नो फॉल्ट लाइबिलिटी पर व्याख्यान
परिचय
- इस व्याख्यान में नो फॉल्ट लाइबिलिटी पर चर्चा की गई है।
- नो फॉल्ट लाइबिलिटी में किसी गलती के बिना भी जिम्मेदारी बनती है।
- दो महत्वपूर्ण विषय: स्ट्रिक्ट लाइबिलिटी और एप्सलूट लाइबिलिटी।
स्ट्रिक्ट लाइबिलिटी
- केस स्टडी: Rillins vs Fletcher
- फ्लेचर ने अपनी जमीन पर एक रिज़रवायर बनाया जिससे रिलिंज की जमीन में पानी चला गया और नुकसान हुआ।
- हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने निर्णय दिया कि फ्लेचर जिम्मेदार हैं।
- तीन प्राथमिक सिद्धांत:
- खतरनाक चीज का जमीन में होना।
- उसका बचना (escape)।
- इसके परिणामस्वरूप नुकसान होना।
- बर्डन ऑफ प्रूफ:
- हमेशा प्रतिवादी पर होता है।
अपवाद (Exceptions)
- एक्ट ऑफ गॉड: प्राकृतिक घटनाएँ जिन्हें रोका नहीं जा सकता।
- उदहारण: Nicholas vs Marshland केस।
- वोलंटरी नॉन फिट इंजूरिया: आपसी सहमति से लाया गया नुकसान।
- एक्ट ऑफ स्ट्रेंजर: किसी तीसरे व्यक्ति की वजह से हुआ नुकसान।
- स्टैच्युटरी अथॉरिटी: सरकारी कामों से हुआ नुकसान।
एप्सलूट लाइबिलिटी
- उदाहरण: MC Mehta vs Union of India केस (भोपाल गैस त्रासदी)।
- कंपनी की लापरवाही के कारण गैस लीक हुई और हजारों की मौत हुई।
- मुख्य अंतर:
- एप्सलूट लाइबिलिटी में बचाव के लिए कोई अपवाद नहीं है।
- एंटरप्राइज की परिमाण के आधार पर नुकसान की गणना।
स्ट्रिक्ट और एप्सलूट लाइबिलिटी के बीच अंतर
- स्ट्रिक्ट लाइबिलिटी व्यक्तिगत पर लागू होती है, जबकि एप्सलूट एंटरप्राइज पर।
- स्ट्रिक्ट में बचाव के अपवाद हैं, एप्सलूट में नहीं।
- नुकसान की गणना एंटरप्राइज के आकार पर निर्भर करती है।
निष्कर्ष
- नो फॉल्ट लाइबिलिटी के सिद्धांत आधुनिक समय में वैज्ञानिक विकास के साथ और अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं।
नोट: वीडियो में उल्लिखित जानकारी को ध्यान में रखते हुए अगली बार और भी विषयों पर चर्चा की जा सकती है।