[संगीत] यह नाटक भारतीय साहित्य में अपनी खास पहचान रखता है भीष्म साहनी द्वारा रचित माधवी नाटक ना केवल एक साधारण कहानी है बल्कि यह समाज के उन पहलुओं को उजागर करता है जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं माधवी को 1984 में लिखा गया था जब हमारा समाज कई सामाजिक और नैतिक उलझनों से गुजर रहा था इस नाटक में कुल तीन अंक है इस नाटक के माध्यम से भीष्म सहनी ने उस समय की परिस्थितियों पर गहरी चोट की जहां मानवीय संवेदनाएं और रिश्ते महत्वाकांक्षाओं की भेट चढ़ जाते थे माधवी की कहानी ना केवल एक ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ को प्रस्तुत करती है बल्कि यह हमारे समाज के वर्तमान परिपेक्ष को भी उजागर करती है यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि क्या वाकई इंसान अपनी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के आगे किसी की भावना की परवाह करता है माधवी नाटक की मुख्य पात्र माधवी है राजा ययाती की पुत्री थी माधवी एक आज्ञाकारी पुत्री कर्तव्य पराय स्त्री और कोमल हृदय वाली महिला थी माधवी की कहानी महाभारत के उद्योग पर्व में भी संक्षिप्त में मिलती है दानवीर ययाती माधवी के पिता राजा ययाती थे गुरु विश्वमित्र एक गुरु थे गालव एक शिष्य थे जो लगभग असंभव गुरु दक्षिणा देने वाले थे गालव ने माधवी को तीनों राजाओं में से प्रत्येक को दिया था अश्व मेदी घोड़े गालव ने माधवी को तीनों राजाओं में से प्रत्येक को दिया था ताकि वे अश्वमेध घोड़ों को प्राप्त कर सके माधवी नाटक में नारी जीवन की विसंगतियों को उजागर किया गया है यह नाटक पुरुषार्थ और मानवता के खोखले पन पर करारा तमाचा है अगर आप इस चैनल नए हैं तो सब्सक्राइब करके बेल नोटिफिकेशन ऑन कर दीजिए भीष्म जी का नाटक माधवी गालव और माधवी की पौराणिक कथा को लेकर लिखा गया है नाटक में माधवी एक ऐसे समाज में रहती है जहां धर्म और परंपराएं एक मंगलदा कायक छत के नीचे पनपती है जहां स्त्री के प्रति पुरुष का व्यवहार अत्यंत क्रूर दिखाई देता है अभी भी उसके शोषण और दमन की परंपरा कायम है आज का पुरुष भी उसी सामंतवादी मनोवृत्ति से युक्त है समाज की नीतियों नियमों ने केवल नाम बदले हैं माधवी से मानसी या मधुरा माधवी को केंद्र में रखकर लिखा गया यह नाटक उसके इर्दगिर्द ही चक्कर काटता है भीष्म साहनी जी ने मध्यकालीन स्त्री जीवन को रेखांकित किया है जो आज भी बहुत प्रासंगिक लगता है माधवी में सबसे से महत्त्वपूर्ण गुण समाहित है कर्तव्य परायणता यह बहुत ही त्रासद है कि पूरे नाटक में वह अपने शोषण का तीव्रता से विरोध नहीं करती पिता के द्वारा गालव के हाथ अश्वमेध घोड़ों की व्यवस्था के लिए सौंप जाने के बाद वह चुपचाप गालव के साथ निकल पड़ती है ययाती और गालव की निष्ठुर थी कि उन दोनों ने कभी माधवी की भावनाओं के बारे में नहीं सोचा माधवी की विशेषता उसके गर्भ से उत्पन्न होने वाला बालक चक्रवर्ती राजा बनेगा तथा वह अनुष्ठान के द्वारा दोबारा चेर कुमारी बन सकती का ययाती और गालव ने फायदा उठाया ययाती का अहम था कि अब सारा देश ययाती को दानवीर राजा के रूप में जाने और गालव का अहंकार कि सभी उसे एक श्रेष्ठ शिष्य के रूप में जाने लेकिन आहुति दी गई की एक और गालव के प्रति प्रेम भावना और दूसरी ओर कर्तव्यों का पालन राजा हरेश दवदास उष नगर के यहां रहकर उनके अंतःपुर में रहकर बेटे को जन्म देना माधवी के लिए सुखद नहीं था क्योंकि वह मानसिक रूप से गालव के साथ जुड़ी थी अपनी भावनाओं पर अंकुश रखकर गलत बातों का स्वीकार कर चुपचाप कर्तव्यों का पालन करना इतना आसान नहीं होता माधवी कर दिखाती है यह एक स्त्री के लिए बहुत ही लांछन लगने जैसी बात है कि उसे एक वस्तु के रूप में देखा जाए राजा हरेश ज्योतिषी को बुलाकर उसके गुणों की जांच पड़ताल करवाते हैं ज्योतिषी माधवी के पास जाकर उसके विभिन्न अंगों की ओर छड़ी के साथ निर्देश करते हैं और इसकी जांच करते हैं कि उसकी पीठ सीधी है कपोल और नेत्र के कोए ऊंचे हैं स्तन उगल और तं ऊपर की ओर उठे हैं कमर पतली है केश दांत हाथ पैर की उंगलियां कोमल है हथेली नेत्रों के कोए लाल हैं इसके बाद ज्योतिषी घोषित करते हैं कि वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्म देने के लिए उचित है माधवी का इस्तेमाल सिर्फ ययाती और गालव ही नहीं बल्कि जिस राजा के पास वह रहकर आती है उन्होंने भी किया चाहे राजा हार्श हो या दवदास हो या उष नगर हो कोई भी उसके साथ मानसिक रूप से जुड़ा नहीं था तीनों राजा की कामना पुत्र प्राप्ति की थी राजा हार्य उसे उपयोग का साधन मानते हुए कहते हैं हम युवती को अपने रवास में रख लेंगे पुत्र लाभ होने पर हम इसे अपनी पटरानी भी बना सकते हैं जब इसके गर्भ से हमें पुत्र लाभ होगा हम 200 अश्वमेध घोड़े तुम्हें गिन करर दे देंगे स्त्री को भोग्या के रूप में समझने की इस प्रवृत्ति का माधवी चाहती तो विरोध कर सकती थी लेकिन वह बहुत ही सहनशील है साथ ही वह स्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करना जानती है सब कुछ सहना मानो उसकी दृष्टि से उसकी विवशता है वह गालव से कहती है यह कैसा नाटक खेला जाने लगा है गालव मुझे लगता है मैं अंतःपुर में नहीं किसी कारावास में जा रही हूं पर यह समय कट जाएगा मैं एक एक दिन गिनू गालव ना जाने फिर हम कब मिलेंगे तुम अपना ध्यान रखना गालव मेरी चिंता नहीं करना मुझे याद रखना गालव भूल नहीं जाना इस उदाहरण से स्पष्ट है कि वह अपने प्रेम में भी गालव पर अधिकार नहीं जताती बल्कि प्रेम की याचना करती है मातृत्व भावना से ओत प्रोत माधवी अपने मातृत्व के भाव को भी व्यक्त नहीं कर पाती क्योंकि कर्तव्यों का पालन उसके लिए हावी हो जाता है वह गालव से कह है कौन स्वतंत्र है गालव मुझे तो लगता है कि जैसे मेरे पैरों में जंजीरें पड़ गई हैं मातृत्व के कारण उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आता है वह गालव से कहती है बेटे के जन्म से पहले मैं कोई दूसरी ही माधवी थी बेटे के जन्म के बाद मैं बिल्कुल बदल गई हूं वह माधवी नहीं रही हूं चाहे ययाती के द्वारा सौंपे गए जिम्मेदारी को पूरा करना हो या राजा को राजपुत्र देने की क्रिया हो या शिशु जन्म का प्रसंग हो माधवी विवश ही रही वह कहती है कैसी स्वतंत्रता गालव उन दीवारों के पीछे मेरा नन्हा बालक मुंह खोले मेरा स्तन ढूंढ रहा है और तुम कहते हो मैं स्वतंत्र हूं गालव क्या सचमुच तुम मुझे स्वतंत्र समझते हो जो मां अपने बच्चे को छाती से लगा पाए वही स्वतंत्र है माधवी अपने घुटन संत्रास पीड़ा राश्य को दबाकर बस निरंतर रूप से त्याग करने वाली समर्पित स्त्री के रूप में हमारे सामने आती है यही छवि है भारतीय पुरुष प्रधान समाज में एक भारतीय परंपरागत नारी की पुरुष सत्ता की शिकार है माधवी उसने जो सहा उसके बारे में उफ तक नहीं किया लेकिन राजाओं के रवास में रहकर स्त्रियों की दयनीय अवस्था को उसने अच्छी तरह से देखा है इसलिए वह कहती है जानते हो जिन रानियों से राजा को संतान नहीं मिली महल की दीवारों के पीछे उनकी क्या गति हुई है उन्हें भोजन तक के लिए कोई नहीं पूछता था मेरे महल में आ जाने के बाद भी राजा ने दो विवाह और किए हैं इसमें कोई दो राय नहीं है कि अन्य राणि हों और माधवी की त्रासदी में कोई विशेष अंतर नहीं है बहुत ज्यादा बर्दाश्त करने के बाद व्यक्ति के जीवन में एक ऐसी स्थिति आ जाती है जब कि किसी भी चीज को लेकर कोई आसक्ति नहीं रहती अपनी विरक्त भावना के कारण स्वयंवर के अवसर पर माधवी ने अनुष्ठान नहीं किया थकी हुई माधवी को गालव अपनाना नहीं चाहता दूसरी कोई स्त्री होती तो शायद क्रोध में आकर उत्तेजित होकर गालव को अपनी जगह दिखा देती लेकिन गालव का प्रेमिका को गुरु मां के रूप में संबोधित किए जाने पर भी माधवी स्थित प्रज्ञ होकर मात्र अपनी व्यवस्था को ही व्यक्त करती है वह गालव से कहती है तुम मुझे छोड़ना चाहते हो क्योंकि मैं इन कुछ वर्षों में ही बुढ़ा गई हूं और मेरा शरीर शिथिल पड़ गया है यही ना जबकि तुम अभी जवान हो और स्वतंत्र हो और किसी सुंदर युवती से व्याह कर सकते हो कभी-कभी मुझे लगता है मैं कोई दू स्वपना देख रही हूं और मेरे चारों ओर राक्षस और दानव घूम रहे हैं कर्तव्य परायण दानव तीनों राजा मेरे बच्चों को साथ लेकर यहां पहुंच गए हैं जैसे मछली पकड़ने के लिए कांटे में छोटी मछली लगा दी जाती है वे मेरे बच्चों को मेरे सामने लाकर मुझे प्रलोभन देंगे सभी कर्तव्य के पक्के सभी महामानव तुमने मेरे यो वन की आहुति देकर अपनी गुरु दक्षिणा जुटाई है माधवी जानती है कि पुरुष प्रधान समाज में यह विडंबना है कि लोग ययाती को दानवीर राजा के रूप में याद रखेंगे गालव को तपस्वी और साधक के रूप में याद रखा जाएगा लेकिन माधवी को एक चंचल वृत्ति की नारी माना जाएगा जिसका कभी विश्वास नहीं किया जा सकता माधवी अपनी आंतरिक पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहती है मैं तुम्हारी पत्नी नहीं बन सकती शरीर की शिथिलता तो दूर हो सकती है गालव मैं अनुष्ठान करके फिर से युवती बन सकती हूं पर अब मैं दिल से तो युवती नहीं हूं ना मैं तो वह मां हूं जिसकी गोद भरती गई और खाली होती गई अब तो संतान धारण करने का मेरे लिए केवल एक ही अर्थ है अपने बच्चे को खो देना यह माधवी के चरित्र की महानता है कि बहुत कुछ बुरा करने वाले व्यक्ति के प्रति दुष्टता की भावना को ना दर्शाते हुए उसके प्रति शुभकारी एक बार किसी पुरुष की हो जाती है तो उस पुरुष का सुख दुख उसका वचन उसकी प्रतिज्ञा कर्तव्य उसके भी बन जाते हैं माधवी भी जब गालव की हो जाती है तब उसकी प्रतिज्ञा एवं कर्तव्य को अपनी प्रतिज्ञा एवं कर्तव्य समझती है वह गालव से कहती है कि हमें अपना अपना कर्तव्य निभाना है कर्तव्य पूर्ति के लिए अन्य राजाओं के रवास में रहना वह पसंद करती है वह गालव का साहस बांधती है माधवी गालव से बहुत प्रेम करती है इस इसीलिए वह वन वना तरों का लंबा सफर तय करती है खुद मिटकर गालव को प्रतिष्ठा प्राप्त करा देती है और उसकी सहायता से गालव गुरु दक्षिणा तो पूरी करता है परंतु उससे प्यार करने वाली माधवी को फिर से अनुष्ठान करने के लिए कहकर उसके प्यार का अपमान करता है यही पुरुष प्रधान समाज की स्वार्थी प्रवृत्ति है जिस पर भीष्म साहनी आघात करते हुए समस्या को निरूपित करते हैं कि जो गालव माधवी के स्वयंवर के लिए उत्सुक और लालायित था प्रेमिका से पत्नी बनाने के लिए उद्धत था वही गालव बुझी बुझी माधवी की मनोदशा को देखकर परिवर्तित हो जाता है और पलायन वादी भूमिका को अपनाता है गालव कहता है पर जो स्त्री मेरे गुरु के आश्रम में रह चुकी हो उसे मैं अपनी पत्नी कैसे मान सकता हूं स्पष्ट है कि गालव ने सिर्फ माधवी के देह से प्रेम किया था उसकी आत्मा से नहीं जबकि माधवी का प्रेम आंतरिक प्रेम था जब एक स्त्री बेटी के रूप में होती है तब भी वह अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य बद्ध होती है वह बिना शिकायत किए अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करती है लेकिन इतना कुछ करने पर भी उसे उचित सम्मान नहीं मिलता उसे एक बोझ ही समझा जाता है और यही सब हमें भीष्म साहनी जी के इस नाटक में दिखाई देता है जब गालव अपनी समस्या को लेकर ययाती के पास आता है और उसकी दानवीरता की प्रशंसा करता है तब ययाती उसकी समस्या का समाधान करते हुए अपनी बेटी माधवी को दान में गालव को दे देते हैं जिसे चिर तारुण्य और चक्रवर्ती पुत्र की माता का वर प्राप्त है वह इस बारे में माधवी की राय लेना आवश्यक नहीं समझते वे माधवी से कहते हैं मैंने तुम्हें सौंप दिया है इस युवक की अभ्यर्थना को मानते हुए मैंने तुम्हें दान में दे दिया है तुम्हारे माध्यम से इस युवक के प्रतिज्ञा पूरी होगी माधवी कोई प्रश्न किए बिना अपने पिता की आज्ञा को मानकर अपने कर्तव्य का पालन करती है इससे स्पष्ट होता है कि ययाती को अपनी बेटी के प्रति कोई प्रेम नहीं है उसकी भावनाओं को इच्छाओं को सपनों को वे एक पल में ही तोड़ देते हैं यही परंपरा कई वर्षों से चलती आ रही है कि एक स्त्री को सपने देखने का कोई अधिकार नहीं है पुरुष प्रधान समाज में इन चीजों के लिए कोई भी स्थान नहीं है यह याती अपने दानवीरता को दिखाने के लिए माधवी की बलि चढ़ा देते हैं यह याती अपने आपको को सबसे बड़ा दानवीर कहलवान दान करें कि लोग दानवीर कर्ण तक को भूल जाए ययाती कहते हैं लोग यह भी कहते होंगे कि राज पार भागने के बाद भी दानवीर ययाती ने अपना हाथ नहीं खींचा क्यों क्या कभी भी दानी राजा कर्ण से मेरी तुलना की जाती है या राजा कर्ण को लोग भूल गए हैं इससे स्पष्ट होता है कि ययाती को सिर्फ अपने यश से प्यार है माधवी को वे अपनी पुत्री कम एक वस्तु मात्र समझते हैं जो दान में दी जा चुकी है उसके हित के बारे में सोचना भी वे पाप समझते हैं उन्हें अपनी बेटी से अधिक यश प्रिय है माधवी के प्रति वे अपना कोई कर्तव्य नहीं समझते एक पिता के लिए अपनी बेटी एक बोझ के समान ही थी जिसे वह जल्द से जल्द हल्का कर अपने आप को मुक्त करना चाहते थे किसी के भी हाथों में सौंपकर वे समझते थे कि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा किया है वे उसकी आगे की जिंदगी से कोई भी सरोकार नहीं रखना चाहते थे माधवी के स्वयंवर रचने की बात कहकर भी वे सिर्फ अपनी शान शौकत को दिखाना चाहते थे ययाती कहते हैं समस्त आर्यवर्त जान जाएगा कि ययाती राजपाट त्याग देने के बाद भी हर बात में सबसे आगे है ययाती का आश्रम अभी भी उसकी राजधानी के समान है पुरुष स्त्री को सिर्फ एक भोग की वस्तु ही मानता है उसका केवल इस्तेमाल करता है एक इंसान के रूप में उसे देखना नहीं चाहता माधवी की दशा कुछ ऐसी ही है जब माधवी हरेश के दरबार में कई आदमियों के बीच खड़ी होती है तब उसे उत्सुकता भरी नजरों से देखा जा रहा था और राज ज्योतिषी उसके एक एक अंग का निरीक्षण कर रहे थे कितनी लज्जा जनक बात है यह एक स्त्री के लिए दवदास माधवी को अपनाता है क्योंकि वह निश्चित रूप से पुत्र जन्म देने वाली स्त्री है आज भी समाज में बेटों को ही पसंद किया जाता है कुल को चलाने वाला सिर्फ बेटा ही होता है बेटी को कोई अधिकार नहीं होता वह एक मां बनती है लेकिन मातृत्व की भावनाओं से उसे वंचित रहना पड़ता है वह अपने अंश को दुलार भी नहीं सकती एक मां के लिए इससे बढ़कर दुश क्या हो सकता है कि वह अपने बच्चे के साथ नहीं रह सकती उसकी इस पीड़ा दर्द तकलीफ को समझने वाला कोई भी नहीं है सौंदर्य बुद्धि और अद्भुत शक्तियों के साथ जन्मी माधवी अपनी पूरी जिंदगी अपने पिता के धार्मिक वचनों शपथ इच्छाओं महत्वाकांक्षाओं में बं कर बिता देती है हर पुरुष धर्म के नाम पर माधवी का इस्तेमाल करता है उसकी जवानी सौंदर्य निष्ठा और निष्कपट को एक चौखट में रखकर उसके खोते हुए अस्तित्व पर उन्होंने अपने इच्छाओं और उद्देश्यों के रंग रंगे उन्होंने उसे मिले हुए वरदान का इस्तेमाल किया ताकि उसका उद्देश्य पूरा हो सके और माधवी करती रही यह त्याग सहती रही है सिर्फ अपने प्रेम और कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहने हेतु धर्म के नाम पर स्त्री का उपयोग करने वाले ययाती गालव जैसे स्वार्थी पुरुषों की सारी गलतियां सुरक्षित रूप से दब जाती है क्योंकि प्राचीन काल से हमारे धर्म ग्रंथों में स्त्री की कर्तव्य परायणता निष्ठा दाव पर लगी रहती है लेकिन उसे नोचने वाले पुरुष प्रधान समाज को अपने किए पर कभी गलानी नहीं होती किंचित भी पीड़ा की भावना या आत्म विश्लेषण नहीं दिखाई देता इसलिए पुरुष प्रधान समाज के लिए स्त्री का सहना मानो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है स्त्री की सहनशीलता महानता पुरुष की समझ से परे है गालक के सामने राजकुमारी माधवी राजाओं के रवास में रही रानी माधवी गालव की प्रेमिका माधवी राज पुत्रों को जन्म देने वाली माता माधवी स्वयंवर के लिए सुसज्जित छवि पोड़ा माधवी आदि माधवी के अनेक अनेक रूप विद्यमान है इस अनेक अनेक रूपों में माधवी को ढाला गया मात्र गालव की प्रतिज्ञा पूरी करने की हट धर्मिता और पिता की दानवीरता के बड़पन को सिद्ध करने की मनोवृत्ति के कारण लेकिन माधवी की शोचनीय स्थिति पर किसी के मन में पश्चाताप की भावना नहीं है यही इस नाटक का सबसे दुखद और त्रासद पक्ष है प्राचीन काल से आधुनिक काल तक आते-आते स्थितियां वही रही चेहरे बदले लेकिन मनोवृत्ति में कोई अंतर नहीं आया अतः यह नाटक केवल एक पौराणिक संदर्भ में एक मिथक सामने प्रस्तुत नहीं करता बल्कि हमारे समाज के तीखे रूप को उजागर करता है जो बहुत ही घृणित है