वेलकम बैक स्टूडियंस आज हम पढ़ने वाले हैं निबंद का उद्भव और विकास जो कि आपका बीकॉम में पेपर हैं और बीए में वेपर है हिंदी गद्या उद्भव और विकास और हिंदी गद्या के विकास के विविच जरम दोनों का पहला चेप्टर है उसका एक ह इन दिक्ट जो जनरी क्लेक्टिव कोर्स है आपका यानि कि हिंदी एबी सी तीनों में भी है यह निबंध का विकास इंदी गद्धिया उद्भव का विकास और हिंदी गद्धिया के विकास के व्यवहित चरण जो है उसमें भी आपका थर्ड और फोर्स समस्टर में आपने आपकी हुआ होगा उसमें भी हिंदी का खग तीनों में यह चप्टर आपका है पहला चप्टर जो है वह सेंग है तीनों में भी यह में भी कॉम में भी हिंदी कखग तीनों तो उसी का हिस्सा है निबंध उन दोनों को भी आप देख लीजिए बेटा उसके बाद इसको देखिए आप बेटा आपका पूरा का पूरा चैप्टर होने में थोड़ा सा बेटा इसमें टाइम लगेगा लोकि वैसे तो एक छोटा सा चैप्टर बना दिया गया है लेकिन इस चीजें बहुत डिटेल में आपको समझानी पड़ती हैं बेटे थोड़ा सा आपके इसके वीडियो लंबे बनेंगे मतलब लंबे तो मैं नहीं बना रही हूँ छोटे कैसे विकास हुआ तो हिंदी निबंध की शुरुआत जो हुई थी बेटे वह भारत एंदू काल में हुई थी भारत में जो कि नवजारण का समय था नवजारण का टाइम चल रहा था एक तरह से लोगों को जाबरुख करने का प्रयास चल रहा था चारों तरफ से कि लोगों को जगाया जाए देश जो था भारत जो है अंग्रेज जो का गुलाम था आपको पता है भारतीय लोगों की दुखी दशा की तरफ लेखकों का बहुत ज्यादा ध्यान जा रहा था उस टाइम पर यह पुराने मान को ज्ञान को फिर से वापस लाने की कोशिश हो रही थी पुराना मान ज्ञान बल वैभव वापस फिर से हमें मिल जाए इसके लिए लोगों को जागरूप करने के लिए लेकर बहुत ज्यादा अलर्ड थी बहुत ज्यादा साफधान थे और लेखक अपनी भाषा को भी हर तरह से संपन्न करने में लग गए अपनी भाषा को विरिच बनाने में लग गए जिससे कि यह ऐसा निबंध के लिए बिल्कुल अनुकूल भाषा होती है जो कि वो हुआ करती थी इसी वज़े से इस काल में जितने भी निबंध लिखे गए वो बहतरीन निबंध थे बहतरीन नाटक लिखे गए इस टाइम बहतरीन अलोचना ही जो है लेकिन जितने बहतर निबंध लिखे गए सभी चीजे बहतर हुई लेकिन जितने बहतर निबंध लिखे गए उतनी अच्छे नाटक अलोचना कहानी के ग्राल नहीं लिखे जा सकते हैं यानि कि इस वक्त बेस्ट निबंध लिखे गए भारतिन दुयुक इसको जो हम बाइफर केट करते हैं तो भारत इंदु युग कहते हैं पहले तो इसको काल भी भाजन जब कर देते हैं तो भारत इंदु युग में भारत इंदु काल पुनार उठानवादी वातावरण और पर्षितियों का काल कहा जाता है यानि कि पुनार उठान काल कहा जाता है जो चीजे हम लोग भूल चु इसलिए इसे पुनरुथानवादी वाधावरण कहा जाता है जिसमें कि भारत हिंदु ने भारत हिंदु हरिशंद्र ने लिखना शुरू किया था उस काल में भारत हिंदु हरिशंद्र बालकृष्ण भट प्रताप नारायण मिश्र राधा चरण गोस्वामी वगर यह सारे- कि यह सारे इनके सर्युपार की यात्रा विवरानात्मक इनके निबंध रही है कंकर शोति का व्यंग्यात्मक और वर्णानात्मक निबंध रहा है और साथ में का भारत वर्ष वैश्णवता विचारात्मक निबंध रही है इनकी बेटे निबंध में एक अनुरणजन का भी ध्यान रखा जा रहा था मुगद था थी चंचर था थी इस समय को निबंध का बच्चपन कहा जाता है बेटा कि इनमें जो निवंदों की भाषा जो होती है वह बहुत ही साफ सुत्री भाषा है श्लेष पूर्ण भाषा है कहीं देश शद्ध शहरी है तो कहीं जो है कि एक रसे के लोग एक उर्दू को भी ने बहुत अच्छी तरीके से इस्तेमाल किया है इसका प्रश्निक को सुनाओ देश पूर्ण देश बादशाह धर्पण हरी द्वार बगराय लिखी विनि बंध हैं बहुत पसिद्ध रहे इनके साथ-साथी कि बालकृष्ण भट भी इसकाल के सर्वर शेट निबंध कारों में से लिखे जाए मतलब लिख रही थी इनको निबंध का पांच से माना जाता था निबंध लिखने में को इतने से निबंध में कि वह कुछ अलग आप इन्होंने भी सभी प्रकार के निबंध लिखे जन मानस की भाषा में लिखे इनके निबंध प्रसिद्ध चंद्रोदय आंसु कल्पनाशक्ति सहानुभूति इत्यादी बेटा दो चार साहितेकारों के नाम लिखने आपको याद करने शीघ्र इस टाइम में हुए जो कि जन साहित्य को जन भाषा में लिखने वाले पहले नाया लोगों के साहित्य को आम लोगों के साहितियों को लिख रहे थे और आम लोगों की भाषा में ही लग रहे लिख रहे थे लापारभाई चुपता हुआ व्यंग गुदगुदी यह सब इनके निवंदों में खास तरफ मिलता है और छोटे-छोटे विषयों को इन्होंने बढ़िया मनुरंजन लिखन किया है लोगों को मनुरंजन हो जाता है व्यंग लिखी है हाथ शालिका है नाक भोँ दांत पेट जिववा पर इन्होंने निवंद लेकर डाले है और देश प्रेम समाज सुधार स्वाभिमान हिंदी प्रेम अ कि आत्मगुवरव का संदेश देते हुए निबंधिनों लिखे बोल चाल की शब्दावली का प्रयोग किया है नुझे और प्रताप नारयान मिश्री जो थे यह उस काल में असाधारण सहश शैली में लिखने वाले एक राइटर माने जाते हैं यह ब्रामण पता है और इनकी शैली में घरेलू बोलचाल की शब्दावली हुआ पर दी थी और पूर्वी बोलियों की कहावते मुहावरय यह खूब इस्तेमाल किया रहते थे इनके बाद एक नाम आता है राधा चरण गोश्वामी जी का यह भी भारत इंदु युग के ही साहितेकार थे निबंधकार कि देशज या स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते थे इस समय के लिए कट शैली के व्यवहीत रूप होते थे लेकिन विचार इनके स्वतंत्र हुआ था विचारों की स्वतंत्रिता पूरी इनके निबंधों में दिखाई पड़ती है समाज सुधार की बात किया करते थे देशज बक्ति की बात करते थे साथ में इनके निबंधों में पराधीनता के प्रति गुस्सा लेकर के लोग लिख रहे थे हिंदी का सम्मान और नए विचारों का स्वागत हो इन बातों का ध्यान रखें जाते हैं वह लोग लिखा करते निर्बंध की शैली की इस काल की विशेषता यही सारी की सारी है बेटा इसके अलावा एक अधुत अपूर्व स्वप्न के बहाने अधिकार पाने समाज सुधार और धर्म संस्कार का सदेश दिया जाता तब कि अपने अपूर्व स्वप्न देखते हैं जैसे कि इस तरीके से लोग निर्बंध में अपने संदेश दिया करते थे संदेश क्या-क्या पराधिनता के प्रति यानि कि गुलामी के प्रति गुस्सा दिखाया करते थे और लोगों का एक तैसे जो एक टरैक्टर डाउन हो रहा था लोगों का चरित का जो आप एक तरह गिर रहा था उस पर एक खेद जताया करते थे देश उठान की भावना की बात करते थे हिंदी के सामान की बात किया करते थे यह सब विशेष टाइम थी भारत इंदु कालीन निबंध होकी उसके बाद आया दूवेदी युग भारत इंदु काल के बाद दूवेदी युग माना चाहता है निबंध के काल बच्चे के लिए तो अगर भारत इंदु काल को अपने बंध का बच्चे पर मानते हैं तो अ दुवेदी युग को आप उनका किशूर आवस्था मान सकते हैं निबंद की निबंद इसमें किशूर आवस्था में आ गए थे तो जिम्मेदारी आ गई थी समझदारी आ गई थी शिक्षा नियम पालन की बात आ गई थी साथ समवार आ गई थी भाषा इन्होंने काफी निवंद उस टाइम पर लिखी बारतिंद्र काल में साहित्य बहुत लिखा गया था पर भाषा की भूले साधरण बात थी लेकिन यह दुएदी योग में आते-आते भाषा में भूले नहीं हो इस बात का खास तरफ ध्यान रखा गया साथ में लेकिन जो इस टाइम का जो साहित्य था वह उतना संपन्न नहीं हो पया हलांकि महावीर प्रसाद दुएदी माध्यव प्रसाद दुएदी अगर इसकाल के प्रमुख निबंधकार रहे हैं इनके बारे में अभी हम पढ़ेंगे बेटा इसमें महावीर प्रसाद व्यवेदि का नाम सबसे पहले आता है योग के आचारे है इन्हीं के नाम से युग का नाम व्यवेदि युग रखा गया है बेटा शिक्षा देना नए संस्कार डालना सुधार करना इनके ज्ञान वर्ड करना ज्ञान वर्धन करना और यह काम इन्होंने कुछ किया इसलिए इनको आचारे कहा गया आचारे कि उनके जो निबंध थे उनमें कवी और कवित कवी और कविता प्रतिभा साहित्य की महत्ता जापान में पतंग बाजी हंस संदेश यह सारी निबंध लिखे थे बेटा इनका कहना था कि कविता लिखने में व्याकरण के नियमों के अव्यक्ति ना कर दो नहीं करनी चाहिए शुद्ध भाषा का जितना मान होता है अशुद्ध का नहीं होता जहां तक हो शब्दों को नहीं बिगरना चाहिए मुहावरे का विचार रखना चाहिए इस तरीके की बातें के बंदों में पढ़ने के लिए मिलती है यानी कि भाषा की शुद्धिता पर काफी ध्यान यहां पर रहा साथ नहीं इनके बाद साथ में इसी काल के रहे माध्यव प्रशाद मिश्र जो कि भारतीय संस्पृति धर्म दर्शन साहित या कला के सच्चे उपासक मने जाते हैं इनका अपना ही अलग व्यक्तित्व था कहीं मिश्र किसी को भारतीय और प्राचीन साहित्य का गौरव घटाने का प्रेटना करते हुए पाते थे कभी उनको लगता था कि कोई-कोई व्यक्ति भारत के प्राचीन साहित्य का गौरव घटा रहा है तो उसकी उखुल कर आलोचना किया करते थे कोई भी ऐसी रचना देखते थे तो उसकी आलोचना किया करते थे निभय आलोचक के उस टाइम के निर्दोष साफ सुत्री विशय के अनुकूल व्यंग यात्मक प्रभावशाली भाषा का यह प्रयोग किया करते थे और संस्कृत का इनकी भाषा पर स बेवर का भ्रम विचारात्मक और सबमिट्टी हो गया भावात्मक निबंद है यानि कि विचारात्मक निबंद लिखते थे और भावात्मक निबंद लिखते थे इनके साथ एक रहे पूर्ण सिंग जो थे वो भी काफी प्रभावशाली भावों कर विचारक निबंद कार रहे इन्होंने जितने कम निबंद लिखे उतने ही ज़्यादा ये बहुत कम निबंद लिखे इन्ह इनके कुछ निवंद है हमारे यहां दिव में सिलेवस में शामिल किए गए बेटा मजदूरी और प्रेम आचरण की सभ्यता सच्ची वीर्ता इनको हमारे यहां सिलेवस में शामिल किया गया है इनके निवंदों से प्रेणा देने वाले नए विशाल मिलते हैं और साथ ही वीर्ता आचरण शारीरिक परिश्रम का महत्व समझाते हैं और जिससे कि धर्म का नया आप सामने आप समाज में क्रांति हो और मनुष्य ही नहीं बल्कि सारा का सारा देश उन्नति के शिखर पर पहुंचे इस तरह की यह संदेश दिया करते थे पूर्ण सिंह बेटा और भाषा की स्पष्टता इनकी विशेषता होती थी दुएदी जो की बेटा भाषा की स्पष्टता ही एक तरह से खासियत है यह रहे इस टाइम पर चंद्रधर शर्मा गुलीरी इनका नाम कई जगह आपने सुना होगा बेटे शतंत्र कि साथ ही इनके जो थे निबंधित हुए जैसे कि इनका एक निबंध लिखा था इन्होंने कच्छुआ धर्म जो कि गंभीर तरफ पूर्ण था और विचार वधानशाली में लिखा हुआ इनका निबंध था तो हमने पढ़ा भारत इंदुय योग उसके बाद विवेदी उसके बाद प्रसाद युग का नाम जय शंकर वसाद के नाम पर रखा गया था जो कि हिंदी साहिते शिकर पर रहा कहानी उपन्यास नाटक निबंध आलोचना सभी का भरपूर विकास हुआ इस दौरान एक विगुलाब राई जी दूए दीजिका सारा साहित बंदार सामने था उसका प्रभाव उनके ऊपर बना रहा तो कि इनके सामने दूए दीजिक का सारा साहित था उस साहित से इन्होंने काफी को सीखा और उसी के साथ यह आगे बढ़े इनकी भाषा भी सरल सुबोध रही इनका बहुत ही ज्यादा निबंध जो कि प्रसिद्ध रहे हैं उनमें फिर निराशा क्यों मेरी असफलताएं अंधेरी कोठी इनके शेष्ट माने जाते हैं और विचारों की बारी की गंभीरता भावों की मनोव्यज्ञानिकता भाषा का गठन इनके आदर्श रहते हैं यानि कि इनके जो निबंध है उनमें विचारों की बारी की होती है गंभीरता होती है विचार बहुत सोच समझकर बहुत ही डीप सोचकर के लोग अपनी प्रस्वत्त करते हैं वह शोकला जी और भाव भी मनोव्यज्ञानिक भाव एक तरीके जिद्द करते हुए अपने निबंध होते हैं चिंता मड़ी में इनके निबंध है खास अपने प्रोध इर्शिया लोभ और प्रीति उत्साह श्रद्धा भक्ति ग्रणा ग्रानी इन सभी पर लिखे गए निबंद जो उनके वह मांसिक भावों को स्पष्ट करते हैं वाश्चा का गठन इनकी शक्ति है थोड़े शब्दों में बड़ी से बड़ी बातें कहने की इनको महारत कि राजनीति समाजनीति धर्म पारस पर एक व्यवहार आदि पर इन्होंने मौलिक विचार अपने प्रशुट किए और चिंता मणी नाम चेन का निबंध संग रहा है इसमें सारे के सारे न ताथी बेटा प्रसाद युग में चायावादी लेकर को भी कोड़ी शामिल किया जाता है जिन्होंने कि रेखा चित्र संस्परण और ललित निबंधों की रचनाई की थी ऐसी रचनाओं में महादेवी वर्मा का नाम खास तरफ लिया जाता है उनका स्मति की रेखाएं अतित के चल चित्र शंक्ला की कड़ियां निलिख निबंध संग्रह जिन्हां रेखा चित्र भी कह सकते कला संस्कृति पर निबंध लिखे इनके तीन निबंध संग्रह पर काचेत हुए और साथ में विदेशी विचारों को मस्तिष्क में रखकर के नोटे अधिक बाहर उड़ल देने वाले किसी साहिते का लिखक लोक में चिर जीवन नहीं पा सकता यह इनका कथन था कि विदेशी विचारों को मस्तिष्क में भरकर उन्हें अधिक बाहर उड़ल देने से किसी साहिते का लिखक लोक में चिर जीवन नहीं पा सकता यानी कि हम पश्चिम की नकल जरूर करें परंतुन के विचारों को लेकर के और एजिटिज अगर सामने किसी और को अपनी भाषा में रख रहे हैं तो हम साहितेकार नहीं है यह इनका मानना था और हिंदी साहितेकारों को इनका कहना था कि भारतिया संस्कति और पाकृतिय भूमि से पात करने चाहिए अपने विचार तो हमने कौन-कौन से युग पढ़े अभी तक बिटा पहले बारत युग पढ़ा फिर हमने द्विवेदी युग पढ़ा उसके बाद प्रसाद युग पढ़ा उसके बाद प्रसाद उत्तर युग प्रसाद के बाद कर युग जबकि कौशल यायन जो कि बहुत विख्षू थे समाजवधी विचाय धारा थी जिनकी और सामाजिक विश्वमता पर बात करते थे धार्मिक शोषन आर्थिक उत्पीनन्त पर यश्पाल भी समाजवाल के समर्थक थे, पुरानी परंपराओं, समाज के धार्चे धर्म की बुनियादों पर जोश के साथ बार किया करते थे, यानि कि पुरानी परंपराओं का विरोध करते थे, और सभ्यता, संस्कती, कला, साहित या समाज पर मौलिक विचार अपने प्र दुख प्रगतिवाद जड़ तेतन यह सारे के सारे जो मैटर थे इन पर ने निबंद ले और साथ ही यह कहते थे कि लेखक समाज साहित या धर्म किसी से भी वेखबर नहीं है सभी का परिश्य लेकर से होता है भाषा इनकी सरल सहज हुआ करती थी इनकी निबंद संग्रह रहे पूर्वोदय जयनेंद्र के विचार और इनके निबंदों के विश्वस्था रहे कि गांधीवाद नयतिकत और मौलिक विचार हुआ करते थे इनके स्वतंत्रिता और भावनात्मक शैली इनकी विशेषताएं होते थे इसके बाद हम नाम लेंगे राहुल सांकृत्यायन का राहुल सांकृत्यायन जी जो थे वह देश की दशा पर देश की जो परिस्थिति थी उसके वो सकता है आपनी अपनी किसी बुक में पुरानी किसी बुक में लावसाखी और नाम से पाठ पड़ा हो वे इनी का लिखा हुआ आधुनिक निबंधकारों में प्रभाकर माचवे नामवर सिंह हरिशंकर परसाई शरद जोसी शीलाय शुक्रादी का नाम लिया जाता है और सा कि हरिशंकर परसाही ने व्यंग पूर्ण निबंध लिखी है और भूत के पाउं सदाचार का तावीज ने ठल्ले की डायरी उनके व्यंग जित जो उसमें सारे-सारे उनके निबंध संकलन है साथ ही हरिशंकर परसाही का सिखायत मुझे भी है एक तरह से विनका निबंध परिचय है निबंध संग्रह है तो यह आपका निबंध का संकलन एक बार हम समर्� कि भारतिंदु युग से माना जाता है शुरुआत निबंध की शुरुआत भारतिंदु युग से हुई नवजागरण का समय था देश गुलाम था लोगों को जगाने का काम हो रहा था ताकि लोग एक आजादी की लड़ाई में शामिल हो तो उस काम शामिल इन सभी ने बहुत सारे विषयों पर निबंध लिखे जो कि जन साहित्य था जनभाय शामिल था कि विवंदों में एक तरह से कह सकते हैं शुरुआत थी तो थोड़ी चीला परवाही थी चुटियां हो जा रही थी बाशा की गलतियां हो जा रही थी लेकिन लोगों का सुविकार्य था उसके बाद आया द्विवेदियों इसमें किशोरा वस्ताह कह सकते तक तोड़ी स नियमों का पालन होने लगा थोड़ी सी सर्जावत पर ध्यान दिया जाने लगा और साथ में कंप्रोटीशन वाली बात भी आने लगती लोगों में कि हम उनसे अच्छा निबंद लिख सकते हैं चर्चा होने लगे निबंदों पर महावीर प्रसाद दुविवेदी माधर प्रसाद मिस्टर चंद्रिधर शर्मा गुलेवी यह सब इस टाइम के प्रमुख निबंद का रहे हैं इसके बाद प्रसाद योग में इसे हिंदी साहिति का टोटल हिंदी साहिति का विटाश निकाल कहा जाता है चाहिए पद्या हो चाहिए कद्या हो दोनों का ही विकास सिस्टम पर शिखर पता है कहानी उपन्यास नाटक निबंध अलोचना रेखा चेत्र संस्मर्ण सभी का इस टाइम पर काफी लिखन रहा और काफी विकास पर इस टाइम के प्रमुख निबंधकार रहे गुलाव राय अचारे राम चंद्र शुक्र और इसके साथ छायावादी उपने लेखक भी के नाम लिए जाते हैं राहुल संकृत्य यह सब्सक्राइब कर दो निबंधकार थे इन सब के निबंध हमने अभी पढ़ लिए हैं पहले थोड़ी देर पहले और आधुनिक निबंधकारों में प्रभाकर माचवे नामवर सिंह हरीशंकर परसाही शरद जोशी श्रीलाल शोकल वगैरह के नाम लिया जाता है और हिंदी निबंध का विकास कि जो कि आप लोग पढ़ रहे हैं हिंदी गध्य के विकास के चरण या हिंदी कद्दिखा उद्भाव और विकास के अंतरगत बीए बीकॉम का हिंदी का पेपर है यह हिंदी का ख़ग तीनों का यह कॉमन चैप्टर पहला चैप्टर आपका सभी और कहीं कुछ डाउट हो तो कमेंट सेशन में पूछ सकते हैं अगर आपने चैनल अभी तक सब्सक्राइब नहीं किया तो आप कर लीजिए बेटा परिक्षाओं के