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मनोज मुंतशिर का श्री कृष्ण पर व्याख्यान

झाल अजय को हुआ है कर दो इस सृष्टि का सारा अंधकार जड़ित प्रकाश में समा जाए सारा ज्ञान ज्ञान में विलीन हो जाए और सारी निराशा-आशा के समुद्र में डूब जाए तो जिस परम पुरुष की ज्योति में आ का निर्माण होगा उनका नाम है योगेश्वर भगवन श्री कृष्ण 9th मई के रथ पर सवार श्रीकृष्ण युगों की यात्रा करते रहे और उनके जीवन का प्रकाश सारे संसार को आलोकित करता रहा 55 हजार वर्षों बाद भी श्रीकृष्ण उतने ही प्रासंगिक हैं जितने द्वापर में रहे होंगे या शायद उससे भी कुछ अधिक श्री कृष्ण से कुछ नया सीखना हमारी मेरी और आपकी व्यक्तिगत हानि है यह ऐसा ही है जैसे सूर्य हमारे सामने उदय हो रहा हो और हम आंखें बंद करके अंधकारमय बैठे रहें कि नमस्कार मैं हूं मनोज मुंतशिर आप सबको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयां आज ही के दिन हमारे कन्हैया का जन्म हुआ था तो आज मैं आपको वह बताऊंगा जो मैंने श्रीकृष्ण से सीखा और जीवन भर मेरे काम आया इस विषय पर में एक वीडियो पहले भी बना चुका हूं जिसे आपने अनवरत प्रेम और आशीष दिया है वीडियो का लिंक डिस्क्रिप्शन में है यह अध्याय समाप्त होने के बाद एक बार वह वीडियो ऑफिस जरूर देखिए [संगीत] कृष्ण के जीवन से पहनी सीख लेने के लिए हमें कर्ण के जीवन में झांकना होगा अ अ कृष्ण और कर्ण महाभारत के यह दोनों पात्र अलग-अलग पक्षों से लड़े अलग-अलग आदर्षों पर आगे बढ़े लेकिन दोनों के जीवन में इतनी समानताएं हैं कि आप हैरान रह जाएंगे पहले आप समानताएं सुनिए फिर मैं आपको बताऊंगा कि इतनी समानताओं के बावजूद दोनों एक दूसरे से कितने अलग थे और इसीलिए दोनों का परिणाम कितना अलग हुआ के कोण जन्म के साथ ही अपनी मां से अलग हो गए जिसके पिता सूर्य थे माता कुंती सती कुमारी उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी कृष्ण के साथ भी यही हुआ था मथुरा में कंस के कारावास में उनका जन्म हुआ और जन्म लेते ही वसुदेव ने उन्हें गोकुल छोड़े वह भी अपने माता-पिता से अलग हो गए कर्ण को राधा और अभी रखने वाला जो उनके वास्तविक माता-पिता नहीं थे कृष्ण को यशोदा और नंद ने पाला वह भी जन्म से कृष्ण के माता-पिता नहीं थे के कारण और कृष्ण दोनों राजपूत थे लेकिन दोनों अपनी राजधानी से दूर पहले कारण अंग प्रदेश में जो प्राचीन बंगाल का भाव था और कृष्ण गोकुल में दोनों जन्म से राजकुमार थे पर दोनों का जीवन अभावों में बीता कर्ण एक सारथी पुत्र की तरह जीवन से संघर्ष करते रहे और कृष्ण एक वाले की तरह दोनों का जन्म परिस्थितियों के एक ही बीच से हुआ लेकिन दोनों पर फल अलग तरह के हाय कोण जीवन भर अपने अतीत की कड़वाहट से भरे रहे और कृष्ण कभी अपने अतीत पर आरोप लगाते हुए नहीं पाए गए जन्म लेते ही दोनों के साथ समय में अन्याय किया अंतर बस इतना था कि कारण यह अन्याय कभी भूल नहीं पाए और कृष्ण को यह अन्याय कभी याद नहीं आया एक ने अपने आप को क्रोध के विस्तृत भर लिया और दूसरे ने स्वीकृति के अमृत से एक्सेप्टेंस का अंतर था उक्त आधार कार्ड में कृष्ण ने अपनी नियति है कि स्वीकार कर ली और कर्ण अपनी नियति को कभी स्वीकार नहीं कर पाए परिणाम क्या हुआ महाभारत युद्ध के सत्रहवें दिन अधर्म के पक्ष में लड़ते हुए कर्ण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए और प्रश्न न्याय के सारथी बने पांडवों की विजय का शंखनाद किया और आगे चलकर पृथ्वी के सबसे बड़े साम्राज्य के राजा बने द्वारकाधीश कहलाए परिस्थितियों का चक्र चलता रहेगा सब कुछ हमारे मन का नहीं होगा कई बार लगेगा कि हमारे साथ अन्याय हुआ है भाग्य हमें धोखा दे रहा है लेकिन यह चुनाव हम पर है कि हम कर्ण की तरह जीवन भर रोते कलपते रहें या कृष्ण की तरह इस जीवन को उत्सव बना दें हमारा यही चुनाव तय करेगा कि हम समय के कुरुक्षेत्र में पराजित होंगे या विषय का पाञ्चजन्य ठोकर सुखों के द्वारिका में राशि करेंगे तो [संगीत] कि जीवन बैंक है जिसमें डिपॉजिट किए बिना विदड्रॉल संभव नहीं है यह ही नहीं सकता कि बिना कुछ खाए हम कुछ बड़ा कुछ सार्थक पास जाएं जिसने रातों की नींद नहीं कोई वह सफलता का चमकता हुआ सूर्योदय कभी नहीं देख पाता जिसने दिन का आराम नहीं खोया और रात की छांव में थकान भरी मीठी नींद का आनंद कभी नहीं जान पाता जो भी मिला इसलिए मिला के हंसकर बहुत कुछ खोया हमने यह जो सूरज देख रहे हो जुगनू जुगनू पोया हमने कृष्ण पूर्ण परमेश्वर है अवतार हैं भूत वर्तमान और भविष्य हैं यह सब ठीक है लेकिन मेरे लिए कृष्ण सबसे पहले एक पुरुषार्थी मनुष्य हैं थोड़ी देर के लिए भूल जाइए उनका देवर तो और मानव मात्र की तरफ उनके जीवन पर एक दृष्टि डालिए आपको ज्ञान होगा कि कृष्ण ने अपने जीवन में सब कुछ लिया क्योंकि उन्हें कुछ ठीक होने का डर नहीं था कृष्ण मां यशोदा के जिस आंगन से माखन चुराते रहे गोकुल के जंगलों में बांसुरी बजाते रहे बरसाने के जिस मधुबन में राधा के साथ रास रचाते रहे राष्ट्र धर्म ने आवाज दी तो सब कुछ छोड़कर उच्च दिए क्या उन्हें कोई मोह नहीं था कोई अनुराग कोई संबंधित कि उन्हें अपनी ओर खींचता नहीं था क्या राधा की आंखें जंजीर बन कर उनके पैरों से लिपटी नहीं होंगी उन्हें रोका नहीं होगा लेकिन कृष्ण जानते थे यह त्याग की घड़ी है और बड़े प्रयोजन के लिए बड़ा त्याग जरूरी है तो [संगीत] कि कौन है कृष्ण पूर्ण परमात्मा सोलह कलाओं के स्वामी ऐसे परम ज्ञानी के गीता का ज्ञान देते हैं ऐसे सदाचारी कि द्रौपदी की लाज बचाते हैं ऐसे बलशाली के गोवर्धन उंगली पर उठा लेते हैं और ऐसे तेजस्वी के हस्तिनापुर की राजसभा में दुर्योधन उन्हें बांधने के लिए आगे बढ़ता है तो अपना उत्तरार्ध स्वरूप दिखाकर समूचे ब्रह्मांड को अचंबित कर देती हैं वह इस सर्वशक्तिमान जिसे दुर्योधन की जंजीर नहीं बन पाई उसे मां यशोदा ने मुगल में बांध दिया और चुपचाप बन गया कहां मिलेगा कृष्ण जैसा कोई और कहां मिलेगा कोई कन्हैया जैसा जो पूरी सृष्टि का स्वामी है फिर भी माखन चुराता है और मां की मार से बचने के लिए सौंफ तो झूठ बोलता है मईया मोरी मैं नहीं माखन खायो ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं बरबस मुख लपटायो मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो और जब यह जूठ वृक्ष चले जाते हैं तो वह पालक साक्षात नारायण का अवतार ओके भी एक साधारण स्त्री के हाथों मार खाता है क्योंकि वह स्त्री कोई और नहीं उसकी माता है आप जीवन में आगे बड़े-बड़े हो जाएं बहुत बड़े हो जाएं बहुत ज्यादा बड़े हो जाएं अच्छी बात है लेकिन जो अपनी मां से बड़ा हो गया उससे छोटा इंसान इस दुनिया में कोई और नहीं यह थे वह पाठ जो मुझे मेरे कृष्ण ने सिखाए और मैंने निमित्त बनकर यह जीवन सूत्र आप तक पहुंच चाहिए आपने मुझे बड़े धैर्य से सुना बड़े ध्यान से सुना आपका आभार कर दो [संगीत] कर दो कर दो कर दो हुआ है [संगीत] झाल