नमस्कार दोस्तों मैं हूँ ईशा और आज मैं बात करने जा रही हूँ लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई कहानी जिसका शिर्सक है भक्तिन। इस कहानी में लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के जीवन में आए उतार चड़ाओ और उसके स्वभाव के वारे में बताया है। अपने आदर्सों और अपने ग्रामीन संस्कृति के अनुसार ही जीवन जीया। इस कहानी की सुरुवात करते हुए लेखिका कहती है कि भक्तिन छोटे कद और दुबले पतले सरीर वाली बहुत ही सादगी पून जीवन जीने वाली महिला थी। जिस प्रकार पवन पुत्र हनुमाद बिना थके दिन रात राम जी की सेवा करते थे ठीक उसी प्रकार भक्तिन भी लेखिका की खूब सेवा करती थी। जब भक्तिन पहली बार लेखिका के पास नौकरी के लिए आई तो उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया था। लेकिन वा नहीं चाहती थी कि कोई भी उसे लक्ष्मी नाम से पुकारे। लक्ष्मी के गले में कंठी माला और उसका स्वभाव देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया। भक्तिन नाम सुनकर वा बहुत खुश हो गई। लेखिका महादेवी वर्वा ने इस कहानी को चार भागों में बाटा है। इस कहानी के सबसे पहले भाग में लेखेका ने भक्तिन के जन्म और उसकी शादी के बारे में बताया है। भक्तिन इलहाबाद के जूसी गा��ं के एक गौपालक की एकलोती बेटी थी। केवल पाँच साल की उम्र में बताया है। उसका विभा हंडिया गाउं के एक संपन्ड गौपालक के पुत्र से हुआ लेकिन छोटी उम्र में उसकी मा की मृत्यूग के बाद उसकी सौतेली मा ने महच नौ साल की उम्र में उसका गौना करवा दिया मतलब उसे उसका उसका ससुराल भेज दिया भक्तिन की शादी के बाद भक्तिन के पिता बिमार रहने लगे थे और एक दिन उनकी मृत्यू हो गई लेकिन भक्तिन की सौतेली माने भक्तिन को उसके पिता की मृत्यू का समचार उसे नहीं दिया और भक्तिन की सास ने भी उसके पिता की मृत्य� पिता की मृत्यू का समचार सुनकर वह बहुत दुखी हो गई। इसके बाद जब भक्तिन वापस अपने ससुराल पहुची तो उसने अपनी सास को खुब खरी खोटी सुनाई। इस कहानी के दूसरी हिस्से में लेखिका ने भक्तिन के साधी सुदा जीवन के बारे में बताया है। उन देनों समाज में बेटियों को एहमियत नहीं दी जाती थी। भक्तिन और उसकी बेटियों के साथ हर चीज में भेदवाव किया जाता था। जहां जेठानी के बेटों को दूद मलाई और अच्छा भोजन दिया जाता था। वही भक्तिन की बेटियों को मोटा अनाज खान बहकावे में नहीं आता था भक्तिन अपने बाग बगीचो खेत खलियानों के साथ जानवरों की भी देखभाल करती थी भक्तिन ने अपनी बड़ी बेटी का विभाँ बड़े धूम धाम से किया था लेकिन इसके बाद महत चत्तिस साल की उम्र में ही भक्तिन के पती की म दूरभाग्य वश बड़ी बेटी के पती का देहांध हो गया और बड़ी बेटी विद्वा हो गई। तीतर बाज को धक्का देकर बाहर निकाल दिया लेकिन या बात गाउ में फैल गई फिर पंचायत पुलाई गई और दोनों का विभा कराने का आदेश दे दिया गया भक्तिन और उसकी बेटी को ना चाहते हुए भी पंचायत का या फैसला मानना पड़ा शादी के बाद उस तीतर बाज दमाद ने धीरे भक्तिन की सारी संपत्ती उडानी शुरू कर दी जिस कारण भक्तिन की आर्थिक स्थिती काफी खराब हो गई और एक बार तो लगान नहीं देने के कारण जमिन्दान ने उसे दिन भर कड़ी धूप में खड़ा किया तो भक्तिन ने इसे अपना अपमान समझ कर काउं छोड़ दिया। और फिर वा लेखिका के घर आकर उनकी सेविका बन गई। इस कहानी के चौते हिस्से में लेखिका कहती है कि भक्तिन की वेश भूसा किसी सन्यासिन की तरह थी, लेकिन साथ ही वा ग्रेहस्थिन भी थी। बहुत ही नियम धर्म से चलने वाली महिला थी वह सुबा जल्दी उठ कर नहाती थी और लिखिका को बिल्कुल गाउं के घर के जैसे ही खाना बना कर खिलाती थी वह बहुत ही महनती इमानदार और स्वामी भक्त थी लिखिका की सेवा करना थी करना ही अब उसका एक मात्र धर्म बन गया था वाली खिका के घर में भी पूर्ण रूप से अपने गांव के घर के संस्कारों का पालन करती थी लेखिका अगर देर रात तक काम करती थी तो वह कंबल बिछाकर नीचे फर्श में बैठकर लेखिका के बाद रात भर जाकती रहती थी और लेखिका को किसी भी चीज के जरुवत होती थी वह खुशी-खुशी लाकर उन्हें नमभावना बनी रहती थी लेकिन भक्तिन जेल जाने से बहुत डरती थी फिर भी वाले खिका की सेवा करने के लिए जेल जाने को भी तैयार थी वह कहती थी कि जहां मेरी मालकिन रहेगी मैं भी वहीं रहूंगी फिर चाहे वह काल कोठरी क्यों ना हो यहां तक कि वाले खिका को छोड़कर अपनी बेटी और दामाद के साथ जाने को भी तैयार नहीं थी इस कहाने के अंत में भक्तिन और अपने बहतरीन ताल मेल के बारे में लिखिका कहती है है कि मैं ऐसी स्वामी भक्त सेविका को खोना नहीं चाहती हूँ तो दोस्तो या पाठ यही खत्म होता है और दोस्तो अगर यह वीडियो आपको पसंद आया है तो आप इस वीडियो को लाइक कर सकते हो और हमारे चानल पर पहली बार आये है तो चानल को सब्सक्राइब सरूर करें धन्यवाद