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एयरपोर्ट प्राइवेटाइजेशन की चर्चा

और इस कमेटी ने जब एंक्वाइरी की तो उसमें ये कहा गया कि रिलायंस को जानपूछ के जादा पॉइंट दिये गया और फिर इसके बाद जब दुबारा से रिलायंस का एवालियोशन हुआ तो रिलायंस के पॉइंट्स कम हो गया और मज़े की बात तो यह है कि इस अंजान लेटर की वज़े से CBI FIR फाइल कर देती है उसमें पता लगा कि अच्छली अडानी ने सीकरिटली बिडवेस्ट और एसी एसे से पहले ही डील कर ली थी, 6 एरपोर्ट की बिडिंग स्टार्ट करने से पहले रूल्स को चेंज किया गया। लेकिन इसके बाद भी इस रूल को चेंज कर दिया जाता है कि कोई भी कमपनी कितने भी एरपोर्ट ले सकती है। कमपनी आती हैं तेकिन अडानी ग्रूप्स ऐसी बोरी लगाता है कि कोई आसपास तक नहीं रहता। इसे ज़्यादा पैसे की बोरी लगाके बिट जीती थी। उसने वो नुकसान खुद उठा के गवर्मेंट को पैसा नहीं दिया बलकि इन एरपोर्ट देखें गवर्मेंट जो है हमारी उसके पास किसी भी प्राइविट कंपनी के कंपेरेटिवली जादा पैसा और जादा केपिबिल्टी है लेकिन उसके बाद भी गवर्मेंट प्राइविट प्लेयर्स के हाथ में चीजे क्यों दे देती है वीसनल अपने टाइम पे स प्राइविट कंपनी के कंपरेटिवली जादा देती थी लेकिन उसके बाद भी बेसना इन प्राइविट प्लेयर्स के सामने नहीं टिक पाई तो अब कॉइस्टिन यह है कि क्या सच में गौर्वर्मेंट को बिजनस चलाने के लिए प्राइविट प्लेयर्स की जरूरत है चीजें प्राइवेट प्लेयर्स को देने में हल्ला क्यों हो रहा है इसका नुकसान क्या है और अभी मैं यह सारी चीजें इसलिए डिस्कस कर रहा हूं क्योंकि इंडिया में जो एयरपोर्ट्स है वहां कुछ ऐसा हो रहा है इसका डायरेक्ट असर लेट लेकिन सब चीजों की शुरुआत होती है 1999 में 1999 से पहले इंडिया के सारे एयरपोर्ट को Airports Authority of India जानी के AAI जो कि एक statutory government body है ये चलाती थी कोई private company नहीं चलाती थी लेकिन May 1999 में पहली बार ये सोचा गया कि government तो इसको चला ही रही है लेकिन इसको private companies को भी दे देना चाहिए ताकि थोड़ा modernization हो सके लेकिन government जो है वो ऐसी किसी private player को airport उठा के नहीं दे सकती क्योंकि airport नाम था PPP Public Private Partnership Model तो अब ये PPP मॉडल क्या है बेसिकली इसमें ना गवर्मेंट डिरेक्टली एरपोर्ट को चलाती है और ना ही प्राइविट कंपनीज एरपोर्ट को चलाती है बलकि एक अलग से कंपनी बनाई जाती है एरपोर्ट के लिए जिसको एरपोर्ट का ओपरेटर क इस चीज को मैं आपको एक example से समझाता हूँ। investors को दे दिया गया ऐसे अगर मुंबई एयरपोर्ट के ऑपरेटर की बात करें तो International Airport Limited MIAL इसमें 74% shares Adani Group के पास हैं और 36% shares AI यानि government के पास हैं अभी इस मुंबई एयरपोर्ट में Adani Group का नाम सुनके आप सोच रहे होगे 74% shares इसने कैसे ले लिये आप सब लोगों ने notice किया होगा कि AI और chat GPT की बहुत बात हो रही है क्योंकि हमारे टाइम की ये सबसे बड़ी तो क्या आप जानना चाहते हैं कि आप AI और Chat GPT कैसे सीख सकते हैं वो भी बिलकुल फ्री में सो मैं आपको रिकमेंड करूँगा Growth School का 3 आवर पेड वर्कशॉप जो Growth School के फाउंडर वैभव सिसिंती खुद होस्ट कर रहे हैं ये वर्कशॉप मेरे पहले 1000 विवियोर्स के लिए फ्री है इस वर्कशॉप की मदद से आप सीख पाएंगे कि आप कैसे 10 लोगों का काम अकेले कर सकते हो और कैसे AI की हेल्प से अपना करियर अर्निंग पोटेंशल बढ़ा सकते हैं चाहे आप कोई भी वर्किंग प्रोफेशनल हो जॉब करते हो फाउंडर हो फ्रीलैंसर हो या क्रियेटर हो ये वर्कशॉप आपको काफी मदद करेगी ग्रोथ स्कूल रियल और प्राक्टिकल स्किल सिखा के लोगों को टॉप वन परसेंट बनाने में हेल्प करता है लोगों के लिए तो टॉपिक पे वापिस आते हैं, अब देखिए जब ये PPP मॉडल करके प्राइविट कंपनीज को एरपोर्ट के अंदर इन्वाल्ड किया गया, तो लोगों के बहुत ही मिक्स रियक्शन आने लगे, एक तपका जो इसके सपोर्ट में है, वो कहता है कि एरपोर्ट में प्र वहीं दूसरा तपका जो इसके खिलाफ में है उसका ये कहना है कि जब गवर्मेंट के पास पैसे नहीं होते हैं और प्रोजेक्ट हैंडल करने की समझ नहीं होती है तब वो अपनी जिम्मेदारी से भाग के प्राइवेट प्लेयर्स का मूँ देखती है और प्राइवेटा प्रेबिलिटी भी सफर करती है और इसके साथ सथ एयरपोर्ट एक नेशनल सिक्योरिटी का भी इशू है तो इस तबके का मानना है कि प्राइवेट प्लेयर्स को इनवॉल्व होना ही नहीं चाहिए क्योंकि ऐसे में फॉरन कंपनीज भी चाहें तो डिरेक्टली या इंडि आपको डेली और मुंबई के एरपोर्ट के एक्जामपल लेकर समझाता हूँ। होती है तो सरकार को एक फिक्स रेट में जमीन देना लोगों की मजबूरी होती है तो जब सरकारी तरीके से जमीन लेकर आप एयरपोर्ट बना रहे हो और फिर लास्ट में जाकर प्राइवेट प्लेयर्स को दे रहे हो तो ये लोगों के साथ धोका हुआ ये सारा डिस्के लेकिन 1999 में कोची एरपोर्ट को प्राइवेट हातों में पहली बार दिया गया था। उसके चार साल बाद यानि के 2003 में एरपोर्ट अथॉरिटी ओफ इंडिया यानि के एएइ इसने फिर से कहा कि डेली और मुंबई एरपोर्ट को भी हम प���राइवेटाइज करेंगे। तो उस टाइम पे भी गवर्मनें खिलाब ऐसे ही हल्ला होता था जैसे आज होता है। अक्शिली गवर्मनें को एयरपोर्ट को मॉडरनाइज करना है जिसके लिए पैसे लगेंगे इसलिए डेली और मुंबई एयरपोर्ट को प्राइविटाइज करना होगा अब इसके बाद 2004 से 2005 तक का जो टाइम था इसमें उस टाइम की गवर्मेंट ने PPP मॉडर वाला जो प्रोसेस जो मैंने आ इन्होंने डेली एयरपोर्ट के लिए बनाई जिसका नाम था डेली इंटरनाशनल एयरपोर्ट लिम्टेड डी आई एल दूसरी इन्होंने मुंबई के लिए बनाई जिसका नाम था मुंबई इंटरनाशनल एयरपोर्ट लिम्टेड यानि के M.I.A.L. 26% का हिस्सा A.I.A. ने अपने पास रखा और बाकी का बचा हुआ जो 74% हिस्सा था वो इन्होंने डिसाइड किया कि ये प्राइवट प्लेयर्स को देंगे और इसके लिए इन्होंने 2006 में कमपनीज को बुलाया और एक बिडिंग सिस्टम स्टार्ट करवाया जिसमें डेली के एरिया रखे गए थे, management capability, development capability, financial capability, जिनके basis पे ये decide होना था, कि airport किस private company को मिलेंगे, ये जो Reliance के सामने financial capability वाले section में 49.999999 लिखा है, इसका मतलब ये हुआ, कि Reliance ने इस bidding process में ये कहा है, कि airport से कमाया गया revenue का इतना percent हिस्सा government को देगी, इसके बाद management और development capability के भी point system थे, इसमें भी रिलायंस ने काफी अच्छा परफॉर्म किया और डेली एयरपोर्ट की बिडिंग रिलायंस जीव पेट लेकिन इसके कुछ दिन बाद एक दिक्कत आ गई रिलायंस के उपर बहुत बड़ा एलिगेशन लगता है वो एलिगेशन यह था कि जो लोग इस बिडिंग committee बनाई जिसका नाम था group of eminent technical experts G E T E और इस committee ने जब inquiry की तो उसमें ये कहा गया कि reliance को जानपूछ के जादा point दिये गए और फिर इसके बाद जब दुबारा से reliance का evaluation हुआ तो reliance के points कम हो गए ये जो pre G E T E और इस committee ने जब inquiry की तो उसमें ये कहा गया कि reliance को जानपूछ और पोस्ट जी एटी लिखा हुआ है ये इसी चीज का है प्री में रिलायंस के पॉइंट्स जादा थे लेकिन पोस्ट में जब इंक्वाइरी हुई तो रिलायंस के पॉइंट्स कम हो गए और इसके बाद जी एम आर फ्रैपोर्ट को डेली का एरपोर्ट दे दिया गया रिल बिडिंग प्रोसेस के बाहर निकल गया था और डेली एयरपोर्ट जीमार फ्रेफोर्ट को मिल गया था अगर आप मुंबई के एयरपोर्ट के बिडिंग प्रोसेस का पॉइंट टेबल देखोगे तो यहां भी जीमार फ्रेफोर्ट आगे था लेकिन एक ही कंपनी की मोनोप� एक कमपणी को दो एरपोर्ट इस बिडिंग में नहीं दिये जाएंगे। तो अब क्योंकि GMR फ्रेफोर्ट को इस रूल की वयश से सिर्फ एक ही एरपोर्ट मिल सकता था, तो GMR फ्रेफोर्ट ने डेली एरपोर्ट सेलेट किया, तो डेली एरपोर्ट GMR को मिल गया। और जब मुंबई एरपोर्ट से GMR निकल के उस वो points में आगे था तो उसको मुंबई एयरपोर्ट मिल गया अब आप कहोगे कि Adani group के पास तो साथ एयरपोर्ट है और यहाँ आप हमें समझा रहे हो कि दो एयरपोर्ट एक company को नहीं मिल सकते तो अभी थोड़ा सा wait करिये सारी चीज़ें आपको समझ में आजाएंगे त आज का एयरपोर्ट जेमार ग्रूप के पास चला जाता है और बैंगलाओर एयरपोर्ट जीवी के ग्रूप के पास चला जाता है तो जो 2008 का टाइम था उस टाइम पर जीमार और जीवी के इंडियन एयरपोर्ट के सबसे बड़े प्राइवेट ऑपरेटर बन गए थे जैसे नवी मुंबई एयरपोर्ट बनाने का कॉंट्रैक्ट भी मिला इसके अलावा जीवी के ने 2011 में क्विंसलैंड में वन पॉइंट टू सिस बिलियन डॉलर्स की कोल माइन खरीदी और इसके साथ एक 500 किलोमीटर रेल लाइन और एक पोर्ट और इसकी वज़े से जीवीके का भी बहुत बड़ा नुकसान हो गया था ये सब तो चली रहा था इसके साथ उत्राखंड में अलग नन्ना में 330 MV का हाइड्रो पावर प्लांट बनाया था जीवीके ने 2014 में पहुँच जाता है और उसके बाद गवर्मन्ट चेंज हो जाती है और जब गवर्मन्ट चेंज हो गई तो 2014 में जब पंजाब में 540 MW गुइंडवाल साहिब थर्मल पावर प्रोजेक्ट बनकर तयार हुआ लोकेशन को कैंसिल कर दिया जिसकी वजह से जीवी के को पूर्ण मिलना मुश्किल हो गया था कुल मिलाकर हर साल इनकी सिचुएशन टॉप होती जा रही थी इसके बाद आता है साल 2019 मुंबई एयरपोर्ट जो मैंने पहले भी बताया था कि वह परसंट की हिस्सेदारी जीवीके के पास थी जो की सबसे जादा थी 13.5 परसंट की हिस्सेदारी एक साउथ अफरीकन कंपनी बिडवेस्ट के पास थी और 10 परसंट हिस्सेदारी जो थी वो एसी एसे के पास थी इसमें बहुत इंटरेस्टिंग रूल था जो अभी मैंने कं अपने shares उठा के किसी को भी बेच सकती थी अगर इन companies में से कोई एक company अपने shares बेचना चाती है तो वो पहले इन बाखी बची companies से पूछेगी फिर जाके कहीं बार अपने shares को बेच सकती है और यह रूल था इस रूल को follow करने के लिए जितनी भी companies थी जो मैंने भी नाम लिये करके खुद खरीश सकते हैं तो जैनवरी 2019 आता है और इनी कंपनी में से एक कंपनी बिडवेस्ट ने बाकी बची कंपनी से का कि वो अपने मुंबई एयरपोर्ट के शेयर्स बेचने वाली है अगर आपको लेने हैं तो 30 दिन के अंदर आप ले लो वरना वो बाहर जाके किसी कर ली थी shares खरीदने के लिए इसलिए ये लोग अपने shares बेच रहे थे लेकिन Adani का Mumbai airport को secretly खरीदने का जो सपना था वो GVK ने तोड़ दिया GVK ने rule के इसापसे इस deal को block कर दिया और कहा कि Mumbai airport के time था यहाँ से GVK का बुरा time चालू हो जाता है वो पहले ही financial loss में चल रहा था इसके बाद GVK को सबसे पहले दिक्कत आई उसके नवी मुंबई project में येस बैंक जो उसको पैसे उधार दे के प्रोजेक्ट में हेल्प करने को रेडी था, वो अचानक से मना कर देता है। उसके बाद SBI ने भी financial closure में delay करना स्टार्ट कर दिया। कई government organization जैसे की City and Industrial Development Corporation of Maharashtra, CIDCO, इसने भी shareholders agreement के breach को लेके इनके ऊपर question करना शुरू कर दिया। और कहानी यहां भी नहीं रुकती है, एक anonymous letter CBI को मिलता है, जिसमें ये mention था कि GVK group के chairman GVK Reddy और उनके बेटे GV Sanjay Reddy, जो की MIL के managing director है, उन्होंने मुंबई के airport... फंड्स में से 705 करोड रुपए चुरा लिये हैं और तो यह है कि इस अंजान लेटर की वज़े से CBI FIR फाइल कर देती है और इसमें EDB पीछे नहीं रहती है इसके कुछ दिन बाद ही GVK के ओफिसेस को रेड किया गया और मनी लाउंडरिंग चार्जेस पे एक सेपरेट केस फाइल कर दिया मिंट ने 2020 में एक आर्टिक कि ये कैसा coincidence है कि जैसे ही GVK ने Adani की deal को fail किया वैसे ही उसके उपर CBI और ED बैट गई राहूल गांधी ने भी कहा कि CBI और ED को क्यों लगा दिया गया GVK लोग के लोग खड़े हुए ED, CBI, agencies आ जाती हैं उनको परे कर देती हैं इसके जवाब में निशीकान दूबे ने कहा कि तुमने भी तो अपने टाइम में जीवीके और जीएमार को बिना एक्सपीरियंस के एरपोर्ट उठा के दे दिये थे। पूरी कॉंग्रेस पार्टी को चैलेंज करता हूँ कि जीएमार और जीवीके को बोल्स आएरपोर्ट चलाने का लाइसेंस दब दिया तो उनको उठा नौलस था। जीवी के जो लोन है SBI वगारा पे वो पे कर देगा इसके साथ ACSA और Bidwest ने भी चुपचाप अपने शेयर्स अडानी को बेच दी है और अडानी ग्रूप के पास 74% स्टेक आ गए और इतना ही नहीं मुंबई एरपोर्ट के साथ जो अंडर कंस्ट्रक्शन नवी मुंबई एरपोर्ट भी था वो भी अडानी के पास आ गया था अगर आपने हमारा NDTV वाला वीडियो देखा होगा तो NDTV को भी सिम तरीके से एक्कॉयर किया गया था और जब जीवी के मान जाता हो डील डन हो जाती है उसके कुछ महीने बाद कोई करप्शन नहीं मिला जीवी के की कोई गलती नहीं है तो इस तरीके से मुंबई एयरपोर्ट जो है वह डाइनिक रूप के पास आ जाता है और इसके बाद छह और एयरपोर्ट है वह डाइनिक के पास कैसे आते हैं उसकी बड़ी इंटरेस्टिंग स्टोरी लेकिन जिस वीक में मुंबई एयरपोर्ट अडानी ग्रुप के पास जाता है उसके नेक्स्ट वीक में एक न्यूज आती है जिसमें जब आई थी तो उससे लगने लगा था कि आगे और भी एरपोर्ट जो हैं उनको प्राइविटाइस किया जाएगा और लोगों के अजम्शन सही निकले क्योंकि उसके कुछ दिन बाद गवर्मेंट ने अनॉंस किया कि गवर्मेंट अपने छे और एरपोर्ट जिसमें एह इनको भी पीपीपी मॉडल के थूँ प्राइविटाइज करेगी इस अनॉन्समेंट के बाद चेहर पॉइंट की बिडिंग स्टार्ट होती है और इस एयरपोर्ट की बिडिंग होती है इसमें सारे के सारे यानि 6 के 6 एयरपोर्ट अडानी ग्रुप जीच जाता है बाकि मुंबई वाला एयरपोर्ट पहले से ही था तो अडानी ग्रुप के पास टोटल 8 में से 7 एयरपोर्ट अडानी ग्रुप के पास पहुँच जाते हैं अब सबसे पहला रूल चेंज हुआ कि अगर किसी प्राइवट प्लेयर को एरपोर्ट चाहिए तो विडिंग प्रोसेस में आ सकता है उसकी टेक्निकल एक्सपर्टीज और उसका एक्सपीरियंस नहीं देखा जाएगा। देखिए जब मैं आपको डेली और मुंबई एरपो management capability, development capability और financial bidding तो ये जो नई bidding process में से इन तीन में से दो चीज़ों को हटा दिया गया था एक management capability और दूसरी development capability तो नई bidding process में सिर्फ financial bidding देखी जाएगी मतलब की टेक्निकली कौन सी कंपनी ज़्यादा केपिबल है वो छोड़के ये देखा जाएगा कि सबसे ज़्यादा पैसा कौन आफर कर रहा है एरपोर्ट लेने की बिडिंग में। जब ये रूल चेंज किया गया तो CNBC TV 18 की रिपोर्ट के इसाप से फिनाइस मिनिस्ट्री और नीती आयोग दोनों ने मना किया था ऐसा बिलकुल मत करिये क्योंकि जिस कंपनी के पास टेक्निकल एक्सपर्टीज नहीं होगी और सिर्फ पैसा देके एरपोर्ट ले लेगी तो दूसरा रूल ये चेंज किया गया कि एक कंपनी दो से जादा एरपोर्ट ले सकती है अभी थोड़ी देर पहले हमने डिसकस किया था कि जब डेली और मुंबई एरपोर्ट में ज तो उसको मजबूरी में एक airport छोड़ना पड़ता क्योंकि rules के इसापसे उस particular bidding में एक company को दो airport नहीं दिये जा रहे थे क्योंकि दोनों बड़े airport एकी company के पास चले जाएंगे तो competition खतम हो जाएगा और इस तरीके के rules जो government है वो time to time करती रहती है जैसे जब Delhi में जब electricity को private हातों में दिया गया था तो Delhi को अलग-अलग zone में divide करके दो अलग company को दिया गया था ताकि monopoly नहीं हो तो सारे airport risk पे आ जाते हैं airport authority employees यूनियन के पास जो document है उसमें ये कहा गया कि जब एक company को multiple airports देने की बात की गई थी तो Ministry of Finance के Department of Economic Affairs यानि के DEA इसने इसके लिए साफ मना कर दिया था और इसके साथ ही DEA ने December 2018 में एक appraisal note में भी कहा था कि एक bidder को दो से ज़ादा airport नहीं मिलने चाहिए और अगर ऐसा नहीं किया गया तो monopoly होगी और airports risk पे कि कोई भी company कितने भी airport ले सकती है और अगर ये rule change नहीं होता तो Adani को 6-6 airport ले जाएंगे पूर्ट नहीं मिलते अब तीसरा रूल ये चेंज किया गया कि अब कंपनीज को गवर्मेंट के साथ रेवन्यू शेयर करने की जरूरत नहीं है, बलकि उसकी जगांपे पर पैसेंजर फीस ली जाएगी, मतलब कि एरपोर्ट पे हर पैसेंजर की एक फीस डिसाइड कर दो, तुम कमाओ चाहे ना कम बिडिंग प्रोसेस के अंदर वो जीच जायागा बिडिंग, तो अब आप कहोगे कि इसमें क्या दिक्कत हो गई, तो देखें इसके पीछे भी बहुत इंटरस्टिंग स्टोरी है, देखें जब डेली और मुंबई के एरपोर्ट की बिडिंग प्रोसेस हम डिसकस कर रहे थे लेता है टिकट वगैरह से दूसरा वह एयरपोर्ट की दुकानों वगैरह से रेंट पर लाउंज और पार्किंग वगैरह रेंट पर देता है और एडविटाइजिंग से लेता है तो जब पर पैसेंजर के अगर पैसेंजर कम आए तो गवर्नमेंट को कम पैसा जाएगा लेकिन एयरपोर्ट की शॉप्स वगैरह से रेंट वगैरह तो हर सिचुएशन में ही आता है तो वो सारी चीजें जो हैं वो प्राइवेट कंपनी की जेब में जाएगा तो यह घाटे का सौधा हुआ गवर्नम नीति आयोग ने एक नोट में लिखा कि इससे पहले जो प्रॉफिट था वो गवर्मेंट और प्राइविट कमणी के बीच में बाट लिया जाता था। उससे गवर्मेंट को ज़्यादा फायदा था। इससे पहले वाले मॉडल में अगर एरपोर्ट कमाता था तो गवर्में जो भी rule change किये उसके पीछे क्या story थी वो बताई उन्होंने government ने कहा कि अगर हम नई companies को आगे नहीं आने देंगे तो airport business में experience वाली बहुत ही कम companies हैं खाली 6 companies हैं अगर हम बार सिर्फ उनी companies को bidding में बिठाएंगे तो उनकी monopoly हो जाएगी दूसरा उन्होंने कहा कि एक private company को multiple airport देने वाला rule इसलिए लाया गया क्योंकि पहले airports कम थे आज की date में 100 से ज़ादा airport हैं इंडिया में अगर ये rule रहेगा तो demand के असाब से उतनी private company है ही नहीं तो मजबूरी थी ये rule change करनी की पर passenger fee वाला जो issue था उस उस पे government ने यह कहा कि companies अपना revenue कम दिखाती हैं, तो इससे नुकसान होता है, इसलिए per passenger वाला model जो है वो जाधा effective है, इसलिए उसको लाया गया, तो इस सारे clarification देने के बाद rules change होते हैं, और उसके बाद आता है bidding process वाला दिन, companies आती हैं, तेकि अडानी groups ऐसी बोली लगाता है क पर पैसेंजर की बोली लगाई और यही रीजन था एक तरफा 6 के 6 एयरपोर्ट अडानी ग्रूप जीट जाता है लेकिन बिट जीतने के बाद एक चीज और होती है अडानी ग्रूप ने जो जादा पैसे की बोली लगा के बिट जीती थी उसने वो नुकसान खुद उठा के गवर्मेंट को पैसा नहीं दिया बलकि इन एयरपोर्ट पे पैसेंजर से ली जाने वाली फीज बढ़ा पर कार को देना था वह उसने पैसेंजर से एक्स्ट्रा वसूल लिया और अपना प्रॉफिट अपने पास रखा मैं एग्जांपल समझाता जैसे कि एमदाबाद से ट्रेवल करने वाले लोग अगर अपना टिकेट खोल कर देखेंगे तो उसमें एक चीज नोटिस करें और आपकी ticket में included होती थी, वो पहले domestic और international passenger के लिए 100 रुपए थी, लेकिन 1 February 2023 से वो domestic passenger के लिए 250 रुपए, और international passenger के लिए 550 रुपए कर दी गई, और यही नहीं, 1 April 2024 से यह domestic के लिए 450 हो जाएगी, और international के लिए 880 रुपए हो जाएगी, और 1 April 2025 से यह domestic के लिए 600 हो जाएगी, और international के लिए 1190 हो जाएगी, भी सेम चीज की गई डोमेस्टिक पैसेंजर के लिए यूडियफ यानि यूजर डेवलप्मेंट फी पहले देड़ सुरपे ली गई और इस साल उसको साड़े तीन सुरपे कर दिया गया अगले साल उसको पांसो साट रुपए कर दिया जागे यानि कि हर साल बढ़ेगी वो लेकिन सिंपल समझाने का मतलब यह है कि अगर आप एरपोर्ट से फ्लाइ करते हैं तो उसकी टिकेट अब महंगी हो जाएंगी और लगनों एरपोर्ट गए यानि के एक साल में चार से पांच गुना यूडियप बढ़ा दी गई है इसके अलावा अडानी ग्रुप के जो एयरपोर्ट्स हैं वहाँ पर जो लेंडिंग और पार्किंग चार्जेस को लेकर जो इशू चल रहा है वो एक अलग मुद्दा उसको किसी और वीडियो मे पहले कमपणी कोई इस तमें कंपनी कोई और है। अभी current situation की बात करें तो GMR group जो है वो lead कर रहा है इंडियन airports में। इसके पास 34.13% international traffic है और 29.27% domestic traffic है। लेकिन आने वाले टाइम में Adani group इनको पीछे छोड़ देगा। और ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ वो भी समझाता हूँ गवर्मन्ट ने आप प्राइविटाइजेशन के लिए अगले राउंड आफ एरपोर्ट को तयार कर लिया है इसमें अमरित सर, वारानसी, बुवनेश्वर, तीरुचीरापली और रायपूर जैसे एरपोर्ट ह परसेंट अकाउंट करते हैं अगर अडानी ग्रूप बिडिंग में ये सारे एयरपोर्ट जीज जाता है तो अडानी ग्रूप के पास जीएमार से जादा पैसेंजर्स होंगे इसके अलावा गवर्मेंट का प्लान है कि अगले कुछ साल में 50 एयरपोर्ट को और प्राइवर� न्यूज़ फॉलो की हो तो अडानी एयरपोर्ट के चीव एक्जिक्यूटिव अरुन मंसल ने कहा कि अडानी आने वाले एयरपोर्ट बिड्स में और एयरपोर्ट के लिए बिड करेगा क्योंकि उसका एमबीशन है कि इंडिया का वो लीडिंग एयरपोर्ट ओपरेटर बने लेकिन जब भी ऐसी सिचुएशन होती है कि एक दो प्लेयर्स ही बचते हैं और सिफ उनी की ही मोनोपॉली रहती है ऐसी सिचुएशन में सबसे आदा नुकसान आम जनता का होता है इससे पहले जब एरपोर्ट्स पूरी तरीके से गवर्मेंट के हाथ में थे तो उनक पूछना पड़ता था लेकिन अगर यही चीज गवर्नमेंट से हटकर सिर्फ कुछ बड़े प्राइवेट प्लेयर्स के पास चली जाएगी तो जो प्राइवेट प्लेयर्स की जवाब देई है वो किसी को नहीं रहेगी वो मुनाफा के लिए काम करते हैं उनको समासेवा पर लेकिन अगर सिर्फ एक या दो प्राइवेट प्लेयर बचते हैं तो अपनी मर्जी चला सकते हैं वह कोई भी लेम रीजन दे के प्राइस डबल कर देंगे और कोई कुछ भी नहीं कर पाएगा सेम यही चीज आज से कुछ साल पहले टेलीकॉम सेक्टर में बड़ा थी पहले साथ-ाठ कंपनियां थी लेकिन आज की डेट में सिर्फ तीन है एटल जी और वोडाफोन अगर आप ध्यान से तीनों कंपनीज में से सिर्फ एक कंपनी पैसा बढ़ाती तो उसको नुकसान होता पब्लिक बाकी ऑपरेटर्स के पास चली जाती लेकिन इनको पता था कि अगर तीनों ही प्लेयर्स पैसा बढ़ाएंगे एक साथ बढ़ाएंगे तो कस्टमर की मजबूरी बन जाएगी उसक