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वायु संबंधित विकार और उपचार
Mar 10, 2025
व्याख्यान के महत्वपूर्ण बिंदु
वायु और मन
वायु का स्थान शरीर औ र मन दोनों हैं।
मन की चंचलता का कारण वायु है।
मनो निग्रह के लिए वा शमन चिकित्सा महत्वपूर्ण है।
ब्रह्मचर्य और सेक्स
सेक्स की गतिविधियाँ शारीरिक श्रम मांगती हैं।
सेक्स खत्म होने के बाद गर्म दूध पीना चाहिए।
निद्रा और जागरण
रात में जागने का कारण वायु प्रकोप है।
निद्रा शरीर में कफ बढ़ाती है।
रात में भोजन के बाद दही खाने से सुबह शरीर जकड़ा हो सकता है।
वायु विकार के अन्य कारण
वायु प्रकोप के अन्य कारणों में चिंता, क्रोध, व्यायाम की कमी, आदि शामिल हैं।
वायु की विशेषता लघुता और रुकावट है।
धातु शोषण
धातुओं का शोषण या सं प्रकट होता है जब भोजन का सही पाचन नहीं होता।
चिंता और शोक से रस का क्षीण हो जाता है।
वेग संधारण
विभिन्न प्रकार के वेगों का संधारण महत्वपूर्ण है।
संधारण न होने पर विभिन्न बीमारियाँ हो सकती हैं।
उपचार की विधियाँ
लंघन, पाचन, और शोधन विधियाँ वायु की चिकित्सा में सहायक हैं।
अति व्यायाम और विषम चेष्टा से बचें।
वायु के लक्षण
वायु का संचलन स्तंभ, संकोच, और कंप का कारण बनता है।
वायु रोगियों में शरीर में लघुता का अनुभव हो सकता है।
शरीर की लघुता और कर्म सामर्थ्य
लघुता का अर्थ है शरीर का हल्कापन और कर्म करने की क्षमता।
व्यायाम से शरीर में लघुता और सामर्थ्य आता है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
वस्त्रों का फट जाना, त्वचा का शोषण आदि वायु के कारण होते हैं।
मर्म बाधा में प्राण का स्थान प्रभावित होता है।
वायु चिकित्सा में भोजन के बाद गृत पान की सलाह दी जाती है।
नोट्स का निष्कर्ष
वायु से संबंधित विकारों का निदान और उपचार चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं पर निर्भर करता है।
वायु के असंतुलन के कारण शरीर में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं जिन्ह ें समय पर चिकित्सा द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
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