधियों का युग इसके हम दो चरण पढ़ते हैं एक 1905 से लेकर 1915 तक और एक 1924 से लेकर 1945 तक और इंडियन नेशनल मूवमेंट का अंतिम फेज अंतिम चरण कहलाता है टुवर्ड्स इंडिपेंडेंस या स्वतंत्रता की ओर 1942 से लेकर 1947 यह अति महत्त्वपूर्ण पार्ट रहेगा इंडियन नेशन मूवमेंट जिसे आपको एग्जाम के लिए बेहद अच्छे से पढ़कर जाना होगा क्योंकि सबसे ज्यादा सवाल आपको यहां से मिलेंगे और यहां से भी अगर मैं एक फेस चुनूं जिसमें सबसे ज्यादा सवाल बनते हैं वह है गांधियन एरा वह है गांधीवादी युग क्योंकि गांधी जी के द्वारा भाई चंपारण सत्याग्रह और रोलेट सत्याग्रह से लेकर क्विट इंडिया मूवमेंट या भारत छोड़ो आंदोलन तक सारे के सारे जो महत्त्वपूर्ण आंदोलन है वह इसी गांधियन एरा से ही क्या किए जाएंगे आपसे पूछे जाएंगे और फाइनली गवर्नर्स गवर्नर जनरल्स एंड वाइस रॉय गवर्नर गवर्नर जनरल और वाइस रॉय जिसको हमें मॉडर्न इंडिया में ही पढ़ना होता है एक और महत्त्वपूर्ण टॉपिक जहां से एग्जाम में हमेशा क्वेश्चन पूछे जाने की पॉसिबिलिटी रहती है सबसे पहले बंगाल में गवर्नर हुआ करते थे फर्स्ट गवर्नर ऑफ बंगाल कौन हुआ तो हम सब जानते हैं रॉबर्ट क्लाइव लेकिन आगे चलकर बंगाल के गवर्नर को ही बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तो आपसे पूछेंगे फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल तो बंगाल का पहला गवर्नर जनरल हुआ वॉरेन हेस्टिंग्स फिर बंगाल के गवर्नर जनरल को पूरे भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया जो कौन बना लॉर्ड विलियम वेंटिंग तो सारे के सारे गवर्नर गवर्नर जनरल्स के नाम आपको याद रखने हैं उनके कार्यकाल आपको याद रखने हैं और उनके समय में क्या-क्या महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई वह भी आपको याद रखना है उसके बाद भारत के गवर्नर जनरल को कहा जाने लगा वाइस रॉय ऑफ इंडिया और भारत का सबसे पहला वाइस रॉय हुआ लॉर्ड गनिंग उसके बाद फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और फिर लास्ट गवर्नर जन ऑफ इंडिया भारत के अंतिम गवर्नर जनरल जो कहलाए सी राज गोपालाचार्य या चक्रवर्ती राज गोपालाचार्य यह सारी की सारी वह महत्त्वपूर्ण चीजें हैं जो हमें मॉडर्न इंडिया में कवर करनी होती हैं जो हमें कवर करनी होती हैं आधुनिक भारत में तो दोस्तों कहने का मतलब स्टोन जज से लेकर गवर्नर गवर्नर जनरल एंड वाइस रॉय तक यह सारा का सारा एक ओवरव्यू एक रिवीजन पार्ट हिस्ट्री का मैंने आपको दिया ताकि आप लोगों के पास एक सीक्वेंस रहे हिस्ट्री का और इसी सीक्वेंस में यह सारे के सारे वोह इंपॉर्टेंट चीजें और महत्त्वपूर्ण टॉपिक्स हैं जहां से एग्जाम में सवाल पूछे जाते हैं तो मैं चाहता हूं कि इस क्विक रिवीजन की वीडियो को देखने के बाद आप इन सारी की सारी चीजों को डिटेल में कवर करें कहां से कवर करें बहुत आसान है करियर विल पप डाउनलोड कीजिए वहां पर आपको जीएस स्पेशल का बैच मिलेगा अगर आप पर्टिकुलर सब्जेक्ट को डिटेल में पढ़ना चाहते हैं वहां पर आपको सब्जेक्ट स्पेशल का बैच मिलेगा और यहां से पढ़कर आप अपनी तैयारी और अपनी सक्सेस को सुनिश्चित कर सकते हैं क्योंकि सिंपल सी बात है जीएस महासागर है और जीएस को अगर आप बेहतर करना चाहते हैं तो भाई देखिए सिंपल सी बात है वन लाइनर पढ़ पढ़ के और सिर्फ रट्टा फिकेशन से सिर्फ क्वेश्चन कर कर के तो जीएस काबू में नहीं आएगी जीएस में आप तभी परफेक्ट हो पाएंगे जब आप जीएस को थोड़ा सा सही तरीके से ठहराव लाके और डिटेल में पढ़ने की कोशिश करेंगे तो करियर विल पप पर जाकर आप बैचेज में एनरोल कर सकते हैं यह हमने एक छोटा सा रिवीजन का सेशन आपके लिए रखा था ताकि आप एग्जाम से पहले एक क्विक रिवीजन करें और फटाफट से जाकर एग्जाम में अपीयर हो और वहां पर जाकर क्वेश्चंस को अटेंप्ट कर ले तो दोस्तों बहुत-बहुत धन्यवाद बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी लोगों का इस सेशन को देखने के लिए आ होप काफी अंडरस्टैंडिंग आपकी बनी होगी एटलीस्ट सीक्वेंस इतिहास का आपके दिमाग में बना होगा जो बहुत ज्यादा हेल्पफुल रहेगा आपके एग्जाम के लिए थैंक यू वेरी मच शुक्रिया धन्यवाद लाइव क्लासेस में मुलाकात होती रहेगी धन्यवाद जय हिंद